Sutra Navigation: Jambudwippragnapati ( जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1007660 | ||
Scripture Name( English ): | Jambudwippragnapati | Translated Scripture Name : | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Translated Chapter : |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 60 | Category : | Upang-07 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] अप्पेगइयाओ वंदनकलसहत्थगयाओ भिंगार आदंस थाल पाति सुपइट्ठग बायकरग रयणकरंड पुप्फचंगेरी मल्ल वण्ण चुण्ण गंधहत्थगयाओ वत्थ आभरण लोमहत्थयचंगेरी पुप्फपडलहत्थ- गयाओ जाव लोमहत्थगडलहत्थगयाओ अप्पेगइयाओ सीहासनहत्थगयाओ छत्त चामर हत्थ-गयाओ तेल्लसमुग्गयहत्थगयाओ कोट्ठसमुग्गयहत्थगयाओ जाव सासवसमुग्गहत्थगयाओ। अप्पेगइयाओ तालियंटहत्थगयाओ धूवकडुच्छुयहत्थगयाओ भरहं रायाणं पिट्ठओ-पिट्ठओ अनुगच्छंति। तए णं से भरहे राया सव्विड्ढीए सव्वजुईए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वायरेणं सव्वविभूसाए सव्वविभूईए सव्ववत्थ पुप्फ गंध मल्लालंकारविभूसाए सव्वतुरिय सद्दसन्निनाएणं महया इड्ढीए जाव महया वरतुरिय जमगसमगपवाइएणं संख-पनव पडह भेरि झल्लरि खरमुहि मुरव मुइंग दुंदुहिनिग्घोषणाइएणं जेणेव आउहघरसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आलोए चक्करयणस्स पणामं करेइ, करेत्ता जेणेव चक्करयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थयं परामुसइ, परामुसित्ता चक्करयणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, ... ...अब्भुक्खेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं अनुलिंपइ, अनुलिंपित्ता अग्गेहिं वरेहिं गंधेहिं मल्लेहि य अच्चिणइ, पुप्फारुहणं मल्ल गंध वण्ण चुण्ण वत्थारुहणं आभरणारुहणं करेइ, करेत्ता अच्छेहिं सण्हेहिं सेतेहिं रययामएहिं अच्छरसातंडुलेहिं चक्करयणस्स पुरओ अट्ठट्ठ मंगलए आलिहइ, [तं जहा–सोत्थिय सिरिवच्छ नंदियावत्त वद्धमाणग भद्दासण मच्छ कलस दप्पण अट्ठमंगलए] आलिहित्ता काऊणं करेइ उवयारं, किं ते? पाडल मल्लिय चंपग असोग पुन्नाग चूय-मंजरि नवमालिय बकुल तिलग कणवीर कुंद कोज्जय कोरंटय पत्त दमणय वरसुरहिसुगंधगंधियस्स कयग्गहगहिय-करयलपब्भट्ठविप्पमुक्कस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमनिगरस्स तत्थ चित्तं जण्णुस्सेहप्पमाणमेत्तं ओहि-निगरं करेत्ता चंदप्पभ वइर वेरुलियविमलदंडं कंचनमणिरयणभत्तिचित्तं कालागुरु पवरकुंदुरुक्क तुरुक्क धुवगंधुत्तमाणुविद्धं च धूमवट्टिं विनिम्मुयंतं वेरुलियमयं कडुच्छुयं पग्गहेत्तु पयते धूवं दहइ, दहित्ता सत्तट्ठपयाइं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता वामं जाणुं अंचेइ, ... ...अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि साहट्टु करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु चक्करयणस्स पणामं करेइ, करेत्ता आउहघरसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासनवरगए पुरत्था-भिमुहे सन्निसीयइ, सन्निसीयित्ता अट्ठारस सेणिपसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! उस्सुक्कं उक्करं उक्किट्ठं अदिज्जं अमिज्जं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरणाडइज्जकलियं अनेगतालायराणुचरियं अनुद्धुयमुइंगं अमिलायमल्लदामं पमुइय-पक्कीलिय सपुरजणजानवयं विजयवेजइयं चक्करयणस्स अट्ठाहियं महामहिमं करेह, करेत्ता ममेयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह। तए णं ताओ अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ भरहेणं रन्ना एवं वुत्ताओ समाणीओ हट्ठाओ जाव विनएणं वयणं पडिसुनेंति, पडिसुणेत्ता भरहस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमेंति, पडिनिक्खमेत्ता उस्सुक्कं उक्करं जाव अट्ठाहियं महामहिमं करेंति य कारवेंति य, करेत्ता य कारवेत्ता य जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। | ||
Sutra Meaning : | उनमें से किन्हीं – किन्हीं के हाथों में मंगलकलश, भृंगार, दर्पण, थाल, छोटे पात्र, सुप्रतिष्ठक, वातकरक, रत्न करंडक, फूलों की डलियाँ, माला, वर्ण, चूर्ण, गन्ध, वस्त्र, आभूषण, मोर – पंखों से बनी फूलों की गुलदस्तों से भरी डलियाँ, मयूरपिच्छ, सिंहासन, छत्र, चँवर तथा तिलसमुद्गक – आदि भिन्न – भिन्न वस्तुएं थीं। यों वह राजा भरत सब प्रकार की ऋद्धि, द्युति, बल, समुदय, आदर, विभूषा, वैभव, वस्त्र, पुष्प, गन्ध, अलंकार – इस सबकी शोभा से युक्त कलापूर्ण शैली में साथ बजाये गये शंख, प्रणव, पटह, भेरी, झालर, खरमुखी, मुरज, मृदंग, दुन्दुभि के निनाद के साथ जहाँ आयुधशाला थी, वहाँ आया। चक्ररत्न की ओर देखते ही, प्रणाम किया, मयूरपिच्छ द्वारा चक्ररत्न को झाड़ा – पोंछा, दिव्य जल – धारा द्वारा सिंचन किया, सरस गोशीर्ष – चन्दन से अनुलेपन किया, अभिनव, उत्तम सुगन्धित द्रव्यों और मालाओं से उसकी अर्चा की, पुष्प चढ़ाये, माला, गन्ध, वर्णक एवं वस्त्र चढ़ाये, आभूषण चढ़ाये। चक्ररत्न के सामने उजले, स्निग्ध, श्वेत, रत्नमय अक्षत चावलों से स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्दावर्त, वर्धमानक, भद्रासन, मत्स्य, कलश, दर्पण – इन अष्ट मंगलों का आलेखन किया। गुलाब, मल्लिका, चंपक, अशोक, पुन्नाग, आम्रमंजरी, नवमल्लिका, बकुल, तिलक, कणवीर, कुन्द, कुब्जक, कोरंटक, पत्र, दमनक – ये सुरभित – सुगन्धित पुष्प राजा ने हाथ में लिये, चक्ररत्न के आगे बढ़ाये, इतने चढ़ाये कि उन पंचरंगे फूलों का चक्ररत्न के आगे जानु – प्रमाण – ऊंचा ढेर लग गया। तदनन्तर राजा ने धूपदान हाथ में लिया जो चन्द्रकान्त, वज्र – हीरा, वैडूर्य रत्नमय दंडयुक्त, विविध चित्रांकन के रूप में संयोजित स्वर्ण, मणि एवं रत्नयुक्त, काले अगर, उत्तम कुन्दरुक, लोबान तथा धूप की महक से शोभित, वैडूर्य मणि से निर्मित था। आदरपूर्वक धूप जलाया, धूप जलाकर सात – आठ कदम पीछे हटा, बायें घूटने को ऊंचा किया, यावत् चक्ररत्न को प्रणाम किया। आयुधशाला से निकला, बाहरी उपस्थानशाला – में आकर पूर्वाभिमुख हो सिंहासन पर विधिवत् बैठा। अठारह श्रेणिप्रश्रेणि के प्रजाजनों को बुलाकर कहा – देवानुप्रियों ! चक्ररत्न के उत्पन्न होने के उपलक्ष्य में तुम सब महान विजय का संसूचक अष्ट दिवसीय महोत्सव आयोजित करो। ‘इन दिनों राज्य में कोई भी क्रय – विक्रय आदि सम्बन्धी शुल्क, राज्य – कर नहीं लिया जायेगा। आदान – प्रदान का, नाप – जोख का क्रम बन्द रहे, राज्य के कर्मचारी, अधिकारी किसी घर में प्रवेश न करे, दण्ड, कुदण्ड नहीं लिये जायेंगे। ऋणी को ऋण – मुक्त कर दिया जाए। नृत्यांगनाओं के तालवाद्य – समन्वित नाटक, नृत्य आदि आयोजित कर समारोह को सुन्दर बनाया जाए, यथाविधि समुद्भावित मृदंग – से महोत्सव को गुंजा दिया जाए। नगरसज्जा में लगाई गई या पहनी गई मालाएं कुम्हलाई हुई न हों, ताजे फूलों से बनी हों। यों प्रत्येक नगरवासी और जनपदवासी प्रमुदित हो आठ दिन तक महोत्सव मनाएं। राजा भरत द्वारा यों कहे जाने पर वे अठारह श्रेणि – प्रश्रेणि के प्रजाजन हर्षित हुए, विनयपूर्वक राजा का वचन शिरोधार्य किया। उन्होंने राजा की आज्ञानुसार अष्ट दिवसीय महोत्सव की व्यवस्था की, करवाई। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] appegaiyao vamdanakalasahatthagayao bhimgara adamsa thala pati supaitthaga bayakaraga rayanakaramda pupphachamgeri malla vanna chunna gamdhahatthagayao vattha abharana lomahatthayachamgeri pupphapadalahattha- gayao java lomahatthagadalahatthagayao appegaiyao sihasanahatthagayao chhatta chamara hattha-gayao tellasamuggayahatthagayao kotthasamuggayahatthagayao java sasavasamuggahatthagayao. Appegaiyao taliyamtahatthagayao dhuvakaduchchhuyahatthagayao bharaham rayanam pitthao-pitthao anugachchhamti. Tae nam se bharahe raya savviddhie savvajuie savvabalenam savvasamudaenam savvayarenam savvavibhusae savvavibhuie savvavattha puppha gamdha mallalamkaravibhusae savvaturiya saddasanninaenam mahaya iddhie java mahaya varaturiya jamagasamagapavaienam samkha-panava padaha bheri jhallari kharamuhi murava muimga dumduhinigghoshanaienam jeneva auhagharasala teneva uvagachchhai, uvagachchhitta aloe chakkarayanassa panamam karei, karetta jeneva chakkarayane teneva uvagachchhai, uvagachchhitta lomahatthayam paramusai, paramusitta chakkarayanam pamajjai, pamajjitta divvae dagadharae abbhukkhei,.. ..Abbhukkhetta sarasenam gosisachamdanenam anulimpai, anulimpitta aggehim varehim gamdhehim mallehi ya achchinai, puppharuhanam malla gamdha vanna chunna vattharuhanam abharanaruhanam karei, karetta achchhehim sanhehim setehim rayayamaehim achchharasatamdulehim chakkarayanassa purao atthattha mamgalae alihai, [tam jaha–sotthiya sirivachchha namdiyavatta vaddhamanaga bhaddasana machchha kalasa dappana atthamamgalae] alihitta kaunam karei uvayaram, kim te? Padala malliya champaga asoga punnaga chuya-mamjari navamaliya bakula tilaga kanavira kumda kojjaya koramtaya patta damanaya varasurahisugamdhagamdhiyassa kayaggahagahiya-karayalapabbhatthavippamukkassa dasaddhavannassa kusumanigarassa tattha chittam jannussehappamanamettam ohi-nigaram karetta chamdappabha vaira veruliyavimaladamdam kamchanamanirayanabhattichittam kalaguru pavarakumdurukka turukka dhuvagamdhuttamanuviddham cha dhumavattim vinimmuyamtam veruliyamayam kaduchchhuyam paggahettu payate dhuvam dahai, dahitta sattatthapayaim pachchosakkai, pachchosakkitta vamam janum amchei,.. ..Amchetta dahinam janum dharanitalamsi sahattu karayalapariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu chakkarayanassa panamam karei, karetta auhagharasalao padinikkhamai, padinikkhamitta jeneva bahiriya uvatthanasala jeneva sihasane teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sihasanavaragae purattha-bhimuhe sannisiyai, sannisiyitta attharasa senipasenio saddavei, saddavetta evam vayasi– khippameva bho devanuppiya! Ussukkam ukkaram ukkittham adijjam amijjam abhadappavesam adamdakodamdimam adharimam ganiyavaranadaijjakaliyam anegatalayaranuchariyam anuddhuyamuimgam amilayamalladamam pamuiya-pakkiliya sapurajanajanavayam vijayavejaiyam chakkarayanassa atthahiyam mahamahimam kareha, karetta mameyamanattiyam khippameva pachchappinaha. Tae nam tao attharasa senippasenio bharahenam ranna evam vuttao samanio hatthao java vinaenam vayanam padisunemti, padisunetta bharahassa ranno amtiyao padinikkhamemti, padinikkhametta ussukkam ukkaram java atthahiyam mahamahimam karemti ya karavemti ya, karetta ya karavetta ya jeneva bharahe raya teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta tamanattiyam pachchappinamti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Unamem se kinhim – kinhim ke hathom mem mamgalakalasha, bhrimgara, darpana, thala, chhote patra, supratishthaka, vatakaraka, ratna karamdaka, phulom ki daliyam, mala, varna, churna, gandha, vastra, abhushana, mora – pamkhom se bani phulom ki guladastom se bhari daliyam, mayurapichchha, simhasana, chhatra, chamvara tatha tilasamudgaka – adi bhinna – bhinna vastuem thim. Yom vaha raja bharata saba prakara ki riddhi, dyuti, bala, samudaya, adara, vibhusha, vaibhava, vastra, pushpa, gandha, alamkara – isa sabaki shobha se yukta kalapurna shaili mem satha bajaye gaye shamkha, pranava, pataha, bheri, jhalara, kharamukhi, muraja, mridamga, dundubhi ke ninada ke satha jaham ayudhashala thi, vaham aya. Chakraratna ki ora dekhate hi, pranama kiya, mayurapichchha dvara chakraratna ko jhara – pomchha, divya jala – dhara dvara simchana kiya, sarasa goshirsha – chandana se anulepana kiya, abhinava, uttama sugandhita dravyom aura malaom se usaki archa ki, pushpa charhaye, mala, gandha, varnaka evam vastra charhaye, abhushana charhaye. Chakraratna ke samane ujale, snigdha, shveta, ratnamaya akshata chavalom se svastika, shrivatsa, nandavarta, vardhamanaka, bhadrasana, matsya, kalasha, darpana – ina ashta mamgalom ka alekhana kiya. Gulaba, mallika, champaka, ashoka, punnaga, amramamjari, navamallika, bakula, tilaka, kanavira, kunda, kubjaka, koramtaka, patra, damanaka – ye surabhita – sugandhita pushpa raja ne hatha mem liye, chakraratna ke age barhaye, itane charhaye ki una pamcharamge phulom ka chakraratna ke age janu – pramana – umcha dhera laga gaya. Tadanantara raja ne dhupadana hatha mem liya jo chandrakanta, vajra – hira, vaidurya ratnamaya damdayukta, vividha chitramkana ke rupa mem samyojita svarna, mani evam ratnayukta, kale agara, uttama kundaruka, lobana tatha dhupa ki mahaka se shobhita, vaidurya mani se nirmita tha. Adarapurvaka dhupa jalaya, dhupa jalakara sata – atha kadama pichhe hata, bayem ghutane ko umcha kiya, yavat chakraratna ko pranama kiya. Ayudhashala se nikala, bahari upasthanashala – mem akara purvabhimukha ho simhasana para vidhivat baitha. Atharaha shreniprashreni ke prajajanom ko bulakara kaha – Devanupriyom ! Chakraratna ke utpanna hone ke upalakshya mem tuma saba mahana vijaya ka samsuchaka ashta divasiya mahotsava ayojita karo. ‘ina dinom rajya mem koi bhi kraya – vikraya adi sambandhi shulka, rajya – kara nahim liya jayega. Adana – pradana ka, napa – jokha ka krama banda rahe, rajya ke karmachari, adhikari kisi ghara mem pravesha na kare, danda, kudanda nahim liye jayemge. Rini ko rina – mukta kara diya jae. Nrityamganaom ke talavadya – samanvita nataka, nritya adi ayojita kara samaroha ko sundara banaya jae, yathavidhi samudbhavita mridamga – se mahotsava ko gumja diya jae. Nagarasajja mem lagai gai ya pahani gai malaem kumhalai hui na hom, taje phulom se bani hom. Yom pratyeka nagaravasi aura janapadavasi pramudita ho atha dina taka mahotsava manaem. Raja bharata dvara yom kahe jane para ve atharaha shreni – prashreni ke prajajana harshita hue, vinayapurvaka raja ka vachana shirodharya kiya. Unhomne raja ki ajnyanusara ashta divasiya mahotsava ki vyavastha ki, karavai. |