Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004848 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१४ तेतलीपुत्र |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१४ तेतलीपुत्र |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 148 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं तेरसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, चोद्दसमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं तेयलिपुरं नाम नयरं। पमयवणे उज्जाणे। कनगरहे राया। तस्स णं कनगरहस्स पउमावई देवी। तस्स णं कनगरहस्स तेयलिपुत्ते नामं अमच्चे–साम-दंड-भेय-उवप्पयाण-नीति-सुपउत्त-नयविहण्णू विहरइ। तत्थ णं तेयलिपुरे कलादे नामं मूसियारदारए होत्था–अड्ढे जाव अपरिभूए। तस्स णं भद्दा नामं भारिया। तस्स णं कलावस्स मूसियारदारगस्स धूया भद्दाए अत्तया पोट्टिला नामं दारिया होत्था–रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा। तए णं सा पोट्टिला दारिया अन्नया कयाइ ण्हाया सव्वालंकारविभूसिया चेडिया-चक्कवाल-संपरिवुडा उप्पिं पासायवरगया आगासतलगंसि कनगतिंदूसएणं कीलमाणी-कीलमाणी विहरइ। इमं च णं तेयलिपुत्ते अमच्चे ण्हाए आसखंधवरगए महया-भड-चडगर-आसवाहणियाए निज्जायमाणे कलायस्स मूसियारदारगस्स गिहस्स अदूरसामंतेणं वीईवयइ। तए णं से तेयलिपुत्ते अमच्चे मूसियारदारगस्स गिहस्स अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे-वीईवयमाणे पोट्टिलं दारियं उप्पिं आगासतलगंसि कनग-तिंदूसएणं कीलमाणि पासइ, पासित्ता पोट्टिलाए दारियाए रूवे य जोव्वणे य लावण्णे य अज्झोववण्णे कोडुं बियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एस णं देवानुप्पिया! कस्स दारिया किं नामधेज्जा वा? तए णं कोडुंबियपुरिसा तेयलिपुत्तं एवं वयासी–एस णं सामी! कलायस्स मूसियारदारयस्स धूया भद्दाए अत्तया पोट्टिला नामं दारिया–रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठ सरीरा। तए णं से तेयलिपुत्ते आसवाहणियाओ पडिणियत्ते समाणे अब्भिंतरठाणिज्जे पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी –गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! कलायस्स मूसियारदारयस्स धूयं भद्दाए अत्तयं पोट्टिलं दारियं मम भारियत्ताए वरेह। तए णं ते अब्भिंतरठाणिज्जा पुरिसा तेयलिणा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठा करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामी! तहत्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता तेयलिस्स अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव कलायस्स मूसियार-दारयस्स गिहे तेणेव उवागया। तए णं से कलाए मूसियारदारए ते पुरिसे एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठे आसणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता सत्तट्ठ-पयाइं अनुगच्छइ, अनुगच्छित्ता आसणेण उवनिमंतेइ, उवनिमंतेत्ता आसत्थे वीसत्थे सुहासनवरगए एवं वयासी–सदिसंतु णं देवानुप्पिया! किमागमनपओयणं? तए णं ते अब्भिंतरठाणिज्जा पुरिसा कलायं मूसियारदारयं एवं वयासी–अम्हे णं देवानुप्पिया! तव धूयं भद्दाए अत्तयं पोट्टिलं दारियं तेयलिपुत्तस्स भारियत्ताए वरेमो। तं जइ णं जाणसि देवानुप्पिया! जुत्तं वा पत्तं वा सलाहणिज्जं वा सरिसो वा संजोगो वा दिज्जउ णं पोट्टिला दारिया तेयलिपुत्तस्स। तो भण देवानुप्पिया! किं दलामो सुंकं। तए णं कलाए मूसियारदारए ते अब्भिंतरठाणिज्जे पुरिसे एवं वयासी–एस चेव णं देवानुप्पिया! मम सुंके जण्णं तेयलिपुत्ते मम दारियानिमित्तेणं अणुग्गहं करेइ। ते अब्भिंतरठाणिज्जे पुरिसे विपुलेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्मानेइ, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता पडिविसज्जेइ। तए णं ते अब्भिंतरठाणिज्जा पुरिसा कलायस्स मूसियारदारयस्स गिहाओ पडिनियत्तंति, जेणेव तेयलिपुत्ते अमच्चे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तेयलिपुत्तं अमच्चं एयमट्ठं निवेइंति। तए णं कलाए मूसियारदारए अन्नया कयाइं सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्त-मुहुत्तंसि पोट्टिलं दारियं ण्हायं सव्वा-लंकारविभूसियं सीयं दुरुहेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धिं संपरिवुडे साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सव्विड्ढीए तेयलिपुरं नयरं मज्झंमज्झेणं जेणेव तेयलिस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ, पोट्टिलं दारियं तेयलिपुत्तस्स सयमेव भारियत्ताए दलयइ। तए णं तेयलिपुत्ते पोट्टिलं दारियं भारियत्ताए उवणीयं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठे पोट्टिलाए सद्धिं पट्टयं दुरुहइ, दुरुहित्ता सेयापीएहिं कलसेहिं अप्पाणं मज्जावेइ, मज्जावेत्ता अग्गिहोमं कारेइ, कारेत्ता पाणिग्गहणं करेइ, करेत्ता पोट्टिलाए भारियाए मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं विउलेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्मानेइ, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता पडिविसज्जेइ। तए णं से तेयलिपुत्ते पोट्टिलाए भारियाए अणुरत्ते अविरत्ते उरालाइं मानुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | ‘भगवन् ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने तेरहवें ज्ञात – अध्ययन का यह अर्थ कहा है, तो चौदहवें ज्ञात – अध्ययन का श्रमण भगवान महावीर ने क्या अर्थ कहा है ?’ हे जम्बू ! उस काल और उस समय में तेतलिपुर नगर था। उस से बाहर ईशान – दिशा में प्रमदवन उद्यान था। उस नगर में कनकरथ राजा था। कनकरथ राजा की पद्मावती देवी थी। कथकरथ राजा का अमात्य तेतलिपुत्र था। जो साम, दाम, भेद और दण्ड – इन चारों नीति का प्रयोग करने में निष्णात था। तेतलिपुर नगर में मूषिकारदारक कलाद था। वह धनाढ्य था और किसी से पराभूत होने वाला नहीं था। उसकी पत्नी का नाम भद्रा था। उस कलाद मूषिकारदारक की पुत्री और भद्रा की आत्मजा पोट्टिला थी। वह रूप, यौवन और लावण्य से उत्कृष्ट और शरीर से भी उत्कृष्ट थी। एक बार किसी समय पोट्टिला दारका स्नान करके और सब अलंकारों से विभूषित होकर, दासियों के समूह से परिवृत्त होकर, प्रासाद के ऊपर रही हुई अगासी की भूमि में सोने की गेंद से क्रीड़ा कर रही थी। इधर तेतलिपुत्र अमात्य स्नान करके, उत्तम अश्व के स्कंध पर आरूढ़ होकर, बहुत – से सुभटों के समूह के साथ घुड़ – सवारी के लिए नीकला। वह कलाद मूषिकदारक के घर के कुछ समीप होकर जा रहा था। उस समय तेतलिपुत्र ने मूषिकदारक के घर के कुछ पास से जाते हुए प्रासाद की ऊपर की भूमि पर अगासी में सोने की गेंद से क्रीड़ा करती पोट्टिला दारिका को देखा। देखकर पोट्टिला दारिका के रूप, यौवन और लावण्य में यावत् अतीव मोहीत होकर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे पूछा – देवानुप्रियो ! यह किसकी लड़की है ? इसका नाम क्या है ? तब कौटुम्बिक पुरुषों ने तेतलिपुत्र से कहा – ‘स्वामिन् ! यह कलाद मूषकारदारक की पुत्री, भद्रा की आत्मजा पोट्टिला नामक लड़की है। रूप, लावण्य और यौवन से उत्तम है और उत्कृष्ट शरीर वाली है।’ तत्पश्चात् तेतलिपुत्र घुड़सवारी से पीछे लौटा तो उसने अभ्यन्तर – स्थानीय पुरुषों को बुलाकर कहा – ‘देवानुप्रियो ! तुम जाओ और कलाद मूषिकारदारक की पुत्री, भद्रा की आत्मजा पोट्टिला दारिका की मेरी पत्नी के रूप में मंगनी करो। तब वे अभ्यन्तर – स्थानीय पुरुष तेतलिपुत्र के इस प्रकार कहने पर हृष्ट – तुष्ट हुए। दसों नखों को मिलाकर, दोनों हाथ जोड़कर और मस्तक पर अंजलि करके विनयपूर्वक आदेश स्वीकार किया और मूषिकार – दारक कलाद के घर आए। मूषिकारदारक कलाद ने उन पुरुषों को आते देखा तो वह हुष्ट – तुष्ट हुआ, आसन से उठ खड़ा हुआ, सात – आठ कदम आगे गया; बैठने के लिए आमन्त्रण किया। जब वे आसन पर बैठे, स्वस्थ हुए और विश्राम ले चूके तो मूषिकारदारक ने पूछा – ‘देवानुप्रियो ! आज्ञा दीजिए। आपके आने का क्या प्रयोजन है ?’ तब उन अभ्यन्तर – स्थानीय पुरुषों ने कलाद मूषिकारदारक से कहा – ‘देवानुप्रिय ! हम तुम्हारी पुत्री, पोट्टिला दारिका की तेतलिपुत्र की पत्नी के रूप में मंगनी करते हैं। देवानुप्रिय ! अगर तुम समझते हो कि यह सम्बन्ध उचित है, प्राप्त या पात्र है, प्रशंसनीय है, दोनों का संयोग सदृश है, तो तेतलिपुत्र को पोट्टिला दारिका प्रदान करो। कहो, इसके बदले क्या शुल्क दिया जाए ? तत्पश्चात् कलाद मूषिकारदारक ने उन अभ्यन्तर – स्थानीय पुरुषों से कहा – ‘देवानुप्रियो ! यही मेरे लिए शुल्क है जो तेतलिपुत्र दारिका के निमित्त से मुझ पर अनुग्रह कर रहे हैं।’ उस प्रकार कहकर उसने उनका विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम से तथा पुष्प, वस्त्र, गंध एवं माला और अलंकार से सत्कार – सम्मान करके उन्हें बिदा किया। तत्पश्चात् वे अभ्यन्तर – स्थानीय पुरुष कलाद मूषिकारदारक के घर से नीकले। तेतलिपुत्र अमात्य के पास पहुँचे। तेतलिपुत्र को यह पूर्वोक्त अर्थ निवेदन किया। तत्पश्चात् कलाद मूषिकारदारक ने अन्यदा शुभ तिथि, नक्षत्र और मुहूर्त्त में पोट्टिला दारिका को स्नान करा कर और समस्त अलंकारों से विभूषित करके शिबिका में आरूढ़ किया। वह मित्रों और ज्ञातिजनों से परिवृत्त होकर अपने घर से नीकलकर, पूरे ठाठ के साथ, तेतारपुर के बीचोंबीच होकर तेतलिपुत्र अमात्य के पास पहुँचा। पहुँच कर पोट्टिला दारिका को स्वयमेव तेतलिपुत्र की पत्नी के रूप में प्रदान किया। तत्पश्चात् तेतलिपुत्र ने पोट्टिला दारिका को भार्या के रूप में आई हुई देखी। देखकर वह पोट्टिला के साथ पट्ट पर बैठा। चाँदी – सोने के कलशों से उसने स्वयं स्नान किया। स्नान करके अग्नि में होम किया। तत्पश्चात् पोट्टिला भार्या के मित्रजनों, ज्ञातिजनों, निजजनों, स्वजनों, सम्बन्धियों एवं परिजनों का अशन, पान, खादिम, स्वादिम से तथा पुष्प, वस्त्र, गंध माला और अलंकार आदि से सत्कार – सम्मान करके उन्हें बिदा किया। तत्पश्चात् तेतलिपुत्र अमात्य पोट्टिला भार्या में अनुरक्त होकर, अविरक्त – आसक्त होकर उदार यावत् रहने लगा। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jai nam bhamte! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam terasamassa nayajjhayanassa ayamatthe pannatte, choddasamassa nam bhamte! Nayajjhayanassa ke atthe pannatte? Evam khalu jambu! Tenam kalenam tenam samaenam teyalipuram nama nayaram. Pamayavane ujjane. Kanagarahe raya. Tassa nam kanagarahassa paumavai devi. Tassa nam kanagarahassa teyaliputte namam amachche–sama-damda-bheya-uvappayana-niti-supautta-nayavihannu viharai. Tattha nam teyalipure kalade namam musiyaradarae hottha–addhe java aparibhue. Tassa nam bhadda namam bhariya. Tassa nam kalavassa musiyaradaragassa dhuya bhaddae attaya pottila namam dariya hottha–ruvena ya jovvanena ya lavannena ya ukkittha ukkitthasarira. Tae nam sa pottila dariya annaya kayai nhaya savvalamkaravibhusiya chediya-chakkavala-samparivuda uppim pasayavaragaya agasatalagamsi kanagatimdusaenam kilamani-kilamani viharai. Imam cha nam teyaliputte amachche nhae asakhamdhavaragae mahaya-bhada-chadagara-asavahaniyae nijjayamane kalayassa musiyaradaragassa gihassa adurasamamtenam viivayai. Tae nam se teyaliputte amachche musiyaradaragassa gihassa adurasamamtenam viivayamane-viivayamane pottilam dariyam uppim agasatalagamsi kanaga-timdusaenam kilamani pasai, pasitta pottilae dariyae ruve ya jovvane ya lavanne ya ajjhovavanne kodum biyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–esa nam devanuppiya! Kassa dariya kim namadhejja va? Tae nam kodumbiyapurisa teyaliputtam evam vayasi–esa nam sami! Kalayassa musiyaradarayassa dhuya bhaddae attaya pottila namam dariya–ruvena ya jovvanena ya lavannena ya ukkittha ukkittha sarira. Tae nam se teyaliputte asavahaniyao padiniyatte samane abbhimtarathanijje purise saddavei, saddavetta evam vayasi –gachchhaha nam tubbhe devanuppiya! Kalayassa musiyaradarayassa dhuyam bhaddae attayam pottilam dariyam mama bhariyattae vareha. Tae nam te abbhimtarathanijja purisa teyalina evam vutta samana hatthatuttha karayala pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu evam sami! Tahatti anae vinaenam vayanam padisunemti, padisunetta teyalissa amtiyao padinikkhamamti, padinikkhamitta jeneva kalayassa musiyara-darayassa gihe teneva uvagaya. Tae nam se kalae musiyaradarae te purise ejjamane pasai, pasitta hatthatutthe asanao abbhutthei, abbhutthetta sattattha-payaim anugachchhai, anugachchhitta asanena uvanimamtei, uvanimamtetta asatthe visatthe suhasanavaragae evam vayasi–sadisamtu nam devanuppiya! Kimagamanapaoyanam? Tae nam te abbhimtarathanijja purisa kalayam musiyaradarayam evam vayasi–amhe nam devanuppiya! Tava dhuyam bhaddae attayam pottilam dariyam teyaliputtassa bhariyattae varemo. Tam jai nam janasi devanuppiya! Juttam va pattam va salahanijjam va sariso va samjogo va dijjau nam pottila dariya teyaliputtassa. To bhana devanuppiya! Kim dalamo sumkam. Tae nam kalae musiyaradarae te abbhimtarathanijje purise evam vayasi–esa cheva nam devanuppiya! Mama sumke jannam teyaliputte mama dariyanimittenam anuggaham karei. Te abbhimtarathanijje purise vipulenam asana-pana-khaima-saimenam puppha-vattha-gamdha-mallalamkarenam sakkarei sammanei, sakkaretta sammanetta padivisajjei. Tae nam te abbhimtarathanijja purisa kalayassa musiyaradarayassa gihao padiniyattamti, jeneva teyaliputte amachche teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta teyaliputtam amachcham eyamattham niveimti. Tae nam kalae musiyaradarae annaya kayaim sohanamsi tihi-karana-nakkhatta-muhuttamsi pottilam dariyam nhayam savva-lamkaravibhusiyam siyam duruhetta mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanenam saddhim samparivude sao gihao padinikkhamai, padinikkhamitta savviddhie teyalipuram nayaram majjhammajjhenam jeneva teyalissa gihe teneva uvagachchhai, pottilam dariyam teyaliputtassa sayameva bhariyattae dalayai. Tae nam teyaliputte pottilam dariyam bhariyattae uvaniyam pasai, pasitta hatthatutthe pottilae saddhim pattayam duruhai, duruhitta seyapiehim kalasehim appanam majjavei, majjavetta aggihomam karei, karetta paniggahanam karei, karetta pottilae bhariyae mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanam viulenam asana-pana-khaima-saimenam puppha-vattha-gamdha-mallalamkarenam sakkarei sammanei, sakkaretta sammanetta padivisajjei. Tae nam se teyaliputte pottilae bhariyae anuratte aviratte uralaim manussagaim bhogabhogaim bhumjamane viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | ‘bhagavan ! Yadi shramana bhagavana mahavira ne terahavem jnyata – adhyayana ka yaha artha kaha hai, to chaudahavem jnyata – adhyayana ka shramana bhagavana mahavira ne kya artha kaha hai\?’ he jambu ! Usa kala aura usa samaya mem tetalipura nagara tha. Usa se bahara ishana – disha mem pramadavana udyana tha. Usa nagara mem kanakaratha raja tha. Kanakaratha raja ki padmavati devi thi. Kathakaratha raja ka amatya tetaliputra tha. Jo sama, dama, bheda aura danda – ina charom niti ka prayoga karane mem nishnata tha. Tetalipura nagara mem mushikaradaraka kalada tha. Vaha dhanadhya tha aura kisi se parabhuta hone vala nahim tha. Usaki patni ka nama bhadra tha. Usa kalada mushikaradaraka ki putri aura bhadra ki atmaja pottila thi. Vaha rupa, yauvana aura lavanya se utkrishta aura sharira se bhi utkrishta thi. Eka bara kisi samaya pottila daraka snana karake aura saba alamkarom se vibhushita hokara, dasiyom ke samuha se parivritta hokara, prasada ke upara rahi hui agasi ki bhumi mem sone ki gemda se krira kara rahi thi. Idhara tetaliputra amatya snana karake, uttama ashva ke skamdha para arurha hokara, bahuta – se subhatom ke samuha ke satha ghura – savari ke lie nikala. Vaha kalada mushikadaraka ke ghara ke kuchha samipa hokara ja raha tha. Usa samaya tetaliputra ne mushikadaraka ke ghara ke kuchha pasa se jate hue prasada ki upara ki bhumi para agasi mem sone ki gemda se krira karati pottila darika ko dekha. Dekhakara pottila darika ke rupa, yauvana aura lavanya mem yavat ativa mohita hokara kautumbika purushom ko bulaya aura unase puchha – devanupriyo ! Yaha kisaki laraki hai\? Isaka nama kya hai\? Taba kautumbika purushom ne tetaliputra se kaha – ‘svamin ! Yaha kalada mushakaradaraka ki putri, bhadra ki atmaja pottila namaka laraki hai. Rupa, lavanya aura yauvana se uttama hai aura utkrishta sharira vali hai.’ Tatpashchat tetaliputra ghurasavari se pichhe lauta to usane abhyantara – sthaniya purushom ko bulakara kaha – ‘devanupriyo ! Tuma jao aura kalada mushikaradaraka ki putri, bhadra ki atmaja pottila darika ki meri patni ke rupa mem mamgani karo. Taba ve abhyantara – sthaniya purusha tetaliputra ke isa prakara kahane para hrishta – tushta hue. Dasom nakhom ko milakara, donom hatha jorakara aura mastaka para amjali karake vinayapurvaka adesha svikara kiya aura mushikara – daraka kalada ke ghara ae. Mushikaradaraka kalada ne una purushom ko ate dekha to vaha hushta – tushta hua, asana se utha khara hua, sata – atha kadama age gaya; baithane ke lie amantrana kiya. Jaba ve asana para baithe, svastha hue aura vishrama le chuke to mushikaradaraka ne puchha – ‘devanupriyo ! Ajnya dijie. Apake ane ka kya prayojana hai\?’ taba una abhyantara – sthaniya purushom ne kalada mushikaradaraka se kaha – ‘devanupriya ! Hama tumhari putri, pottila darika ki tetaliputra ki patni ke rupa mem mamgani karate haim. Devanupriya ! Agara tuma samajhate ho ki yaha sambandha uchita hai, prapta ya patra hai, prashamsaniya hai, donom ka samyoga sadrisha hai, to tetaliputra ko pottila darika pradana karo. Kaho, isake badale kya shulka diya jae\? Tatpashchat kalada mushikaradaraka ne una abhyantara – sthaniya purushom se kaha – ‘devanupriyo ! Yahi mere lie shulka hai jo tetaliputra darika ke nimitta se mujha para anugraha kara rahe haim.’ usa prakara kahakara usane unaka vipula ashana, pana, khadima aura svadima se tatha pushpa, vastra, gamdha evam mala aura alamkara se satkara – sammana karake unhem bida kiya. Tatpashchat ve abhyantara – sthaniya purusha kalada mushikaradaraka ke ghara se nikale. Tetaliputra amatya ke pasa pahumche. Tetaliputra ko yaha purvokta artha nivedana kiya. Tatpashchat kalada mushikaradaraka ne anyada shubha tithi, nakshatra aura muhurtta mem pottila darika ko snana kara kara aura samasta alamkarom se vibhushita karake shibika mem arurha kiya. Vaha mitrom aura jnyatijanom se parivritta hokara apane ghara se nikalakara, pure thatha ke satha, tetarapura ke bichombicha hokara tetaliputra amatya ke pasa pahumcha. Pahumcha kara pottila darika ko svayameva tetaliputra ki patni ke rupa mem pradana kiya. Tatpashchat tetaliputra ne pottila darika ko bharya ke rupa mem ai hui dekhi. Dekhakara vaha pottila ke satha patta para baitha. Chamdi – sone ke kalashom se usane svayam snana kiya. Snana karake agni mem homa kiya. Tatpashchat pottila bharya ke mitrajanom, jnyatijanom, nijajanom, svajanom, sambandhiyom evam parijanom ka ashana, pana, khadima, svadima se tatha pushpa, vastra, gamdha mala aura alamkara adi se satkara – sammana karake unhem bida kiya. Tatpashchat tetaliputra amatya pottila bharya mem anurakta hokara, avirakta – asakta hokara udara yavat rahane laga. |