Sutra Navigation: Jambudwippragnapati ( जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1007667 | ||
Scripture Name( English ): | Jambudwippragnapati | Translated Scripture Name : | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Translated Chapter : |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 67 | Category : | Upang-07 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से सरे भरहेणं रन्ना निसट्ठे समाणे खिप्पामेव दुवालस जोयणाइं गंता मागहतित्थाधिपतिस्स देवस्स भवनंसि निवइए। तए णं से मागहतित्थाहिवई देवे भवनंसि सरं निवइयं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुट्ठे चंडिक्किए कुविए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडिं निडाले साहरइ, साहरित्ता एवं वयासी–केस णं भो! एस अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे हीनपुण्णचाउद्दसे हिरिसिरिपरिवज्जिए, जे णं मम इमाए एयारूवाए दिव्वाए देवड्ढीए दिव्वाए देवजुईए दिव्वेणं दिवानुभावेणं लद्धाए पत्ताए अभिसमन्नागयाए उप्पिं अप्पुस्सुए भवनंसि सरं निसिरइ त्तिकट्टु सीहासनाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता जेणेव से नामाहयके सरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं नामाहयकं सरं गेण्हइ, गेण्हित्ता नामकं अनुप्पवाएइ, नामकं अनुप्पवाएमाणस्स इमे एयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– उप्पन्ने खलु भो! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे भरहे नामं राया चाउरंतचक्कवट्टी, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पन्नमणागयाणं मागहतित्थकुमाराणं देवाणं राईणमुवत्थानियं करेत्तए, तं गच्छामि णं अहंपि भरहस्स रन्नो उवत्थानियं करेमित्तिकट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हारं मउडं कुंडलाणि कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य सरं च नामाहयं मागहतित्थोदगं च गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्घाए उद्धुयाए दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिंखिणीयाइं पंचवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिए करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु भरहं रायं जएणं विजएणं बद्धावेइ, बद्धावेत्ता एवं वयासी– अभिजिए णं देवानुप्पिएहिं केवलकप्पे भरहे वासे पुरत्थिमेणं मागहतित्थमेराए, तं अहन्नं देवानुप्पियाणं विसयवासी, अहन्नं देवानुप्पियाणं आणत्तीकिंकरे, अहन्नं देवानुप्पियाणं पुरत्थिमिल्ले अंतवाले, तं पडिच्छंतु णं देवानुप्पिया! ममं इमेयारूवं पीइदानं तिकट्टु हारं मउडं कुंडलाणि कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य सरं च नामाहयं मागहतित्थोदगं च उवनेइ। तए णं से भरहे राया मागहतित्थकुमारस्स देवस्स इमेयारूवं पीइदानं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता मागहतित्थकुमारं देवं सक्कारेइ सम्मानेइ, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता पडिविसज्जेइ। तए णं से भरहे राया रहं परावत्तेइ, परावत्तेत्ता मागहतित्थेणं लवणसमुद्दाओ पच्चुत्तरइ, पच्चुत्तरित्ता जेणेव विजयखंधावारनिवेसे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुरगे निगिण्हइ, निगिण्हित्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता रहाओ पच्चोरुहति, पच्चोरुहित्ता जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता मज्जनघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता जाव ससिव्व पियदंसणे नरवई मज्जनघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सुहासनवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ, पारेत्ता भोयणमंडवाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासनवरगए पुरत्थाभिमुहे निसीयइ, निसीइत्ता अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! उस्सुक्कं उक्करं उक्किट्ठं अदिज्जं अमिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अनेगतालायराणुचरियं अनुद्धुयमुइंगं अमिलाय मल्लदामं पमुइयपक्कीलिय– सपुरजनजानवयं विजयवेजइयं मागहतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियं महाहिमं करेह, करेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ताओ अट्ठारस सेणि-प्पसेणीओ भरहेणं रन्ना एवं वुत्ताओ समाणीओ हट्ठतुट्ठाओ जाव करेंति, करेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तए णं से दिव्वे चक्करयणे वइरामयतुंबे लोहियक्खामयारए जंबूनयनेमीए नानामणि-खुरप्पवालिपरिगए मणिमुत्ताजालभूसिए सनंदिघोसे सखिंखिणीए दिव्वे तरुणरविमंडलणिभे नानामणिरयणघंटियाजालपरिक्खित्ते सव्वोउयसुरभिकुसुमआसत्तमल्लदामे अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडियसद्दसन्निनादेणं पूरेंते चेव अंबरतलं, नामेण सुदंसणे, नरवइस्स पढमे चक्करयणे मागहतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउह-घरसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता दाहिणपच्चत्थिमं दिसिं वरदामतित्थाभिमुहे पयाए यावि होत्था। | ||
Sutra Meaning : | राजा भरत द्वारा छोड़े जाते ही वह बाण तुरन्त बारह योजन तक जाकर मागध तीर्थ के अधिपति – के भवन में गिरा। मागध तीर्थाधिपति देव तत्क्षण क्रोध से लाल हो गया, रोषयुक्त, कोपाविष्ट, प्रचण्ड और क्रोधाग्नि से उद्दीप्त हो गया। कोपाधिक्य से उसके ललाट पर तीन रेखाएं उभर आई। उसकी भृकुटि तन गई। वह बोला – ‘अप्रार्थित – मृत्यु को चाहने वाला, दुःखद अन्त तथा अशुभ लक्षण वाला, पुण्य चतुर्दशी जिस दिन हीन – थी, उस अशुभ दिन में जन्मा हुआ, लज्जा तथा श्री – शोभा से परिवर्जित वह कौन अभागा है, जिसने उत्कृष्ट देवानुभाव से लब्ध प्राप्त स्वायत्त मेरी ऐसी दिव्य देवऋद्धि, देवद्युति पर प्रहार करते हुए मौत से न ड़रते हुए मेरे भवन में बाण गिराया है ?’ वह अपने सिंहासन से उठा और उस बाण को उठाया, नामांकन देखा। देखकर उसके मन में ऐसा चिन्तन, विचार, मनोभाव तथा संकल्प उत्पन्न हुआ – ‘जम्बूद्वीप के अन्तर्वर्ती भरतक्षेत्र में भरत नामक चातुरन्त चक्रवर्ती राजा उत्पन्न हुआ है। अतः अतीत, प्रत्युत्पन्न तथा अनागत – मागधतीर्थ के अधिष्ठातृ देवकुमारों के लिए यह उचित है, परम्परागत व्यवहारानुरूप है कि वे राजा को उपहार भेंट करे। इसलिए मैं भी जाऊं, राजा को उपहार भेंट करूँ।’ यों विचार कर उसने हार, मुकुट, कुण्डल, कटक, कड़े, त्रुटित, वस्त्र, अन्यान्य विविध अलंकार, भरत के नाम से अंकित बाण और मागध तीर्थ का जल लिया। वह उत्कृष्ट, त्वरित वेगयुक्त, सिंह की गति की ज्यों प्रबल, शीघ्रतायुक्त, तीव्रतायुक्त, दिव्य देवगति से जहाँ राजा भरत था, वहाँ आकर छोटी – छोटी घंटियों से युक्त पंचरंगे उत्तम वस्त्र पहने हुए, आकाश में संस्थित होते हुए उसने अपने जुड़े हुए दोनों हाथों से अंजलिपूर्वक राजा भरत को ‘जय, विजय’ शब्दों द्वारा वर्धापित करके कहा – आपने पूर्व दिशा में मागध तीर्थ पर्यन्त समस्त भरतक्षेत्र भली – भाँति जीत लिया है। मैं आप द्वारा जीते हुए देश का निवासी हूँ, आपका अनुज्ञावर्ती सेवक हूँ, आपका पूर्व दिशा का अन्तपाल हूँ – । अतः आप मेरे द्वारा प्रस्तुत यह प्रीतिदान – एवं हर्षपूर्वक अपहृत भेंट स्वीकार करें।’ राजा भरत ने मागध तीर्थकुमार द्वारा इस प्रकार प्रस्तुत प्रीतिदान स्वीकार किया। मागध तीर्थकुमार देव का सत्कार किया, सम्मान किया, विदा किया। फिर राजा भरत ने अपना रथ वापस मोड़ा। वह मागध तीर्थ से होता हुआ लवणसमुद्र से वापस लौटा। जहाँ उसका सैन्य था, वहाँ आकर घोड़ों को रोका, रथ को ठहराया, रथ से नीचे उतरा, स्नानघर में प्रविष्ट हुआ। स्नानादि सम्पन्न कर भोजनमण्डप में आकर सुखासन से बैठा, तेले का पारण किया। भोजनमण्डप से बाहर निकला, पूर्व की ओर मुँह किये सिंहासन पर आसीन हुआ। सिंहासनासीन होकर उसने अठारह श्रेणीप्रश्रेणी – अधिकृत पुरुषों को बुलाया। उन्हें कहा – मागधतीर्थकुमार देव को विजित कर लेने के उपलक्ष में अष्ट दिवसीय महोत्सव आयोजित करो। तत्पश्चात् शस्त्रागार में प्रतिनिष्क्रान्त हुआ – । उस चक्ररत्न का अरक – हीरों से जड़ा था। आरे लाल रत्नों से युक्त थे। उसकी नेमि स्वर्णमय थी। उस का भीतरी परिधिभाग अनेक मणियों से परिगत था। वह चक्रमणियों तथा मोतियों के समूह से विभूषित था। वह मृदंग आदि बारह प्रकार के वाद्यों के घोष से युक्त था। उसमें छोटी – छोटी घण्टियाँ लगी थीं। वह दिव्य प्रभावयुक्त था, मध्याह्न के सूर्य के सदृश तेजयुक्त था, गोलाकार था, अनेक प्रकार की मणियों एवं रत्नों की घण्टियों के समूह से परिव्याप्त था। सब ऋतुओं में खिलनेवाले सुगन्धित पुष्पमालाओं से युक्त था, अन्तरिक्ष प्रतिपन्न था, गतिमान था, १००० यक्षों से संपरिवृत्त था, दिव्य वाद्यों के शब्द से गगनतल को मानो भर रहा था। उसका सुदर्शन नाम था। राजा भरत के उस प्रथम – चक्ररत्नने यों शस्त्रागार से निकलकर नैऋत्यकोण में वरदाम तीर्थ की ओर प्रयाण किया। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se sare bharahenam ranna nisatthe samane khippameva duvalasa joyanaim gamta magahatitthadhipatissa devassa bhavanamsi nivaie. Tae nam se magahatitthahivai deve bhavanamsi saram nivaiyam pasai, pasitta asurutte rutthe chamdikkie kuvie misimisemane tivaliyam bhiudim nidale saharai, saharitta evam vayasi–kesa nam bho! Esa apatthiyapatthae duramtapamtalakkhane hinapunnachauddase hirisiriparivajjie, je nam mama imae eyaruvae divvae devaddhie divvae devajuie divvenam divanubhavenam laddhae pattae abhisamannagayae uppim appussue bhavanamsi saram nisirai ttikattu sihasanao abbhutthei, abbhutthetta jeneva se namahayake sare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta tam namahayakam saram genhai, genhitta namakam anuppavaei, namakam anuppavaemanassa ime eyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha– Uppanne khalu bho! Jambuddive dive bharahe vase bharahe namam raya chauramtachakkavatti, tam jiyameyam tiyapachchuppannamanagayanam magahatitthakumaranam devanam rainamuvatthaniyam karettae, tam gachchhami nam ahampi bharahassa ranno uvatthaniyam karemittikattu evam sampehei, sampehetta haram maudam kumdalani kadagani ya tudiyani ya vatthani ya abharanani ya saram cha namahayam magahatitthodagam cha genhai, genhitta tae ukkitthae turiyae chavalae jainae sihae sigghae uddhuyae divvae devagaie viivayamane-viivayamane jeneva bharahe raya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta amtalikkhapadivanne sakhimkhiniyaim pamchavannaim vatthaim pavara parihie karayalapariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu bharaham rayam jaenam vijaenam baddhavei, baddhavetta evam vayasi– Abhijie nam devanuppiehim kevalakappe bharahe vase puratthimenam magahatitthamerae, tam ahannam devanuppiyanam visayavasi, ahannam devanuppiyanam anattikimkare, ahannam devanuppiyanam puratthimille amtavale, tam padichchhamtu nam devanuppiya! Mamam imeyaruvam piidanam tikattu haram maudam kumdalani kadagani ya tudiyani ya vatthani ya abharanani ya saram cha namahayam magahatitthodagam cha uvanei. Tae nam se bharahe raya magahatitthakumarassa devassa imeyaruvam piidanam padichchhai, padichchhitta magahatitthakumaram devam sakkarei sammanei, sakkaretta sammanetta padivisajjei. Tae nam se bharahe raya raham paravattei, paravattetta magahatitthenam lavanasamuddao pachchuttarai, pachchuttaritta jeneva vijayakhamdhavaranivese jeneva bahiriya uvatthanasala teneva uvagachchhai, uvagachchhitta turage niginhai, niginhitta raham thavei, thavetta rahao pachchoruhati, pachchoruhitta jeneva majjanaghare teneva uvagachchhati, uvagachchhitta majjanagharam anupavisai, anupavisitta java sasivva piyadamsane naravai majjanagharao padinikkhamai, padinikkhamitta jeneva bhoyanamamdave teneva uvagachchhai, uvagachchhitta bhoyanamamdavamsi suhasanavaragae atthamabhattam parei, paretta bhoyanamamdavao padinikkhamai, padinikkhamitta jeneva bahiriya uvatthanasala jeneva sihasane teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sihasanavaragae puratthabhimuhe nisiyai, nisiitta attharasa senippasenio saddavei, saddavetta evam vayasi– Khippameva bho devanuppiya! Ussukkam ukkaram ukkittham adijjam amijjam abhadappavesam adamdakodamdimam adharimam ganiyavaranadaijjakaliyam anegatalayaranuchariyam anuddhuyamuimgam amilaya malladamam pamuiyapakkiliya– sapurajanajanavayam vijayavejaiyam magahatitthakumarassa devassa atthahiyam mahahimam kareha, karetta mama eyamanattiyam pachchappinaha. Tae nam tao attharasa seni-ppasenio bharahenam ranna evam vuttao samanio hatthatutthao java karemti, karetta eyamanattiyam pachchappinamti. Tae nam se divve chakkarayane vairamayatumbe lohiyakkhamayarae jambunayanemie nanamani-khurappavaliparigae manimuttajalabhusie sanamdighose sakhimkhinie divve tarunaravimamdalanibhe nanamanirayanaghamtiyajalaparikkhitte savvouyasurabhikusumaasattamalladame amtalikkhapadivanne jakkhasahassasamparivude divvatudiyasaddasanninadenam puremte cheva ambaratalam, namena sudamsane, naravaissa padhame chakkarayane magahatitthakumarassa devassa atthahiyae mahamahimae nivvattae samanie auha-gharasalao padinikkhamai, padinikkhamitta dahinapachchatthimam disim varadamatitthabhimuhe payae yavi hottha. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Raja bharata dvara chhore jate hi vaha bana turanta baraha yojana taka jakara magadha tirtha ke adhipati – ke bhavana mem gira. Magadha tirthadhipati deva tatkshana krodha se lala ho gaya, roshayukta, kopavishta, prachanda aura krodhagni se uddipta ho gaya. Kopadhikya se usake lalata para tina rekhaem ubhara ai. Usaki bhrikuti tana gai. Vaha bola – ‘aprarthita – mrityu ko chahane vala, duhkhada anta tatha ashubha lakshana vala, punya chaturdashi jisa dina hina – thi, usa ashubha dina mem janma hua, lajja tatha shri – shobha se parivarjita vaha kauna abhaga hai, jisane utkrishta devanubhava se labdha prapta svayatta meri aisi divya devariddhi, devadyuti para prahara karate hue mauta se na rarate hue mere bhavana mem bana giraya hai\?’ vaha apane simhasana se utha aura usa bana ko uthaya, namamkana dekha. Dekhakara usake mana mem aisa chintana, vichara, manobhava tatha samkalpa utpanna hua – ‘Jambudvipa ke antarvarti bharatakshetra mem bharata namaka chaturanta chakravarti raja utpanna hua hai. Atah atita, pratyutpanna tatha anagata – magadhatirtha ke adhishthatri devakumarom ke lie yaha uchita hai, paramparagata vyavaharanurupa hai ki ve raja ko upahara bhemta kare. Isalie maim bhi jaum, raja ko upahara bhemta karum.’ yom vichara kara usane hara, mukuta, kundala, kataka, kare, trutita, vastra, anyanya vividha alamkara, bharata ke nama se amkita bana aura magadha tirtha ka jala liya. Vaha utkrishta, tvarita vegayukta, simha ki gati ki jyom prabala, shighratayukta, tivratayukta, divya devagati se jaham raja bharata tha, vaham akara chhoti – chhoti ghamtiyom se yukta pamcharamge uttama vastra pahane hue, akasha mem samsthita hote hue usane apane jure hue donom hathom se amjalipurvaka raja bharata ko ‘jaya, vijaya’ shabdom dvara vardhapita karake kaha – apane purva disha mem magadha tirtha paryanta samasta bharatakshetra bhali – bhamti jita liya hai. Maim apa dvara jite hue desha ka nivasi hum, apaka anujnyavarti sevaka hum, apaka purva disha ka antapala hum –\. Atah apa mere dvara prastuta yaha pritidana – evam harshapurvaka apahrita bhemta svikara karem.’ Raja bharata ne magadha tirthakumara dvara isa prakara prastuta pritidana svikara kiya. Magadha tirthakumara deva ka satkara kiya, sammana kiya, vida kiya. Phira raja bharata ne apana ratha vapasa mora. Vaha magadha tirtha se hota hua lavanasamudra se vapasa lauta. Jaham usaka sainya tha, vaham akara ghorom ko roka, ratha ko thaharaya, ratha se niche utara, snanaghara mem pravishta hua. Snanadi sampanna kara bhojanamandapa mem akara sukhasana se baitha, tele ka parana kiya. Bhojanamandapa se bahara nikala, purva ki ora mumha kiye simhasana para asina hua. Simhasanasina hokara usane atharaha shreniprashreni – adhikrita purushom ko bulaya. Unhem kaha – magadhatirthakumara deva ko vijita kara lene ke upalaksha mem ashta divasiya mahotsava ayojita karo. Tatpashchat shastragara mem pratinishkranta hua –\. Usa chakraratna ka araka – hirom se jara tha. Are lala ratnom se yukta the. Usaki nemi svarnamaya thi. Usa ka bhitari paridhibhaga aneka maniyom se parigata tha. Vaha chakramaniyom tatha motiyom ke samuha se vibhushita tha. Vaha mridamga adi baraha prakara ke vadyom ke ghosha se yukta tha. Usamem chhoti – chhoti ghantiyam lagi thim. Vaha divya prabhavayukta tha, madhyahna ke surya ke sadrisha tejayukta tha, golakara tha, aneka prakara ki maniyom evam ratnom ki ghantiyom ke samuha se parivyapta tha. Saba rituom mem khilanevale sugandhita pushpamalaom se yukta tha, antariksha pratipanna tha, gatimana tha, 1000 yakshom se samparivritta tha, divya vadyom ke shabda se gaganatala ko mano bhara raha tha. Usaka sudarshana nama tha. Raja bharata ke usa prathama – chakraratnane yom shastragara se nikalakara nairityakona mem varadama tirtha ki ora prayana kiya. |