Sutra Navigation: Sutrakrutang ( सूत्रकृतांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1001803 | ||
Scripture Name( English ): | Sutrakrutang | Translated Scripture Name : | सूत्रकृतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 803 | Category : | Ang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] भगवं च णं उदाहु नियंठा खलु पुच्छियव्वा–आउसंतो! नियंठा! इह खलु संतेगइया मणुस्सा भवंति। तेसिं च णं एवं वुत्तपुव्वं भवइ–जे इमे मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्ता, एएसिं णं आमरणंताए दंडे निक्खित्ते। जे इमे अगारमावसंति, एएसिं णं आमरणंताए दंडे नो निक्खित्ते। ‘केई च णं समणे’ जाव वासाइं चउपंचमाइं छद्दसमाइं अप्पयरो वा भुज्जयरो वा देसं दूइज्जित्ता ‘अगारं वएज्जा’? हंता वएज्जा। तस्स णं तमगारत्थं वहमाणस्स से पच्चक्खाणे भग्गे भवइ? णेति। एवमेव समणोवासगस्स वि तसेहिं पाणेहिं दंडे निक्खित्ते, थावरेहिं पाणेहिं दंडे नो निक्खित्ते। तस्स णं तं थावरकायं वहमाणस्स से पच्चक्खाणे नो भग्गे भवइ। सेवमायाणह नियंठा! सेवमायाणियव्वं। भगवं च णं उदाहु नियंठा खलु पुच्छियव्वा–आउसंतो! नियंठा! इह खलु गाहावइणो वा गाहावइपुत्ता वा तहप्पगारेहिं कुलेहिं आगम्म धम्मस्सवणवत्तियं उवसंकमेज्जा? हंता उवसंकमेज्जा। तेसिं च णं तहप्पगाराणं धम्मे आइक्खियव्वे? हंता आइक्खियव्वे। किं ते तहप्पगारं धम्मं सोच्चा णिसम्म एवं वएज्जा–इणमेव णिग्गंथं पावयणं सच्चं अनुत्तरंकेवलियं पडिपुण्णं ‘णेयाउयं’ संसुद्धं सल्लकत्तणं सिद्धिमग्गं मुत्तिमग्गं ‘निज्जाणमग्गं निव्वाणमग्गं’ अवितहं असंदिद्धं सव्वदुक्खप्पहीणमग्गं। एत्थ ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिणिव्वंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। इमाणाए तहा गच्छामो तहा चिट्ठामो तहा णिसीयामो तहा तुयट्टामो तहा भुंजामो तहा भासामो तहा अब्भुट्ठेमो तहा उट्ठाए उट्ठेत्ता पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं संजमेणं संजमामो त्ति वएज्जा? हंता वएज्जा। किं ते तहप्पगारा कप्पंति पव्वावेत्तए? हंता कप्पंति। किं ते तहप्पगारा कप्पंति मुंडावेत्तए? हंता कप्पंति। किं ते तहप्पगारा कप्पंति सिक्खावेत्तए? हंता कप्पंति। किं ते तहप्पगारा कप्पंति उवट्ठावेत्तए? हंता कप्पंति। तेसिं च णं तहप्पगाराणं सव्वपाणेहिं सव्वभूएहिं सव्वजीवेहिं सव्वसत्तेहिं दंडे निक्खित्ते? हंता निक्खित्ते। ते णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा जाव वासाइं चउपंचमाइं छद्दसमाइं वा अप्पयरो वा भुज्जयरो वा देसं दूइज्जित्ता अगारं वएज्जा? हंता वएज्जा। तस्स णं सव्वपाणेहिं सव्वभूएहिं सव्वजीवेहिं सव्वसत्तेहिं दंडे निक्खित्ते? णेति। से जे से जीवी जस्स परेणं सव्वपाणेहिं सव्वभूएहिं सव्वजीवेहिं सव्वसत्तेहिं दंडे नो निक्खित्ते। से जे से जीवे जस्स आरेणं सव्वपाणेहिं सव्वभूएहिं सव्वजीवेहिं सव्व सत्तेहिं दंडे निक्खित्ते। से जे से जीवे जस्स इयाणिं सव्वपाणेहिं सव्वभूएहिं सव्वजीवेहिं सव्व सत्तेहिं दंडे नो निक्खित्ते भवइ। परेणं अस्संजए, आरेणं संजए, इयाणिं अस्संजए। अस्संजयस्स णं सव्वपाणेहिं सव्वभूएहिं सव्वजीवेहिं सव्व सत्तेहिं दंडे नो निक्खित्ते भवइ। सेवमायाणह नियंठा! सेवमायाणियव्वं। | ||
Sutra Meaning : | भगवान गौतम कहते हैं कि मुझे निर्ग्रन्थों से पूछना है – आयुष्मन् निर्ग्रन्थों ! इस जगत में कईं मनुष्य ऐसे होते हैं; वे इस प्रकार वचनबद्ध होते हैं कि ‘ये जो मुण्डित हो कर, गृह त्याग कर अनगार धर्म में प्रव्रजित हैं, इनको आमरणान्त दण्ड देने का मैं त्याग करता हूँ; परन्तु जो ये लोग गृहवास करते हैं, उनको मरणपर्यन्त दण्ड देने का त्याग मैं नहीं करता। अब मैं पूछता हूँ कि प्रव्रजित श्रमणों में से कोई श्रमण चार, पाँच, छह या दस वर्ष तक थोड़े या बहुत – से देशों में विचरण करके क्या पुनः गृहवास कर सकते हैं ? निर्ग्रन्थ – हाँ, वे पुनः गृहस्थ बन सकते हैं। भगवान गौतम – श्रमणों के घात का त्याग करने वाले उस प्रत्याख्यानी व्यक्ति का प्रत्याख्यान क्या उस गृहस्थ बने हुए व्यक्ति का वध करने से भंग हो जाता है ? निर्ग्रन्थ – नहीं, यह बात सम्भव (शक्य) नहीं है। श्री गौतमस्वामी – इसी तरह श्रमणोपासक ने त्रस प्राणीयों को दण्ड देने (वध करने) का त्याग किया है, स्थावर प्राणियों को दण्ड देने का त्याग नहीं किया। इसलिए स्थावरकाय में वर्तमान (स्थावरकाय को प्राप्त भूतपूर्व त्रस) का वध करने से भी उसका प्रत्याख्यन भंग नहीं होता। निर्ग्रन्थों ! इसे इसी तरह समझो, इसे इसी तरह समझना चाहिए। भगवान श्री गौतमस्वामी ने आगे कहा कि निर्ग्रन्थों से पूछना चाहिए कि आयुष्मन् निर्ग्रन्थो ! इस लोक में गृहपति या गृहपतिपुत्र उस प्रकार के उत्तम कुलों में जन्म लेकर धर्मश्रवण के लिए साधुओं के पास आ सकते हैं ? निर्ग्रन्थ – हाँ, वे आ सकते हैं। श्री गौतमस्वामी – क्या उन उत्तमकुलोत्पन्न पुरुषों को धर्म का उपदेश करना चाहिए ? निर्ग्रन्थ – हाँ, उन्हें धर्मोपदेश किया जाना चाहिए। श्री गौतमस्वामी – क्या वे उस धर्म को सूनकर, उस पर विचार करके ऐसा कह सकते हैं कि यह निर्ग्रन्थ प्रवचन ही सत्य है, अनुत्तर है, केवलज्ञान को प्राप्त कराने वाला है, परिपूर्ण है, सम्यक् प्रकार से शुद्ध है, न्याययुक्त है, माया – निदान – मिथ्या – दर्शनरूप शल्य को काटने वाला है, सिद्धि का मार्ग है, मुक्तिमार्ग है, निर्याण मार्ग है, निर्वाण मार्ग है, अवितथ है, सन्देहरहित है, समस्त दुःखों को नष्ट करने का मार्ग है; इस धर्म में स्थित होकर अनेक जीव सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, परिनिर्वाण को प्राप्त होते हैं, तथा समस्त दुःखों का अन्त करते हैं। अतः हम धर्म की आज्ञा के अनुसार, इसके द्वारा विहित मार्गानुसार चलेंगे, स्थित होंगे, बैठेंगे, करवट बदलेंगे, भोजन करेंगे, तथा उठेंगे। उसके विधानानुसार घरबार आदि का त्याग कर संयमपालन के लिए अभ्युद्यत होंगे, तथा समस्त प्राणियों, भूतों, जीवों और सत्त्वों की रक्षा के लिए संयम धारण करेंगे। क्या वे इस प्रकार कह सकते हैं ? निर्ग्रन्थ – हाँ, वे ऐसा कह सकते हैं। श्री गौतमस्वामी – क्या इस प्रकार के विचार वाले वे पुरुष प्रव्रजित करने योग्य हैं ? निर्ग्रन्थ – हाँ, वे प्रव्रजित करने योग्य हैं। श्री गौतमस्वामी – क्या इस प्रकार के विचार वाले वे व्यक्ति मुण्डित करने योग्य हैं ? निर्ग्रन्थ – हाँ, वे मुण्डित किये जाने योग्य हैं। श्री गौतमस्वामी – क्या वे वैसे विचार वाले पुरुष शिक्षा देने योग्य हैं ? निर्ग्रन्थ – हाँ, वे शिक्षा देने योग्य हैं। श्री गौतमस्वामी – क्या वैसे विचार वाले साधक महाव्रतारोपण करने योग्य हैं ? निर्ग्रन्थ – हाँ, वे उपस्थापन योग्य हैं। श्री गौतमस्वामी – क्या प्रव्रजित होकर उन्होंने समस्त प्राणियों, तथा सर्वसत्त्वों को दण्ड देना छोड़ दिया ? निर्ग्रन्थ – हाँ, उन्होंने सर्व प्राणियों की हिंसा छोड़ दी। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] bhagavam cha nam udahu niyamtha khalu puchchhiyavva–ausamto! Niyamtha! Iha khalu samtegaiya manussa bhavamti. Tesim cha nam evam vuttapuvvam bhavai–je ime mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaitta, eesim nam amaranamtae damde nikkhitte. Je ime agaramavasamti, eesim nam amaranamtae damde no nikkhitte. ‘kei cha nam samane’ java vasaim chaupamchamaim chhaddasamaim appayaro va bhujjayaro va desam duijjitta ‘agaram vaejja’? Hamta vaejja. Tassa nam tamagarattham vahamanassa se pachchakkhane bhagge bhavai? Neti. Evameva samanovasagassa vi tasehim panehim damde nikkhitte, thavarehim panehim damde no nikkhitte. Tassa nam tam thavarakayam vahamanassa se pachchakkhane no bhagge bhavai. Sevamayanaha niyamtha! Sevamayaniyavvam. Bhagavam cha nam udahu niyamtha khalu puchchhiyavva–ausamto! Niyamtha! Iha khalu gahavaino va gahavaiputta va tahappagarehim kulehim agamma dhammassavanavattiyam uvasamkamejja? Hamta uvasamkamejja. Tesim cha nam tahappagaranam dhamme aikkhiyavve? Hamta aikkhiyavve. Kim te tahappagaram dhammam sochcha nisamma evam vaejja–inameva niggamtham pavayanam sachcham anuttaramkevaliyam padipunnam ‘neyauyam’ samsuddham sallakattanam siddhimaggam muttimaggam ‘nijjanamaggam nivvanamaggam’ avitaham asamdiddham savvadukkhappahinamaggam. Ettha thiya jiva sijjhamti bujjhamti muchchamti parinivvamti savvadukkhanamamtam karemti. Imanae taha gachchhamo taha chitthamo taha nisiyamo taha tuyattamo taha bhumjamo taha bhasamo taha abbhutthemo taha utthae utthetta pananam bhuyanam jivanam sattanam samjamenam samjamamo tti vaejja? Hamta vaejja. Kim te tahappagara kappamti pavvavettae? Hamta kappamti. Kim te tahappagara kappamti mumdavettae? Hamta kappamti. Kim te tahappagara kappamti sikkhavettae? Hamta kappamti. Kim te tahappagara kappamti uvatthavettae? Hamta kappamti. Tesim cha nam tahappagaranam savvapanehim savvabhuehim savvajivehim savvasattehim damde nikkhitte? Hamta nikkhitte. Te nam eyaruvenam viharenam viharamana java vasaim chaupamchamaim chhaddasamaim va appayaro va bhujjayaro va desam duijjitta agaram vaejja? Hamta vaejja. Tassa nam savvapanehim savvabhuehim savvajivehim savvasattehim damde nikkhitte? Neti. Se je se jivi jassa parenam savvapanehim savvabhuehim savvajivehim savvasattehim damde no nikkhitte. Se je se jive jassa arenam savvapanehim savvabhuehim savvajivehim savva sattehim damde nikkhitte. Se je se jive jassa iyanim savvapanehim savvabhuehim savvajivehim savva sattehim damde no nikkhitte bhavai. Parenam assamjae, arenam samjae, iyanim assamjae. Assamjayassa nam savvapanehim savvabhuehim savvajivehim savva sattehim damde no nikkhitte bhavai. Sevamayanaha niyamtha! Sevamayaniyavvam. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavana gautama kahate haim ki mujhe nirgranthom se puchhana hai – ayushman nirgranthom ! Isa jagata mem kaim manushya aise hote haim; ve isa prakara vachanabaddha hote haim ki ‘ye jo mundita ho kara, griha tyaga kara anagara dharma mem pravrajita haim, inako amarananta danda dene ka maim tyaga karata hum; parantu jo ye loga grihavasa karate haim, unako maranaparyanta danda dene ka tyaga maim nahim karata. Aba maim puchhata hum ki pravrajita shramanom mem se koi shramana chara, pamcha, chhaha ya dasa varsha taka thore ya bahuta – se deshom mem vicharana karake kya punah grihavasa kara sakate haim\? Nirgrantha – ham, ve punah grihastha bana sakate haim. Bhagavana gautama – shramanom ke ghata ka tyaga karane vale usa pratyakhyani vyakti ka pratyakhyana kya usa grihastha bane hue vyakti ka vadha karane se bhamga ho jata hai\? Nirgrantha – nahim, yaha bata sambhava (shakya) nahim hai. Shri gautamasvami – isi taraha shramanopasaka ne trasa praniyom ko danda dene (vadha karane) ka tyaga kiya hai, sthavara praniyom ko danda dene ka tyaga nahim kiya. Isalie sthavarakaya mem vartamana (sthavarakaya ko prapta bhutapurva trasa) ka vadha karane se bhi usaka pratyakhyana bhamga nahim hota. Nirgranthom ! Ise isi taraha samajho, ise isi taraha samajhana chahie. Bhagavana shri gautamasvami ne age kaha ki nirgranthom se puchhana chahie ki ayushman nirgrantho ! Isa loka mem grihapati ya grihapatiputra usa prakara ke uttama kulom mem janma lekara dharmashravana ke lie sadhuom ke pasa a sakate haim\? Nirgrantha – ham, ve a sakate haim. Shri gautamasvami – kya una uttamakulotpanna purushom ko dharma ka upadesha karana chahie\? Nirgrantha – ham, unhem dharmopadesha kiya jana chahie. Shri gautamasvami – kya ve usa dharma ko sunakara, usa para vichara karake aisa kaha sakate haim ki yaha nirgrantha pravachana hi satya hai, anuttara hai, kevalajnyana ko prapta karane vala hai, paripurna hai, samyak prakara se shuddha hai, nyayayukta hai, maya – nidana – mithya – darshanarupa shalya ko katane vala hai, siddhi ka marga hai, muktimarga hai, niryana marga hai, nirvana marga hai, avitatha hai, sandeharahita hai, samasta duhkhom ko nashta karane ka marga hai; isa dharma mem sthita hokara aneka jiva siddha hote haim, buddha hote haim, mukta hote haim, parinirvana ko prapta hote haim, tatha samasta duhkhom ka anta karate haim. Atah hama dharma ki ajnya ke anusara, isake dvara vihita marganusara chalemge, sthita homge, baithemge, karavata badalemge, bhojana karemge, tatha uthemge. Usake vidhananusara gharabara adi ka tyaga kara samyamapalana ke lie abhyudyata homge, tatha samasta praniyom, bhutom, jivom aura sattvom ki raksha ke lie samyama dharana karemge. Kya ve isa prakara kaha sakate haim\? Nirgrantha – ham, ve aisa kaha sakate haim. Shri gautamasvami – kya isa prakara ke vichara vale ve purusha pravrajita karane yogya haim\? Nirgrantha – ham, ve pravrajita karane yogya haim. Shri gautamasvami – kya isa prakara ke vichara vale ve vyakti mundita karane yogya haim\? Nirgrantha – ham, ve mundita kiye jane yogya haim. Shri gautamasvami – kya ve vaise vichara vale purusha shiksha dene yogya haim\? Nirgrantha – ham, ve shiksha dene yogya haim. Shri gautamasvami – kya vaise vichara vale sadhaka mahavrataropana karane yogya haim\? Nirgrantha – ham, ve upasthapana yogya haim. Shri gautamasvami – kya pravrajita hokara unhomne samasta praniyom, tatha sarvasattvom ko danda dena chhora diya\? Nirgrantha – ham, unhomne sarva praniyom ki himsa chhora di. |