Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004915 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१९ पुंडरीक |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१९ पुंडरीक |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 215 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं तस्स कंडरीयस्स अनगारस्स तेहिं अंतेहि य पंतेहि य तुच्छेहि य लूहेहि य अरसेहि य विरसेहि य सीएहि य उण्हेहि य कालाइक्कंतेहि य पमाणाइक्कंतेहि य निच्चं पानभोयणेहि य पयइ-सुकुमालस्स सुहोचियस्स सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया–उज्जला विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा। पित्तज्जर-परिगयसरीरे दाहवक्कंतीए यावि विहरइ। तए णं थेरा अन्नया कयाइ जेणेव पोंडरीगिणी नयरी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता नलिनीवने समोसढा। पुंडरीए निग्गए। धम्मं सुणेइ। तए णं पुंडरीए राया धम्मं सोच्चा जेणेव कंडरीए अनगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कंडरीयं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता कंडरीयस्स अनगारस्स सरीरगं सव्वाबाहं सरोगं पासइ, पासित्ता जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ, उवाग-च्छित्ता थेरे भगवंते वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–अहण्णं भंते! कंडरीयस्स अनगारस्स अहापवत्तेहिं ओसह-भेसज्ज -भत्त-पानेहिं तेगिच्छं आउंटामि। तं तुब्भे णं भंते! मम जानसालासु समोसरह। तए णं थेरा भगवंतो पुंडरीयस्स एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता जेणेव पुंडरीयस्स रन्नो जाणसाला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता फासु-एसणिज्जं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति। तए णं पुंडरीए राया तेगिच्छिए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–तुब्भेणं देवानुप्पिया! कंडरीयस्स फासु-एसणि-ज्जेणं ओसह-भेसज्ज-भत्त-पाणेणं तेगिच्छं आउट्टेह। तए णं ते तेगिच्छिया पुंडरीएणं रन्ना एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठा कंडरीयस्स अहापवत्तेहिं ओसह-भेसज्ज-भत्त-पाणेहि तेगिच्छं आउट्टेंति, मज्जपाणगं च से उवदिसंति। तए णं तस्स कंडरीयस्स अहापवत्तेहि ओसह-भेसज्ज-भत्त-पानेहिं मज्जपाणएण य से रोगायंके उवसंते यावि होत्था–हट्ठे बलियसरीरे जाए ववगयरोगायंके। तए णं थेरा भगवंतो पुंडरीयं रायं आपुच्छंति, आपुच्छित्ता बहिया जनवयविहारं विहरंति। तए णं से कंडरीए ताओ रोयायंकाओ विप्पमुक्के समाणे तंसि मणुण्णंसि असन-पान-खाइम-साइमंसि मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववन्ने नो संचाएइ पुंडरीयं आपुच्छित्ता बहिया अब्भुज्जएणं जनवयविहारेणं विहरित्तए तत्थेव ओसन्ने जाए। तए णं से पुंडरीए इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे ण्हाए अंतेउर-परियाल-संपरिवुडे जेणेव कंडरीए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कंडरीयं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– धन्नेसि णं तुमं देवानुप्पिया! कयत्थे कयपुण्णे कयलक्खणे। सुलद्धे णं देवानुप्पिया! तव मानुस्सए जम्मजीवियफले जे णं तुमं रज्जं च रट्ठं च कोसं च कोट्ठागारं च बलं च वाहणं च पुरं च अंतेउरं च विछड्डेत्ता विगोवइत्ता, दाणं च दाइयाणं परिभायइत्ता, मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, अहण्णं अधन्ने सकयत्थे अकयपुण्णे अकयलक्खणे रज्जे य रट्ठे य कोसे य कोट्ठागारे य बले य वाहणे य पुरे य अंतेउरे य मानुस्सएसु य कामभोगेसु मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे नो संचाएमि जाव पव्वइत्तए। तं धन्नेसि णं तुमं देवानुप्पिया! कयत्थे कयपुण्णे कयलक्खणे। सुलद्धे णं देवानुप्पिया! तव मानुस्सए जम्मजीवियफले। तए णं से कंडरीए अनगारे पुंडरीयस्स एयमट्ठं नो आढाइ नो परियाणाइ तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं से कंडरीए अनगारे पोंडरीएणं दोच्चंपि तच्चंपि एवं वुत्ते समाणे-अकामए अवसवसे लज्जाए गारवण य पुंडरीयं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता थेरेहिं सद्धिं बहिया जनवयविहारं विहरइ। तए णं से कंडरीए थेरेहिं सद्धिं कंचि कालं उग्गंउग्गेणं विहरित्ता तओ पच्छा समणत्तण-परितंते समणत्तण-निव्विण्णे समणत्तण-निब्भच्छिए समणगुण-मुक्कजोगी थेराणं अंतियाओ सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता जेणेव पुंडरीगिणी नयरी जेणेव पुंडरीयस्स भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोगवणियाए असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टगंसि निसी-यइ, नीसीइत्ता ओहयमनसंकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए ज्झियायमाणे संचिट्ठइ। तए णं तस्स पोंडरीयस्स अम्मघाई जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कंडरीयं अनगारं असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टगंसि ओहयमनसंकप्पं जाव ज्झियायमाणं पासइ, पासित्ता जेणेव पुंडरीए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुंडरीयं रायं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! तव पियभाउए कंडरीए अनगारे असोगवणियाए असोगवरपाय-वस्स अहे पुढविसिलापट्टे ओहयमनसंकप्पे जाव ज्झियायइ। तए णं से पुंडरीए अम्मधाईए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म तहेव संभंते समाणे उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता अंतेउर-परियालसं-परिवुडे जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कंडरीयं अनगारं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–धन्नेसि णं तुमं देवानुप्पिया! कयत्थे कयपुण्णे कयलक्खणे सुलद्धे णं देवानुप्पिया! तव मानुस्सए जम्म-जीवियफले जाव अगाराओ अनगारियं पव्वइए, अहं णं अधन्ने अकयत्थे अकयपुण्णे अकयलक्खणे जाव नो संचाएमि पव्वइत्तए। तं धन्नेसि णं तुमं देवानुप्पिया! जाव सुलद्धे णं देवानुप्पिया! तव मानुस्सए जम्मजीवियफले। तए णं कंडरीए पुंडरीएणं एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए संचिट्ठइ। दोच्चंपि तच्चंपि पुंडरीएणं एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं पुंडरीए कंडरीयं एवं वयासी–अट्ठो भंते! भोगेहिं? हंता! अट्ठो। तए णं से पुंडरीए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! कंडरीयस्स महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायाभिसेयं उवट्ठवेह जाव रायाभिसेएणं अभिसिंचति। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् कंडरीक अनगार के शरीर में अन्त – प्रान्त अर्थात् रूखे – सूखे आहार के कारण शैलक मुनि के समान यावत् दाह – ज्वर उत्पन्न हो गया। वे रुग्ण होकर रहने लगे। तत्पश्चात् एक बार किसी समय स्थविर भगवंत पुण्डरीकिणी नगरी में पधारे और नलिनीवन उद्यान में ठहरे। तब पुंडरीक राजमहल से नीकला और उसने धर्म – देशना श्रवण की। तत्पश्चात् धर्म सूनकर पुंडरीक राजा कंडरीक अनगार के पास गया। वहाँ जाकर कंडरीक मुनि की वन्दना की, नमस्कार किया। उसने कंडरीक मुनि का शरीर सब प्रकार की बाधा से युक्त और रोग से आक्रान्त देखा। यह देखकर राजा स्थविर भगवंत के पास गया। स्थविर भगवंत को वन्दन – नमस्कार किया। इस प्रकार निवेदन किया – ‘भगवन् ! मैं कंडरीक अनगार की यथाप्रवृत्त औषध और भेषज से चिकित्सा कराता हूँ अतः भगवन् ! आप मेरी यानशाला में पधारिए। तब स्थविर भगवान ने पुंडरीक राजा का यह विवेचन स्वीकार करके यावत् यानशाला में रहने की आज्ञा लेकर विचरने लगे – जैसे मंडुक राजा ने शैलक ऋषि की चिकित्सा करवाई, उसी प्रकार राजा पुंडरीक ने कंडरीक की करवाई। चिकित्सा होने पर कंडरीक अनगार बलवान शरीरवाले हो गए तत्पश्चात् स्थविर भगवान ने पुण्डरीक राजा से पूछा तदनन्तर वे बाहर जाकर जनपद – विहार विहरने लगे। उस समय कण्डरीक अनगार उस रोग आतंक से मुक्त हो जाने पर भी उस मनोज्ञ अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार में मूर्च्छित, गृद्ध, आसक्त और तल्लीन हो गए। अत एव वे पुण्डरीक राजा से पूछकर बाहर जनपदों में उग्र विहार करने में समर्थ न हो सके। शिथिलाचारी होकर वहीं रहने लगे। पुण्डरीक राजा ने इस कथा का अर्थ जाना तब वह स्नान करके और विभूषित होकर तथा अन्तःपुर के परिवार से परिवृत्त होकर जहाँ कंडरीक अनगार थे वहाँ आया। उसने कंडरीक को तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा की। फिर वन्दना की, नमस्कार किया। इस प्रकार कहा – ‘देवानुप्रिय ! आप धन्य हैं, कृतार्थ हैं, कृतपुण्य हैं, और सुलक्षण वाले हैं। देवानुप्रिय ! आपको मनुष्य के जन्म और जीवन का फल सुन्दर मिला है, जो आप राज्य को और अन्तःपुर को त्यागकर और दुत्कार कर प्रव्रजित हुए हैं। और मैं अधन्य हूँ, पुण्यहीन हूँ, यावत् राज्य में, अन्तःपुर में और मानवीय कामभोगों में मूर्च्छित यावत् तल्लीन हो रहा हूँ, यावत् दीक्षित होने के लिए समर्थ नहीं हो पा रहा हूँ। अत एव आप धन्य हैं, यावत् आपको जन्म और जीवन का सुन्दर फल प्राप्त हुआ है। तत्पश्चात् कण्डरीक अनगार ने पुण्डरीक राजा की इस बात का आदर नहीं किया। यावत् वह मौन बने रहे। तब पुण्डरीक ने दूसरी बार और तीसरी बार भी यही कहा। तत्पश्चात् ईच्छा न होने पर भी विवशता के कारण, लज्जा से और बड़े भाई के गौरव के कारण पुण्डरीक राजा से पूछा – पूछकर वह स्थविर के साथ बाहर जनपदों में विचरने लगे। उस समय स्थविर के साथ – साथ कुछ समय तक उन्होंने उग्र – उग्र विहार किया। उसके बाद वह श्रमणत्व से थक गए, श्रमणत्व से ऊब गए और श्रमणत्व से निर्भर्त्सना को प्राप्त हुए। साधुता के गुणों से रहित हो गए। अत एव धीरे – धीरे स्थविर के पास से खिसक गए। जहाँ पुण्डरीकिणी नगरी थी और जहाँ पुण्डरीक राजा का भवन था, उसी तरफ आए। आकर अशोकवाटिका में, श्रेष्ठ अशोकवृक्ष के नीचे, पृथ्वीशिलापट्टक पर बैठ गए। बैठकर भग्नमनोरथ एवं चिन्तामग्न हो रहे। तत्पश्चात् पुण्डरीक राजा की धाय – माता जहाँ अशोकवाटिका थी, वहाँ गई। वहाँ जाकर उसने कण्डरीक अनगार को अशोकवृक्ष के नीचे, पृथ्वीशिलापट्टक पर भग्नमनोरथ यावत् चिन्ता – मग्न देखा। यह देखकर वह पुण्डरीक राजा के पास गई और उनसे कहने लगी – देवानुप्रिय ! तुम्हारा प्रिय भाई कण्डरीक अनगार अशोकवाटिका में, उत्तम अशोकवृक्ष के नीचे, पृथ्वीशिलापट्टक पर भग्नमनोरथ होकर यावत् चिन्ता में डूबा बैठा है। तब पुण्डरीक राजा, धाय – माता की यह बात सूनते और समझते ही संभ्रान्त हो उठा। उठकर अन्तःपुर के परिवार के साथ अशोकवाटिका में गया। जाकर यावत् कण्डरीक को तीन बार इस प्रकार कहा – ‘देवानुप्रिय ! तुम धन्य हो कि यावत् दीक्षित हो। मैं अधन्य हूँ कि यावत् दीक्षित होने के लिए समर्थ नहीं हो पाता। अत एव देवानुप्रिय ! तुम धन्य हो यावत् तुमनी मानवीय जन्म और जीवन का सुन्दर फल पाया है।’ पुंडरीक राजा के द्वारा इस प्रकार कहने पर कण्डरीक चूपचाप रहा। दूसरी बार और तीसरी बार कहने पर भी यावत् मौन ही बना रहा। तब पुण्डरीक राजा ने कंडरीक से पूछा – ‘भगवन् ! क्या भोगों से प्रयोजन है ?’ तब कंडरीक ने कहा – ‘हाँ, है।’ तत्पश्चात् पुण्डरीक राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – ‘देवानुप्रियो ! शीघ्र ही कंडरीक के महान अर्थव्यय वाले एवं महान पुरुषों के योग्य राज्याभिषेक की तैयारी करो।’ यावत् कंडरीक राज्याभिषेक से अभिषिक्त किया गया। वह मुनिपर्याय त्यागकर राजसिंहासन पर आसीन हो गया। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam tassa kamdariyassa anagarassa tehim amtehi ya pamtehi ya tuchchhehi ya luhehi ya arasehi ya virasehi ya siehi ya unhehi ya kalaikkamtehi ya pamanaikkamtehi ya nichcham panabhoyanehi ya payai-sukumalassa suhochiyassa sariragamsi veyana paubbhuya–ujjala viula kakkhada pagadha chamda dukkha durahiyasa. Pittajjara-parigayasarire dahavakkamtie yavi viharai. Tae nam thera annaya kayai jeneva pomdarigini nayari teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta nalinivane samosadha. Pumdarie niggae. Dhammam sunei. Tae nam pumdarie raya dhammam sochcha jeneva kamdarie anagare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta kamdariyam vamdai namamsai, vamditta namamsitta kamdariyassa anagarassa sariragam savvabaham sarogam pasai, pasitta jeneva thera bhagavamto teneva uvagachchhai, uvaga-chchhitta there bhagavamte vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–ahannam bhamte! Kamdariyassa anagarassa ahapavattehim osaha-bhesajja -bhatta-panehim tegichchham aumtami. Tam tubbhe nam bhamte! Mama janasalasu samosaraha. Tae nam thera bhagavamto pumdariyassa eyamattham padisunemti, padisunetta jeneva pumdariyassa ranno janasala teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta phasu-esanijjam pidha-phalaga-sejja-samtharagam uvasampajjitta nam viharamti. Tae nam pumdarie raya tegichchhie saddavei, saddavetta evam vayasi–tubbhenam devanuppiya! Kamdariyassa phasu-esani-jjenam osaha-bhesajja-bhatta-panenam tegichchham autteha. Tae nam te tegichchhiya pumdarienam ranna evam vutta samana hatthatuttha kamdariyassa ahapavattehim osaha-bhesajja-bhatta-panehi tegichchham auttemti, majjapanagam cha se uvadisamti. Tae nam tassa kamdariyassa ahapavattehi osaha-bhesajja-bhatta-panehim majjapanaena ya se rogayamke uvasamte yavi hottha–hatthe baliyasarire jae vavagayarogayamke. Tae nam thera bhagavamto pumdariyam rayam apuchchhamti, apuchchhitta bahiya janavayaviharam viharamti. Tae nam se kamdarie tao royayamkao vippamukke samane tamsi manunnamsi asana-pana-khaima-saimamsi muchchhie giddhe gadhie ajjhovavanne no samchaei pumdariyam apuchchhitta bahiya abbhujjaenam janavayaviharenam viharittae tattheva osanne jae. Tae nam se pumdarie imise kahae laddhatthe samane nhae amteura-pariyala-samparivude jeneva kamdarie teneva uvagachchhai, uvagachchhitta kamdariyam tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi– Dhannesi nam tumam devanuppiya! Kayatthe kayapunne kayalakkhane. Suladdhe nam devanuppiya! Tava manussae jammajiviyaphale je nam tumam rajjam cha rattham cha kosam cha kotthagaram cha balam cha vahanam cha puram cha amteuram cha vichhaddetta vigovaitta, danam cha daiyanam paribhayaitta, mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie, ahannam adhanne sakayatthe akayapunne akayalakkhane rajje ya ratthe ya kose ya kotthagare ya bale ya vahane ya pure ya amteure ya manussaesu ya kamabhogesu muchchhie giddhe gadhie ajjhovavanne no samchaemi java pavvaittae. Tam dhannesi nam tumam devanuppiya! Kayatthe kayapunne kayalakkhane. Suladdhe nam devanuppiya! Tava manussae jammajiviyaphale. Tae nam se kamdarie anagare pumdariyassa eyamattham no adhai no pariyanai tusinie samchitthai. Tae nam se kamdarie anagare pomdarienam dochchampi tachchampi evam vutte samane-akamae avasavase lajjae garavana ya pumdariyam apuchchhai, apuchchhitta therehim saddhim bahiya janavayaviharam viharai. Tae nam se kamdarie therehim saddhim kamchi kalam uggamuggenam viharitta tao pachchha samanattana-paritamte samanattana-nivvinne samanattana-nibbhachchhie samanaguna-mukkajogi theranam amtiyao saniyam-saniyam pachchosakkai, pachchosakkitta jeneva pumdarigini nayari jeneva pumdariyassa bhavane teneva uvagachchhai, uvagachchhitta asogavaniyae asogavarapayavassa ahe pudhavisilapattagamsi nisi-yai, nisiitta ohayamanasamkappe karatalapalhatthamuhe attajjhanovagae jjhiyayamane samchitthai. Tae nam tassa pomdariyassa ammaghai jeneva asogavaniya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta kamdariyam anagaram asogavarapayavassa ahe pudhavisilapattagamsi ohayamanasamkappam java jjhiyayamanam pasai, pasitta jeneva pumdarie raya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta pumdariyam rayam evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Tava piyabhaue kamdarie anagare asogavaniyae asogavarapaya-vassa ahe pudhavisilapatte ohayamanasamkappe java jjhiyayai. Tae nam se pumdarie ammadhaie eyamattham sochcha nisamma taheva sambhamte samane utthae utthei, utthetta amteura-pariyalasam-parivude jeneva asogavaniya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta kamdariyam anagaram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–dhannesi nam tumam devanuppiya! Kayatthe kayapunne kayalakkhane suladdhe nam devanuppiya! Tava manussae jamma-jiviyaphale java agarao anagariyam pavvaie, aham nam adhanne akayatthe akayapunne akayalakkhane java no samchaemi pavvaittae. Tam dhannesi nam tumam devanuppiya! Java suladdhe nam devanuppiya! Tava manussae jammajiviyaphale. Tae nam kamdarie pumdarienam evam vutte samane tusinie samchitthai. Dochchampi tachchampi pumdarienam evam vutte samane tusinie samchitthai. Tae nam pumdarie kamdariyam evam vayasi–attho bhamte! Bhogehim? Hamta! Attho. Tae nam se pumdarie raya kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Kamdariyassa mahattham mahaggham mahariham viulam rayabhiseyam uvatthaveha java rayabhiseenam abhisimchati. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat kamdarika anagara ke sharira mem anta – pranta arthat rukhe – sukhe ahara ke karana shailaka muni ke samana yavat daha – jvara utpanna ho gaya. Ve rugna hokara rahane lage. Tatpashchat eka bara kisi samaya sthavira bhagavamta pundarikini nagari mem padhare aura nalinivana udyana mem thahare. Taba pumdarika rajamahala se nikala aura usane dharma – deshana shravana ki. Tatpashchat dharma sunakara pumdarika raja kamdarika anagara ke pasa gaya. Vaham jakara kamdarika muni ki vandana ki, namaskara kiya. Usane kamdarika muni ka sharira saba prakara ki badha se yukta aura roga se akranta dekha. Yaha dekhakara raja sthavira bhagavamta ke pasa gaya. Sthavira bhagavamta ko vandana – namaskara kiya. Isa prakara nivedana kiya – ‘bhagavan ! Maim kamdarika anagara ki yathapravritta aushadha aura bheshaja se chikitsa karata hum atah bhagavan ! Apa meri yanashala mem padharie. Taba sthavira bhagavana ne pumdarika raja ka yaha vivechana svikara karake yavat yanashala mem rahane ki ajnya lekara vicharane lage – jaise mamduka raja ne shailaka rishi ki chikitsa karavai, usi prakara raja pumdarika ne kamdarika ki karavai. Chikitsa hone para kamdarika anagara balavana shariravale ho gae Tatpashchat sthavira bhagavana ne pundarika raja se puchha tadanantara ve bahara jakara janapada – vihara viharane lage. Usa samaya kandarika anagara usa roga atamka se mukta ho jane para bhi usa manojnya ashana, pana, khadima aura svadima ahara mem murchchhita, griddha, asakta aura tallina ho gae. Ata eva ve pundarika raja se puchhakara bahara janapadom mem ugra vihara karane mem samartha na ho sake. Shithilachari hokara vahim rahane lage. Pundarika raja ne isa katha ka artha jana taba vaha snana karake aura vibhushita hokara tatha antahpura ke parivara se parivritta hokara jaham kamdarika anagara the vaham aya. Usane kamdarika ko tina bara adakshina pradakshina ki. Phira vandana ki, namaskara kiya. Isa prakara kaha – ‘devanupriya ! Apa dhanya haim, kritartha haim, kritapunya haim, aura sulakshana vale haim. Devanupriya ! Apako manushya ke janma aura jivana ka phala sundara mila hai, jo apa rajya ko aura antahpura ko tyagakara aura dutkara kara pravrajita hue haim. Aura maim adhanya hum, punyahina hum, yavat rajya mem, antahpura mem aura manaviya kamabhogom mem murchchhita yavat tallina ho raha hum, yavat dikshita hone ke lie samartha nahim ho pa raha hum. Ata eva apa dhanya haim, yavat apako janma aura jivana ka sundara phala prapta hua hai. Tatpashchat kandarika anagara ne pundarika raja ki isa bata ka adara nahim kiya. Yavat vaha mauna bane rahe. Taba pundarika ne dusari bara aura tisari bara bhi yahi kaha. Tatpashchat ichchha na hone para bhi vivashata ke karana, lajja se aura bare bhai ke gaurava ke karana pundarika raja se puchha – puchhakara vaha sthavira ke satha bahara janapadom mem vicharane lage. Usa samaya sthavira ke satha – satha kuchha samaya taka unhomne ugra – ugra vihara kiya. Usake bada vaha shramanatva se thaka gae, shramanatva se uba gae aura shramanatva se nirbhartsana ko prapta hue. Sadhuta ke gunom se rahita ho gae. Ata eva dhire – dhire sthavira ke pasa se khisaka gae. Jaham pundarikini nagari thi aura jaham pundarika raja ka bhavana tha, usi tarapha ae. Akara ashokavatika mem, shreshtha ashokavriksha ke niche, prithvishilapattaka para baitha gae. Baithakara bhagnamanoratha evam chintamagna ho rahe. Tatpashchat pundarika raja ki dhaya – mata jaham ashokavatika thi, vaham gai. Vaham jakara usane kandarika anagara ko ashokavriksha ke niche, prithvishilapattaka para bhagnamanoratha yavat chinta – magna dekha. Yaha dekhakara vaha pundarika raja ke pasa gai aura unase kahane lagi – devanupriya ! Tumhara priya bhai kandarika anagara ashokavatika mem, uttama ashokavriksha ke niche, prithvishilapattaka para bhagnamanoratha hokara yavat chinta mem duba baitha hai. Taba pundarika raja, dhaya – mata ki yaha bata sunate aura samajhate hi sambhranta ho utha. Uthakara antahpura ke parivara ke satha ashokavatika mem gaya. Jakara yavat kandarika ko tina bara isa prakara kaha – ‘devanupriya ! Tuma dhanya ho ki yavat dikshita ho. Maim adhanya hum ki yavat dikshita hone ke lie samartha nahim ho pata. Ata eva devanupriya ! Tuma dhanya ho yavat tumani manaviya janma aura jivana ka sundara phala paya hai.’ pumdarika raja ke dvara isa prakara kahane para kandarika chupachapa raha. Dusari bara aura tisari bara kahane para bhi yavat mauna hi bana raha. Taba pundarika raja ne kamdarika se puchha – ‘bhagavan ! Kya bhogom se prayojana hai\?’ taba kamdarika ne kaha – ‘ham, hai.’ tatpashchat pundarika raja ne kautumbika purushom ko bulakara kaha – ‘devanupriyo ! Shighra hi kamdarika ke mahana arthavyaya vale evam mahana purushom ke yogya rajyabhisheka ki taiyari karo.’ yavat kamdarika rajyabhisheka se abhishikta kiya gaya. Vaha muniparyaya tyagakara rajasimhasana para asina ho gaya. |