Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011131 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Prakrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
6. निश्चय-चारित्र अधिकार - (बुद्धि-योग) |
Translated Chapter : |
6. निश्चय-चारित्र अधिकार - (बुद्धि-योग) |
Section : | 6. समता-सूत्र (स्थितप्रज्ञता) | Translated Section : | 6. समता-सूत्र (स्थितप्रज्ञता) |
Sutra Number : | 129 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | अध्यात्मसार । ९.४; तुलना: योगसार । ५.३६ | ||
Mool Sutra : | एकस्य विषयो यः, स्यात्स्वाभिप्रायेण पुष्टिकृत्। अन्यस्य द्वेष्यतामेति, स एव मतिभेदतः ।। | ||
Sutra Meaning : | तत्त्वतः कोई भी विषय मनोज्ञ या अमनोज्ञ नहीं होता, क्योंकि जो विषय किसी एक व्यक्ति को उसकी अपनी रुचि के अनुसार इष्ट होता है, वही दूसरे व्यक्ति को उसके मतिभेद के कारण द्वेष्य या अनिष्ट होता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Ekasya vishayo yah, syatsvabhiprayena pushtikrit. Anyasya dveshyatameti, sa eva matibhedatah\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tattvatah koi bhi vishaya manojnya ya amanojnya nahim hota, kyomki jo vishaya kisi eka vyakti ko usaki apani ruchi ke anusara ishta hota hai, vahi dusare vyakti ko usake matibheda ke karana dveshya ya anishta hota hai. |