Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011332 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Prakrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
13. तत्त्वार्थ अधिकार |
Translated Chapter : |
13. तत्त्वार्थ अधिकार |
Section : | 6. बन्ध तत्त्व (संचित कर्म) | Translated Section : | 6. बन्ध तत्त्व (संचित कर्म) |
Sutra Number : | 329 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | प्रश्न व्याकरण । १.५ अन्तिम गा.,; तुलना: ध. १५।३४ गाथा १८ | ||
Mool Sutra : | एएहिं पंचहिं असंवरेहिं, रयमादिणित्तु अणुसमयं। चउविह गति पेरंतं, अणुपरियट्टंति संसारं ।। | ||
Sutra Meaning : | हिंसा असत्य आदि पाँच प्रधान असंवर या आस्रवद्वार हैं। इनसे प्रति समय अनुरंजित रहने के कारण जीव नित्य ही कर्म-रज का संचय करके चतुर्गति संसार में परिभ्रमण करता रहता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Eehim pamchahim asamvarehim, rayamadinittu anusamayam. Chauviha gati peramtam, anupariyattamti samsaram\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Himsa asatya adi pamcha pradhana asamvara ya asravadvara haim. Inase prati samaya anuramjita rahane ke karana jiva nitya hi karma-raja ka samchaya karake chaturgati samsara mem paribhramana karata rahata hai. |