Sutra Navigation: Mahanishith ( महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1018211 | ||
Scripture Name( English ): | Mahanishith | Translated Scripture Name : | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Translated Chapter : |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 1511 | Category : | Chheda-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से भयवं कहं पुन एरिसे सुलभबोही जाए महायसे सुगहिय-णामधेज्जे से णं कुमारं महरिसी गोयमा ते णं समणभावट्ठिएणं अन्न-जम्मम्मि वाया दंडे पउत्ते अहेसि, तन्निमित्तेणं जावज्जीवं मूणव्वए गुरूवएसे णं संधारिए अन्नं च तिन्नि महापावट्ठाणे संजयाणं तं जहा–आऊ तेऊ मेहुणे। एते य सव्वोवाएहिं परिवज्जए ते णं तु एरिसे सुलभबोही जाए। अहन्नया णं गोयमा बहु सीसगण परियरिए से णं कुमारमहरिसी पत्थिए सम्मेयसेलसिहरे देहच्चाय निमित्तेणं, कालक्कमेणं तीए चेव वत्तणीए जत्थ णं से राय कुल बालियानरिंदे चक्खुकुसीले। जाणावियं च रायउले, आगओ य वंदनवत्तियाए सो इत्थी-नरिंदो उज्जानवरम्मि। कुमार महरिसिणो पणामपुव्वं च उवविट्ठो स पुरस्सरो जहोइए भूमिभागे, मुणिणा वि पबंधेणं कया देसणा। तं च सोऊण धम्म कहावसाणे उवट्ठिओ स परिवग्गो नीसंगत्ताए, पव्वइओ गोयमा सो इत्थीनरिंदो। एवं च अच्चंत घोर वीरुग्ग कट्ठ दुक्कर तव संजमाणुट्ठाण किरियाभिरयाणं सव्वेसिं पि अपडिकम्म सरीराणं अप्पडिबद्धविहारत्ताए अच्चंतणि-प्पिहाणं संसारिएसुं चक्कहर सुरिंदाइ इड्ढि समुदय सरीर सोक्खेसुं गोयमा वच्चइ कोई कालो। जाव णं पत्ते सम्मेय सेल सिहर-ब्भासं। तओ भणिया गोयमा तेण महरिसिणा रायकुल-बालियानरिंदसमणी जहा णं दुक्कर-कारिगे सिग्घं अणुद्दुय माणसा सव्व भाव भावंतरेहि णं सुविसुद्धं पयच्छाहि णं नीसल्लमालोयणं। आढवेयव्वा य संपयं सव्वेहिं अम्हेहिं देहच्चाय करणेक्क बद्ध लक्खेहिं, नीसल्लालोइय निंदिय गरहिय जहुत्त सुद्धासय जहोवइट्ठ कय पच्छित्तुद्धिय सल्लेहिं च णं कुसलदिट्ठा संलेहण त्ति। तओ णं जहुत्तविहीए सव्वमालोइयं तीए रायकुल बालिया नरिंदसमणीए। जाव णं संभारिया तेणं महामुणिणा जहा णं जं अहं तया रायत्थाणं उवविट्ठाए तए गारत्थ-भावम्मि सरागाहिलासाए संविक्खिओ अहेसि। तं आलोएह दुक्करकारिए, जेणं तुम्हं सव्वुत्तमविसोही हवइ। तओ णं तीए मनसा परितप्पिऊणं अइचवलासयनियडी निकेय पावित्थीसभावत्ताए मा णं चक्खुकुसील त्ति अमुगस्स धूया समणीणमंतो परिवसमाणी भण्णिहामि ति चिंतिऊणं गोयमा भणियं तीए अभाग-धिज्जाए जहा णं भयवं न मे तुमं एरिसेणं अट्ठेणं सरागाए दिट्ठीए निज्झाइओ। जओ णं अहयं ते अहिलसेज्जा, किंतु जारिसेणं तुब्भे सव्वुत्तम-रूव तारुन्न जोव्वण लावन्न कंति सोहग्ग कला कलाव विण्णाण णाणाइसयाए गुणोह विच्छड्ड मंडिए होत्था विसएसुं निरहिलासे सुथिरे। ता किमेयं तह त्ति किं वा नो णं तह त्ति त्ति, तुज्झं पमाण परितोलणत्थं सरागाहिलासं चक्खुं पउत्ता, नो णं चाभिलासिउ कामाए। अहवा इणमेत्थ चेवालोइयं भवउ, किमित्थ दोसं ति। मज्झमवि गुणावहयं भवेज्जा। किं तित्थं गंतूण माया-कवडेणं सुवन्नसयं के पयच्छे। ताहे य अच्चंत गरुय संवेगमावन्नेणं धी द्धी द्धी संसार चलित्थी सभावस्स णं ति चिंतिऊणं भणियं मुणिवरेणं जहा णं धि द्धि द्धिरत्थु पावित्थी-चलस्स भावस्स। जेणं तु पेच्छ पेच्छ एद्दहमेत्ताणुकालसमएणं केरिसा नियडी पउत्त त्ति अहो खलित्थीणं चल चवल चडुल चंचलासंठि पगट्ठमाणसाण खणमेगमवि दुज्जम्म-जायाणं, अहो सयलाकज्ज भंडे हलियाणं, अहो सयलायस अकित्ती वुड्ढिकारणं, अहो पावकम्माभिणिविट्ठज्झवसायाणं, अहो अभीयाणं पर लोग गमणंधयार घोर दारुण दुक्ख कंडू कडाह सामलि कुंभी पागाइ दुरहियासाणं, एवं च बहुमनसा परितप्पिऊण अणुयत्तणा विरहियधम्मेक्क रसियसुपसंतवयणेहि णं पसंत महुरक्खरेहिं णं धम्मदेसणा पुव्वगेणं भणिया कुमारेणं रायकुल वालिया नरिंद समणी, गोयमा तेणं मुणिवरेणं। जहा णं–दुक्करकारिगे मा एरिसेणं माया-पवंचेणं अच्चंत घोर वीरुग्ग कट्ठ सुदुक्कर तव संजम सज्झाय झाणाईहिं समज्जिए निरणुबंधि पुन्न पब्भारे निप्फले कुणसु, न किंचि एरिसेणं माया डंभेणं अनंत संसारदायगेणं पओयणं नीसंकमालोएत्ताणं नीसल्ल मत्ताणं कुरु। अहवा अंधयार नट्टिगानट्टमिव धमिय सुवन्नमिव एक्काए फुक्कयाए जहा तहा निरत्थयं होही। तुज्झेयं वालुप्पाडण भिक्खा भूमी सेज्जा बावीस परीसहोवसग्गाहियासणाइए कायकिलेसे त्ति। तओ भणियं तीए भग्गलक्खणाए जहा भयवं किं तुम्हेहिं सद्धिं छम्मेणंउल्लविज्जइ विसेसणं आलोयणं दाउ माणेहिं नीसंकं पत्तिया, नो णं मए तुमं तक्कालं अभिलसिउकामाए सरागाहिलासाए चक्खूए निज्झाइ उ त्ति किंतु तुज्झ परिमाण-तोलणत्थं निज्झाइओ त्ति। भणमाणी चेव णिहणं गया। कम्म परिणइवसेणं समज्जित्ताणं बद्ध पुट्ठ निकाइयं उक्कोस ठिइं इत्थीवेयं कम्मं गोयमा सा राय कुल वालिया नरिंद समणि त्ति। तओ य स सीस गणे गोयमा से णं महच्छेरगभूए सयंबुद्ध कुमार महरिसीए विहीए संलिहिऊणं अत्ताणगं मासं पावोवगमणेणं सम्मेयसेलसिहरम्मि अंतगओ केवलित्ताए सीसगण समण्णिए परिणिव्वुडे त्ति। | ||
Sutra Meaning : | हे भगवंत ! वो महायशवाले सुग्रहीत नाम धारण करनेवाले कुमार महर्षि इस तरह के सुलभबोधि किस तरह बने ? हे गौतम ! अन्य जन्म में श्रमणभाव में रहे थे तब उसने वचन दंड़ का प्रयोग किया था। उस निमित्त से जीवनभर गुरु के उपदेश से मौनव्रत धारण किया था। दूसरा संयतोने तीन महापाप स्थानक बताए हैं, वो इस प्रकार – अप्काय, अग्निकाय और मैथुन यह तीनों को सर्व उपाय से साधु को खास वर्जन करना चाहिए। उसने भी उस तरह से सर्वथा वर्जन किया था। उस कारण से वो सुलभ बोधि बने। अब किसी दिन हे गौतम ! कईं शिष्य से परिवरीत उस कुमार महर्षिने अंतिम समय में देह छोड़ने के लिए सम्मेत शिखर पर्वत के शिखर की ओर प्रयाण किया। विहार करते करते कालक्रम उसी मार्ग पर गए कि जहाँ वो राजकुल बालिकावरेन्द्र चक्षुकुशील थी। राजमंदिर में समाचार दिए वो उत्तम उद्यान में वंदन के लिए स्त्रीनरेन्द्र आए। कुमार महर्षि को प्रणाम करने के पूर्वक परिवार सह यथोचित भूमि स्थान में नरेन्द्र बैठा। मुनेश्वर ने विस्तार से धर्मदेशना की। धर्मदेशना सुनने के बाद परिवार सह स्त्री नरेन्द्र निःसंगता ग्रहण करने के लिए तैयार हुआ। हे गौतम ! वो यहाँ नरेन्द्रने दीक्षा अंगीकार की। दीक्षा लेने के बाद काफी घोर, वीर, उग्र, कष्टकारी, दुष्कर तप संयम अनुष्ठान क्रिया में रमणता करनेवाले ऐसे वो सभी किसी भी द्रव्य, क्षेत्र, काल या भाव में ममत्व रखे बिना विहार करते थे। चक्रवर्ती इन्द्र आदि की ऋद्धि समुदाय के देह सुख में या सांसारिक सुख के काफी निस्पृहभाव रखनेवाले ऐसे उनका कुछ समय बीत गया। विहार करते करते सम्मेत पर्वत के शिखर के पास आया। उस के बाद उस कुमार महर्षिने राजकुमार बालिका नरेन्द्र श्रमणी को कहा कि – हे दुष्करकारिके ! तुम शान्त चित्त से सर्वभाव से अंतःकरणपूर्वक पूरे विशुद्ध शल्य रहित आलोचना जल्द से दो क्योंकि आज हम सर्व देह का त्याग करने के लिए कटिबद्ध लक्षवाले बने हैं। निःशल्य आलोचना, निन्दा, गर्हा, यथोक्त शुद्धाशयपूर्वक जिस प्रकार भगवंत ने उपदेश दिया है उस अनुसार प्रायश्चित्त करके शल्य का उद्धार करके कल्याण देखा है जिसमें ऐसी संलेखना की है। उस के बाद राजकुल बालिका नरेन्द्र श्रमणीने यथोक्त विधि से आलोचना की। उसके बाद बाकी रही आलोचना उस महामुनिने याद करवाई – उस समय राजसभा में तुम बैठी थी तब गृहस्थ भाव में राग सहित और स्नेहाभिलाष से मुझे देखा था उस बात की आलोचना हे दुष्करकारिके! कर। जिस से तुम्हारी सर्वोत्तम शुद्धि हो। उसके बाद उसने मन में खेद पाकर चपल आशय एवं छल का घर ऐसी पाप स्त्री स्वभाव के कारण से इस साध्वी के समुदाय में हंमेशा वास करनेवाली किसी राजा की पुत्री चक्षुकुशील या बूरी नजर करनेवाली है ऐसी मेरी ख्याति शायद हो जाए तो ? ऐसा सोचकर हे गौतम ! उस निर्भागिणी श्रमणीने कहा कि – हे भगवंत ! इस कारण से मैंने तुमको रागवाली नजर से देखे न थे कि न तो मैं तुम्हारी अभिलाषा करती थी, लेकिन जिस तरह से तुम सर्वोत्तम रूप तारूण्य यौवन लावण्य कान्ति – सौभाग्यकला का समुदाय, विज्ञान ज्ञानातिशय आदि गुण की समृद्धि से अलंकृत हो, उस अनुसार विषय में निरभिलाषी और धैर्यवाले उस प्रकार हो कि नहीं, ऐसे तुम्हारा नाप तोल के लिए राग सहित अभिलाषावाली नजर जुड़ी थी, लेकिन रागाभिलाषा की ईच्छा से नजर नहीं की थी। या फिर आलोचना हो। उसमें दूसरा क्या दोष है ? मुझे भी यह गुण करनेवाला होगा। तीर्थ में जाकर माया, छल करने से क्या फायदा ? कुमारमुनि सोचने लगा कि – काफी महा संवेग पाई हुई ऐसी स्त्री को सो सोनैया कोई दे तो संसार में स्त्री का कितना चपल स्वभाव है वो समज सकते हैं या फिर उसके मनोगत भाव पहचानना काफी दुष्कर है। ऐसा चिन्तवन करके मुनिवरने कहा कि चपल समय में किस तरह का छल पाया ? अहो ! इस दुर्जन चपल स्त्रियों के चल – चपल अस्थिर – चंचल स्वभाव। एक के लिए मानस स्थापन न करनेवाली, एक भी पल स्थिर मन न रखनेवाली, अहो दुष्ट जन्मवाली, अहो समग्र अकार्य करनेवाली, भाँड़नेवाली, स्खलना पानेवाली, अहो समग्र अपयश, अपकीर्ति में वृद्धि करनेवाली, अहो पाप कर्म करने के अभिमानी आशयवाली, परलोक में अंधकार के भीतर घोर भयानक खुजली, ऊबलते कडाँइ में तेल में तलना, शामली वृक्ष, कुंभी में पकना आदि दुःख सहने पड़े ऐसी नारकी में जाना पड़ेगा। उसके भय बिना चंचल स्त्री होती है। इस तरह कुमार श्रमण ने मन में काफी खेद पाया। उसकी बात न अपनाते हुए धर्म में एक रसिक ऐसे कुमार मुनि अति प्रशान्त वदन से प्रशान्त मधुर अक्षर से धर्मदेशना करने पूर्वक राजकुल बालिका नरेन्द्र श्रमणी को कहा कि – हे दुष्करकारिके ! ऐसी माया के वचन बोलकर काफी घोर, वीर, उग्र, कष्टदायक, दुष्कर तप, संयम, स्वाध्याय ध्यान आदि करके जो संसार न बढ़े ऐसा बड़ा पुण्यप्रकर्ष इकट्ठा किया है। उसको निष्फल मत करना। अनन्त संसार देनेवाले ऐसे माया – दंभ करने का कोई प्रयोजन नहीं है। बेजिजक आलोचना करके तुम्हारी आत्मा को शल्यरहित बना या जैसे अंधेरे में नदी का नृत्य निरर्थक होता है, धमेल सुवर्ण एक जोरवाली फूंक में उसकी मेहनत निरर्थक जाती है, उस अनुसार आज तक राजगादी स्वजनादिक का त्याग करके केश का लोच किया। भिक्षा, भ्रमण, भूमि पर शय्या करना, बाईस परिषह सहना, उपसर्ग सहना आदि जो क्लेश सहे वो सब किए गए चारित्र अनुष्ठान तुम्हारे निरर्थक होंगे ? तब निर्भागी ने उत्तर दिया कि – हे भगवंत ! क्या आप ऐसा मानते हो कि आपके साथ छल से बात कर रहा हूँ। और फिर खास करके आलोचना देते समय आपके साथ छल कर ही नहीं सकते। यह मेरी कहानी बेजिजक सच मानो। किसी तरह उस समय मैंने सहज भी स्नेहराग की अभिलाषा से या राग करने की अभिलाषा से आपकी ओर नजर नहीं की थी, लेकिन आपका इम्तिहान लेने के लिए, तुम कितने पानी में हो – शील में कितने दृढ़ हो, उसका इम्तिहान करने के लिए नजर की थी। ऐसे बोलती कर्मपरिणति को आधीन होनेवाली बद्ध – स्पृष्ट निकाचित ऐसे उत्कृष्ट हालातवाला स्त्री नामकर्म उपार्जन करके नष्ट हुई, हे गौतम ! छल करने के स्वभाव से वो राजकुल बालिका नरेन्द्र श्रमणीने लम्बे अरसे का निकाचित स्त्रीवेद उपार्जन किया। उस के बाद शिष्यगण परिवार सहित महा ताज्जुब समान स्वयंबुद्धकुमार महर्षिने विधिवत् आत्मा की – संलेखना करके एक मास का पादपोपगमन अनशन करके सम्मेत पर्वत के शिखर पर केवलीपन से शिष्यगण के साथ निर्वाण पाकर मोक्ष पधारे। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se bhayavam kaham puna erise sulabhabohi jae mahayase sugahiya-namadhejje se nam kumaram maharisi goyama te nam samanabhavatthienam anna-jammammi vaya damde pautte ahesi, tannimittenam javajjivam munavvae guruvaese nam samdharie annam cha tinni mahapavatthane samjayanam tam jaha–au teu mehune. Ete ya savvovaehim parivajjae te nam tu erise sulabhabohi jae. Ahannaya nam goyama bahu sisagana pariyarie se nam kumaramaharisi patthie sammeyaselasihare dehachchaya nimittenam, kalakkamenam tie cheva vattanie jattha nam se raya kula baliyanarimde chakkhukusile. Janaviyam cha rayaule, agao ya vamdanavattiyae so itthi-narimdo ujjanavarammi. Kumara maharisino panamapuvvam cha uvavittho sa purassaro jahoie bhumibhage, munina vi pabamdhenam kaya desana. Tam cha souna dhamma kahavasane uvatthio sa parivaggo nisamgattae, pavvaio goyama so itthinarimdo. Evam cha achchamta ghora virugga kattha dukkara tava samjamanutthana kiriyabhirayanam savvesim pi apadikamma sariranam appadibaddhaviharattae achchamtani-ppihanam samsariesum chakkahara surimdai iddhi samudaya sarira sokkhesum goyama vachchai koi kalo. Java nam patte sammeya sela sihara-bbhasam. Tao bhaniya goyama tena maharisina rayakula-baliyanarimdasamani jaha nam dukkara-karige siggham anudduya manasa savva bhava bhavamtarehi nam suvisuddham payachchhahi nam nisallamaloyanam. Adhaveyavva ya sampayam savvehim amhehim dehachchaya karanekka baddha lakkhehim, nisallaloiya nimdiya garahiya jahutta suddhasaya jahovaittha kaya pachchhittuddhiya sallehim cha nam kusaladittha samlehana tti. Tao nam jahuttavihie savvamaloiyam tie rayakula baliya narimdasamanie. Java nam sambhariya tenam mahamunina jaha nam jam aham taya rayatthanam uvavitthae tae garattha-bhavammi saragahilasae samvikkhio ahesi. Tam aloeha dukkarakarie, jenam tumham savvuttamavisohi havai. Tao nam tie manasa paritappiunam aichavalasayaniyadi nikeya pavitthisabhavattae ma nam chakkhukusila tti amugassa dhuya samaninamamto parivasamani bhannihami ti chimtiunam goyama bhaniyam tie abhaga-dhijjae jaha nam bhayavam na me tumam erisenam atthenam saragae ditthie nijjhaio. Jao nam ahayam te ahilasejja, kimtu jarisenam tubbhe savvuttama-ruva tarunna jovvana lavanna kamti sohagga kala kalava vinnana nanaisayae gunoha vichchhadda mamdie hottha visaesum nirahilase suthire. Ta kimeyam taha tti kim va no nam taha tti tti, tujjham pamana paritolanattham saragahilasam chakkhum pautta, no nam chabhilasiu kamae. Ahava inamettha chevaloiyam bhavau, kimittha dosam ti. Majjhamavi gunavahayam bhavejja. Kim tittham gamtuna maya-kavadenam suvannasayam ke payachchhe. Tahe ya achchamta garuya samvegamavannenam dhi ddhi ddhi samsara chalitthi sabhavassa nam ti chimtiunam bhaniyam munivarenam jaha nam dhi ddhi ddhiratthu pavitthi-chalassa bhavassa. Jenam tu pechchha pechchha eddahamettanukalasamaenam kerisa niyadi pautta tti aho khalitthinam chala chavala chadula chamchalasamthi pagatthamanasana khanamegamavi dujjamma-jayanam, aho sayalakajja bhamde haliyanam, aho sayalayasa akitti vuddhikaranam, aho pavakammabhinivitthajjhavasayanam, aho abhiyanam para loga gamanamdhayara ghora daruna dukkha kamdu kadaha samali kumbhi pagai durahiyasanam, evam cha bahumanasa paritappiuna anuyattana virahiyadhammekka rasiyasupasamtavayanehi nam pasamta mahurakkharehim nam dhammadesana puvvagenam bhaniya kumarenam rayakula valiya narimda samani, goyama tenam munivarenam. Jaha nam–dukkarakarige ma erisenam maya-pavamchenam achchamta ghora virugga kattha sudukkara tava samjama sajjhaya jhanaihim samajjie niranubamdhi punna pabbhare nipphale kunasu, na kimchi erisenam maya dambhenam anamta samsaradayagenam paoyanam nisamkamaloettanam nisalla mattanam kuru. Ahava amdhayara nattiganattamiva dhamiya suvannamiva ekkae phukkayae jaha taha niratthayam hohi. Tujjheyam valuppadana bhikkha bhumi sejja bavisa parisahovasaggahiyasanaie kayakilese tti. Tao bhaniyam tie bhaggalakkhanae jaha bhayavam kim tumhehim saddhim chhammenamullavijjai visesanam aloyanam dau manehim nisamkam pattiya, no nam mae tumam takkalam abhilasiukamae saragahilasae chakkhue nijjhai u tti kimtu tujjha parimana-tolanattham nijjhaio tti. Bhanamani cheva nihanam gaya. Kamma parinaivasenam samajjittanam baddha puttha nikaiyam ukkosa thiim itthiveyam kammam goyama sa raya kula valiya narimda samani tti. Tao ya sa sisa gane goyama se nam mahachchheragabhue sayambuddha kumara maharisie vihie samlihiunam attanagam masam pavovagamanenam sammeyaselasiharammi amtagao kevalittae sisagana samannie parinivvude tti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He bhagavamta ! Vo mahayashavale sugrahita nama dharana karanevale kumara maharshi isa taraha ke sulabhabodhi kisa taraha bane\? He gautama ! Anya janma mem shramanabhava mem rahe the taba usane vachana damra ka prayoga kiya tha. Usa nimitta se jivanabhara guru ke upadesha se maunavrata dharana kiya tha. Dusara samyatone tina mahapapa sthanaka batae haim, vo isa prakara – apkaya, agnikaya aura maithuna yaha tinom ko sarva upaya se sadhu ko khasa varjana karana chahie. Usane bhi usa taraha se sarvatha varjana kiya tha. Usa karana se vo sulabha bodhi bane. Aba kisi dina he gautama ! Kaim shishya se parivarita usa kumara maharshine amtima samaya mem deha chhorane ke lie sammeta shikhara parvata ke shikhara ki ora prayana kiya. Vihara karate karate kalakrama usi marga para gae ki jaham vo rajakula balikavarendra chakshukushila thi. Rajamamdira mem samachara die vo uttama udyana mem vamdana ke lie strinarendra ae. Kumara maharshi ko pranama karane ke purvaka parivara saha yathochita bhumi sthana mem narendra baitha. Muneshvara ne vistara se dharmadeshana ki. Dharmadeshana sunane ke bada parivara saha stri narendra nihsamgata grahana karane ke lie taiyara hua. He gautama ! Vo yaham narendrane diksha amgikara ki. Diksha lene ke bada kaphi ghora, vira, ugra, kashtakari, dushkara tapa samyama anushthana kriya mem ramanata karanevale aise vo sabhi kisi bhi dravya, kshetra, kala ya bhava mem mamatva rakhe bina vihara karate the. Chakravarti indra adi ki riddhi samudaya ke deha sukha mem ya samsarika sukha ke kaphi nisprihabhava rakhanevale aise unaka kuchha samaya bita gaya. Vihara karate karate sammeta parvata ke shikhara ke pasa aya. Usa ke bada usa kumara maharshine rajakumara balika narendra shramani ko kaha ki – he dushkarakarike ! Tuma shanta chitta se sarvabhava se amtahkaranapurvaka pure vishuddha shalya rahita alochana jalda se do kyomki aja hama sarva deha ka tyaga karane ke lie katibaddha lakshavale bane haim. Nihshalya alochana, ninda, garha, yathokta shuddhashayapurvaka jisa prakara bhagavamta ne upadesha diya hai usa anusara prayashchitta karake shalya ka uddhara karake kalyana dekha hai jisamem aisi samlekhana ki hai. Usa ke bada rajakula balika narendra shramanine yathokta vidhi se alochana ki. Usake bada baki rahi alochana usa mahamunine yada karavai – usa samaya rajasabha mem tuma baithi thi taba grihastha bhava mem raga sahita aura snehabhilasha se mujhe dekha tha usa bata ki alochana he dushkarakarike! Kara. Jisa se tumhari sarvottama shuddhi ho. Usake bada usane mana mem kheda pakara chapala ashaya evam chhala ka ghara aisi papa stri svabhava ke karana se isa sadhvi ke samudaya mem hammesha vasa karanevali kisi raja ki putri chakshukushila ya buri najara karanevali hai aisi meri khyati shayada ho jae to\? Aisa sochakara he gautama ! Usa nirbhagini shramanine kaha ki – he bhagavamta ! Isa karana se maimne tumako ragavali najara se dekhe na the ki na to maim tumhari abhilasha karati thi, lekina jisa taraha se tuma sarvottama rupa tarunya yauvana lavanya kanti – saubhagyakala ka samudaya, vijnyana jnyanatishaya adi guna ki samriddhi se alamkrita ho, usa anusara vishaya mem nirabhilashi aura dhairyavale usa prakara ho ki nahim, aise tumhara napa tola ke lie raga sahita abhilashavali najara juri thi, lekina ragabhilasha ki ichchha se najara nahim ki thi. Ya phira alochana ho. Usamem dusara kya dosha hai\? Mujhe bhi yaha guna karanevala hoga. Tirtha mem jakara maya, chhala karane se kya phayada\? Kumaramuni sochane laga ki – kaphi maha samvega pai hui aisi stri ko so sonaiya koi de to samsara mem stri ka kitana chapala svabhava hai vo samaja sakate haim ya phira usake manogata bhava pahachanana kaphi dushkara hai. Aisa chintavana karake munivarane kaha ki chapala samaya mem kisa taraha ka chhala paya\? Aho ! Isa durjana chapala striyom ke chala – chapala asthira – chamchala svabhava. Eka ke lie manasa sthapana na karanevali, eka bhi pala sthira mana na rakhanevali, aho dushta janmavali, aho samagra akarya karanevali, bhamranevali, skhalana panevali, aho samagra apayasha, apakirti mem vriddhi karanevali, aho papa karma karane ke abhimani ashayavali, paraloka mem amdhakara ke bhitara ghora bhayanaka khujali, ubalate kadami mem tela mem talana, shamali vriksha, kumbhi mem pakana adi duhkha sahane pare aisi naraki mem jana parega. Usake bhaya bina chamchala stri hoti hai. Isa taraha kumara shramana ne mana mem kaphi kheda paya. Usaki bata na apanate hue dharma mem eka rasika aise kumara muni ati prashanta vadana se prashanta madhura akshara se dharmadeshana karane purvaka rajakula balika narendra shramani ko kaha ki – he dushkarakarike ! Aisi maya ke vachana bolakara kaphi ghora, vira, ugra, kashtadayaka, dushkara tapa, samyama, svadhyaya dhyana adi karake jo samsara na barhe aisa bara punyaprakarsha ikattha kiya hai. Usako nishphala mata karana. Ananta samsara denevale aise maya – dambha karane ka koi prayojana nahim hai. Bejijaka alochana karake tumhari atma ko shalyarahita bana ya jaise amdhere mem nadi ka nritya nirarthaka hota hai, dhamela suvarna eka joravali phumka mem usaki mehanata nirarthaka jati hai, usa anusara aja taka rajagadi svajanadika ka tyaga karake kesha ka locha kiya. Bhiksha, bhramana, bhumi para shayya karana, baisa parishaha sahana, upasarga sahana adi jo klesha sahe vo saba kie gae charitra anushthana tumhare nirarthaka homge\? Taba nirbhagi ne uttara diya ki – He bhagavamta ! Kya apa aisa manate ho ki apake satha chhala se bata kara raha hum. Aura phira khasa karake alochana dete samaya apake satha chhala kara hi nahim sakate. Yaha meri kahani bejijaka sacha mano. Kisi taraha usa samaya maimne sahaja bhi sneharaga ki abhilasha se ya raga karane ki abhilasha se apaki ora najara nahim ki thi, lekina apaka imtihana lene ke lie, tuma kitane pani mem ho – shila mem kitane drirha ho, usaka imtihana karane ke lie najara ki thi. Aise bolati karmaparinati ko adhina honevali baddha – sprishta nikachita aise utkrishta halatavala stri namakarma uparjana karake nashta hui, he gautama ! Chhala karane ke svabhava se vo rajakula balika narendra shramanine lambe arase ka nikachita striveda uparjana kiya. Usa ke bada shishyagana parivara sahita maha tajjuba samana svayambuddhakumara maharshine vidhivat atma ki – samlekhana karake eka masa ka padapopagamana anashana karake sammeta parvata ke shikhara para kevalipana se shishyagana ke satha nirvana pakara moksha padhare. |