Sutra Navigation: Sutrakrutang ( सूत्रकृतांग सूत्र )

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Sr No : 1001667
Scripture Name( English ): Sutrakrutang Translated Scripture Name : सूत्रकृतांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Section : Translated Section :
Sutra Number : 667 Category : Ang-02
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] अहावरे पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिज्जइ–इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति– महिच्छा महारंभा महापरिग्गहा अधम्मिया ‘अधम्माणुया अधम्मिट्ठा’ अधम्मक्खाई अधम्मपायजीविणो अधम्मपलोइणो अधम्मपलज्जणा अधम्मसील-समुदाचारा अधम्मेन चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, ‘हण’ ‘छिंद’ ‘भिंद’ विगत्तगा लोहियपाणी चंडा रुद्दा खुद्दा साहस्सिया उक्कंचण-वंचण-माया-णियडि-कूड-कवड-साइ-संपओगबहुला दुस्सीला दुव्वया दुप्पडियाणंदा असाहू सव्वाओ पानाइवायाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ मुसावायाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ मेहुणाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ परिग्गहाओ अप्पडिविरया जावज्जी-वाए, सव्वाओ कोहाओ माणाओ मायाओ लोभाओ पेज्जाओ दोसाओ कलहाओ अब्भक्खाणाओ पेसुण्णाओ परपरिवायाओ अरइरईओ मायामोसाओ मिच्छादंसणसल्लाओ अप्पडिविरया जाव-ज्जीवाए, सव्वाओ ण्हाणुम्मद्दण-वण्णग-विलेवण-सद्द-फरिस-‘रस-रूव’-गंध-मल्लालंकाराओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सिय-संदमाणिया-सयणासण-जाण-वाहण-भोग-भोयण-पवित्थरविहीओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ कय-विक्कय-मासद्धमास-रूवग-संववहाराओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ ‘हिरण्ण-सुवण्ण-धण-धण्ण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवालाओ’ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ कूडतुल-कूडमाणाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ आरंभसमारंभाओ अप्पडिविरया जाव-ज्जीवाए, सव्वाओ करण-कारवणाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ पयण-पयावणाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ कुट्टण-पिट्टण-तज्जण-ताडण-वह-बंध-परिकिलेसाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए। जे यावण्णे तहप्पगारा सावज्जा अबोहिया कम्मंता परपाणपरियावणकरा कज्जंति [ततो वि अप्पडिविरया जावज्जीवाए।] से जहानामए केइ पुरिसे कलम-मसूर-तिल-मुग्ग-मास-णिप्फाव-कुलत्थ-आलिसंदग-पलिमंथग-मादिएहिं अयते कूरे मिच्छा-दंडं पउंजति, एवमेव तहप्पगारे पुरिसजाए तित्तिर-वट्टग- लावग-कवोय-कविंजल-मिय-महिस-वराह-गाह-गोह-कुम्म-सिरीसिवमा-दिएहिं अयते कूरे मिच्छादंडं पउंजति। जा वि य से बाहिरिया परिसा भवइ, तं जहा–दासे इ वा पेसे इ वा भयए इ वा भाइल्ले इ वा कम्मकरए इ वा भोगपुरिसे इ वा, तेसिं पि य णं अन्नयरंसि अहालहुगंसि अवराहंसि सयमेव ‘गरुयं दंडं’ णिव्वत्तेइ, तं जहा–इमं दंडेह, इमं मुंडेह, इमं तज्जेह इमं तालेह, इमं अंदुयबंधणं करेह, इमं णियलबंधणं करेह, इमं हडिबंधणं करेह, इमं चारगबंधणं करेह, इमं णियल-जुयल-संकोडिय-मोडियं करेह, इमं हत्थच्छिण्णयं करेह, इमं पायच्छिण्णयं करेह, इमं कण्णच्छिण्णयं करेह, इमं णक्कच्छिण्णयं ‘करेह, इमं’ ओट्ठच्छिण्णयं करेह, इमं सीसच्छिण्णयं करेह, इमं मुहच्छिण्णयं करेह, ‘इमं वेयवहितं करेह, इमं अंगवहितं करेह’, इमं फोडियपयं करेह, इमं णयणुप्पाडियं करेह, इमं दसणुप्पाडियं करेह, इमं वसणुप्पाडियं करेह, इमं जिब्भुप्पाडियं करेह, इमं ओलं-बियं करेह, इमं धसियं करेह, इमं धोलियं करेह, इमं सूलाइयं करेह, इमं सूलाभिण्णयं करेह, इमं खारपत्तियं करेह, इमं वज्झप-त्तियं करेह, इमं सीहपुच्छियगं करेह, इमं वसहपुच्छियगं करेह, इमं कडग्गिदड्ढयं करेह, इमं कागणिमंसखावियगं करेह, इमं भत्त-पाणणिरुद्धगं करेह, इमं जावज्जीव वहबंधणं करेह, इमं अन्नतरेणं असुभेणं कु-मारेणं मारेह। जा वि य से अब्भंतरिया परिसा भवइ, तं जहा–माया इ वा पिया इ वा भाया इ वा भगिणी इ वा भज्जा इ वा पुत्ता इ वा धूया इ वा सुण्हा इ वा, तेसिं पि य णं अन्नयरंसि अहालहुगंसि अवराहंसि सयमेव गरुयं दंडं णिव्वत्तेति, तं जहा–सीओदगविय-डंसि उब्बोलेत्ता भवइ, उसिणोदगवियडेन वा कायं ओसिंचित्ता भवइ, अगनिकायेणं कायं उद्दहित्ता भवइ, जोत्तेन वा वेत्तेन वा णेत्तेन वा तया वा कसेन वा छियाए वा लयाए वा अन्नयरेन वा दवरएन पासाइं उद्दालित्ता भवति, दंडेन वा अट्ठीन वा मुट्ठीन वा लेलुणा वा कवालेन वा कायं आउट्टित्ता भवति, तहप्पगारे पुरिसजाते संवसमाणे भवंति, पवसमाणे सुमणा भवंति, तहप्पगारे पुरिसजाते दंडपासी, दंडगरुए, दंडपुरक्खडे, अहिते इमंसि लोगंसि, अहिते परंसि लोगंसि। ते दुक्खंति सोयंति जूरंति तिप्पंति पिट्टंति परितप्पंति। ते दुक्खण-सोयण-जूरण-तिप्पण-पिट्टण-परितप्पण-वह-बंधण-परिकि-लेसाओ अप्पडिविरया भवंति। एवामेव ते इत्थिकामेहिं मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोववण्णा जाव वासाइं चउपंचमाइं छद्दसमाइं वा अप्पयरो वा भुज्जयरो वा कालं भुंजित्तु भोगभोगाइं पसवित्तु वेरायतणाइं, संचिणित्ता बहूइं कूराइं कम्माइं उस्सण्णाइ संभारकडेन कम्मुणा– से जहानामए अयगोले इ वा सेलगोले इ वा उदगंसि पक्खित्ते समाणे उदगतलमइवइत्ता अहे धरणितलपइट्ठाणे भवति, एवामेव तहप्पगारे पुरिसजाते वज्जबहुले ‘धूयबहुले पंकबहुले’ वेरबहुले अप्पत्तियबहुले दंभबहुले णियडिबहुले साइबहुले अयस-बहुले उस्सण्णतसपाणघाती कालमासे कालं किच्चा धरणितलमइवइत्ता अहे नरगतलपइट्ठाणे भवति।
Sutra Meaning : इसके पश्चात्‌ प्रथम स्थान जो अधर्मपक्ष है, उसका विश्लेषणपूर्वक विचार किया जाता है – इस मनुष्यलोक में पूर्व आदि दिशाओं में कईं मनुष्य ऐसे होते हैं, जो गृहस्थ होते हैं, जिनकी बड़ी – बड़ी इच्छाएं होती हैं, जो महारम्भी एवं महापरिग्रही होते हैं। वे अधार्मिक, अधर्म का अनुसरण करने या अधर्म की अनुज्ञा देने वाले, अधर्मिष्ठ, अधर्म की चर्चा करने वाले, अधर्मप्रायः जीवन जीने वाले, अधर्म को ही देखने वाले, अधर्म – कार्यों में ही अनुरक्त, अधर्ममय शील (स्वभाव) और आचार वाले एवं अधर्म युक्त धंधों से अपनी जीविका उपार्जन करते हुए जीवन यापन करते हैं। इन (प्राणियों) को मारो, अंग काट डालो, टुकड़े – टुकड़े कर दो। वे प्राणियों की चमड़ी उधेड़ देते हैं, प्राणियों के खून से उनके हाथ रंगे रहते हैं, वे अत्यन्त चण्ड, रौद्र और क्षुद्र होते हैं, वे पाप कृत्य करने में अत्यन्त साहसी होते हैं, वे प्रायः प्राणियों को ऊपर उछालकर शूल पर चढ़ाते हैं, दूसरों को धोखा देते हैं, माया करते हैं, बकवृत्ति से दूसरों को ठगते हैं, दम्भ करते हैं, वे तौल – नाप में कम देते हैं, वे धोखा देने के लिए देश, वेष और भाषा बदल लेते हैं। वे दुःशील, दुष्ट – व्रती और कठिनता से प्रसन्न किये जा सकने वाले एवं दुर्जन होते हैं। जो आजीवन सब प्रकार की हिंसाओं से विरत नहीं होते यहाँ तक कि समस्त असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्य और परिग्रह से जीवनभर निवृत्त नहीं होते। जो क्रोध से लेकर मिथ्यादर्शन शल्य तक अठारह ही पापस्थानों से जीवनभर निवृत्त नहीं होते। वे आजीवन समस्त स्नान, तैलमर्दन, सुगन्धित पदार्थों का लगाना, सुगन्धित चन्दनादि का चूर्ण लगाना, विलेपन करना, मनोहर कर्ण शब्द, मनोज्ञ रूप, रस, गन्ध और स्पर्श का उपभोग करना, पुष्पमाला एवं अलंकार धारण करना, इत्यादि सब का त्याग नहीं करते, जो समस्त गाड़ी, रथ, यान, सवारी, डोली, आकाश की तरह अधर रखी जाने वाली सवारी आदि वाहनों तथा शय्या, आसन, वाहन, भोग और भोजन आदि को विस्तृत करने की विधि को जीवनभर नहीं छोड़ते, जो सब प्रकार के क्रय – विक्रय तथा माशा, आधा माशा और तोला आदि व्यवहारों से जीवनभर निवृत्त नहीं होते, जो सोना, चाँदी, धन, धान्य, मणि, मोती, शंख, शिला, प्रवाल आदि सब प्रकार के संग्रह से जीवनभर निवृत्त नहीं होते, जो सब प्रकार के खोटे – तौले – नाप को आजीवन नहीं छोड़ते, जो सब प्रकार के आरम्भ – समारम्भों का जीवनभर त्याग नहीं करते। वे सभी प्रकार के दुष्कृत्यों को करने – कराने से जीवनभर निवृत्त नहीं होते, जो सभी प्रकार की पचन – पाचन आदि क्रियाओं से आजीवन निवृत्त नहीं होते, तथा जो जीवनभर प्राणियों को कूटने, पीटने, धमकाने, प्रहार करने, वध करने और बाँधने तथा उन्हें सब प्रकार से क्लेश देने से निवृत्त नहीं होते, ये तथा अन्य प्रकार के सावद्य कर्म हैं, जो बोधिबीजनाशक हैं तथा दूसरे प्राणियों को संताप देने वाले हैं, जिन्हें क्रूर कर्म करने वाले अनार्य करते हैं, उन से जो जीवनभर निवृत्त नहीं होते। जैसे कि कोई अत्यन्त क्रूर पुरुष चावल, मसूर, तिल, मूँग, उड़द, निप्पाव कुलत्थी, चंवला, परिमंथक आदि अकारण व्यर्थ ही दण्ड देते हैं। इसी प्रकार तथाकथित अत्यन्त क्रूर पुरुष तीतर, बटेर, लावक, कबूतर, कपिंजल, मृग, भैंसे, सूअर, ग्राह, गोह, कछुआ, सरीसृप आदि प्राणियों को अपराध के बिना व्यर्थ ही दण्ड देते हैं। उनकी जो बाह्य परीषद्‌ होती है, जैसे दास, या संदेशवाहक अथवा दूत, वेतन या दैनिक वेतन पर रखा गया नौकर, बटाई पर काम करने वाला अन्य कामकाज करने वाला एवं भोग की सामग्री देने वाला, इत्यादि। इन लोगों में से किसी का जरा – सा भी अपराध हो जाने पर ये स्वयं उसे भारी दण्ड देते हैं। जैसे कि – इस पुरुष को दण्ड दो या डंडे से पीटो, इसका सिर मूंड दो, इसे डांटो, पीटो, इसकी बाँहें पीछे को बाँध दो, इसके हाथ – पैरों में हथकड़ी और बेड़ी डाल दो, उसे हाडीबन्धन में दे दो, इसे कारागार में बंद कर दो, इसके अंगों को सिकोड़कर मरोड़ दो, इसके हाथ, पैर, कान, सिर और मुँह, नाक – ओठ काट डालो, इसके कंधे पर मारकर आरे से चीर डालो, इसके कलेजे का माँस नीकाल लो, इसकी आँखें नीकाल लो, इसके दाँत उखाड़ दो, इसके अण्डकोश उखाड़ दो, इसकी जीभ खींच लो, इसे उलटा लटका दो, इसे ऊपर या कूएं में लटका दो, इसे जमीन पर घसीटो, इसे डूबो दो, इसे शूली में पिरो दो, इसके शूल चुभो दो, इसके टुकड़े – टुकड़े कर दो, इसके अंगों को घायल करके उस पर नमक छिड़क दो, इसे मृत्युदण्ड दे दो, इसे सिंह की पूँछ में बाँध दो या उसे बैल की पूँछ के साथ बाँध दो, इसे दावाग्नि में झौंककर जला दो, इसका माँस काट कर कौओं को खिला दो, इसको भोजन – पानी देना बंद कर दो, इसे मार – पीसट कर जीवनभर कैद में रखो, इसे इनमें से किसी भी प्रकार से बूरी मौत मारो। इन क्रूर पुरुषों की जो आभ्यन्तर परीषद होती है, जैसे कि – माता, पिता, भाई, बहन, पत्नी, पुत्र, पुत्री अथवा पुत्रवधू आदि। इनमें से किसी का जरा – सा भी अपराध होने पर वे क्रूर पुरुष उसे भारी दण्ड देते हैं। वे उसे शर्दी के दिनों में ठंडे पानी में डाल देते हैं। जो – जो दण्ड मित्रद्वेषप्रत्ययिक क्रियास्थान में कहे गए हैं, वे सभी दण्ड वे इन्हें देते हैं। वे ऐसा करके स्वयं अपने परलोक का अहित करते हैं। वे अन्त में दुःख पाते हैं, शोक करते हैं, पश्चात्ताप करते हैं, पीड़ित होते हैं, संताप पाते हैं, वे दुःख, शोक, विलाप, पीड़ा, संताप एवं वध – बंध आदि क्लेशों से निवृत्त नहीं हो पाते। इसी प्रकार वे अधार्मिक पुरुष स्त्रीसम्बन्धी तथा अन्य विषयभोगों में मूर्च्छित, गृद्ध, अत्यन्त आसक्त तथा तल्लीन होकर पूर्वोक्त प्रकार से चार, पाँच या छह या अधिक से अधिक दस वर्ष तक अथवा अल्प या अधिक समय तक शब्दादि विषयभोगों का उपभोग करके प्राणियों के साथ वैर का पुँज बांध करके, बहुत – से क्रूरकर्मों का संचय करके पापकर्म के भार से इस तरह दब जाते हैं, जैसे कोई लोह का गोला या पथ्थर का गोला पानी में डालने पर पानी के तल का अतिक्रमण करके भार के कारण पृथ्वीतल पर बैठ जाता है, इसी प्रकार अतिक्रूर पुरुष अत्यधिक पाप से युक्त पुर्वकृत कर्मों से अत्यन्त भारी, कर्मपंक से अति मलिन, अनेक प्राणियों के साथ बैर बाँधा हुआ, अत्यधिक अविश्वासयोग्य, दम्भ से पूर्ण, शठता या वंचना में पूर्ण, देश, वेष एवं भाषा को बदलकर धूर्तता करनेमें अतिनिपुण, जगतमें अपयश के काम करनेवाला, तथा त्रसप्राणियों के घातक; भोगों के दलदल में फँसा वह पुरुष आयुष्य पूर्ण होते ही मरकर रत्नप्रभादि भूमियोंको लाँघकर नीचे के नरकतलमें जाकर स्थित होता है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] ahavare padhamassa thanassa adhammapakkhassa vibhamge evamahijjai–iha khalu painam va padinam va udinam va dahinam va samtegaiya manussa bhavamti– mahichchha maharambha mahapariggaha adhammiya ‘adhammanuya adhammittha’ adhammakkhai adhammapayajivino adhammapaloino adhammapalajjana adhammasila-samudachara adhammena cheva vittim kappemana viharamti, ‘hana’ ‘chhimda’ ‘bhimda’ vigattaga lohiyapani chamda rudda khudda sahassiya ukkamchana-vamchana-maya-niyadi-kuda-kavada-sai-sampaogabahula dussila duvvaya duppadiyanamda asahu savvao panaivayao appadiviraya javajjivae, savvao musavayao appadiviraya javajjivae, savvao adinnadanao appadiviraya javajjivae, savvao mehunao appadiviraya javajjivae, savvao pariggahao appadiviraya javajji-vae, savvao kohao manao mayao lobhao pejjao dosao kalahao abbhakkhanao pesunnao paraparivayao arairaio mayamosao michchhadamsanasallao appadiviraya java-jjivae, savvao nhanummaddana-vannaga-vilevana-sadda-pharisa-‘rasa-ruva’-gamdha-mallalamkarao appadiviraya javajjivae, savvao sagada-raha-jana-jugga-gilli-thilli-siya-samdamaniya-sayanasana-jana-vahana-bhoga-bhoyana-pavittharavihio appadiviraya javajjivae, savvao kaya-vikkaya-masaddhamasa-ruvaga-samvavaharao appadiviraya javajjivae, savvao ‘hiranna-suvanna-dhana-dhanna-mani-mottiya-samkha-sila-ppavalao’ appadiviraya javajjivae, savvao kudatula-kudamanao appadiviraya javajjivae, savvao arambhasamarambhao appadiviraya java-jjivae, savvao karana-karavanao appadiviraya javajjivae, savvao payana-payavanao appadiviraya javajjivae, savvao kuttana-pittana-tajjana-tadana-vaha-bamdha-parikilesao appadiviraya javajjivae. Je yavanne tahappagara savajja abohiya kammamta parapanapariyavanakara kajjamti [tato vi appadiviraya javajjivae.] Se jahanamae kei purise kalama-masura-tila-mugga-masa-nipphava-kulattha-alisamdaga-palimamthaga-madiehim ayate kure michchha-damdam paumjati, evameva tahappagare purisajae tittira-vattaga- lavaga-kavoya-kavimjala-miya-mahisa-varaha-gaha-goha-kumma-sirisivama-diehim ayate kure michchhadamdam paumjati. Ja vi ya se bahiriya parisa bhavai, tam jaha–dase i va pese i va bhayae i va bhaille i va kammakarae i va bhogapurise i va, tesim pi ya nam annayaramsi ahalahugamsi avarahamsi sayameva ‘garuyam damdam’ nivvattei, tam jaha–imam damdeha, imam mumdeha, imam tajjeha imam taleha, imam amduyabamdhanam kareha, imam niyalabamdhanam kareha, imam hadibamdhanam kareha, imam charagabamdhanam kareha, imam niyala-juyala-samkodiya-modiyam kareha, imam hatthachchhinnayam kareha, imam payachchhinnayam kareha, imam kannachchhinnayam kareha, imam nakkachchhinnayam ‘kareha, imam’ otthachchhinnayam kareha, imam sisachchhinnayam kareha, imam muhachchhinnayam kareha, ‘imam veyavahitam kareha, imam amgavahitam kareha’, imam phodiyapayam kareha, imam nayanuppadiyam kareha, imam dasanuppadiyam kareha, imam vasanuppadiyam kareha, imam jibbhuppadiyam kareha, imam olam-biyam kareha, imam dhasiyam kareha, imam dholiyam kareha, imam sulaiyam kareha, imam sulabhinnayam kareha, imam kharapattiyam kareha, imam vajjhapa-ttiyam kareha, imam sihapuchchhiyagam kareha, imam vasahapuchchhiyagam kareha, imam kadaggidaddhayam kareha, imam kaganimamsakhaviyagam kareha, imam bhatta-pananiruddhagam kareha, imam javajjiva vahabamdhanam kareha, imam annatarenam asubhenam ku-marenam mareha. Ja vi ya se abbhamtariya parisa bhavai, tam jaha–maya i va piya i va bhaya i va bhagini i va bhajja i va putta i va dhuya i va sunha i va, tesim pi ya nam annayaramsi ahalahugamsi avarahamsi sayameva garuyam damdam nivvatteti, tam jaha–siodagaviya-damsi ubboletta bhavai, usinodagaviyadena va kayam osimchitta bhavai, aganikayenam kayam uddahitta bhavai, jottena va vettena va nettena va taya va kasena va chhiyae va layae va annayarena va davaraena pasaim uddalitta bhavati, damdena va atthina va mutthina va leluna va kavalena va kayam auttitta bhavati, Tahappagare purisajate samvasamane bhavamti, pavasamane sumana bhavamti, tahappagare purisajate damdapasi, damdagarue, damdapurakkhade, ahite imamsi logamsi, ahite paramsi logamsi. Te dukkhamti soyamti juramti tippamti pittamti paritappamti. Te dukkhana-soyana-jurana-tippana-pittana-paritappana-vaha-bamdhana-pariki-lesao appadiviraya bhavamti. Evameva te itthikamehim muchchhiya giddha gadhiya ajjhovavanna java vasaim chaupamchamaim chhaddasamaim va appayaro va bhujjayaro va kalam bhumjittu bhogabhogaim pasavittu verayatanaim, samchinitta bahuim kuraim kammaim ussannai sambharakadena kammuna– Se jahanamae ayagole i va selagole i va udagamsi pakkhitte samane udagatalamaivaitta ahe dharanitalapaitthane bhavati, evameva tahappagare purisajate vajjabahule ‘dhuyabahule pamkabahule’ verabahule appattiyabahule dambhabahule niyadibahule saibahule ayasa-bahule ussannatasapanaghati kalamase kalam kichcha dharanitalamaivaitta ahe naragatalapaitthane bhavati.
Sutra Meaning Transliteration : Isake pashchat prathama sthana jo adharmapaksha hai, usaka vishleshanapurvaka vichara kiya jata hai – isa manushyaloka mem purva adi dishaom mem kaim manushya aise hote haim, jo grihastha hote haim, jinaki bari – bari ichchhaem hoti haim, jo maharambhi evam mahaparigrahi hote haim. Ve adharmika, adharma ka anusarana karane ya adharma ki anujnya dene vale, adharmishtha, adharma ki charcha karane vale, adharmaprayah jivana jine vale, adharma ko hi dekhane vale, adharma – karyom mem hi anurakta, adharmamaya shila (svabhava) aura achara vale evam adharma yukta dhamdhom se apani jivika uparjana karate hue jivana yapana karate haim. Ina (praniyom) ko maro, amga kata dalo, tukare – tukare kara do. Ve praniyom ki chamari udhera dete haim, praniyom ke khuna se unake hatha ramge rahate haim, ve atyanta chanda, raudra aura kshudra hote haim, ve papa kritya karane mem atyanta sahasi hote haim, ve prayah praniyom ko upara uchhalakara shula para charhate haim, dusarom ko dhokha dete haim, maya karate haim, bakavritti se dusarom ko thagate haim, dambha karate haim, ve taula – napa mem kama dete haim, ve dhokha dene ke lie desha, vesha aura bhasha badala lete haim. Ve duhshila, dushta – vrati aura kathinata se prasanna kiye ja sakane vale evam durjana hote haim. Jo ajivana saba prakara ki himsaom se virata nahim hote yaham taka ki samasta asatya, chori, abrahmacharya aura parigraha se jivanabhara nivritta nahim hote. Jo krodha se lekara mithyadarshana shalya taka atharaha hi papasthanom se jivanabhara nivritta nahim hote. Ve ajivana samasta snana, tailamardana, sugandhita padarthom ka lagana, sugandhita chandanadi ka churna lagana, vilepana karana, manohara karna shabda, manojnya rupa, rasa, gandha aura sparsha ka upabhoga karana, pushpamala evam alamkara dharana karana, ityadi saba ka tyaga nahim karate, jo samasta gari, ratha, yana, savari, doli, akasha ki taraha adhara rakhi jane vali savari adi vahanom tatha shayya, asana, vahana, bhoga aura bhojana adi ko vistrita karane ki vidhi ko jivanabhara nahim chhorate, jo saba prakara ke kraya – vikraya tatha masha, adha masha aura tola adi vyavaharom se jivanabhara nivritta nahim hote, jo sona, chamdi, dhana, dhanya, mani, moti, shamkha, shila, pravala adi saba prakara ke samgraha se jivanabhara nivritta nahim hote, jo saba prakara ke khote – taule – napa ko ajivana nahim chhorate, jo saba prakara ke arambha – samarambhom ka jivanabhara tyaga nahim karate. Ve sabhi prakara ke dushkrityom ko karane – karane se jivanabhara nivritta nahim hote, jo sabhi prakara ki pachana – pachana adi kriyaom se ajivana nivritta nahim hote, tatha jo jivanabhara praniyom ko kutane, pitane, dhamakane, prahara karane, vadha karane aura bamdhane tatha unhem saba prakara se klesha dene se nivritta nahim hote, ye tatha anya prakara ke savadya karma haim, jo bodhibijanashaka haim tatha dusare praniyom ko samtapa dene vale haim, jinhem krura karma karane vale anarya karate haim, una se jo jivanabhara nivritta nahim hote. Jaise ki koi atyanta krura purusha chavala, masura, tila, mumga, urada, nippava kulatthi, chamvala, parimamthaka adi akarana vyartha hi danda dete haim. Isi prakara tathakathita atyanta krura purusha titara, batera, lavaka, kabutara, kapimjala, mriga, bhaimse, suara, graha, goha, kachhua, sarisripa adi praniyom ko aparadha ke bina vyartha hi danda dete haim. Unaki jo bahya parishad hoti hai, jaise dasa, ya samdeshavahaka athava duta, vetana ya dainika vetana para rakha gaya naukara, batai para kama karane vala anya kamakaja karane vala evam bhoga ki samagri dene vala, ityadi. Ina logom mem se kisi ka jara – sa bhi aparadha ho jane para ye svayam use bhari danda dete haim. Jaise ki – isa purusha ko danda do ya damde se pito, isaka sira mumda do, ise damto, pito, isaki bamhem pichhe ko bamdha do, isake hatha – pairom mem hathakari aura beri dala do, use hadibandhana mem de do, ise karagara mem bamda kara do, isake amgom ko sikorakara marora do, isake hatha, paira, kana, sira aura mumha, naka – otha kata dalo, isake kamdhe para marakara are se chira dalo, isake kaleje ka mamsa nikala lo, isaki amkhem nikala lo, isake damta ukhara do, isake andakosha ukhara do, isaki jibha khimcha lo, ise ulata lataka do, ise upara ya kuem mem lataka do, ise jamina para ghasito, ise dubo do, ise shuli mem piro do, isake shula chubho do, isake tukare – tukare kara do, isake amgom ko ghayala karake usa para namaka chhiraka do, ise mrityudanda de do, ise simha ki pumchha mem bamdha do ya use baila ki pumchha ke satha bamdha do, ise davagni mem jhaumkakara jala do, isaka mamsa kata kara kauom ko khila do, isako bhojana – pani dena bamda kara do, ise mara – pisata kara jivanabhara kaida mem rakho, ise inamem se kisi bhi prakara se buri mauta maro. Ina krura purushom ki jo abhyantara parishada hoti hai, jaise ki – mata, pita, bhai, bahana, patni, putra, putri athava putravadhu adi. Inamem se kisi ka jara – sa bhi aparadha hone para ve krura purusha use bhari danda dete haim. Ve use shardi ke dinom mem thamde pani mem dala dete haim. Jo – jo danda mitradveshapratyayika kriyasthana mem kahe gae haim, ve sabhi danda ve inhem dete haim. Ve aisa karake svayam apane paraloka ka ahita karate haim. Ve anta mem duhkha pate haim, shoka karate haim, pashchattapa karate haim, pirita hote haim, samtapa pate haim, ve duhkha, shoka, vilapa, pira, samtapa evam vadha – bamdha adi kleshom se nivritta nahim ho pate. Isi prakara ve adharmika purusha strisambandhi tatha anya vishayabhogom mem murchchhita, griddha, atyanta asakta tatha tallina hokara purvokta prakara se chara, pamcha ya chhaha ya adhika se adhika dasa varsha taka athava alpa ya adhika samaya taka shabdadi vishayabhogom ka upabhoga karake praniyom ke satha vaira ka pumja bamdha karake, bahuta – se krurakarmom ka samchaya karake papakarma ke bhara se isa taraha daba jate haim, jaise koi loha ka gola ya paththara ka gola pani mem dalane para pani ke tala ka atikramana karake bhara ke karana prithvitala para baitha jata hai, isi prakara atikrura purusha atyadhika papa se yukta purvakrita karmom se atyanta bhari, karmapamka se ati malina, aneka praniyom ke satha baira bamdha hua, atyadhika avishvasayogya, dambha se purna, shathata ya vamchana mem purna, desha, vesha evam bhasha ko badalakara dhurtata karanemem atinipuna, jagatamem apayasha ke kama karanevala, tatha trasapraniyom ke ghataka; bhogom ke daladala mem phamsa vaha purusha ayushya purna hote hi marakara ratnaprabhadi bhumiyomko lamghakara niche ke narakatalamem jakara sthita hota hai.