Sutra Navigation: Sutrakrutang ( सूत्रकृतांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1001806 | ||
Scripture Name( English ): | Sutrakrutang | Translated Scripture Name : | सूत्रकृतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 806 | Category : | Ang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] भगवं च णं उदाहु–आउसंतो! उदगा! जे खलु समणं वा माहणं वा परिभासइ मित्ति मण्णइ आगमित्ता नाणं, आगमित्ता दंसणं, आगमित्ता चरित्तं पावाणं कम्माणं अकरणयाए [उट्ठिए?], से खलु परलोगपलिमंथत्ताए चिट्ठइ। जे खलु समणं वा माहणं वा नो परिभासइ मित्ति मण्णइ आगमित्ता पाणं, आगमित्ता दंसणं, आगमित्ता चरित्तं पावाणं कम्माणं अकरणयाए [उट्ठिए?], से खलु परलोगविसुद्धीए चिट्ठइ। तए णं से उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं अणाढायमाणे जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पहारेत्थ गमणाए। भगवं च णं उदाहु–आउसंतो! उदगा! जे खलु तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा णिसम्म अप्पणो चेव सुहुमाए पडिलेहाए अनुत्तरंजोगखेमपयं लंभिए समाणे सो वि ताव तं आढाइ ‘परि-जाणेइ वंदइ णमंसइ सक्कारेइ सम्माणेइ’ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासइ। तए णं से उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वयासी–एएसि णं भंते! पदानं पुव्विं अन्नाणयाए अस्सवणयाए अबोहीए अणभिगमेणं अदिट्ठाणं अस्सुयाणं अमुयाणं अविण्णायाणं अणिज्जूढाणं अव्वोगडाणं अव्वोच्छिण्णाणं अणिसिट्ठाणं अणि-वूढाणं अणुवहारियाणं एयमट्ठं नो सद्दहियं नो पत्तियं नो रोइयं। एएसि णं भंते! पदाणं एण्हिं जाणयाए सवणयाए बोहीए अभिगमेणं दिट्ठाणं सुयाणं मुयाणं विण्णायाणं णिज्जूढाणं वोगडाणं वोच्छिण्णाणं णिसिट्ठाणं णिवूढाणं उवधारियाणं एयमट्ठं सद्दहामि पत्तियामि रोएमि ‘एवामेयं जहा णं’, तुब्भे वदह। तए णं भगवं गोयमे उदगं पेढालपुत्तं एवं वयासी–सद्दहाहि णं अज्जो! पत्तियाहि णं अज्जो! रोएहि णं अज्जो! एवमेयं जहा णं अम्हे वयामो। तए णं से उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वयासी–इच्छामि णं भंते! तुब्भं अंतिए चाउज्जामाओ धम्माओ पंच-महव्वइयं सपडिक्कमणं धम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। तए णं भगवं गोयमे उदगं पेढालपुत्तं गहाय जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ। तए णं से उदए पेढालपुत्ते समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामि णं भंते! तुब्भं अंतिए चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि। तए णं से उदए पेढालपुत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमहव्वइयं सपडिक्क-मणं धम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | भगवान गौतम स्वामी ने उनसे कहा – ‘आयुष्मन् उदक ! जो व्यक्ति श्रमण अथवा माहन की निन्दा करता है वह साधुओं के प्रति मैत्री रखता हुआ भी, ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र को प्राप्त करके भी, हिंसादि पापों तथा तज्जनित पापकर्मों को न करने के लिए उद्यत वह अपने परलोक के विघात के लिए उद्यत है। जो व्यक्ति श्रमण या माहन की निन्दा नहीं करता किन्तु उनके साथ अपनी परम मैत्री मानता है तथा ज्ञान प्राप्त करके, दर्शन प्राप्त कर एवं चारित्र पाकर पापकर्मों को न करने के लिए उद्यत है, वह निश्चय ही अपने परलोक की विशुद्धि के लिए उद्यत है। पश्चात् उदक पेढ़ालपुत्र निर्ग्रन्थ भगवान गौतम स्वामी को आदर दिये बिना ही जिस दिशा से आए थे, उसी दिशा में जाने के लिए तत्पर हो गए। भगवान गौतमस्वामी ने कहा – ‘‘आयुष्मन् उदक ! (श्रेष्ठ शिष्ट पुरुषों का परम्परागत आचार यह रहा कि) जो व्यक्ति तथाभूत श्रमण या माहन से एक भी आर्य, धार्मिक सुवचन सूनकर उसे हृदयंगम करता है और अपनी सूक्ष्म प्रज्ञा से उसका भलीभाँति निरीक्षण – परीक्षण करके (यह निश्चित कर लेता है) कि ‘मुझे इस परमहितैषी पुरुष ने सर्वोत्तम योग – क्षेम रूप पद उपलब्ध कराया है,’ तब वह उपकृत व्यक्ति भी उस (उपकारी तथा योगक्षेमपद के उपदेशक)का आदर करता है, उसे अपना उपकारी मानता है, उसे वन्दन – नमस्कार करता है, उसका सत्कार – सम्मान करता है, यहाँ तक कि उसे कल्याणरूप, मंगलरूप, देवरूप, चैत्यरूप मानकर उसकी पर्युपासना करता है तत्पश्चात् उदक निर्ग्रन्थ ने भगवान गौतम से कहा – ‘‘भगवन् ! मैंने ये (आप द्वारा निरूपित परमकल्याण – कर योगक्षेमरूप) पद पहले कभी नहीं जाने थे, न ही सूने थे, न ही इन्हें समझे थे। मैंने हृदयंगम नहीं किये, न इन्हें कभी देखे सूने थे, इन पदों को मैंने स्मरण नहीं किया था, ये पद मेरे लिए अभी तक अज्ञात थे, इनकी व्याख्या मैंने नहीं सूनी थी, ये पद मेरे लिए गूढ़ थे, ये पद निःसंशय रूप से मेरे द्वारा ज्ञात या निर्धारित न थे, न ही गुरु द्वारा उद्धृत थे, न ही इन पदों के अर्थ की धारणा किसी से की थी। इन पदों में निहित अर्थ पर मैंने श्रद्धा नहीं की, प्रतीति नहीं की और रुचि नहीं की। भन्ते ! इन पदों को मैंने अब जाना है, अभी आपसे सूना है, अभी समझा है, यहाँ तक कि मैंने इन पदों में निहित अर्थ की धारणा की है या तथ्य निर्धारित किया है; अतएव अब मैं इन (पदों में निहित) अर्थों में श्रद्धा करता हूँ, प्रतीति करता हूँ, रुचि करता हूँ। यह बात वैसी ही है, जैसी आप कहते हैं।’’ तदनन्तर श्री भगवान गौतम उदक पेढ़ालपुत्र से इस प्रकार कहने लगे – आर्य उदक ! जैसा हम कहते हैं, (वह सर्वज्ञवचन है अतः) उस पर पूर्ण श्रद्धा रखो। आर्य ! उस पर प्रतीति रखो, आर्य ! वैसी ही रुचि करो। आर्य! मैंने जैसा तुम्हें कहा है, वह वैसा ही (सत्य – तथ्य रूप) है। तत्पश्चात् उदकनिर्ग्रन्थ ने भगवान गौतमस्वामी से कहा – ‘‘भन्ते ! अब तो यही ईच्छा होती है कि मैं आपके समक्ष चातुर्याम धर्म का त्याग करके प्रतिक्रमणसहित पंच महाव्रतरूप धर्म आपके समक्ष स्वीकार करके विचरण करूँ।’’ इसके बाद भगवान गौतम उदक पेढ़ालपुत्र को लेकर जहाँ श्रमण भगवान महावीर बिराजमान थे, वहाँ पहुँचे। भगवान के पास पहुँचते ही उनसे प्रभावित उदक निर्ग्रन्थ ने स्वेच्छा से जीवन परिवर्तन करने हेतु श्रमण भगवान महावीर की तीन बार प्रदक्षिणा की, ऐसा करके फिर वन्दना की, नमस्कार किया, वन्दन – नमस्कार के पश्चात् इस प्रकार कहा – ‘‘भगवन् ! मैं आपके समक्ष चातुर्यामरूप धर्म का त्याग कर प्रतिक्रमणसहित पंचमहाव्रत वाले धर्म को स्वीकार करके विचरण करना चाहता हूँ।’’ इस पर भगवान महावीर ने कहा ‘‘देवानुप्रिय उदक ! तुम्हें जैसा सुख हो, वैसा करो, परन्तु ऐसे शुभकार्य में प्रतिबन्ध न करो।’’ तभी उदक ने चातुर्याम धर्म से श्रमण भगवान महावीर से सप्रतिक्रमण पंचमहाव्रतरूप धर्म का अंगीकार किया और विचरण करने लगा। – ऐसा मैं कहता हूँ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] bhagavam cha nam udahu–ausamto! Udaga! Je khalu samanam va mahanam va paribhasai mitti mannai agamitta nanam, agamitta damsanam, agamitta charittam pavanam kammanam akaranayae [utthie?], se khalu paralogapalimamthattae chitthai. Je khalu samanam va mahanam va no paribhasai mitti mannai agamitta panam, agamitta damsanam, agamitta charittam pavanam kammanam akaranayae [utthie?], se khalu paralogavisuddhie chitthai. Tae nam se udae pedhalaputte bhagavam goyamam anadhayamane jameva disim paubbhue tameva disim paharettha gamanae. Bhagavam cha nam udahu–ausamto! Udaga! Je khalu taharuvassa samanassa va mahanassa va amtie egamavi ariyam dhammiyam suvayanam sochcha nisamma appano cheva suhumae padilehae anuttaramjogakhemapayam lambhie samane so vi tava tam adhai ‘pari-janei vamdai namamsai sakkarei sammanei’ kallanam mamgalam devayam cheiyam pajjuvasai. Tae nam se udae pedhalaputte bhagavam goyamam evam vayasi–eesi nam bhamte! Padanam puvvim annanayae assavanayae abohie anabhigamenam aditthanam assuyanam amuyanam avinnayanam anijjudhanam avvogadanam avvochchhinnanam anisitthanam ani-vudhanam anuvahariyanam eyamattham no saddahiyam no pattiyam no roiyam. Eesi nam bhamte! Padanam enhim janayae savanayae bohie abhigamenam ditthanam suyanam muyanam vinnayanam nijjudhanam vogadanam vochchhinnanam nisitthanam nivudhanam uvadhariyanam eyamattham saddahami pattiyami roemi ‘evameyam jaha nam’, tubbhe vadaha. Tae nam bhagavam goyame udagam pedhalaputtam evam vayasi–saddahahi nam ajjo! Pattiyahi nam ajjo! Roehi nam ajjo! Evameyam jaha nam amhe vayamo. Tae nam se udae pedhalaputte bhagavam goyamam evam vayasi–ichchhami nam bhamte! Tubbham amtie chaujjamao dhammao pamcha-mahavvaiyam sapadikkamanam dhammam uvasampajjittanam viharittae. Tae nam bhagavam goyame udagam pedhalaputtam gahaya jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai. Tae nam se udae pedhalaputte samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–ichchhami nam bhamte! Tubbham amtie chaujjamao dhammao pamchamahavvaiyam sapadikkamanam dhammam uvasampajjittanam viharittae. Ahasuham devanuppiya! Ma padibamdham karehi. Tae nam se udae pedhalaputte samanassa bhagavao mahavirassa amtie chaujjamao dhammao pamchamahavvaiyam sapadikka-manam dhammam uvasampajjittanam viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavana gautama svami ne unase kaha – ‘ayushman udaka ! Jo vyakti shramana athava mahana ki ninda karata hai vaha sadhuom ke prati maitri rakhata hua bhi, jnyana, darshana evam charitra ko prapta karake bhi, himsadi papom tatha tajjanita papakarmom ko na karane ke lie udyata vaha apane paraloka ke vighata ke lie udyata hai. Jo vyakti shramana ya mahana ki ninda nahim karata kintu unake satha apani parama maitri manata hai tatha jnyana prapta karake, darshana prapta kara evam charitra pakara papakarmom ko na karane ke lie udyata hai, vaha nishchaya hi apane paraloka ki vishuddhi ke lie udyata hai. Pashchat udaka perhalaputra nirgrantha bhagavana gautama svami ko adara diye bina hi jisa disha se ae the, usi disha mem jane ke lie tatpara ho gae. Bhagavana gautamasvami ne kaha – ‘‘ayushman udaka ! (shreshtha shishta purushom ka paramparagata achara yaha raha ki) jo vyakti tathabhuta shramana ya mahana se eka bhi arya, dharmika suvachana sunakara use hridayamgama karata hai aura apani sukshma prajnya se usaka bhalibhamti nirikshana – parikshana karake (yaha nishchita kara leta hai) ki ‘mujhe isa paramahitaishi purusha ne sarvottama yoga – kshema rupa pada upalabdha karaya hai,’ taba vaha upakrita vyakti bhi usa (upakari tatha yogakshemapada ke upadeshaka)ka adara karata hai, use apana upakari manata hai, use vandana – namaskara karata hai, usaka satkara – sammana karata hai, yaham taka ki use kalyanarupa, mamgalarupa, devarupa, chaityarupa manakara usaki paryupasana karata hai Tatpashchat udaka nirgrantha ne bhagavana gautama se kaha – ‘‘bhagavan ! Maimne ye (apa dvara nirupita paramakalyana – kara yogakshemarupa) pada pahale kabhi nahim jane the, na hi sune the, na hi inhem samajhe the. Maimne hridayamgama nahim kiye, na inhem kabhi dekhe sune the, ina padom ko maimne smarana nahim kiya tha, ye pada mere lie abhi taka ajnyata the, inaki vyakhya maimne nahim suni thi, ye pada mere lie gurha the, ye pada nihsamshaya rupa se mere dvara jnyata ya nirdharita na the, na hi guru dvara uddhrita the, na hi ina padom ke artha ki dharana kisi se ki thi. Ina padom mem nihita artha para maimne shraddha nahim ki, pratiti nahim ki aura ruchi nahim ki. Bhante ! Ina padom ko maimne aba jana hai, abhi apase suna hai, abhi samajha hai, yaham taka ki maimne ina padom mem nihita artha ki dharana ki hai ya tathya nirdharita kiya hai; ataeva aba maim ina (padom mem nihita) arthom mem shraddha karata hum, pratiti karata hum, ruchi karata hum. Yaha bata vaisi hi hai, jaisi apa kahate haim.’’ Tadanantara shri bhagavana gautama udaka perhalaputra se isa prakara kahane lage – arya udaka ! Jaisa hama kahate haim, (vaha sarvajnyavachana hai atah) usa para purna shraddha rakho. Arya ! Usa para pratiti rakho, arya ! Vaisi hi ruchi karo. Arya! Maimne jaisa tumhem kaha hai, vaha vaisa hi (satya – tathya rupa) hai. Tatpashchat udakanirgrantha ne bhagavana gautamasvami se kaha – ‘‘bhante ! Aba to yahi ichchha hoti hai ki maim apake samaksha chaturyama dharma ka tyaga karake pratikramanasahita pamcha mahavratarupa dharma apake samaksha svikara karake vicharana karum.’’ Isake bada bhagavana gautama udaka perhalaputra ko lekara jaham shramana bhagavana mahavira birajamana the, vaham pahumche. Bhagavana ke pasa pahumchate hi unase prabhavita udaka nirgrantha ne svechchha se jivana parivartana karane hetu shramana bhagavana mahavira ki tina bara pradakshina ki, aisa karake phira vandana ki, namaskara kiya, vandana – namaskara ke pashchat isa prakara kaha – ‘‘bhagavan ! Maim apake samaksha chaturyamarupa dharma ka tyaga kara pratikramanasahita pamchamahavrata vale dharma ko svikara karake vicharana karana chahata hum.’’ isa para bhagavana mahavira ne kaha ‘‘devanupriya udaka ! Tumhem jaisa sukha ho, vaisa karo, parantu aise shubhakarya mem pratibandha na karo.’’ Tabhi udaka ne chaturyama dharma se shramana bhagavana mahavira se sapratikramana pamchamahavratarupa dharma ka amgikara kiya aura vicharana karane laga. – aisa maim kahata hum. |