Sutra Navigation: Mahanishith ( महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1017516 | ||
Scripture Name( English ): | Mahanishith | Translated Scripture Name : | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Translated Chapter : |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 816 | Category : | Chheda-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से भयवं कयरे णं ते पंच सए एक्क विवज्जिए साहूणं जेहिं च णं तारिस गुणोववेयस्स महानुभागस्स गुरुणो आणं अइक्कमिउं नाराहियं गोयमा णं इमाए चेव उसभ चउवीसिगाए अतीताए तेवीसइमाए चउवीसिगाए जाव णं परिनिव्वुडे चउवीसइमे अरहा ताव णं अइक्कंतेणं केवइएणं कालेणं गुणनिप्फन्ने कम्मसेल मुसुमूरणे महायसे, महासत्ते, महानुभागे, सुगहिय नामधेज्जे, वइरे नाम गच्छाहिवई भूए। तस्स णं पंचसयं गच्छं निग्गंथीहिं विना, निग्गंथीहिं समं दो सहस्से य अहेसि। ता गोयमा ताओ निग्गंथीओ अच्चंत परलोग भीरुयाओ सुविसुद्ध निम्मलंतकरणाओ, खंताओ, दंताओ, मुत्ताओ, जिइंदियाओ, अच्चंत भणिरीओ निय सरीरस्सा वि य छक्काय वच्छलाओ जहोवइट्ठ अच्चंत घोर वीर तव चरण सोसिय सरीराओ जहा णं तित्थयरेणं पन्नवियं तहा चेव अदीन मनसाओ माया मय अहंकार ममाकार रति हास खेड्डु कंदप्प नाहवाय विप्पमुक्काओ तस्सायरियस्स सगासे सामन्नमनुचरंति। ते य साहुणो सव्वे वि गोयमा न तारिसे मनागा। अहन्नया गोयमा ते साहुणो तं आयरियं भणंति जहा– जइ णं भयवं तुमं आणवेहि, ता णं अम्हेहिं तित्थयरजत्तं करिय चंदप्पह सामियं वंदिय धम्मचक्कं गंतूणमागच्छामो ताहे गोयमा अदीनमनसा अणुत्तावल गंभीर महुराए भारतीए भणियं तेणायरिएणं जहा इच्छायारेणं न कप्पइ तित्थजत्तं गंतुं सुविहियाणं ता जाव णं बोलेइ जत्तं ताव णं अहं तुम्हे चंदप्पहं वंदावेहामि। अन्नं च–जत्ताए गएहिं असंजमे पडिवज्जइ। एएणं कारणेणं तित्थ-यत्ता पडिसेहिज्जइ। तओ तेहिं भणियं जहा भयवं केरिसो उण तित्थयत्ताए गच्छमाणाणं असंजमो भवइ सो पुन इच्छायारेणं बिइज्ज वारं एरिसं उल्लावेज्जा बहुजनेनं वाउलगो भण्णिहिसि। ताहे गोयमा चिंतियं तेन आयरिएणं जहा णं ममं वइक्कमिय निच्छयओ एए गच्छिहिंति, तेणं तु मए समयं चडुत्तरेहिं वयंति अहन्नया सुबहुं मनसा संधारेऊणं चेव भणियं तेण आयरिएणं, जहा णं– तुब्भे किंचि वि सुत्तत्थं वियाणह च्चिय। ता जारिसं तित्थयत्ताए गच्छमाणाणं असंजमं भवइ तारिसं सयमेव वियाणेह। किं एत्थ बहुपलविएणं अन्नं च–विदियं तुम्हेहिं पि संसारसहावं जीवाइ-पयत्थ-तत्तं च। अहन्नया बहु उवाएहिं णं विणिवारिंतस्स वि तस्सायरियस्स गए चेव ते साहुणो णं कुद्धेणं कयंतेणं पेरिए तित्थयत्ताए, तेसिं च गच्छमाणाणं कत्थइ अणेसणं, कत्थइ हरिय काय संघट्टणं, कत्थइ बीयक्कमणं, कत्थइ पिवीलियादीणं तसाणं संघटण परिताव-णोद्दवणाइ संभवं, कत्थइ बइट्ठपडिक्कमणं, कत्थइ न कीरए चेव चाउक्कालियं सज्झायं, कत्थइ न संपाडेज्जा मत्त-भंडोवगरणस्स विहीए उभयकालं पेह पमज्जण पडिलेहण पक्खोडणं। किं बहुना गोयमा केत्तियं भण्णिहिई। अट्ठारसण्हं सीलंग सहस्साणं सत्तरस विहस्स णं संजमस्स दुवालसविहस्स णं सब्भंतर-बाहिरस्स तवस्स जाव णं खंताइ अहिंसालक्खणस्सेव य दसविहस्सानगार-धम्मस्स। जत्थेक्केक्कपयं चेव सुबहुएणं पि कालेणं थिर परिचिएण दुवालसंग महासुयक्खंधेणं बहु भंग सय संघत्तणाए दुक्खं निरइयारं परिवालिऊणं जे, एयं च सव्वं जहा–भणियं निरइयारमनुट्ठेयं ति। एवं संसरिऊण चिंतियं तेण गच्छाहिवइणा जहा णं मे विप्परोक्खेणं ते दुट्ठ सीसे मज्झं अणाभोग पच्चएणं सबहुं असंजमं काहिंति, तं च सव्वं मे मच्छंतियं होही जओ णं हं तेसिं गुरू, ता हं तेसिं पट्ठीए गंतूणं ते पडिजागरामि, जेणाहमेत्थ पए पाय-च्छित्तेणं नो सबंज्झेज्ज त्ति। वियप्पिऊणं गओ सो आयरिओ तेसिं पट्ठीए जाव णं दिट्ठो तेणं असमंजसेणं गच्छमाणे। ताहे गोयमा सुमहुर मंजुलालावेणं भणियं तेणं गच्छाहिवइणा। जहा– भो भो उत्तमकुल निम्मल वंस विभूसणा, अमुग पमुगाइ महासत्ता, साहू उप्पहपडिवन्नाणं पंच महव्वया हिट्ठिय तणूणं महाभागाणं साहु साहुणीणं सत्तावीसं सहस्साइं थंडिलाणं सव्वदंसीहिं पन्नत्ताइं। ते य सुउवउत्तेहिं विसोहिज्जंति, न उणं अणोवउत्तेहिं। ता किमेयं सुन्नासुन्नीए अणोवउ-त्तेहिं गम्मइ इच्छायारेणं उवओगं देह। अन्नं च–इणमो सुत्तत्थं किं तुम्हाणं विसुमरियं भवेज्जा जं सारं सव्व परम तत्ताणं जहा एगे बेइंदिए पाणी एगं सयमेव हत्थेण वा, पाएण वा, अन्नयरेण वा सलागाइ अहिगरण भूओवगरण जाएणं जे णं केई संघट्टेज्जा, संघट्टावेज्जा वा, एवं संघट्टियं वा परेहिं समनुजाणेज्जा, से णं तं कम्मं जया उदिन्नं भवेज्जा तया जहा उच्छुखंडाइं जंते तहा निप्पी लिज्जमाणा छम्मासेणं खवेज्जा, एवं गाढे दुवालसेहिं संवच्छरेहिं तं कम्मं वेदेज्जा। एवं अगाढपरियावणे वास सहस्सं, गाढ परियावणे दसवाससहस्से, एवं अगाढकिलावणे वासलक्खं, गाढकिलावणे दसवासलक्खाइं उद्दवणे वासकोडी। एवं तेइंदियाईसुं पि नेयं। ता एवं च वियाणमाणा मा तुम्हे मुज्झह त्ति। एवं च गोयमा सुत्तानुसारेणं सारयंतस्सावि तस्सायरियस्स ते महापावकम्मे गमगमहल्ल-प्फलेणं हल्लोहल्लीभूएणं तं आयरियाणं वयणं असेसपावकम्मट्ठदुक्खविमोयगं न बहु मन्नंति। ताहे गोयमा मुणियं तेणायरिएणं जहा–निच्छयओ उम्मग्गपट्ठिए सव्वपगारेहिं चेव इमे पावमई दुट्ठसीसे। ता किमट्ठमहमिमेसिं पट्ठीए लल्ली वागरणं करेमाणो अणुगच्छमाणो य सुक्खाए गयजलाए णदीए उबुज्झं एए गच्छंतु दसदुवारेहिं, अहयं तु तावाय हियमेवाणुचिट्ठेमो। किं मज्झं परकएणं सुमहंतेणावि पुन्न पब्भारेणं थेवमवि किंची परित्ताणं भवेज्जा। सपरक्कमेणं चेव मे आगमुत्त तव संजमानुट्ठाणेणं भवोयही तरेयव्वो। एस उणं तित्थयराएसो। जहा– | ||
Sutra Meaning : | हे भगवंत ! एक रहित ऐसे ५०० साधु जिन्होंने वैसे गुणयुक्त महानुभाव गुरु महाराज की आज्ञा का उल्लंघन करके आराधक न हुए, वे कौन थे ? हे गौतम ! यह ऋषभदेव परमात्मा की चोवीसी के पहले हुई तेईस चौवीसी और उस चौवीसी के चौवीसवे तीर्थंकर निर्वाण पाने के बाद कुछ काल गुण से पैदा हुए कर्म समान पर्वत का चूरा करनेवाला, महायशवाले, महासत्त्ववाले महानुभाव सुबह में नाम ग्रहण करने लायक ‘‘वईर’’ नाम के गच्छाधिपति बने, साध्वी रहित उनका पाँच सौ शिष्य के परिवारवाला गच्छ था। साध्वी के साथ गिना जाए तो दो हजार की संख्या थी। हे गौतम ! वो साध्वी अति परलोक भीरु थी। अति निर्मल अंतःकरणवाली, क्षमा धारण करनेवाली, विनयवती, इन्द्रिय का दमन करनेवाली, ममत्व रहित, अति अभ्यास करनेवाले, अपने शरीर से भी ज्यादा छ काय के जीव पर वात्सल्य करनेवाली, भगवंत ने शास्त्र में बताने के अनुसार अति घोर वीर तप और चरण का सेवन करके शोषित शरीरवाली जिस प्रकार तीर्थंकर भगवंत ने प्ररूपेल है उसी प्रकार दीन मन से, माया, मद, अहंकार, ममत्व, रति, हँसी, क्रीड़ा, कंदर्प, नाथवादरहित, स्वामीभाव आदि दोष से मुक्त साध्वी आचार्य के पास श्रामण्य का अनुपालन करती थी। हे गौतम ! वो साधु थे वैसे मनोहर न थे, हे गौतम ! किसी समय वो साधु आचार्य को कहने लगे कि हे भगवंत ! यदि आप आज्ञा दो तो हम तीर्थयात्रा करके चन्द्रप्रभुस्वामी के धर्मचक्र को वंदन करके वापस आए। तब हे गौतम ! मन में दिनता लाए बिना, उतावले हुए बिना गम्भीर मधुर वाणी से उन आचार्य ने उन्हें प्रत्युत्तर दिया कि – शिष्य को ‘इच्छाकारेण’ ऐसे सुन्दर शब्द का प्रयोग करके ‘सुविहितो की तीर्थयात्रा के लिए जाना न कल्पे’ तो जब वापस आएंगे तब मैं तुम्हें यात्रा और चन्द्रप्रभु स्वामी को वंदन करवाऊंगा। दूसरी बात यह कि यात्रा करने में असंयम करने का मन होता है। इस कारण से तीर्थयात्रा का निषेध किया जाता है। तब शिष्य ने पूछा कि तीर्थयात्रा जानेवाले साधु को किस तरह असंयम होता है ? तब फिर ‘इच्छाकारेण’ – ऐसा दूसरी बार बुलाकर काफी लोगों के बीच व्याकुल होकर आक्रोश से उत्तर देंगे, लेकिन हे गौतम ! उस समय आचार्य ने चिन्तवन किया कि मेरा वचन उल्लंघन करके भी यकीनन वह शिष्य जाएंगे ही। उस कारण से ही मीठे मीठे वचन बोलते हैं। अब किसी दिन मन से बहुत सोचकर उस आचार्य ने कहा कि तुम सहज भी सूत्र अर्थ जानते हो क्या ? यदि जानते हो तो जिस तरह के असंयम तीर्थ यात्रामें होता है, उस तरह के असंयम खुद जान सकते हैं। इस विषय में ज्यादा कहने से क्या फायदा ? दूसरा तुमने संसार का स्वरूप, जीवादिक चीज उसका यथायोग्य तत्त्व पहचाना है। अब किसी दिन कईं उपाय समजाए। यात्रा जाते रोके तो भी आचार्य को छोड़कर क्रोध समान यम के साथ तीर्थयात्रा के लिए निकल पड़े। वो जाते – जाते कहीं आहार गवेषणा का दोष, किसी जगह हरी वनस्पतिकाय का संघट्ट करते, बीज काय चाँपते थे। कोई चींटी आदि विकलेन्द्रिय जीव, त्रसकाय के संघट्टन, परितापन, उपद्रव से होनेवाले असंयम दोष लगाते थे। बैठे – बैठे (भी) प्रतिक्रमण न करते थे। किसी बड़े पात्र छोटे पात्र उपकरण आदि दोनों काल विधिवत् प्रेक्षण प्रमार्जन नहीं कर सकते थे। पड़िलेहण करते वायुकाय के जीव की विराधना हो वैसे वस्त्र सूखाते थे कितना कहना ? हे गौतम ! उसका वर्णन कितना करे ? अठ्ठारह हजार शीलांग, सत्तरह तरह के संयम बाह्य और अभ्यंतर बारह प्रकार के तप, क्षमा, आदि और अहिंसा लक्षण युक्त दश प्रकार के श्रमण धर्म को आदि के एक एक पद को कईं बार लम्बे अरसे तक पढ़कर याद करके दोनों अंग रूप महाश्रुतस्कंध जिन्होंने स्थिर – परिचित किए हैं। कईं भाँगाओं और सैकड़ों जोड़ाण दुःख से करके जिन्होंने सिखे हैं, निरतिचार चारित्रधर्म का पालन किया है। यह सब जिस प्रकार कहा है वो निरतिचारपन से पालन करते थे। वो सब सुनकर उस गच्छाधिपति ने सोचा कि, मेरे परोक्ष में, गेरमोजुदगी में उस दुष्ट शीलवाले शिष्य अज्ञानपन की कारण से अति असंयम सेवन करेंगे वो सर्व असंयम मुझे लगेंगे, क्योंकि मैं उनका गुरु हूँ। इसलिए मैं उनके पीछे जाकर उन्हें प्रेरणा देता हूँ कि जिससे इस असंयम के विषय में मैं प्रायश्चित्त का अधिकारी न बनूँ। ऐसा विकल्प करके वो आचार्य उनके पीछे जितने में गए उतने में तो उन्हें असंयम से और बूरी तरह अविधि से जाते देखा। तब हे गौतम ! अति सुन्दर, मधुर शब्द के आलापपूर्वक गच्छाधिपति ने कहा कि – अरे, उत्तम कुल और निर्मल वंश के आभूषण समान कुछ – कुछ महासत्त्ववाले साधु ! तुमने उन्मार्ग पाया है, पाँच महाव्रत अंगीकार किए गए देहवाले महाभागशाली साधु – साध्वी के लिए सत्ताईस हजार स्थंड़ील स्थान सर्वज्ञ भगवंत ने प्ररूपे हैं। श्रुत के उपयोगवाले को उसकी विशुद्धि जाँचनी चाहिए, लेकिन अन्य में उपयोगवाला न बनना चाहिए। तो तुम शून्याशून्य चित्त से अनुपयोग से क्यों चल रहे हो ? तुम्हारी ईच्छा से तुम उसमें उपयोग दो। दूसरा यह कि तुम यह सूत्र और उसका अर्थ भूल गए हो क्या ? सर्व परम तत्त्व के परमसारभूत तरह का यह सूत्र है। एक साधु एक दो इन्द्रियवाले जानवर को खुद ही हाथ से या पाँव से या दूसरों के पास या शलाका आदि अधिकरण से किसी भी पदार्थभूत उपकरण से संघट्टा करे, करवाए या संघट्टा करनेवाले को सही माने, उससे बाँधा गया कर्म जब उदय में आए तब जैसे यंत्र में इख पीसते हैं वैसे उस कर्म का क्षय हो, यदि गहरे परिणाम से कर्म बाँधा हो तो पापकर्म बारह साल तक भुगते तब वो कर्म खपाए, गहरा परितापन करे तो दश हजार साल तक, उस प्रकार आगाढ़ कीलामणा करे तो दश लाख साल के बाद वो पाप कर्म खपाए और उपद्रव करे यानि मौत के अलावा सारे दुःख दे। वैसा करने से करोड़ साल दुःख भुगतकर पाप – कर्म क्षय कर सकते हैं। उसी प्रकार तीन इन्द्रियवाले जीव के बारे में भी समझना। तुम इतना समझ सकते हो इसलिए घबराना मत। हे गौतम ! उसी प्रकार सूत्रानुसार आचार्य सारणा करने के बावजूद भी महा पापकर्मी, चलने की व्याकुलता में एक साथ सब उतावले होकर वो सर्व पाप कर्म ऐसे आँठ कर्म के दुःख से मुक्त करनेवाला ऐसा आचार्य का वचन बहुमान्य नहीं करते। तब हे गौतम ! वो आचार्य समज गए की जरुर यह शिष्य उन्मार्ग में प्रयाण कर रहे हैं, सर्व तरह से पापजातिवाले और मेरे दुष्ट शिष्य हैं, तो अब मुझे उनके पीछे क्यों खुशामत के शब्द बोलते – बोलते अनुसरण करूँ ? यह तो जल रहित सुखी नदी के प्रवाह में बहना जैसा है। यह सब भले ही दश द्वार से चले जाए, मैं तो अब मेरे आत्म के हित की साधना करूँगा। दूसरे किए हुए काफी बड़े पुण्य के समूह से मेरा अल्प भी रक्षण होगा क्या ? आगम में बताए तप और अनुष्ठान के द्वारा अपने पराक्रम से ही भवसागर पार कर सकेंगे। तीर्थंकर भगवंत का यही आदेश है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se bhayavam kayare nam te pamcha sae ekka vivajjie sahunam jehim cha nam tarisa gunovaveyassa mahanubhagassa guruno anam aikkamium narahiyam goyama nam imae cheva usabha chauvisigae atitae tevisaimae chauvisigae java nam parinivvude chauvisaime araha tava nam aikkamtenam kevaienam kalenam gunanipphanne kammasela musumurane mahayase, mahasatte, mahanubhage, sugahiya namadhejje, vaire nama gachchhahivai bhue. Tassa nam pamchasayam gachchham niggamthihim vina, niggamthihim samam do sahasse ya ahesi. Ta goyama tao niggamthio achchamta paraloga bhiruyao suvisuddha nimmalamtakaranao, khamtao, damtao, muttao, jiimdiyao, achchamta bhanirio niya sarirassa vi ya chhakkaya vachchhalao jahovaittha achchamta ghora vira tava charana sosiya sarirao jaha nam titthayarenam pannaviyam taha cheva adina manasao maya maya ahamkara mamakara rati hasa kheddu kamdappa nahavaya vippamukkao tassayariyassa sagase samannamanucharamti. Te ya sahuno savve vi goyama na tarise managa. Ahannaya goyama te sahuno tam ayariyam bhanamti jaha– Jai nam bhayavam tumam anavehi, ta nam amhehim titthayarajattam kariya chamdappaha samiyam vamdiya dhammachakkam gamtunamagachchhamo tahe goyama adinamanasa anuttavala gambhira mahurae bharatie bhaniyam tenayarienam jaha ichchhayarenam na kappai titthajattam gamtum suvihiyanam ta java nam bolei jattam tava nam aham tumhe chamdappaham vamdavehami. Annam cha–jattae gaehim asamjame padivajjai. Eenam karanenam tittha-yatta padisehijjai. Tao tehim bhaniyam jaha bhayavam keriso una titthayattae gachchhamananam asamjamo bhavai so puna ichchhayarenam biijja varam erisam ullavejja bahujanenam vaulago bhannihisi. Tahe goyama chimtiyam tena ayarienam jaha nam mamam vaikkamiya nichchhayao ee gachchhihimti, tenam tu mae samayam chaduttarehim vayamti Ahannaya subahum manasa samdhareunam cheva bhaniyam tena ayarienam, jaha nam– Tubbhe kimchi vi suttattham viyanaha chchiya. Ta jarisam titthayattae gachchhamananam asamjamam bhavai tarisam sayameva viyaneha. Kim ettha bahupalavienam annam cha–vidiyam tumhehim pi samsarasahavam jivai-payattha-tattam cha. Ahannaya bahu uvaehim nam vinivarimtassa vi tassayariyassa gae cheva te sahuno nam kuddhenam kayamtenam perie titthayattae, tesim cha gachchhamananam katthai anesanam, katthai hariya kaya samghattanam, katthai biyakkamanam, katthai piviliyadinam tasanam samghatana paritava-noddavanai sambhavam, katthai baitthapadikkamanam, katthai na kirae cheva chaukkaliyam sajjhayam, katthai na sampadejja matta-bhamdovagaranassa vihie ubhayakalam peha pamajjana padilehana pakkhodanam. Kim bahuna goyama kettiyam bhannihii. Attharasanham silamga sahassanam sattarasa vihassa nam samjamassa duvalasavihassa nam sabbhamtara-bahirassa tavassa java nam khamtai ahimsalakkhanasseva ya dasavihassanagara-dhammassa. Jatthekkekkapayam cheva subahuenam pi kalenam thira parichiena duvalasamga mahasuyakkhamdhenam bahu bhamga saya samghattanae dukkham niraiyaram parivaliunam je, eyam cha savvam jaha–bhaniyam niraiyaramanuttheyam ti. Evam samsariuna chimtiyam tena gachchhahivaina jaha nam me vipparokkhenam te duttha sise majjham anabhoga pachchaenam sabahum asamjamam kahimti, tam cha savvam me machchhamtiyam hohi jao nam ham tesim guru, ta ham tesim patthie gamtunam te padijagarami, jenahamettha pae paya-chchhittenam no sabamjjhejja tti. Viyappiunam gao so ayario tesim patthie java nam dittho tenam asamamjasenam gachchhamane. Tahe goyama sumahura mamjulalavenam bhaniyam tenam gachchhahivaina. Jaha– bho bho uttamakula nimmala vamsa vibhusana, amuga pamugai mahasatta, sahu uppahapadivannanam pamcha mahavvaya hitthiya tanunam mahabhaganam sahu sahuninam sattavisam sahassaim thamdilanam savvadamsihim pannattaim. Te ya suuvauttehim visohijjamti, na unam anovauttehim. Ta kimeyam sunnasunnie anovau-ttehim gammai ichchhayarenam uvaogam deha. Annam cha–inamo suttattham kim tumhanam visumariyam bhavejja jam saram savva parama tattanam jaha ege beimdie pani egam sayameva hatthena va, paena va, annayarena va salagai ahigarana bhuovagarana jaenam je nam kei samghattejja, samghattavejja va, evam samghattiyam va parehim samanujanejja, se nam tam kammam jaya udinnam bhavejja taya jaha uchchhukhamdaim jamte taha nippi lijjamana chhammasenam khavejja, evam gadhe duvalasehim samvachchharehim tam kammam vedejja. Evam agadhapariyavane vasa sahassam, gadha pariyavane dasavasasahasse, evam agadhakilavane vasalakkham, gadhakilavane dasavasalakkhaim uddavane vasakodi. Evam teimdiyaisum pi neyam. Ta evam cha viyanamana ma tumhe mujjhaha tti. Evam cha goyama suttanusarenam sarayamtassavi tassayariyassa te mahapavakamme gamagamahalla-pphalenam hallohallibhuenam tam ayariyanam vayanam asesapavakammatthadukkhavimoyagam na bahu mannamti. Tahe goyama muniyam tenayarienam jaha–nichchhayao ummaggapatthie savvapagarehim cheva ime pavamai dutthasise. Ta kimatthamahamimesim patthie lalli vagaranam karemano anugachchhamano ya sukkhae gayajalae nadie ubujjham ee gachchhamtu dasaduvarehim, ahayam tu tavaya hiyamevanuchitthemo. Kim majjham parakaenam sumahamtenavi punna pabbharenam thevamavi kimchi parittanam bhavejja. Saparakkamenam cheva me agamutta tava samjamanutthanenam bhavoyahi tareyavvo. Esa unam titthayaraeso. Jaha– | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He bhagavamta ! Eka rahita aise 500 sadhu jinhomne vaise gunayukta mahanubhava guru maharaja ki ajnya ka ullamghana karake aradhaka na hue, ve kauna the\? He gautama ! Yaha rishabhadeva paramatma ki chovisi ke pahale hui teisa chauvisi aura usa chauvisi ke chauvisave tirthamkara nirvana pane ke bada kuchha kala guna se paida hue karma samana parvata ka chura karanevala, mahayashavale, mahasattvavale mahanubhava subaha mem nama grahana karane layaka ‘‘vaira’’ nama ke gachchhadhipati bane, sadhvi rahita unaka pamcha sau shishya ke parivaravala gachchha tha. Sadhvi ke satha gina jae to do hajara ki samkhya thi. He gautama ! Vo sadhvi ati paraloka bhiru thi. Ati nirmala amtahkaranavali, kshama dharana karanevali, vinayavati, indriya ka damana karanevali, mamatva rahita, ati abhyasa karanevale, apane sharira se bhi jyada chha kaya ke jiva para vatsalya karanevali, bhagavamta ne shastra mem batane ke anusara ati ghora vira tapa aura charana ka sevana karake shoshita shariravali jisa prakara tirthamkara bhagavamta ne prarupela hai usi prakara dina mana se, maya, mada, ahamkara, mamatva, rati, hamsi, krira, kamdarpa, nathavadarahita, svamibhava adi dosha se mukta sadhvi acharya ke pasa shramanya ka anupalana karati thi. He gautama ! Vo sadhu the vaise manohara na the, he gautama ! Kisi samaya vo sadhu acharya ko kahane lage ki he bhagavamta ! Yadi apa ajnya do to hama tirthayatra karake chandraprabhusvami ke dharmachakra ko vamdana karake vapasa ae. Taba he gautama ! Mana mem dinata lae bina, utavale hue bina gambhira madhura vani se una acharya ne unhem pratyuttara diya ki – shishya ko ‘ichchhakarena’ aise sundara shabda ka prayoga karake ‘suvihito ki tirthayatra ke lie jana na kalpe’ to jaba vapasa aemge taba maim tumhem yatra aura chandraprabhu svami ko vamdana karavaumga. Dusari bata yaha ki yatra karane mem asamyama karane ka mana hota hai. Isa karana se tirthayatra ka nishedha kiya jata hai. Taba shishya ne puchha ki tirthayatra janevale sadhu ko kisa taraha asamyama hota hai\? Taba phira ‘ichchhakarena’ – aisa dusari bara bulakara kaphi logom ke bicha vyakula hokara akrosha se uttara demge, lekina he gautama ! Usa samaya acharya ne chintavana kiya ki mera vachana ullamghana karake bhi yakinana vaha shishya jaemge hi. Usa karana se hi mithe mithe vachana bolate haim. Aba kisi dina mana se bahuta sochakara usa acharya ne kaha ki tuma sahaja bhi sutra artha janate ho kya\? Yadi janate ho to jisa taraha ke asamyama tirtha yatramem hota hai, usa taraha ke asamyama khuda jana sakate haim. Isa vishaya mem jyada kahane se kya phayada\? Dusara tumane samsara ka svarupa, jivadika chija usaka yathayogya tattva pahachana hai. Aba kisi dina kaim upaya samajae. Yatra jate roke to bhi acharya ko chhorakara krodha samana yama ke satha tirthayatra ke lie nikala pare. Vo jate – jate kahim ahara gaveshana ka dosha, kisi jagaha hari vanaspatikaya ka samghatta karate, bija kaya champate the. Koi chimti adi vikalendriya jiva, trasakaya ke samghattana, paritapana, upadrava se honevale asamyama dosha lagate the. Baithe – baithe (bhi) pratikramana na karate the. Kisi bare patra chhote patra upakarana adi donom kala vidhivat prekshana pramarjana nahim kara sakate the. Parilehana karate vayukaya ke jiva ki viradhana ho vaise vastra sukhate the kitana kahana\? He gautama ! Usaka varnana kitana kare\? Aththaraha hajara shilamga, sattaraha taraha ke samyama bahya aura abhyamtara baraha prakara ke tapa, kshama, adi aura ahimsa lakshana yukta dasha prakara ke shramana dharma ko adi ke eka eka pada ko kaim bara lambe arase taka parhakara yada karake donom amga rupa mahashrutaskamdha jinhomne sthira – parichita kie haim. Kaim bhamgaom aura saikarom jorana duhkha se karake jinhomne sikhe haim, niratichara charitradharma ka palana kiya hai. Yaha saba jisa prakara kaha hai vo niraticharapana se palana karate the. Vo saba sunakara usa gachchhadhipati ne socha ki, mere paroksha mem, geramojudagi mem usa dushta shilavale shishya ajnyanapana ki karana se ati asamyama sevana karemge vo sarva asamyama mujhe lagemge, kyomki maim unaka guru hum. Isalie maim unake pichhe jakara unhem prerana deta hum ki jisase isa asamyama ke vishaya mem maim prayashchitta ka adhikari na banum. Aisa vikalpa karake vo acharya unake pichhe jitane mem gae utane mem to unhem asamyama se aura buri taraha avidhi se jate dekha. Taba he gautama ! Ati sundara, madhura shabda ke alapapurvaka gachchhadhipati ne kaha ki – are, uttama kula aura nirmala vamsha ke abhushana samana kuchha – kuchha mahasattvavale sadhu ! Tumane unmarga paya hai, pamcha mahavrata amgikara kie gae dehavale mahabhagashali sadhu – sadhvi ke lie sattaisa hajara sthamrila sthana sarvajnya bhagavamta ne prarupe haim. Shruta ke upayogavale ko usaki vishuddhi jamchani chahie, lekina anya mem upayogavala na banana chahie. To tuma shunyashunya chitta se anupayoga se kyom chala rahe ho\? Tumhari ichchha se tuma usamem upayoga do. Dusara yaha ki tuma yaha sutra aura usaka artha bhula gae ho kya\? Sarva parama tattva ke paramasarabhuta taraha ka yaha sutra hai. Eka sadhu eka do indriyavale janavara ko khuda hi hatha se ya pamva se ya dusarom ke pasa ya shalaka adi adhikarana se kisi bhi padarthabhuta upakarana se samghatta kare, karavae ya samghatta karanevale ko sahi mane, usase bamdha gaya karma jaba udaya mem ae taba jaise yamtra mem ikha pisate haim vaise usa karma ka kshaya ho, yadi gahare parinama se karma bamdha ho to papakarma baraha sala taka bhugate taba vo karma khapae, gahara paritapana kare to dasha hajara sala taka, usa prakara agarha kilamana kare to dasha lakha sala ke bada vo papa karma khapae aura upadrava kare yani mauta ke alava sare duhkha de. Vaisa karane se karora sala duhkha bhugatakara papa – karma kshaya kara sakate haim. Usi prakara tina indriyavale jiva ke bare mem bhi samajhana. Tuma itana samajha sakate ho isalie ghabarana mata. He gautama ! Usi prakara sutranusara acharya sarana karane ke bavajuda bhi maha papakarmi, chalane ki vyakulata mem eka satha saba utavale hokara vo sarva papa karma aise amtha karma ke duhkha se mukta karanevala aisa acharya ka vachana bahumanya nahim karate. Taba he gautama ! Vo acharya samaja gae ki jarura yaha shishya unmarga mem prayana kara rahe haim, sarva taraha se papajativale aura mere dushta shishya haim, to aba mujhe unake pichhe kyom khushamata ke shabda bolate – bolate anusarana karum\? Yaha to jala rahita sukhi nadi ke pravaha mem bahana jaisa hai. Yaha saba bhale hi dasha dvara se chale jae, maim to aba mere atma ke hita ki sadhana karumga. Dusare kie hue kaphi bare punya ke samuha se mera alpa bhi rakshana hoga kya\? Agama mem batae tapa aura anushthana ke dvara apane parakrama se hi bhavasagara para kara sakemge. Tirthamkara bhagavamta ka yahi adesha hai. |