Sutra Navigation: Mahanishith ( महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1018090 | ||
Scripture Name( English ): | Mahanishith | Translated Scripture Name : | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं चूलिका-१ एकांत निर्जरा |
Translated Chapter : |
अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं चूलिका-१ एकांत निर्जरा |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 1390 | Category : | Chheda-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से भयवं जया णं से सीसे जहुत्त संजम किरियाए पवट्टंति तहाविहे य केई कुगुरू तेसिं दिक्खं परूवेज्जा, तया णं सीसा किं समनुट्ठेज्जा गोयमा घोर वीर तव संजमे से भयवं कहं गोयमा अन्न गच्छे पविसित्ताणं। से भयवं जया णं तस्स संतिएणं सिरिगारेणं विम्हिए समाणे अन्नगच्छेसुं पवेसमेव न लभेज्जा, तया णं किं कुव्विज्जा गोयमा सव्व-पयारेहिं णं तं तस्स संतियं सिरियारं फुसावेज्जा। से भयवं केणं पयारेणं तं तस्स संतियं सिरियारं सव्व पयारेहि णं फुसियं हवेज्जा गोयमा अक्खरेसुं से भयवं किं णामे ते अक्खरे गोयमा जहा णं अप्पडिग्गाही कालकालंतरेसुं पि अहं इमस्स सीसाणं वा सीसिणीगाणं वा। से भयवं जया णं एवंविहे अक्खरे न प्पयादी, गोयमा जया णं एवंविहे अक्खरे न प्पयादी तया णं आसन्न पावयणीणं पकहित्ताणं चउत्थादीहिं समक्कमित्ताणं अक्खरे दावेज्जा। से भयवं जया णं एएणं पयारेणं से णं कुगुरु अक्खरे न पदेज्जा, तया णं किं कुज्जा गोयमा जया णं एएणं पयारेणं से णं कुगुरू अक्खरे न पदेज्जा, तया णं संघबज्झे उवइसेज्जा। से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ गोयमा सुदुप्पयहे इणमो महा मोह पासे गेहपासे, तमेव विप्पहित्ताणं अनेग सारीरग मणो समुत्थ चउ गइ संसार दुक्ख भय भीए कह कहादी मोह मिच्छत्तादीणं खओवसमेणं सम्मग्गं समोवलभित्ताणं निव्विन्न काम भोगे निरणुबंधे पुन्नमहिज्जे तं च तव संजमाणुट्ठाणेणं तस्सेव तव संजम किरियाए जाव णं गुरू सयमेव विग्घं पयरे अहा णं परेहिं कारवे कीरमाणे, वा समनुवेक्खे सपक्खेण, वा परपक्खेण, वा ताव णं तस्स महानुभागस्स साहुणो संतियं विज्जमाणमवि धम्मवीरियं पणस्से। जाव णं धम्मवीरियं पणस्से ताव णं जे पुन्नभागे आसन्न पुरक्खडे चेव सो पणस्से जइ णं नो समणलिंगं विप्प-जहे। ताहे जे एवं गुणोववेए से णं तं गच्छमुज्झिय अन्न गच्छं समुप्पयाइ। तत्थवि जाव णं संपवेसं न लभे, ताव णं कयाइ उ न अविहीए पाणे पयहेज्जा, कयाइ उ न मिच्छत्तभावं गच्छिय पर पासंडं आसएज्जा, कयाइ उ न दाराइसंगहं काऊणं अगारवासे पविसेज्जा। अहा णं से ताहे महातवस्सी भवेत्ताणं पुणो अतवस्सी होऊणं पर कम्मकरे, हवेज्जा। जाव णं एयाइं न हवंति ताव णं एगंतेणं वुड्ढिं गच्छे मिच्छत्ततमे, जाव णं मिच्छत्त तमंधी कए बहुजण निवहे दुक्खेणं समनुट्ठेज्जा। दोग्गइ निवारए सोक्ख परंपर-कारए अहिंसा लक्खणसमणधम्मे। जाव णं एयाइं भवंति ताव णं तित्थस्सेव वोच्छित्ती, जाव णं तित्थस्सेव वोच्छित्ती ताव णं सुदूर-ववहिए परमपए जाव णं सुदूर ववहिए, परमपए ताव णं अच्चंत सुदुक्खिए चेव भव्वसत्तसंघाए पुणो चउगईए संसरेज्जा। एएणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ, गोयमा जहा णं जे णं एएणेव पयारेणं कुगुरू अक्खरे नो पएज्जा से णं संघबज्झे उवइसेज्जा। | ||
Sutra Meaning : | हे भगवंत ! जब शिष्य यथोक्त संयमक्रिया में व्यवहार करता हो तब कुछ कुगुरु उस अच्छे शिष्य के पास उनकी दीक्षा प्ररूपे तब शिष्य का कौन – सा कर्तव्य उचित माना जाता है ? हे गौतम ! घोर वीर तप का संयम करना। हे भगवंत ! किस तरह ? हे गौतम ! अन्य गच्छ में प्रवेश करके। हे भगवंत ! उसके सम्बन्धी स्वामीत्व की फारगति दिए बिना दूसरे गच्छ में प्रवेश नहीं पा सकते। तब क्या करे ? हे गौतम ! सर्व तरह से उसके सम्बन्धी स्वामीत्व मिट जाना चाहिए। हे भगवंत ! किस तरह से उसके सम्बन्धी स्वामीत्व सर्व तरह से साफ हो सकता है ? हे गौतम ! अक्षर में हें भगवंत ! वो अक्षर कौन – से ? हे गौतम ! किसी भी कालान्तर में भी अब मैं उनके शिष्य या शिष्यणी से अपनाऊंगा नहीं। हे भगवंत ! यदि शायद उस तरह के अक्षर न दे तो ? हे गौतम ! यदि वो उस तरह के अक्षर न लिख दे तो पास के प्रवचनी को कहकर चार – पाँच इकट्ठे होकर उन पर जबरदस्ती करके अक्षर दिलाना। हे भगवंत ! यदि उस तरह के जबरदस्ती से भी वो कुगुरु अक्षर न दे तो फिर क्या करे ? हे गौतम ! यदि उस तरह से कुगुरु अक्षर न दे तो उसे संघ बाहर करने का उपदेश देना। हे भगवंत ! किस वजह से ऐसा कहे ? हे गौतम ! इस संसार में महापाशरूप घर और परिवार की शूली गरदन पर लगी है। वैसी शूली को मुश्किल से तोड़कर कईं शारीरिक – मानसिक पैदा हुए वार गतिरूप संसार के दुःख से भयभीत किसी तरह से मोह और मिथ्यात्वादिका क्षयोपशम के प्रभाव से सन्मार्ग की प्राप्ति करके कामभोग से ऊंबकर वैराग पाकर यदि उसकी परम्परा आगे न बढ़े ऐसे निरनुबँधी पुण्य का उपार्जन करते हैं। वो पुण्योपार्जन तप और संयम के अनुष्ठान से होता है। उसके तप और संयम की क्रिया में यदि गुरु खुद ही विघ्न करनेवाला बने या दूसरों के पास विघ्न, अंतराय करवाए। अगर विघ्न करनेवाले को अच्छा मानकर उसकी अनुमोदना करे, स्वपक्ष या परपक्ष से विघ्न होता हो उसकी उपेक्षा करे यानि उसको अपने सामर्थ्य से न रोके, तो वो महानुभाग वैसे साधु का विद्यमान ऐसा धर्मवीर्य भी नष्ट हो जाए, जितने में धर्मवीर्य नष्ट हो उतने में पास में जिसका पुण्य आगे आनेवाला था, वो नष्ट होता है। यदि वो श्रमणलिंग का त्याग करता है, तब उस तरह के गुण से युक्त हो उस गच्छ का त्याग करके अन्य गच्छ में जाते हैं। तब भी यदि वो प्रवेश न पा सके तो शायद वो अविधि से प्राण का त्याग करे, शायद वो मिथ्यात्व भाव पाकर दूसरे कपटी में सामिल हो जाए, शायद स्त्री का संग्रह करके गृहस्थावास में प्रवेश करे, ऐसा एका महातपस्वी था अब वो अतपस्वी होकर पराये के घर में काम करनेवाला दास बने जब तक में ऐसी हलकी व्यवस्था न हो, उतने में तो एकान्त मिथ्यात्व अंधकार बढ़ने लगे। जितने में मिथ्यात्व से वैसे बने काफी लोगों का समुदाय दुर्गति का निवारण करनेवाला, सुख परम्परा करवानेवाला अहिंसा लक्षणवाला, श्रमणधर्म मुश्किल से करनेवाला होता है। जितने में यह होता है उतने में तीर्थ का विच्छेद होता है इसलिए परमपद मोक्ष का फाँसला काफी बढ़ जाता है यानि मोक्ष काफी दूर चला जाता है। परमपद पाने का मार्ग दूर चला जाता है इसलिए काफी दुःखी ऐसे भव्यात्मा का समूह फिर चारगतिवाले संसार चक्र में अटक जाएंगे। इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि इस तरह से कुगुरु अक्षर नहीं देंगे, उसे संघ बाहर नीकालने का उपदेश देना। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se bhayavam jaya nam se sise jahutta samjama kiriyae pavattamti tahavihe ya kei kuguru tesim dikkham paruvejja, taya nam sisa kim samanutthejja goyama ghora vira tava samjame se bhayavam kaham goyama anna gachchhe pavisittanam. Se bhayavam jaya nam tassa samtienam sirigarenam vimhie samane annagachchhesum pavesameva na labhejja, taya nam kim kuvvijja goyama savva-payarehim nam tam tassa samtiyam siriyaram phusavejja. Se bhayavam kenam payarenam tam tassa samtiyam siriyaram savva payarehi nam phusiyam havejja goyama akkharesum se bhayavam kim name te akkhare goyama jaha nam appadiggahi kalakalamtaresum pi aham imassa sisanam va sisiniganam va. Se bhayavam jaya nam evamvihe akkhare na ppayadi, goyama jaya nam evamvihe akkhare na ppayadi taya nam asanna pavayaninam pakahittanam chautthadihim samakkamittanam akkhare davejja. Se bhayavam jaya nam eenam payarenam se nam kuguru akkhare na padejja, taya nam kim kujja goyama jaya nam eenam payarenam se nam kuguru akkhare na padejja, taya nam samghabajjhe uvaisejja. Se bhayavam kenam atthenam evam vuchchai goyama suduppayahe inamo maha moha pase gehapase, tameva vippahittanam anega sariraga mano samuttha chau gai samsara dukkha bhaya bhie kaha kahadi moha michchhattadinam khaovasamenam sammaggam samovalabhittanam nivvinna kama bhoge niranubamdhe punnamahijje tam cha tava samjamanutthanenam tasseva tava samjama kiriyae java nam guru sayameva viggham payare aha nam parehim karave kiramane, va samanuvekkhe sapakkhena, va parapakkhena, va tava nam tassa mahanubhagassa sahuno samtiyam vijjamanamavi dhammaviriyam panasse. Java nam dhammaviriyam panasse tava nam je punnabhage asanna purakkhade cheva so panasse jai nam no samanalimgam vippa-jahe. Tahe je evam gunovavee se nam tam gachchhamujjhiya anna gachchham samuppayai. Tatthavi java nam sampavesam na labhe, tava nam kayai u na avihie pane payahejja, kayai u na michchhattabhavam gachchhiya para pasamdam asaejja, kayai u na daraisamgaham kaunam agaravase pavisejja. Aha nam se tahe mahatavassi bhavettanam puno atavassi hounam para kammakare, havejja. Java nam eyaim na havamti tava nam egamtenam vuddhim gachchhe michchhattatame, java nam michchhatta tamamdhi kae bahujana nivahe dukkhenam samanutthejja. Doggai nivarae sokkha parampara-karae ahimsa lakkhanasamanadhamme. Java nam eyaim bhavamti tava nam titthasseva vochchhitti, java nam titthasseva vochchhitti tava nam sudura-vavahie paramapae java nam sudura vavahie, paramapae tava nam achchamta sudukkhie cheva bhavvasattasamghae puno chaugaie samsarejja. Eenam atthenam evam vuchchai, goyama jaha nam je nam eeneva payarenam kuguru akkhare no paejja se nam samghabajjhe uvaisejja. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He bhagavamta ! Jaba shishya yathokta samyamakriya mem vyavahara karata ho taba kuchha kuguru usa achchhe shishya ke pasa unaki diksha prarupe taba shishya ka kauna – sa kartavya uchita mana jata hai\? He gautama ! Ghora vira tapa ka samyama karana. He bhagavamta ! Kisa taraha\? He gautama ! Anya gachchha mem pravesha karake. He bhagavamta ! Usake sambandhi svamitva ki pharagati die bina dusare gachchha mem pravesha nahim pa sakate. Taba kya kare\? He gautama ! Sarva taraha se usake sambandhi svamitva mita jana chahie. He bhagavamta ! Kisa taraha se usake sambandhi svamitva sarva taraha se sapha ho sakata hai\? He gautama ! Akshara mem hem bhagavamta ! Vo akshara kauna – se\? He gautama ! Kisi bhi kalantara mem bhi aba maim unake shishya ya shishyani se apanaumga nahim. He bhagavamta ! Yadi shayada usa taraha ke akshara na de to\? He gautama ! Yadi vo usa taraha ke akshara na likha de to pasa ke pravachani ko kahakara chara – pamcha ikatthe hokara una para jabaradasti karake akshara dilana. He bhagavamta ! Yadi usa taraha ke jabaradasti se bhi vo kuguru akshara na de to phira kya kare\? He gautama ! Yadi usa taraha se kuguru akshara na de to use samgha bahara karane ka upadesha dena. He bhagavamta ! Kisa vajaha se aisa kahe\? He gautama ! Isa samsara mem mahapasharupa ghara aura parivara ki shuli garadana para lagi hai. Vaisi shuli ko mushkila se torakara kaim sharirika – manasika paida hue vara gatirupa samsara ke duhkha se bhayabhita kisi taraha se moha aura mithyatvadika kshayopashama ke prabhava se sanmarga ki prapti karake kamabhoga se umbakara vairaga pakara yadi usaki parampara age na barhe aise niranubamdhi punya ka uparjana karate haim. Vo punyoparjana tapa aura samyama ke anushthana se hota hai. Usake tapa aura samyama ki kriya mem yadi guru khuda hi vighna karanevala bane ya dusarom ke pasa vighna, amtaraya karavae. Agara vighna karanevale ko achchha manakara usaki anumodana kare, svapaksha ya parapaksha se vighna hota ho usaki upeksha kare yani usako apane samarthya se na roke, to vo mahanubhaga vaise sadhu ka vidyamana aisa dharmavirya bhi nashta ho jae, jitane mem dharmavirya nashta ho utane mem pasa mem jisaka punya age anevala tha, vo nashta hota hai. Yadi vo shramanalimga ka tyaga karata hai, taba usa taraha ke guna se yukta ho usa gachchha ka tyaga karake anya gachchha mem jate haim. Taba bhi yadi vo pravesha na pa sake to shayada vo avidhi se prana ka tyaga kare, shayada vo mithyatva bhava pakara dusare kapati mem samila ho jae, shayada stri ka samgraha karake grihasthavasa mem pravesha kare, aisa eka mahatapasvi tha aba vo atapasvi hokara paraye ke ghara mem kama karanevala dasa bane jaba taka mem aisi halaki vyavastha na ho, utane mem to ekanta mithyatva amdhakara barhane lage. Jitane mem mithyatva se vaise bane kaphi logom ka samudaya durgati ka nivarana karanevala, sukha parampara karavanevala ahimsa lakshanavala, shramanadharma mushkila se karanevala hota hai. Jitane mem yaha hota hai utane mem tirtha ka vichchheda hota hai isalie paramapada moksha ka phamsala kaphi barha jata hai yani moksha kaphi dura chala jata hai. Paramapada pane ka marga dura chala jata hai isalie kaphi duhkhi aise bhavyatma ka samuha phira charagativale samsara chakra mem ataka jaemge. Isa karana se he gautama ! Aisa kaha jata hai ki isa taraha se kuguru akshara nahim demge, use samgha bahara nikalane ka upadesha dena. |