Sutra Navigation: Sutrakrutang ( सूत्रकृतांग सूत्र )

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Sr No : 1001673
Scripture Name( English ): Sutrakrutang Translated Scripture Name : सूत्रकृतांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Section : Translated Section :
Sutra Number : 673 Category : Ang-02
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : ते सव्वे पावादुया आइगरा धम्माणं, नानापण्णा नानाचंदा नानासीला नानादिट्ठी नानारुई नानारंभा नानाज्झवसाणसंजुत्ता एगं महं मंडलिबंधं किच्चा सव्वे एगओ चिट्ठंति। पुरिसे य सागणियाणं इंगालाणं पाइं बहुपडिपुण्णं अओमएणं संडासएणं गहाय ते सव्वे पावादुए आइगरे धम्माणं, नानापण्णे नानाछंदे नानासीले नानादिट्ठी नानारुई नानारंभे नानाज्झ-वसाणसंजुत्ते एवं वयासी– हंभो पावादया! आइगरा! धम्माणं, नानापण्णा! नानाछंदा! नानासीला! नानादिट्ठी! नानारुई! नानारंभा! नानाज्झवसाणसंजुत्ता! इमं ताव तुब्भे सागणियाणं इंगालाणं पाइं बहुपडिपुण्णं गहाय मुहुत्तगं-मुहुत्तगं पाणिणा धरेह। नो बहु संडासगं संसारियं कुज्जा, नो बहु अग्गिथंभणियं कुज्जा, नो बहु साहम्मियवेयावडियं कुज्जा, नो बहु परधम्मियवेयावडियं कुज्जा, उज्जुया णियागपडिवण्णा अमायं कुव्वमाणा पाणिं पसारेह–इति वुच्चा से पुरिसे तेसिं पावादुयान तं सागणियाणं इंगालाणं पाइं बहुपडिपुण्णं ‘अओमएणं संडासएणं गहाय पाणिंसु निसिरति’। तए णं ते पावादुया आइगरा धम्माणं, नानापण्णा नानाछंदा नानासीला नानादिट्ठी नानारुई नानारंभा नानाज्झवसाण-संजुत्ता पाणिं पडिसाहरंति। तए णं से पुरिसे ते सव्वे पावादुए आइगरे धम्माणं, नानापण्णे नानाछंदे नानासीले नानादिट्ठी नानारुई नानारंभे नानाज्झवसाणसंजुत्ते एवं वयासी–हंभो पावादुया! आइगरा! धम्माणं, नानापण्णा! नानाछंदा! नाना-सीला! नानादिट्ठी! नानारुई! नानारंभा! नानाज्झवसाणसंजुत्ता! ‘कम्हा णं तुब्भे पाणिं पडिसाहरह’? ‘पाणी नो डज्झेज्जा’? दड्ढे किं भविस्सइ? दुक्खं। दुक्खं ति मण्णमाणा पडिसाहरह? एस तुला एस पमाणे एस समोसरणे। पत्तेयं तुला पत्तेयं पमाणे पत्तेयं समोसरणे। तत्थ णं जे ते समणमाहणा एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेंति, एवं परूवेंति–’सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता हंतव्वा अज्जावेयव्वा परिघेतव्वा परितावेयव्वा किलामेयव्वा उद्दवेयव्वा’–ते आगंतु छेयाए ते आगंतु भेयाए ते आगंतु जाइ-जरा-मरण-जोणिजम्मण-संसार-पुणब्भव-गब्भवास-भवपवंच-कलंकलीभागिणो भविस्संति। ते बहूणं दंड-नाणं बहूणं मुंडनाणं बहूणं तज्जनाणं बहूणं तालनाणं बहूणं अंदुबंधनाणं बहूणं घोलनाणं बहूणं माइमरनाणं बहूणं पिइमरनाणं बहूणं भाइमरनाणं बहूणं भगिणीमरनाणं बहूणं भज्जामरनाणं बहूणं पुत्तमरनाणं बहूणं धूयमरनाणं बहूणं सुण्हामरनाणं बहूणं दारिद्दाणं बहूणं दोहग्गाणं बहूणं अप्पियसंवासाणं बहूणं पिय-विप्पओगाणं बहूणं दुक्ख-दोमणस्साणं आभागिणो भविस्संति। अणादियं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंत-संसार-कंतारं भुज्जो-भुज्जो अणुपरियट्टिस्संति। ते नो सिज्झिस्संति नो बुज्झिस्संति नो मुच्चिस्संति नो परिणिव्वाइस्संति नो सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। एस तुला एस पमाणे एस समोसरणे। पत्तेयं तुला पत्तेयं पमाणे पत्तेयं समोसरणे। तत्थ णं जे ते समणमाहणा एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेंति, एवं परूवेंति–’सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता न हंतव्वा न अज्जावेयव्वा न परिघेत्तव्वा न परितावेयव्वा न किलामेयव्वा न उद्दवेयव्वा’–ते नो आगंतु छेयाए ते नो आगंतु भेयाए ‘ते नो आगंतु जाइ’-जरा-मरण-जोणिजम्मण-संसार-पुणब्भव-गब्भवास-भवपवंच-कलंकलीभागिणो भविस्संति। ते नो बहूणं दंडनाणं नो बहूणं मुंडनाणं नो बहूणं तज्जनाणं नो बहूणं तालनाणं नो बहूणं अंदुबंधनाणं नो बहूणं घोलनाणं नो बहूणं माइमरनाणं नो बहूणं पिइमरनाणं नो बहूणं भाइमरनाणं नो बहूणं भगिणीमरनाणं नो बहूणं भज्जामरनाणं नो बहूणं पुत्तमरनाणं नो बहूणं धूयमरनाणं नो बहूणं सुण्हामरनाणं नो बहूणं दारिद्दाणं नो बहूणं दोहग्गाणं नो बहूणं अप्पिय-संवासाणं नो बहूणं पिय-विप्पओगाणं नो बहूणं दुक्ख-दोमणस्साणं आभागिणो भविस्संति। अनाइयं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंत-संसार-कंतारं भुज्जो-भुज्जो नो अणुपरियट्टिस्संति। ते सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिणिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणं अंतं करिस्संति।
Sutra Meaning : वे पूर्वोक्त प्रावादुक अपने – अपने धर्म के आदि – प्रवर्तक हैं। नाना प्रकार की बुद्धि, नाना अभिप्राय, विभिन्न शील, विविध दृष्टि, नानारुचि, विविध आरम्भ और विभिन्न निश्चय रखने वाले वे सभी प्रावादुक एक स्थान में मंडलीबद्ध होकर बैठे हों, वहाँ कोई पुरुष आग के अंगारों से भरी हुई किसी पात्री को लोहे की संडासी से पकड़ कर लाए, और नाना प्रकार की प्रज्ञा, अभिप्राय, शील, दृष्टि, रुचि, आरम्भ और निश्चय वाले, धर्मों के आदि प्रवर्तक उन प्रावादुकों से कहे – ‘‘अजी ! नाना प्रकार की बुद्धि आदि तथा विभिन्न निश्चय वाले धर्मों के आदिप्रवर्तक प्रावादुको ! आप लोग आग के अंगारों से भरी हुई पात्री को लेकर थोड़ी – थोड़ी देर तक हाथ में पकड़ रखें, संडासी की सहायता न लें, और न ही आग को बुझाएं या कम करे, अपने साधर्मिकों की वैयावृत्य भी न कीजिए, न ही अन्य धर्म वालों की वैयावृत्य कीजिए, किन्तु सरल और मोक्षाराधक बनकर कपट न करते हुए अपने हाथ पसारिए।’’ यों कहकर वह पुरुष आग के अंगारों से पूरी भरी हुई उस पात्री को लोहे की संडासी से पकड़कर उन प्रावादुकों के हाथ पर रखे। उस समय धर्म के आदि प्रवर्तक तथा नाना प्रज्ञा, शील, अध्यवसाय आदि से सम्पन्न वे सब प्रावादुक अपने हाथ अवश्य ही हटा लेंगे। यह देखकर वह पुरुष उन प्रावादुकों से इस प्रकार कहे – ‘प्रावादुको! आप अपने हाथ को क्यों हटा रहे हैं ?’ ‘इसीलिए कि हाथ न जले !’ (हम पूछते हैं – ) हाथ जल जाने से क्या होगा? यही कि दुःख होगा। यदि दुःख के भय से आप हाथ हटा लेते हैं तो यही बात आप सबके लिए अपने समान मानीए, यही सबके लिए प्रमाण मानीए, यही धर्म का सार – सर्वस्व समझीए। यही बात प्रत्येक के लिए तुल्य समझीए, यही युक्ति प्रत्येक के लिए प्रमाण मानीए, और इसी को प्रत्येक के लिए धर्म का सार – सर्वस्व समझीए। धर्म के प्रसंग में जो श्रमण और माहन ऐसा कहते हैं, यावत ऐसी प्ररूपणा करते हैं कि समस्त प्राणियों, भूतों, जीवों और सत्त्वों का हनन करना चाहिए, उन पर आज्ञा चलाना चाहिए, उन्हें दास – दासी आदि के रूप में रखना चाहिए, उन्हें परिताप, क्लेश, उपद्रवित करना चाहिए। ऐसा करने वाले वे भविष्य में ‘अपने शरीर को छेदन – भेदन आदि पीड़ाओं का भागी बनाते हैं। वे भविष्य में जन्म, मरण, विवित योनियों में उत्पत्ति, फिर संसार में पुनः जन्म, गर्भवास, और सांसारिक प्रपंच में पड़कर महाकष्ट के भागी होंगे। वे घोर दण्ड के भागी होंगे। वे बहुत ही मुण्डन, तर्जन, ताड़न, खोड़ी बन्धन के, यहाँ तक कि घोले (पानी में डूबोए) जाने के भागी होंगे। तथा माता, पिता, भाई, भगिनी, भार्या, पुत्र, पुत्री, पुत्रवधू आदि मरण दुःख के भागी होंगे। वे दरिद्रता, दुर्भाग्य, अप्रिय व्यक्ति के साथ निवास, प्रियवियोग, तथा बहुत – से दुःखों और वैमनस्यों के भागी होंगे। वे आदि – अन्तरहित तथा दीर्घकालिक चतुर्गतिक संसार रूप घोर जंगल में बार – बार परिभ्रमण करते रहेंगे। वे सिद्धि को प्राप्त नहीं होंगे, न ही बोध को प्राप्त होंगे, यावत्‌ सर्व दुःखों का अन्त नहीं कर सकेंगे। जैसे सावद्य अनुष्ठान करनेवाले अन्यतीर्थिक सिद्धि नहीं प्राप्त कर सकते, वैसे ही सावद्यानुष्ठानकर्ता स्वयूथिक भी सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकते, वे भी पूर्वोक्त अनेक दुःखों के भागी होते हैं। यह कथन सबके लिए तुल्य है, यह प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोंसे सिद्ध है, यही सारभूत विचार है। यह प्रत्येक प्राणी के लिए तुल्य है, प्रत्येक के लिए यह प्रमाण सिद्ध है, तथा प्रत्येक के लिए यही सारभूत विचार है। परन्तु धर्म – विचार के प्रसंग में जो सुविहित श्रमण एवं माहन यह कहते हैं कि – समस्त प्राणियों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को नहीं मारना चाहिए, उन्हें अपनी आज्ञा में नहीं चलाना एवं उन्हें बलात्‌ दास – दासी के रूप में पकड़ कर गुलाम नहीं बनाना चाहिए, उन्हें डराना – धमकाना या पीड़ित नहीं करना चाहिए, वे महात्मा भविष्य में छेदन – भेदन आदि कष्टों को प्राप्त नहीं करेंगे, वे जन्म, जरा, मरण, अनेक योनियों में जन्म – धारण, संसार में पुनः पुनः जन्म, गर्भवास तथा संसार के अनेकविध प्रपंच के कारण नाना दुःखों के भाजन नहीं होंगे। तथा वे आदि – अन्त रहित, दीर्घकालिक मध्यरूप चतुर्गतिक संसाररूपी गोर वन में बारंबार भ्रमण नहीं करेंगे। वे सिद्धि को प्राप्त करेंगे, केवलज्ञान – केवलदर्शन प्राप्त कर बुद्ध और मुक्त होंगे, तथा समस्त दुःखों का सदा के लिए अन्त करेंगे।
Mool Sutra Transliteration : Te savve pavaduya aigara dhammanam, nanapanna nanachamda nanasila nanaditthi nanarui nanarambha nanajjhavasanasamjutta egam maham mamdalibamdham kichcha savve egao chitthamti. Purise ya saganiyanam imgalanam paim bahupadipunnam aomaenam samdasaenam gahaya te savve pavadue aigare dhammanam, nanapanne nanachhamde nanasile nanaditthi nanarui nanarambhe nanajjha-vasanasamjutte evam vayasi– hambho pavadaya! Aigara! Dhammanam, nanapanna! Nanachhamda! Nanasila! Nanaditthi! Nanarui! Nanarambha! Nanajjhavasanasamjutta! Imam tava tubbhe saganiyanam imgalanam paim bahupadipunnam gahaya muhuttagam-muhuttagam panina dhareha. No bahu samdasagam samsariyam kujja, no bahu aggithambhaniyam kujja, no bahu sahammiyaveyavadiyam kujja, no bahu paradhammiyaveyavadiyam kujja, ujjuya niyagapadivanna amayam kuvvamana panim pasareha–iti vuchcha se purise tesim pavaduyana tam saganiyanam imgalanam paim bahupadipunnam ‘aomaenam samdasaenam gahaya panimsu nisirati’. Tae nam te pavaduya aigara dhammanam, nanapanna nanachhamda nanasila nanaditthi nanarui nanarambha nanajjhavasana-samjutta panim padisaharamti. Tae nam se purise te savve pavadue aigare dhammanam, nanapanne nanachhamde nanasile nanaditthi nanarui nanarambhe nanajjhavasanasamjutte evam vayasi–hambho pavaduya! Aigara! Dhammanam, nanapanna! Nanachhamda! Nana-sila! Nanaditthi! Nanarui! Nanarambha! Nanajjhavasanasamjutta! ‘kamha nam tubbhe panim padisaharaha’? ‘pani no dajjhejja’? Daddhe kim bhavissai? Dukkham. Dukkham ti mannamana padisaharaha? Esa tula esa pamane esa samosarane. Patteyam tula patteyam pamane patteyam samosarane. Tattha nam je te samanamahana evamaikkhamti, evam bhasamti, evam pannavemti, evam paruvemti–’savve pana savve bhuya savve jiva savve satta hamtavva ajjaveyavva parighetavva paritaveyavva kilameyavva uddaveyavva’–te agamtu chheyae te agamtu bheyae te agamtu jai-jara-marana-jonijammana-samsara-punabbhava-gabbhavasa-bhavapavamcha-kalamkalibhagino bhavissamti. Te bahunam damda-nanam bahunam mumdananam bahunam tajjananam bahunam talananam bahunam amdubamdhananam bahunam gholananam bahunam maimarananam bahunam piimarananam bahunam bhaimarananam bahunam bhaginimarananam bahunam bhajjamarananam bahunam puttamarananam bahunam dhuyamarananam bahunam sunhamarananam bahunam dariddanam bahunam dohagganam bahunam appiyasamvasanam bahunam piya-vippaoganam bahunam dukkha-domanassanam abhagino bhavissamti. Anadiyam cha nam anavayaggam dihamaddham chauramta-samsara-kamtaram bhujjo-bhujjo anupariyattissamti. Te no sijjhissamti no bujjhissamti no muchchissamti no parinivvaissamti no savvadukkhanamamtam karissamti. Esa tula esa pamane esa samosarane. Patteyam tula patteyam pamane patteyam samosarane. Tattha nam je te samanamahana evamaikkhamti, evam bhasamti, evam pannavemti, evam paruvemti–’savve pana savve bhuya savve jiva savve satta na hamtavva na ajjaveyavva na parighettavva na paritaveyavva na kilameyavva na uddaveyavva’–te no agamtu chheyae te no agamtu bheyae ‘te no agamtu jai’-jara-marana-jonijammana-samsara-punabbhava-gabbhavasa-bhavapavamcha-kalamkalibhagino bhavissamti. Te no bahunam damdananam no bahunam mumdananam no bahunam tajjananam no bahunam talananam no bahunam amdubamdhananam no bahunam gholananam no bahunam maimarananam no bahunam piimarananam no bahunam bhaimarananam no bahunam bhaginimarananam no bahunam bhajjamarananam no bahunam puttamarananam no bahunam dhuyamarananam no bahunam sunhamarananam no bahunam dariddanam no bahunam dohagganam no bahunam appiya-samvasanam no bahunam piya-vippaoganam no bahunam dukkha-domanassanam abhagino bhavissamti. Anaiyam cha nam anavayaggam dihamaddham chauramta-samsara-kamtaram bhujjo-bhujjo no anupariyattissamti. Te sijjhissamti bujjhissamti muchchissamti parinivvaissamti savvadukkhanam amtam karissamti.
Sutra Meaning Transliteration : Ve purvokta pravaduka apane – apane dharma ke adi – pravartaka haim. Nana prakara ki buddhi, nana abhipraya, vibhinna shila, vividha drishti, nanaruchi, vividha arambha aura vibhinna nishchaya rakhane vale ve sabhi pravaduka eka sthana mem mamdalibaddha hokara baithe hom, vaham koi purusha aga ke amgarom se bhari hui kisi patri ko lohe ki samdasi se pakara kara lae, aura nana prakara ki prajnya, abhipraya, shila, drishti, ruchi, arambha aura nishchaya vale, dharmom ke adi pravartaka una pravadukom se kahe – ‘‘aji ! Nana prakara ki buddhi adi tatha vibhinna nishchaya vale dharmom ke adipravartaka pravaduko ! Apa loga aga ke amgarom se bhari hui patri ko lekara thori – thori dera taka hatha mem pakara rakhem, samdasi ki sahayata na lem, aura na hi aga ko bujhaem ya kama kare, apane sadharmikom ki vaiyavritya bhi na kijie, na hi anya dharma valom ki vaiyavritya kijie, kintu sarala aura moksharadhaka banakara kapata na karate hue apane hatha pasarie.’’ yom kahakara vaha purusha aga ke amgarom se puri bhari hui usa patri ko lohe ki samdasi se pakarakara una pravadukom ke hatha para rakhe. Usa samaya dharma ke adi pravartaka tatha nana prajnya, shila, adhyavasaya adi se sampanna ve saba pravaduka apane hatha avashya hi hata lemge. Yaha dekhakara vaha purusha una pravadukom se isa prakara kahe – ‘pravaduko! Apa apane hatha ko kyom hata rahe haim\?’ ‘isilie ki hatha na jale !’ (hama puchhate haim – ) hatha jala jane se kya hoga? Yahi ki duhkha hoga. Yadi duhkha ke bhaya se apa hatha hata lete haim to yahi bata apa sabake lie apane samana manie, yahi sabake lie pramana manie, yahi dharma ka sara – sarvasva samajhie. Yahi bata pratyeka ke lie tulya samajhie, yahi yukti pratyeka ke lie pramana manie, aura isi ko pratyeka ke lie dharma ka sara – sarvasva samajhie. Dharma ke prasamga mem jo shramana aura mahana aisa kahate haim, yavata aisi prarupana karate haim ki samasta praniyom, bhutom, jivom aura sattvom ka hanana karana chahie, una para ajnya chalana chahie, unhem dasa – dasi adi ke rupa mem rakhana chahie, unhem paritapa, klesha, upadravita karana chahie. Aisa karane vale ve bhavishya mem ‘apane sharira ko chhedana – bhedana adi piraom ka bhagi banate haim. Ve bhavishya mem janma, marana, vivita yoniyom mem utpatti, phira samsara mem punah janma, garbhavasa, aura samsarika prapamcha mem parakara mahakashta ke bhagi homge. Ve ghora danda ke bhagi homge. Ve bahuta hi mundana, tarjana, tarana, khori bandhana ke, yaham taka ki ghole (pani mem duboe) jane ke bhagi homge. Tatha mata, pita, bhai, bhagini, bharya, putra, putri, putravadhu adi marana duhkha ke bhagi homge. Ve daridrata, durbhagya, apriya vyakti ke satha nivasa, priyaviyoga, tatha bahuta – se duhkhom aura vaimanasyom ke bhagi homge. Ve adi – antarahita tatha dirghakalika chaturgatika samsara rupa ghora jamgala mem bara – bara paribhramana karate rahemge. Ve siddhi ko prapta nahim homge, na hi bodha ko prapta homge, yavat sarva duhkhom ka anta nahim kara sakemge. Jaise savadya anushthana karanevale anyatirthika siddhi nahim prapta kara sakate, vaise hi savadyanushthanakarta svayuthika bhi siddhi prapta nahim kara sakate, ve bhi purvokta aneka duhkhom ke bhagi hote haim. Yaha kathana sabake lie tulya hai, yaha pratyaksha adi pramanomse siddha hai, yahi sarabhuta vichara hai. Yaha pratyeka prani ke lie tulya hai, pratyeka ke lie yaha pramana siddha hai, tatha pratyeka ke lie yahi sarabhuta vichara hai. Parantu dharma – vichara ke prasamga mem jo suvihita shramana evam mahana yaha kahate haim ki – samasta praniyom, bhutom, jivom aura sattvom ko nahim marana chahie, unhem apani ajnya mem nahim chalana evam unhem balat dasa – dasi ke rupa mem pakara kara gulama nahim banana chahie, unhem darana – dhamakana ya pirita nahim karana chahie, ve mahatma bhavishya mem chhedana – bhedana adi kashtom ko prapta nahim karemge, ve janma, jara, marana, aneka yoniyom mem janma – dharana, samsara mem punah punah janma, garbhavasa tatha samsara ke anekavidha prapamcha ke karana nana duhkhom ke bhajana nahim homge. Tatha ve adi – anta rahita, dirghakalika madhyarupa chaturgatika samsararupi gora vana mem barambara bhramana nahim karemge. Ve siddhi ko prapta karemge, kevalajnyana – kevaladarshana prapta kara buddha aura mukta homge, tatha samasta duhkhom ka sada ke lie anta karemge.