Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004757 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ अंड |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ अंड |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 57 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तत्थ णं चंपाए नयरीए देवदत्ता नामं गणिया परिवसइ–अड्ढा दित्ता वित्ता वित्थिण्ण-विउल-भवन-सयनासन-जाण-वाहणा बहुधन-जायरूव-रयया आओग-पओग-संपउत्ता विच्छिड्डिय-पउर-भत्तपाणा चउसट्ठिकलापंडिया चउसट्ठिगणियागुणोववेया अउणत्तीसं विसेसे रममाणी एक्कवीस-रइगुणप्पहाणा बत्तीसपुरिसोवयारकुसला नवंगसुत्तपडिबोहिया अट्ठारसदेसीभासाविसारया सिंगारागारचारुवेसा संगय-गय- हसिय-भणिय- चेट्ठिय-विलाससंलावुल्लाव- निउण-जुत्तोवयार-कुसला ऊसियज्झया सहस्सलंभा विदिण्णछत्त-चामर-बालवीयणिया कण्णीरहप्पयाया वि होत्था। बहूणं गणियासहस्साणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं आणा-ईसर-सेनावच्चं कारेमाणी पालेमाणी महयाऽहय-नट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-धन-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं विउलाइं भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरइ। तए णं तेसिं सत्थवाहदारगाणं अन्नया कयाइ पुव्वावरण्हकालसमयंसि जिमियभुत्तुत्तरागयाणं समाणाणं आयंताणं चोक्खाणं परमसुइभूयाणं सुहासणवरगयाणं इमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था–सेयं खलु अम्हं देवानुप्पिया! कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते विपुलं असनं पानं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता तं विपुलं असनं पानं खाइमं साइमं धूव-पुप्फ-गंध-वत्थ-मल्लालंकारं गहाय देवदत्ताए गणियाए सद्धिं सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स उज्जाणसिरिं पच्चणुब्भवमाणाणं विहरित्तए त्ति कट्टु अन्नमन्नस्स एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते कोडुंबियपुरिसे सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं देवानुप्पिया! विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडेह, उवक्खडेत्ता तं विपुलं असन-पान-खाइम-साइम धूव-पुप्फ-गंध-वत्थ-मल्लालंकारं गहाय जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे जेणेव नंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता नंदाए पोक्खरिणीए अदूरसामंते थूणामंडवं आहणह–आसियसम्मज्जिओवलित्तं पंचवण्ण-सरससुरभि-मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-डज्झंत-सुरभि-मघमघेंत-गंधुद्धुयाभिरामं सुगंधवर-गंधगंधिय गंधवट्टिभूयं करेह, करेत्ता अम्हे पडिवालेमाणा-पडिवालेमाणा चिट्ठह जाव चिट्ठंति। तए णं ते सत्थवाहदारगा दोच्चंपि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! लहुकरण-जुत्त-जोइयं समखुर-वालिहाण- समलिहिय-तिक्खग्गसिंगएहिं रयया-मय-घंट-सुत्तरज्जु-पवरकंचण-खचिय-नत्थपग्गहोग्ग-हियएहिं नीलुप्पलकयामेलएहिं पवर-गोण-जुवाणएहिं नाना-मणि-रयण-कंचण-घंटियाजालपरिक्खित्तं पवरलक्खणोववेयं जुत्तामेव पवहणं उवणेह। ते वि तहेव उवणेंति। तए णं ते सत्थवाहदारगा ण्हाया कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता अप्पमहग्घा-भरणालंकिय सरीरा पवहणं दुरुहंति, दुरुहित्ता जेणेव देवदत्ताए गणियाए गिहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पवहणाओ पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता देवदत्ताए गणियाए गिहं अनुप्पविसंति। तए णं सा देवदत्ता गणिया ते सत्थवाहदारए एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठा आसनाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता सत्तट्ठपयाइं अनुगच्छइ, अनुगच्छित्ता ते सत्थवाहदारए एवं वयासी–संदिसंतु णं देवानुप्पिया! किमिहागमणप्पओयणं? तए णं ते सत्थवाहदारगा देवदत्तं गणियं एवं वयासी–इच्छामो णं देवानुप्पिए! तुमे सद्धिं सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स उज्जाणसिरिं पच्चणुब्भवमाणा विहरित्तए। तए णं सा देवदत्ता तेसिं सत्थवाहदारगाणं एयमट्ठं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता ण्हाया कयबलिकम्मा जाव सिरीसमाणवेसा जेणेव सत्थवाहदारगा तेणेव उवागया। तए णं ते सत्थवाहदारगा देवत्ताए गणियाए सद्धिं जाणं दुरुहंति, दुरुहित्ता चंपाए नयरीए मज्झंमज्झेणं जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे जेणेव नंदा पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पवहणाओ पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता नंदं पोक्खरिणिं ओगाहेंति, ओगाहेत्ता जलमज्जणं करेंति, करेत्ता जलकिड्डं करेंति, करेत्ता ण्हाया देवदत्ताए सद्धिं नंदाओ पोक्खरिणीओ पच्चुत्तरंति, जेणेव थूणामंडवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता थूणामंडवं अनुप्पविसंति, अनुप्पविसित्ता सव्वालंकार-भूसिया आसत्था वीसत्था सुहासणवरगया देवदत्ताए सद्धिं तं विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं धूव-पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं आसाएमाणा विसाएमाणा परिभाएमाणा परिभुंजेमाणा एवं च णं विहरंति। जिमियभुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा आयंता चोक्खा परमसुइभूया, देवदत्ताए सद्धिं विपुलाइं कामभोगाइं भुंजमाणा विहरंति। | ||
Sutra Meaning : | उस चम्पा नगरी में देवदत्ता नामक गणिका निवास करती थी। वह समृद्ध थी, वह बहुत भोजन – पान वाली थी। चौंसठ कलाओं में पंडिता थीं। गणिका के चौंसठ गुणों से युक्त थीं। उनतीस प्रकार की विशेष क्रिडाएं करने वाली थी। कामक्रीड़ा के इक्कीस गुणों में कुशल थी। बत्तीस प्रकार के पुरुष के उपचार करने में कुशल थी। उसके सोते हुए नौ अंग जागृत हो चूके थे। अठारह प्रकार की देशी भाषाओं में निपुण थी। वह ऐसा सुन्दर वेष धारण करती थी, मानो शृंगाररस का स्थान हो। सुन्दर गति, उपहास, वचन, चेष्टा, विलास एवं ललिच संलाप करने में कुशल थी। योग्य उपचार करने में चतुर थी। उसके घर पर ध्वजा फहराती थी। एक हजार देने वाले को प्राप्त होती थी। राजा के द्वारा उसे छत्र, चामर और बाल व्यजन प्रदान किया गया था। वह कर्णीरथ नामक वाहन पर आरूढ़ होकर – आती जाती थी, यावत् एक हजार गणिकाओं का आधिपत्य करती हुई रहती थी। वे सार्थवाहपुत्र किसी समय मध्याह्नकाल में भोजन करने के अनन्तर, आचमन करके, हाथ – पैर धोकर स्वच्छ होकर, परम पवित्र होकर सुखद आसनों पर बैठे। उस समय उन दोनों में आपस में इस प्रकार की बात – चीत हुई – ‘हे देवानुप्रिय ! अपने लिए यह अच्छा होगा की कल यावत् सूर्य के देदीप्यमान होने पर विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तथा धूप, पुष्प, गंध और वस्त्र साथ में लेकर देवदत्ता गणिका के साथ सुभूमिभाग नामक उद्यान में उद्यान की शोभा का अनुभव करते हुए विचरें।’ इस प्रकार कहकर दोनों ने एक दूसरे की बात स्वीकार की। दूसरे दिन सूर्योदय होने पर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार कहा – ‘देवानुप्रियो ! तुम जाओ और विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तैयार करो। तैयार करके उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम को तथा धूप, पुष्प आदि को लेकर जहाँ सुभूमिभाग नामक उद्यान है और जहाँ नन्दा पुष्करिणी है, वहाँ जाओ। नन्दा पुष्करिणी के समीप स्थूणामंडप तैयार करो। जल सींचकर, झाड़ – बुहार कर, लीप कर यावत् बनाओ। यह सब करके हमारी बाट – राह देखना।’ यह सूनकर कौटुम्बिक पुरुष आदेशानुसार कार्य करके यावत् उनकी बाट देखने लगे। तत्पश्चात् सार्थवाहपुत्रों ने दूसरी बार कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और बुलाकर कहा – ‘शीघ्र ही एक समान खुर और पूँछ वाले, एक से चित्रित तीखे सींगों के अग्रभाग वाले, चाँदी की घंटियों वाले, स्वर्णजटित सूत की डोर की नाथ से बंधे हुए तथा नीलकमल की कलंगी से युक्त श्रेष्ठ जवान बैल जिसमें जुते हों, नाना प्रकार की मणियों की, रत्नों की और स्वर्ण की घंटियों के समूह से युक्त तथा श्रेष्ठ लक्षणों वाला रथ ले आओ।’ वे कौटुम्बिक पुरुष आदेशानुसार रथ उपस्थित करते हैं। तत्पश्चात् उन सार्थवाहपुत्रों ने स्नान किया, यावत् वे रथ पर आरूढ़ हुए। देवदत्ता गणिका के घर आए। वाहन से नीचे ऊतरे और देवदत्ता गणिका के घर में प्रविष्ट हुए। उस समय देवदत्ता गणिका ने सार्थवाहपुत्रं को आता देखा। वह हृष्ट – तुष्ट होकर आसन से उठी और सात – आठ कदम सामने गई। उसने सार्थवाहपुत्रों से कहा – देवानुप्रिय ! आज्ञा दीजिए, आपके यहाँ आने का क्या प्रयोजन है ? तत्पश्चात् सार्थवाहपुत्रों ने देवदत्ता गणिका से कहा – ‘देवानुप्रिय ! हम तुम्हारे साथ सुभूमिभाग नामक उद्यान की श्री का अनुभव करते हुए विचरना चाहते हैं।’ गणिका देवदत्ता ने उस सार्थवाहपुत्रों का यह कथन स्वीकार किया। स्नान किया, मंगलकृत्य किया यावत् लक्ष्मी के समान श्रेष्ठ वेष धारण किया। जहाँ सार्थवाह – पुत्र थे वहाँ आ गई। वे सार्थवाहपुत्र देवदत्ता गणिका के साथ यान पर आरूढ़ हुए और जहाँ सुभूमिभाग उद्यान था और जहाँ नन्दा पुष्करिणी थी, वहाँ पहुँचे। यान से नीचे उतरे। नंदा पुष्करिणी में अवगाहन किया। जल – मज्जन किया, जल – क्रीड़ा की, स्नान किया और फिर देवदत्ता के साथ बाहर नीकले। जहाँ स्थूणामंडप था वहाँ आए। स्थूणामंडप में प्रवेश किया। सब अलंकारों से विभूषित हुए, आश्वस्त हुए, विश्वस्त हुए श्रेष्ठ आसन पर बैठे। देवदत्ता गणिका के साथ उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तथा धूप, पुष्प, गंध और वस्त्र का उपभोग करते हुए, विशेषरूप से आस्वादन करते हुए, विभाग करते हुए एवं भोग भोगते हुए विचरने लगे। भोजन के पश्चात् देवदत्ता के साथ मनुष्य सम्बन्धी विपुल कामभोग भोगते हुए विचरने लगे। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tattha nam champae nayarie devadatta namam ganiya parivasai–addha ditta vitta vitthinna-viula-bhavana-sayanasana-jana-vahana bahudhana-jayaruva-rayaya aoga-paoga-sampautta vichchhiddiya-paura-bhattapana chausatthikalapamdiya chausatthiganiyagunovaveya aunattisam visese ramamani ekkavisa-raigunappahana battisapurisovayarakusala navamgasuttapadibohiya attharasadesibhasavisaraya simgaragaracharuvesa samgaya-gaya- hasiya-bhaniya- chetthiya-vilasasamlavullava- niuna-juttovayara-kusala usiyajjhaya sahassalambha vidinnachhatta-chamara-balaviyaniya kannirahappayaya vi hottha. Bahunam ganiyasahassanam ahevachcham porevachcham samittam bhattittam mahattaragatam ana-isara-senavachcham karemani palemani mahayahaya-natta-giya-vaiya-tamti-tala-tala-tudiya-dhana-muimga-paduppavaiyaravenam viulaim bhogabhogaim bhumjamani viharai. Tae nam tesim satthavahadaraganam annaya kayai puvvavaranhakalasamayamsi jimiyabhuttuttaragayanam samananam ayamtanam chokkhanam paramasuibhuyanam suhasanavaragayanam imeyaruve mihokahasamullave samuppajjittha–seyam khalu amham devanuppiya! Kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte vipulam asanam panam khaimam saimam uvakkhadavetta tam vipulam asanam panam khaimam saimam dhuva-puppha-gamdha-vattha-mallalamkaram gahaya devadattae ganiyae saddhim subhumibhagassa ujjanassa ujjanasirim pachchanubbhavamananam viharittae tti kattu annamannassa eyamattham padisunemti, padisunetta kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte kodumbiyapurise saddavemti, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam devanuppiya! Vipulam asana-pana-khaima-saimam uvakkhadeha, uvakkhadetta tam vipulam asana-pana-khaima-saima dhuva-puppha-gamdha-vattha-mallalamkaram gahaya jeneva subhumibhage ujjane jeneva namda pukkharini teneva uvagachchhai, uvagachchhitta namdae pokkharinie adurasamamte thunamamdavam ahanaha–asiyasammajjiovalittam pamchavanna-sarasasurabhi-mukkapupphapumjovayarakaliyam kalagaru-pavarakumdurukka-turukka-dhuva-dajjhamta-surabhi-maghamaghemta-gamdhuddhuyabhiramam sugamdhavara-gamdhagamdhiya gamdhavattibhuyam kareha, karetta amhe padivalemana-padivalemana chitthaha java chitthamti. Tae nam te satthavahadaraga dochchampi kodumbiyapurise saddavemti, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Lahukarana-jutta-joiyam samakhura-valihana- samalihiya-tikkhaggasimgaehim rayaya-maya-ghamta-suttarajju-pavarakamchana-khachiya-natthapaggahogga-hiyaehim niluppalakayamelaehim pavara-gona-juvanaehim nana-mani-rayana-kamchana-ghamtiyajalaparikkhittam pavaralakkhanovaveyam juttameva pavahanam uvaneha. Te vi taheva uvanemti. Tae nam te satthavahadaraga nhaya kayabalikamma kaya-kouya-mamgala-payachchhitta appamahaggha-bharanalamkiya sarira pavahanam duruhamti, duruhitta jeneva devadattae ganiyae gihe teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta pavahanao pachchoruhamti, pachchoruhitta devadattae ganiyae giham anuppavisamti. Tae nam sa devadatta ganiya te satthavahadarae ejjamane pasai, pasitta hatthatuttha asanao abbhutthei, abbhutthetta sattatthapayaim anugachchhai, anugachchhitta te satthavahadarae evam vayasi–samdisamtu nam devanuppiya! Kimihagamanappaoyanam? Tae nam te satthavahadaraga devadattam ganiyam evam vayasi–ichchhamo nam devanuppie! Tume saddhim subhumibhagassa ujjanassa ujjanasirim pachchanubbhavamana viharittae. Tae nam sa devadatta tesim satthavahadaraganam eyamattham padisunei, padisunetta nhaya kayabalikamma java sirisamanavesa jeneva satthavahadaraga teneva uvagaya. Tae nam te satthavahadaraga devattae ganiyae saddhim janam duruhamti, duruhitta champae nayarie majjhammajjhenam jeneva subhumibhage ujjane jeneva namda pokkharini teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta pavahanao pachchoruhamti, pachchoruhitta namdam pokkharinim ogahemti, ogahetta jalamajjanam karemti, karetta jalakiddam karemti, karetta nhaya devadattae saddhim namdao pokkharinio pachchuttaramti, jeneva thunamamdave teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta thunamamdavam anuppavisamti, anuppavisitta savvalamkara-bhusiya asattha visattha suhasanavaragaya devadattae saddhim tam vipulam asana-pana-khaima-saimam dhuva-puppha-vattha-gamdha-mallalamkaram asaemana visaemana paribhaemana paribhumjemana evam cha nam viharamti. Jimiyabhuttuttaragaya vi ya nam samana ayamta chokkha paramasuibhuya, devadattae saddhim vipulaim kamabhogaim bhumjamana viharamti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa champa nagari mem devadatta namaka ganika nivasa karati thi. Vaha samriddha thi, vaha bahuta bhojana – pana vali thi. Chaumsatha kalaom mem pamdita thim. Ganika ke chaumsatha gunom se yukta thim. Unatisa prakara ki vishesha kridaem karane vali thi. Kamakrira ke ikkisa gunom mem kushala thi. Battisa prakara ke purusha ke upachara karane mem kushala thi. Usake sote hue nau amga jagrita ho chuke the. Atharaha prakara ki deshi bhashaom mem nipuna thi. Vaha aisa sundara vesha dharana karati thi, mano shrimgararasa ka sthana ho. Sundara gati, upahasa, vachana, cheshta, vilasa evam lalicha samlapa karane mem kushala thi. Yogya upachara karane mem chatura thi. Usake ghara para dhvaja phaharati thi. Eka hajara dene vale ko prapta hoti thi. Raja ke dvara use chhatra, chamara aura bala vyajana pradana kiya gaya tha. Vaha karniratha namaka vahana para arurha hokara – ati jati thi, yavat eka hajara ganikaom ka adhipatya karati hui rahati thi. Ve sarthavahaputra kisi samaya madhyahnakala mem bhojana karane ke anantara, achamana karake, hatha – paira dhokara svachchha hokara, parama pavitra hokara sukhada asanom para baithe. Usa samaya una donom mem apasa mem isa prakara ki bata – chita hui – ‘he devanupriya ! Apane lie yaha achchha hoga ki kala yavat surya ke dedipyamana hone para vipula ashana, pana, khadima aura svadima tatha dhupa, pushpa, gamdha aura vastra satha mem lekara devadatta ganika ke satha subhumibhaga namaka udyana mem udyana ki shobha ka anubhava karate hue vicharem.’ isa prakara kahakara donom ne eka dusare ki bata svikara ki. Dusare dina suryodaya hone para kautumbika purushom ko bulakara isa prakara kaha – ‘Devanupriyo ! Tuma jao aura vipula ashana, pana, khadima aura svadima taiyara karo. Taiyara karake usa vipula ashana, pana, khadima aura svadima ko tatha dhupa, pushpa adi ko lekara jaham subhumibhaga namaka udyana hai aura jaham nanda pushkarini hai, vaham jao. Nanda pushkarini ke samipa sthunamamdapa taiyara karo. Jala simchakara, jhara – buhara kara, lipa kara yavat banao. Yaha saba karake hamari bata – raha dekhana.’ yaha sunakara kautumbika purusha adeshanusara karya karake yavat unaki bata dekhane lage. Tatpashchat sarthavahaputrom ne dusari bara kautumbika purushom ko bulaya aura bulakara kaha – ‘shighra hi eka samana khura aura pumchha vale, eka se chitrita tikhe simgom ke agrabhaga vale, chamdi ki ghamtiyom vale, svarnajatita suta ki dora ki natha se bamdhe hue tatha nilakamala ki kalamgi se yukta shreshtha javana baila jisamem jute hom, nana prakara ki maniyom ki, ratnom ki aura svarna ki ghamtiyom ke samuha se yukta tatha shreshtha lakshanom vala ratha le ao.’ ve kautumbika purusha adeshanusara ratha upasthita karate haim. Tatpashchat una sarthavahaputrom ne snana kiya, yavat ve ratha para arurha hue. Devadatta ganika ke ghara ae. Vahana se niche utare aura devadatta ganika ke ghara mem pravishta hue. Usa samaya devadatta ganika ne sarthavahaputram ko ata dekha. Vaha hrishta – tushta hokara asana se uthi aura sata – atha kadama samane gai. Usane sarthavahaputrom se kaha – devanupriya ! Ajnya dijie, apake yaham ane ka kya prayojana hai\? Tatpashchat sarthavahaputrom ne devadatta ganika se kaha – ‘devanupriya ! Hama tumhare satha subhumibhaga namaka udyana ki shri ka anubhava karate hue vicharana chahate haim.’ ganika devadatta ne usa sarthavahaputrom ka yaha kathana svikara kiya. Snana kiya, mamgalakritya kiya yavat lakshmi ke samana shreshtha vesha dharana kiya. Jaham sarthavaha – putra the vaham a gai. Ve sarthavahaputra devadatta ganika ke satha yana para arurha hue aura jaham subhumibhaga udyana tha aura jaham nanda pushkarini thi, vaham pahumche. Yana se niche utare. Namda pushkarini mem avagahana kiya. Jala – majjana kiya, jala – krira ki, snana kiya aura phira devadatta ke satha bahara nikale. Jaham sthunamamdapa tha vaham ae. Sthunamamdapa mem pravesha kiya. Saba alamkarom se vibhushita hue, ashvasta hue, vishvasta hue shreshtha asana para baithe. Devadatta ganika ke satha usa vipula ashana, pana, khadima aura svadima tatha dhupa, pushpa, gamdha aura vastra ka upabhoga karate hue, vishesharupa se asvadana karate hue, vibhaga karate hue evam bhoga bhogate hue vicharane lage. Bhojana ke pashchat devadatta ke satha manushya sambandhi vipula kamabhoga bhogate hue vicharane lage. |