Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )

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Sr No : 1004847
Scripture Name( English ): Gyatadharmakatha Translated Scripture Name : धर्मकथांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१३ मंडुक

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१३ मंडुक

Section : Translated Section :
Sutra Number : 147 Category : Ang-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से नंदे मणियारसेट्ठी सोलसहिं रोयायंकेहिं अभिभूए समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह–एवं खलु देवानुप्पिया! नंदस्स मणियारस्स सरीरगंसि सोलस रोयायंका पाउब्भूया। [तं जहा–सासे जाव कोढे] । तं जो णं इच्छइ देवानुप्पिया! विज्जो वा विज्जपुत्तो वा जाणओ वा जाणुयपुत्तो वा कुसलो वा कुसलपुत्तो वा नंदस्स मणियारस्स तेसिं च णं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसामित्तए, तस्स णं नंदे मणियारसेट्ठी विउलं अत्थसंपयाणं दलयइ त्ति कट्टु दोच्चंपि तच्चंपि घोसणं घोसेह, घोसेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तेवि तहेव पच्चप्पिणंति। तए णं रायगिहे नगरे इमेयारूवं घोसणं सोच्चा निसम्म बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य कुसला य कुसलपुत्ता य सत्थकोसहत्थगया य सिलियाहत्थगया य गुलियाहत्थगया य ओसहभेसज्जहत्थगया य सएहिं-सएहिं गिहेहिंतो निक्खमंति, निक्खमित्ता रायगिहं मज्झंमज्झेणं जेणेव नंदस्स मणियारसेट्ठिस्स गिहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता नंदस्स मणियारसेट्ठिस्स सरीरं पासंति, पासित्ता तेसिं रोगायंकाणं नियाणं पुच्छंति, पुच्छित्ता नंदस्स मणियारसेट्ठिस्स बहूहिं उव्वलणेहिं य उव्वट्टणेहिं य सिणेहपाणेहिं य वमणेहिं य विरेयणेहिं य सेयणेहिं य अवदहणेहिं य अवण्हावणेहिं य अणुवासणाहिं य वत्थिकम्मेहिं य निरूहेहिं य सिरावेहेहिं य तच्छणाहि य पच्छणाहि य सिरावत्थीहि य तप्पणाहि य पुडवाएहि य छल्लीहि य वल्लीहि य मूलेहि य कंदेहि य पत्तेहि य पुप्फेहि य फुलेहि य बीएहि य सिलियाहि य गुलियाहि य ओसहेहि य भेसज्जेहि य इच्छंति तेसिं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसामित्तए, नो चेव णं संचाएंति उवसामेत्तए। तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य कुसला य कुसलपुत्ता य जाहे नो संचाएंति तेसिं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसामित्तए, ताहे संता तंता परितंता निव्विण्णा समाणा जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं० पडिगया। तए णं नंदे मणियारसेट्ठी तेहिं सोलसेहिं रोगायंकेहिं अभिभूए समाणे नंदाए पुक्खरिणीए मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे तिरिक्खजोणिएहिं निबद्धाउए बद्धपएसिए अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे कालमासे कालं किच्चा नंदाए पोक्खरिणीए दद्दुरीए कुच्छिंसि दद्दुरत्ताए उववन्ने। तए णं नंदे दद्दुरे गब्भाओ विनिमुक्के समाणे उम्मुक्कबालभावे विन्नय-परिणयमित्ते जोव्वण-गमणुप्पत्ते नंदाए पोक्खरिणीए अभिरममाणे-अभिरममाणे विहरइ। तए णं नंदाए पोक्खरिणीए बहुजणो ण्हायमाणो य पियमाणो य पाणियं च संवहमाणोय अन्नमन्नं एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ–धन्ने णं देवानुप्पिया! नंदे मणियारे, जस्स णं इमेयारूवा नंदा पुक्खरिणी–चाउक्कोणा जाव पडिरूवा। तए णं तस्स दद्दुरस्स तं अभिक्खणं-अभिक्खणं बहुजनस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–कहिं मन्ने मए इमेयारूवे सद्दे निसंतपुव्वे त्ति कट्टु सुभेणं परिणामेणं पसत्थेणं अज्झवसाणेणं लेसाहिं विसुज्जमाणीहिं तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूह-मग्गण-गवेसणं करेमाणस्स सण्णिपुव्वे० जाई-सरणे समुप्पन्ने, पुव्वजाइं सम्मं समागच्छइ। तए णं तस्स दद्दुरस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं इहेव रायगिहे नयरे नंदे नामं मणियारे–अड्ढे। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे। तए णं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइए सत्तसिक्खावइए–दुवालसविहे गिहिधम्मे पडिवण्णे। तए णं अहं अन्नया कयाइ असाहुदंसणेण य जाव मिच्छत्तं विप्पडिवण्णे। तए णं अहं अन्नया कयाइं गिम्हकालसमयंसि जाव पोसहं उवसंपज्जित्ता णं विहरामि। एवं जहेव चिंता। आपुच्छणा। नंदा-पुक्खरिणी। वनसंडा। सभाओ। तं चेव सव्वं जाव नंदाए दद्दुरत्ताए उववन्ने। तं अहो णं अहं अधन्ने अपुण्णे अकयपुण्णे निग्गं-थाओ पावयणाओ नट्ठे भट्ठे परिब्भट्ठे। तं सेयं खलु ममं सयमेव पुव्वपडिवण्णाइं पंचाणुव्वयाइं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता पुव्वपडिवण्णाइं पंचाणुव्वयाइं आरुहेइ, आरुहेत्ता इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ–कप्पइ मे जावज्जीवं छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणस्स विहरित्तए, छट्ठस्स वि य णं पारणगंसि कप्पइ मे नंदाए पोक्खरिणीए परिपे-रंतेसु फासुएणं ण्हाणोदएणं उम्मद्दणालोलियाहि य वित्तिं कप्पेमाणस्स विहरित्तए–इमेयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हइ, जावज्जीवाए छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा! गुणसिलए समोसढे। परिसा निग्गया। तए णं नंदाए पोक्खरिणीए बहुजणो ण्हायमाणो य पियमाणो य पाणियं च संवहमाणो य अन्नमन्नं एवमाइक्खइ–एवं खलु समणे भगवं महावीरे इहेव गुणसिलए चेइए समोसढे। तं गच्छामो णं देवानुप्पिया! समणं भगवं महावीरं वंदामो नमंसामो सक्कारेमो सम्मानेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामो। एयं णे इहभवे परभवे य हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आनुगामियत्ताए भविस्सइ। तए णं तस्स दद्दुरस्स बहुजनस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे भगवं महावीरे समोसढे। तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वंदामि–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता नंदाओ पोक्खरिणीओ सणियं-सणियं पच्चुत्तरेइ, जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ताए उक्किट्ठाए दद्दुरगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जेणेव ममं अंतिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। इमं च णं सेणिए राया भंभसारे ण्हाए जाव सव्वालंकारविभूसिए हत्थिखंधवरगए सकोरेंट-मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामरेहि य उद्धुव्वमाणेहिं महयाहय-गय-रह-भड-चडगर-कलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धिं संपरिवुडे मम पायवंदए हव्वमागच्छइ। तए णं से दद्दुरे सेणियस्स रन्नो एगेणं आसकिसोरएणं वामपाएणं अक्कंते समाणे अंतनिग्घाइए कए यावि होत्था। तए णं से दद्दुरे अथामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमित्ति कट्टु एगंतमवक्कमइ, करयलपरिग्ग-हियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी– नमोत्थु णं अरहंताणं जाव सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपत्ताणं। नमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामस्स। पुव्विंपि य णं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए, थूलए मुसावाए पच्चक्खाए, थूलए अदिन्नादाणे पच्चक्खाए, थूलए मेहुणे पच्चक्खाए, थूलए परिग्गहे पच्चक्खाए। तं इयाणिं पि तस्सेव अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि जावज्जीवं, सव्वं असन-पान-खाइम-साइमं पच्चक्खामि जावज्जीवं। जंपि य इमं सरीर इट्ठं कंतं जाव मा णं विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु एयंपि य णं चरिमेहिं ऊसासेहिं वोसिरामि त्ति कट्टु। तए णं से दद्दुरे कालमासे कालं किच्चा जाव सोहम्मे कप्पे दद्दुरवडिंसए विमाणे उववायसभाए दद्दुरदेवत्ताए उव-वण्णे। एवं खलु गोयमा! दद्दुरेणं सा दिव्वा देविड्ढी लद्धा पत्ता अभिसमन्नागया। दद्दुरस्स णं भंते! देवस्स केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। से णं दद्दुरे देवे महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणं० अंतं करेहिइ। एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं तेरसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते।
Sutra Meaning : नन्द मणिकार इन सोलह रोगांतकों से पीड़ित हुआ। तब उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा – देवानुप्रियो ! तुम जाओ और राजगृह नगर में शृंगाटक यावत्‌ छोटे – छोटे मार्गों में ऊंची आवाज से घोषणा करते हुए कहो – ‘हे देवानुप्रियो ! नन्द मणिकार श्रेष्ठी के शरीरमें सोलह रोगांतक उत्पन्न हुए हैं, यथा – श्वास से कोढ़। तो हे देवानुप्रियो ! जो कोई वैद्य या वैद्यपुत्र, जानकार या जानकार का पुत्र, कुशल या कुशल का पुत्र, नन्द मणिकार के उन सोलह रोगांतकोंमें से एक भी रोगंतक को उपशान्त करना चाहे – मिटा देगा, देवानुप्रियो ! नन्द मणिकार उसे विपुल धन – सम्पत्ति प्रदान करेगा। इस प्रकार दूसरी बार, तीसरी बार घोषणा करो। घोषणा करके मेरी यह आज्ञा वापिस लौटाओ।’ कौटुम्बिक पुरुषों ने आज्ञानुसार राजगृह की गली – गली में घोषणा करके आज्ञा वापिस सौंपी। राजगृह नगर में इस प्रकार की घोषणा सूनकर और हृदय में धारण करके वैद्य, वैद्यपुत्र, यावत्‌ कुशलपुत्र हाथ में शस्त्रकोश लेकर, शिबिका, गोलियाँ और औषध तथा भेषज हाथ में लेकर अपने – अपने घरों से नीकले। राजगृह नगर के बीचोंबीच होकर नन्द मणिकार के घर आए। उन्होंनें नन्द मणिकार के शरीर को देखा और नन्द मणिकार से रोग उत्पन्न होने का कारण पूछा। फिर उद्वलन, उद्वर्त्तन, स्नेह पान, वमन, विरेचन, स्वेदन, अवदहन, अपस्नान, अनुवासना, वस्तिकर्म से, निरूह द्वारा, शिरोवेध से, तक्षण से, प्रक्षण से, शिरावेष्ट से, तर्पण से, पुटपाक से, पत्तों से, छालों से, वेलों से, मूलों से, कंदों से, पुष्पों से, फलों से, बीजों से, शिलिका से, गोलियों से, औषधों से, भेषजों से, उन सोलह रोगांतकों में से एक – एक रोगांतक को उन्होंने शान्त करना चाहा, परन्तु वे एक भी रोगांतक को शान्त करने में समर्थ न हो सके। बहुत – से वैद्य, वैद्यपुत्र, जानकार, जानकारों के पुत्र, कुशल और जब एक भी रोग को उपशान्त करने में समर्थ न हुए तो थक गए, खिन्न हुए, यावत्‌ अपने – अपने घर लौट गए। नन्द मणिकार उस सोलह रोगांतकों से अभिभूत हुआ और नन्दा पुष्करिणी में अतीव मूर्च्छित हुआ। इस कारण उसने तिर्यंचयोनि सम्बन्धी आयु का बन्ध किया, प्रदेशों का बन्ध किया। आर्त्तध्यान के वशीभूत होकर मृत्यु के समय में काल करके उसी नन्दा पुष्करिणी में एक मेंढ़की की कूंख में मेंढ़क के रूप में उत्पन्न हुआ। तत्पश्चात्‌ नन्द मण्डूक गर्भ से बाहर नीकला, अनुक्रम से बाल्यावस्था से मुक्त हुआ। उसका ज्ञान परिणत हुआ – वह समझदार हो गया और यौवनावस्था को प्राप्त हुआ। तब नन्दा पुष्करिणी में रमण करता हुआ विचरने लगा। नन्दा पुष्करिणी में बहुत – से लोग स्नान करते हुए, पानी पीते हुए और पानी भरकर ले जाते हुए आपस में इस प्रकार कहते थे – ‘देवानुप्रिय ! नन्द मणिकार धन्य है, जिसकी यह चतुष्कोण यावत्‌ मनोहर पुष्कीरणी है, जिसके पूर्व के वनखण्ड में अनेक सैकड़ों खम्भों की बनी चित्रसभा है। यावत्‌ नन्द मणिकार का जन्म और जीवन सफल है।’ तत्पश्चात्‌ बार – बार बहुत लोगों के पास से यह बात सूनकर और मन में समझ कर उस मेंढ़क को इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ – ‘जान पड़ता है कि मैंने इस प्रकार के शब्द पहले भी सूने हैं।’ इस तरह विचार करने से, शुभ परिणाम के कारण, यावत्‌ जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न हो गया। उसे अपना पूर्वजन्म अच्छी तरह याद हो गया तत्पश्चात्‌ उस मेंढ़क को इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ – मैं इसी तरह राजगृह नगर में नन्द नामक मणिकार सेठ था – धन – धान्य आदि से समृद्ध था। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर का आगमन हुआ। तब मैंने श्रमण भगवान महावीर के निकट पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत रूप श्रावकधर्म अंगीकार किया था। कुछ समय बाद साधुओं के दर्शन न होने आदि से मैं किसी समय मिथ्यात्व को प्राप्त हो गया। तत्पश्चात्‌ एक बार किसी समय ग्रीष्मकाल के अवसर पर मैं तेले की तपस्या करके विचर रहा था। तब मुझे पुष्करिणी खुदवाने का विचार हुआ, श्रेणिक राजा से आज्ञा ली, नन्दी पुष्करिणी खुदवाई, वनखण्ड लगवाये, चार सभाएं बनवाई, यावत्‌ पुष्करिणी के प्रति आसक्ति होने के कारण मैं नन्दा पुष्करिणी में मेंढ़क पर्याय में उत्पन्न हुआ। अत एव मैं अधन्य हूँ, अपुण्य हूँ, मैंने पुण्य नहीं किया, अतः मैं निर्ग्रन्थ प्रवचन से नष्ट हुआ, भ्रष्ट हुआ और एकदम भ्रष्ट हो गया। तो अब मेरे लिए यही श्रेयस्कर है कि पहले अंगीकार किये पाँच अणुव्रतों को और सात शिक्षाव्रतों को मैं स्वयं ही पुनः अंगीकार करके रहूँ। नन्द मणिकार के जीव उस मेंढ़क ने इस प्रकार विचार करके पहले अंगीकार किये हुए पाँच अणुव्रतों और सात शिक्षाव्रतों को पुनः अंगीकार किया। इस प्रकार का अभिग्रह धारण किया – आज से जीवन – पर्यन्त मुझे बेले – बेले की तपस्या से आत्मा को भावित करते हुए विचरना कल्पता है। पारणा में भी नन्दा पुष्करिणी के पर्यन्त भागों में, प्रासुक हुए स्नान के जल से और मनुष्यों के उन्मर्दन आदि द्वारा ऊतारे मैल से अपनी आजीविका चलाना कल्पता है।’ अभिग्रह धारण करके निरन्तर बेले – बेले की तपस्या से आत्मा को भावित करता हुआ विचरने लगा। हे गौतम ! उस काल और उस समय में मैं गुणशील चैत्य में आया। वन्दन करने के लिए परीषद्‌ नीकली। उस समय नन्दा पुष्करिणी में बहुत से जन नहाते, पानी पीते और पानी ले जाते हुए आपस में इस प्रकार बातें करने लगे – श्रमण भगवान महावीर यहीं गुणशील चैत्य उद्यान में समवसृत हुए हैं। सो हे देवानुप्रिय ! हम चलें और श्रमण भगवान महावीर को वन्दना करें, यावत्‌ उपासना करें। यह हमारे लिए इहभव में और परभव में हित के लिए एवं सुख के लिए होगा, क्षमा और निःश्रेयस के लिए तथा अनुगामीपन के लिए होगा। बहुत जनों से यह वृत्तान्त सून कर और हृदय में धारण करके उस मेंढ़क को ऐसा विचार, चिन्तन, अभिलाषा एवं मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ – निश्चय ही श्रमण भगवान महावीर यहाँ पधारे हैं, तो मैं जाऊं और भगवान की वन्दना करूँ। ऐसा विचार करके वह धीरे – धीरे नन्दा पुष्करिणी से बाहर नीकला। जहाँ राजमार्ग था, वहाँ आया। उत्कृष्ट दर्दुरगति से चलता हुआ मेरे पास आने के लिए कृत – संकल्प हुआ। इधर भंभसार अपरमाना श्रेणिक राजा ने स्नान किया एवं कौतुक – मंगल – प्रायश्चित्त किया। यावत्‌ वह सब अलंकारों से विभूषित हुआ और श्रेष्ठ हाथी के स्कंध पर आरूढ़ हुआ। कोरंट वृक्ष के फूलों की माला वाले छत्र से, श्वेत चामरों से शोभित होता हुआ, अश्व, हाथी, रथ और बड़े – बड़े सुभटों के समूह रूप चतुरंगिणी सेना से परिवृत्त होकर मेरे चरणों की वन्दना करने के लिए शीघ्रतापूर्वक आ रहा था। तब वह मेंढ़क श्रेणिक राजा के एक अश्वकिशोर के बाएं पैक से कुचल गया। उसकीं आँतें बाहर नीकल गई घोड़े के पैर से कुचले जाने के बाद वह मेंढ़क शक्तिहीन, बलहीन, वीर्यहीन और पुरुषकार – पराक्रम से हीन हो गया। ‘अब इस जीवन को धारण करना शक्य नहीं है।’ ऐसा जानकर वह एक तरफ चला गया। वहाँ दोनों हाथ जोड़कर, तीन बार मस्तक पर आवर्तन करके, अंजलि करके इस प्रकार बोला – ‘अरहंत यावत्‌ निर्वाण को प्राप्त समस्त तीर्थंकर भगवंतों को नमस्कार हो। पहले भी मैंने श्रमण भगवान महावीर के समीप स्थूल प्राणाति – पात, यावत्‌ स्थूल परिग्रह का समस्त परिग्रह किया था; तो अब भी मैं उन्हीं भगवान के निकट समस्त प्राणातिपात यावत्‌ समस्त परिग्रह का प्रत्याख्यान करता हूँ; जीवन पर्यन्त के लिए सर्व अशन, पान, खादिम और स्वादिम – चारों प्रकार के आहार का प्रत्याख्यान करता हूँ। यह जो मेरा इष्ट और कान्त शरीर है, जिसके विषय में चाहा था कि इसे रोग आदि स्पर्श न करें, इसे भी अन्तिम श्वासोच्छ्‌वास तक त्यागता हूँ।’ इस प्रकार कहकर दर्दुर ने पूर्ण प्रत्याख्यान किया। तत्पश्चात्‌ वह मेंढ़क मृत्यु के समय काल करके, यावत्‌ सौधर्म कल्प में, दर्दुरावतंसक नामक विमान में, उपपातसभा में, दर्दुरदेव के रूप में उत्पन्न हुआ। हे गौतम ! दर्दुरदेव ने इस प्रकार वह दिव्य देवर्द्धि लब्ध की है, प्राप्त की है और पूर्णरूपेण प्राप्त की है। भगवन्‌ ! दर्दुर देव की उस देवलोक में कितनी स्थिति है ? गौतम ! चार पल्योपम की स्थिति कही गई है। तत्पश्चात्‌ वह दर्दुर देव आयु के क्षय से, भव के क्षय से और स्थिति के क्षय से तुरंत वहाँ से च्यवन करके महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा, बुद्ध होगा, यावत्‌ अन्त करेगा। इस प्रकार श्रमण भगवान महावीर ने तेरहवें ज्ञात – अध्ययन का यह अर्थ कहा है। जैसा मैंने सूना वैसा मैं कहता हूँ।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se namde maniyarasetthi solasahim royayamkehim abhibhue samane kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tubbhe devanuppiya! Rayagihe nayare simghadaga-tiga-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapahapahesu mahaya-mahaya saddenam ugghosemana-ugghosemana evam vayaha–evam khalu devanuppiya! Namdassa maniyarassa sariragamsi solasa royayamka paubbhuya. [tam jaha–sase java kodhe]. Tam jo nam ichchhai devanuppiya! Vijjo va vijjaputto va janao va januyaputto va kusalo va kusalaputto va namdassa maniyarassa tesim cha nam solasanham rogayamkanam egamavi rogayamkam uvasamittae, tassa nam namde maniyarasetthi viulam atthasampayanam dalayai tti kattu dochchampi tachchampi ghosanam ghoseha, ghosetta eyamanattiyam pachchappinaha. Tevi taheva pachchappinamti. Tae nam rayagihe nagare imeyaruvam ghosanam sochcha nisamma bahave vejja ya vejjaputta ya januya ya januyaputta ya kusala ya kusalaputta ya satthakosahatthagaya ya siliyahatthagaya ya guliyahatthagaya ya osahabhesajjahatthagaya ya saehim-saehim gihehimto nikkhamamti, nikkhamitta rayagiham majjhammajjhenam jeneva namdassa maniyarasetthissa gihe teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta namdassa maniyarasetthissa sariram pasamti, pasitta tesim rogayamkanam niyanam puchchhamti, puchchhitta namdassa maniyarasetthissa bahuhim uvvalanehim ya uvvattanehim ya sinehapanehim ya vamanehim ya vireyanehim ya seyanehim ya avadahanehim ya avanhavanehim ya anuvasanahim ya vatthikammehim ya niruhehim ya siravehehim ya tachchhanahi ya pachchhanahi ya siravatthihi ya tappanahi ya pudavaehi ya chhallihi ya vallihi ya mulehi ya kamdehi ya pattehi ya pupphehi ya phulehi ya biehi ya siliyahi ya guliyahi ya osahehi ya bhesajjehi ya ichchhamti tesim solasanham rogayamkanam egamavi rogayamkam uvasamittae, no cheva nam samchaemti uvasamettae. Tae nam te bahave vejja ya vejjaputta ya januya ya januyaputta ya kusala ya kusalaputta ya jahe no samchaemti tesim solasanham rogayamkanam egamavi rogayamkam uvasamittae, tahe samta tamta paritamta nivvinna samana jameva disam paubbhuya tameva disam0 padigaya. Tae nam namde maniyarasetthi tehim solasehim rogayamkehim abhibhue samane namdae pukkharinie muchchhie gadhie giddhe ajjhovavanne tirikkhajoniehim nibaddhaue baddhapaesie atta-duhatta-vasatte kalamase kalam kichcha namdae pokkharinie daddurie kuchchhimsi daddurattae uvavanne. Tae nam namde daddure gabbhao vinimukke samane ummukkabalabhave vinnaya-parinayamitte jovvana-gamanuppatte namdae pokkharinie abhiramamane-abhiramamane viharai. Tae nam namdae pokkharinie bahujano nhayamano ya piyamano ya paniyam cha samvahamanoya annamannam evamaikkhai evam bhasai evam pannavei evam paruvei–dhanne nam devanuppiya! Namde maniyare, jassa nam imeyaruva namda pukkharini–chaukkona java padiruva. Tae nam tassa daddurassa tam abhikkhanam-abhikkhanam bahujanassa amtie eyamattham sochcha nisamma imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–kahim manne mae imeyaruve sadde nisamtapuvve tti kattu subhenam parinamenam pasatthenam ajjhavasanenam lesahim visujjamanihim tayavaranijjanam kammanam khaovasamenam ihapuha-maggana-gavesanam karemanassa sannipuvve0 jai-sarane samuppanne, puvvajaim sammam samagachchhai. Tae nam tassa daddurassa imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–evam khalu aham iheva rayagihe nayare namde namam maniyare–addhe. Tenam kalenam tenam samaenam samane bhagavam mahavire samosadhe. Tae nam mae samanassa bhagavao mahavirassa amtie pamchanuvvaie sattasikkhavaie–duvalasavihe gihidhamme padivanne. Tae nam aham annaya kayai asahudamsanena ya java michchhattam vippadivanne. Tae nam aham annaya kayaim gimhakalasamayamsi java posaham uvasampajjitta nam viharami. Evam jaheva chimta. Apuchchhana. Namda-pukkharini. Vanasamda. Sabhao. Tam cheva savvam java namdae daddurattae uvavanne. Tam aho nam aham adhanne apunne akayapunne niggam-thao pavayanao natthe bhatthe paribbhatthe. Tam seyam khalu mamam sayameva puvvapadivannaim pamchanuvvayaim uvasampajjitta nam viharittae–evam sampehei, sampehetta puvvapadivannaim pamchanuvvayaim aruhei, aruhetta imeyaruvam abhiggaham abhiginhai–kappai me javajjivam chhatthamchhatthenam anikkhittenam tavokammenam appanam bhavemanassa viharittae, chhatthassa vi ya nam paranagamsi kappai me namdae pokkharinie paripe-ramtesu phasuenam nhanodaenam ummaddanaloliyahi ya vittim kappemanassa viharittae–imeyaruvam abhiggaham abhigenhai, javajjivae chhatthamchhatthenam anikkhittenam tavokammenam appanam bhavemane viharai. Tenam kalenam tenam samaenam aham goyama! Gunasilae samosadhe. Parisa niggaya. Tae nam namdae pokkharinie bahujano nhayamano ya piyamano ya paniyam cha samvahamano ya annamannam evamaikkhai–evam khalu samane bhagavam mahavire iheva gunasilae cheie samosadhe. Tam gachchhamo nam devanuppiya! Samanam bhagavam mahaviram vamdamo namamsamo sakkaremo sammanemo kallanam mamgalam devayam cheiyam pajjuvasamo. Eyam ne ihabhave parabhave ya hiyae suhae khamae nisseyasae anugamiyattae bhavissai. Tae nam tassa daddurassa bahujanassa amtie eyamattham sochcha nisamma ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–evam khalu samane bhagavam mahavire samosadhe. Tam gachchhami nam samanam bhagavam mahaviram vamdami–evam sampehei, sampehetta namdao pokkharinio saniyam-saniyam pachchuttarei, jeneva rayamagge teneva uvagachchhai, uvagachchhitta tae ukkitthae dadduragaie viivayamane-viivayamane jeneva mamam amtie teneva paharettha gamanae. Imam cha nam senie raya bhambhasare nhae java savvalamkaravibhusie hatthikhamdhavaragae sakoremta-malladamenam chhattenam dharijjamanenam seyavarachamarehi ya uddhuvvamanehim mahayahaya-gaya-raha-bhada-chadagara-kaliyae chauramginie senae saddhim samparivude mama payavamdae havvamagachchhai. Tae nam se daddure seniyassa ranno egenam asakisoraenam vamapaenam akkamte samane amtanigghaie kae yavi hottha. Tae nam se daddure athame abale avirie apurisakkaraparakkame adharanijjamitti kattu egamtamavakkamai, karayalaparigga-hiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi– Namotthu nam arahamtanam java siddhigainamadhejjam thanam sampattanam. Namotthu nam samanassa bhagavao mahavirassa java siddhigainamadhejjam thanam sampaviukamassa. Puvvimpi ya nam mae samanassa bhagavao mahavirassa amtie thulae panaivae pachchakkhae, thulae musavae pachchakkhae, thulae adinnadane pachchakkhae, thulae mehune pachchakkhae, thulae pariggahe pachchakkhae. Tam iyanim pi tasseva amtie savvam panaivayam pachchakkhami java savvam pariggaham pachchakkhami javajjivam, savvam asana-pana-khaima-saimam pachchakkhami javajjivam. Jampi ya imam sarira ittham kamtam java ma nam viviha rogayamka parisahovasagga phusamtu eyampi ya nam charimehim usasehim vosirami tti kattu. Tae nam se daddure kalamase kalam kichcha java sohamme kappe dadduravadimsae vimane uvavayasabhae dadduradevattae uva-vanne. Evam khalu goyama! Daddurenam sa divva deviddhi laddha patta abhisamannagaya. Daddurassa nam bhamte! Devassa kevaiyam kalam thii pannatta? Goyama! Chattari paliovamaim thii pannatta. Se nam daddure deve mahavidehe vase sijjhihii bujjhihii muchchihii parinivvahii savvadukkhanam0 amtam karehii. Evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam terasamassa nayajjhayanassa ayamatthe pannatte.
Sutra Meaning Transliteration : Nanda manikara ina solaha rogamtakom se pirita hua. Taba usane kautumbika purushom ko bulaya aura kaha – devanupriyo ! Tuma jao aura rajagriha nagara mem shrimgataka yavat chhote – chhote margom mem umchi avaja se ghoshana karate hue kaho – ‘he devanupriyo ! Nanda manikara shreshthi ke shariramem solaha rogamtaka utpanna hue haim, yatha – shvasa se korha. To he devanupriyo ! Jo koi vaidya ya vaidyaputra, janakara ya janakara ka putra, kushala ya kushala ka putra, nanda manikara ke una solaha rogamtakommem se eka bhi rogamtaka ko upashanta karana chahe – mita dega, devanupriyo ! Nanda manikara use vipula dhana – sampatti pradana karega. Isa prakara dusari bara, tisari bara ghoshana karo. Ghoshana karake meri yaha ajnya vapisa lautao.’ kautumbika purushom ne ajnyanusara rajagriha ki gali – gali mem ghoshana karake ajnya vapisa saumpi. Rajagriha nagara mem isa prakara ki ghoshana sunakara aura hridaya mem dharana karake vaidya, vaidyaputra, yavat kushalaputra hatha mem shastrakosha lekara, shibika, goliyam aura aushadha tatha bheshaja hatha mem lekara apane – apane gharom se nikale. Rajagriha nagara ke bichombicha hokara nanda manikara ke ghara ae. Unhomnem nanda manikara ke sharira ko dekha aura nanda manikara se roga utpanna hone ka karana puchha. Phira udvalana, udvarttana, sneha pana, vamana, virechana, svedana, avadahana, apasnana, anuvasana, vastikarma se, niruha dvara, shirovedha se, takshana se, prakshana se, shiraveshta se, tarpana se, putapaka se, pattom se, chhalom se, velom se, mulom se, kamdom se, pushpom se, phalom se, bijom se, shilika se, goliyom se, aushadhom se, bheshajom se, una solaha rogamtakom mem se eka – eka rogamtaka ko unhomne shanta karana chaha, parantu ve eka bhi rogamtaka ko shanta karane mem samartha na ho sake. Bahuta – se vaidya, vaidyaputra, janakara, janakarom ke putra, kushala aura jaba eka bhi roga ko upashanta karane mem samartha na hue to thaka gae, khinna hue, yavat apane – apane ghara lauta gae. Nanda manikara usa solaha rogamtakom se abhibhuta hua aura nanda pushkarini mem ativa murchchhita hua. Isa karana usane tiryamchayoni sambandhi ayu ka bandha kiya, pradeshom ka bandha kiya. Arttadhyana ke vashibhuta hokara mrityu ke samaya mem kala karake usi nanda pushkarini mem eka memrhaki ki kumkha mem memrhaka ke rupa mem utpanna hua. Tatpashchat nanda manduka garbha se bahara nikala, anukrama se balyavastha se mukta hua. Usaka jnyana parinata hua – vaha samajhadara ho gaya aura yauvanavastha ko prapta hua. Taba nanda pushkarini mem ramana karata hua vicharane laga. Nanda pushkarini mem bahuta – se loga snana karate hue, pani pite hue aura pani bharakara le jate hue apasa mem isa prakara kahate the – ‘devanupriya ! Nanda manikara dhanya hai, jisaki yaha chatushkona yavat manohara pushkirani hai, jisake purva ke vanakhanda mem aneka saikarom khambhom ki bani chitrasabha hai. Yavat nanda manikara ka janma aura jivana saphala hai.’ tatpashchat bara – bara bahuta logom ke pasa se yaha bata sunakara aura mana mem samajha kara usa memrhaka ko isa prakara ka vichara utpanna hua – ‘jana parata hai ki maimne isa prakara ke shabda pahale bhi sune haim.’ isa taraha vichara karane se, shubha parinama ke karana, yavat jatismaranajnyana utpanna ho gaya. Use apana purvajanma achchhi taraha yada ho gaya Tatpashchat usa memrhaka ko isa prakara ka vichara utpanna hua – maim isi taraha rajagriha nagara mem nanda namaka manikara setha tha – dhana – dhanya adi se samriddha tha. Usa kala aura usa samaya mem shramana bhagavana mahavira ka agamana hua. Taba maimne shramana bhagavana mahavira ke nikata pamcha anuvrata aura sata shikshavrata rupa shravakadharma amgikara kiya tha. Kuchha samaya bada sadhuom ke darshana na hone adi se maim kisi samaya mithyatva ko prapta ho gaya. Tatpashchat eka bara kisi samaya grishmakala ke avasara para maim tele ki tapasya karake vichara raha tha. Taba mujhe pushkarini khudavane ka vichara hua, shrenika raja se ajnya li, nandi pushkarini khudavai, vanakhanda lagavaye, chara sabhaem banavai, yavat pushkarini ke prati asakti hone ke karana maim nanda pushkarini mem memrhaka paryaya mem utpanna hua. Ata eva maim adhanya hum, apunya hum, maimne punya nahim kiya, atah maim nirgrantha pravachana se nashta hua, bhrashta hua aura ekadama bhrashta ho gaya. To aba mere lie yahi shreyaskara hai ki pahale amgikara kiye pamcha anuvratom ko aura sata shikshavratom ko maim svayam hi punah amgikara karake rahum. Nanda manikara ke jiva usa memrhaka ne isa prakara vichara karake pahale amgikara kiye hue pamcha anuvratom aura sata shikshavratom ko punah amgikara kiya. Isa prakara ka abhigraha dharana kiya – aja se jivana – paryanta mujhe bele – bele ki tapasya se atma ko bhavita karate hue vicharana kalpata hai. Parana mem bhi nanda pushkarini ke paryanta bhagom mem, prasuka hue snana ke jala se aura manushyom ke unmardana adi dvara utare maila se apani ajivika chalana kalpata hai.’ abhigraha dharana karake nirantara bele – bele ki tapasya se atma ko bhavita karata hua vicharane laga. He gautama ! Usa kala aura usa samaya mem maim gunashila chaitya mem aya. Vandana karane ke lie parishad nikali. Usa samaya nanda pushkarini mem bahuta se jana nahate, pani pite aura pani le jate hue apasa mem isa prakara batem karane lage – shramana bhagavana mahavira yahim gunashila chaitya udyana mem samavasrita hue haim. So he devanupriya ! Hama chalem aura shramana bhagavana mahavira ko vandana karem, yavat upasana karem. Yaha hamare lie ihabhava mem aura parabhava mem hita ke lie evam sukha ke lie hoga, kshama aura nihshreyasa ke lie tatha anugamipana ke lie hoga. Bahuta janom se yaha vrittanta suna kara aura hridaya mem dharana karake usa memrhaka ko aisa vichara, chintana, abhilasha evam manogata samkalpa utpanna hua – nishchaya hi shramana bhagavana mahavira yaham padhare haim, to maim jaum aura bhagavana ki vandana karum. Aisa vichara karake vaha dhire – dhire nanda pushkarini se bahara nikala. Jaham rajamarga tha, vaham aya. Utkrishta darduragati se chalata hua mere pasa ane ke lie krita – samkalpa hua. Idhara bhambhasara aparamana shrenika raja ne snana kiya evam kautuka – mamgala – prayashchitta kiya. Yavat vaha saba alamkarom se vibhushita hua aura shreshtha hathi ke skamdha para arurha hua. Koramta vriksha ke phulom ki mala vale chhatra se, shveta chamarom se shobhita hota hua, ashva, hathi, ratha aura bare – bare subhatom ke samuha rupa chaturamgini sena se parivritta hokara mere charanom ki vandana karane ke lie shighratapurvaka a raha tha. Taba vaha memrhaka shrenika raja ke eka ashvakishora ke baem paika se kuchala gaya. Usakim amtem bahara nikala gai Ghore ke paira se kuchale jane ke bada vaha memrhaka shaktihina, balahina, viryahina aura purushakara – parakrama se hina ho gaya. ‘aba isa jivana ko dharana karana shakya nahim hai.’ aisa janakara vaha eka tarapha chala gaya. Vaham donom hatha jorakara, tina bara mastaka para avartana karake, amjali karake isa prakara bola – ‘arahamta yavat nirvana ko prapta samasta tirthamkara bhagavamtom ko namaskara ho. Pahale bhi maimne shramana bhagavana mahavira ke samipa sthula pranati – pata, yavat sthula parigraha ka samasta parigraha kiya tha; to aba bhi maim unhim bhagavana ke nikata samasta pranatipata yavat samasta parigraha ka pratyakhyana karata hum; jivana paryanta ke lie sarva ashana, pana, khadima aura svadima – charom prakara ke ahara ka pratyakhyana karata hum. Yaha jo mera ishta aura kanta sharira hai, jisake vishaya mem chaha tha ki ise roga adi sparsha na karem, ise bhi antima shvasochchhvasa taka tyagata hum.’ isa prakara kahakara dardura ne purna pratyakhyana kiya. Tatpashchat vaha memrhaka mrityu ke samaya kala karake, yavat saudharma kalpa mem, darduravatamsaka namaka vimana mem, upapatasabha mem, darduradeva ke rupa mem utpanna hua. He gautama ! Darduradeva ne isa prakara vaha divya devarddhi labdha ki hai, prapta ki hai aura purnarupena prapta ki hai. Bhagavan ! Dardura deva ki usa devaloka mem kitani sthiti hai\? Gautama ! Chara palyopama ki sthiti kahi gai hai. Tatpashchat vaha dardura deva ayu ke kshaya se, bhava ke kshaya se aura sthiti ke kshaya se turamta vaham se chyavana karake mahavideha kshetra mem siddha hoga, buddha hoga, yavat anta karega. Isa prakara shramana bhagavana mahavira ne terahavem jnyata – adhyayana ka yaha artha kaha hai. Jaisa maimne suna vaisa maim kahata hum.