Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )

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Sr No : 1004720
Scripture Name( English ): Gyatadharmakatha Translated Scripture Name : धर्मकथांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Section : Translated Section :
Sutra Number : 20 Category : Ang-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से सेणिए राया तासिं अंगपडिचारियाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म तहेव संभंते समाणे सिग्घं तुरियं चवलं वेइयं जेणेव धारिणी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धारिणिं देविं ओलुग्गं ओलुग्गसरीरं जाव अट्टज्झाणोवगयं ज्झि-यायमाणिं पासइ, पासित्ता एवं वयासी–किण्णं तुमं देवानुप्पिए! ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा जाव अट्टज्झाणोवगया ज्झियायसि? तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रन्ना एवं वुत्ता समाणी नो आढाइ नो परियाणइ जाव तुसिणीया संचिट्ठइ। तए णं से सेणिए राया धारिणिं देविं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी–किण्णं तुमं देवानुप्पिए! ओलुग्गा ओलुग्ग-सरीरा जाव अट्टज्झाणोवगया ज्झियायसि? तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रन्ना दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ता समाणी नो आढाइ नो परियाणइ तुसिणीया संचिट्ठइ। तए णं से सेणिए राया धारिणिं देविं सवह-सावियं करेइ, करेत्ता एवं वयासी–किण्णं देवानुप्पिए! अहमेयस्स अट्ठस्स अणरिहे सवणयाए? तो णं तुमं ममं अयमेयारूवं मणोमाणसियं दुक्खं रहस्सीकरेसि। तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रन्ना सवह-साविया समाणी सेणियं रायं एवं वयासी–एवं खलु सामी! मम तस्स उरालस्स जाव महासुमिणस्स तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेयारूवे अकालमेहेसु दोहले पाउब्भूए–धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ कयत्थाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव वेभारगिरिकडग-पायमूलं सव्वओ समंता आहिंडमाणीओ-आहिंडमाणीओ दोहलं विणिंति। तं जइ णं अहमवि मेहेसु अब्भुग्गएसु जाव दोहलं विणेज्जामि। तए णं अहं सामी! अयमेयारूवंसि अकालदोहलंसि अविणिज्जमाणंसि ओलुग्गा जाव अट्टज्झाणोवगया ज्झियामी। तए णं से सेणिए राया धारिणीए देवीए अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म धारिणिं देविं एवं वयासी–मा णं तुमं देवानुप्पिए! ओलुग्गा जाव अट्टज्झाणोवगया ज्झियाहि। अहं णं तह करिस्सामि जहा णं तुब्भं अयमेयारूवस्स अकालदोहलस्स मनोरहसंपत्ती भविस्सइ त्ति कट्टु धारिणिं देविं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुन्नाहिं मणामाहिं वग्गूहिं समासासेइ, समासासेत्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासनवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे धारिणीए देवीए एयं अकाल-दोहलं बहूहिं आएहिं य उवाएहि य, उप्पत्तियाहि य वेणइयाहि य कम्मियाहि य पारिणामियाहि य–चउव्विहाहिं बुद्धीहिं अनुचिंतेमाणे-अनुचिंतेमाणे तस्स दोहलस्स आयं वा उवायं वा ठिइं वा उप्पत्तिं वा अविंदमाणे ओहयमनसंकप्पे जाव ज्झियायइ। तयानंतरं च णं अभए कुमारे ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते० सव्वालंकारविभूसिए पायवंदए पहारेत्थ गमणाए। तए णं से अभए कुमारे जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेणियं रायं ओहयमनसंकप्पं जाव ज्झियायमाणं पासइ, पासित्ता अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अन्नया ममं सेणिए राया एज्जमाणं पासइ, पासित्ता आढाइ परियाणइ सक्कारेइ सम्मानेइ [इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुन्नाहिं मणामाहिं ओरालाहिं वग्गूहिं?] आलवइ संलवइ अद्धासणेणं उवनिमंतेइ मत्थयंसि अग्घाइ। इयाणिं ममं सेणिए राया नो आढाइ नो परियाणइ नो सक्कारेइ नो सम्मानेइ नो इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुन्नाहिं मणामाहिं ओरालाहिं वग्गूहिं आलवइ संलवइ नो अद्धासणेणं उवनिमंतेइ नो मत्थ-यंसि अग्घाइ, किं पि ओहयमनसंकप्पे जाव ज्झियायइ। तं भवियव्वं णं एत्थ कारणेणं। तं सेयं खलु ममं सेणियं रायं एयमट्ठं पुच्छित्तए–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणामेव सेणिए राया तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी–तुब्भे णं ताओ! अन्नया ममं एज्जमाणं पासित्ता आढाह परियाणह सक्कारेह-सम्मानेह आलवह संलवह अद्धासणेणं उवनिमंतेह मत्थयंसि अग्घायह। इयाणिं ताओ! तुब्भे ममं नो आढाह जाव नो मत्थयंसि अग्घायह किं पि ओहयमनसंकप्पा जाव ज्झियायह। तं भवियव्वं णं ताओ! एत्थ कारणेणं। तओ तुब्भे मम ताओ! एयं कारणं अगूहमाणा असंकमाणा अनिण्हवमाणा अपच्छाएमाणा जहाभूतमवितहमसंदिद्धं एयमट्ठं आइक्खह। तए णं हं तस्स कारणस्स अंतगमनं गमिस्सामि। तए णं से सेणिए राया अभएणं कुमारेणं एवं वुत्ते समाणे अभयं कुमारं एवं वयासी–एवं खलु पुत्ता! तव चुल्लमाउयाए धारिणीदेवीए तस्स गब्भस्स दोसु मासेसु अइक्कंतेसु तइयमासे वट्टमाणे दोहलकालसमयंसि अयमेयारूवे दोहले पाउब्भ-वित्था–धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ तहेव निरवसेसं भाणियव्वं जाव वेभारगिरिकडग-पायमूलं सव्वओ समंता आहिंडमाणीओ-आहिंडमाणीओ दोहलं विणिंति। तं जइ णं अहमवि मेहेसु अब्भुग्गएसु जाव दोहलं विणिज्जामि। तए णं अहं पुत्ता धारिणीए देवीए तस्स अकालदोहलस्स बहूहिं आएहिं य उवाएहि य जाव उप्पत्तिं अविंदमाणे ओहयमन-संकप्पे जाव ज्झियामि, तुमं आगयं पि न याणामि। तं एतेणं कारणेणं अहं पुत्ता! ओहयमनसंकप्पे जाव ज्झियामि। तए णं से अभए कुमारे सेणियस्स रन्नो अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए जाव हरिसवसविसप्पमाणहियए सेणियं रायं एवं वयासी–मा णं तुब्भे ताओ! ओहयमनसंकप्पा जाव ज्झियायह। अहं णं तहा करिस्सामि जहा णं मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवस्स अकालदोहलस्स मनोरहसंपत्ती भविस्सइ त्ति कट्टु सेणियं रायं ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुन्नाहिं मणामाहिं वग्गूहिं समासासेइ। तए णं से सेणिए राया कुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियए अभयं कुमारं सक्कारेइ सम्मानेइ, पडिविसज्जेइ।
Sutra Meaning : तब श्रेणिक राजा उन अंगपरिचारिकाओं से यह सूनकर, मन में धारण करके, उसी प्रकार व्याकुल होता हुआ, त्वरा के साथ एवं अत्यन्त शीघ्रता से जहाँ धारिणी देवी थी, वहाँ आता है। आकर धारिणी देवी को जीर्ण – जैसी, जीर्ण शरीर वाली यावत्‌ आर्त्तध्यान से युक्त – देखता है। इस प्रकार कहता है – ‘देवानुप्रिय ! तुम जीर्ण जैसी, जीर्ण शरीर वाली यावत्‌ आर्त्तध्यान से युक्त होकर क्यों चिन्ता कर रही हो ?’ धारिणी देवी श्रेणिक राजा के इस प्रकार कहने पर भी आदर नहीं करती – उत्तर नहीं देती, यावत्‌ मौन रहती है। तत्पश्चात्‌ श्रेणिक राजा ने धारिणी देवी से दूसरी बार और फिर तीसरी बार भी इसी प्रकार कहा। धारिणी देवी श्रेणिक राजा के दूसरी बार और तीसरी बार भी इस प्रकार कहने पर आदर नहीं करती और नहीं जानती – मौन रहती है। तब श्रेणिक राजा धारिणी देवी को शपथ दीलाता है और शपथ दीलाकर कहता है – ‘देवानुप्रिय ! क्या मैं तुम्हारे मन की बात सूनने के लिए अयोग्य हूँ, जिससे अपने मन में रहे हुए मानसिक दुःख को छिपाती हो ?’ तत्पश्चात्‌ श्रेणिक राजा द्वारा शपथ सूनकर धारिणी देवी ने श्रेणिक राजा से इस प्रकार कहा – स्वामिन्‌ ! मुझे वह उदार आदि पूर्वोक्त विशेषणों वाला महास्वप्न आया था। उसे आए तीन मास पूरे हो चूके हैं, अत एव इस प्रकार का अकाल – मेघ संबंधी दोहद उत्पन्न हुआ है कि वे माताएं धन्य हैं और वे माताएं कृतार्थ हैं, यावत्‌ जो वैभार पर्वत की तलहटी में भ्रमण करती हुई अपने दोहद को पूर्ण करती हैं। अगर मैं भी अपने दोहद को पूर्ण करूँ तो धन्य होऊं। इस कारण हे स्वामिन्‌ ! मैं इस प्रकार के इस दोहद के पूर्ण न होने से जीर्ण जैसी, जीर्ण शरीर वाली हो गई हूँ; यावत्‌ आर्त्तध्यान करती हुई चिन्तित हो रही हूँ। स्वामिन्‌ ! जीर्ण – सी – यावत्‌ आर्त्तध्यान से युक्त होकर चिन्ताग्रस्त होने का यही कारण है। तत्पश्चात्‌ श्रेणिक राजा ने धारिणी देवी से यह बात सूनकर और समझ कर, धारिणी देवी से इस प्रकार कहा – ‘देवानुप्रिय ! तुम जीर्ण शरीर वाली मत होओ, यावत्‌ चिन्ता मत करो, मैं वैसा करूँगा जिससे तुम्हारे इस अकाल – दोहद की पूर्ति हो जाएगी।’ इस प्रकार कहकर श्रेणिक ने धारिणी देवी को इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और मणाम वाणी से आश्वासन दिया। आश्वासन देकर जहाँ बाहर की उपस्थानशाला थी, वहाँ आया। आकर श्रेष्ठ सिंहासन पर पूर्व दिशा की और मुख करके बैठा। धारिणी देवी के इस अकाल – दोहद की पूर्ति करने के लिए बहुतेरे आयों से, उपायों से, औत्पत्तिकी बुद्धि से, वैनयिक बुद्धि से, कार्मिक बुद्धि से, पारिणामिक बुद्धि से इस प्रकार चारों तरह की बुद्धि से बार – बार विचार करने लगा। परन्तु विचार करने पर भी उस दोहद के लाभ को, उपाय को, स्थिति को और निष्पत्ति को समझ नहीं पाता, अर्थात्‌ दोहदपूर्ति का कोई उपाय नहीं सुझता। अत एव श्रेणिक राजा के मन का संकल्प नष्ट हो गया और वह भी यावत्‌ चिन्ताग्रस्त हो गया। तदनन्तर अभयकुमार स्नान करके, बलिकर्म करके, यावत्‌ समस्त अलंकारों से विभूषित होकर श्रेणिक राजा के चरणों में वन्दना करने के लिए जाने का विचार करता है – रवाना होता है। तत्पश्चात्‌ अभयकुमार श्रेणिक राजा के समीप आता है। आकर श्रेणिक राजा को देखता है कि इनके मन के संकल्प को आघात पहुँचा हे। यह देखकर अभयकुमार के मन में इस प्रकार का यह आध्यात्मिक अर्थात्‌ आत्मा संबंधी, चिन्तित, प्रार्थित और मनोगत संकल्प उत्पन्न होता है – ‘अन्य समय श्रेणिक राजा मुझे आता देखते थे तो देखकर आदर करते, जानते, वस्त्रादि से सत्कार करते, आसनादि देकर सन्मान करते तथा आलाप – संलाप करते थे, आधे आसन पर बैठने के लिए निमंत्रण करते और मेरे मस्तक को सूँघते थे। किन्तु आज श्रेणिक राजा मुझे न आदर दे रहे हैं, न आया जान रहे हैं, न सत्कार करते हैं, न इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और उदार वचनों से आलाप – संलाप करते हैं, न अर्ध आसन पर बैठने के लिए निमंत्रित करते हैं और न मस्तक को सूँघते हैं, उनके मन के संकल्प को कुछ आघात पहुँचा है, अत एव चिन्तित हो रहे हैं। इसका कोई कारण होना चाहिए। मुझे श्रेणिक राजा से यह बात पूछना श्रेय है।’ अभयकुमार इस प्रकार विचार करता है और विचार कर जहाँ श्रेणिक राजा थे, वहीं आता है। आकर दोनों हाथ जोड़कर, मस्तक पर आवर्त्त, अंजलि करके जय – विजय से बधाता है। बधाकर इस प्रकार कहता है – हे तात ! आप अन्य समय मुझे आता देखकर आदर करते, जानते, यावत्‌ मेरे मस्तक को सूँघते थे और आसन पर बैठने के लिए निमंत्रित करते थे, किन्तु तात ! आप आज मुझे आदर नहीं दे रहे हैं, यावत्‌ आसन पर बैठने के लिए निमंत्रित नहीं कर रहे हैं और मन का संकल्प नष्ट होने के कारण कुछ चिन्ता कर रहे हैं तो इसका कोई कारण होना चाहिए। तो हे तात ! आप इस कारण को छिपाए बिना, इष्टप्राप्ति में शंका रखे बिना, अपलाप किये बिना, दबाये बिना, जैसा का तैसा, सत्य संदेहरहित कहिए। तत्पश्चात्‌ मैं उस कारण का पार पाने का प्रयत्न करूँगा। अभयकुमार के इस प्रकार कहने पर श्रेणिक राजा ने अभयकुमार से – पुत्र ! तुम्हारी छोटी माता धारिणी देवी की गर्भस्थिति हुए दो मास बीत गए और तीसरा मास चल रहा है। उसमें दोहद – काल के समय उसे इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ है – वे माताएं धन्य हैं, इत्यादि सब पहले की भाँति ही कह लेना, यावत्‌ जो अपने दोहद को पूर्ण करती हैं। तब हे पुत्र ! मैं धारिणी देवी के उस अकाल – दोहद के आयों, उपायों एवं उपपत्ति को नहीं समझ पाया हूँ। उससे मेरे मन का संकल्प नष्ट हो गया है और मैं चिन्तायुक्त हो रहा हूँ। इसी से मुझे तुम्हारा आना भी नहीं जान पड़ा। अत एव पुत्र ! मैं इसी कारण नष्ट हुए मनःसंकल्प वाला होकर चिन्ता कर रहा हूँ। तत्पश्चात्‌ वह अभयकुमार, श्रेणिक राजा से यह अर्थ सूनकर और समझ कर हृष्ट – तुष्ट और आनन्दित – हृदय हुआ। उसने श्रेणिक राजा से इस भाँति कहा – हे तात ! आप भग्न – मनोरथ होकर चिन्ता न करे। मैं वैसा करूँगा, जिससे मेरी छोटी माता धारिणी देवी के इस अकाल – दोहद के मनोरथ की पूर्ति होगी। इस प्रकार कह इष्ट, कांच यावत्‌ श्रेणिक राजा को सान्त्वना दी। श्रेणिक राजा, अभयकुमार के इस प्रकार कहने पर हृष्ट – तुष्ट हुआ। वह अभयकुमार का सत्कार करता है, सन्मान करता है। सत्कार – सन्मान करके बिदा करता है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se senie raya tasim amgapadichariyanam amtie eyamattham sochcha nisamma taheva sambhamte samane siggham turiyam chavalam veiyam jeneva dharini devi teneva uvagachchhai, uvagachchhitta dharinim devim oluggam oluggasariram java attajjhanovagayam jjhi-yayamanim pasai, pasitta evam vayasi–kinnam tumam devanuppie! Olugga oluggasarira java attajjhanovagaya jjhiyayasi? Tae nam sa dharini devi senienam ranna evam vutta samani no adhai no pariyanai java tusiniya samchitthai. Tae nam se senie raya dharinim devim dochcham pi tachcham pi evam vayasi–kinnam tumam devanuppie! Olugga olugga-sarira java attajjhanovagaya jjhiyayasi? Tae nam sa dharini devi senienam ranna dochcham pi tachcham pi evam vutta samani no adhai no pariyanai tusiniya samchitthai. Tae nam se senie raya dharinim devim savaha-saviyam karei, karetta evam vayasi–kinnam devanuppie! Ahameyassa atthassa anarihe savanayae? To nam tumam mamam ayameyaruvam manomanasiyam dukkham rahassikaresi. Tae nam sa dharini devi senienam ranna savaha-saviya samani seniyam rayam evam vayasi–evam khalu sami! Mama tassa uralassa java mahasuminassa tinham masanam bahupadipunnanam ayameyaruve akalamehesu dohale paubbhue–dhannao nam tao ammayao kayatthao nam tao ammayao java vebharagirikadaga-payamulam savvao samamta ahimdamanio-ahimdamanio dohalam vinimti. Tam jai nam ahamavi mehesu abbhuggaesu java dohalam vinejjami. Tae nam aham sami! Ayameyaruvamsi akaladohalamsi avinijjamanamsi olugga java attajjhanovagaya jjhiyami. Tae nam se senie raya dharinie devie amtie eyamattham sochcha nisamma dharinim devim evam vayasi–ma nam tumam devanuppie! Olugga java attajjhanovagaya jjhiyahi. Aham nam taha karissami jaha nam tubbham ayameyaruvassa akaladohalassa manorahasampatti bhavissai tti kattu dharinim devim itthahim kamtahim piyahim manunnahim manamahim vagguhim samasasei, samasasetta jeneva bahiriya uvatthanasala teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sihasanavaragae puratthabhimuhe sannisanne dharinie devie eyam akala-dohalam bahuhim aehim ya uvaehi ya, uppattiyahi ya venaiyahi ya kammiyahi ya parinamiyahi ya–chauvvihahim buddhihim anuchimtemane-anuchimtemane tassa dohalassa ayam va uvayam va thiim va uppattim va avimdamane ohayamanasamkappe java jjhiyayai. Tayanamtaram cha nam abhae kumare nhae kayabalikamme kayakouya-mamgala-payachchhitte0 savvalamkaravibhusie payavamdae paharettha gamanae. Tae nam se abhae kumare jeneva senie raya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta seniyam rayam ohayamanasamkappam java jjhiyayamanam pasai, pasitta ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–annaya mamam senie raya ejjamanam pasai, pasitta adhai pariyanai sakkarei sammanei [itthahim kamtahim piyahim manunnahim manamahim oralahim vagguhim?] alavai samlavai addhasanenam uvanimamtei matthayamsi agghai. Iyanim mamam senie raya no adhai no pariyanai no sakkarei no sammanei no itthahim kamtahim piyahim manunnahim manamahim oralahim vagguhim alavai samlavai no addhasanenam uvanimamtei no mattha-yamsi agghai, kim pi ohayamanasamkappe java jjhiyayai. Tam bhaviyavvam nam ettha karanenam. Tam seyam khalu mamam seniyam rayam eyamattham puchchhittae–evam sampehei, sampehetta jenameva senie raya tenameva uvagachchhai, uvagachchhitta karayalapariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam vaddhavei, vaddhavetta evam vayasi–tubbhe nam tao! Annaya mamam ejjamanam pasitta adhaha pariyanaha sakkareha-sammaneha alavaha samlavaha addhasanenam uvanimamteha matthayamsi agghayaha. Iyanim tao! Tubbhe mamam no adhaha java no matthayamsi agghayaha kim pi ohayamanasamkappa java jjhiyayaha. Tam bhaviyavvam nam tao! Ettha karanenam. Tao tubbhe mama tao! Eyam karanam aguhamana asamkamana aninhavamana apachchhaemana jahabhutamavitahamasamdiddham eyamattham aikkhaha. Tae nam ham tassa karanassa amtagamanam gamissami. Tae nam se senie raya abhaenam kumarenam evam vutte samane abhayam kumaram evam vayasi–evam khalu putta! Tava chullamauyae dharinidevie tassa gabbhassa dosu masesu aikkamtesu taiyamase vattamane dohalakalasamayamsi ayameyaruve dohale paubbha-vittha–dhannao nam tao ammayao taheva niravasesam bhaniyavvam java vebharagirikadaga-payamulam savvao samamta ahimdamanio-ahimdamanio dohalam vinimti. Tam jai nam ahamavi mehesu abbhuggaesu java dohalam vinijjami. Tae nam aham putta dharinie devie tassa akaladohalassa bahuhim aehim ya uvaehi ya java uppattim avimdamane ohayamana-samkappe java jjhiyami, tumam agayam pi na yanami. Tam etenam karanenam aham putta! Ohayamanasamkappe java jjhiyami. Tae nam se abhae kumare seniyassa ranno amtie eyamattham sochcha nisamma hatthatuttha-chittamanamdie java harisavasavisappamanahiyae seniyam rayam evam vayasi–ma nam tubbhe tao! Ohayamanasamkappa java jjhiyayaha. Aham nam taha karissami jaha nam mama chullamauyae dharinie devie ayameyaruvassa akaladohalassa manorahasampatti bhavissai tti kattu seniyam rayam tahim itthahim kamtahim piyahim manunnahim manamahim vagguhim samasasei. Tae nam se senie raya kumarenam evam vutte samane hatthatuttha-chittamanamdie java harisavasa-visappamanahiyae abhayam kumaram sakkarei sammanei, padivisajjei.
Sutra Meaning Transliteration : Taba shrenika raja una amgaparicharikaom se yaha sunakara, mana mem dharana karake, usi prakara vyakula hota hua, tvara ke satha evam atyanta shighrata se jaham dharini devi thi, vaham ata hai. Akara dharini devi ko jirna – jaisi, jirna sharira vali yavat arttadhyana se yukta – dekhata hai. Isa prakara kahata hai – ‘devanupriya ! Tuma jirna jaisi, jirna sharira vali yavat arttadhyana se yukta hokara kyom chinta kara rahi ho\?’ dharini devi shrenika raja ke isa prakara kahane para bhi adara nahim karati – uttara nahim deti, yavat mauna rahati hai. Tatpashchat shrenika raja ne dharini devi se dusari bara aura phira tisari bara bhi isi prakara kaha. Dharini devi shrenika raja ke dusari bara aura tisari bara bhi isa prakara kahane para adara nahim karati aura nahim janati – mauna rahati hai. Taba shrenika raja dharini devi ko shapatha dilata hai aura shapatha dilakara kahata hai – ‘devanupriya ! Kya maim tumhare mana ki bata sunane ke lie ayogya hum, jisase apane mana mem rahe hue manasika duhkha ko chhipati ho\?’ Tatpashchat shrenika raja dvara shapatha sunakara dharini devi ne shrenika raja se isa prakara kaha – svamin ! Mujhe vaha udara adi purvokta visheshanom vala mahasvapna aya tha. Use ae tina masa pure ho chuke haim, ata eva isa prakara ka akala – megha sambamdhi dohada utpanna hua hai ki ve mataem dhanya haim aura ve mataem kritartha haim, yavat jo vaibhara parvata ki talahati mem bhramana karati hui apane dohada ko purna karati haim. Agara maim bhi apane dohada ko purna karum to dhanya houm. Isa karana he svamin ! Maim isa prakara ke isa dohada ke purna na hone se jirna jaisi, jirna sharira vali ho gai hum; yavat arttadhyana karati hui chintita ho rahi hum. Svamin ! Jirna – si – yavat arttadhyana se yukta hokara chintagrasta hone ka yahi karana hai. Tatpashchat shrenika raja ne dharini devi se yaha bata sunakara aura samajha kara, dharini devi se isa prakara kaha – ‘devanupriya ! Tuma jirna sharira vali mata hoo, yavat chinta mata karo, maim vaisa karumga jisase tumhare isa akala – dohada ki purti ho jaegi.’ isa prakara kahakara shrenika ne dharini devi ko ishta, kanta, priya, manojnya aura manama vani se ashvasana diya. Ashvasana dekara jaham bahara ki upasthanashala thi, vaham aya. Akara shreshtha simhasana para purva disha ki aura mukha karake baitha. Dharini devi ke isa akala – dohada ki purti karane ke lie bahutere ayom se, upayom se, autpattiki buddhi se, vainayika buddhi se, karmika buddhi se, parinamika buddhi se isa prakara charom taraha ki buddhi se bara – bara vichara karane laga. Parantu vichara karane para bhi usa dohada ke labha ko, upaya ko, sthiti ko aura nishpatti ko samajha nahim pata, arthat dohadapurti ka koi upaya nahim sujhata. Ata eva shrenika raja ke mana ka samkalpa nashta ho gaya aura vaha bhi yavat chintagrasta ho gaya. Tadanantara abhayakumara snana karake, balikarma karake, yavat samasta alamkarom se vibhushita hokara shrenika raja ke charanom mem vandana karane ke lie jane ka vichara karata hai – ravana hota hai. Tatpashchat abhayakumara shrenika raja ke samipa ata hai. Akara shrenika raja ko dekhata hai ki inake mana ke samkalpa ko aghata pahumcha he. Yaha dekhakara abhayakumara ke mana mem isa prakara ka yaha adhyatmika arthat atma sambamdhi, chintita, prarthita aura manogata samkalpa utpanna hota hai – ‘anya samaya shrenika raja mujhe ata dekhate the to dekhakara adara karate, janate, vastradi se satkara karate, asanadi dekara sanmana karate tatha alapa – samlapa karate the, adhe asana para baithane ke lie nimamtrana karate aura mere mastaka ko sumghate the. Kintu aja shrenika raja mujhe na adara de rahe haim, na aya jana rahe haim, na satkara karate haim, na ishta, kanta, priya, manojnya aura udara vachanom se alapa – samlapa karate haim, na ardha asana para baithane ke lie nimamtrita karate haim aura na mastaka ko sumghate haim, unake mana ke samkalpa ko kuchha aghata pahumcha hai, ata eva chintita ho rahe haim. Isaka koi karana hona chahie. Mujhe shrenika raja se yaha bata puchhana shreya hai.’ abhayakumara isa prakara vichara karata hai aura vichara kara jaham shrenika raja the, vahim ata hai. Akara donom hatha jorakara, mastaka para avartta, amjali karake jaya – vijaya se badhata hai. Badhakara isa prakara kahata hai – He tata ! Apa anya samaya mujhe ata dekhakara adara karate, janate, yavat mere mastaka ko sumghate the aura asana para baithane ke lie nimamtrita karate the, kintu tata ! Apa aja mujhe adara nahim de rahe haim, yavat asana para baithane ke lie nimamtrita nahim kara rahe haim aura mana ka samkalpa nashta hone ke karana kuchha chinta kara rahe haim to isaka koi karana hona chahie. To he tata ! Apa isa karana ko chhipae bina, ishtaprapti mem shamka rakhe bina, apalapa kiye bina, dabaye bina, jaisa ka taisa, satya samdeharahita kahie. Tatpashchat maim usa karana ka para pane ka prayatna karumga. Abhayakumara ke isa prakara kahane para shrenika raja ne abhayakumara se – putra ! Tumhari chhoti mata dharini devi ki garbhasthiti hue do masa bita gae aura tisara masa chala raha hai. Usamem dohada – kala ke samaya use isa prakara ka dohada utpanna hua hai – ve mataem dhanya haim, ityadi saba pahale ki bhamti hi kaha lena, yavat jo apane dohada ko purna karati haim. Taba he putra ! Maim dharini devi ke usa akala – dohada ke ayom, upayom evam upapatti ko nahim samajha paya hum. Usase mere mana ka samkalpa nashta ho gaya hai aura maim chintayukta ho raha hum. Isi se mujhe tumhara ana bhi nahim jana para. Ata eva putra ! Maim isi karana nashta hue manahsamkalpa vala hokara chinta kara raha hum. Tatpashchat vaha abhayakumara, shrenika raja se yaha artha sunakara aura samajha kara hrishta – tushta aura anandita – hridaya hua. Usane shrenika raja se isa bhamti kaha – he tata ! Apa bhagna – manoratha hokara chinta na kare. Maim vaisa karumga, jisase meri chhoti mata dharini devi ke isa akala – dohada ke manoratha ki purti hogi. Isa prakara kaha ishta, kamcha yavat shrenika raja ko santvana di. Shrenika raja, abhayakumara ke isa prakara kahane para hrishta – tushta hua. Vaha abhayakumara ka satkara karata hai, sanmana karata hai. Satkara – sanmana karake bida karata hai.