Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )

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Sr No : 1004851
Scripture Name( English ): Gyatadharmakatha Translated Scripture Name : धर्मकथांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१४ तेतलीपुत्र

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१४ तेतलीपुत्र

Section : Translated Section :
Sutra Number : 151 Category : Ang-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सुव्वयाओ नामं अज्जाओ इरियासमियाओ भासासमियाओ एसणासमियाओ आयाण-भंड-मत्त-णिक्खेवणासमियाओ उच्चार-पासवण-खेल-सिंधाण-जल्ल-पारिट्ठावणियासमियाओ मणसमियाओ वइसमियाओ काय-समियाओ मणगुत्ताओ वइगुत्ताओ कायगुत्ताओ गुत्ताओ गुत्तिंदियाओ गुत्तबंभचारिणीओ बहुस्सुयाओ बहुपरिवाराओ पुव्वाणुपुव्विं चरमाणीओ जेणामेव तेयलिपुरे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हंति, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणीओ विहरंति। तए णं तासिं सुव्वयाणं अज्जाणं एगे संघाडए पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए ज्झाणं ज्झियाइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेइ, भायणवत्थाणि पडिलेहेइ, भायणाणि पमज्जेइ, भायणाणि ओग्ग-हेइ, जेणेव सुव्वयाओ अज्जाओ तेणेव उवागच्छइ, सुव्वयाओ अज्जाओ वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामो णं तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए तेयलीपुरे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्तए। अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि। तए णं ताओ अज्जाओ सुव्वयाहिं अज्जाहिं अब्भणुण्णाया समाणीओ सुव्वयाणं अज्जाणं अंतियाओ पडिस्सयाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता अतुरियमचवलमसंभंताए गतीए जुगंतर-पलोयणाए दिट्ठीए पुरओ रिय सोहेमाणीओ तेयलीपुरे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियं अडमाणीओ तेयलिस्स गिहं अनुपविट्ठाओ। तए णं सा पोट्टिला ताओ अज्जाओ एज्जमाणीओ पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठा आसनाओ अब्भुट्ठेइ, वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता विपुलेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पडिलाभेइ, पडिलाभेत्ता एवं वयासी–एवं खलु अहं अज्जाओ! तेयलिपुत्तस्स अमच्चस्स पुव्विं इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा आसि, इयाणिं अनिट्ठा अकंता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा जाया। नेच्छइ णं तेयलीपुत्ते मम नामगोयमवि सवणयाए, किं पुण दंसणं वा परिभोगं वा? तं तुब्भे णं अज्जाओ बहुनायाओ बहुसिक्खियाओ बहुपढियाओ बहूणि गामागर-णगर-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब-पट्टण-आसम-निगम-संबाह-सन्निवेसाइं आहिंडइ, बहूणं राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेनावइ-सत्थवाहपभिईणं गिहाइं अनुपविसह। तं अत्थियाइं भे अज्जाओ! केइ कहिंचि चुण्णजोए वा मंतजोगे वा कम्मणजोए वा कम्मजोए वा हियउड्डावणे वा काउड्डावणे वा आभिओगिए वा वसीकरणे वा कोउयकम्मे वा भूइकम्मे वा मूले वा कंदे वा छल्ली वल्ली सिलिया वा गुलिया वा ओसहे वा भेसज्जे वा उवलद्धपुव्वे, जेणाहं तेयलिपुत्तस्स पुनरवि इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा भवेज्जामि? तए णं ताओ अज्जाओ पोट्टिलाए एवं वुत्ताओ समाणीओ दोवि कण्णे ठएंति, ठवेत्ता पोट्टिलं एवं वयासी–अम्हे णं देवानुप्पिए! समणीओ निग्गंथीओ जाव गुत्तबंभचारिणीओ। नो खलु कप्पइ अम्हं एयप्पगारं कण्णेहिं वि निसामित्तए, किमंग पुण उवदंसित्तए वा आयरित्तए वा? अम्हे णं तव देवानुप्पिए! विचित्तं केवलिपन्नत्तं धम्मं परिकहिज्जामो। तए णं सा पोट्टिला ताओ अज्जाओ एवं वयासी–इच्छामि णं अज्जाओ! तुब्भं अंतिए केवलिपन्नत्तं धम्मं निसामित्तए। तए णं ताओ अज्जाओ पोट्टिलाए विचित्तं केवलिपन्नत्तं धम्मं परिकहेंति। तए णं सा पोट्टिला धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठा एवं वयासी–सद्दहामि णं अज्जाओ! निग्गंथं पावयणं जाव से जहेयं तुब्भे वयह। इच्छामि णं अहं तुब्भं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं–दुवालसविहं गिहिधम्मं पडिवज्जित्तए। अहासुहं देवानुप्पिए! तए णं सा पोट्टिला तासिं अज्जाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं जाव गिहिधम्मं पडिवज्जइ, ताओ अज्जाओ वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पडिविसज्जेइ। तए णं सा पोट्टिला समणोवासिया जाया जाव समणे निग्गंथे फासुएणं एसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं ओसहभेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणी विहरइ।
Sutra Meaning : उस काल और उस समय में ईर्या – समिति से युक्त यावत्‌ गुप्त ब्रह्मचारिणी, बहुश्रुत, बहुत परिवार वाली सुव्रता नामक आर्या अनुक्रम से विहार करती – करती तेतलिपुर नगर में आई। आकर यथोचित उपाश्रय ग्रहण करके संयम और तप से आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी। तत्पश्चात्‌ उन सुव्रता आर्या के एक संघाड़े ने प्रथम प्रहर में स्वाध्याय किया और दूसरे प्रहर में ध्यान किया। तीसरे प्रहर में भिक्षा के लिए यावत्‌ अटन करती हुई वे साध्वीयाँ तेतलिपुत्र के घर में प्रविष्ट हुई। पोट्टिला उन आर्याओं को आती देखकर हृष्ट – तुष्ट हुई, अपने आसन से उठ खड़ी हुई, वन्दना की, नमस्कार किया और विपुल अशन पान खाद्य और स्वाद्य – आहार वहराया। आहार वहरा कर उसने कहा – ‘हे आर्याओं ! मैं पहले तेतलिपुत्र की इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और मणाम – मनगमती थी, किन्तु अब अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ, अमणाम हो गई हूँ। तेतलिपुत्र मेरा नाम – गोत्र भी सूनना नहीं चाहते, दर्शन और परिभोग की तो बात ही दूर ! हे आर्याओं ! तुम शिक्षित हो, बहुत जानकार हो, बहुत पढ़ी हो, बहुत – से नगरों और ग्रामों में यावत्‌ भ्रमण करती हो, राजाओं और ईश्वरों – युवराजों आदि के घरों में प्रवेश करती हो तो हे आर्याओं! तुम्हारे पास कोई चूर्ण – योग, मंत्रयोग, कामणयोग, हृदयोड्डायन, काया का आकर्षण करने वाला, आभियोगिक, वशीकरण, कौतुककर्म, भूतिकर्म अथवा कोई सेल, कंद, छाल, बेल, शिलिका, गोली, औषध या भेषज ऐसी हैं, जो पहले जानी हो ? जिससे मैं फिर तेतलिपुत्र की इष्ट हो सकूँ ?’ पोट्टिला द्वारा इस प्रकार कहने पर उन आर्याओंने अपने दोनों कान बन्द कर लिए। उन्होंने पोट्टिला से कहा – ‘देवानुप्रिये ! हम निर्ग्रन्थ श्रमणियाँ हैं, यावत्‌ गुप्त ब्रह्मचारिणियाँ हैं। अत एव ऐसे वचन हमें कानों से श्रवण करना भी नहीं कल्पता तो इस विषय का उपदेश देना या आचरण करना तो कल्पे ही कैसे? हाँ, देवानुप्रिये ! हम तुम्हें अद्‌भुत या अनेक प्रकार के केवलिप्ररूपित धर्म का भलीभाँति उपदेश दे सकती हैं।’ तत्पश्चात्‌ पोट्टिला ने उन आर्याओं से कहा – हे आर्याओ ! मैं आपके पास से केवलिप्ररूपित धर्म सूनना चाहती हूँ। तब उन आर्याओं ने पोट्टिला को अद्‌भुत या अनेक प्रकार के धर्म का उपदेश दिया। पोट्टिला धर्म का उपदेश सूनकर और हृदय में धारण करके हृष्ट – तुष्ट होकर इस प्रकार बोली – ‘आर्याओं ! मैं निर्ग्रन्थप्रवचन पर श्रद्धा करती हूँ। जैसा आपने कहा, वह वैसा ही है। अत एव मैं आपके पास से पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत वाले श्रावक के धर्म को अंगीकार करना चाहती हूँ।’ तब आर्याओं ने कहा – ‘देवानुप्रिये ! जैसे सुख उपजे, वैसा करो।’ तत्पश्चात्‌ उस पोट्टिलाने उन आर्याओं से पाँच अणुव्रत, सात शिक्षाव्रतवाला केवलिप्ररूपित धर्म अंगीकार किया। उन आर्याओंको वन्दना की, नमस्कार किया। वन्दना नमस्कार करके उन्हें बिदा किया। तत्पश्चात्‌ पोट्टिला श्रमणोपासिका हो गई, यावत्‌ साधु – साध्वीयों को प्रासुक – अचित्त, एषणीय – आधाकर्मादि दोषों से रहित – कल्पनीय अशन, पान, खादिम, स्वादिम तथा वस्त्र, पात्र, कम्बल, पादप्रोंछन, औषध, भेषज एवं प्रातिहारिक – वापिस लौटा देने के योग्य पीढ़ा, पाट, शय्या – उपाश्रय और संस्तारक – बिछाने के लिए घास आदि प्रदान करती हुई विचरने लगी।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tenam kalenam tenam samaenam suvvayao namam ajjao iriyasamiyao bhasasamiyao esanasamiyao ayana-bhamda-matta-nikkhevanasamiyao uchchara-pasavana-khela-simdhana-jalla-paritthavaniyasamiyao manasamiyao vaisamiyao kaya-samiyao managuttao vaiguttao kayaguttao guttao guttimdiyao guttabambhacharinio bahussuyao bahuparivarao puvvanupuvvim charamanio jenameva teyalipure nayare teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta ahapadiruvam oggaham oginhamti, oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemanio viharamti. Tae nam tasim suvvayanam ajjanam ege samghadae padhamae porisie sajjhayam karei, biyae porisie jjhanam jjhiyai, taiyae porisie aturiyamachavalamasambhamte muhapottiyam padilehei, bhayanavatthani padilehei, bhayanani pamajjei, bhayanani ogga-hei, jeneva suvvayao ajjao teneva uvagachchhai, suvvayao ajjao vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–ichchhamo nam tubbhehim abbhanunnae teyalipure nayare uchcha-niya-majjhimaim kulaim gharasamudanassa bhikkhayariyae adittae. Ahasuham devanuppiya! Ma padibamdham karehi. Tae nam tao ajjao suvvayahim ajjahim abbhanunnaya samanio suvvayanam ajjanam amtiyao padissayao padinikkhamamti, padinikkhamitta aturiyamachavalamasambhamtae gatie jugamtara-paloyanae ditthie purao riya sohemanio teyalipure nayare uchcha-niya-majjhimaim kulaim gharasamudanassa bhikkhayariyam adamanio teyalissa giham anupavitthao. Tae nam sa pottila tao ajjao ejjamanio pasai, pasitta hatthatuttha asanao abbhutthei, vamdai namamsai, vamditta namamsitta vipulenam asana-pana-khaima-saimenam padilabhei, padilabhetta evam vayasi–evam khalu aham ajjao! Teyaliputtassa amachchassa puvvim ittha kamta piya manunna manama asi, iyanim anittha akamta appiya amanunna amanama jaya. Nechchhai nam teyaliputte mama namagoyamavi savanayae, kim puna damsanam va paribhogam va? Tam tubbhe nam ajjao bahunayao bahusikkhiyao bahupadhiyao bahuni gamagara-nagara-kheda-kabbada-donamuha-madamba-pattana-asama-nigama-sambaha-sannivesaim ahimdai, bahunam raisara-talavara-madambiya-kodumbiya-ibbha-setthi-senavai-satthavahapabhiinam gihaim anupavisaha. Tam atthiyaim bhe ajjao! Kei kahimchi chunnajoe va mamtajoge va kammanajoe va kammajoe va hiyauddavane va kauddavane va abhiogie va vasikarane va kouyakamme va bhuikamme va mule va kamde va chhalli valli siliya va guliya va osahe va bhesajje va uvaladdhapuvve, jenaham teyaliputtassa punaravi ittha kamta piya manunna manama bhavejjami? Tae nam tao ajjao pottilae evam vuttao samanio dovi kanne thaemti, thavetta pottilam evam vayasi–amhe nam devanuppie! Samanio niggamthio java guttabambhacharinio. No khalu kappai amham eyappagaram kannehim vi nisamittae, kimamga puna uvadamsittae va ayarittae va? Amhe nam tava devanuppie! Vichittam kevalipannattam dhammam parikahijjamo. Tae nam sa pottila tao ajjao evam vayasi–ichchhami nam ajjao! Tubbham amtie kevalipannattam dhammam nisamittae. Tae nam tao ajjao pottilae vichittam kevalipannattam dhammam parikahemti. Tae nam sa pottila dhammam sochcha nisamma hattha evam vayasi–saddahami nam ajjao! Niggamtham pavayanam java se jaheyam tubbhe vayaha. Ichchhami nam aham tubbham amtie pamchanuvvaiyam sattasikkhavaiyam–duvalasaviham gihidhammam padivajjittae. Ahasuham devanuppie! Tae nam sa pottila tasim ajjanam amtie pamchanuvvaiyam java gihidhammam padivajjai, tao ajjao vamdai namamsai, vamditta namamsitta padivisajjei. Tae nam sa pottila samanovasiya jaya java samane niggamthe phasuenam esanijjenam asana-pana-khaima-saimenam vattha-padiggaha-kambala-payapumchhanenam osahabhesajjenam padihariena ya pidha-phalaga-sejja-samtharaenam padilabhemani viharai.
Sutra Meaning Transliteration : Usa kala aura usa samaya mem irya – samiti se yukta yavat gupta brahmacharini, bahushruta, bahuta parivara vali suvrata namaka arya anukrama se vihara karati – karati tetalipura nagara mem ai. Akara yathochita upashraya grahana karake samyama aura tapa se atma ko bhavita karati hui vicharane lagi. Tatpashchat una suvrata arya ke eka samghare ne prathama prahara mem svadhyaya kiya aura dusare prahara mem dhyana kiya. Tisare prahara mem bhiksha ke lie yavat atana karati hui ve sadhviyam tetaliputra ke ghara mem pravishta hui. Pottila una aryaom ko ati dekhakara hrishta – tushta hui, apane asana se utha khari hui, vandana ki, namaskara kiya aura vipula ashana pana khadya aura svadya – ahara vaharaya. Ahara vahara kara usane kaha – ‘he aryaom ! Maim pahale tetaliputra ki ishta, kanta, priya, manojnya aura manama – managamati thi, kintu aba anishta, akanta, apriya, amanojnya, amanama ho gai hum. Tetaliputra mera nama – gotra bhi sunana nahim chahate, darshana aura paribhoga ki to bata hi dura ! He aryaom ! Tuma shikshita ho, bahuta janakara ho, bahuta parhi ho, bahuta – se nagarom aura gramom mem yavat bhramana karati ho, rajaom aura ishvarom – yuvarajom adi ke gharom mem pravesha karati ho to he aryaom! Tumhare pasa koi churna – yoga, mamtrayoga, kamanayoga, hridayoddayana, kaya ka akarshana karane vala, abhiyogika, vashikarana, kautukakarma, bhutikarma athava koi sela, kamda, chhala, bela, shilika, goli, aushadha ya bheshaja aisi haim, jo pahale jani ho\? Jisase maim phira tetaliputra ki ishta ho sakum\?’ Pottila dvara isa prakara kahane para una aryaomne apane donom kana banda kara lie. Unhomne pottila se kaha – ‘devanupriye ! Hama nirgrantha shramaniyam haim, yavat gupta brahmachariniyam haim. Ata eva aise vachana hamem kanom se shravana karana bhi nahim kalpata to isa vishaya ka upadesha dena ya acharana karana to kalpe hi kaise? Ham, devanupriye ! Hama tumhem adbhuta ya aneka prakara ke kevaliprarupita dharma ka bhalibhamti upadesha de sakati haim.’ tatpashchat pottila ne una aryaom se kaha – he aryao ! Maim apake pasa se kevaliprarupita dharma sunana chahati hum. Taba una aryaom ne pottila ko adbhuta ya aneka prakara ke dharma ka upadesha diya. Pottila dharma ka upadesha sunakara aura hridaya mem dharana karake hrishta – tushta hokara isa prakara boli – ‘aryaom ! Maim nirgranthapravachana para shraddha karati hum. Jaisa apane kaha, vaha vaisa hi hai. Ata eva maim apake pasa se pamcha anuvrata aura sata shikshavrata vale shravaka ke dharma ko amgikara karana chahati hum.’ taba aryaom ne kaha – ‘devanupriye ! Jaise sukha upaje, vaisa karo.’ Tatpashchat usa pottilane una aryaom se pamcha anuvrata, sata shikshavratavala kevaliprarupita dharma amgikara kiya. Una aryaomko vandana ki, namaskara kiya. Vandana namaskara karake unhem bida kiya. Tatpashchat pottila shramanopasika ho gai, yavat sadhu – sadhviyom ko prasuka – achitta, eshaniya – adhakarmadi doshom se rahita – kalpaniya ashana, pana, khadima, svadima tatha vastra, patra, kambala, padapromchhana, aushadha, bheshaja evam pratiharika – vapisa lauta dene ke yogya pirha, pata, shayya – upashraya aura samstaraka – bichhane ke lie ghasa adi pradana karati hui vicharane lagi.