Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004852 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१४ तेतलीपुत्र |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१४ तेतलीपुत्र |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 152 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं तीसे पोट्टिलाए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झ-त्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं तेयलि-पुत्तस्स पुव्विं इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा आसि, इयाणिं अणिट्ठा अकंता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा जाया। नेच्छइ णं तेयलीपुत्ते मम नामगोयमवि सवणयाए किं पुण दंसणं वा परिभोगं वा? तं सेयं खलु ममं सुव्वयाणं अज्जाणं अंतिए पव्वइत्तए–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठि यम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते जेणेव तेयलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! मए सुव्वयाणं अज्जाणं अंतिए धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। तं इच्छामि णं तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया पव्वइत्तए। तए णं तेयलिपुत्ते पोट्टिलं एवं वयासी–एवं खलु तुमं देवानुप्पिए! मुंडा पव्वइया समाणी कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववज्जिहिसि। तं जइ णं तुमं देवानुप्पिए! ममं ताओ देवलोगाओ आगम्म केवलिपन्नत्ते धम्मे बोहेहि, तो हं विसज्जेमि। अह णं तुमं ममं न संबोहेसि, तो ते न विसज्जेमि। तए णं सा पोट्टिला तेयलिपुत्तस्स एयमट्ठं पडिसुणेइ। तए णं तेयलिपुत्ते विउलं असनं पानं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि -परियणं आमंतेइ जाव सक्कारेइ-सम्मानेइ, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता पोट्टिलं ण्हायं सव्वालंकारविभूसियं पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं दुरुहित्त मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव दुंदुहिनिग्घोसनाइय-रवेणं तेयलिपुरं मज्झंमज्झेणं जेणेव सुव्वयाणं उवस्सए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पोट्टिलं पुरओ कट्टु जेणेव सुव्वया अज्जा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! मम पोट्टिला भारिया इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा। एस णं संसारभउव्विग्गा भीया जम्मण-जर-मरणाणं इच्छइ देवानुप्पियाणं अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइत्तए। पडिच्छंतु णं देवानुप्पिया! सिस्सिणिभिक्खं। अहासुहं, मा पडिबंधं करेहि। तए णं सा पोट्टिला सुव्वयाहि अज्जाहि एवं वुत्ता समाणी हट्ठा उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयइ, ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, जेणेव सुव्वयाओ अज्जाओ तेणेव उवागच्छइ, वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– आलित्ते णं अज्जा! लोए एवं जहा देवानंदा जाव एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ, बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झोसेत्ता, सट्ठिं भत्ताइं अनसणेणं छेएत्ता आलोइय-पडिक्कंता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववन्ना। | ||
Sutra Meaning : | एक बार किसी समय, मध्य रात्रि में जब वह कुटुम्ब के विषय में चिन्ता करती जाग रही थी, तब उसे विचार उत्पन्न हुआ – ‘मैं पहले तेतलिपुत्र को इष्ट थी, अब अनिष्ट हो गई हूँ; यावत् दर्शन और परिभोग का तो कहना ही क्या है ? अत एव मेरे लिए सुव्रता आर्या के निकट दीक्षा ग्रहण करना ही श्रेयस्कर है।’ पोट्टिला दूसरे दिन प्रभात होने पर वह तेतलिपुत्र के पास गई। जाकर दोनों हाथ जोड़कर बोली – देवानुप्रिय ! मैंने सुव्रता आर्या से धर्म सूना है, वह धर्म मुझे इष्ट, अतीव इष्ट है और रुचिकर लगा है, अतः आपकी आज्ञा पाकर मैं प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहती हूँ। तब तेतलिपुत्र ने पोट्टिला से कहा – ‘देवानुप्रिये ! तुम मुण्डित और प्रव्रजित होकर मृत्यु के समय काल किसी भी देवलोक में देव रूप से उत्पन्न होओगी, सो यदि तुम उस देवलोक से आकर मुझे केवलिप्ररूपित धर्म का प्रतिबोध प्रदान करो तो मैं तुम्हें आज्ञा देता हूँ। अगर मुझे प्रतिबोध न दो तो मैं आज्ञा नहीं देता। तब पोट्टिला ने तेतलिपुत्र के अर्थ – कथन का स्वीकार कर लिया। तत्पश्चात् तेतलिपुत्र ने विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार बनवाया। मित्रों, ज्ञातिजनों आदि को आमंत्रित किया। उनका यथोचित सत्कार – सम्मान किया। पोट्टिला को स्नान कराया और हजार पुरुषों द्वारा वहन करने योग्य शिबिका पर आरूढ़ करा कर मित्रों तथा ज्ञातिजनों आदि से परिवृत्त होकर, समस्त ऋद्धि – लवाजमें के साथ यावत् वाद्यों की ध्वनि के साथ तेतलिपुत्र के मध्य में होकर सुव्रता साध्वी के उपाश्रय में आया। वहाँ आकर सुव्रता आर्या को वन्दना की, नमस्कार किया। इस प्रकार कहा – ‘देवानुप्रिये ! यह मेरी पोट्टिला भार्या मुझे इष्ट है। यह संसार के भय से उद्वेग को प्राप्त हुई है, यावत् दीक्षा अंगीकार करना चाहती है। सो देवानुप्रिये ! मैं आपको शिष्यारूप भिक्षा देता हूँ। इसे आप अंगीकार कीजिए।’ आर्या ने कहा – ‘जैसे सुख उपजे, वैसा करो; प्रतिबन्ध मत करो – विलम्ब न करो।’ तत्पश्चात् सुव्रता आर्या के इस प्रकार कहने पर पोट्टिला हृष्ट – तुष्ट हुई। उसने ईशान दिशा में जाकर अपने आप आभरण, माला और अलंकार उतार डाले। स्वयं ही पंचमुष्टिक लोच किया। जहाँ सुव्रता आर्या थी, वहाँ आई। उन्हें वन्दन – नमस्कार किया। इस प्रकार कहा – ‘हे भगवती ! यह संसार चारों ओर से जल रहा है, इत्यादि यावत् पोट्टिला ने दीक्षा अंगीकार करने के पश्चात् ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। बहुत वर्षों तक चारित्र का पालन किया। एक मास की संलेखना करके, अपने शरीर को कृश करके, साठ भक्त का अनशन करके, पापकर्म की आलोचना और प्रतिक्रमण करके, समाधिपूर्वक मृत्यु के अवसर पर काल करके वह किसी देवलोक में देवता के रूप में उत्पन्न हुई। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam tise pottilae annaya kayai puvvarattavarattakalasamayamsi kudumbajagariyam jagaramanie ayameyaruve ajjha-tthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–evam khalu aham teyali-puttassa puvvim ittha kamta piya manunna manama asi, iyanim anittha akamta appiya amanunna amanama jaya. Nechchhai nam teyaliputte mama namagoyamavi savanayae kim puna damsanam va paribhogam va? Tam seyam khalu mamam suvvayanam ajjanam amtie pavvaittae–evam sampehei, sampehetta kallam pauppabhayae rayanie java utthi yammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte jeneva teyaliputte teneva uvagachchhai, uvagachchhitta karayala-pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Mae suvvayanam ajjanam amtie dhamme nisamte, se vi ya me dhamme ichchhie padichchhie abhiruie. Tam ichchhami nam tubbhehim abbhanunnaya pavvaittae. Tae nam teyaliputte pottilam evam vayasi–evam khalu tumam devanuppie! Mumda pavvaiya samani kalamase kalam kichcha annayaresu devaloesu devattae uvavajjihisi. Tam jai nam tumam devanuppie! Mamam tao devalogao agamma kevalipannatte dhamme bohehi, to ham visajjemi. Aha nam tumam mamam na sambohesi, to te na visajjemi. Tae nam sa pottila teyaliputtassa eyamattham padisunei. Tae nam teyaliputte viulam asanam panam khaimam saimam uvakkhadavei, uvakkhadavetta mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi -pariyanam amamtei java sakkarei-sammanei, sakkaretta sammanetta pottilam nhayam savvalamkaravibhusiyam purisasahassavahiniyam siyam duruhitta mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanenam saddhim samparivude savviddhie java dumduhinigghosanaiya-ravenam teyalipuram majjhammajjhenam jeneva suvvayanam uvassae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta siyao pachchoruhai, pachchoruhitta pottilam purao kattu jeneva suvvaya ajja teneva uvagachchhai, uvagachchhitta vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Mama pottila bhariya ittha kamta piya manunna manama. Esa nam samsarabhauvvigga bhiya jammana-jara-marananam ichchhai devanuppiyanam amtie mumda bhavitta agarao anagariyam pavvaittae. Padichchhamtu nam devanuppiya! Sissinibhikkham. Ahasuham, ma padibamdham karehi. Tae nam sa pottila suvvayahi ajjahi evam vutta samani hattha uttarapuratthimam disibhagam avakkamai, avakkamitta sayameva abharanamallalamkaram omuyai, omuitta sayameva pamchamutthiyam loyam karei, jeneva suvvayao ajjao teneva uvagachchhai, vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi– Alitte nam ajja! Loe evam jaha devanamda java ekkarasa amgaim ahijjai, bahuni vasani samannapariyagam paunai, paunitta masiyae samlehanae attanam jjhosetta, satthim bhattaim anasanenam chheetta aloiya-padikkamta samahipatta kalamase kalam kichcha annayaresu devaloesu devattae uvavanna. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Eka bara kisi samaya, madhya ratri mem jaba vaha kutumba ke vishaya mem chinta karati jaga rahi thi, taba use vichara utpanna hua – ‘maim pahale tetaliputra ko ishta thi, aba anishta ho gai hum; yavat darshana aura paribhoga ka to kahana hi kya hai\? Ata eva mere lie suvrata arya ke nikata diksha grahana karana hi shreyaskara hai.’ pottila dusare dina prabhata hone para vaha tetaliputra ke pasa gai. Jakara donom hatha jorakara boli – devanupriya ! Maimne suvrata arya se dharma suna hai, vaha dharma mujhe ishta, ativa ishta hai aura ruchikara laga hai, atah apaki ajnya pakara maim pravrajya amgikara karana chahati hum. Taba tetaliputra ne pottila se kaha – ‘devanupriye ! Tuma mundita aura pravrajita hokara mrityu ke samaya kala kisi bhi devaloka mem deva rupa se utpanna hoogi, so yadi tuma usa devaloka se akara mujhe kevaliprarupita dharma ka pratibodha pradana karo to maim tumhem ajnya deta hum. Agara mujhe pratibodha na do to maim ajnya nahim deta. Taba pottila ne tetaliputra ke artha – kathana ka svikara kara liya. Tatpashchat tetaliputra ne vipula ashana, pana, khadima aura svadima ahara banavaya. Mitrom, jnyatijanom adi ko amamtrita kiya. Unaka yathochita satkara – sammana kiya. Pottila ko snana karaya aura hajara purushom dvara vahana karane yogya shibika para arurha kara kara mitrom tatha jnyatijanom adi se parivritta hokara, samasta riddhi – lavajamem ke satha yavat vadyom ki dhvani ke satha tetaliputra ke madhya mem hokara suvrata sadhvi ke upashraya mem aya. Vaham akara suvrata arya ko vandana ki, namaskara kiya. Isa prakara kaha – ‘devanupriye ! Yaha meri pottila bharya mujhe ishta hai. Yaha samsara ke bhaya se udvega ko prapta hui hai, yavat diksha amgikara karana chahati hai. So devanupriye ! Maim apako shishyarupa bhiksha deta hum. Ise apa amgikara kijie.’ arya ne kaha – ‘jaise sukha upaje, vaisa karo; pratibandha mata karo – vilamba na karo.’ tatpashchat suvrata arya ke isa prakara kahane para pottila hrishta – tushta hui. Usane ishana disha mem jakara apane apa abharana, mala aura alamkara utara dale. Svayam hi pamchamushtika locha kiya. Jaham suvrata arya thi, vaham ai. Unhem vandana – namaskara kiya. Isa prakara kaha – ‘he bhagavati ! Yaha samsara charom ora se jala raha hai, ityadi yavat pottila ne diksha amgikara karane ke pashchat gyaraha amgom ka adhyayana kiya. Bahuta varshom taka charitra ka palana kiya. Eka masa ki samlekhana karake, apane sharira ko krisha karake, satha bhakta ka anashana karake, papakarma ki alochana aura pratikramana karake, samadhipurvaka mrityu ke avasara para kala karake vaha kisi devaloka mem devata ke rupa mem utpanna hui. |