Sutra Navigation: Pragnapana ( प्रज्ञापना उपांग सूत्र )

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Sr No : 1006818
Scripture Name( English ): Pragnapana Translated Scripture Name : प्रज्ञापना उपांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

पद-२१ अवगाहना संस्थान

Translated Chapter :

पद-२१ अवगाहना संस्थान

Section : Translated Section :
Sutra Number : 518 Category : Upang-04
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] वेउव्वियसरीरस्स णं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसतसहस्सं। वाउक्काइयएगिंदियवेउव्वियसरीरस्स णं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं। नेरइयपंचेंदियवेउव्वियसरीरस्स णं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा –भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं पंचधनुसयाइं। तत्थ णं जासा उत्तरवेउव्विया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धनुसहस्सं। रयणप्पभापुढविनेरइयाणं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सत्त धनूइं तिन्नि रयणीओ छच्च अंगुलाइं। तत्थ णं जासा उत्तर-वेउव्विया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं पन्नरस धनूइं अड्ढाइज्जाओ रयणीओ। सक्करप्पभाए पुच्छा। गोयमा! जाव तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं पन्नरस धनूइं अड्ढाइज्जाओ रयणीओ। तत्थ णं जासा उत्तरवेउव्विया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं एक्कतीसं धनूइं एक्का य रयणी। वालुयप्पभाए भवधारणिज्जा एक्कतीसं धनूइं एक्का य रयणी, उत्तरवेउव्विया बावट्ठिं धनूइं दोन्नि य रयणीओ। पंकप्पभाए भवधारणिज्जा बावट्ठिं धनूइं दोन्नि य रयणीओ, उत्तरवेउव्विया पणुवीसं धनुसतं। धूमप्पभाए भवधारणिज्जा पणुवीसं धनुसतं, उत्तरवेउव्विया अड्ढाइज्जाइं धनुसताइं। तमाए भवधारणिज्जा अड्ढाइज्जाइं धनुसताइं, उत्तरवेउव्विया पंच धनुसताइं। अहेसत्तमाए भवधारणिज्जा पंच धनुसताइं, उत्तरवेउव्विया धनुसहस्सं। एयं उक्कोसेणं। जहन्नेणं भवधारणिज्जा अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उत्तरवेउव्विया अंगुलस्स संखेज्जइभागं। तिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरस्स णं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसतपुहत्तं। मनूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरस्स णं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसतसहस्सं। असुरकुमारभवनवासिदेवपंचिंदियवेउव्वियसरीरस्स णं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! असुरकुमाराणं देवाणं दुविहा सरीरोगाहणा पन्नत्ता, तं जहा–भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सत्त रयणीओ। तत्थ णं जासा उत्तरवेउव्विया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसतसहस्सं। एवं जाव थणियकुमाराणं। एवं ओहियाणं वाणमंतराणं। एवं जोइसियाण वि। सोहम्मीसानगदेवाणं एवं चेव उत्तरवेउव्विया जाव अच्चुओ कप्पो, नवरं–सणंकुमारे भवधारणिज्जा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं छ रयणीओ। एवं माहिंदे वि। बंभलोय-लंतगेसु पंच रयणीओ। महासुक्क-सहस्सारेसु चत्तारि रयणीओ। आणय पाणय आरण अच्चुएसु तिन्नि रयणीओ। गेवेज्जगकप्पातीतवेमानियदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरस्स णं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! गेवेज्जगदेवाणं एगा भवधारणिज्जा सरीरोगाहणा पन्नत्ता। सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं दो रयणीओ। एवं अनुत्तरोववाइयदेवाण वि, नवरं– एक्का रयणी।
Sutra Meaning : वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट सातिरेक एक लाख योजन। वायुकायिक – एकेन्द्रियों के वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की। नैरयिक – पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! (वह) दो प्रकार की है, भवधारणीया और उत्तरवैक्रिया। भवधारणीया – अवगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्टतः पाँचसौ धनुष है तथा उत्तरवैक्रिया – अवगाहना जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग, उत्कृष्टतः एक हजार धनुष है। रत्नप्रभापृथ्वी के नारकों की शरीरावगाहना दो प्रकार की है, भवधारणीया और उत्तरवैक्रिया। भवधार – णीया – शरीरावगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग है और उत्कृष्टतः सात धनुष, तीन रत्नि और छह अंगुल है। उत्तरवैक्रिया जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्टतः पन्द्रह धनुष ढाई रत्नि है। शर्कराप्रभा के नारकों की शरीरावगाहना गौतम ! यावत्‌ भवधारणीया जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्टतः पन्द्रह धनुष, ढाई रत्नि, उत्तरवैक्रिया जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्टतः इकतीस धनुष एक रत्नि हैं। वालुकाप्रभा की भवधारणीया इकतीस धनुष एक रत्नि है, उत्तरवैक्रिया बासठ धनुष दो हाथ हैं। पंकप्रभा यावत्‌ अधः सप्तमी की दोनों अवगाहना पूर्व पूर्व से दुगुनी समझना। यथा – अधःसप्तम की भवधारणीया पाँच सौ धनुष की, उत्तरवैक्रिया एक हजार धनुष की है। इन सबकी जघन्यतः भवधारणीया और उत्तरवैक्रिया दोनों अंगुल के संख्यातवें भाग हैं। तिर्यंचयोनिक – पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग, उत्कृष्टतः शतयोजनपृथक्त्व की। मनुष्य – पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर की अवगाहना ? गौतम ! जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग, उत्कृष्टतः कुछ अधिक एक लाख योजन की है। असुरकुमार – भवनवासी – देव – पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर की अवगाहना ? गौतम ! दो प्रकार की है, भवधारणीया और उत्तरवैक्रिया। भवधारणीया जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्टतः सात हाथ की है। उत्तरवैक्रिया – अवगाहना जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग, उत्कृष्टतः एक लाख योजन की है। इसी प्रकार स्तनितकुमार देवों (तक) समझ लेना। इसी प्रकार औघिक वाणव्यन्तरदेवों की समझ लेना। इसी तरह ज्योतिष्कदेवों की भी जानना। सौधर्म और ईशान देवों की यावत्‌ अच्युतकल्प के देवों तक की भवधारणीया – शरीरावगाहना भी इन्हीं के समान समझना, उत्तरवैक्रिया – शरीरावगाहना भी पूर्ववत्‌ समझना। विशेष यह कि सनत्कुमारकल्प के देवों की भवधारणीया – शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट छह हाथ की है, इतनी ही माहेन्द्रकल्प की है। ब्रह्मलोक और लान्तक कल्प के देवों की पाँच हाथ, महाशुक्र और सहस्रार कल्प के देवों की चार हाथ, एवं आनत, प्राणत, आरण और अच्युत के देवों की शरीरावगाहना तीन हाथ है। ग्रैवेयक – कल्पातीत – वैमानिकदेव – पंचेन्द्रियों को एक मात्र भवधारणीया शरीरावगाहना होती है। वह जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्टतः दो हाथ की है। इसी प्रकार अनुत्तरौपपातिकदेवों को भी समझना। विशेष यह कि उत्कृष्ट एक हाथ की है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] veuvviyasarirassa nam bhamte! Kemahaliya sarirogahana pannatta? Goyama! Jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam satiregam joyanasatasahassam. Vaukkaiyaegimdiyaveuvviyasarirassa nam bhamte! Kemahaliya sarirogahana pannatta? Goyama! Jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosena vi amgulassa asamkhejjaibhagam. Neraiyapamchemdiyaveuvviyasarirassa nam bhamte! Kemahaliya sarirogahana pannatta? Goyama! Duviha pannatta, tam jaha –bhavadharanijja ya uttaraveuvviya ya. Tattha nam jasa bhavadharanijja sa jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam pamchadhanusayaim. Tattha nam jasa uttaraveuvviya sa jahannenam amgulassa samkhejjaibhagam, ukkosenam dhanusahassam. Rayanappabhapudhavineraiyanam bhamte! Kemahaliya sarirogahana pannatta? Goyama! Duviha pannatta, tam jaha–bhavadharanijja ya uttaraveuvviya ya. Tattha nam jasa bhavadharanijja sa jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam satta dhanuim tinni rayanio chhachcha amgulaim. Tattha nam jasa uttara-veuvviya sa jahannenam amgulassa samkhejjaibhagam, ukkosenam pannarasa dhanuim addhaijjao rayanio. Sakkarappabhae puchchha. Goyama! Java tattha nam jasa bhavadharanijja sa jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam pannarasa dhanuim addhaijjao rayanio. Tattha nam jasa uttaraveuvviya sa jahannenam amgulassa samkhejjaibhagam, ukkosenam ekkatisam dhanuim ekka ya rayani. Valuyappabhae bhavadharanijja ekkatisam dhanuim ekka ya rayani, uttaraveuvviya bavatthim dhanuim donni ya rayanio. Pamkappabhae bhavadharanijja bavatthim dhanuim donni ya rayanio, uttaraveuvviya panuvisam dhanusatam. Dhumappabhae bhavadharanijja panuvisam dhanusatam, uttaraveuvviya addhaijjaim dhanusataim. Tamae bhavadharanijja addhaijjaim dhanusataim, uttaraveuvviya pamcha dhanusataim. Ahesattamae bhavadharanijja pamcha dhanusataim, uttaraveuvviya dhanusahassam. Eyam ukkosenam. Jahannenam bhavadharanijja amgulassa asamkhejjaibhagam, uttaraveuvviya amgulassa samkhejjaibhagam. Tirikkhajoniyapamchemdiyaveuvviyasarirassa nam bhamte! Kemahaliya sarirogahana pannatta? Goyama! Jahannenam amgulassa samkhejjaibhagam, ukkosenam joyanasatapuhattam. Manusapamchemdiyaveuvviyasarirassa nam bhamte! Kemahaliya sarirogahana pannatta? Goyama! Jahannenam amgulassa samkhejjaibhagam, ukkosenam satiregam joyanasatasahassam. Asurakumarabhavanavasidevapamchimdiyaveuvviyasarirassa nam bhamte! Kemahaliya sarirogahana pannatta? Goyama! Asurakumaranam devanam duviha sarirogahana pannatta, tam jaha–bhavadharanijja ya uttaraveuvviya ya. Tattha nam jasa bhavadharanijja sa jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam satta rayanio. Tattha nam jasa uttaraveuvviya sa jahannenam amgulassa samkhejjaibhagam, ukkosenam joyanasatasahassam. Evam java thaniyakumaranam. Evam ohiyanam vanamamtaranam. Evam joisiyana vi. Sohammisanagadevanam evam cheva uttaraveuvviya java achchuo kappo, navaram–sanamkumare bhavadharanijja jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam chha rayanio. Evam mahimde vi. Bambhaloya-lamtagesu pamcha rayanio. Mahasukka-sahassaresu chattari rayanio. Anaya panaya arana achchuesu tinni rayanio. Gevejjagakappatitavemaniyadevapamchemdiyaveuvviyasarirassa nam bhamte! Kemahaliya sarirogahana pannatta? Goyama! Gevejjagadevanam ega bhavadharanijja sarirogahana pannatta. Sa jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam do rayanio. Evam anuttarovavaiyadevana vi, navaram– ekka rayani.
Sutra Meaning Transliteration : Vaikriyasharira ki avagahana kitani hai\? Gautama ! Jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga, utkrishta satireka eka lakha yojana. Vayukayika – ekendriyom ke vaikriyasharira ki avagahana kitani hai\? Gautama ! Jaghanya aura utkrishta amgula ke asamkhyatavem bhaga ki. Nairayika – pamchendriyom ke vaikriyasharira ki avagahana kitani hai\? Gautama ! (vaha) do prakara ki hai, bhavadharaniya aura uttaravaikriya. Bhavadharaniya – avagahana jaghanyatah amgula ke asamkhyatavem bhaga, utkrishtatah pamchasau dhanusha hai tatha uttaravaikriya – avagahana jaghanyatah amgula ke samkhyatavem bhaga, utkrishtatah eka hajara dhanusha hai. Ratnaprabhaprithvi ke narakom ki shariravagahana do prakara ki hai, bhavadharaniya aura uttaravaikriya. Bhavadhara – niya – shariravagahana jaghanyatah amgula ke asamkhyatavem bhaga hai aura utkrishtatah sata dhanusha, tina ratni aura chhaha amgula hai. Uttaravaikriya jaghanyatah amgula ke samkhyatavem bhaga aura utkrishtatah pandraha dhanusha dhai ratni hai. Sharkaraprabha ke narakom ki shariravagahana gautama ! Yavat bhavadharaniya jaghanyatah amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishtatah pandraha dhanusha, dhai ratni, uttaravaikriya jaghanyatah amgula ke samkhyatavem bhaga aura utkrishtatah ikatisa dhanusha eka ratni haim. Valukaprabha ki bhavadharaniya ikatisa dhanusha eka ratni hai, uttaravaikriya basatha dhanusha do hatha haim. Pamkaprabha yavat adhah saptami ki donom avagahana purva purva se duguni samajhana. Yatha – adhahsaptama ki bhavadharaniya pamcha sau dhanusha ki, uttaravaikriya eka hajara dhanusha ki hai. Ina sabaki jaghanyatah bhavadharaniya aura uttaravaikriya donom amgula ke samkhyatavem bhaga haim. Tiryamchayonika – pamchendriyom ke vaikriyasharira ki avagahana kitani hai\? Gautama ! Jaghanyatah amgula ke samkhyatavem bhaga, utkrishtatah shatayojanaprithaktva ki. Manushya – pamchendriyom ke vaikriyasharira ki avagahana\? Gautama ! Jaghanyatah amgula ke samkhyatavem bhaga, utkrishtatah kuchha adhika eka lakha yojana ki hai. Asurakumara – bhavanavasi – deva – pamchendriyom ke vaikriyasharira ki avagahana\? Gautama ! Do prakara ki hai, bhavadharaniya aura uttaravaikriya. Bhavadharaniya jaghanyatah amgula ke asamkhyatavem bhaga, utkrishtatah sata hatha ki hai. Uttaravaikriya – avagahana jaghanyatah amgula ke samkhyatavem bhaga, utkrishtatah eka lakha yojana ki hai. Isi prakara stanitakumara devom (taka) samajha lena. Isi prakara aughika vanavyantaradevom ki samajha lena. Isi taraha jyotishkadevom ki bhi janana. Saudharma aura ishana devom ki yavat achyutakalpa ke devom taka ki bhavadharaniya – shariravagahana bhi inhim ke samana samajhana, uttaravaikriya – shariravagahana bhi purvavat samajhana. Vishesha yaha ki sanatkumarakalpa ke devom ki bhavadharaniya – shariravagahana jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga, utkrishta chhaha hatha ki hai, itani hi mahendrakalpa ki hai. Brahmaloka aura lantaka kalpa ke devom ki pamcha hatha, mahashukra aura sahasrara kalpa ke devom ki chara hatha, evam anata, pranata, arana aura achyuta ke devom ki shariravagahana tina hatha hai. Graiveyaka – kalpatita – vaimanikadeva – pamchendriyom ko eka matra bhavadharaniya shariravagahana hoti hai. Vaha jaghanyatah amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishtatah do hatha ki hai. Isi prakara anuttaraupapatikadevom ko bhi samajhana. Vishesha yaha ki utkrishta eka hatha ki hai.