Sutra Navigation: Mahanishith ( महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1017518 | ||
Scripture Name( English ): | Mahanishith | Translated Scripture Name : | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Translated Chapter : |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 818 | Category : | Chheda-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] अन्नं च–जइ एते तव संजम किरियं अनुपालेहिंति, तओ एतेसिं चेव सेयं होहिइ, जइ न करेहिंति, तओ एएसिं चेव दुग्गइ-गमणमनुत्तरं हवेज्जा। नवरं तहा वि मम गच्छो समप्पिओ, गच्छाहिवई अहयं भणामि। अन्नं च– जे तित्थयरेहिं भगवंतेहिं छत्तीसं आयरियगुणे समाइट्ठे तेसिं तु अहयं एक्कमवि नाइक्कमामि, जइ वि पाणोवरमं भवेज्जा। जं च आगमे इह परलोग विरुद्धं तं णायरामि, न कारयामि न कज्जमाणं समनुजाणामि। तामेरिसगुण जुत्तस्सावि जइ भणियं न करेंति ताहमिमेसिं वेसग्गहणा उद्दालेमि। एवं च समए पन्नत्ती जहा–जे केई साहू वा साहूणी वा वायामेत्तेणा वि असंजममनुचिट्ठेज्जा से णं सारेज्जा से णं वारेज्जा, से णं चोएज्जा पडिचोएज्जा। से णं सारिज्जंते वा, वारिज्जंते वा, चोइज्जंते वा, पडिचोइज्जंते वा, जे णं तं वयणमवमण्णिय अलसायमाणे इ वा अभिनिविट्ठे इ वा न तह त्ति पडिवज्जिय इच्छं पउंजित्ताणं तत्थामो पडिक्कमेज्जा से णं तस्स वेसग्गहणं उद्दालेज्जा। एवं तु आगमुत्तणाएणं गोयमा जाव तेणायरिएणं एगस्स सेहस्स वेसग्गहणं उद्दालियं ताव णं अवसेसे दिसोदिसिं पणट्ठे। ताहे गोयमा सो आयरिओ सणियं सणियं तेसिं पट्ठीए जाउमारद्धो, नो णं तुरियं तुरियं। से भयवं किमट्ठं तुरियं नो पयाइ गोयमा खाराए भूमीए जो महुरं संकमेज्जा महुराए खारं, किण्हाए पीयं पीयाओ किण्हं, जलाओ थलं थलाओ जलं संकमेज्जा, तेणं विहिए पाए पमज्जिय पमज्जिय संकमेयव्वं नो पमज्जेज्जा तओ दुवालस संवच्छरियं पच्छित्तं भवेज्जा। एएणमट्ठेणं गोयमा सो आयरिओ न तुरियं तुरियं गच्छे। अहन्नया सुया उत्त विहिए थंडिल संकमणं करेमाणस्स णं गोयमा तस्सायरिस्स, आगओ बहुवासर खुहा परिगय सरीरो वियड दाढा कराल कयत भासुरो पलय कालमिव घोररूवो केसरी। मुणियं च तेण महानुभागेणं गच्छाहिवइणा जहा–जइ दुयं गच्छिज्जइ ता चुक्किज्जइ इमस्स। नवरं दुयं गच्छमाणाणं असंजमं ता वरं सरीरोवोच्छेयं न असंजम-पवत्तणं ति चिंतिऊणं, विहिए उवट्ठियस्स सेहस्स जमुद्दालियं वेसग्गहणं तं दाऊण ठिओ निप्पडिकम्म पायवोवगमणाणसणेणं। सो वि सेहो तहेव। अहन्नया अच्चंत विसुद्धंतकरणे पंचमंगलपरे सुहज्झवसायत्ताए दुवे वि गोयमा वावईए तेण सीहेणं, अंतगडे केवली जाए, अट्ठप्पयार मल कलंक विप्पमुक्के सिद्धे य। ते पुन गोयमा एकूणे पंच सए साहूणं तक्कम्मदोसेणं जं दुक्खमनुभवमाणे चिट्ठंति जं चाणुभूयं जं चाणुभविहिंति अनंत संसार सागरं परिभमंते तं को अनंतेणं पि कालेणं भाणिऊं समत्थो एए ते गोयमा एगूणे पंचसए साहूणं। जेहिं च णं तारिस-गुणोववेतस्स णं महानुभागस्स गुरुणो आणं अइक्कमियं नो आराहियं अनंतसंसारीए जाए। | ||
Sutra Meaning : | दूसरा यह शिष्य शायद तप और संयम की क्रिया का आचरण करेंगे तो उससे उनका ही श्रेय होगा और यदि नहीं करेंगे तो उन्हें ही अनुत्तर दुर्गति गमन करना पड़ेगा। फिर भी मुझे गच्छ समर्पण हुआ है, मैं गच्छाधिपति हूँ, मुझे उनको सही रास्ता दिखाना चाहिए। और फिर दूसरी बात यह ध्यान में रखनी है कि – तीर्थंकर भगवंत ने आचार्य के छत्तीस गुण बताए हैं उसमें से मैं एक का भी अतिक्रमण नहीं करूँगा। शायद मेरी जान भी वैसा करने से चली जाएगी तो भी मैं आराधक बनूँगा। आगम में कहा है कि यह लोक या परलोक के खिलाफ कार्य हो उसके लिए आचरण न करना, न करवाना या आचरण करनेवाले को अच्छा न मानना, तो ऐसे गुणयुक्त तीर्थंकर का कहा भी वो नहीं करते तो मैं उनके वेस लूँट लूँ। शास्त्र में इस प्रकार प्ररूपणा की है कि – जो कोई साधु या साध्वी केवल वचन से भी झूठा व्यवहार करे तो उसे गलती सुधारने के लिए सारना, वारणा, चोयणा, प्रतिचोयणा करनी चाहिए, उस प्रकार सारणा, वारणा, चोयणा, परिचोयणा करने के बावजूद भी जो बुजुर्ग के वचन को ठुकराकर आलस कर रहा हो, कहने के मुताबिक वैसे अप्कार्य में से पीछे हठ न करता है उनका वेष ग्रहण करके नीकाल देना चाहिए। उस प्रकार आगम में बताए न्याय से हे गौतम ! उस आचार्य ने जितने में एक शिष्य का वेश (ग्रहण करके) झूँटवा लिया। उतने में बाकी शिष्य हर एक दिशा में भाग गए। उसके बाद हे गौतम ! वो आचार्य जितने में धीरे – धीरे उनके पीछे जाने लगे, लेकिन जल्दी नहीं जाते थे। हे गौतम ! जल्दी चले तो खारी भूमि में से मधुर भूमि में संक्रमण करना पड़े। मधुर भूमि में से खारी भूमि में चलना पड़े। काली भूमि में से पीली भूमि में, पीली भूमि में से काली भूमि में, जल में से स्थल में, स्थल में से जल में, संक्रमण करके जाना पड़े उस कारण से विधि से पाँव की प्रमार्जना करके संक्रमण करना चाहिए। यदि पाँव की प्रमार्जना न की जाए तो बारह साल का प्रायश्चित्त मिले। इस कारण, हे गौतम! वो आचार्य उतावले नहीं चल रहे थे अब किसी समय सूत्र में बताई विधि से स्थान का संक्रमण करते थे तब हे गौतम ! उस आचार्य के पास कईं दिन की क्षुधा से कमजोर बने शरीरवाला, प्रकट दाढ़ा से भयानक यमराज समान भयभीत करते हुए प्रलयकाल की तरह घोर रूपवाला केसरी सिंह आ पहुँचा। महानुभाग गच्छाधिपति ने चिन्तवन किया कि यदि तेजी से उतावले होकर चलूँ तो इस शेर के पंजे में से बच शके, लेकिन नष्ट हो जाना अच्छा है मगर असंयम में काम करना अच्छा नहीं है। ऐसा चिन्तवन करके विधि से वापस आए शिष्य को जिसका वेष लूँट लिया है वो वेश उसे देकर निष्पत्तिकर्म शरीरवाले वो गच्छाधिपति पदापोपगमन अनशन अपनाकर वहाँ खड़े रहे। वो शिष्य भी उसी के अनुसार रहा। अब उस समय अति विशुद्ध अंतःकरणवाले पंचमंगल का स्मरण करते शुभ अध्यवसायपन के योग से वो दोनों को हे गौतम ! सिंह ने मार डाला। इसलिए वो दोनों अंतकृत् केवली बन गए। आँठ तरह के कर्ममल – कलंक रहित वो सिद्ध हुए। अब वो ४९९ साधु उस कर्म के दोष से जिस तरह के दुःख का अहेसास करते थे और फिर से अहेसास करेंगे और अनन्त संसार सागर में परिभ्रमण करेंगे वो सर्व वृत्तान्त काल से भी कहने के लिए कौन समर्थ है ? हे गौतम ! वो ४९९ या जिन्होंने गुणयुक्त महानुभाग गुरु की आज्ञा का उल्लंघन करके आराधना नहीं की वो अनन्त संसारी बने। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] annam cha–jai ete tava samjama kiriyam anupalehimti, tao etesim cheva seyam hohii, jai na karehimti, tao eesim cheva duggai-gamanamanuttaram havejja. Navaram taha vi mama gachchho samappio, gachchhahivai ahayam bhanami. Annam cha– Je titthayarehim bhagavamtehim chhattisam ayariyagune samaitthe tesim tu ahayam ekkamavi naikkamami, jai vi panovaramam bhavejja. Jam cha agame iha paraloga viruddham tam nayarami, na karayami na kajjamanam samanujanami. Tamerisaguna juttassavi jai bhaniyam na karemti tahamimesim vesaggahana uddalemi. Evam cha samae pannatti jaha–je kei sahu va sahuni va vayamettena vi asamjamamanuchitthejja se nam sarejja se nam varejja, se nam choejja padichoejja. Se nam sarijjamte va, varijjamte va, choijjamte va, padichoijjamte va, je nam tam vayanamavamanniya alasayamane i va abhinivitthe i va na taha tti padivajjiya ichchham paumjittanam tatthamo padikkamejja se nam tassa vesaggahanam uddalejja. Evam tu agamuttanaenam goyama java tenayarienam egassa sehassa vesaggahanam uddaliyam tava nam avasese disodisim panatthe. Tahe goyama so ayario saniyam saniyam tesim patthie jaumaraddho, no nam turiyam turiyam. Se bhayavam kimattham turiyam no payai goyama kharae bhumie jo mahuram samkamejja mahurae kharam, kinhae piyam piyao kinham, jalao thalam thalao jalam samkamejja, tenam vihie pae pamajjiya pamajjiya samkameyavvam no pamajjejja tao duvalasa samvachchhariyam pachchhittam bhavejja. Eenamatthenam goyama so ayario na turiyam turiyam gachchhe. Ahannaya suya utta vihie thamdila samkamanam karemanassa nam goyama tassayarissa, agao bahuvasara khuha parigaya sariro viyada dadha karala kayata bhasuro palaya kalamiva ghoraruvo kesari. Muniyam cha tena mahanubhagenam gachchhahivaina jaha–jai duyam gachchhijjai ta chukkijjai imassa. Navaram duyam gachchhamananam asamjamam ta varam sarirovochchheyam na asamjama-pavattanam ti chimtiunam, vihie uvatthiyassa sehassa jamuddaliyam vesaggahanam tam dauna thio nippadikamma payavovagamananasanenam. So vi seho taheva. Ahannaya achchamta visuddhamtakarane pamchamamgalapare suhajjhavasayattae duve vi goyama vavaie tena sihenam, amtagade kevali jae, atthappayara mala kalamka vippamukke siddhe ya. Te puna goyama ekune pamcha sae sahunam takkammadosenam jam dukkhamanubhavamane chitthamti jam chanubhuyam jam chanubhavihimti anamta samsara sagaram paribhamamte tam ko anamtenam pi kalenam bhanium samattho ee te goyama egune pamchasae sahunam. Jehim cha nam tarisa-gunovavetassa nam mahanubhagassa guruno anam aikkamiyam no arahiyam anamtasamsarie jae. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Dusara yaha shishya shayada tapa aura samyama ki kriya ka acharana karemge to usase unaka hi shreya hoga aura yadi nahim karemge to unhem hi anuttara durgati gamana karana parega. Phira bhi mujhe gachchha samarpana hua hai, maim gachchhadhipati hum, mujhe unako sahi rasta dikhana chahie. Aura phira dusari bata yaha dhyana mem rakhani hai ki – tirthamkara bhagavamta ne acharya ke chhattisa guna batae haim usamem se maim eka ka bhi atikramana nahim karumga. Shayada meri jana bhi vaisa karane se chali jaegi to bhi maim aradhaka banumga. Agama mem kaha hai ki yaha loka ya paraloka ke khilapha karya ho usake lie acharana na karana, na karavana ya acharana karanevale ko achchha na manana, to aise gunayukta tirthamkara ka kaha bhi vo nahim karate to maim unake vesa lumta lum. Shastra mem isa prakara prarupana ki hai ki – jo koi sadhu ya sadhvi kevala vachana se bhi jhutha vyavahara kare to use galati sudharane ke lie sarana, varana, choyana, pratichoyana karani chahie, usa prakara sarana, varana, choyana, parichoyana karane ke bavajuda bhi jo bujurga ke vachana ko thukarakara alasa kara raha ho, kahane ke mutabika vaise apkarya mem se pichhe hatha na karata hai unaka vesha grahana karake nikala dena chahie. Usa prakara agama mem batae nyaya se he gautama ! Usa acharya ne jitane mem eka shishya ka vesha (grahana karake) jhumtava liya. Utane mem baki shishya hara eka disha mem bhaga gae. Usake bada he gautama ! Vo acharya jitane mem dhire – dhire unake pichhe jane lage, lekina jaldi nahim jate the. He gautama ! Jaldi chale to khari bhumi mem se madhura bhumi mem samkramana karana pare. Madhura bhumi mem se khari bhumi mem chalana pare. Kali bhumi mem se pili bhumi mem, pili bhumi mem se kali bhumi mem, jala mem se sthala mem, sthala mem se jala mem, samkramana karake jana pare usa karana se vidhi se pamva ki pramarjana karake samkramana karana chahie. Yadi pamva ki pramarjana na ki jae to baraha sala ka prayashchitta mile. Isa karana, he gautama! Vo acharya utavale nahim chala rahe the Aba kisi samaya sutra mem batai vidhi se sthana ka samkramana karate the taba he gautama ! Usa acharya ke pasa kaim dina ki kshudha se kamajora bane shariravala, prakata darha se bhayanaka yamaraja samana bhayabhita karate hue pralayakala ki taraha ghora rupavala kesari simha a pahumcha. Mahanubhaga gachchhadhipati ne chintavana kiya ki yadi teji se utavale hokara chalum to isa shera ke pamje mem se bacha shake, lekina nashta ho jana achchha hai magara asamyama mem kama karana achchha nahim hai. Aisa chintavana karake vidhi se vapasa ae shishya ko jisaka vesha lumta liya hai vo vesha use dekara nishpattikarma shariravale vo gachchhadhipati padapopagamana anashana apanakara vaham khare rahe. Vo shishya bhi usi ke anusara raha. Aba usa samaya ati vishuddha amtahkaranavale pamchamamgala ka smarana karate shubha adhyavasayapana ke yoga se vo donom ko he gautama ! Simha ne mara dala. Isalie vo donom amtakrit kevali bana gae. Amtha taraha ke karmamala – kalamka rahita vo siddha hue. Aba vo 499 sadhu usa karma ke dosha se jisa taraha ke duhkha ka ahesasa karate the aura phira se ahesasa karemge aura ananta samsara sagara mem paribhramana karemge vo sarva vrittanta kala se bhi kahane ke lie kauna samartha hai\? He gautama ! Vo 499 ya jinhomne gunayukta mahanubhaga guru ki ajnya ka ullamghana karake aradhana nahim ki vo ananta samsari bane. |