Sutra Navigation: Sutrakrutang ( सूत्रकृतांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1001677 | ||
Scripture Name( English ): | Sutrakrutang | Translated Scripture Name : | सूत्रकृतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-३ आहार परिज्ञा |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-३ आहार परिज्ञा |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 677 | Category : | Ang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] अहावरं पुरक्खायं–इहेगइया सत्ता रुक्खजोणिया रुक्खसंभवा रुक्खवक्कमा, तज्जोणिया तस्संभवा तव्वक्कमा, कम्मो-वगा कम्मणियाणेणं तत्थवक्कमा रुक्खजोणिएसु रुक्खेसु रुक्खत्ताए विउट्टंति। ते जीवा तेसिं रुक्खजोणियाणं रुक्खाणं सिणेहमाहारेंति–ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं आउसरीरं तेउसरीरं वाउसरीरं वणस्स-इसरीरं [तसपाणसरीरं?] । नानाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरं अचित्तं कुव्वंति। परिविद्धत्थं तं सरीरं पुव्वाहारियं तयाहारियं सारूविकडं संतं [सव्वप्पणत्ताए आहारेंति?]। अवरे वि य णं तेसिं रुक्खजोणियाणं रुक्खाणं सरीरा नानावण्णा नानागंधा नानारसा नानाफासा नानासंठाणसंठिया नानाविहसरीरपोग्गलविउव्विया। ते जीवा कम्मोववण्णगा भवंति त्ति मक्खायं। | ||
Sutra Meaning : | इसके पश्चात् श्रीतीर्थंकरदेव ने वनस्पतिकायिक जीवों का अन्य भेद बताया है। इसी वनस्पतिकायवर्ग में कईं जीव वृक्षयोनिक होते हैं, वे वृक्ष में उत्पन्न होते हैं, वृक्ष में ही स्थिति एवं वृद्धि को प्राप्त होते हैं। वृक्षयोनिक जीव कर्म के वशीभूत होकर कर्म के ही कारण उन वृक्षों में आकर वृक्षयोनिक जीवों में वृक्षरूप से उत्पन्न होते हैं। वे जीव उन वृक्षयोनिक वृक्षों के स्नेह को आहार करते हैं। इसके अतिरिक्त वे जीव पृथ्वी, जल, तेज, वायु और वनस्पति के शरीरों का भी आहार करते हैं। वे त्रस और स्थावर प्राणियों के शरीर को अचित्त कर देते हैं। परिवि – ध्वस्त किये हुए तथा पहले आहार किये हुए और पीछे त्वचा के द्वारा आहार किये हुए पृथ्वी आदि के शरीरों को पचाकर अपने रूप में मिला लेते हैं। उन वृक्षयोनिक वृक्षों के नाना वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले दूसरे शरीर होते हैं। वे जीव कर्मोदय वश वृक्षयोनिक वृक्षों में उत्पन्न होते हैं, यह तीर्थंकर देव ने कहा है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] ahavaram purakkhayam–ihegaiya satta rukkhajoniya rukkhasambhava rukkhavakkama, tajjoniya tassambhava tavvakkama, kammo-vaga kammaniyanenam tatthavakkama rukkhajoniesu rukkhesu rukkhattae viuttamti. Te jiva tesim rukkhajoniyanam rukkhanam sinehamaharemti–te jiva aharemti pudhavisariram ausariram teusariram vausariram vanassa-isariram [tasapanasariram?]. Nanavihanam tasathavaranam pananam sariram achittam kuvvamti. Parividdhattham tam sariram puvvahariyam tayahariyam saruvikadam samtam [savvappanattae aharemti?]. Avare vi ya nam tesim rukkhajoniyanam rukkhanam sarira nanavanna nanagamdha nanarasa nanaphasa nanasamthanasamthiya nanavihasarirapoggalaviuvviya. Te jiva kammovavannaga bhavamti tti makkhayam. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Isake pashchat shritirthamkaradeva ne vanaspatikayika jivom ka anya bheda bataya hai. Isi vanaspatikayavarga mem kaim jiva vrikshayonika hote haim, ve vriksha mem utpanna hote haim, vriksha mem hi sthiti evam vriddhi ko prapta hote haim. Vrikshayonika jiva karma ke vashibhuta hokara karma ke hi karana una vrikshom mem akara vrikshayonika jivom mem vriksharupa se utpanna hote haim. Ve jiva una vrikshayonika vrikshom ke sneha ko ahara karate haim. Isake atirikta ve jiva prithvi, jala, teja, vayu aura vanaspati ke sharirom ka bhi ahara karate haim. Ve trasa aura sthavara praniyom ke sharira ko achitta kara dete haim. Parivi – dhvasta kiye hue tatha pahale ahara kiye hue aura pichhe tvacha ke dvara ahara kiye hue prithvi adi ke sharirom ko pachakara apane rupa mem mila lete haim. Una vrikshayonika vrikshom ke nana varna, gandha, rasa aura sparsha vale dusare sharira hote haim. Ve jiva karmodaya vasha vrikshayonika vrikshom mem utpanna hote haim, yaha tirthamkara deva ne kaha hai. |