Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004872 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 172 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं तं दोवइं रायवरकण्णं अंतेउरियाओ सव्वालंकारविभूसियं करेंति। किं ते? वरपायपत्तनेउरा जाव चेडिया-चक्कवाल-महयरग-विंद-परिक्खित्ता अंतेउराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किड्डावियाए लेहियाए सद्धिं चाउग्घंटं आसरहं दुरूहइ। तए णं से धट्ठज्जुणे कुमारे दोवईए रायवरकन्नाए सारत्थं करेइ। तए णं सा दोवई रायवरकन्ना कंपिल्लपुरं नयरं मज्झंमज्झेणं जेणेव सयंवरामंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता किड्डावियाए लेहियाए सद्धिं सयंवरामडबं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु तेसिं वासुदेवपामोक्खाणं बहूणं रायवरसहस्साणं पणामं करेइ। तए णं सा दोवई रायवरकन्ना एगं महं सिरिदामगंडं–किं ते? पाडल-मल्लिय-चंपय जाव सत्तच्छयाईहिं गंध-द्धणिं मुयंतं परमसुहफासं दरिसणिज्जं–गेण्हइ। तए णं सा किड्डाविया सुरूवा साभावियघंसं वोद्दहजणस्स उस्सुयकरं विचित्तमणि-रयण-बद्धच्छरुहं वामहत्थेणं चिल्लगं दप्पणं गहेऊण सललियं दप्पण-संकंतबिंब-संदंसिए य से दाहिणेणं हत्थेणं दरिसए पवररायसीहे। फुडविसय-विसुद्ध-रिभिय-गंभीर-महुरभणिया सा तेसिं सव्वेसिं पत्थिवाणं अम्मापिउ-वंस-सत्त-सामत्थ-गोत्त-विक्कंति-कंति-बहुविहआगम-माहप्प-रूव-कुलसील -जाणिया कित्तणं करेइ। पढमं ताव वण्हिपुंगवाणं दसारवर-वीरपुरिस-तेलोक्क-बलवगाणं, सत्तु-सयसहस्स-माणावमद्दगाणं भवसिद्धिय-वरपुंडरीयाणं चिल्लगाणं बल-वीरिय-रूव-जोव्वण-गुण-लावण्णकित्तिया कित्तणं करेइ। तओ पुणो उग्गसेणमाईणं जायवाणं भणइ–सोहग्गरूवकलिए वरेहि वरपुरिसगंधहत्थीणं जो हु ते होइ हियय-दइओ। तए णं सा दोवई रायावरकण्णगा बहूणं रायवरसहस्साणं मज्झंमज्झेणं समइच्छमाणी-समइच्छमाणी पुव्वकयनि-यायेणं चोइज्जमाणी-चोइज्जमाणी जेणेव पंच पंडवा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ते पंच पंडवे तेणं दसद्धवण्णेणं कुसुमदामेणं आवेढियपरिवेढिए करेइ, करेत्ता एवं वयासी–एए णं मए पंच पंडवा वरिया। तए णं ताइं वासुदेवपामोक्खाइं बहूणि रायसहस्साणि महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणाइं-उग्घोसेमाणाइं एवं वयंति–सुवरियं खलु भो! दोवईए रायवरकन्नाए त्ति कट्टु सयंवरमंडवाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव सया-सया आवासा तेणेव उवागच्छंति। तए णं धट्ठज्जुणे कुमारे पंच पंडवे दोवइं च रायवरकण्णं चाउग्घंटं आसरहं दुरुहावेइ, दुरुहावेत्ता कंपिल्लपुरं नयरं मज्झंमज्झेणं उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयं भवणं अनुपविसइ। तए णं से दुवए राया पंच पंडवे दोवइं च रायवरकण्णं पट्टयं दुरुहावेइ, दुरुहावेत्ता सेयापीयएहिं कलसेहिं मज्जावेइ, मज्जावेत्ता अग्गिहोमं करावेइ, पंचण्हं पंडवाणं दोवईए य पाणिग्गहणं कारावेइ। तए णं से दुवए राया दोवईए रायवरकन्नाए इमं एयारूवं पीइदाणं दलयइ, तं जहा–अट्ठ हिरण्णकोडीओ जाव पेसणकारीओ दासचेडीओ, अन्नं च विपुलं धन-कनग-रयण-मणि-मोत्तिय-सिलप्पवाल-रत्तरयण-संत-सार-सावएज्जं अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसाओ पकामं दाउं पकामं भोत्तुं पकामं परिभाएउं दलयइ। तए णं से दुवए राया ताइं वासुदेवपामोक्खाइं बहूइं रायसहस्साइं विपुलेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्मानेइ, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता पडिविसज्जेइ। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् अन्तःपुर की स्त्रियों ने राजवरकन्या द्रौपदी को सब अलंकारों से विभूषित किया। किस प्रकार ? पैरों में श्रेष्ठ नूपुर पहनाए यावत् वह दासियों के समूह से परिवृत्त होकर अन्तःपुर से बाहर नीकलकर जहाँ बाह्य उपस्थानशाला थी और जहाँ चार घंटाओं वाला अश्वरथ था, वहाँ आई। आकर क्रीड़ा करने वाली धाय और लेखिका दासी के साथ उस चार घंटा वाले रथ पर आरूढ़ हुई। उस समय धृष्टद्युम्न – कुमार ने द्रौपदी का सारथ्य किया, राजवरकन्या द्रौपदी काम्पिल्यपुर नगर के मध्य में होकर जिधर स्वयंवर – मंडप था, उधर पहुँची। रथ रोका गया और वह रथ से नीचे ऊतरी। क्रीड़ा कराने वाली धाय और लेखिका दासी के साथ उसने स्वयंवर मंड़प में प्रवेश किया। दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर अंजलि करके वासुदेव प्रभृति बहुसंख्यक हजारों राजाओं को प्रणाम किया। तत्पश्चात् राजवरकन्या द्रौपदी ने एक बड़ा श्रीदामकाण्ड ग्रहण किया। वह कैसा था ? पाटल, मल्लिका, चम्पक आदि यावत् सप्तपर्ण आदि के फूलों से गूँथा हुआ था। अत्यन्त गंध को फैला रहा था। अत्यन्त सुखद स्पर्श वाला था और दर्शनीय था। तत्पश्चात् उस क्रीड़ा कराने वाली यावत् सुन्दर रूप वाली धाय ने बाएं हाथ में चिल – चिलाता हुआ दर्पण लिया। उस दर्पण में जिस – जिस राजा का प्रतिबिम्ब पड़ता था, उस प्रतिबिम्ब द्वारा दिखाई देने वाले श्रेष्ठ सिंह के समान राजा को अपने दाहिने हाथ से द्रौपदी को दिखलाती थी। वह धाय स्फुट विशद विशुद्ध रिभित मेघ की गर्जना के समान गंभीर और मधुर वचन बोलती हुई, उन सब राजाओं के माता – पिता के वंश, सत्त्व, सामर्थ्य गोत्र पराक्रम कान्ति नाना प्रकार के ज्ञान माहात्म्य रूप यौवन गुण लावण्य कुल और शील को जानने वाली होने के कारण उनका बखान करने लगी। उनमें से सर्व प्रथम वृष्णियों में प्रधान समुद्रविजय आदि दस दसारों के, जो तीनों लोको में बलवान थे, लाखों शत्रुओं का मान मर्दन करने वाले थे, भव्य जीवनों में श्रेष्ठ श्वेत कमल के समान प्रधान थे, तेज से देदीप्यमान थे, बल, वीर्य, रूप, यौवन, गुण और लावण्य का कीर्त्तन करने वाली उस धाय ने कीर्त्तन किया और फिर उग्रसेन आदि यादवों का वर्णन किया, तदनन्तर कहा – ‘ये यादव सौभाग्य और रूप से सुशोभित हैं और श्रेष्ठ पुरुषों में गंधहस्ती के समान हैं। इनमें से कोई तेरे हृदय को वल्लभ – प्रिय हो तो उसे वरण कर।’ तत्पश्चात् राजवरकन्या द्रौपदी अनेक सहस्त्र राजाओं के मध्य में होकर, उनका प्रतिक्रमण करती – करती, पूर्वकृत् निदान से प्रेरित होती – होती, जहाँ पाँच पाण्डव थे, वहाँ आई। उसने उन पाँचों पाण्डवों को, पँचरंगे कुसुमदाम – फूलों की माला – श्रीदाम – कण्ड – से चारों तरफ से वेष्टित करके कहा – ‘मैंने इन पाँचों पाण्डवों का वरण किया।’ तत्पश्चात् उन वासुदेव प्रभृति अनेक सहस्त्र राजाओं ने ऊंचे – ऊंचे शब्दों से बार – बार उद्घोषणा करते हुए कहा – ‘अहो ! राजवरकन्या द्रौपदी ने अच्छा वरण किया।’ इस प्रकार कहकर वे स्वयंवर मंड़प से बाहर नीकले। अपने – अपने आवासों में चले गए। तत्पश्चात् धृष्टद्युम्न कुमार ने पाँचों पाण्डवों को और राजवरकन्या द्रौपदी को चार घंटाओं वाले अश्वरथ पर आरूढ़ किया और काम्पिल्यपुर के मध्य में होकर यावत् अपने भवन में प्रवेश किया। द्रुपद राजा ने पाँचों पाण्डवों को तथा राजवरकन्या द्रौपदी को पट्ट पर आसीन किया। चाँदी और सोने के कलशों से स्नान कराया। अग्निहोम करवाया। फिर पाँचों पाण्डवों का द्रौपदी के साथ पाणिग्रहण कराया। तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने राजवरकन्या द्रौपदी को इस प्रकार का प्रीतिदान किया – आठ करोड़ हिरण्य आदि यावत् आठ प्रेषणकारिणी दास – चेटियाँ। इनके अतिरिक्त अन्य भी बहुत – सा धन – कनक यावत् प्रदान किया। तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने उन वासुदेव प्रभृति राजाओं को विपुल अशन, पान, खादिम तथा स्वादिम तथा पुष्प, वस्त्र, गंध, माला और अलंकार आदि से सत्कार करके बिदा किया। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam tam dovaim rayavarakannam amteuriyao savvalamkaravibhusiyam karemti. Kim te? Varapayapattaneura java chediya-chakkavala-mahayaraga-vimda-parikkhitta amteurao padinikkhamai, padinikkhamitta jeneva bahiriya uvatthanasala jeneva chaugghamte asarahe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta kiddaviyae lehiyae saddhim chaugghamtam asaraham duruhai. Tae nam se dhatthajjune kumare dovaie rayavarakannae sarattham karei. Tae nam sa dovai rayavarakanna kampillapuram nayaram majjhammajjhenam jeneva sayamvaramamdave teneva uvagachchhai, uvagachchhitta raham thavei, rahao pachchoruhai, pachchoruhitta kiddaviyae lehiyae saddhim sayamvaramadabam anupavisai, anupavisitta karayala pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu tesim vasudevapamokkhanam bahunam rayavarasahassanam panamam karei. Tae nam sa dovai rayavarakanna egam maham siridamagamdam–kim te? Padala-malliya-champaya java sattachchhayaihim gamdha-ddhanim muyamtam paramasuhaphasam darisanijjam–genhai. Tae nam sa kiddaviya suruva sabhaviyaghamsam voddahajanassa ussuyakaram vichittamani-rayana-baddhachchharuham vamahatthenam chillagam dappanam gaheuna salaliyam dappana-samkamtabimba-samdamsie ya se dahinenam hatthenam darisae pavararayasihe. Phudavisaya-visuddha-ribhiya-gambhira-mahurabhaniya sa tesim savvesim patthivanam ammapiu-vamsa-satta-samattha-gotta-vikkamti-kamti-bahuvihaagama-mahappa-ruva-kulasila -janiya kittanam karei. Padhamam tava vanhipumgavanam dasaravara-virapurisa-telokka-balavaganam, sattu-sayasahassa-manavamaddaganam bhavasiddhiya-varapumdariyanam chillaganam bala-viriya-ruva-jovvana-guna-lavannakittiya kittanam karei. Tao puno uggasenamainam jayavanam bhanai–sohaggaruvakalie varehi varapurisagamdhahatthinam jo hu te hoi hiyaya-daio. Tae nam sa dovai rayavarakannaga bahunam rayavarasahassanam majjhammajjhenam samaichchhamani-samaichchhamani puvvakayani-yayenam choijjamani-choijjamani jeneva pamcha pamdava teneva uvagachchhai, uvagachchhitta te pamcha pamdave tenam dasaddhavannenam kusumadamenam avedhiyaparivedhie karei, karetta evam vayasi–ee nam mae pamcha pamdava variya. Tae nam taim vasudevapamokkhaim bahuni rayasahassani mahaya-mahaya saddenam ugghosemanaim-ugghosemanaim evam vayamti–suvariyam khalu bho! Dovaie rayavarakannae tti kattu sayamvaramamdavao padinikkhamamti, padinikkhamitta jeneva saya-saya avasa teneva uvagachchhamti. Tae nam dhatthajjune kumare pamcha pamdave dovaim cha rayavarakannam chaugghamtam asaraham duruhavei, duruhavetta kampillapuram nayaram majjhammajjhenam uvagachchhai, uvagachchhitta sayam bhavanam anupavisai. Tae nam se duvae raya pamcha pamdave dovaim cha rayavarakannam pattayam duruhavei, duruhavetta seyapiyaehim kalasehim majjavei, majjavetta aggihomam karavei, pamchanham pamdavanam dovaie ya paniggahanam karavei. Tae nam se duvae raya dovaie rayavarakannae imam eyaruvam piidanam dalayai, tam jaha–attha hirannakodio java pesanakario dasachedio, annam cha vipulam dhana-kanaga-rayana-mani-mottiya-silappavala-rattarayana-samta-sara-savaejjam alahi java asattamao kulavamsao pakamam daum pakamam bhottum pakamam paribhaeum dalayai. Tae nam se duvae raya taim vasudevapamokkhaim bahuim rayasahassaim vipulenam asana-pana-khaima-saimenam puppha-vattha-gamdha-mallalamkarenam sakkarei sammanei, sakkaretta sammanetta padivisajjei. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat antahpura ki striyom ne rajavarakanya draupadi ko saba alamkarom se vibhushita kiya. Kisa prakara\? Pairom mem shreshtha nupura pahanae yavat vaha dasiyom ke samuha se parivritta hokara antahpura se bahara nikalakara jaham bahya upasthanashala thi aura jaham chara ghamtaom vala ashvaratha tha, vaham ai. Akara krira karane vali dhaya aura lekhika dasi ke satha usa chara ghamta vale ratha para arurha hui. Usa samaya dhrishtadyumna – kumara ne draupadi ka sarathya kiya, rajavarakanya draupadi kampilyapura nagara ke madhya mem hokara jidhara svayamvara – mamdapa tha, udhara pahumchi. Ratha roka gaya aura vaha ratha se niche utari. Krira karane vali dhaya aura lekhika dasi ke satha usane svayamvara mamrapa mem pravesha kiya. Donom hatha jorakara mastaka para amjali karake vasudeva prabhriti bahusamkhyaka hajarom rajaom ko pranama kiya. Tatpashchat rajavarakanya draupadi ne eka bara shridamakanda grahana kiya. Vaha kaisa tha\? Patala, mallika, champaka adi yavat saptaparna adi ke phulom se gumtha hua tha. Atyanta gamdha ko phaila raha tha. Atyanta sukhada sparsha vala tha aura darshaniya tha. Tatpashchat usa krira karane vali yavat sundara rupa vali dhaya ne baem hatha mem chila – chilata hua darpana liya. Usa darpana mem jisa – jisa raja ka pratibimba parata tha, usa pratibimba dvara dikhai dene vale shreshtha simha ke samana raja ko apane dahine hatha se draupadi ko dikhalati thi. Vaha dhaya sphuta vishada vishuddha ribhita megha ki garjana ke samana gambhira aura madhura vachana bolati hui, una saba rajaom ke mata – pita ke vamsha, sattva, samarthya gotra parakrama kanti nana prakara ke jnyana mahatmya rupa yauvana guna lavanya kula aura shila ko janane vali hone ke karana unaka bakhana karane lagi. Unamem se sarva prathama vrishniyom mem pradhana samudravijaya adi dasa dasarom ke, jo tinom loko mem balavana the, lakhom shatruom ka mana mardana karane vale the, bhavya jivanom mem shreshtha shveta kamala ke samana pradhana the, teja se dedipyamana the, bala, virya, rupa, yauvana, guna aura lavanya ka kirttana karane vali usa dhaya ne kirttana kiya aura phira ugrasena adi yadavom ka varnana kiya, tadanantara kaha – ‘ye yadava saubhagya aura rupa se sushobhita haim aura shreshtha purushom mem gamdhahasti ke samana haim. Inamem se koi tere hridaya ko vallabha – priya ho to use varana kara.’ tatpashchat rajavarakanya draupadi aneka sahastra rajaom ke madhya mem hokara, unaka pratikramana karati – karati, purvakrit nidana se prerita hoti – hoti, jaham pamcha pandava the, vaham ai. Usane una pamchom pandavom ko, pamcharamge kusumadama – phulom ki mala – shridama – kanda – se charom tarapha se veshtita karake kaha – ‘maimne ina pamchom pandavom ka varana kiya.’ tatpashchat una vasudeva prabhriti aneka sahastra rajaom ne umche – umche shabdom se bara – bara udghoshana karate hue kaha – ‘aho ! Rajavarakanya draupadi ne achchha varana kiya.’ isa prakara kahakara ve svayamvara mamrapa se bahara nikale. Apane – apane avasom mem chale gae. Tatpashchat dhrishtadyumna kumara ne pamchom pandavom ko aura rajavarakanya draupadi ko chara ghamtaom vale ashvaratha para arurha kiya aura kampilyapura ke madhya mem hokara yavat apane bhavana mem pravesha kiya. Drupada raja ne pamchom pandavom ko tatha rajavarakanya draupadi ko patta para asina kiya. Chamdi aura sone ke kalashom se snana karaya. Agnihoma karavaya. Phira pamchom pandavom ka draupadi ke satha panigrahana karaya. Tatpashchat drupada raja ne rajavarakanya draupadi ko isa prakara ka pritidana kiya – atha karora hiranya adi yavat atha preshanakarini dasa – chetiyam. Inake atirikta anya bhi bahuta – sa dhana – kanaka yavat pradana kiya. Tatpashchat drupada raja ne una vasudeva prabhriti rajaom ko vipula ashana, pana, khadima tatha svadima tatha pushpa, vastra, gamdha, mala aura alamkara adi se satkara karake bida kiya. |