Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011132 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Prakrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
6. निश्चय-चारित्र अधिकार - (बुद्धि-योग) |
Translated Chapter : |
6. निश्चय-चारित्र अधिकार - (बुद्धि-योग) |
Section : | 7. वैराग्य-सूत्र (संन्यास-योग) | Translated Section : | 7. वैराग्य-सूत्र (संन्यास-योग) |
Sutra Number : | 130 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | द्रव्य संग्रह । ३५ की टीका में उद्धृत | ||
Mool Sutra : | धम्मे य धम्मफलम्हि, दंसणे य हरिसो य हुंति संवेगो। संसारदेह भोगेसु, विरत्तभावो य वैराग्गं ।। | ||
Sutra Meaning : | धर्म में, धर्म के फल में और सम्यग्दर्शन में जो हर्ष होता है, वह तो संवेग है, और संसार देह भोगों से विरक्त होना वैराग्य या निर्वेद है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Dhamme ya dhammaphalamhi, damsane ya hariso ya humti samvego. Samsaradeha bhogesu, virattabhavo ya vairaggam\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Dharma mem, dharma ke phala mem aura samyagdarshana mem jo harsha hota hai, vaha to samvega hai, aura samsara deha bhogom se virakta hona vairagya ya nirveda hai. |