Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011334 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Prakrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
13. तत्त्वार्थ अधिकार |
Translated Chapter : |
13. तत्त्वार्थ अधिकार |
Section : | 6. बन्ध तत्त्व (संचित कर्म) | Translated Section : | 6. बन्ध तत्त्व (संचित कर्म) |
Sutra Number : | 331 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | प्रवचनसार। १७९; तुलना: स्थानांग। २.९६ | ||
Mool Sutra : | रत्तो बंधदि कम्मं, मुच्चदि कम्मेहिं रागरहिदप्पा। एसो बंधसमासो, जीवाणं जाण णिच्छयदो ।। | ||
Sutra Meaning : | रागी जीव ही कर्मों को बाँधता है, और राग-रहित उनसे मुक्त होता है। परमार्थतः संसारी जीवों के लिए राग ही एक मात्र बन्ध का कारण व बन्धस्वरूप है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Ratto bamdhadi kammam, muchchadi kammehim ragarahidappa. Eso bamdhasamaso, jivanam jana nichchhayado\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Ragi jiva hi karmom ko bamdhata hai, aura raga-rahita unase mukta hota hai. Paramarthatah samsari jivom ke lie raga hi eka matra bandha ka karana va bandhasvarupa hai. |