Sutra Navigation: Sutrakrutang ( सूत्रकृतांग सूत्र )

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Sr No : 1001671
Scripture Name( English ): Sutrakrutang Translated Scripture Name : सूत्रकृतांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Section : Translated Section :
Sutra Number : 671 Category : Ang-02
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] अहावरे तच्चस्स ठाणस्स मीसगस्स विभंगे एवमाहिज्जइ–इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति, तं जहा–अप्पिच्छा अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुया धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्मप्पलोई धम्मपलज्जणा धम्मसमुदायारा धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, सुसीला सुव्वया सुप्पडियाणंदा सुसाहू, एगच्चाओ पाणाइवायाओ पडिविरया जाव-ज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ मुसावायाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ अदिण्णादाणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ मेहुणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ परिग्गहाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ कोहाओ माणाओ मायाओ लोहाओ पेज्जाओ दोसाओ कलहाओ अब्भक्खाणाओ पेसुण्णाओ परपरिवायाओ अरइरईओ मायामोसाओ मिच्छादंसण-सल्लाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ ण्हाणुम्मद्दण-वण्णग-विलेवण-सद्द-फरिस-रस-रूव-गंध-मल्लालंकाराओ पडि-विरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सिय-संदमा-णिया-सयणासण-जाण-वाहण-भोग-भोयण-पवित्थरविहीओ पडिविरया जावज्जी-वाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ कय-विक्कय-मासद्धमास-रूवग-संववहाराओ पडिविरया जावज्जीवाए, एग-च्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ हिरण्ण-सुवण्ण-धण-धण्ण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवालाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ कूडतुल-कूडमाणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ आरंभ-समारंभाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ करण-कारावणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ पयण-पयावणाओ पडिविरया जाव-ज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ कुट्टण-पिट्टण-तज्जण-ताडण-वह-बंध-परिकिलेसाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। जे यावण्णे तहप्पगारा सावज्जा अबोहिया कम्मंता परपाणपरितावणकरा कज्जंति, तओ वि ‘एगच्चाओ पडिविरया जावज्जीवाए’ एगच्चाओ अप्पडिविरया। से जहानामए समणोवासगा भवंति–अभिगयजीवाजीवा उवलद्धपुण्णपावा आसव-संवर-‘वेयण-णिज्जर-किरिय-अहिगरण’-बंधमोक्ख-कुसला असहेज्जा देवासुर-णाग-सुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किण्णर-किंपुरिस-गरुल-गंधव्व-महोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अपतिक्क-मणिज्जा, ‘इणमो णिग्गंथिए पावयणे’ णिस्संकिया णिक्कंखिया णिव्वितिगिच्छा लद्धट्ठा गहि-यट्ठा पुच्छियट्ठा विणिच्छियट्ठा अभिगयट्ठा अट्ठिमिंजपेम्माणुरागरत्ता ‘अयमाउसो! निग्गंथे पावयणे अट्ठं अयं परमट्ठं सेसे अणट्ठे’ ऊसियफलिहा अवंगुयदुवारा ‘चियत्तंतेउर-परघरदारप्पवेसा’ चाउद्दस-ट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अनुपालेमाणा समणे निग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पीढ-फलग-सेज्जासंथारएणं पडिलाभेमाणा बहूहिं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अहा-परिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। ते णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा बहूइं वासाइ समणोवासगपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता आबाहंसि उप्पण्णंसि वा अणुप्पण्णंसि वा बहूइं भत्ताइं पच्चक्खंति, पच्चक्खित्ता बहूइं भत्ताइं अणसणाए छेदेंति, छेदित्ता आलोइयपडिक्कंता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववतारो भवंति, तं जहा– महड्ढिएसु महज्जुइएसु महापरक्कमेसु महाजसेसु महब्बलेसु मुहाणुभावेसु महासोक्खेसु। ते णं तत्थ देवा भवंति–महड्ढिया महज्जुइया महापरक्कमा महाजसा महब्बला महाणुभावा महासोक्खा हार-विराइय-वच्छा-कडग-तुडिय-थंभिय-भुया अंगय-कुंडल-मट्ठगंडयल-कण्ण-पीढधारी विचित्तहत्थाभरणा विचित्तमाला-मउलि-मउडा कल्लाणग-पवरवत्थपरिहिया कल्लाणग-पवरमल्लाणुलेवणधरा भासुरबोंदी पलंबवणमालधरा दिव्वेणं रूवेणं दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संधाएणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढीए दिव्वाए जुत्तीए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा गइकल्लाणा ठिइकल्लाणा आगमेसिभद्दया यावि भवंति। एस ट्ठाणे आरिए केवले पडिपुण्णे नेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निव्वाणमग्गे णिज्जाणमग्गे सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे एगतसम्मे साहू। तच्चस्स ठाणस्स मीसगस्स विभंगे एवमाहिए। अविरइं पडुच्च बाले आहिज्जइ। विरइं पडुच्च पंडिए आहिज्जइ। विरयाविरइं पडुच्च बालपंडिए आहिज्जइ। तत्थ णं जा सा सव्वओ अविरई एसट्ठाणे आरंभट्ठाणे अणारिए अकेवले अप्पडिपुण्णे अनेयाउए असंसुद्धे असल्लगत्तणे असि-द्धिमग्गे अमुत्तिमग्गे अनिव्वाणमग्गे अणिज्जाणमग्गे असव्वदुक्खप्पहीणमग्गे एगंतमिच्छे असाहू। तत्थ णं जा सा विरइं एसट्ठाणे अणारंभट्ठाणे आरिए केवले पडिपुण्णे नेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे णिव्वा-णमग्गे णिज्जाणमग्गे सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे एगंतसम्मे साहू। तत्थ णं जा सा विरयाविरई एसट्ठाणे आरंभाणारंभट्ठाणे, एसट्ठाणे आरिए केवले पडिपुण्णे नेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धि-मग्गे मुत्तिमग्गे निव्वाणमग्गे णिज्जाणमग्गे सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे एगंतसम्मे साहू।
Sutra Meaning : इसके पश्चात्‌ तृतीय स्थान, जो मिश्रपक्ष है, उसका विभंग इस प्रकार है – इस मनुष्यलोक में पूर्व आदि दिशाओं में कईं मनुष्य होते हैं, जैसे कि – वे अल्प ईच्छा वाले, अल्पारम्भी और अल्पपरिग्रही होते हैं। वे धर्माचरण करते हैं, धर्म के अनुसार प्रवृत्ति करते हैं, यहाँ तक कि धर्मपूर्वक अपनी जीविका चलाते हुए जीवनयापन करते हैं। वे सुशील, सुव्रती, सुगमता से प्रसन्न हो जाने वाले और साधु होते हैं। एक ओर वे किसी प्राणातिपात से जीवनभर विरत होते हैं तथा दूसरी ओर किसी प्राणातिपात से निवृत्त नहीं होते, (इसी प्रकार मृषावाद, आदि से) निवृत्त और कथंचित्‌ अनिवृत्त होते हैं। ये और इसी प्रकार के अन्य बोधिनाशक एवं अन्य प्राणियों को परिताप देने वाले जो सावद्यकर्म हैं उनसे निवृत्त होते हैं, दूसरी ओर कतिपय कर्मों से वे निवृत्त नहीं होते। इस मिश्रस्थान के अधिकारी श्रमणोपासक होते हैं, जो जीव और अजीव के स्वरूप के ज्ञाता पुण्य – पाप के रहस्य को उपलब्ध किये हुए, तथा आश्रव, संवर, वेदना, निर्जरा, क्रिया, अधिकरण, बन्ध एवं मोक्ष के ज्ञान में कुशल होते हैं। वे श्रावक असहाय होने पर भी देव, असुर, नाग, सुपर्ण, यश, राक्षस, किन्नर, किम्पुरुष, गरुड़, गन्धर्व, महोरग आदि देवगणों और इन के द्वारा दबाव डाले जाने पर भी निर्ग्रन्थ प्रवचन का उल्लंघन नहीं करते। वे श्रावक इस निर्ग्रन्थ प्रवचन के प्रति निःशंकित, निष्कांक्षित एवं निर्विचिकित्स होते हैं। वे सूत्रार्थ के ज्ञाता, उसे समझे हुए और गुरु से पूछे हुए होते हैं, सूत्रार्थ का निश्चय किये हुए तथा भलीभाँति अधिगत किये होते हैं। उनकी हड्डियाँ और रगें उसके प्रति अनुराग से रंजित होती हैं। वे श्रावक कहते हैं – ‘यह निर्ग्रन्थ प्रवचन ही सार्थक है, परमार्थ है, शेष सब अनर्थक है।’ वे स्फटिक के समान स्वच्छ और निर्मल हृदय वाले होते हैं, उनके घर के द्वार भी खुले रहते हैं; उन्हें राजा के अन्तःपुर के समान दूसरे के घर में प्रवेश अप्रीतिकर लगता है, वे श्रावक चतुर्दशी, अष्टमी, पूर्णिमा आदि पर्वतिथियों में प्रतिपूर्ण पौषधोपवास का सम्यक्‌ प्रकार से पालन करते हुए तथा श्रमण निर्ग्रन्थों को प्रासुक एषणीय अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, वस्त्र, पात्र, कम्बल, पादप्रोंछन, औषध, भैषज्य, पीठ, फलक, शय्या – संस्तारक, तृण आदि भिक्षारूप में देकर बहुत लाभ लेते हुए, एवं यथाशक्ति यथारुचि स्वीकृत किये हुए बहुत से शीलव्रत, गुणव्रत, अणुव्रत, त्याग, प्रत्याख्यान, पौषध और उपवास आदि तपःकर्मों द्वारा अपनी आत्मा को भावित करते हुए जीवन व्यतीत करते हैं। वे इस प्रकार के आचरणपूर्वक जीवन यापन करते हुए बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक पर्याय पालन करते हैं। यों श्रावकव्रतों की आराधना करते हुए रोगादि कोई बाधा उत्पन्न होने पर या न होने पर भी बहुत लम्बे दिनों तक का भक्त – प्रत्याख्यान करते हैं। वे चिरकाल तक का भक्त प्रत्याख्यान करके उस अनशन – संथारे को पूर्ण करके करते हैं। उस अवमरण अनशन को सिद्ध करके अपने भूतकालीन पापों की आलोचना एवं प्रतिक्रमण करके समाधिप्राप्त होकर मृत्यु का अवसर आने पर मृत्यु प्राप्त करके किन्हीं देवलोकों में से किसी एक में देवरूप में उत्पन्न होते हैं। तदनुसार वे महाऋद्धि, महाद्युति, महाबल, महायश यावत्‌ महासुख वाले देवलोकों में महाऋद्धि आदि से सम्पन्न देव होते हैं। शेष बातें पूर्ववत्‌। यह स्थान आर्य, एकान्त सम्यक्‌ और उत्तम है। इस तृतीय स्थान का स्वामी अविरति की अपेक्षा से बाल, विरति की अपेक्षा से पण्डित और विरता – विरति की अपेक्षा से बाल – पण्डित कहलाता है। इन तीनों स्थानों में से समस्त पापों से अविरत होने का जो स्थान है, वह आरम्भस्थान है, अनार्य है, यावत्‌ समस्त दुःखों का नाश न करने वाला एकान्त मिथ्या और बूरा है। इनमें से जो दूसरा स्थान है, जिसमें व्यक्ति सब पापों से विरत होता है, वह अनारम्भ स्थान एवं आर्य है, यावत्‌ समस्त दुःखों का नाशक है, एकान्त सम्यक्‌ एवं उत्तम है। तथा इनमें से जो तीसरा स्थान है, जिसमें सब पापों से कुछ अंश में विरती और कुछ अंश में अविरती होती है, वह आरम्भ – नो आरम्भ स्थान है। यह स्थान भी आर्य है, यहाँ तक कि सर्व दुःखों का नाश करने वाला, एकान्त सम्यक्‌ एवं उत्तम है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] ahavare tachchassa thanassa misagassa vibhamge evamahijjai–iha khalu painam va padinam va udinam va dahinam va samtegaiya manussa bhavamti, tam jaha–appichchha apparambha appapariggaha dhammiya dhammanuya dhammittha dhammakkhai dhammappaloi dhammapalajjana dhammasamudayara dhammenam cheva vittim kappemana viharamti, susila suvvaya suppadiyanamda susahu, egachchao panaivayao padiviraya java-jjivae, egachchao appadiviraya. Egachchao musavayao padiviraya javajjivae, egachchao appadiviraya. Egachchao adinnadanao padiviraya javajjivae, egachchao appadiviraya. Egachchao mehunao padiviraya javajjivae, egachchao appadiviraya. Egachchao pariggahao padiviraya javajjivae, egachchao appadiviraya. Egachchao kohao manao mayao lohao pejjao dosao kalahao abbhakkhanao pesunnao paraparivayao arairaio mayamosao michchhadamsana-sallao padiviraya javajjivae, egachchao appadiviraya. Egachchao nhanummaddana-vannaga-vilevana-sadda-pharisa-rasa-ruva-gamdha-mallalamkarao padi-viraya javajjivae, egachchao appadiviraya. Egachchao sagada-raha-jana-jugga-gilli-thilli-siya-samdama-niya-sayanasana-jana-vahana-bhoga-bhoyana-pavittharavihio padiviraya javajji-vae, egachchao appadiviraya. Egachchao kaya-vikkaya-masaddhamasa-ruvaga-samvavaharao padiviraya javajjivae, ega-chchao appadiviraya. Egachchao hiranna-suvanna-dhana-dhanna-mani-mottiya-samkha-sila-ppavalao padiviraya javajjivae, egachchao appadiviraya. Egachchao kudatula-kudamanao padiviraya javajjivae, egachchao appadiviraya. Egachchao arambha-samarambhao padiviraya javajjivae, egachchao appadiviraya. Egachchao karana-karavanao padiviraya javajjivae, egachchao appadiviraya. Egachchao payana-payavanao padiviraya java-jjivae, egachchao appadiviraya. Egachchao kuttana-pittana-tajjana-tadana-vaha-bamdha-parikilesao padiviraya javajjivae, egachchao appadiviraya. Je yavanne tahappagara savajja abohiya kammamta parapanaparitavanakara kajjamti, tao vi ‘egachchao padiviraya javajjivae’ egachchao appadiviraya. Se jahanamae samanovasaga bhavamti–abhigayajivajiva uvaladdhapunnapava asava-samvara-‘veyana-nijjara-kiriya-ahigarana’-bamdhamokkha-kusala asahejja devasura-naga-suvanna-jakkha-rakkhasa-kinnara-kimpurisa-garula-gamdhavva-mahoragaiehim devaganehim niggamthao pavayanao apatikka-manijja, ‘inamo niggamthie pavayane’ nissamkiya nikkamkhiya nivvitigichchha laddhattha gahi-yattha puchchhiyattha vinichchhiyattha abhigayattha atthimimjapemmanuragaratta ‘ayamauso! Niggamthe pavayane attham ayam paramattham sese anatthe’ usiyaphaliha avamguyaduvara ‘chiyattamteura-paragharadarappavesa’ chauddasa-tthamudditthapunnamasinisu padipunnam posaham sammam anupalemana samane niggamthe phasuesanijjenam asana-pana-khaima-saimenam vattha-padiggaha-kambala-payapumchhanenam osaha-bhesajjenam pidha-phalaga-sejjasamtharaenam padilabhemana bahuhim silavvaya-guna-veramana-pachchakkhana-posahovavasehim aha-pariggahiehim tavokammehim appanam bhavemana viharamti. Te nam eyaruvenam viharenam viharamana bahuim vasai samanovasagapariyagam paunamti, paunitta abahamsi uppannamsi va anuppannamsi va bahuim bhattaim pachchakkhamti, pachchakkhitta bahuim bhattaim anasanae chhedemti, chheditta aloiyapadikkamta samahipatta kalamase kalam kichcha annayaresu devaloesu devattae uvavataro bhavamti, tam jaha– mahaddhiesu mahajjuiesu mahaparakkamesu mahajasesu mahabbalesu muhanubhavesu mahasokkhesu. Te nam tattha deva bhavamti–mahaddhiya mahajjuiya mahaparakkama mahajasa mahabbala mahanubhava mahasokkha hara-viraiya-vachchha-kadaga-tudiya-thambhiya-bhuya amgaya-kumdala-matthagamdayala-kanna-pidhadhari vichittahatthabharana vichittamala-mauli-mauda kallanaga-pavaravatthaparihiya kallanaga-pavaramallanulevanadhara bhasurabomdi palambavanamaladhara divvenam ruvenam divvenam vannenam divvenam gamdhenam divvenam phasenam divvenam samdhaenam divvenam samthanenam divvae iddhie divvae juttie divvae pabhae divvae chhayae divvae achchie divvenam teenam divvae lesae dasa disao ujjovemana pabhasemana gaikallana thiikallana agamesibhaddaya yavi bhavamti. Esa tthane arie kevale padipunne neyaue samsuddhe sallagattane siddhimagge muttimagge nivvanamagge nijjanamagge savvadukkhappahinamagge egatasamme sahu. Tachchassa thanassa misagassa vibhamge evamahie. Aviraim paduchcha bale ahijjai. Viraim paduchcha pamdie ahijjai. Virayaviraim paduchcha balapamdie ahijjai. Tattha nam ja sa savvao avirai esatthane arambhatthane anarie akevale appadipunne aneyaue asamsuddhe asallagattane asi-ddhimagge amuttimagge anivvanamagge anijjanamagge asavvadukkhappahinamagge egamtamichchhe asahu. Tattha nam ja sa viraim esatthane anarambhatthane arie kevale padipunne neyaue samsuddhe sallagattane siddhimagge muttimagge nivva-namagge nijjanamagge savvadukkhappahinamagge egamtasamme sahu. Tattha nam ja sa virayavirai esatthane arambhanarambhatthane, esatthane arie kevale padipunne neyaue samsuddhe sallagattane siddhi-magge muttimagge nivvanamagge nijjanamagge savvadukkhappahinamagge egamtasamme sahu.
Sutra Meaning Transliteration : Isake pashchat tritiya sthana, jo mishrapaksha hai, usaka vibhamga isa prakara hai – isa manushyaloka mem purva adi dishaom mem kaim manushya hote haim, jaise ki – ve alpa ichchha vale, alparambhi aura alpaparigrahi hote haim. Ve dharmacharana karate haim, dharma ke anusara pravritti karate haim, yaham taka ki dharmapurvaka apani jivika chalate hue jivanayapana karate haim. Ve sushila, suvrati, sugamata se prasanna ho jane vale aura sadhu hote haim. Eka ora ve kisi pranatipata se jivanabhara virata hote haim tatha dusari ora kisi pranatipata se nivritta nahim hote, (isi prakara mrishavada, adi se) nivritta aura kathamchit anivritta hote haim. Ye aura isi prakara ke anya bodhinashaka evam anya praniyom ko paritapa dene vale jo savadyakarma haim unase nivritta hote haim, dusari ora katipaya karmom se ve nivritta nahim hote. Isa mishrasthana ke adhikari shramanopasaka hote haim, jo jiva aura ajiva ke svarupa ke jnyata punya – papa ke rahasya ko upalabdha kiye hue, tatha ashrava, samvara, vedana, nirjara, kriya, adhikarana, bandha evam moksha ke jnyana mem kushala hote haim. Ve shravaka asahaya hone para bhi deva, asura, naga, suparna, yasha, rakshasa, kinnara, kimpurusha, garura, gandharva, mahoraga adi devaganom aura ina ke dvara dabava dale jane para bhi nirgrantha pravachana ka ullamghana nahim karate. Ve shravaka isa nirgrantha pravachana ke prati nihshamkita, nishkamkshita evam nirvichikitsa hote haim. Ve sutrartha ke jnyata, use samajhe hue aura guru se puchhe hue hote haim, sutrartha ka nishchaya kiye hue tatha bhalibhamti adhigata kiye hote haim. Unaki haddiyam aura ragem usake prati anuraga se ramjita hoti haim. Ve shravaka kahate haim – ‘yaha nirgrantha pravachana hi sarthaka hai, paramartha hai, shesha saba anarthaka hai.’ ve sphatika ke samana svachchha aura nirmala hridaya vale hote haim, unake ghara ke dvara bhi khule rahate haim; unhem raja ke antahpura ke samana dusare ke ghara mem pravesha apritikara lagata hai, ve shravaka chaturdashi, ashtami, purnima adi parvatithiyom mem pratipurna paushadhopavasa ka samyak prakara se palana karate hue tatha shramana nirgranthom ko prasuka eshaniya ashana, pana, khadya, svadya, vastra, patra, kambala, padapromchhana, aushadha, bhaishajya, pitha, phalaka, shayya – samstaraka, trina adi bhiksharupa mem dekara bahuta labha lete hue, evam yathashakti yatharuchi svikrita kiye hue bahuta se shilavrata, gunavrata, anuvrata, tyaga, pratyakhyana, paushadha aura upavasa adi tapahkarmom dvara apani atma ko bhavita karate hue jivana vyatita karate haim. Ve isa prakara ke acharanapurvaka jivana yapana karate hue bahuta varshom taka shramanopasaka paryaya palana karate haim. Yom shravakavratom ki aradhana karate hue rogadi koi badha utpanna hone para ya na hone para bhi bahuta lambe dinom taka ka bhakta – pratyakhyana karate haim. Ve chirakala taka ka bhakta pratyakhyana karake usa anashana – samthare ko purna karake karate haim. Usa avamarana anashana ko siddha karake apane bhutakalina papom ki alochana evam pratikramana karake samadhiprapta hokara mrityu ka avasara ane para mrityu prapta karake kinhim devalokom mem se kisi eka mem devarupa mem utpanna hote haim. Tadanusara ve mahariddhi, mahadyuti, mahabala, mahayasha yavat mahasukha vale devalokom mem mahariddhi adi se sampanna deva hote haim. Shesha batem purvavat. Yaha sthana arya, ekanta samyak aura uttama hai. Isa tritiya sthana ka svami avirati ki apeksha se bala, virati ki apeksha se pandita aura virata – virati ki apeksha se bala – pandita kahalata hai. Ina tinom sthanom mem se samasta papom se avirata hone ka jo sthana hai, vaha arambhasthana hai, anarya hai, yavat samasta duhkhom ka nasha na karane vala ekanta mithya aura bura hai. Inamem se jo dusara sthana hai, jisamem vyakti saba papom se virata hota hai, vaha anarambha sthana evam arya hai, yavat samasta duhkhom ka nashaka hai, ekanta samyak evam uttama hai. Tatha inamem se jo tisara sthana hai, jisamem saba papom se kuchha amsha mem virati aura kuchha amsha mem avirati hoti hai, vaha arambha – no arambha sthana hai. Yaha sthana bhi arya hai, yaham taka ki sarva duhkhom ka nasha karane vala, ekanta samyak evam uttama hai.