Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011034 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Prakrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
3. समन्वय अधिकार - (समन्वय योग) |
Translated Chapter : |
3. समन्वय अधिकार - (समन्वय योग) |
Section : | 2. निश्चय-व्यवहार चारित्र समन्वय | Translated Section : | 2. निश्चय-व्यवहार चारित्र समन्वय |
Sutra Number : | 33 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | अध्यात्मसार । १५.२१; तुलना: रत्नकरण्ड श्राव.। ४७-४८ | ||
Mool Sutra : | अभ्यासे सत्क्रियापेक्षा, योगिनां चित्तशुद्धये। ज्ञानपाके शमस्यैव, यत्परैरप्यदः स्मृतं ।। | ||
Sutra Meaning : | योगी को चित्त-शुद्धि के लिए, अभ्यास-दशा में सत्क्रिया अर्थात् व्यवहार-चारित्र की अपेक्षा होती है। ज्ञान के परिपक्व हो जाने पर अर्थात् साक्षात् साम्यभाव की उपलब्धि हो जाने पर प्रशान्त भाव रूप समता की ही अपेक्षा होती है, अन्य किसी क्रिया की नहीं। गीता में भी यही कहा है। (साधक-दशा में भी यदि वह व्यवहार-चारित्र का अवलम्बन नहीं लेता तो उसका अधःपतन निश्चित है।) | ||
Mool Sutra Transliteration : | Abhyase satkriyapeksha, yoginam chittashuddhaye. Jnyanapake shamasyaiva, yatparairapyadah smritam\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Yogi ko chitta-shuddhi ke lie, abhyasa-dasha mem satkriya arthat vyavahara-charitra ki apeksha hoti hai. Jnyana ke paripakva ho jane para arthat sakshat samyabhava ki upalabdhi ho jane para prashanta bhava rupa samata ki hi apeksha hoti hai, anya kisi kriya ki nahim. Gita mem bhi yahi kaha hai. (sadhaka-dasha mem bhi yadi vaha vyavahara-charitra ka avalambana nahim leta to usaka adhahpatana nishchita hai.) |