Sutra Navigation: Sutrakrutang ( सूत्रकृतांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1001664 | ||
Scripture Name( English ): | Sutrakrutang | Translated Scripture Name : | सूत्रकृतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-२ क्रियास्थान |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-२ क्रियास्थान |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 664 | Category : | Ang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से एगइओ परिसामज्झाओ उट्ठेत्ता अहमेयं हणामि त्ति कट्टु तित्तिरं वा वट्टगं वा [चडगं वा?] लावगं वा कवोयगं वा [कविं वा?] कविंजलं वा अन्नयरं वा तसं पाणं हंता छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुंपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ–इति से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति। से एगइओ केणइ आदाणेणं विरुद्धे समाणे, अदुवा खलदाणेणं, अदुवा सुराथालएणं गाहावईण वा गाहावइपुत्तान वा सयमेव अगनिकाएणं सस्साइं ज्झामेइ, अन्नेन वि अगनिकाएणं सस्साइं ज्झामावेइ, अगनिकाएणं सस्साइं ज्झामेंतं पि अन्नं समणुजाणइ–इति से महया पावकम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति। से एगइओ केणइ आदाणेणं विरुद्धे समाणे, अदुवा खलदाणेणं, अदुवा सुराथालएणं गाहावईन वा गाहावइपुत्तान वा उट्टान वा गोणान वा घोडगान वा गद्दभान वा सयमेव घूराओ कप्पेइ, अन्नेन वि कप्पावेइ, कप्पंतं वि अन्नं समणुजाणइ–इति से महया पावकम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति। से एगइओ केणइ आदाणेणं विरुद्धे समाणे, अदुवा खलदाणेणं, अदुवा सुराथालएणं गाहावईन वा गाहावइपुत्तान वा उट्टसालाओ वा गोणसालाओ वा घोडगसालाओ वा गद्दभसालाओ वा कंटकबोंदियाए पडिपेहित्ता सयमेव अगनिकाएणं ज्झा-मेइ, अन्नेन वि ज्झामावेइ, ज्झामंतं पि अन्नं समणुजाणइ–इति से महया पावकम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति। से एगइओ केणइ आदाणेणं विरुद्धे समाणे, अदुवा खलदाणेणं, अदुवा सुराथालएणं गाहावईन वा गाहावइपुत्तान वा कुंडलं वा मणिं वा मोत्तियं वा सयमेव अवहरइ, अन्नेन वि अवहरावेइ, अवहरंतं पि अन्नं समणुजाणइ–इति से महया पाव-कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति। से एगइओ केणइ वि आदाणेणं विरुद्धे समाणे, समणाणं वा माहनाणं वा ‘दंडगं वा छत्तगं वा’ भंडगं वा मत्तगं वा लट्ठिगं वा भिसिगं वा चेलगं वा चिलिमिलिगं वा ‘चम्मगं वा चम्मछेयणगं’ वा चम्मकोसियं वा सयमेव अवहरइ, अन्नेन वि अवहरावेइ, अवहरंतं पि अन्नं समणुजाणइ–इति से महया पावकम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति। से एगइओ नो वितिगिंछइ–गाहावईन वा गाहावइपुत्तान वा सयमेव अगनिकाएणं ओसहीओ ज्झामेइ, अन्नेन वि अगनिकाएणं ओसहीओ ज्झामावेइ, अगनिकाएणं ओसहीओ ज्झामेंतं पि अन्नं समणुजाणइ–इति से महया पावकम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति। से एगइओ नो वितिगिंछइ–गाहावईन वा गाहावइपुत्तान वा उट्टान वा गोणान वा घोडगान वा गद्दभान वा सयमेव घूराओ कप्पेइ, अन्नेन वि कप्पावेइ, अन्नं पि कप्पंतं समणुजाणइ–इति से महया पावकम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति। से एगइओ नो वितिगिंछइ–गाहावईन वा गाहावइपुत्तान वा उट्टसालाओ वा गोणसालाओ वा घोडगसालाओ वा गद्दभसालाओ वा कंटकबोंदियाए पडिपेहित्ता सयमेव अगनिकाएणं ज्झामेइ, अन्नेन वि ज्झामावेइ, ज्झामंतं पि अन्नं समणुजाणइ। से एगइओ नो वितिगिंछइ–गाहावईन वा गाहावइपुत्तान वा कुंडलं वा मणिं वा मोत्तियं वा सयमेव अवहरइ, अन्नेन वि अवहरावेइ, अवहरंतं पि अन्नं समणुजाणइ। से एगइओ नो वितिगिंछइ–समणाण वा माहणाण वा दंडगं वा छत्तगं वा भंडगं वा मत्तगं वा लट्ठिगं वा भिसिगं वा चेलगं वा चिलिमिलिगं वा चम्मगं वा चम्मछेयणगं वा सयमेव अवहरइ, अन्नेन वि अवहरावेइ, अवहरंतं पि अन्नं समणुजाणइ–इति से महया पावकम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति। से एगइओ समणं वा माहणं वा दिस्सा नानाविहेहिं ‘पावेहिं कम्मेहिं’ अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ, अदुवा णं अच्छराए आफालित्ता भवइ, अदुवा णं फरुसं वदित्ता भवइ, कालेन वि से अणुपविट्ठस्स ‘असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा’ नो दवावेत्ता भवति, ‘जे इमे भवंति–वोण्णमंता भारक्कंता अलसगा वसलगा ‘किवणगा समणगा’, ते इणमेव जीवितं धिज्जी-वियं संपडिबूहेंति। नाइ ते ‘पारलोइयस्स अट्ठस्स’ किंचि वि सिलिस्संति, ते दुक्खंति ते सोयंति ते जूरंति ते तिप्पंति ते पिट्टंति ते परितप्पंति ते दुक्खण-जूरण-सोयण-तिप्पण-पिट्टण-परितप्पण-वह-बंध-परिकिलेसाओ अपडि-विरता भवंति। ते महता आरंभेन ते महता समारंभेन ते महता आरंभसमारंभेन विरूवरूवेहिं पावकम्मकिच्चेहिं उरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजित्तारो भवंति, तं जहा–अन्नं अन्नकाले पाणं पाणकाले वत्थं वत्थकाले लेणं लेणकाले सयणं सयणकाले। सपुव्वापरं च णं ण्हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल- ‘पायच्छित्ते सिरसा ण्हाए कंठेमालकडे आविद्धमणिसुवण्णे कप्पियमालामउली पडिबद्धसरीरे वग्घारिय-सोणिसुत्तग-मल्ल-दामकलावे अहयवत्थपरिहिए चंदणोक्खित्तगायसरीरे महइमहालियाए कूडा-गारसालाए महइमहालयंसि सीहा-सणंसि इत्थीगुम्मसंपरिवुडे ‘सव्वराइएणं जोइणा ज्झियायमाणेणं’ महयाहय-णट्ट-गीय-वाइय-तंती -तल-ताल-तुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवाइय-रवेणं उरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ। तस्स णं एगमवि आणवेमाणस्स जाव चत्तारि पंच जणा अवुत्ता चेव अब्भुट्ठेंति–भो देवाणुप्पिया! किं करेमो? किं आहरेमो? किं उवणेमो? किं उवट्ठावेमो? किं भे हियइच्छियं? किं भे आसगस्स सयइ? तमेव पासित्ता अनारिया एवं वयंति–देवे खलु अयं पुरिसे! देवसिणाए खलु अयं पुरिसे! ‘देवजीवणिज्जे खलु अयं पुरिसे’! अन्ने वि य णं उवजीवंति। तमेव पासित्ता आरिया वयंति–अभिक्कंतकूरकम्मे खलु अयं पुरिसे, अइधूए, अइआयरक्खे दाहिण-गामिए णेरइए कण्हपक्खिए आगमिस्साणं दुल्लहबोहिए यावि भविस्सइ। इच्चेतस्स ठाणस्स उट्ठित्ता वेगे अभिगिज्झंति, अणुट्ठित्ता वेगे अभिगिज्झंति, अभिज्झंज्झाउरा अभिगिज्झंति। एस ठाणे अणारिए अकेवले अप्पडिपुण्णे ‘अनेयाउए असंसुद्धे’ असल्लगत्तणे असिद्धिमग्गे अमुत्तिमग्गे अनिव्वाणमग्गे अणिज्जाणमग्गे असव्वदुक्खपहीणमग्गे एगंतमिच्छे असाहू। एस खलु पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिए। | ||
Sutra Meaning : | (१) कोई व्यक्ति सभा में खड़ा होकर प्रतिज्ञा करता है – मैं इस प्राणी को मारूँगा।’ तत्पश्चात् वह तीतर, बतख, लावक, कबूतर, कपिंजल या अन्य किसी त्रसजीव को मारता है, छेदन – भेदन करता है, यहाँ तक कि उसे प्राणरहित कर डालता है। अपने इस महान पापकर्म के कारण वह स्वयं को महापापी नाम से प्रख्यात कर देता है (२) कोई पुरुष किसी कारण से अथवा सड़े गले, या थोड़ा – सा हलकी किस्म का अन्न आदि दे देने से अथवा किसी दूसरे पदार्थ से अभीष्ट लाभ न होने से विरुद्ध होकर उस गृहपति या गृहपति के पुत्रों के खलिहान में रखे शाली, व्रीहि, जौ, गेहूँ आदि धान्यों को स्वयं आग लगाकर जला देता अथवा दूसरे से आग लगवा कर जला देता है, उन के धान्य को जलाने वाले अच्छा समझता है। इस प्रकार के महापापकर्म के कारण जगत में वह अपने आपको महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर देता है। (३) कोई पुरुष अपमानादि प्रतिकूल शब्दादि किसी कारण से, अथवा सड़े गले या तुच्छ या अल्प अन्नादि के देने से या किसी दूसरे पदार्थ से अभीष्ट लाभ न होने से उस गृहस्थ या उसके पुत्रों पर कुपित होकर उनके ऊंटों, गायों – बैलों, घोड़ों, गधों के जंघा आदि अंगों को स्वयं काट देता है, दूसरों से उनके अंग कटवा देता है, जो उन गृहस्थादि के पशुओं के अंग काटता है, उसे अच्छा समझता है। इस महान पापकर्म के कारण वह जगत में अपने आपको महापापी के रूप में प्रसिद्ध कर देता है। (४) कोई पुरुष किसी अपमानादिजनक शब्दादि के कारण से, अथवा किसी गृहपति द्वारा खराब या कम अन्न दिये जाने अथवा उससे अपना इष्ट स्वार्थ – सिद्ध न होने से उस पर अत्यंत बिगड़कर उस गृहस्थ की अथवा उसके पुत्रों की उष्ट्रशाला, गोशाला, अश्वशाला अथवा गर्दभशाला काँटों की शाखाओं से ढंक कर स्वयं उसमें आग लगा कर जला देता है, दूसरों से लगवा देता है या जो उनमें आग लगवा कर जला देने वाले को अच्छा समझता है इस महापाप से स्वयं को महापापी के नाम से विख्यात कर देता है। (५) कोई व्यक्ति किसी भी प्रतिकूल शब्दादि के कारण, अथवा गृहपति द्वारा खराब, तुच्छ या अल्प अन्न आदि दिये जाने से अथवा उससे अपने किसी मनोरथ की सिद्धि न होने से इस पर क्रुद्ध होकर उससे या उसके पुत्रों के कुण्डल, मणि या मोती को स्वयं हरण करता है, दूसरों से हरण कराता है, या हरण करने वाले को अच्छा जानता है। इस महापाप के कारण जगत में महापापी के रूप में स्वयं को प्रसिद्ध कर देता है। (६) कोई पुरुष श्रमणों या माहनों के किसी भक्त से सड़ा – गला, तुच्छ या घटिया या थोड़ा सा अन्न पाकर अथवा मद्य की हंडियाँ न मिलने से या किसी अभीष्ट स्वार्थ सिद्ध न होने से अथवा किसी भी प्रतिकूल शब्दादि के कारण उन श्रमणों या माहनों के विरुद्ध होकर उनका छत्र, दण्ड, उपकरण, पात्र, लाठी, आसन, वस्त्र, पर्दा, चर्म, चर्म – छेदनक या चर्मकोश स्वयं हरण करता है, दूसरे से हरण कराता है, अथवा हरण करने वाले को अच्छा जानता है। इस महापाप के कारण स्वयं को महापापी प्रसिद्ध कर देता है। (७) कोई – कोई व्यक्ति तो जरा भी विचार नहीं करता, जैसे कि वह अकारण ही गृहपति या उनके पुत्रों के अन्न आदि को स्वयमेव आग लगाकर भस्म कर देता है, अथवा वह दूसरे से भस्म करा देता है, या जो भस्म करता है उसे अच्छा समझता है। इस महापापकर्म करने के कारण जगत में वह महापापी के रूप में बदनाम होता है। (८) कोई – कोई व्यक्ति अपने कृत दुष्कर्मों के फल का किंचित् भी विचार नहीं करता, जैसे कि – वह अकारण ही किसी गृहस्थ या उसके पुत्रों के ऊंट, गाय, घोड़ों या गधों के जंघादि अंग स्वयं काट डालता है, या दूसरे से कटवाता है, अथवा जो उनके अंग काटता है उसकी प्रशंसा एवं अनुमोदना करता है। अपनी इस पापवृत्ति के कारण वह महापापी के नाम से जगत में पहचाना जाता है। (९) कोई व्यक्ति ऐसा होता है, जो स्वकृतकर्मों के परिणाम का थोड़ा – सा विचार नहीं करता, जैसे कि वह किसी गृहस्थ या उनके पुत्रों की उष्ट्रशाला, गोशाला, घुड़साल या गर्दभशाला को सहसा कंटीली झाड़ियों या ड़ालियों से ढंक कर स्वयं आग लगाकर उन्हें भस्म कर डालता है, अथवा दूसरे को प्रेरित करके भस्म करवा डालता है, या जो उनकी उक्त शालाओं को इस प्रकार आग लगाकर भस्म करता है, उसको अच्छा समझता है। (१०) कोई व्यक्ति पापकर्म करता हुआ उसके फल का विचार नहीं करता। वह अकारण ही गृहपति या गृहपतिपुत्रों के कुण्डल, मणि, या मोती आदि को स्वयं चूरा लेता है, या दूसरों से चोरी करवाता है, अथवा जो चोरी करता है उसे अच्छा समझता है। (११) कोई व्यक्ति स्वकृत दुष्कर्मों के फल का जरा भी विचार नहीं करता। वह अकारण ही श्रमणों या माहनों के छत्र, दण्ड, कमण्डलु, भण्डोपकरणों से लेकर चर्मछेदनक एवं चर्मकोश तक साधनों का स्वयं अपहरण कर लेता है, औरों से अपहरण करवाता है और जो अपहरण करता है, उसे अच्छा समझता है। इस कारण जगत में स्वयं को महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर देता है। (१२) ऐसा कोई व्यक्ति श्रमण और माहन को देखकर उनके साथ अनेक प्रकार के पापमय व्यवहार करता है और उस महान पापकर्म के कारण उसकी प्रसिद्धि महापापी के रूप में हो जाती है। अथवा वह चुटकी बजाता है अथवा कठोर वचन बोलता है। भिक्षाकाल में भी अगर साधु उसके यहाँ दूसरे भिक्षुओं के पीछे भिक्षा के लिए प्रवेश करता है, तो भी वह साधु को स्वयं आहारादि नहीं देता, दूसरा कोई देता हो तो उसे यह कहकर भिक्षा देने से रोक देता है – ये पाखण्डी बोझा ढोते थे या नीच कर्म करते थे, कुटुम्ब के या बोझे के भार से (घबराए हुए) थे। वे बड़े आलसी हैं, ये शूद्र हैं, दरिद्र हैं, (सुखलिप्सा से) ये श्रमण एवं प्रव्रजित हो गए हैं। वे लोग इस जीवन को जो वस्तुतः धिग्जीवन है, उलटे इसकी प्रशंसा करते हैं। वे साधुद्रोहजीवी मूढ़ परलोक के लिए भी कुछ भी साधन नहीं करते; वे दुःख पाते हैं, वे शोक पाते हैं, वे दुःख, शोक, पश्चात्ताप करते हैं, वे क्लेश पाते हैं, वे पीड़ावश छाती – माथा कूटते हैं, सन्ताप पाते हैं, वे दुःख, शोक, पश्चात्ताप, क्लेश, पीड़ावश सिर पीटने आदि की क्रिया, संताप, वध, बन्धन आदि परिक्लेशों से निवृत्त नहीं होते। वे महारम्भ और महासमारम्भ नाना प्रकार के पापकर्म जनक कुकृत्य करके उत्तमोत्तम मनुष्य सम्बन्धी भोगों का उपभोग करते हैं। जैसे कि – वह आहार के समय आहार का, पीने के समय पेय पदार्थों का, वस्त्र परिधान के समय वस्त्रों का, आवास के समय आवासस्थान का, शयन के समय शयनीय पदार्थों का उपभोग करते हैं। वह प्रातःकाल, मध्याह्न काल और सायंकाल स्नान करते हैं फिर देव – पूजा के रूप में बलिकर्म करते चढ़ावा चढ़ाते हैं, देवता की आरती करके मंगल के लिए स्वर्ण, चन्दन, दहीं, अक्षत और दर्पण आदि मांगलिक पदार्थों का स्पर्श करते हैं, फिर प्रायश्चित्त के लिए शान्तिकर्म करते हैं। तत्पश्चात् सशीर्ष स्नान करके कण्ठ में माला धारण करते हैं। वह मणियों और सोने को अंगों में पहनता है, सिर पर पुष्पमाला से युक्त मुकुट धारण करता है। वह शरीर से सुडौल एवं हृष्ट – पुष्ट होता है। वह कमर में करधनी तथा वक्षःस्थल पर फूलों की माला पहनता है। बिलकुल नया और स्वच्छ वस्त्र पहनता है। चन्दन का लेप करता है। इस प्रकार सुसज्जित होकर अत्यन्त ऊंचे विशाल प्रासाद में जाता है। वहाँ वह बहुत बड़े भव्य सिंहासन पर बैठता है। वहाँ युवतियाँ उसे घेर लेती हैं। वहाँ सारी रातभर दीपक आदि का प्रकाश जगमगाता रहता है। फिर वहाँ बड़े जोर से नाच, गान, वाद्य, वीणा, तल, ताल, त्रुटित, मृदंग तथा करताल आदि की ध्वनि लगती है। इस प्रकार उत्तमोत्तम मनुष्य सम्बन्धी भोगों का उपभोग करता हुआ वह अपना जीवन व्यतीत करता है। वह व्यक्ति जब किसी एक नौकर को आज्ञा देता है तो चार मनुष्य बिना कहे ही वहाँ आकर सामने खड़े हो जाते हैं, (और हाथ जोड़ कर पूछते हैं) हे प्रिय! कहिए, हम आपकी क्या सेवा करें? क्या लाएं, क्या भेंट करें? क्या – क्या कार्य आपको क्या हीतकर है, क्या इष्ट है? आपके मुख को कौन – सी वस्तु स्वादिष्ट है? बताइ। उस पुरुष को इस प्रकार सुखोपभोगमग्न देखकर अनार्य यों कहते हैं – यह पुरुष तो सचमुच देव है। यह पुरुष तो देवों से भी श्रेष्ठ है। यह तो देवों का – सा जीवन जी रहा है। इसके आश्रय से अन्य लोग भी आनन्दपूर्वक जीते हैं। किन्तु इस प्रकार उसी व्यक्ति को देखकर आर्य पुरुष कहते हैं – यह पुरुष तो अत्यन्त क्रूर कर्मों में प्रवृत्त है, अत्यन्त धूर्त है, अपने शरीर की यह बहुत रक्षा करता है, यह दिशावर्ती नरक के कृष्णपक्षी नारकों में उत्पन्न होगा। यह भविष्य में दुर्लभबोधि प्राणी होगा। कईं मूढ़ जीव मोक्ष के लिए उद्यत होकर भी इसको पाने के लिए लालायित हो जाते हैं। कईं गृहस्थ भी इस स्थान (जीवन) को पाने की लालसा करते रहते हैं। कईं अत्यन्त विषयसुखान्ध या तृष्णान्ध मनुष्य भी इस स्थान के लिए तरसते हैं। यह स्थान अनार्य है, बिलज्ञान – रहित है, परिपूर्ण सुख रहित है, सुन्यायत्त से रहित है, संशुद्धि – पवित्रता से रहित है, मायादि शल्य को काटने वाला नहीं है, यह सिद्धि मार्ग नहीं है, यह मुक्ति का मार्ग नहीं है, यह निर्वाण का मार्ग नहीं है, यह निर्याण का मार्ग नहीं है, यह सर्व दुःखों का नाशक मार्ग नहीं है। यह एकान्त मिथ्या और असाधु स्थान है। यही अधर्मपक्ष नामक प्रथम स्थान का विकल्प है, ऐसा कहा है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se egaio parisamajjhao utthetta ahameyam hanami tti kattu tittiram va vattagam va [chadagam va?] lavagam va kavoyagam va [kavim va?] kavimjalam va annayaram va tasam panam hamta chhetta bhetta lumpaitta vilumpaitta uddavaitta aharam aharei–iti se mahaya pavehim kammehim attanam uvakkhaitta bhavati. Se egaio kenai adanenam viruddhe samane, aduva khaladanenam, aduva surathalaenam gahavaina va gahavaiputtana va sayameva aganikaenam sassaim jjhamei, annena vi aganikaenam sassaim jjhamavei, aganikaenam sassaim jjhamemtam pi annam samanujanai–iti se mahaya pavakammehim attanam uvakkhaitta bhavati. Se egaio kenai adanenam viruddhe samane, aduva khaladanenam, aduva surathalaenam gahavaina va gahavaiputtana va uttana va gonana va ghodagana va gaddabhana va sayameva ghurao kappei, annena vi kappavei, kappamtam vi annam samanujanai–iti se mahaya pavakammehim attanam uvakkhaitta bhavati. Se egaio kenai adanenam viruddhe samane, aduva khaladanenam, aduva surathalaenam gahavaina va gahavaiputtana va uttasalao va gonasalao va ghodagasalao va gaddabhasalao va kamtakabomdiyae padipehitta sayameva aganikaenam jjha-mei, annena vi jjhamavei, jjhamamtam pi annam samanujanai–iti se mahaya pavakammehim attanam uvakkhaitta bhavati. Se egaio kenai adanenam viruddhe samane, aduva khaladanenam, aduva surathalaenam gahavaina va gahavaiputtana va kumdalam va manim va mottiyam va sayameva avaharai, annena vi avaharavei, avaharamtam pi annam samanujanai–iti se mahaya pava-kammehim attanam uvakkhaitta bhavati. Se egaio kenai vi adanenam viruddhe samane, samananam va mahananam va ‘damdagam va chhattagam va’ bhamdagam va mattagam va latthigam va bhisigam va chelagam va chilimiligam va ‘chammagam va chammachheyanagam’ va chammakosiyam va sayameva avaharai, annena vi avaharavei, avaharamtam pi annam samanujanai–iti se mahaya pavakammehim attanam uvakkhaitta bhavati. Se egaio no vitigimchhai–gahavaina va gahavaiputtana va sayameva aganikaenam osahio jjhamei, annena vi aganikaenam osahio jjhamavei, aganikaenam osahio jjhamemtam pi annam samanujanai–iti se mahaya pavakammehim attanam uvakkhaitta bhavati. Se egaio no vitigimchhai–gahavaina va gahavaiputtana va uttana va gonana va ghodagana va gaddabhana va sayameva ghurao kappei, annena vi kappavei, annam pi kappamtam samanujanai–iti se mahaya pavakammehim attanam uvakkhaitta bhavati. Se egaio no vitigimchhai–gahavaina va gahavaiputtana va uttasalao va gonasalao va ghodagasalao va gaddabhasalao va kamtakabomdiyae padipehitta sayameva aganikaenam jjhamei, annena vi jjhamavei, jjhamamtam pi annam samanujanai. Se egaio no vitigimchhai–gahavaina va gahavaiputtana va kumdalam va manim va mottiyam va sayameva avaharai, annena vi avaharavei, avaharamtam pi annam samanujanai. Se egaio no vitigimchhai–samanana va mahanana va damdagam va chhattagam va bhamdagam va mattagam va latthigam va bhisigam va chelagam va chilimiligam va chammagam va chammachheyanagam va sayameva avaharai, annena vi avaharavei, avaharamtam pi annam samanujanai–iti se mahaya pavakammehim attanam uvakkhaitta bhavati. Se egaio samanam va mahanam va dissa nanavihehim ‘pavehim kammehim’ attanam uvakkhaitta bhavai, aduva nam achchharae aphalitta bhavai, aduva nam pharusam vaditta bhavai, kalena vi se anupavitthassa ‘asanam va panam va khaimam va saimam va’ no davavetta bhavati, ‘je ime bhavamti–vonnamamta bharakkamta alasaga vasalaga ‘kivanaga samanaga’, te inameva jivitam dhijji-viyam sampadibuhemti. Nai te ‘paraloiyassa atthassa’ kimchi vi silissamti, te dukkhamti te soyamti te juramti te tippamti te pittamti te paritappamti te dukkhana-jurana-soyana-tippana-pittana-paritappana-vaha-bamdha-parikilesao apadi-virata bhavamti. Te mahata arambhena te mahata samarambhena te mahata arambhasamarambhena viruvaruvehim pavakammakichchehim uralaim manussagaim bhogabhogaim bhumjittaro bhavamti, tam jaha–annam annakale panam panakale vattham vatthakale lenam lenakale sayanam sayanakale. Sapuvvaparam cha nam nhae kayabalikamme kaya-kouya-mamgala- ‘payachchhitte sirasa nhae kamthemalakade aviddhamanisuvanne kappiyamalamauli padibaddhasarire vagghariya-sonisuttaga-malla-damakalave ahayavatthaparihie chamdanokkhittagayasarire mahaimahaliyae kuda-garasalae mahaimahalayamsi siha-sanamsi itthigummasamparivude ‘savvaraienam joina jjhiyayamanenam’ mahayahaya-natta-giya-vaiya-tamti -tala-tala-tudiya-ghana-muimga-paduppavaiya-ravenam uralaim manussagaim bhogabhogaim bhumjamane viharai. Tassa nam egamavi anavemanassa java chattari pamcha jana avutta cheva abbhutthemti–bho devanuppiya! Kim karemo? Kim aharemo? Kim uvanemo? Kim uvatthavemo? Kim bhe hiyaichchhiyam? Kim bhe asagassa sayai? Tameva pasitta anariya evam vayamti–deve khalu ayam purise! Devasinae khalu ayam purise! ‘devajivanijje khalu ayam purise’! Anne vi ya nam uvajivamti. Tameva pasitta ariya vayamti–abhikkamtakurakamme khalu ayam purise, aidhue, aiayarakkhe dahina-gamie neraie kanhapakkhie agamissanam dullahabohie yavi bhavissai. Ichchetassa thanassa utthitta vege abhigijjhamti, anutthitta vege abhigijjhamti, abhijjhamjjhaura abhigijjhamti. Esa thane anarie akevale appadipunne ‘aneyaue asamsuddhe’ asallagattane asiddhimagge amuttimagge anivvanamagge anijjanamagge asavvadukkhapahinamagge egamtamichchhe asahu. Esa khalu padhamassa thanassa adhammapakkhassa vibhamge evamahie. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | (1) koi vyakti sabha mem khara hokara pratijnya karata hai – maim isa prani ko marumga.’ tatpashchat vaha titara, batakha, lavaka, kabutara, kapimjala ya anya kisi trasajiva ko marata hai, chhedana – bhedana karata hai, yaham taka ki use pranarahita kara dalata hai. Apane isa mahana papakarma ke karana vaha svayam ko mahapapi nama se prakhyata kara deta hai (2) koi purusha kisi karana se athava sare gale, ya thora – sa halaki kisma ka anna adi de dene se athava kisi dusare padartha se abhishta labha na hone se viruddha hokara usa grihapati ya grihapati ke putrom ke khalihana mem rakhe shali, vrihi, jau, gehum adi dhanyom ko svayam aga lagakara jala deta athava dusare se aga lagava kara jala deta hai, una ke dhanya ko jalane vale achchha samajhata hai. Isa prakara ke mahapapakarma ke karana jagata mem vaha apane apako mahapapi ke nama se prasiddha kara deta hai. (3) koi purusha apamanadi pratikula shabdadi kisi karana se, athava sare gale ya tuchchha ya alpa annadi ke dene se ya kisi dusare padartha se abhishta labha na hone se usa grihastha ya usake putrom para kupita hokara unake umtom, gayom – bailom, ghorom, gadhom ke jamgha adi amgom ko svayam kata deta hai, dusarom se unake amga katava deta hai, jo una grihasthadi ke pashuom ke amga katata hai, use achchha samajhata hai. Isa mahana papakarma ke karana vaha jagata mem apane apako mahapapi ke rupa mem prasiddha kara deta hai. (4) koi purusha kisi apamanadijanaka shabdadi ke karana se, athava kisi grihapati dvara kharaba ya kama anna diye jane athava usase apana ishta svartha – siddha na hone se usa para atyamta bigarakara usa grihastha ki athava usake putrom ki ushtrashala, goshala, ashvashala athava gardabhashala kamtom ki shakhaom se dhamka kara svayam usamem aga laga kara jala deta hai, dusarom se lagava deta hai ya jo unamem aga lagava kara jala dene vale ko achchha samajhata hai isa mahapapa se svayam ko mahapapi ke nama se vikhyata kara deta hai. (5) koi vyakti kisi bhi pratikula shabdadi ke karana, athava grihapati dvara kharaba, tuchchha ya alpa anna adi diye jane se athava usase apane kisi manoratha ki siddhi na hone se isa para kruddha hokara usase ya usake putrom ke kundala, mani ya moti ko svayam harana karata hai, dusarom se harana karata hai, ya harana karane vale ko achchha janata hai. Isa mahapapa ke karana jagata mem mahapapi ke rupa mem svayam ko prasiddha kara deta hai. (6) koi purusha shramanom ya mahanom ke kisi bhakta se sara – gala, tuchchha ya ghatiya ya thora sa anna pakara athava madya ki hamdiyam na milane se ya kisi abhishta svartha siddha na hone se athava kisi bhi pratikula shabdadi ke karana una shramanom ya mahanom ke viruddha hokara unaka chhatra, danda, upakarana, patra, lathi, asana, vastra, parda, charma, charma – chhedanaka ya charmakosha svayam harana karata hai, dusare se harana karata hai, athava harana karane vale ko achchha janata hai. Isa mahapapa ke karana svayam ko mahapapi prasiddha kara deta hai. (7) koi – koi vyakti to jara bhi vichara nahim karata, jaise ki vaha akarana hi grihapati ya unake putrom ke anna adi ko svayameva aga lagakara bhasma kara deta hai, athava vaha dusare se bhasma kara deta hai, ya jo bhasma karata hai use achchha samajhata hai. Isa mahapapakarma karane ke karana jagata mem vaha mahapapi ke rupa mem badanama hota hai. (8) koi – koi vyakti apane krita dushkarmom ke phala ka kimchit bhi vichara nahim karata, jaise ki – vaha akarana hi kisi grihastha ya usake putrom ke umta, gaya, ghorom ya gadhom ke jamghadi amga svayam kata dalata hai, ya dusare se katavata hai, athava jo unake amga katata hai usaki prashamsa evam anumodana karata hai. Apani isa papavritti ke karana vaha mahapapi ke nama se jagata mem pahachana jata hai. (9) koi vyakti aisa hota hai, jo svakritakarmom ke parinama ka thora – sa vichara nahim karata, jaise ki vaha kisi grihastha ya unake putrom ki ushtrashala, goshala, ghurasala ya gardabhashala ko sahasa kamtili jhariyom ya raliyom se dhamka kara svayam aga lagakara unhem bhasma kara dalata hai, athava dusare ko prerita karake bhasma karava dalata hai, ya jo unaki ukta shalaom ko isa prakara aga lagakara bhasma karata hai, usako achchha samajhata hai. (10) koi vyakti papakarma karata hua usake phala ka vichara nahim karata. Vaha akarana hi grihapati ya grihapatiputrom ke kundala, mani, ya moti adi ko svayam chura leta hai, ya dusarom se chori karavata hai, athava jo chori karata hai use achchha samajhata hai. (11) koi vyakti svakrita dushkarmom ke phala ka jara bhi vichara nahim karata. Vaha akarana hi shramanom ya mahanom ke chhatra, danda, kamandalu, bhandopakaranom se lekara charmachhedanaka evam charmakosha taka sadhanom ka svayam apaharana kara leta hai, aurom se apaharana karavata hai aura jo apaharana karata hai, use achchha samajhata hai. Isa karana jagata mem svayam ko mahapapi ke nama se prasiddha kara deta hai. (12) aisa koi vyakti shramana aura mahana ko dekhakara unake satha aneka prakara ke papamaya vyavahara karata hai aura usa mahana papakarma ke karana usaki prasiddhi mahapapi ke rupa mem ho jati hai. Athava vaha chutaki bajata hai athava kathora vachana bolata hai. Bhikshakala mem bhi agara sadhu usake yaham dusare bhikshuom ke pichhe bhiksha ke lie pravesha karata hai, to bhi vaha sadhu ko svayam aharadi nahim deta, dusara koi deta ho to use yaha kahakara bhiksha dene se roka deta hai – ye pakhandi bojha dhote the ya nicha karma karate the, kutumba ke ya bojhe ke bhara se (ghabarae hue) the. Ve bare alasi haim, ye shudra haim, daridra haim, (sukhalipsa se) ye shramana evam pravrajita ho gae haim. Ve loga isa jivana ko jo vastutah dhigjivana hai, ulate isaki prashamsa karate haim. Ve sadhudrohajivi murha paraloka ke lie bhi kuchha bhi sadhana nahim karate; ve duhkha pate haim, ve shoka pate haim, ve duhkha, shoka, pashchattapa karate haim, ve klesha pate haim, ve piravasha chhati – matha kutate haim, santapa pate haim, ve duhkha, shoka, pashchattapa, klesha, piravasha sira pitane adi ki kriya, samtapa, vadha, bandhana adi parikleshom se nivritta nahim hote. Ve maharambha aura mahasamarambha nana prakara ke papakarma janaka kukritya karake uttamottama manushya sambandhi bhogom ka upabhoga karate haim. Jaise ki – vaha ahara ke samaya ahara ka, pine ke samaya peya padarthom ka, vastra paridhana ke samaya vastrom ka, avasa ke samaya avasasthana ka, shayana ke samaya shayaniya padarthom ka upabhoga karate haim. Vaha pratahkala, madhyahna kala aura sayamkala snana karate haim phira deva – puja ke rupa mem balikarma karate charhava charhate haim, devata ki arati karake mamgala ke lie svarna, chandana, dahim, akshata aura darpana adi mamgalika padarthom ka sparsha karate haim, phira prayashchitta ke lie shantikarma karate haim. Tatpashchat sashirsha snana karake kantha mem mala dharana karate haim. Vaha maniyom aura sone ko amgom mem pahanata hai, sira para pushpamala se yukta mukuta dharana karata hai. Vaha sharira se sudaula evam hrishta – pushta hota hai. Vaha kamara mem karadhani tatha vakshahsthala para phulom ki mala pahanata hai. Bilakula naya aura svachchha vastra pahanata hai. Chandana ka lepa karata hai. Isa prakara susajjita hokara atyanta umche vishala prasada mem jata hai. Vaham vaha bahuta bare bhavya simhasana para baithata hai. Vaham yuvatiyam use ghera leti haim. Vaham sari ratabhara dipaka adi ka prakasha jagamagata rahata hai. Phira vaham bare jora se nacha, gana, vadya, vina, tala, tala, trutita, mridamga tatha karatala adi ki dhvani lagati hai. Isa prakara uttamottama manushya sambandhi bhogom ka upabhoga karata hua vaha apana jivana vyatita karata hai. Vaha vyakti jaba kisi eka naukara ko ajnya deta hai to chara manushya bina kahe hi vaham akara samane khare ho jate haim, (aura hatha jora kara puchhate haim) he priya! Kahie, hama apaki kya seva karem? Kya laem, kya bhemta karem? Kya – kya karya apako kya hitakara hai, kya ishta hai? Apake mukha ko kauna – si vastu svadishta hai? Batai. Usa purusha ko isa prakara sukhopabhogamagna dekhakara anarya yom kahate haim – yaha purusha to sachamucha deva hai. Yaha purusha to devom se bhi shreshtha hai. Yaha to devom ka – sa jivana ji raha hai. Isake ashraya se anya loga bhi anandapurvaka jite haim. Kintu isa prakara usi vyakti ko dekhakara arya purusha kahate haim – yaha purusha to atyanta krura karmom mem pravritta hai, atyanta dhurta hai, apane sharira ki yaha bahuta raksha karata hai, yaha dishavarti naraka ke krishnapakshi narakom mem utpanna hoga. Yaha bhavishya mem durlabhabodhi prani hoga. Kaim murha jiva moksha ke lie udyata hokara bhi isako pane ke lie lalayita ho jate haim. Kaim grihastha bhi isa sthana (jivana) ko pane ki lalasa karate rahate haim. Kaim atyanta vishayasukhandha ya trishnandha manushya bhi isa sthana ke lie tarasate haim. Yaha sthana anarya hai, bilajnyana – rahita hai, paripurna sukha rahita hai, sunyayatta se rahita hai, samshuddhi – pavitrata se rahita hai, mayadi shalya ko katane vala nahim hai, yaha siddhi marga nahim hai, yaha mukti ka marga nahim hai, yaha nirvana ka marga nahim hai, yaha niryana ka marga nahim hai, yaha sarva duhkhom ka nashaka marga nahim hai. Yaha ekanta mithya aura asadhu sthana hai. Yahi adharmapaksha namaka prathama sthana ka vikalpa hai, aisa kaha hai. |