Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004718 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 18 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं तीसे धारिणीए देवीए दोसु मासेसु वीइक्कंतेसु तइए मासे वट्टमाणे तस्स गब्भस्स दोहलकालसमयंसि अयमेयारूवे अकालमेहेसु दोहले पाउब्भवित्था– धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ, संपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयविहवाओ णं ताओ अम्मयाओ, सुलद्धे णं तासिं मानुस्सए जम्मजीवियफले, जाओ णं मेहेसु अब्भुग्गएसु अब्भुज्जएसु अब्भुण्णएसु अब्भुट्ठिएसु सगज्जिएसु सविज्जएसु सफुसिएसु सथणिएसु धंतधोय-रुप्पपट्ट-अंक-संख-चंद-कुंद-सालिपिट्ठरासिसमप्पभेसु चिकुर-हरियाल-भेय-चंपग-सण-कोरंट-सरिसव-पउमरयसमप्पभेसु लक्खा-रस-सरस- रत्त-किंसुय- जासुमण-रत्तबंधुजीवग- जातिहिंगुलय- सरस-कुंकुम- उरब्भसस-रुहिर-इंदगोवग-समप्पभेसु बरहिण-नील-गुलिय-सुगचासपिच्छ-भिगपत्त-सासग-नीलुप्पलनियर-नवसिरीसकुसुम-नवसद्दलसमप्पभेसु जच्चंजण-भिंगभेय-रिट्ठग-भमरावलि-गवलगुलिय-कज्ज-लसमप्पभेसु फुरंत-विज्जुय-सगज्जिएसु वायवस-विपुलगगणचवलपरिसक्किरेसु, निम्मल-वरवारिधारा-पयलिय-पयंडमारुयसमाहयस-मोत्थरंत-उवरिउवरित्तुरियवासं पवासिएसु, धारा-पहकर-निवाय-निव्वाविय मेइणितले हरियगगणकंचुए पल्लविय पायवगणेसु बल्लिवियाणेसु, पसरिएसु उन्नएसु सोभग्गमुचगएसु बेभारगिरिप्पवाय-तड-कडगविमुक्केसु उज्झरेसु, तुरिय-पहाविय-पल्लोट्टफेणाउलं सकलुसं जलं वहंतीसु गिरिनदीसु सज्जज्जुण-नीव-कुडय-कंदल-सिलिंध-कलिएसु उववनेसु, मेहरसिय-हट्ठतुट्ठचिट्ठिय-हरिसवसपमुक्ककंठकेकारवं मुयंतेसु बरहिणेसु उउवसमयजणिय-तरुणसहयरि-पणच्चिएसु नवसुरभि-सिलिंध-कुडय-कंदल-कलंब-गंधद्धणिं मुयंतेसु उववनेसु।... ...परहुय-रुय-रिभिय-संकुलेसु उद्दाइंत-रत्तइंदगोवय-थोवय-कारुण्णबिलविएसु ओणयतण-मंडिएसु दद्दुरपयंपिएसु सपिंडिय-दरिय -भमर-महुयरिपहकर-परिलिंत-मत्त-छप्पय-कुसुमासव-लोल-महुर-गंजंतदेसभाएसु उववनेसु। परिसामिय-चंद-सूर-गहगण-पणट्ठनक्खत्ततारगपहे इंदाउह-बद्ध-चिंध-पट्टम्मि अंबरतले उड्डीणबलागपंति-सोभंतमेहवंदे कारंडग -चक्कवाय-कलहंस-उस्सुयकरे संपत्ते पाउसम्मि काले ण्हायाओ कयबलिकम्माओ कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ताओ किं ते? वर-पायपत्तनेउर-मणिमेहल-हार-रइय-ओविय-कडग-खुड्डय-विचित्तवरवलयथंभियभुयाओ कुंडल-उज्जोवियाणणाओ रयणभूसियंगीओ नासा-नीसासवाय-वोज्झं चक्खुहरं वण्णफरिससंजुत्तं हयलालापेलवाइरेयं धवलकणय-खचियंतकम्मं आगासफलिह-सरिसप्पभं अंसुयं पवर परिहियाओ, दुगूलसुकुमालउत्तरिज्जाओ सव्वोउय-सुरभिकुसुम-पवरमल्लसोभियसिराओ कालागरुधूव-धूवियाओ सिरीसमाणवेसाओ, सेयणय-गंधहत्थिरयणं दुरूढाओ समाणीओ, सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चंदप्पभवइरवेरुलिय-विमलदंड-संखकुंद-दगरयअमयमहियफेणपुंजसन्नि-गास-चउचामरवालवीजियंगीओ सेणिएणं रन्ना सद्धिं हत्थिखंधवरगएणं पिट्ठओ-पिट्ठओ समणुगच्छमाणीओ चाउरंगिणीए सेनाए–महया हयाणीएणं गयाणीएणं रहाणीएणं पायत्ताणीएणं–सव्विड्ढीए सव्वज्जुईए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सव्वविभूईए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारेणं सव्वतुडिय-सद्द-सण्णिणाएणं महया इड्ढीए महया जुईए महया बलेणं महया समुदएणं महया वरतुडिय-जमगसमगप्पवाइएणं संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हुडुक्क-मुरय-मुइंग-दुंदुहि-निग्घोसनाइयरवेणं... ... रायगिहं नयरं सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहीसु आसित्तसित्त-सुइय-सम्मज्जिओवलित्तं पंचवण्ण-सरस-सुरभि-मुक्क-पुप्फपुंजोवयारकलियं कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-डज्झंत-सुरभि-मघमघेंत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवर गंधियं गंधवट्टिभूयं अवलोएमाणीओ नागरजणेणं अभिनंदिज्जमाणीओ गुच्छ-लया-रुक्ख-गुम्म-वल्लि-गुच्छोच्छाइयं सुरम्मं वेभारगिरि-कडग-पायमूलं सव्वओ समंता आहिंडमाणीओ-आहिंडमाणीओ दोहलं विणिंति। तं जइ णं अहमवि मेहेसु अब्भुग्गएसु जाव दोहलं विणिज्जामि। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् दो मास व्यतीत हो जाने पर जब तीसरा मास चल रहा था तब उस गर्भ के दोहदकाल के अवसर पर धारिणी देवी को इस प्रकार का अकाल – मेघ का दोहद उत्पन्न हुआ – जो माताएं अपने अकाल – मेघ के दोहद को पूर्ण करती हैं, वे माताएं धन्य हैं, वे पुण्यवती हैं, वे कृतार्थ हैं। उन्होंने पूर्वजन्म में पुण्य का उपार्जन किया है, वे कृतलक्षण हैं, उनका वैभव सफल है, उन्हें मनुष्य संबंधी जन्म और जीवन का फल प्राप्त हुआ है। आकाश में मेघ उत्पन्न होने पर, क्रमशः वृद्धि प्राप्त होने पर, उन्नति प्राप्त होने पर, बरसने की तैयारी होने पर, गर्जना युक्त होने पर, विद्युत से युक्त होने पर, छोटी – छोटी बरसती हुई बूँदों से युक्त होने पर, मंद – मंद ध्वनि से युक्त होने पर, अग्नि जला कर शुद्ध की हुई चाँदी के पतरे के समान, अङ्क रत्न, शंख, चन्द्रमा, कुन्द पुष्प और चावल के आटे के समान शुक्ल वर्ण वाले, चिकुर नामक रंग, हरचाल के टुकड़े, चम्पा के फूल, सन के फूल, कोरंट – पुष्प, सरसों के फूल और कमल के रज के समान पीत वर्ण वाले, लाख के रस, सरस रक्तवर्ण किशुंक के पुष्प, जासु के पुष्प, लाल रंग के बंधुजीवक के पुष्प, उत्तम जाति के हिंगलू, सरस कंकु, बकरा और खरगोश के रक्त और इन्द्रगोप के समान लाल वर्ण वाले, मयूर, नीलम मणि, नीली गुलिका, तोते के पंख, चाष पक्षी के पंख, भ्रमर के पंख, सासक नामक वृक्ष या प्रियंगुलता, नीलकमलों के समूह, ताजा शिरीष – कुसुम और घास के समान नील वर्ण वाले, उत्तम अंजन, काले भ्रमर या कोयला, रिष्टरत्न, भ्रमरसमूह, भैंस के सींग, काली गोली और कज्जल के समान काले वर्ण वाले, – इस प्रकार पाँचों वर्णों वाले मेघ हों, बिजली चमक रही हो, गर्जना की ध्वनि हो रही हो, विस्तीर्ण आकाश में वायु के कारण चपल बने हुए बादल इधर – उधर चल रहे हों, निर्मल श्रेष्ठ जलधाराओं से गलित, प्रचंड वायु से आहत, पृथ्वीतल को भिगोने वाली वर्षा निरन्तर बरस रही हो, जल – धारा के समूह से भूतल शीतल हो गया हो, पृथ्वी रूपी रमणी ने घास रूपी कंचुक को धारण किया हो, वृक्षों का समूह पल्लवों से सुशोभित हो गया हो, बेलों के समूह विस्तार को प्राप्त हुए हों, उन्नत भू – प्रदेश सौभाग्य को प्राप्त हुए हों, अथवा पर्वत और कुण्ड सौभाग्य को प्राप्त हुए हों, वैभारगिरि के प्रपात तट और कटक से निर्झर नीकल कर बह रहे हों, पर्वतीय नदियों में तेज बहाव के कारण उत्पन्न हुए फेनों से युक्त जल बह रहा हो, उद्यान सर्ज, अर्जुन, नीप और कुटज नामक वृक्षों के अंकुरों से और छत्राकार से युक्त हो गया हो, मेघ की गर्जना के कारण हृष्ट – तुष्ट होकर नाचने की चेष्टा करने वाले मयूर हर्ष के कारण मुक्त कंठ से केकारव कर रहे हों, और वर्षा ऋतु के कारण उत्पन्न हुए मद से तरुण मयूरियाँ नृत्य कर रही हों, उपवन शिलिंघ्र, कुटज, कंदल और कदम्ब वृक्षों के पुष्पों की नवीन और सौरभयुक्त गंध की तृप्ति धारण कर रहे हो, नगर के बाहर के उद्यान कोकिलाओं के स्वरघोलना वाले शब्दों से व्याप्त हों और रक्तवर्ण इन्द्रगोप नामक कीड़ों से शोभायमान हो रहे हों, उनमें चातक करुण स्वर से बोल रहे हों, वे नमे हुए तृणों से सुशोभित हों, उनमें मेंढ़क उच्च स्वर से आवाज कर रहे हों, मदोन्मत भ्रमरों और भ्रमरियों के समूह एकत्र हो रहे हों, तथा उन उद्यान – प्रदेशों में पुष्प – रस के लोलुप एवं मधुर गुंजार करने वाले मदोन्मत भ्रमर लीन हो रहे हों, आकाशतल में चन्द्रमा, सूर्य और ग्रहों का समूह मेघों से आच्छादित होने के कारण श्यामवर्ण का दृष्टिगोचर हो रहा हो, इन्द्रधनुष रूपी ध्वजपट फरफरा रहा हो, और उसमें रहा हुआ मेघसमूह बगुलों की कतारों से शोभित हो रहा हो, इस भाँति कारंडक, चक्रवाक और राजहंस पक्षियों को मानस – सरोवर की ओर जाने के लिए उत्सुक बनाने वाला वर्षाऋतु का समय हो। ऐसे वर्षाकाल में जो माताएं स्नान करके, बलिकर्म करके, कौतुक मंगल और प्रायश्चित्त करके (वैभार – गिरि के प्रदेशों में अपने पति के साथ विहार करती हैं, वे धन्य हैं।) वे माताएं धन्य हैं जो पैरों में उत्तम नूपुर धारण करती हैं, कमर में करधनी पहनती हैं, वक्षःस्थल पर हार पहनती हैं, हाथों में कड़े तथा उंगलियों में अंगूठियाँ पहनती हैं, अपने बाहुओं को विचित्र और श्रेष्ठ बाजूबन्दों से स्तंभित करती हैं, जिनका अंग रत्नों से भूषित हो, जिन्होंने ऐसा वस्त्र पहना हो जो नासिका के निःश्वास की वायु से भी उड़ जाए अर्थात् अत्यन्त बारीक हो, नेत्रों को हरण करने वाला हो, उत्तम वर्ण और स्पर्श वाला हो, घोड़े के मुख से नीकलने वाले फेन से भी कोमल और हल्का हो, उज्ज्वल हो, जिसकी निकारियाँ सुवर्ण के तारों के बुनी गई हों, श्वेत होने के कारण जो आकाश एवं स्फटिक के समान शुभ्र कान्ति वाला हो और श्रेष्ठ हों। जिन माताओं का मस्तक समस्त ऋतुओं संबंधी सुगंधी पुष्पों और फुसमालाओं से सुशोभित हो, जो कालागुरु आदि की उत्तम धूप से धूपित हों और जो लक्ष्मी के समान वेष वाली हों। इस प्रकार सजधज करके जो सेचनक नामक गंधहस्ती पर आरूढ़ होकर, कोरंट – पुष्पों की माला से सुशोभित छत्र को धारण करती हैं। चन्द्रप्रभा, वज्र और वैडूर्य रत्न के निर्मल दंड़ वाले एवं शंख, कुन्दपुष्प, जलकण और अमृत का मंथन करने से उत्पन्न हुए फेन के समूह के समान उज्ज्वल, श्वेत चार चमर जिनके ऊपर ढोरे जा रहे हैं, जो हस्ती – रत्न के स्कंध पर राजा श्रेणिक के साथ बैठी हों। उनके पीछे – पीछे चतुरंगिणी सेना चल रही हो, छत्र आदि राजचिह्नों रूप समस्त ऋद्धि के साथ, आभूषणों की कान्ति के साथ, यावत् वाद्यों के निर्घोष – शब्द के साथ, राजगृह नगर के शृंगाटक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, महापथ तथा सामान्य मार्द में गंधोदरक एक बार छिड़का हो, अनेक बार छिड़का हो, शृंगाटक आदि को शुचि किया हो, झाड़ा हो, गोबर आदि से लीपा हो, काले अगर, श्रेष्ठ कुंदरु, लोबान तथा धूप को जलाने से फैली हुई सुगंध से मघमघा रहा हो, उत्तम चूर्ण के गंध से सुगंधित किया हो और मानों गंधद्रव्यों की गुटिका ही हो, ऐसे राजगृह नगर को देखती जा रही हों। नागरिक जन अभिवन्दन कर रहे हों। गुच्छों, लताओं, वृक्षों, गुल्मों एवं वेलों के समूहों से व्याप्त, मनोहर वैभारपर्वत के नीचले भागों के समीप, चारों और सर्वत्र भ्रमण करती हुई अपने दोहद को पूर्ण करती हैं (वे माताएं धन्य हैं।) तो मैं भी इस प्रकार मेघों का उदय आदि होने पर अपने दोहद को पूर्ण करना चाहती हूँ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam tise dharinie devie dosu masesu viikkamtesu taie mase vattamane tassa gabbhassa dohalakalasamayamsi ayameyaruve akalamehesu dohale paubbhavittha– dhannao nam tao ammayao, sampunnao nam tao ammayao, kayatthao nam tao ammayao, kayapunnao nam tao ammayao, kayalakkhanao nam tao ammayao, kayavihavao nam tao ammayao, suladdhe nam tasim manussae jammajiviyaphale, jao nam mehesu abbhuggaesu abbhujjaesu abbhunnaesu abbhutthiesu sagajjiesu savijjaesu saphusiesu sathaniesu dhamtadhoya-ruppapatta-amka-samkha-chamda-kumda-salipittharasisamappabhesu chikura-hariyala-bheya-champaga-sana-koramta-sarisava-paumarayasamappabhesu lakkha-rasa-sarasa- ratta-kimsuya- jasumana-rattabamdhujivaga- jatihimgulaya- sarasa-kumkuma- urabbhasasa-ruhira-imdagovaga-samappabhesu barahina-nila-guliya-sugachasapichchha-bhigapatta-sasaga-niluppalaniyara-navasirisakusuma-navasaddalasamappabhesu jachchamjana-bhimgabheya-ritthaga-bhamaravali-gavalaguliya-kajja-lasamappabhesu phuramta-vijjuya-sagajjiesu vayavasa-vipulagaganachavalaparisakkiresu, nimmala-varavaridhara-payaliya-payamdamaruyasamahayasa-mottharamta-uvariuvaritturiyavasam pavasiesu, dhara-pahakara-nivaya-nivvaviya meinitale hariyagaganakamchue pallaviya payavaganesu balliviyanesu, pasariesu unnaesu sobhaggamuchagaesu bebharagirippavaya-tada-kadagavimukkesu ujjharesu, turiya-pahaviya-pallottaphenaulam sakalusam jalam vahamtisu girinadisu sajjajjuna-niva-kudaya-kamdala-silimdha-kaliesu uvavanesu, meharasiya-hatthatutthachitthiya-harisavasapamukkakamthakekaravam muyamtesu barahinesu uuvasamayajaniya-tarunasahayari-panachchiesu navasurabhi-silimdha-kudaya-kamdala-kalamba-gamdhaddhanim muyamtesu uvavanesu.. ..Parahuya-ruya-ribhiya-samkulesu uddaimta-rattaimdagovaya-thovaya-karunnabilaviesu onayatana-mamdiesu daddurapayampiesu sapimdiya-dariya -bhamara-mahuyaripahakara-parilimta-matta-chhappaya-kusumasava-lola-mahura-gamjamtadesabhaesu uvavanesu. Parisamiya-chamda-sura-gahagana-panatthanakkhattataragapahe imdauha-baddha-chimdha-pattammi ambaratale uddinabalagapamti-sobhamtamehavamde karamdaga -chakkavaya-kalahamsa-ussuyakare sampatte pausammi kale nhayao kayabalikammao kaya-kouya-mamgala-payachchhittao kim te? Vara-payapattaneura-manimehala-hara-raiya-oviya-kadaga-khuddaya-vichittavaravalayathambhiyabhuyao kumdala-ujjoviyananao rayanabhusiyamgio nasa-nisasavaya-vojjham chakkhuharam vannapharisasamjuttam hayalalapelavaireyam dhavalakanaya-khachiyamtakammam agasaphaliha-sarisappabham amsuyam pavara parihiyao, dugulasukumalauttarijjao savvouya-surabhikusuma-pavaramallasobhiyasirao kalagarudhuva-dhuviyao sirisamanavesao, seyanaya-gamdhahatthirayanam durudhao samanio, sakoremtamalladamenam chhattenam dharijjamanenam chamdappabhavairaveruliya-vimaladamda-samkhakumda-dagarayaamayamahiyaphenapumjasanni-gasa-chauchamaravalavijiyamgio senienam ranna saddhim hatthikhamdhavaragaenam pitthao-pitthao samanugachchhamanio chauramginie senae–mahaya hayanienam gayanienam rahanienam payattanienam–savviddhie savvajjuie savvabalenam savvasamudaenam savvadarenam savvavibhuie savvavibhusae savvasambhamenam savvapupphagamdhamallalamkarenam savvatudiya-sadda-sanninaenam mahaya iddhie mahaya juie mahaya balenam mahaya samudaenam mahaya varatudiya-jamagasamagappavaienam samkha-panava-padaha-bheri-jhallari-kharamuhi-hudukka-muraya-muimga-dumduhi-nigghosanaiyaravenam.. .. Rayagiham nayaram simghadaga-tiga-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapahapahisu asittasitta-suiya-sammajjiovalittam pamchavanna-sarasa-surabhi-mukka-pupphapumjovayarakaliyam kalagaru-pavarakumdurukka-turukka-dhuva-dajjhamta-surabhi-maghamaghemta-gamdhuddhayabhiramam sugamdhavara gamdhiyam gamdhavattibhuyam avaloemanio nagarajanenam abhinamdijjamanio guchchha-laya-rukkha-gumma-valli-guchchhochchhaiyam surammam vebharagiri-kadaga-payamulam savvao samamta ahimdamanio-ahimdamanio dohalam vinimti. Tam jai nam ahamavi mehesu abbhuggaesu java dohalam vinijjami. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat do masa vyatita ho jane para jaba tisara masa chala raha tha taba usa garbha ke dohadakala ke avasara para dharini devi ko isa prakara ka akala – megha ka dohada utpanna hua – jo mataem apane akala – megha ke dohada ko purna karati haim, ve mataem dhanya haim, ve punyavati haim, ve kritartha haim. Unhomne purvajanma mem punya ka uparjana kiya hai, ve kritalakshana haim, unaka vaibhava saphala hai, unhem manushya sambamdhi janma aura jivana ka phala prapta hua hai. Akasha mem megha utpanna hone para, kramashah vriddhi prapta hone para, unnati prapta hone para, barasane ki taiyari hone para, garjana yukta hone para, vidyuta se yukta hone para, chhoti – chhoti barasati hui bumdom se yukta hone para, mamda – mamda dhvani se yukta hone para, agni jala kara shuddha ki hui chamdi ke patare ke samana, anka ratna, shamkha, chandrama, kunda pushpa aura chavala ke ate ke samana shukla varna vale, chikura namaka ramga, harachala ke tukare, champa ke phula, sana ke phula, koramta – pushpa, sarasom ke phula aura kamala ke raja ke samana pita varna vale, lakha ke rasa, sarasa raktavarna kishumka ke pushpa, jasu ke pushpa, lala ramga ke bamdhujivaka ke pushpa, uttama jati ke himgalu, sarasa kamku, bakara aura kharagosha ke rakta aura indragopa ke samana lala varna vale, mayura, nilama mani, nili gulika, tote ke pamkha, chasha pakshi ke pamkha, bhramara ke pamkha, sasaka namaka vriksha ya priyamgulata, nilakamalom ke samuha, taja shirisha – kusuma aura ghasa ke samana nila varna vale, uttama amjana, kale bhramara ya koyala, rishtaratna, bhramarasamuha, bhaimsa ke simga, kali goli aura kajjala ke samana kale varna vale, – Isa prakara pamchom varnom vale megha hom, bijali chamaka rahi ho, garjana ki dhvani ho rahi ho, vistirna akasha mem vayu ke karana chapala bane hue badala idhara – udhara chala rahe hom, nirmala shreshtha jaladharaom se galita, prachamda vayu se ahata, prithvitala ko bhigone vali varsha nirantara barasa rahi ho, jala – dhara ke samuha se bhutala shitala ho gaya ho, prithvi rupi ramani ne ghasa rupi kamchuka ko dharana kiya ho, vrikshom ka samuha pallavom se sushobhita ho gaya ho, belom ke samuha vistara ko prapta hue hom, unnata bhu – pradesha saubhagya ko prapta hue hom, athava parvata aura kunda saubhagya ko prapta hue hom, vaibharagiri ke prapata tata aura kataka se nirjhara nikala kara baha rahe hom, parvatiya nadiyom mem teja bahava ke karana utpanna hue phenom se yukta jala baha raha ho, udyana sarja, arjuna, nipa aura kutaja namaka vrikshom ke amkurom se aura chhatrakara se yukta ho gaya ho, megha ki garjana ke karana hrishta – tushta hokara nachane ki cheshta karane vale mayura harsha ke karana mukta kamtha se kekarava kara rahe hom, aura varsha ritu ke karana utpanna hue mada se taruna mayuriyam nritya kara rahi hom, upavana shilimghra, kutaja, kamdala aura kadamba vrikshom ke pushpom ki navina aura saurabhayukta gamdha ki tripti dharana kara rahe ho, nagara ke bahara ke udyana kokilaom ke svaragholana vale shabdom se vyapta hom aura raktavarna indragopa namaka kirom se shobhayamana ho rahe hom, unamem chataka karuna svara se bola rahe hom, ve name hue trinom se sushobhita hom, unamem memrhaka uchcha svara se avaja kara rahe hom, madonmata bhramarom aura bhramariyom ke samuha ekatra ho rahe hom, tatha una udyana – pradeshom mem pushpa – rasa ke lolupa evam madhura gumjara karane vale madonmata bhramara lina ho rahe hom, akashatala mem chandrama, surya aura grahom ka samuha meghom se achchhadita hone ke karana shyamavarna ka drishtigochara ho raha ho, indradhanusha rupi dhvajapata pharaphara raha ho, aura usamem raha hua meghasamuha bagulom ki katarom se shobhita ho raha ho, isa bhamti karamdaka, chakravaka aura rajahamsa pakshiyom ko manasa – sarovara ki ora jane ke lie utsuka banane vala varsharitu ka samaya ho. Aise varshakala mem jo mataem snana karake, balikarma karake, kautuka mamgala aura prayashchitta karake (vaibhara – giri ke pradeshom mem apane pati ke satha vihara karati haim, ve dhanya haim.) Ve mataem dhanya haim jo pairom mem uttama nupura dharana karati haim, kamara mem karadhani pahanati haim, vakshahsthala para hara pahanati haim, hathom mem kare tatha umgaliyom mem amguthiyam pahanati haim, apane bahuom ko vichitra aura shreshtha bajubandom se stambhita karati haim, jinaka amga ratnom se bhushita ho, jinhomne aisa vastra pahana ho jo nasika ke nihshvasa ki vayu se bhi ura jae arthat atyanta barika ho, netrom ko harana karane vala ho, uttama varna aura sparsha vala ho, ghore ke mukha se nikalane vale phena se bhi komala aura halka ho, ujjvala ho, jisaki nikariyam suvarna ke tarom ke buni gai hom, shveta hone ke karana jo akasha evam sphatika ke samana shubhra kanti vala ho aura shreshtha hom. Jina mataom ka mastaka samasta rituom sambamdhi sugamdhi pushpom aura phusamalaom se sushobhita ho, jo kalaguru adi ki uttama dhupa se dhupita hom aura jo lakshmi ke samana vesha vali hom. Isa prakara sajadhaja karake jo sechanaka namaka gamdhahasti para arurha hokara, koramta – pushpom ki mala se sushobhita chhatra ko dharana karati haim. Chandraprabha, vajra aura vaidurya ratna ke nirmala damra vale evam shamkha, kundapushpa, jalakana aura amrita ka mamthana karane se utpanna hue phena ke samuha ke samana ujjvala, shveta chara chamara jinake upara dhore ja rahe haim, jo hasti – ratna ke skamdha para raja shrenika ke satha baithi hom. Unake pichhe – pichhe chaturamgini sena chala rahi ho, chhatra adi rajachihnom rupa samasta riddhi ke satha, abhushanom ki kanti ke satha, yavat vadyom ke nirghosha – shabda ke satha, rajagriha nagara ke shrimgataka, chatushka, chatvara, chaturmukha, mahapatha tatha samanya marda mem gamdhodaraka eka bara chhiraka ho, aneka bara chhiraka ho, shrimgataka adi ko shuchi kiya ho, jhara ho, gobara adi se lipa ho, kale agara, shreshtha kumdaru, lobana tatha dhupa ko jalane se phaili hui sugamdha se maghamagha raha ho, uttama churna ke gamdha se sugamdhita kiya ho aura manom gamdhadravyom ki gutika hi ho, aise rajagriha nagara ko dekhati ja rahi hom. Nagarika jana abhivandana kara rahe hom. Guchchhom, lataom, vrikshom, gulmom evam velom ke samuhom se vyapta, manohara vaibharaparvata ke nichale bhagom ke samipa, charom aura sarvatra bhramana karati hui apane dohada ko purna karati haim (ve mataem dhanya haim.) to maim bhi isa prakara meghom ka udaya adi hone para apane dohada ko purna karana chahati hum. |