Sutra Navigation: Mahanishith ( महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र )

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Sr No : 1017377
Scripture Name( English ): Mahanishith Translated Scripture Name : महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

अध्ययन-४ कुशील संसर्ग

Translated Chapter :

अध्ययन-४ कुशील संसर्ग

Section : Translated Section :
Sutra Number : 677 Category : Chheda-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] एवमायण्णिऊण तओ भणियं सुमइणा। जहा–तुमं चेव सत्थवादी भणसु एयाइं, नवरं न जुत्तमेयं जं साहूणं अवन्नवायं भासिज्जइ। अन्नं तु–किं न पेच्छसि तुमं एएसिं महानुभागाणं चेट्ठियं छट्ठ-ट्ठम-दसम दुवालस-मास- खमणाईहिं आहा-रग्गहणं गिम्हायावणट्ठाए वीरासण-उक्कुडुयासण-नाणाभिग्गह-धारणेणं च कट्ठ-तवोणुचरणेणं च पसुक्खं मंस-सोणियं ति महाउ-वासगो सि तुमं, महा-भासा-समिती विइया तए, जेणेरिस-गुणोवउत्ताणं पि महानुभागाणं साहूणं कुसीले त्ति नामं संकप्पियंति। तओ भणियं नाइलेणं जहा मा वच्छ तुमं एतेणं परिओसमुवयासु, जहा अहयं आसवारेणं परिमुसिओ। अकाम-निज्जराए वि किंचि कम्मक्खयं भवइ, किं पुन जं बाल-तवेणं ता एते बाल-तवस्सिणो दट्ठव्वे, जओ णं किं किंचि उस्सुत्तमग्गयारित्तमेएसिं [न] पइसे। अन्नं च–वच्छ सुमइ नत्थि ममं इमाणोवरिं को वि सुहुमो वि मनसावि उ पओसो, जेणाहमेएसिं दोस-गहणं करेमि, किं तु मए भगवओ तित्थयरस्स सगासे एरिसमवधारियं, जहा–कुसीले अदट्ठव्वे। ताहे भणियं सुमइणा जहा–जारिसो तुमं निबुद्धीओ तारिसो सो वि तित्थयरो, जेण तुज्झमेयं वायरियं ति। तओ एवं भणमाणस्स सहत्थेणं झंपियं मुह-कुहरं सुमइस्स नाइलेणं, भणिओ य। जहा–भद्दमुह मा जगेक्क-गुरुणो तित्थयरस्सासायणं कुणसु, । मए पुन भणसु जहिच्छियं, नाहं ते किंचि पडिभणामि। तओ भणियं सुमइणा जहा जइ एते वि साहुणो कुसीला ता एत्थं जगे न कोइ सुसीलो अत्थि। तओ भणियं नाइलेणं। जहा–भद्दमुह सुमइ एत्थं जयालंघणिज्ज वक्कस्स भगवओ वयणमायरेयव्वं, जं चऽत्थिक्कयाए न विसंवयेज्जा, नो णं बालतवस्सीण चेट्ठियं, जओ णं जिनयंदवयणेणं नियमओ ताव कुसीले इमं दीसंति, पव्वज्जाए-गंधं पि नो दीसए एसिं, जेणं पेच्छ पेच्छ तावेयस्स साहुणो बिइज्जियं मुहनंतगं दीसइ, ता एस ताव अहिग-परिग्गह-दोसेणं कुसीलो। न एयं साहूण भगवया-ऽऽइट्ठं जमहिय-परिग्गह-विधारणं कीरे, ता, वच्छ, हीन-सत्तोऽहन्नो एसेवं मनसाज्झवसे जहा जइ ममेयं मुहनंतगं विप्पणस्सिहिइ ता बीयं कत्थ कहं पावेज्जा न एवं चिंतेइ मूढो जहा–अहिगाऽनुवओगोवही-धारणेणं मज्झं परिग्गह-वयस्स भंगं होही। अहवा किं संजमेऽभिरओ एस मुहनंतगाइसंजमोवओगधम्मोवगरणेणं वीसीएज्जा नियमओ न विसीए। नवर-मत्ताणयं हीन-सत्तोऽहमिइ पायडे उम्मग्गायरणं च पयंसेइ पवयणं च मइलेइ त्ति। एसो उ न पेच्छसि सामन्नचत्तो एएणं कल्लं तीए विणियंसणाइइत्थीए अंगयट्ठिं निज्झाइऊण जं णालोइयं न पडिक्कंतं तं किं तए न विण्णायं एस उ न पेच्छसि परूढ-विप्फोडग-विम्हियाणणो एतेणं संपयं चेव लोयट्ठाए सहत्थेणमदिन्न-छार-गहणं कयं। तए वि दिट्ठमेयं ति। एसो उ न पेच्छसि संघडिय कल्लो एएणं, अणुग्गए सूरिए उट्ठेह उग्गयं सूरियं ति तया विहसियमिणं। एसो उ न पेच्छसीमेसिं जिट्ठ-सेहो। एसो अज्ज रयणीए अनोवउत्तो पसुत्तो विज्जुक्काए फुसिओ। न एतेणं कप्प-गहणं कयं। तहा पभाए हरिय-तणं वासा-कप्पंचलेणं संघट्टियं। तहा बाहिरोदगस्स परिभोगं कयं। बीयकायस्सोवरेणं परिस-क्किओ अविहिए एस खार-थंडिलाओ महुरं थंडिलं संकमिओ। तहा-पह-पडिवन्नेणं साहुणा कम-सयाइक्कमे इरियं पडिक्कमियव्वं। तहाचरेयव्वं तहा चिट्ठेयव्वं तहा मासेयव्वं तहा सएयव्वं जहा छक्कायमइगयाणं जीवाणं सुहुम-बायर-पज्जत्तापज्जत्त-गमागम-सव्वजीवपाणभूय-सत्ताणं संघट्टण-परियावण-किलामणो-द्दवणं वा न भवेज्जा। ता एतेसिं एवइयाणं एयस्स एक्कमवी न एत्थं दीसए। जं पुन मुहनंतगं पडिलेहमाणो अज्जं मए एस चोइओ। जहा एरिसं पडिलेहणं करे जे णं वाउक्कायं फडफडस्स संघट्टेज्जा। सारियं च पडिलेहणाए संतियं कारियं ति, जस्सेरिसं जयणं एरिसं सोवओगं हुंकाहिसि संजमं, न संदेहं जस्सेरिसमा-उत्तत्तणं तुज्झं ति। एत्थं च तए हं विणिवारिओ जहा णं मूगोवाहि न अम्हाणं साहूहिं समं किंचि भणेयव्वं कप्पे। ता किमेयं ते विसुमरियं ता भद्दमुह एएणं संजम-त्थाणंतराणं एगमवि नो परिक्खियं, ता किमेस साहू भणेज्जा जस्सेरिसं पमत्तत्तणं न एस साहु जस्सेरिसं णिद्धम्म-संपलत्तणं। भद्दमुह पेच्छ पेच्छ सूणो इव णित्तिंसो छक्काय-निमद्दणो कहाभिरमे एसो। अहवा वरं सूणो जस्स णं सुहुमं वि णियम-वय-भंगं नो भवेज्जा। एसो उ नियम-भंगं करेमाणो केणं उवमेज्जा ता वच्छ सुमइ भद्दमुह न एरिस कत्तव्वायरणाओ भवंति साहू, एतेहिं च कत्तव्वेहिं तित्थयर-वयणं सरेमाणो को एतेसिं वंदनगमवि करेज्जा अन्नं च एएसिं संसग्गेण कयाई अम्हाणं पि चरण-करणेसुं सिढिलत्तं भवेज्जा, जे णं पुणो पुणो आहिंडेमो घोरं भवपरंपरं। तओ भणियं सुमइणा जहा–जइ एए कुसीले जई सुसीले, तहा वि मए एएहिं समं गंतव्वं जाव एएसिं समं पव्वज्जा कायव्वा। जं पुन तुमं करेसि तमेव धम्मं, नवरं को अज्ज तं समायरिउं सक्का ता मुयसु करं, मए एतेहिं समं गंतव्वं जाव णं नो दूरं वयंति से साहुणो त्ति। तओ भणियं नाइलेणं भद्दमुह सुमइ नो कल्लाणं एतेहिं समं गच्छमाणस्स तुज्झं ति। अहयं च तुब्भं हिय-वयणं भणामि एवं ठिए जं चेव बहु-गुणं तमेवाणुसेवय,। णाहं ते दुक्खेण धरेमि। अह अन्नया अणेगोवाएहिं पि निवारिज्जंतो न ठिओ, गओ सो मंद-भागो सुमती गोयमा पव्वइओ य। अह अन्नया वच्चंतेणं मास-पंचगेणं आगओ महारोरवो दुवालस-संवच्छरिओ दुब्भिक्खो। तओ ते साहुणो तक्काल-दोसेणं अणालोइय-पडिक्कंते मरिऊणोववन्ने भूय-जक्ख-रक्खस-पिसायादीणं वाणमंतरदेवाणं वाहणत्ताए। तओ वि चविऊणं मिच्छजातीए कुणिमाहार-कूरज्झवसाय-दोसओ सत्तमाए। तओ उव्वट्टिऊणं तइयाए चउवीसिगाए सम्मत्तं पाविहिंति। तओ य सम्मत्त-लंभ-भवाओ तइय-भवे चउरो सिज्झिहिंति। एगो न सिज्झिहिइ जो सो पंचमगो सव्व-जेट्ठो। जओ णं सो एगंत-मिच्छ-दिट्ठी-अभव्वो य। से भयवं जे णं सुमती से भव्वे उयाहु अभव्वे । गोयमा भव्वे। से भयवं जइ-णं भव्वे, ता णं मए समाणे कहिं समुप्पन्ने गोयमा परमाहम्मियासुरेसुं।
Sutra Meaning : ऐसा सुनकर सुमति ने कहा – तुम ही सत्यवादी हो और इस प्रकार बोल सकते हो। लेकिन साधु के अवर्णवाद बोलना जरा भी उचित नहीं है। वो महानुभाव के दूसरे व्यवहार पर नजर क्यों नहीं करते ? छट्ठ, अट्ठम, चार – पाँच उपवास मासक्षमण आदि तप करके आहार ग्रहण करनेवाले ग्रीष्म काल में आतापना लेते है। और फिर विरासन उत्कटुकासन अलग – अलग तरह के अभिग्रह धारण करना, कष्टवाले तप करना इत्यादी धर्मानुष्ठान आचरण करके माँस और लहूँ जिन्होंने सूखा दिए हैं, इस तरह के गुणयुक्त महानुभाव साधुओं को तुम जैसे महान्‌ भाषा समितिवाले बड़े श्रावक होकर यह साधु कुशीलवाले ऐसा संकल्प करना युक्त नहीं है। उसके बाद नागिल ने कहा कि – हे वत्स ! यह उसके धर्मअनुष्ठान से तु संतोष मत कर। जैसे कि आज में – अविश्वास से लूँट चूका हूँ, बिना इच्छा से आए हुए पराधीनता से भुगतने के दुःख से, अकाम निर्जरा से भी कर्म का क्षय होता है तो फिर बालतप से कर्मक्षय क्यों न हो ? इन सबको बालतपस्वी मानना। क्या तुम्हें उतका उत्सूत्रमार्ग का अल्प सेवनपन नहीं दिखता ? और फिर हे वत्स सुमति ! मुजे यह साधु पर मन से भी सूक्ष्म प्रद्वेष नहीं कि जिससे मैं उनका दोष ग्रहण करूँ। लेकिन तीर्थंकर भगवंत के पास से उस प्रकार अवधारण किया है कि कुशील को मत देखना। तब सुमति ने उसे कहा कि, जिस तरह का तू निर्बुद्धि है उसी तरह के वो तीर्थंकर होंगे जिसने तुम्हें इस प्रकार कहा। उसके बाद इस प्रकार बोलनेवाले सुमति के मुख रूपी छिद्र को अपने हस्त से बंध करके नागिल ने उसे कहा कि – जगत के महान गुरु, तीर्थंकर भगवंत की आशातना मत कर। मुझे तुम्हें जो कहना है वो कहो, मैं तुम्हें कोई प्रत्युत्तर नहीं दूँगा। तब सुमति ने उसे कहा कि इस जगत में यह साधु भी यदि कुशील हो तो फिर सुशील साधु कहीं नहीं मिलेंगे। तब नागिल ने कहा कि – सुमति ! यहाँ जगत में अलंघनीय वचनयुक्त भगवंत का वचन मान सहित ग्रहण करना चाहिए। आस्तिक आत्मा को उसके वचन में किसी दिन विसंवाद नहीं होता और फिर बाल तपस्वी की चेष्टा में आदर मत करना क्योंकि जिनेन्द्र वचन अनुसार यकीनन वो कुशील दिखते हैं। उनकी प्रव्रज्या के लिए गंध भी नहीं दिखती। क्योंकि यदि इस साधु के पास दूसरी मुँहपोतिका दिखती है। इसलिए यह साधु ज्यादा परिग्रहता दोष से कुशील है। भगवंत ने हस्त में ज्यादा परिग्रह धारण करने के लिए साधु को आज्ञा नहीं दी। इसलिए हे वत्स ! हीन सत्त्ववाला भी मन से ऐसा अध्यवसाय न करे कि शायद मेरी यह मुँहपोतिका फटकर – तूटकर नष्ट होगी तो दूसरी कहाँ से मिलेगी ? वो हीनसत्त्व ऐसा नहीं सोचता कि – अधिक और अनुपयोग से उपधि धारण करने से मेरे परिग्रह व्रत का भंग होगा या क्या संयम में रंगी आत्मा संयम में जरुरी धर्म के उपकरण समान मुँहपत्ति जैसे साधन में सिदाय सही ? जरुर वैसी आत्मा उसमें विषाद न पाए। सचमुच वैसी आत्मा खुद को मैं हीन सत्त्ववाला हूँ, ऐसा प्रगट करता है, उन्मार्ग के आचरण की प्रशंसा करता है। और प्रवचन मलिन करता है। यह सामान्य हकीकत तुम नहीं देख सकते ? इस साधु ने कल बिना वस्त्र की स्त्री के शरीर को रागपूर्वक देखकर उसका चिन्तवन करके उसकी आलोचना प्रतिक्रमण नहीं किए, वो तुम्हें मालूम नहीं क्या ? इस साधु के शरीर पर फोल्ले हुए हैं, उस कारण से विस्मय पानेवाले मुखवाला नहीं देखता। अभी – अभी उसे लोच करने के लिए अपने हाथ से ही बिना दिए भस्म ग्रहण की, तुने भी प्रत्यक्ष वैसा करते हुए उन्हें देखा है। कल संघाटक को सूर्योदय होने से पहले ऐसा कहा कि – उठो और चलो, हम विहार करें। सूर्योदय हो गया है। वो खुद तुने नहीं सुना ? इसमें जो बड़ा नवदिक्षित है वो बिना उपयोग के सो गया और बिजली अग्निकाय से स्पर्श किया उसे तुने देखा था। उसने संथारा ग्रहण न किया तब सुबह को हरे घास के पहनने के कपड़े के छोर से संघट्टा किया, तब बाहर खूले में पानी का परिभोग किया। बीज – वनस्पतिकाय पर पग चाँपकर चलता था। अविधि से खारी ज़मीन पर चलकर मधुर ज़मीन पर संक्रमण किया। और रास्ते में चलने के बाद साधु ने सौ कदम चलने के बाद इरियावहियं प्रतिक्रमना चाहिए। उस तरह चलना चाहिए, उस तरह चेष्टा करनी चाहिए, उस तरह बोलना चाहिए, उस तरह शयन करना चाहिए कि जिससे छ काय के जीव को सूक्ष्म या बादर, पर्याप्ता या अपर्याप्ता, आते – जाते सर्व जीव प्राणभूत या सत्त्व को संघट्ट परितापन किलामणा या उपद्रव न हो। इन साधुओं में बताए इन सर्व में से एक भी यहाँ नहीं दिखता। और फिर मुहपतिका पड़िलेहण करते हुए उस साधु को मैंने प्रेरणा दी कि वायुकाय का संघट्टा हो वैसे फडफडाट आवाज़ करते हुए पड़िलेहणा करते हो। पड़िलेहण करने का कारण याद करवाया। जिसका इस तरह के उपयोगवाला जयणायुक्त संयम है। और वो तुम काफी पालन करते हो तो बिना संदेह की बात है कि उसमें तुम ऐसा उपयोग रखते हो ? इस समय तुमने मुजे रोका कि मौन रखो, साधुओं को हमें कुछ कहना न कल्पे। यह हकीकत क्या तूं भूल गया ? इसने सम्यक्‌ स्थानक में से एक भी स्थानक सम्यक्‌ तरह से रक्षण नहीं किया, जिसमें इस तरह का प्रमाद हो उसे साधु किस तरह कह सकते हैं ? जिनमें इस तरह का निर्ध्वंसपन हो वो साधु नहीं है। हे भद्रमुख ! देख, श्वान समान निर्दय छ काय जीव का यह विराधन करनेवाला हो, तो उसके लिए मुझे क्यों अनुराग हो? या तो श्वान भी अच्छा है कि जिसे अति सूक्ष्म भी नियम व्रत का भंग नहीं होता | इस नियम का भंग करनेवाला होने से किसके साथ उसकी तुलना कर सके ? इसलिए हे वत्स ! सुमति ! इस तरह के कृत्रिम आचरण से साधु नहीं बन सकते। उनको तीर्थंकर के वचन का स्मरण करनेवाला कौन वंदन करे ? दूसरी बात यह भी ध्यान में रखनी है कि उनके संसर्ग से हमें भी चरण – करण में शिथिलता आ जाए कि जिससे बार – बार घोर भव – परम्परा में हमारा भ्रमण हो। तब सुमति ने कहा कि वो कुशील हो या सुशील हो तो भी मैं तो उनके पास ही प्रव्रज्या अपनाऊंगा और फिर तुम कहते हो वही धर्म है लेकिन उसे करने के लिए आज कौन समर्थ है ? इसलिए मेरा हाथ छोड़ दो, मुजे उनके साथ जाना है वो दूर चले जाएंगे तो फिर मिलन होना मुश्किल है। तब नागिल ने कहा कि – हे भद्रमुख ! उनके साथ जाने में तुम्हारा कल्याण नहीं, मैं तुम्हें हित का वचन देता हूँ। यह हालात होने से ज्यादा गुणकारक हो उसका ही सेवन कर। मैं कहीं तुम्हें बलात्कार से नहीं पकड़ रहा। अब बहोत समय कईं उपाय करके निवारण करने के बावजूद भी न रूका और मंद भाग्यशाली उस सुमति ने हे गौतम ! प्रव्रज्या अंगीकार करके उस के बाद समय आने पर विहार करते करते पाँच महिने के बाद महा भयानक बारह साल का अकाल पड़ा, तब वो साधु उस काल के दोष से, दोष की आलोचना प्रतिक्रमण किए बिना मौत पाकर भूत, यक्ष, राक्षस, पिशाच आदि व्यंतर देव के वाहनरूप से पेदा हुए। बाद में म्लेच्छ जाति में माँसाहार करनेवाले क्रूर आचरण करनेवाले हुए। क्रूर परीणामवाले होने से साँतवी नारकी में पैदा हुए वहाँ से नीकलकर तीसरी चौबीसी में सम्यक्‌त्व पाएंगे। उसके बाद सम्यक्‌त्व प्राप्त हुए भव से तीसरे भव में चार लोग सिद्धि पाएंगे, लेकिन जो सर्वथा बड़े पाँचवे थे वो एक सिद्धि नहीं पाएंगे। क्योंकि वो एकान्त मिथ्यादृष्टि और अभव्य हैं। हे भगवंत ! जो सुमति है वो भव्य या अभव्य ? हे गौतम, वो भव्य हैं। हे भगवंत ! वो भव्य हैं तो मरके कहाँ उत्पन्न होंगे ? हे गौतम ! परमधार्मिक असुरों में उत्पन्न होगा।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] evamayanniuna tao bhaniyam sumaina. Jaha–tumam cheva satthavadi bhanasu eyaim, navaram na juttameyam jam sahunam avannavayam bhasijjai. Annam tu–kim na pechchhasi tumam eesim mahanubhaganam chetthiyam chhattha-tthama-dasama duvalasa-masa- khamanaihim aha-raggahanam gimhayavanatthae virasana-ukkuduyasana-nanabhiggaha-dharanenam cha kattha-tavonucharanenam cha pasukkham mamsa-soniyam ti mahau-vasago si tumam, maha-bhasa-samiti viiya tae, jenerisa-gunovauttanam pi mahanubhaganam sahunam kusile tti namam samkappiyamti. Tao bhaniyam nailenam jaha ma vachchha tumam etenam pariosamuvayasu, jaha ahayam asavarenam parimusio. Akama-nijjarae vi kimchi kammakkhayam bhavai, kim puna jam bala-tavenam ta ete bala-tavassino datthavve, jao nam kim kimchi ussuttamaggayarittameesim [na] paise. Annam cha–vachchha sumai natthi mamam imanovarim ko vi suhumo vi manasavi u paoso, jenahameesim dosa-gahanam karemi, kim tu mae bhagavao titthayarassa sagase erisamavadhariyam, jaha–kusile adatthavve. Tahe bhaniyam sumaina jaha–jariso tumam nibuddhio tariso so vi titthayaro, jena tujjhameyam vayariyam ti. Tao evam bhanamanassa sahatthenam jhampiyam muha-kuharam sumaissa nailenam, bhanio ya. Jaha–bhaddamuha ma jagekka-guruno titthayarassasayanam kunasu,. Mae puna bhanasu jahichchhiyam, naham te kimchi padibhanami. Tao bhaniyam sumaina jaha jai ete vi sahuno kusila ta ettham jage na koi susilo atthi. Tao bhaniyam nailenam. Jaha–bhaddamuha sumai ettham jayalamghanijja vakkassa bhagavao vayanamayareyavvam, jam chatthikkayae na visamvayejja, no nam balatavassina chetthiyam, jao nam jinayamdavayanenam niyamao tava kusile imam disamti, pavvajjae-gamdham pi no disae esim, jenam pechchha pechchha taveyassa sahuno biijjiyam muhanamtagam disai, ta esa tava ahiga-pariggaha-dosenam kusilo. Na eyam sahuna bhagavaya-ittham jamahiya-pariggaha-vidharanam kire, ta, vachchha, hina-sattohanno esevam manasajjhavase jaha jai mameyam muhanamtagam vippanassihii ta biyam kattha kaham pavejja na evam chimtei mudho jaha–ahiganuvaogovahi-dharanenam majjham pariggaha-vayassa bhamgam hohi. Ahava kim samjamebhirao esa muhanamtagaisamjamovaogadhammovagaranenam visiejja niyamao na visie. Navara-mattanayam hina-sattohamii payade ummaggayaranam cha payamsei pavayanam cha mailei tti. Eso u na pechchhasi samannachatto eenam kallam tie viniyamsanaiitthie amgayatthim nijjhaiuna jam naloiyam na padikkamtam tam kim tae na vinnayam esa u na pechchhasi parudha-vipphodaga-vimhiyanano etenam sampayam cheva loyatthae sahatthenamadinna-chhara-gahanam kayam. Tae vi ditthameyam ti. Eso u na pechchhasi samghadiya kallo eenam, anuggae surie uttheha uggayam suriyam ti taya vihasiyaminam. Eso u na pechchhasimesim jittha-seho. Eso ajja rayanie anovautto pasutto vijjukkae phusio. Na etenam kappa-gahanam kayam. Taha pabhae hariya-tanam vasa-kappamchalenam samghattiyam. Taha bahirodagassa paribhogam kayam. Biyakayassovarenam parisa-kkio avihie esa khara-thamdilao mahuram thamdilam samkamio. Taha-paha-padivannenam sahuna kama-sayaikkame iriyam padikkamiyavvam. Tahachareyavvam taha chittheyavvam taha maseyavvam taha saeyavvam jaha chhakkayamaigayanam jivanam suhuma-bayara-pajjattapajjatta-gamagama-savvajivapanabhuya-sattanam samghattana-pariyavana-kilamano-ddavanam va na bhavejja. Ta etesim evaiyanam eyassa ekkamavi na ettham disae. Jam puna muhanamtagam padilehamano ajjam mae esa choio. Jaha erisam padilehanam kare je nam vaukkayam phadaphadassa samghattejja. Sariyam cha padilehanae samtiyam kariyam ti, jasserisam jayanam erisam sovaogam humkahisi samjamam, na samdeham jasserisama-uttattanam tujjham ti. Ettham cha tae ham vinivario jaha nam mugovahi na amhanam sahuhim samam kimchi bhaneyavvam kappe. Ta kimeyam te visumariyam ta bhaddamuha eenam samjama-tthanamtaranam egamavi no parikkhiyam, ta kimesa sahu bhanejja jasserisam pamattattanam na esa sahu jasserisam niddhamma-sampalattanam. Bhaddamuha pechchha pechchha suno iva nittimso chhakkaya-nimaddano kahabhirame eso. Ahava varam suno jassa nam suhumam vi niyama-vaya-bhamgam no bhavejja. Eso u niyama-bhamgam karemano kenam uvamejja ta vachchha sumai bhaddamuha na erisa kattavvayaranao bhavamti sahu, etehim cha kattavvehim titthayara-vayanam saremano ko etesim vamdanagamavi karejja Annam cha eesim samsaggena kayai amhanam pi charana-karanesum sidhilattam bhavejja, je nam puno puno ahimdemo ghoram bhavaparamparam. Tao bhaniyam sumaina jaha–jai ee kusile jai susile, taha vi mae eehim samam gamtavvam java eesim samam pavvajja kayavva. Jam puna tumam karesi tameva dhammam, navaram ko ajja tam samayarium sakka ta muyasu karam, mae etehim samam gamtavvam java nam no duram vayamti se sahuno tti. Tao bhaniyam nailenam bhaddamuha sumai no kallanam etehim samam gachchhamanassa tujjham ti. Ahayam cha tubbham hiya-vayanam bhanami evam thie jam cheva bahu-gunam tamevanusevaya,. Naham te dukkhena dharemi. Aha annaya anegovaehim pi nivarijjamto na thio, gao so mamda-bhago sumati goyama pavvaio ya. Aha annaya vachchamtenam masa-pamchagenam agao maharoravo duvalasa-samvachchhario dubbhikkho. Tao te sahuno takkala-dosenam analoiya-padikkamte mariunovavanne bhuya-jakkha-rakkhasa-pisayadinam vanamamtaradevanam vahanattae. Tao vi chaviunam michchhajatie kunimahara-kurajjhavasaya-dosao sattamae. Tao uvvattiunam taiyae chauvisigae sammattam pavihimti. Tao ya sammatta-lambha-bhavao taiya-bhave chauro sijjhihimti. Ego na sijjhihii jo so pamchamago savva-jettho. Jao nam so egamta-michchha-ditthi-abhavvo ya. Se bhayavam je nam sumati se bhavve uyahu abhavve. Goyama bhavve. Se bhayavam jai-nam bhavve, ta nam mae samane kahim samuppanne goyama paramahammiyasuresum.
Sutra Meaning Transliteration : Aisa sunakara sumati ne kaha – tuma hi satyavadi ho aura isa prakara bola sakate ho. Lekina sadhu ke avarnavada bolana jara bhi uchita nahim hai. Vo mahanubhava ke dusare vyavahara para najara kyom nahim karate\? Chhattha, atthama, chara – pamcha upavasa masakshamana adi tapa karake ahara grahana karanevale grishma kala mem atapana lete hai. Aura phira virasana utkatukasana alaga – alaga taraha ke abhigraha dharana karana, kashtavale tapa karana ityadi dharmanushthana acharana karake mamsa aura lahum jinhomne sukha die haim, isa taraha ke gunayukta mahanubhava sadhuom ko tuma jaise mahan bhasha samitivale bare shravaka hokara yaha sadhu kushilavale aisa samkalpa karana yukta nahim hai. Usake bada nagila ne kaha ki – he vatsa ! Yaha usake dharmaanushthana se tu samtosha mata kara. Jaise ki aja mem – avishvasa se lumta chuka hum, bina ichchha se ae hue paradhinata se bhugatane ke duhkha se, akama nirjara se bhi karma ka kshaya hota hai to phira balatapa se karmakshaya kyom na ho\? Ina sabako balatapasvi manana. Kya tumhem utaka utsutramarga ka alpa sevanapana nahim dikhata\? Aura phira he vatsa sumati ! Muje yaha sadhu para mana se bhi sukshma pradvesha nahim ki jisase maim unaka dosha grahana karum. Lekina tirthamkara bhagavamta ke pasa se usa prakara avadharana kiya hai ki kushila ko mata dekhana. Taba sumati ne use kaha ki, jisa taraha ka tu nirbuddhi hai usi taraha ke vo tirthamkara homge jisane tumhem isa prakara kaha. Usake bada isa prakara bolanevale sumati ke mukha rupi chhidra ko apane hasta se bamdha karake nagila ne use kaha ki – jagata ke mahana guru, tirthamkara bhagavamta ki ashatana mata kara. Mujhe tumhem jo kahana hai vo kaho, maim tumhem koi pratyuttara nahim dumga. Taba sumati ne use kaha ki isa jagata mem yaha sadhu bhi yadi kushila ho to phira sushila sadhu kahim nahim milemge. Taba nagila ne kaha ki – sumati ! Yaham jagata mem alamghaniya vachanayukta bhagavamta ka vachana mana sahita grahana karana chahie. Astika atma ko usake vachana mem kisi dina visamvada nahim hota aura phira bala tapasvi ki cheshta mem adara mata karana kyomki jinendra vachana anusara yakinana vo kushila dikhate haim. Unaki pravrajya ke lie gamdha bhi nahim dikhati. Kyomki yadi isa sadhu ke pasa dusari mumhapotika dikhati hai. Isalie yaha sadhu jyada parigrahata dosha se kushila hai. Bhagavamta ne hasta mem jyada parigraha dharana karane ke lie sadhu ko ajnya nahim di. Isalie he vatsa ! Hina sattvavala bhi mana se aisa adhyavasaya na kare ki shayada meri yaha mumhapotika phatakara – tutakara nashta hogi to dusari kaham se milegi\? Vo hinasattva aisa nahim sochata ki – adhika aura anupayoga se upadhi dharana karane se mere parigraha vrata ka bhamga hoga ya kya samyama mem ramgi atma samyama mem jaruri dharma ke upakarana samana mumhapatti jaise sadhana mem sidaya sahi\? Jarura vaisi atma usamem vishada na pae. Sachamucha vaisi atma khuda ko maim hina sattvavala hum, aisa pragata karata hai, unmarga ke acharana ki prashamsa karata hai. Aura pravachana malina karata hai. Yaha samanya hakikata tuma nahim dekha sakate\? Isa sadhu ne kala bina vastra ki stri ke sharira ko ragapurvaka dekhakara usaka chintavana karake usaki alochana pratikramana nahim kie, vo tumhem maluma nahim kya\? Isa sadhu ke sharira para pholle hue haim, usa karana se vismaya panevale mukhavala nahim dekhata. Abhi – abhi use locha karane ke lie apane hatha se hi bina die bhasma grahana ki, tune bhi pratyaksha vaisa karate hue unhem dekha hai. Kala samghataka ko suryodaya hone se pahale aisa kaha ki – utho aura chalo, hama vihara karem. Suryodaya ho gaya hai. Vo khuda tune nahim suna\? Isamem jo bara navadikshita hai vo bina upayoga ke so gaya aura bijali agnikaya se sparsha kiya use tune dekha tha. Usane samthara grahana na kiya taba subaha ko hare ghasa ke pahanane ke kapare ke chhora se samghatta kiya, taba bahara khule mem pani ka paribhoga kiya. Bija – vanaspatikaya para paga champakara chalata tha. Avidhi se khari zamina para chalakara madhura zamina para samkramana kiya. Aura raste mem chalane ke bada sadhu ne sau kadama chalane ke bada iriyavahiyam pratikramana chahie. Usa taraha chalana chahie, usa taraha cheshta karani chahie, usa taraha bolana chahie, usa taraha shayana karana chahie ki jisase chha kaya ke jiva ko sukshma ya badara, paryapta ya aparyapta, ate – jate sarva jiva pranabhuta ya sattva ko samghatta paritapana kilamana ya upadrava na ho. Ina sadhuom mem batae ina sarva mem se eka bhi yaham nahim dikhata. Aura phira muhapatika parilehana karate hue usa sadhu ko maimne prerana di ki vayukaya ka samghatta ho vaise phadaphadata avaza karate hue parilehana karate ho. Parilehana karane ka karana yada karavaya. Jisaka isa taraha ke upayogavala jayanayukta samyama hai. Aura vo tuma kaphi palana karate ho to bina samdeha ki bata hai ki usamem tuma aisa upayoga rakhate ho\? Isa samaya tumane muje roka ki mauna rakho, sadhuom ko hamem kuchha kahana na kalpe. Yaha hakikata kya tum bhula gaya\? Isane samyak sthanaka mem se eka bhi sthanaka samyak taraha se rakshana nahim kiya, jisamem isa taraha ka pramada ho use sadhu kisa taraha kaha sakate haim\? Jinamem isa taraha ka nirdhvamsapana ho vo sadhu nahim hai. He bhadramukha ! Dekha, shvana samana nirdaya chha kaya jiva ka yaha viradhana karanevala ho, to usake lie mujhe kyom anuraga ho? Ya to shvana bhi achchha hai ki jise ati sukshma bhi niyama vrata ka bhamga nahim hota | Isa niyama ka bhamga karanevala hone se kisake satha usaki tulana kara sake\? Isalie he vatsa ! Sumati ! Isa taraha ke kritrima acharana se sadhu nahim bana sakate. Unako tirthamkara ke vachana ka smarana karanevala kauna vamdana kare\? Dusari bata yaha bhi dhyana mem rakhani hai ki unake samsarga se hamem bhi charana – karana mem shithilata a jae ki jisase bara – bara ghora bhava – parampara mem hamara bhramana ho. Taba sumati ne kaha ki vo kushila ho ya sushila ho to bhi maim to unake pasa hi pravrajya apanaumga aura phira tuma kahate ho vahi dharma hai lekina use karane ke lie aja kauna samartha hai\? Isalie mera hatha chhora do, muje unake satha jana hai vo dura chale jaemge to phira milana hona mushkila hai. Taba nagila ne kaha ki – he bhadramukha ! Unake satha jane mem tumhara kalyana nahim, maim tumhem hita ka vachana deta hum. Yaha halata hone se jyada gunakaraka ho usaka hi sevana kara. Maim kahim tumhem balatkara se nahim pakara raha. Aba bahota samaya kaim upaya karake nivarana karane ke bavajuda bhi na ruka aura mamda bhagyashali usa sumati ne he gautama ! Pravrajya amgikara karake usa ke bada samaya ane para vihara karate karate pamcha mahine ke bada maha bhayanaka baraha sala ka akala para, taba vo sadhu usa kala ke dosha se, dosha ki alochana pratikramana kie bina mauta pakara bhuta, yaksha, rakshasa, pishacha adi vyamtara deva ke vahanarupa se peda hue. Bada mem mlechchha jati mem mamsahara karanevale krura acharana karanevale hue. Krura parinamavale hone se samtavi naraki mem paida hue vaham se nikalakara tisari chaubisi mem samyaktva paemge. Usake bada samyaktva prapta hue bhava se tisare bhava mem chara loga siddhi paemge, lekina jo sarvatha bare pamchave the vo eka siddhi nahim paemge. Kyomki vo ekanta mithyadrishti aura abhavya haim. He bhagavamta ! Jo sumati hai vo bhavya ya abhavya\? He gautama, vo bhavya haim. He bhagavamta ! Vo bhavya haim to marake kaham utpanna homge\? He gautama ! Paramadharmika asurom mem utpanna hoga.