Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )

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Sr No : 1004854
Scripture Name( English ): Gyatadharmakatha Translated Scripture Name : धर्मकथांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१४ तेतलीपुत्र

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१४ तेतलीपुत्र

Section : Translated Section :
Sutra Number : 154 Category : Ang-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से पोट्टिले देवे तेयलिपुत्तं अभिक्खणं-अभिक्खणं केवलिपन्नत्ते धम्मे संबोहेइ, नो चेव णं से तेयलिपुत्तं संबुज्झइ। तए णं तस्स पोट्टिलदेवस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु कनगज्झए राया तेयलिपुत्तं आढाइ जाव भोगं च से अनुवड्ढेइ, तए णं से तेयलिपुत्ते अभिक्खणं-अभिक्खणं संबोहिज्जमाणे वि धम्मे नो संबुज्झइ। तं सेयं खलु ममं कनगज्झयं तेयलिपुत्ताओ विप्परिणामित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कनगज्झयं तेयलिपुत्तओ विप्परिणामेइ। तए णं तेयलिपुत्ते कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल०-पायच्छित्त आसखववरगए बहूहिं पुरिसेहिं सद्धिं संपरिवुडे साओ गिहाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कनगज्झए राया तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं तेयलिपुत्तं अमच्चं जे जहा बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेनावइ-सत्थवाह पभियओ पासंति ते तहेव आढायंति परियाणंति अब्भुट्ठेति, अंजलिपग्गहं करेति, इट्ठाहिं कंताहिं जाव वग्गूहिं आलवमाणा य संलवमाणा य पुरओ य पिट्ठओ य पासओ य समणुगच्छंति। तए णं से तेयलिपुत्ते जेणेव कनगज्झए तेणेव उवागच्छइ। तए णं से कनगज्झए तेयलिपुत्तं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता नो आढाइ नो परियाणाइ नो अब्भुट्ठेइ, अणाढायमाणे अपरियाणमाणे अणब्भुट्ठेमाणे परम्मुहे संचिट्ठइ। तए णं से तेयलिपुत्ते अमच्चे कनगज्झयस्स रन्नो अंजलिं करेइ। तओ य णं से कनगज्झए रया अणाढायमाणे अपरियाणमाणे अणब्भुट्ठेमाणे तुसिणीए परम्मुहे संचिट्ठइ। तए णं तेयलिपुत्ते कनगज्झयं रायं विप्परिणयं जाणित्ता भीए तत्थे तसिए उव्विग्गे संजायभए एवं वयासी–रुट्ठे णं मम कनगज्झए राया। हीणे णं मम कनगज्झए राया। अवज्झाए णं मम कनगज्झए राया। तं न नज्जइ णं मम केणइ कुमारेण मारेहिइ त्ति कट्टु भीए तत्थे जाव सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता तमेव आसखंधं दुरूहइ, दुरूहित्ता तेयलिपुरं मज्झंमज्झेणं जेणेव सए गिहे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं तेयलिपुत्तं जे जहा ईसर जाव सत्थवाहपभियओ पासंति ते तहा नो आढायंति नो परियाणंति नो अब्भुट्ठेति नो अंजलिपग्गहं करेंति, इट्ठाइं जाव वग्गूहिं नो आलवंति नो संलवंति नो पुरओ य पिट्ठओ य पासओ य समणुगच्छंति। तए णं तेयलिपुत्ते अमच्चे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए। जा वि य से तत्थ बाहिरिया परिसा भवइ, तं जहा–दासे इ वा पेसे इ वा भाइल्लए इ वा, सा वि य णं नो आढाइ नो परियाणाइ नो अब्भुट्ठेइ। जा वि य से अब्भिंतरिया परिसा भवइ तं जहा–पिया इ वा माया इ वा भाया इ वा भगिनी इ वा भज्जा इ वा पुत्ता इ वा धूया इ वा सुण्हा इ वा, सा वि य णं नो आढाइ नो परियाणाइ नो अब्भुट्ठेइ। तए णं से तेयलिपुत्ते जेणेव वासधरे जेणेव सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयणिज्जंसि निसीयइ, निसीइत्ता एवं वयासी–एवं खलु अहं सयाओ गिहाओ निग्गच्छामि तं चेव जाव अब्भिंतरिया परिसा नो आढाइ नो परियाणाइ नो अब्भुट्ठेइ। तं सेयं खलु मम अप्पाणं जीवियाओ ववरोवित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता तालउडं विसं आसगंसि पक्खिवइ। से य विसे नो कमइ। तए णं से तेयलिपुत्ते अमच्चे नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं० असिं खंधंसि ओहरइ। तत्थ वि य से धारा ओएल्ला। तए णं से तेयलिपुत्ते जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पासगं गीवाए बंधइ, बंधित्ता रुक्खं दुरुहइ, दुरुहित्ता पासगं रुक्खे बंधइ, बंधित्ता अप्पाणं मुयइ। तत्थ वि य से रज्जू छिन्ना। तए णं से तेयलिपुत्ते महइमहालियं सिलं गीवाए बंधइ, बंधित्ता अत्थाहमतारमपोरिसीयंसि उदगंसि अप्पाणं मुयइ तत्थ वि से थाहे जाए। तए णं से तेयलिपुत्ते सुक्कंसि तणकूडंसि अगणिकायं पक्खिवइ, पक्खिवित्ता अप्पाणं मुयइ। तत्थ वि य से अगणिकाए विज्झाए। तए णं से तेयलिपुत्ते एवं वयासी–सद्धेयं खलु भो! समणा वयंति। सद्धेयं खलु भो! माहणा वयंति। सद्धेयं खलु भो! समण-माहणा वयंति। अहं एगो असद्धेयं वयामि। एवं खलु– अहं सह पुत्तेहिं अपुत्ते। को मेदं सद्दहिस्सइ? सह मित्तेहिं अमित्ते । को मेदं सद्दहिस्सइ? सह अत्थेणं अणत्थे। को मेदं सद्दहिस्सइ? सह दारेणं अदारे । को मेदं सद्दहिस्सइ? सह दासेहिं अदासे । को मेदं सद्दहिस्सइ? सह पेसेहिं अपेसे। को मेदं सद्दहिस्सइ? सह परिजणेणं अपरिजणे। को मेदं सद्दहिस्सइ? एवं खलु तेयलिपुत्तेणं अमच्चेणं कनगज्झएणं रन्ना अवज्झाएणं समाणेणं तालपुडगे विसे आसगंसि पक्खित्ते। से वि य नो कमइ। को मेयं सद्दहिस्सइ? तेयलिपुत्तेणं नीलुप्पल-गवलगुलिय-कुसुमप्पगासे खुरधारे असी खंधंसि ओहरिए। तत्थ वि य से धारा ओएल्ला! को मेयं सद्दहिस्सइ? तेयलिपुत्तेणं पासयं गीवाए बंधित्ता रुक्खं दुरूढे, पासगं रुक्खे बंधित्ता अप्पा मुक्के। तत्थ वि य से रज्जु छिन्ना। को मेयं सद्दहिस्सइ? तेयलिपुत्तेणं महइमहालियं सिलं गीवाए बंधित्ता अत्थाहमतारमपोरिसीयंसि उदगंसि अप्पा मुक्के। तत्थ वि य णं से थाहे जाए। को मेयं सद्दहिस्सइ? तेयलिपुत्तेणं सुक्कंसि तणकूडंसि अगणिकायं पक्खिवित्ता अप्पा मुक्के। तत्थ वि य सेअग्गी विज्झाए। को मेयं सद्दहिस्सइ? ओहयमनसंकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए ज्झियायइ। तए णं से पोट्टिले देवे पोट्टिलारूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता तेयलिपुत्तस्स अदूरसामंते ठिच्चा एवं वयासी–हं भो तेय-लिपुत्ता! पुरओ पवाए, पिट्ठओ हत्थिभयं, दुहओ अचक्खुफासे, मज्झे सराणि वरिसंति। गामे पलित्ते रण्णे ज्झियाइ, रण्णे पलित्ते गामे ज्झियाइ। आउसो तेयलिपुत्ता! कओ वयामो? तए णं से तेयलिपुत्ते पोट्टिलं एवं वयासी–भीयस्स खलु भो! पव्वज्जा, उक्कंट्ठियस्स सदेसगमणं, छुहियस्स अन्नं, तिसियस्स पानं, आउरस्स भेसज्जं माइयस्स रहस्सं, अभिजुत्तस्स पच्चयकरणं, अद्धाणपरिसंतस्स वाहणगमणं, तरिउकामस्स पवह-णकिच्चं, परं अभिउंजिउकामस्स सहायकिच्चं। खंतस्स दंतस्स जिइंदियस्स एत्तो एगमवि न भवइ। तए णं से पोट्टिलं देवे तेयलिपुत्तं अमच्चं एवं वयासी–सुट्ठु णं तुमं तेयलिपुत्ता! एयमट्ठं आयाणाहि त्ति कट्टु दोच्चंपि तच्चंपि एवं वयइ, वइत्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए।
Sutra Meaning : उधर पोट्टिल देव ने तेतलिपुत्र को बार – बार केवलिप्ररूपित धर्म का प्रतिबोध दिया परन्तु तेतलिपुत्र को प्रतिबोध हुआ ही नहीं। तब पोट्टिल देव को इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ – ‘कनकध्वज राजा तेतलिपुत्र का आदर करता है, यावत्‌ उसका भोग बढ़ा दिया है, इस कारण तेतलिपुत्र बार – बार प्रतिबोध देने पर भी धर्म में प्रतिबुद्ध नहीं होता। अत एव यह उचित होगा कि कनकध्वज को तेतलिपुत्र से विरुद्ध कर दिया जाए।’ देव ने ऐसा विचार किया और कनकध्वज को तेतलिपुत्र से विरुद्ध कर दिया। तदनन्तर तेतलिपुत्र दूसरे दिन स्नान करके, यावत्‌ श्रेष्ठ अश्व की पीठ पर सवार होकर और बहुत – से पुरुषों से परिवृत्त होकर अपने घर से नीकला। जहाँ कनकध्वज राजा था, उसी ओर रवाना हुआ। तत्पश्चात्‌ तेतलिपुत्र अमात्य को जो – जो बहुत – से राजा, ईश्वर, तलवर, आदि देखते वे इसी तरह उसका आदर करते, उसे हितकारक जानते और खड़े होते। हाथ जोड़ते और इष्ट, कान्त, यावत्‌ वाणी से बोलते वे सब उसके आगे, पीछे और अगल – बगल में अनुसरण करके चलते थे। वह तेतलिपुत्र जहाँ कनकध्वज राजा था, वहाँ आया। कनकध्वज ने तेतलिपुत्र को आते देखा, मगर देख कर उसका आदर नहीं किया, उसे हितैषी नहीं जाना, खड़ा नहीं हुआ, बल्कि पराङ्मुख बैठा रहा। तब तेतलिपुत्र ने कनकध्वज राजा को हाथ जोड़े। तब भी वह उसका आदर नहीं करता हुआ विमुख होकर बैठा ही रहा। तब तेतलिपुत्र कनकध्वज को अपने से विपरीत हुआ जानकर भयभीत हो गया। वह बोला – ‘कनकध्वज राजा मुझसे रुष्ट हो गया है, मुझ पर हीन हो गया है, मेरा बूरा सोचा है। सो न मालूम यह मुझे किस बूरी मौत से मारेगा।’ इस प्रकार विचार करके वह डर गया, त्रास को प्राप्त हुआ, घबराया और धीरे – धीरे वहाँ से खिसक गया। उसी अश्व की पीठ पर सवार होकर तेतलिपुत्र के मध्यभाग में होकर अपने घर की तरफ रवाना हुआ। तेतलिपुत्र को वे ईश्वर आदि देखते हैं, किन्तु वे पहले की तरह उसका आदर नहीं करते, उसे नहीं जानते, सामने नहीं खड़े होते, हाथ नहीं जोड़ते और इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनोहर वाणी से बात नहीं करते। आगे, पीछे और अगल – बगल में उसके साथ नहीं चलते। तब तेतलिपत्र अपने घर आया। बाहर की जो परीषद्‌ होती है, जैसे कि दास, प्रेष्य तथा भागीदार आदि; उस बाहर की परीषद्‌ ने भी उसका आदर नहीं किया, उसे नहीं जाना और न खड़ी हुई और जो आभ्यन्तर परीषद्‌ होती है, जैसे कि माता, पिता, भाई, बहिन, पत्नी, पुत्र, पुत्रवधू आदि; उसने भी उसका आदर नहीं किया उसे नहीं जाना और न उठ कर खड़ी हुई। तत्पश्चात्‌ तेतलिपुत्र जहाँ उसका अपना वासगृह था और जहाँ शय्या थी, वहाँ आया। बैठकर इस प्रकार कहने लगा – ‘मैं अपने घर से नीकला और राजा के पास गया। मगर राजा ने आदर – सत्कार नहीं किया। लौटते समय मार्ग में भी किसी ने आदर नहीं किया। घर आया तो बाह्य परीषद्‌ ने भी आदर नहीं किया, यावत्‌ आभ्यन्तर परीषद्‌ ने भी आदर नहीं किया, मानो मुझे पहचाना ही नहीं, कोई खड़ा नहीं हुआ। ऐसी दशा में मुझे अपने को जीवन से रहित कर लेना ही श्रेयस्कर है।’ इस प्रकार तेतलिपुत्र ने विचार किया। विचार करके तालपुट विष – अपने मुख में डाला। परन्तु उस विष ने संक्रमण नहीं किया। तत्पश्चात्‌ तेतलिपुत्र ने नीलकमल के समान श्याम वर्ण की तलवार अपने कन्धे पर वहन की; मगर उसकी धार कुंठित हो गई। तत्पश्चात्‌ तेतलिपुत्र अशोकवाटिका में गया। वहाँ जाकर उसने अपने गले में पाश बाँधा – फिर वृक्ष पर चढ़कर वह पाश वृक्ष से बाँधा। फिर अपने शरीर को छोड़ा किन्तु रस्सी टूट गई। तत्पश्चात्‌ तेतलिपुत्र ने बहुत बड़ी शीला गरदन में बाँधी। अथाह और अपौरुष जल में अपना शरीर छोड़ दिया। पर वहाँ पर वह जल छिछला हो गया। तत्पश्चात्‌ तेतलिपुत्र ने सूखे घास के ढ़ेर में आग लगाई और अपने शरीर को उसमें डाल दिया। मगर वह अग्नि भी बुझ गई। तत्पश्चात्‌ तेतलिपुत्र मन ही मन इस प्रकार बोला – ‘श्रमण श्रद्धा करने योग्य वचन बोलते हैं, माहण श्रद्धा करने योग्य वचन बोलते हैं, मैं ही एक हूँ जो अश्रद्धेय वचन कहता हूँ। मैं पुत्रों सहित होने पर भी पुत्रहीन हूँ, कौन मेरे इस कथन पर श्रद्धा करेगा ? मैं मित्रों सहित होने पर भी मित्रहीन हूँ, कौन मेरी इस बात पर विश्वास करेगा ? इसी प्रकार धन, स्त्री, दास और परिवार से सहित होने पर भी मैं इनसे रहित हूँ, कौन मेरी इस बात पर श्रद्धा करेगा? इस प्रकार राजा कनकध्वज के द्वारा जिसका बूरा विचारा गया है, ऐसे तेतलिपुत्र अमात्य ने अपने मुख में विष डाला, मगर विष ने कुछ भी प्रभाव न दिखलाया, मेरे इस कथन पर कौन विश्वास करेगा ? तेतलिपुत्र ने अपने गले में नीलकमल जैसी तलवार का प्रहार किया, मगर उसकी धार कुंठित हो गई, कौन मेरी इस बात पर श्रद्धा करेगा ? तेतलिपुत्र ने अपने गले में फाँसी लगाई, मगर रस्सी टूट गई, मेरी इस बात पर कौन भरोसा करेगा ? तेतलिपुत्र ने गले में भारी शीला बाँधकर अथाह जल में अपने आपको छोड़ दिया, मगर वह पानी छिछला हो गया, मेरी यह बात कौन मानेगा ? तेतलिपुत्र सूखे घास में आग लगाकर उसमें कूद गया, मगर आग बुझ गई, कौन इस बात पर विश्वास करेगा ? इस प्रकार तेतलिपुत्र भग्नमनोरथ होकर हथेली पर मुख रखकर आर्त्तध्यान करने लगा। तब पोट्टिल देव ने पोट्टिला के रूप की विक्रिया की। विक्रिया करके तेतलिपुत्र से न बहुत दूर न बहुत पास स्थित होकर इस प्रकार कहा – ‘हे तेतलिपुत्र ! आगे प्रपात है और पीछे हाथी का भय है। दोनों बगलों में ऐसा अंधकार है कि आँखों से दिखाई नहीं देता। मध्य भाग में बाणों की वर्षा हो रही है। गाँव में आग लगी है और वन धधक रहा है। वन में आग लगी है और गाँव धधक रहा है, तो आयुष्मन्‌ तेतलिपुत्र ! हम कहाँ जाएं ? कहाँ शरण लें ? अभिप्राय यह है कि जिसके चारों ओर घोर भय का वायुमण्डल हो और जिसे कहीं भी क्षेम – कुशल न दिखाई दे, उसे क्या करना चाहिए ? उसके लिए हितकर मार्ग क्या है ? तत्पश्चात्‌ तेतलिपुत्र ने पोट्टिल देव से इस प्रकार कहा – अहो ! इस प्रकार सर्वत्र भयभीत पुरुष के लिए दीक्षा ही शरणभूत है। जैसे उत्कंठित हुए पुरुष के लिए स्वदेश शरणभूत है, भूखे को अन्न, प्यासे को पानी, बीमार को औषध, मायावी को गुप्तता, अभियुक्त को विश्वास उपजाना, थके – मांदे को वाहन पर चढ़कर गमन कराना, तिरने के ईच्छुक को जहाज और शत्रु का पराभव करने वाले को सहायकृत्य शरणभूत है। क्षमाशील, इन्द्रियदमन करने वाले, जितेन्द्रिय को इनमें से कोई भय नहीं होता। तत्पश्चात्‌ पोट्टिल देव ने तेतलिपुत्र अमात्य से इस प्रकार कहा – ‘हे तेतलिपुत्र ! तुम ठीक कहते हो। मगर इस अर्थ को तुम भलीभाँति जानो, दीक्षा ग्रहण करो। इस प्रकार कहकर देव ने दूसरी बार और तीसरी बार भी ऐसा ही कहा। कहकर देव जिस दिशा से प्रकट हुआ था, उसी दिशा में वापिस लौट गया।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se pottile deve teyaliputtam abhikkhanam-abhikkhanam kevalipannatte dhamme sambohei, no cheva nam se teyaliputtam sambujjhai. Tae nam tassa pottiladevassa imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–evam khalu kanagajjhae raya teyaliputtam adhai java bhogam cha se anuvaddhei, tae nam se teyaliputte abhikkhanam-abhikkhanam sambohijjamane vi dhamme no sambujjhai. Tam seyam khalu mamam kanagajjhayam teyaliputtao vipparinamittae tti kattu evam sampehei, sampehetta kanagajjhayam teyaliputtao vipparinamei. Tae nam teyaliputte kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte nhae kayabalikamme kayakouya-mamgala0-payachchhitta asakhavavaragae bahuhim purisehim saddhim samparivude sao gihao niggachchhai, niggachchhitta jeneva kanagajjhae raya teneva paharettha gamanae. Tae nam teyaliputtam amachcham je jaha bahave raisara-talavara-madambiya-kodumbiya-ibbha-setthi-senavai-satthavaha pabhiyao pasamti te taheva adhayamti pariyanamti abbhuttheti, amjalipaggaham kareti, itthahim kamtahim java vagguhim alavamana ya samlavamana ya purao ya pitthao ya pasao ya samanugachchhamti. Tae nam se teyaliputte jeneva kanagajjhae teneva uvagachchhai. Tae nam se kanagajjhae teyaliputtam ejjamanam pasai, pasitta no adhai no pariyanai no abbhutthei, anadhayamane apariyanamane anabbhutthemane parammuhe samchitthai. Tae nam se teyaliputte amachche kanagajjhayassa ranno amjalim karei. Tao ya nam se kanagajjhae raya anadhayamane apariyanamane anabbhutthemane tusinie parammuhe samchitthai. Tae nam teyaliputte kanagajjhayam rayam vipparinayam janitta bhie tatthe tasie uvvigge samjayabhae evam vayasi–rutthe nam mama kanagajjhae raya. Hine nam mama kanagajjhae raya. Avajjhae nam mama kanagajjhae raya. Tam na najjai nam mama kenai kumarena marehii tti kattu bhie tatthe java saniyam-saniyam pachchosakkai, pachchosakkitta tameva asakhamdham duruhai, duruhitta teyalipuram majjhammajjhenam jeneva sae gihe teneva paharettha gamanae. Tae nam teyaliputtam je jaha isara java satthavahapabhiyao pasamti te taha no adhayamti no pariyanamti no abbhuttheti no amjalipaggaham karemti, itthaim java vagguhim no alavamti no samlavamti no purao ya pitthao ya pasao ya samanugachchhamti. Tae nam teyaliputte amachche jeneva sae gihe teneva uvagae. Ja vi ya se tattha bahiriya parisa bhavai, tam jaha–dase i va pese i va bhaillae i va, sa vi ya nam no adhai no pariyanai no abbhutthei. Ja vi ya se abbhimtariya parisa bhavai tam jaha–piya i va maya i va bhaya i va bhagini i va bhajja i va putta i va dhuya i va sunha i va, sa vi ya nam no adhai no pariyanai no abbhutthei. Tae nam se teyaliputte jeneva vasadhare jeneva sayanijje teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sayanijjamsi nisiyai, nisiitta evam vayasi–evam khalu aham sayao gihao niggachchhami tam cheva java abbhimtariya parisa no adhai no pariyanai no abbhutthei. Tam seyam khalu mama appanam jiviyao vavarovittae tti kattu evam sampehei, sampehetta talaudam visam asagamsi pakkhivai. Se ya vise no kamai. Tae nam se teyaliputte amachche niluppala-gavalaguliya-ayasikusumappagasam khuradharam0 asim khamdhamsi oharai. Tattha vi ya se dhara oella. Tae nam se teyaliputte jeneva asogavaniya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta pasagam givae bamdhai, bamdhitta rukkham duruhai, duruhitta pasagam rukkhe bamdhai, bamdhitta appanam muyai. Tattha vi ya se rajju chhinna. Tae nam se teyaliputte mahaimahaliyam silam givae bamdhai, bamdhitta atthahamataramaporisiyamsi udagamsi appanam muyai tattha vi se thahe jae. Tae nam se teyaliputte sukkamsi tanakudamsi aganikayam pakkhivai, pakkhivitta appanam muyai. Tattha vi ya se aganikae vijjhae. Tae nam se teyaliputte evam vayasi–saddheyam khalu bho! Samana vayamti. Saddheyam khalu bho! Mahana vayamti. Saddheyam khalu bho! Samana-mahana vayamti. Aham ego asaddheyam vayami. Evam khalu– Aham saha puttehim aputte. Ko medam saddahissai? Saha mittehim amitte. Ko medam saddahissai? Saha atthenam anatthe. Ko medam saddahissai? Saha darenam adare. Ko medam saddahissai? Saha dasehim adase. Ko medam saddahissai? Saha pesehim apese. Ko medam saddahissai? Saha parijanenam aparijane. Ko medam saddahissai? Evam khalu teyaliputtenam amachchenam kanagajjhaenam ranna avajjhaenam samanenam talapudage vise asagamsi pakkhitte. Se vi ya no kamai. Ko meyam saddahissai? Teyaliputtenam niluppala-gavalaguliya-kusumappagase khuradhare asi khamdhamsi oharie. Tattha vi ya se dhara oella! Ko meyam saddahissai? Teyaliputtenam pasayam givae bamdhitta rukkham durudhe, pasagam rukkhe bamdhitta appa mukke. Tattha vi ya se rajju chhinna. Ko meyam saddahissai? Teyaliputtenam mahaimahaliyam silam givae bamdhitta atthahamataramaporisiyamsi udagamsi appa mukke. Tattha vi ya nam se thahe jae. Ko meyam saddahissai? Teyaliputtenam sukkamsi tanakudamsi aganikayam pakkhivitta appa mukke. Tattha vi ya seaggi vijjhae. Ko meyam saddahissai? Ohayamanasamkappe karatalapalhatthamuhe attajjhanovagae jjhiyayai. Tae nam se pottile deve pottilaruvam viuvvai, viuvvitta teyaliputtassa adurasamamte thichcha evam vayasi–ham bho teya-liputta! Purao pavae, pitthao hatthibhayam, duhao achakkhuphase, majjhe sarani varisamti. Game palitte ranne jjhiyai, ranne palitte game jjhiyai. Auso teyaliputta! Kao vayamo? Tae nam se teyaliputte pottilam evam vayasi–bhiyassa khalu bho! Pavvajja, ukkamtthiyassa sadesagamanam, chhuhiyassa annam, tisiyassa panam, aurassa bhesajjam maiyassa rahassam, abhijuttassa pachchayakaranam, addhanaparisamtassa vahanagamanam, tariukamassa pavaha-nakichcham, param abhiumjiukamassa sahayakichcham. Khamtassa damtassa jiimdiyassa etto egamavi na bhavai. Tae nam se pottilam deve teyaliputtam amachcham evam vayasi–sutthu nam tumam teyaliputta! Eyamattham ayanahi tti kattu dochchampi tachchampi evam vayai, vaitta jameva disim paubbhue tameva disim padigae.
Sutra Meaning Transliteration : Udhara pottila deva ne tetaliputra ko bara – bara kevaliprarupita dharma ka pratibodha diya parantu tetaliputra ko pratibodha hua hi nahim. Taba pottila deva ko isa prakara ka vichara utpanna hua – ‘kanakadhvaja raja tetaliputra ka adara karata hai, yavat usaka bhoga barha diya hai, isa karana tetaliputra bara – bara pratibodha dene para bhi dharma mem pratibuddha nahim hota. Ata eva yaha uchita hoga ki kanakadhvaja ko tetaliputra se viruddha kara diya jae.’ deva ne aisa vichara kiya aura kanakadhvaja ko tetaliputra se viruddha kara diya. Tadanantara tetaliputra dusare dina snana karake, yavat shreshtha ashva ki pitha para savara hokara aura bahuta – se purushom se parivritta hokara apane ghara se nikala. Jaham kanakadhvaja raja tha, usi ora ravana hua. Tatpashchat tetaliputra amatya ko jo – jo bahuta – se raja, ishvara, talavara, adi dekhate ve isi taraha usaka adara karate, use hitakaraka janate aura khare hote. Hatha jorate aura ishta, kanta, yavat vani se bolate ve saba usake age, pichhe aura agala – bagala mem anusarana karake chalate the. Vaha tetaliputra jaham kanakadhvaja raja tha, vaham aya. Kanakadhvaja ne tetaliputra ko ate dekha, magara dekha kara usaka adara nahim kiya, use hitaishi nahim jana, khara nahim hua, balki parangmukha baitha raha. Taba tetaliputra ne kanakadhvaja raja ko hatha jore. Taba bhi vaha usaka adara nahim karata hua vimukha hokara baitha hi raha. Taba tetaliputra kanakadhvaja ko apane se viparita hua janakara bhayabhita ho gaya. Vaha bola – ‘kanakadhvaja raja mujhase rushta ho gaya hai, mujha para hina ho gaya hai, mera bura socha hai. So na maluma yaha mujhe kisa buri mauta se marega.’ isa prakara vichara karake vaha dara gaya, trasa ko prapta hua, ghabaraya aura dhire – dhire vaham se khisaka gaya. Usi ashva ki pitha para savara hokara tetaliputra ke madhyabhaga mem hokara apane ghara ki tarapha ravana hua. Tetaliputra ko ve ishvara adi dekhate haim, kintu ve pahale ki taraha usaka adara nahim karate, use nahim janate, samane nahim khare hote, hatha nahim jorate aura ishta, kanta, priya, manojnya, manohara vani se bata nahim karate. Age, pichhe aura agala – bagala mem usake satha nahim chalate. Taba tetalipatra apane ghara aya. Bahara ki jo parishad hoti hai, jaise ki dasa, preshya tatha bhagidara adi; usa bahara ki parishad ne bhi usaka adara nahim kiya, use nahim jana aura na khari hui aura jo abhyantara parishad hoti hai, jaise ki mata, pita, bhai, bahina, patni, putra, putravadhu adi; usane bhi usaka adara nahim kiya use nahim jana aura na utha kara khari hui. Tatpashchat tetaliputra jaham usaka apana vasagriha tha aura jaham shayya thi, vaham aya. Baithakara isa prakara kahane laga – ‘maim apane ghara se nikala aura raja ke pasa gaya. Magara raja ne adara – satkara nahim kiya. Lautate samaya marga mem bhi kisi ne adara nahim kiya. Ghara aya to bahya parishad ne bhi adara nahim kiya, yavat abhyantara parishad ne bhi adara nahim kiya, mano mujhe pahachana hi nahim, koi khara nahim hua. Aisi dasha mem mujhe apane ko jivana se rahita kara lena hi shreyaskara hai.’ isa prakara tetaliputra ne vichara kiya. Vichara karake talaputa visha – apane mukha mem dala. Parantu usa visha ne samkramana nahim kiya. Tatpashchat tetaliputra ne nilakamala ke samana shyama varna ki talavara apane kandhe para vahana ki; magara usaki dhara kumthita ho gai. Tatpashchat tetaliputra ashokavatika mem gaya. Vaham jakara usane apane gale mem pasha bamdha – phira vriksha para charhakara vaha pasha vriksha se bamdha. Phira apane sharira ko chhora kintu rassi tuta gai. Tatpashchat tetaliputra ne bahuta bari shila garadana mem bamdhi. Athaha aura apaurusha jala mem apana sharira chhora diya. Para vaham para vaha jala chhichhala ho gaya. Tatpashchat tetaliputra ne sukhe ghasa ke rhera mem aga lagai aura apane sharira ko usamem dala diya. Magara vaha agni bhi bujha gai. Tatpashchat tetaliputra mana hi mana isa prakara bola – ‘shramana shraddha karane yogya vachana bolate haim, mahana shraddha karane yogya vachana bolate haim, maim hi eka hum jo ashraddheya vachana kahata hum. Maim putrom sahita hone para bhi putrahina hum, kauna mere isa kathana para shraddha karega\? Maim mitrom sahita hone para bhi mitrahina hum, kauna meri isa bata para vishvasa karega\? Isi prakara dhana, stri, dasa aura parivara se sahita hone para bhi maim inase rahita hum, kauna meri isa bata para shraddha karega? Isa prakara raja kanakadhvaja ke dvara jisaka bura vichara gaya hai, aise tetaliputra amatya ne apane mukha mem visha dala, magara visha ne kuchha bhi prabhava na dikhalaya, mere isa kathana para kauna vishvasa karega\? Tetaliputra ne apane gale mem nilakamala jaisi talavara ka prahara kiya, magara usaki dhara kumthita ho gai, kauna meri isa bata para shraddha karega\? Tetaliputra ne apane gale mem phamsi lagai, magara rassi tuta gai, meri isa bata para kauna bharosa karega\? Tetaliputra ne gale mem bhari shila bamdhakara athaha jala mem apane apako chhora diya, magara vaha pani chhichhala ho gaya, meri yaha bata kauna manega\? Tetaliputra sukhe ghasa mem aga lagakara usamem kuda gaya, magara aga bujha gai, kauna isa bata para vishvasa karega\? Isa prakara tetaliputra bhagnamanoratha hokara hatheli para mukha rakhakara arttadhyana karane laga. Taba pottila deva ne pottila ke rupa ki vikriya ki. Vikriya karake tetaliputra se na bahuta dura na bahuta pasa sthita hokara isa prakara kaha – ‘he tetaliputra ! Age prapata hai aura pichhe hathi ka bhaya hai. Donom bagalom mem aisa amdhakara hai ki amkhom se dikhai nahim deta. Madhya bhaga mem banom ki varsha ho rahi hai. Gamva mem aga lagi hai aura vana dhadhaka raha hai. Vana mem aga lagi hai aura gamva dhadhaka raha hai, to ayushman tetaliputra ! Hama kaham jaem\? Kaham sharana lem\? Abhipraya yaha hai ki jisake charom ora ghora bhaya ka vayumandala ho aura jise kahim bhi kshema – kushala na dikhai de, use kya karana chahie\? Usake lie hitakara marga kya hai\? Tatpashchat tetaliputra ne pottila deva se isa prakara kaha – aho ! Isa prakara sarvatra bhayabhita purusha ke lie diksha hi sharanabhuta hai. Jaise utkamthita hue purusha ke lie svadesha sharanabhuta hai, bhukhe ko anna, pyase ko pani, bimara ko aushadha, mayavi ko guptata, abhiyukta ko vishvasa upajana, thake – mamde ko vahana para charhakara gamana karana, tirane ke ichchhuka ko jahaja aura shatru ka parabhava karane vale ko sahayakritya sharanabhuta hai. Kshamashila, indriyadamana karane vale, jitendriya ko inamem se koi bhaya nahim hota. Tatpashchat pottila deva ne tetaliputra amatya se isa prakara kaha – ‘he tetaliputra ! Tuma thika kahate ho. Magara isa artha ko tuma bhalibhamti jano, diksha grahana karo. Isa prakara kahakara deva ne dusari bara aura tisari bara bhi aisa hi kaha. Kahakara deva jisa disha se prakata hua tha, usi disha mem vapisa lauta gaya.