Sutra Navigation: Mahanishith ( महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1017378 | ||
Scripture Name( English ): | Mahanishith | Translated Scripture Name : | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-४ कुशील संसर्ग |
Translated Chapter : |
अध्ययन-४ कुशील संसर्ग |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 678 | Category : | Chheda-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से भयवं किं भव्वे परमाहम्मियासुरेसुं समुप्पज्जइ गोयमा जे केई घन-राग-दोस-मोह-मिच्छत्तो-दएणं सुववसियं पि परम-हिओवएसं अवमन्नेत्ताणं दुवालसंगं च सुय-नाणमप्पमाणी करीअ अयाणित्ता य समय-सब्भावं अनायारं पसं-सिया णं तमेव उच्छप्पेज्जा जहा सुमइणा उच्छप्पियं। न भवंति एए कुसीले साहुणो, अहा णं एए वि कुसीले ता एत्थं जगे न कोई सुसीलो अत्थि, निच्छियं मए एतेहिं समं पव्वज्जा कायव्वा तहा जारिसो तं निबुद्धीओ तारिसो सो वि तित्थयरो त्ति एवं उच्चारेमाणेणं से णं गोयमा महंतंपि तवमनुट्ठेमाणे परमाहम्मियासुरेसुं उववज्जेज्जा। से भयवं परमाहम्मिया सुरदेवाणं उव्वट्टे समाणे से सुमती कहिं उववज्जेज्जा गोयमा तेणं मंद-भागेणं अनायार-पसंसुच्छप्पणं-करेमाणेणं सम्मग्ग-पणासणं अभिनंदियं तक्कम्मदोसेणं- अनंत -संसारिय-त्तणमज्जियंतो केत्तिए उववाए तस्स साहेज्जा जस्स णं अनेग-पोग्गल-परियट्टेसु वि नत्थि चउगइ-संसाराओ अवसाणं ति, तहा वि संखेवओ सुणसु गोयमा इणमेव जंबुद्दीवं दीवं परिक्खिविऊणं ठिए जे एस लवणजलही एयस्स णं जं ठामं सिंधू महानदी पविट्ठा, तप्पए-साओ दाहिणेणं दिसा-भागेणं पणपन्नाए जोयणेसुं वेइयाए मज्झंतरं अत्थि पडिसंताव-दायगं नाम अद्धतेरस-जोयण-पमाणं हत्थि-कुंभायारं थलं। तस्स य लवण-जलोवरेणं अद्धुट्ठ-जोयणाणी उस्सेहो। तहिं च णं अच्चंत-घोर- तिमिसंध-याराओ घडियालग-संठाणाओ सीयालीसं गुहाओ। तासुं च णं जुगं जुगेणं निरंतरे जलयारीणो मनुया परिवसंति। ते य वज्ज-रिसभ-णाराय-संघयणे महा-बल-परक्कमे अद्धतेरस-रयणीपमाणेणं संखेज्ज-वासाऊ महु-मज्ज-मंसप्पिए सहावओ इत्थिलोले परम-दुव्वन्न-सुउमाल-अनिट्ठ-खर -फरुसिय-तणू मायंगवइ-कयमुहे सीह-घोर-दिट्ठी-कयंत-भीसणे अदाविय पट्ठी असणि व्व निट्ठुर-पहारी दप्पुद्धरे य भवंति। तेसिं ति जाओ अंतरंड-गोलियाओ ताओ गहाय चमरीणं संतिएहिं सेय-पुंछवालेहिं गुंथिऊणं जे केइ उभय-कन्नेसुं निबंधिऊण महग्घु-त्तम-जच्च-रयणत्थी सागरमनुपविसेज्जा। से णं जल-हत्थि-महिस-गोहिग-मयर-महामच्छ-तंतु-सुंसुमार-पभितीहिं दुट्ठ-सावतेहिं अभेसिए चेव सव्वं पि सागर-जलं आहिंडिऊण जहिच्छाए जच्च-रयण-संगहं करिय अहय-सरीरे आगच्छे, ताणं च अंतरंडगोलियाणं संबंधेण ते वराए गोयमा अणोवमं सुघोरं दारुणं दुक्खं पुव्वज्जिय रोद्द-कम्म-वसगा अणुभवंति। से भयवं केणं अट्ठेणं गोयमा तेसिं जीवमाणाणं कोस-मज्झे ताओ गोलियाओ गहेउं जे जया उण ते घिप्पंति, तया बहुविहाहिं णियंतणाहिं महया साहसेणं सन्नद्ध-बद्ध-करवाल-कुंत-चक्काइ-पहरणाडोवेहिं बहु-सूर-धीर-पुरिसेहिं बुद्धीपुव्वगेणं सजविय-डोलाए घेप्पंति। तेसिं च घेप्पमाणाणं जाइं सारीर-माणसाइं दुक्खाइं भवंति, ताइं सव्वेसुं नारय-दुक्खेसुं जइ परं उवमेज्जा से भयवं को उण ताओ अंतरंड-गोलियाओ गेण्हेज्जा गोयमा तत्थेव लवण-समुद्दे अत्थि रयण-दीवं नाम अंतर-दीवं। तस्सेव पडिसंताव-दायगाओ थलाओ एगतीसाए जोयण-सएहिं। तं निवासिणो मनुया भवंति। भयवं कयरेणं पओगेणं खेत्त-सभाव-सिद्ध-पुव्वपुरिस-सिद्धेणं च विहाणेणं से भयवं कयरे उ न से पुव्व पुरिस सिद्धे विही तेसिं ति गोयमा तहियं रयण दीवे अत्थि वीसं एगूणवीसं अट्ठारस दसट्ठ सत्त धणू पमाणाइं घरट्टसंठाणाइं वर वइर सिला संपुडाइं, ताइं च विघाडेऊणं ते रयणदीवनिवासिणो मनुया पुव्व सिद्ध खेत्त सहाव सिद्धेणं चेव जोगेणं पभूय मच्छिया महूए अब्भंतरओ अच्चंत लेवाडाइं काऊणं तओ तेसिं पक्क मंस खंडाणि बहूणि जच्च महु मज्ज भंडगाणि पक्खिवंति। तओ एयाइं करिय सुरुंद दीह महद्दुम कट्ठेहिं आरुंभित्ताणं सुसाउ पोराण मज्ज मच्छिगा महूओ य पडिपुन्ने बहूए लाउगे गहाय पडिसंतावदायग थलमागच्छंति। जाव णं तत्थागए समाणे ते गुहावासिणो मनुया पेच्छंति, ताव णं तेसिं रयणदीवग णिवासिमनुयाणं वहाय पडिधावंति। तओ ते तेसिं य महुपडिपुन्नं लाउगं पयच्छिऊणं अब्भत्थ पओगेणं तं कट्ठ-जाणं जइणयर-वेगं दुवं खेविऊणं रयणद्दीवाभिमुहं वच्चंति। इयरे य तं महुमासादियं पुणो सुट्ठुयरं तेसिं पिट्ठीए धावंति। ताहे गोयमा जाव णं अच्चासन्ने भवंति, ताव णं सुसाउ महु गंध दव्व सक्कारिय पोराण मज्जं लाउगमेगं पमोत्तूण पुणो वि जइणयर-वेगेणं रयणदीव हुत्तो वच्चंति। इयरे य तं सुसाउ महु गंध दव्व संसक्करिय पोराण मज्जमासाइयं पुणो सुदक्खयरे तेसिं पिट्ठीए धावंति। पुणो वि तेसिं महु पडिपुन्नं लाउगमेगं मुंचंति। एवं ते गोयमा महु मज्ज लोलीए संपलग्गे तावाणयंति जाव णं ते घरट्ट संठाणे वइरसिला संपुडे। ता जाव णं तावइयं भूभागं संपरावंति ताव णं जमेवासन्नं वइरसिला संपुडं जंभाय-माणपुरिसमुहागारं विहाडियं चिट्ठइ, तत्थेव जाइं महु मज्ज मंस पडिपुन्नाइं समुद्धरियाइं सेस लाउगाइं ताइं तेसिं पिच्छमाणाणं ते तत्थ मोत्तूणं निय निय निलएसु वच्चंति। इयरे य महु मज्ज लोलीए जाव णं तत्थ पविसंति, ताव णं गोयमा जे ते पुव्व मुक्के पक्क मंस खंडे जे य ते महु मज्ज पडिपुन्ने भंडगे जं च महूए चेवालित्तं सव्वं तं सिलासंपुडं पेक्खंति ताव णं तेसिं महंतं परिओसं महंतं तुट्ठिं महंतं पमोदं भवइ। एवं तेसिं महु मज्ज पक्क मंस परिभुंजेमाणेणं जाव णं गच्छंति सत्तट्ठ दस पंचेव वा दिणाणि, ताव णं ते रयणदिव निवासी मनुया एगे सन्नद्ध बद्ध साउह करग्गा तं वइरसिलं वेढिऊणं सत्तट्ठ पंतीहिं णं ठंति, । अन्ने तं घरट्ट सिला संपुडमायालित्ताणं एगट्ठं मेलंति। तम्मि य मेलिज्जमाणे गोयमा जइ णं कहिं चि तुडितिभागओ तेसिं एक्कस्स दोण्हं पि वा णिप्फेडं भवेज्जा, तओ तेसिं रयणदीवनिवासि मनुयाणं स विडवि पासाय मंदिरस्स चउप्पयाणं तक्खणा चेव तेसिं हत्था संघारकालं भवेज्जा। एवं तु गोयमा तेसिं तेणं वज्ज सिला घरट्ट संपुडेणं गिलियाणंपि तहियं चेव जाव णं सव्वट्ठिए दलिऊणं न संपीसिए सुकुमालिया य ताव णं तेसिं नो पाणाइक्कमं भवेज्जा। ते य अट्ठी वइरमिव दुद्दले तेसिं तु। तत्थ य वइर सिला संपुडं कण्हग गोणगेहिं आउत्तमादरेणं अरहट्ट घरट्ट खर सण्हिग चक्कमिव परिमंडलं भमालियं ताव णं खंडंति जावणं संवच्छरं। ताहे तं तारिसं अच्चंत घोर दारुणं सारीर मानसं महा दुक्ख सन्निवायं सम-णुभवेमाणाणं पाणाइक्कमं भवइ। तहा वि ते तेसिं अट्ठिगे नो फुडंति नो दो फले भवंति, नो संदलिज्जंति, नो विद्दलिज्जंति, नो पघरिसंति। नवरं जाइं काइं पि संधि संधाण बंधणाइं ताइं सव्वाइं विच्छुडेत्ता णं विय जज्जरी भवंति। तओ णं इयरुवल घरट्टस्सेव परिसवियं चुन्नमिव किंचि अंगुलाइयं अट्ठि खंडं दट्ठूणं ते रयणदिवगे परिओसमुव्वहंते सिला संपुडाइं उच्चियाडिऊणं ताओ अंतरंड गोलियाओ गहाय जे तत्थ तुच्छहणे ते अनेग रित्थ संघाएणं विक्किणंति। एतेणं विहाणेणं गोयमा ते रयणदीव निवासिणो मनुया ताओ अंतरंड गोलियाओ गेण्हंति। से भयवं कहं ते वराए तं तारिसं अच्चंतघोर दारुण सुदूसहं दुक्ख नियरं विसहमाणो निराहार पाणगे संवच्छरं जाव पाणे वि धारयंति गोयमा सकय कम्माणुभावओ। सेसं तु प्रश्नव्याकरण-वृद्धविवरणादवसेयं। | ||
Sutra Meaning : | हे भगवन् ! भव्य जीव परमाधार्मिक असुर में पैदा होते हैं क्या ? हे गौतम ! जो किसी सज्जड़ राग, द्वेष, मोह और मिथ्यात्व के उदय से अच्छी तरह से कहने के बावजूद भी उत्तम हितोपदेश की अवगणना करते हैं। बारह तरह के अंग और श्रुतज्ञान को अप्रमाण करते हैं और शास्त्र के सद्भाव और भेद को नहीं जानते, अनाचार की प्रशंसा करते हैं, उसकी प्रभावना करते हैं, जिस प्रकार सुमति ने उन साधुओं की प्रशंसा और प्रभावना की – वो कुशील साधु नहीं है, यदि यह साधु भी कुशील है तो इस जगत में कोई सुशील साधु नहीं। उन साधुओं के साथ जाकर मुजे प्रव्रज्या अंगीकार करने का तय है और जिस तरह के तुम निर्बुद्धि हो उस तरह के वो तीर्थंकर भी होंगे उस प्रकार बोलने से हे गौतम ! वो काफी बड़ा तपस्वी होने के बाद भी परमाधामी असुरों में उत्पन्न होंगे। हे भगवंत ! परमाधार्मिक देव वहाँ से मरके कहाँ उत्पन्न होते हैं ? हे भगवंत ! परमाधार्मिक असुर देवता में से बाहर नीकलकर उस सुमति का जीव कहाँ जाएगा ? हे गौतम ! मंदभागी ऐसे उसने अनाचार की प्रशंसा और अभ्युदय करने के लिए पूरे सन्मार्ग के नाश को अनुमोदन किया, उस कर्म के दोष से अनन्त संसार उपार्जन किया। उसके कितने भव की उत्पत्ति कहे ? कईं पुद्गल परावर्तन काल तक चार गति समान संसार में से जिसका नीकलने का कोइ चारा नहीं तो भी संक्षेप से कुछ भव कहता हूँ वो सुन – इसी जम्बूद्वीप को चोतरफ धीरे हुए वर्तुलाकार लवण समुद्र हैं। उसमें जो जगह पर सिंधु महानदी प्रवेश करती है उस प्रदेश के दक्षिण दिशा में ५५ योजन प्रमाणवाली वेदीका के बीच में साड़े बारह योजन प्रमाण हाथी के कुंभस्थल के आकार समान प्रति संतापदायक नाम की एक जगह है। वो जगह लवण समुद्र के जल से साड़े सात योजन जितना ऊंचा है। वहाँ अति घोर गाढ़ अंधेरेवाली घड़ी संस्थान के आकाशवाली छियालीस गुफा है। उस गुफा में दो – दो के बीच जलचारी मानव रहते हैं। जो वज्रऋषभनारच संघयणवाले, महाबल और पराक्रमवाले साड़े बारह वेंत प्रमाण कायावाले, संख्याता साल के, आयुवाले, जिन्हे मद्य, माँस प्रिय है। वैसे स्वभाव से स्त्री लोलुप, अति बूरे वर्णवाले, सुकुमार, अनिष्ट, कठिन, पथरीले देहवाले, चंड़ाल के नेता समान भयानक मुखवाले, सींह की तरह घोर नजरवाले, यमराजा समान भयानक, किसीको पीठ न दिखानेवाले, बीजली की तरह निष्ठुर प्रहार करनेवाले, अभिमान से मांधाता होनेवाले ऐसे वो अंड़गोलिक मानव होते हैं। उनके शरीर में जो अंतरंग गोलिका होती है उसे ग्रहण करके चमरी गाय के श्वेत पूँछ के बाल से वो गोलिकाएं बुनती हैं। उसके बाद वो बाँधी हुई गोलिकाओं को दोनों कान के साथ बाँधकर अनमोल उत्तम जातिवंत रत्न ग्रहण करने की इच्छावाले समुद्र के भीतर प्रवेश करते हैं। समुद्र में रहे जल, हाथी, भेंस, गोधा, मगरमच्छ, बड़े मत्स्य, तंतु सुसुमार आदि दुष्ट श्वापद उसे कोई उपद्रव नहीं करते। उस गोलिका के प्रभाव से भयभीत हुए बिना सर्व समुद्रजल में भ्रमण करके इच्छा के अनुसार उत्तम तरह के जातिवंत रत्न का संग्रह करके अखंड़ शरीरवाला बाहर नीकल आता है। उन्हें जो अंतरंग गोलिका होती है उनके सम्बन्ध से वो बेचारे हे गौतम ! अनुपम अति घोर भयानक दुःख पूर्वभव में उपार्जित अति रौद्र कर्म के आधीन बने वो अहेसास करते हैं। हे भगवंत ! किस कारण से ? हे गौतम ! वो जिन्दा हो तब तक उनकी गोलिका ग्रहण करने के लिए कौन समर्थ हो सके ? जब उनके देह में से गोलिका ग्रहण करते हैं तब कईं तरह के बड़े साहस करके नियंत्रणा करनी पड़ती है। बख्तर पहन के, तलवार, भाला, चक्र, हथियार सजाए ऐसे कईं शूरवीर पुरुष बुद्धि के प्रयोग से उनको जिन्दा ही पकड़ते हैं। जब उन्हें पकड़ते हैं तब जिस तरह के शारीरिक – मानसिक दुःख होते हैं वो सब नारक के दुःख के साथ तुलना की जाती है। हे भगवंत ! वो अंतरंग गोलिका कौन ग्रहण करते हैं ? हे गौतम ! उस लवण समुद्र में रत्नद्वीप नाम का अंतर्द्वीप है, प्रतिसंतापदायक स्थल से वो द्वीप ३१०० योजन दूर है वो रत्नद्वीप मानव उसे ग्रहण करते हैं। हे भगवंत ! किस प्रयोग से ग्रहण करते हैं ? क्षेत्र के स्वभाव से सिद्ध होनेवाले पूर्व पुरुषों की परम्परा अनुसार प्राप्त किए विधान से उन्हें पकड़ते हैं। हे भगवंत ! उनका पूर्व पुरुष ने सिद्ध किया हुवा विधि किस तरह का होता है ? हे गौतम ! उस रत्नद्वीप में २०, १९, १८, १०, ८, ७ धनुष्य प्रमाणवाले चक्की के आकार के श्रेष्ठ वज्रशिला के संपुट होते हैं। उसे अलग करके वो रत्नद्वीपवासी मानव पूर्व के पुरुष से सिद्ध क्षेत्र – स्वभाव से सिद्ध – तैयार किए गए योग से कईं मत्स्य – मधु इकट्ठे करके अति रसवाले करके उसके बाद उसमें पकाए हुए माँस के टुकड़े और उत्तम मद्य, मदीरा आदि चीजें ड़ालते हैं। ऐसे उनके खाने के लायक उचित मिश्रण तैयार करके विशाल लम्बे बड़े पेड़ के काष्ट से बनाए यान में बैठकर स्वादिष्ट पुराने मदीरा, माँस, मत्स्य, मध आदि से परिपूर्ण कईं तुंबड़ा ग्रहण करके प्रति संतापदायक नाम की जगह के पास आते हैं। जब गुफावासी अंड़गोलिक मानव को एक तुंबड़ा देकर और अभ्यर्थना – बिनती का प्रयोग करके लायक उस काष्ठयान को अति वेगवान् चलाकर रत्नद्वीप की और दौड़ जाते हैं। अंड़गोलिक मानव उस तुंब में से मध, माँस आदि मिश्रण – भक्षण करते हैं और अति – स्वादिष्ट लगने से फिर पाने के लिए उनके पीछे अलग – अलग होकर दौड़ते हैं। तब गौतम ! जितने में अभी काफी नजदीक न आए उतने में सुन्दर स्वादवाले मधु और खुशबूवाले द्रव्य से संस्कारित पुराणा मदिरा का एक तुंब रास्ते में रखकर फिर से भी अति त्वरित गति से रत्नद्वीप की और चले जाते हैं। और फिर अंड़गोलिक मानव वो अति स्वादिष्ट, मधु और खुशबूवाले द्रव्य से संस्कारित तैयार किए पुराने मदिरा माँस आदि पाने के लिए अतिदक्षता से उसकी पीठ पीछे दौड़ते हैं। उन्हें देने के लिए मधु से भरे एक तुंब को रखते हैं। उस प्रकार हे गौतम ! मद्य, मदिरा के लोलुपी बने उनको तुंब के मद्य, मदिरा आदि से फाँसते तब तक ले जात हैं कि जहाँ पहले बताए चक्की आकार के वज्र की शीला के संपुट हैं। जितने में खाद्य की लालच से वो जितनी भूमि तक आते हैं उतने में ही जो पास के वज्रशीला के संपुट का अग्र हिस्सा जो बगासा खाते पुरुष के आकार समान छूटा पहले से ही रखा होता है। वहीं मद्य, मदिरा से भरे बाकी रहे कईं तुंब उनकी आँख के सामने हो वहाँ रखकर अपनी – अपनी जगह में चले जाते हैं। वो मद्य – मदिरा खाने के लोलुपी जितने में चक्की के पास पहुँचे और उस पर प्रवेश करे उस समय हे गौतम ! जो पहले पकाए हुए माँस के टुकड़े वहाँ रखे हों और जो मद्य – मदिरा से भरे भोजन वहाँ रखे हो और फिर मध से लीपित शीला के पड़ हो उसे देखकर उन्हें काफी संतोष, आनन्द, बड़ी तुष्टि, महाप्रमोद होता है। इस प्रकार मद्य – मदिरा पकाए हुए माँस खाते – खाते साँत – आँठ, पंद्रह दिन जितने में पसार होते हैं, उतने में रत्नद्वीप निवासी लोग इकट्ठे होकर कुछ लोगों ने बख्तर, कुछ लोगों ने आयुध धारण किए हों, वो उस वज्रशीला को चीपककर साँत – आँठ पंक्ति में घैर लेते हैं। और फिर रत्नद्वीपवासी दूसरे कुछ मनुष्य उस शिला पड़ को घंटाल पर इकट्ठा हो वैसे रखते हैं। जब दो पड़ इकट्ठे किए जाए तब हे गौतम ! एक चपटी बजाकर उसके तीसरे हिस्से के काल में उसके भीतर फँसे मनुष्यमें से एक या दो बाहर नीकल जाते हैं। उसके बाद वो रत्नद्वीपवासी पेड़ सहित मंदिर और महल वहाँ बनाते हैं। उसी समय उसके हाड़ का – शरीर का विनाशकाल पैदा होता है, उस प्रकार हे गौतम ! उस वज्रशीला के चक्की के दो पड़ के बीच पीसकर पीसते – पीसते जब तक सारी हड्डियाँ दबकर अच्छी तरह न पीसे और चूर्ण न हो तब तक वो अंड़गोलिक के प्राण अलग नहीं होते। उसके अस्थि वज्ररत्न की तरह मुश्किल से पीस सके वैसे मजबूत होते हैं। वहाँ उसको वज्रशीला के दो पड़ के बीच रखकर काले बैल जुड़कर काफी कोशीश के बाद रेंट की तरह गोल भमाड़ाते हैं। एक साल तक पीसने की कोशीश चालू होने के बाद भी उसकी मजबूत अस्थि के टुकड़े नहीं होते। उस समय उस तरह के अति घोर दारुण शारीरिक और मानसिक महादुःख के दर्द का कठिन अहेसास करने के बाद भी प्राण भी चले गए होने के बाद भी जिसके अस्थिभंग नहीं होते, दो हिस्से नहीं होते, पीसते नहीं, घिसते नहीं लेकिन जो किसी संधिस्थान जोड़ों का और बँधन का स्थान है वो सब अलग होकर जर्जरीभूत होते हैं। उसके बाद दूसरी सामान्य पत्थर की चक्की की तरह फिसलनेवाले आँटे की तरह कुछ ऊंगली आदि अग्रावयव के अस्थिखंड़ देखकर वो रत्नद्वीपवासी लोग आनन्द पाकर शीला के पड़ ऊपर उठाकर उसकी अंड़गोलिका ग्रहण करके उसमें जो शुष्क – नीरस हिस्सा हो वो कईं धनसमूह ग्रहण करके बेच डालते हैं। इस प्रकार से वो रत्नद्वीप निवासी मानव अंतरंड़ गोलिका ग्रहण करते हैं। हे भगवंत ! वो बेचारे उस तरह का अति घोर दारूण तीक्ष्ण दुःस्सह दुःखसमूह को सहते हुए आहार – जल बिना एक साल तक किस तरह प्राण धारण करते होंगे ? हे गौतम ! खुद के किए कर्म के अनुभव से इसका विशेष अधिकार जानने की इच्छावाले को प्रश्न व्याकरण सूत्र के वृद्ध विवरण से जान लेना। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se bhayavam kim bhavve paramahammiyasuresum samuppajjai goyama je kei ghana-raga-dosa-moha-michchhatto-daenam suvavasiyam pi parama-hiovaesam avamannettanam duvalasamgam cha suya-nanamappamani karia ayanitta ya samaya-sabbhavam anayaram pasam-siya nam tameva uchchhappejja jaha sumaina uchchhappiyam. Na bhavamti ee kusile sahuno, aha nam ee vi kusile ta ettham jage na koi susilo atthi, nichchhiyam mae etehim samam pavvajja kayavva taha jariso tam nibuddhio tariso so vi titthayaro tti evam uchcharemanenam se nam goyama mahamtampi tavamanutthemane paramahammiyasuresum uvavajjejja. Se bhayavam paramahammiya suradevanam uvvatte samane se sumati kahim uvavajjejja goyama tenam mamda-bhagenam anayara-pasamsuchchhappanam-karemanenam sammagga-panasanam abhinamdiyam takkammadosenam- anamta -samsariya-ttanamajjiyamto kettie uvavae tassa sahejja jassa nam anega-poggala-pariyattesu vi natthi chaugai-samsarao avasanam ti, taha vi samkhevao sunasu goyama Inameva jambuddivam divam parikkhiviunam thie je esa lavanajalahi eyassa nam jam thamam simdhu mahanadi pavittha, tappae-sao dahinenam disa-bhagenam panapannae joyanesum veiyae majjhamtaram atthi padisamtava-dayagam nama addhaterasa-joyana-pamanam hatthi-kumbhayaram thalam. Tassa ya lavana-jalovarenam addhuttha-joyanani usseho. Tahim cha nam achchamta-ghora- timisamdha-yarao ghadiyalaga-samthanao siyalisam guhao. Tasum cha nam jugam jugenam niramtare jalayarino manuya parivasamti. Te ya vajja-risabha-naraya-samghayane maha-bala-parakkame addhaterasa-rayanipamanenam samkhejja-vasau mahu-majja-mamsappie sahavao itthilole parama-duvvanna-suumala-anittha-khara -pharusiya-tanu mayamgavai-kayamuhe siha-ghora-ditthi-kayamta-bhisane adaviya patthi asani vva nitthura-pahari dappuddhare ya bhavamti. Tesim ti jao amtaramda-goliyao tao gahaya chamarinam samtiehim seya-pumchhavalehim gumthiunam je kei ubhaya-kannesum nibamdhiuna mahagghu-ttama-jachcha-rayanatthi sagaramanupavisejja. Se nam jala-hatthi-mahisa-gohiga-mayara-mahamachchha-tamtu-sumsumara-pabhitihim duttha-savatehim abhesie cheva savvam pi sagara-jalam ahimdiuna jahichchhae jachcha-rayana-samgaham kariya ahaya-sarire agachchhe, tanam cha amtaramdagoliyanam sambamdhena te varae goyama anovamam sughoram darunam dukkham puvvajjiya rodda-kamma-vasaga anubhavamti. Se bhayavam kenam atthenam goyama tesim jivamananam kosa-majjhe tao goliyao gaheum je jaya una te ghippamti, taya bahuvihahim niyamtanahim mahaya sahasenam sannaddha-baddha-karavala-kumta-chakkai-paharanadovehim bahu-sura-dhira-purisehim buddhipuvvagenam sajaviya-dolae gheppamti. Tesim cha gheppamananam jaim sarira-manasaim dukkhaim bhavamti, taim savvesum naraya-dukkhesum jai param uvamejja Se bhayavam ko una tao amtaramda-goliyao genhejja goyama tattheva lavana-samudde atthi rayana-divam nama amtara-divam. Tasseva padisamtava-dayagao thalao egatisae joyana-saehim. Tam nivasino manuya bhavamti. Bhayavam kayarenam paogenam khetta-sabhava-siddha-puvvapurisa-siddhenam cha vihanenam Se bhayavam kayare u na se puvva purisa siddhe vihi tesim ti goyama tahiyam rayana dive atthi visam egunavisam attharasa dasattha satta dhanu pamanaim gharattasamthanaim vara vaira sila sampudaim, taim cha vighadeunam te rayanadivanivasino manuya puvva siddha khetta sahava siddhenam cheva jogenam pabhuya machchhiya mahue abbhamtarao achchamta levadaim kaunam tao tesim pakka mamsa khamdani bahuni jachcha mahu majja bhamdagani pakkhivamti. Tao eyaim kariya surumda diha mahadduma katthehim arumbhittanam susau porana majja machchhiga mahuo ya padipunne bahue lauge gahaya padisamtavadayaga thalamagachchhamti. Java nam tatthagae samane te guhavasino manuya pechchhamti, tava nam tesim rayanadivaga nivasimanuyanam vahaya padidhavamti. Tao te tesim ya mahupadipunnam laugam payachchhiunam abbhattha paogenam tam kattha-janam jainayara-vegam duvam kheviunam rayanaddivabhimuham vachchamti. Iyare ya tam mahumasadiyam puno sutthuyaram tesim pitthie dhavamti. Tahe goyama java nam achchasanne bhavamti, tava nam susau mahu gamdha davva sakkariya porana majjam laugamegam pamottuna puno vi jainayara-vegenam rayanadiva hutto vachchamti. Iyare ya tam susau mahu gamdha davva samsakkariya porana majjamasaiyam puno sudakkhayare tesim pitthie dhavamti. Puno vi tesim mahu padipunnam laugamegam mumchamti. Evam te goyama mahu majja lolie sampalagge tavanayamti java nam te gharatta samthane vairasila sampude. Ta java nam tavaiyam bhubhagam samparavamti tava nam jamevasannam vairasila sampudam jambhaya-manapurisamuhagaram vihadiyam chitthai, tattheva jaim mahu majja mamsa padipunnaim samuddhariyaim sesa laugaim taim tesim pichchhamananam te tattha mottunam niya niya nilaesu vachchamti. Iyare ya mahu majja lolie java nam tattha pavisamti, tava nam goyama je te puvva mukke pakka mamsa khamde je ya te mahu majja padipunne bhamdage jam cha mahue chevalittam savvam tam silasampudam pekkhamti tava nam tesim mahamtam pariosam mahamtam tutthim mahamtam pamodam bhavai. Evam tesim mahu majja pakka mamsa paribhumjemanenam java nam gachchhamti sattattha dasa pamcheva va dinani, tava nam te rayanadiva nivasi manuya ege sannaddha baddha sauha karagga tam vairasilam vedhiunam sattattha pamtihim nam thamti,. Anne tam gharatta sila sampudamayalittanam egattham melamti. Tammi ya melijjamane goyama jai nam kahim chi tuditibhagao tesim ekkassa donham pi va nipphedam bhavejja, tao tesim rayanadivanivasi manuyanam sa vidavi pasaya mamdirassa chauppayanam takkhana cheva tesim hattha samgharakalam bhavejja. Evam tu goyama tesim tenam vajja sila gharatta sampudenam giliyanampi tahiyam cheva java nam savvatthie daliunam na sampisie sukumaliya ya tava nam tesim no panaikkamam bhavejja. Te ya atthi vairamiva duddale tesim tu. Tattha ya vaira sila sampudam kanhaga gonagehim auttamadarenam arahatta gharatta khara sanhiga chakkamiva parimamdalam bhamaliyam tava nam khamdamti javanam samvachchharam. Tahe tam tarisam achchamta ghora darunam sarira manasam maha dukkha sannivayam sama-nubhavemananam panaikkamam bhavai. Taha vi te tesim atthige no phudamti no do phale bhavamti, no samdalijjamti, no viddalijjamti, no pagharisamti. Navaram jaim kaim pi samdhi samdhana bamdhanaim taim savvaim vichchhudetta nam viya jajjari bhavamti. Tao nam iyaruvala gharattasseva parisaviyam chunnamiva kimchi amgulaiyam atthi khamdam datthunam te rayanadivage pariosamuvvahamte sila sampudaim uchchiyadiunam tao amtaramda goliyao gahaya je tattha tuchchhahane te anega rittha samghaenam vikkinamti. Etenam vihanenam goyama te rayanadiva nivasino manuya tao amtaramda goliyao genhamti. Se bhayavam kaham te varae tam tarisam achchamtaghora daruna sudusaham dukkha niyaram visahamano nirahara panage samvachchharam java pane vi dharayamti goyama sakaya kammanubhavao. Sesam tu prashnavyakarana-vriddhavivaranadavaseyam. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He bhagavan ! Bhavya jiva paramadharmika asura mem paida hote haim kya\? He gautama ! Jo kisi sajjara raga, dvesha, moha aura mithyatva ke udaya se achchhi taraha se kahane ke bavajuda bhi uttama hitopadesha ki avaganana karate haim. Baraha taraha ke amga aura shrutajnyana ko apramana karate haim aura shastra ke sadbhava aura bheda ko nahim janate, anachara ki prashamsa karate haim, usaki prabhavana karate haim, jisa prakara sumati ne una sadhuom ki prashamsa aura prabhavana ki – vo kushila sadhu nahim hai, yadi yaha sadhu bhi kushila hai to isa jagata mem koi sushila sadhu nahim. Una sadhuom ke satha jakara muje pravrajya amgikara karane ka taya hai aura jisa taraha ke tuma nirbuddhi ho usa taraha ke vo tirthamkara bhi homge usa prakara bolane se he gautama ! Vo kaphi bara tapasvi hone ke bada bhi paramadhami asurom mem utpanna homge. He bhagavamta ! Paramadharmika deva vaham se marake kaham utpanna hote haim\? He bhagavamta ! Paramadharmika asura devata mem se bahara nikalakara usa sumati ka jiva kaham jaega\? He gautama ! Mamdabhagi aise usane anachara ki prashamsa aura abhyudaya karane ke lie pure sanmarga ke nasha ko anumodana kiya, usa karma ke dosha se ananta samsara uparjana kiya. Usake kitane bhava ki utpatti kahe\? Kaim pudgala paravartana kala taka chara gati samana samsara mem se jisaka nikalane ka koi chara nahim to bhi samkshepa se kuchha bhava kahata hum vo suna – Isi jambudvipa ko chotarapha dhire hue vartulakara lavana samudra haim. Usamem jo jagaha para simdhu mahanadi pravesha karati hai usa pradesha ke dakshina disha mem 55 yojana pramanavali vedika ke bicha mem sare baraha yojana pramana hathi ke kumbhasthala ke akara samana prati samtapadayaka nama ki eka jagaha hai. Vo jagaha lavana samudra ke jala se sare sata yojana jitana umcha hai. Vaham ati ghora garha amdherevali ghari samsthana ke akashavali chhiyalisa gupha hai. Usa gupha mem do – do ke bicha jalachari manava rahate haim. Jo vajrarishabhanaracha samghayanavale, mahabala aura parakramavale sare baraha vemta pramana kayavale, samkhyata sala ke, ayuvale, jinhe madya, mamsa priya hai. Vaise svabhava se stri lolupa, ati bure varnavale, sukumara, anishta, kathina, patharile dehavale, chamrala ke neta samana bhayanaka mukhavale, simha ki taraha ghora najaravale, yamaraja samana bhayanaka, kisiko pitha na dikhanevale, bijali ki taraha nishthura prahara karanevale, abhimana se mamdhata honevale aise vo amragolika manava hote haim. Unake sharira mem jo amtaramga golika hoti hai use grahana karake chamari gaya ke shveta pumchha ke bala se vo golikaem bunati haim. Usake bada vo bamdhi hui golikaom ko donom kana ke satha bamdhakara anamola uttama jativamta ratna grahana karane ki ichchhavale samudra ke bhitara pravesha karate haim. Samudra mem rahe jala, hathi, bhemsa, godha, magaramachchha, bare matsya, tamtu susumara adi dushta shvapada use koi upadrava nahim karate. Usa golika ke prabhava se bhayabhita hue bina sarva samudrajala mem bhramana karake ichchha ke anusara uttama taraha ke jativamta ratna ka samgraha karake akhamra shariravala bahara nikala ata hai. Unhem jo amtaramga golika hoti hai unake sambandha se vo bechare he gautama ! Anupama ati ghora bhayanaka duhkha purvabhava mem uparjita ati raudra karma ke adhina bane vo ahesasa karate haim. He bhagavamta ! Kisa karana se\? He gautama ! Vo jinda ho taba taka unaki golika grahana karane ke lie kauna samartha ho sake\? Jaba unake deha mem se golika grahana karate haim taba kaim taraha ke bare sahasa karake niyamtrana karani parati hai. Bakhtara pahana ke, talavara, bhala, chakra, hathiyara sajae aise kaim shuravira purusha buddhi ke prayoga se unako jinda hi pakarate haim. Jaba unhem pakarate haim taba jisa taraha ke sharirika – manasika duhkha hote haim vo saba naraka ke duhkha ke satha tulana ki jati hai. He bhagavamta ! Vo amtaramga golika kauna grahana karate haim\? He gautama ! Usa lavana samudra mem ratnadvipa nama ka amtardvipa hai, pratisamtapadayaka sthala se vo dvipa 3100 yojana dura hai vo ratnadvipa manava use grahana karate haim. He bhagavamta ! Kisa prayoga se grahana karate haim\? Kshetra ke svabhava se siddha honevale purva purushom ki parampara anusara prapta kie vidhana se unhem pakarate haim. He bhagavamta ! Unaka purva purusha ne siddha kiya huva vidhi kisa taraha ka hota hai\? He gautama ! Usa ratnadvipa mem 20, 19, 18, 10, 8, 7 dhanushya pramanavale chakki ke akara ke shreshtha vajrashila ke samputa hote haim. Use alaga karake vo ratnadvipavasi manava purva ke purusha se siddha kshetra – svabhava se siddha – taiyara kie gae yoga se kaim matsya – madhu ikatthe karake ati rasavale karake usake bada usamem pakae hue mamsa ke tukare aura uttama madya, madira adi chijem ralate haim. Aise unake khane ke layaka uchita mishrana taiyara karake vishala lambe bare pera ke kashta se banae yana mem baithakara svadishta purane madira, mamsa, matsya, madha adi se paripurna kaim tumbara grahana karake prati samtapadayaka nama ki jagaha ke pasa ate haim. Jaba guphavasi amragolika manava ko eka tumbara dekara aura abhyarthana – binati ka prayoga karake layaka usa kashthayana ko ati vegavan chalakara ratnadvipa ki aura daura jate haim. Amragolika manava usa tumba mem se madha, mamsa adi mishrana – bhakshana karate haim aura ati – svadishta lagane se phira pane ke lie unake pichhe alaga – alaga hokara daurate haim. Taba gautama ! Jitane mem abhi kaphi najadika na ae utane mem sundara svadavale madhu aura khushabuvale dravya se samskarita purana madira ka eka tumba raste mem rakhakara phira se bhi ati tvarita gati se ratnadvipa ki aura chale jate haim. Aura phira amragolika manava vo ati svadishta, madhu aura khushabuvale dravya se samskarita taiyara kie purane madira mamsa adi pane ke lie atidakshata se usaki pitha pichhe daurate haim. Unhem dene ke lie madhu se bhare eka tumba ko rakhate haim. Usa prakara he gautama ! Madya, madira ke lolupi bane unako tumba ke madya, madira adi se phamsate taba taka le jata haim ki jaham pahale batae chakki akara ke vajra ki shila ke samputa haim. Jitane mem khadya ki lalacha se vo jitani bhumi taka ate haim utane mem hi jo pasa ke vajrashila ke samputa ka agra hissa jo bagasa khate purusha ke akara samana chhuta pahale se hi rakha hota hai. Vahim madya, madira se bhare baki rahe kaim tumba unaki amkha ke samane ho vaham rakhakara apani – apani jagaha mem chale jate haim. Vo madya – madira khane ke lolupi jitane mem chakki ke pasa pahumche aura usa para pravesha kare usa samaya he gautama ! Jo pahale pakae hue mamsa ke tukare vaham rakhe hom aura jo madya – madira se bhare bhojana vaham rakhe ho aura phira madha se lipita shila ke para ho use dekhakara unhem kaphi samtosha, ananda, bari tushti, mahapramoda hota hai. Isa prakara madya – madira pakae hue mamsa khate – khate samta – amtha, pamdraha dina jitane mem pasara hote haim, utane mem ratnadvipa nivasi loga ikatthe hokara kuchha logom ne bakhtara, kuchha logom ne ayudha dharana kie hom, vo usa vajrashila ko chipakakara samta – amtha pamkti mem ghaira lete haim. Aura phira ratnadvipavasi dusare kuchha manushya usa shila para ko ghamtala para ikattha ho vaise rakhate haim. Jaba do para ikatthe kie jae taba he gautama ! Eka chapati bajakara usake tisare hisse ke kala mem usake bhitara phamse manushyamem se eka ya do bahara nikala jate haim. Usake bada vo ratnadvipavasi pera sahita mamdira aura mahala vaham banate haim. Usi samaya usake hara ka – sharira ka vinashakala paida hota hai, usa prakara he gautama ! Usa vajrashila ke chakki ke do para ke bicha pisakara pisate – pisate jaba taka sari haddiyam dabakara achchhi taraha na pise aura churna na ho taba taka vo amragolika ke prana alaga nahim hote. Usake asthi vajraratna ki taraha mushkila se pisa sake vaise majabuta hote haim. Vaham usako vajrashila ke do para ke bicha rakhakara kale baila jurakara kaphi koshisha ke bada remta ki taraha gola bhamarate haim. Eka sala taka pisane ki koshisha chalu hone ke bada bhi usaki majabuta asthi ke tukare nahim hote. Usa samaya usa taraha ke ati ghora daruna sharirika aura manasika mahaduhkha ke darda ka kathina ahesasa karane ke bada bhi prana bhi chale gae hone ke bada bhi jisake asthibhamga nahim hote, do hisse nahim hote, pisate nahim, ghisate nahim lekina jo kisi samdhisthana jorom ka aura bamdhana ka sthana hai vo saba alaga hokara jarjaribhuta hote haim. Usake bada dusari samanya patthara ki chakki ki taraha phisalanevale amte ki taraha kuchha umgali adi agravayava ke asthikhamra dekhakara vo ratnadvipavasi loga ananda pakara shila ke para upara uthakara usaki amragolika grahana karake usamem jo shushka – nirasa hissa ho vo kaim dhanasamuha grahana karake becha dalate haim. Isa prakara se vo ratnadvipa nivasi manava amtaramra golika grahana karate haim. He bhagavamta ! Vo bechare usa taraha ka ati ghora daruna tikshna duhssaha duhkhasamuha ko sahate hue ahara – jala bina eka sala taka kisa taraha prana dharana karate homge\? He gautama ! Khuda ke kie karma ke anubhava se isaka vishesha adhikara janane ki ichchhavale ko prashna vyakarana sutra ke vriddha vivarana se jana lena. |