Sutra Navigation: Mahanishith ( महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र )

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Sr No : 1017533
Scripture Name( English ): Mahanishith Translated Scripture Name : महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

अध्ययन-५ नवनीतसार

Translated Chapter :

अध्ययन-५ नवनीतसार

Section : Translated Section :
Sutra Number : 833 Category : Chheda-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] से भयवं जे णं केइ अमुणिय समय सब्भावे होत्था विहिए, इ वा अविहिए, इ वा कस्स य गच्छायारस्स य मंडलिधम्मस्स वा छत्तीसइविहस्स णं सप्पभेय नाण दंसण चरित्त तव वीरियायारस्स वा, मनसा वा, वायाए वा, कहिं चि अन्नयरे ठाणे केई गच्छाहिवई आयरिए, इ वा अंतो विसुद्ध, परिणामे वि होत्था णं असई चुक्केज्ज वा, खलेज्ज वा, परूवेमाणे वा अणुट्ठे-माणे वा, से णं आराहगे उयाहु अनाराहगे गोयमा अनाराहगे। से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ जहा णं गोयमा अनाराहगे गोयमा णं इमे दुवालसंगे सुयनाणे अणप्पवसिए अनाइ निहणे सब्भूयत्थ पसाहगे अनाइ संसिद्धे से णं देविंद वंद वंदाणं अतुल बल वीरिएसरिय सत्त परक्कम महापुरिसायार कंति दित्ति लावन्न रूव सोहग्गाइ सयल कला कलाव विच्छड्ड मंडियाणं अनंत णाणीणं सयं संबुद्धाणं जिनवराणं अनाइसिद्धाणं अनंताणं वट्टमाण समय सिज्झमाणाणं अन्नेसिं च आसन्न पुरेक्खडाणं अनंताणं सुगहिय नाम धेज्जाणं महायसाणं महासत्ताणं महानुभागाणं तिहुयणेक्क तिलयाणं तेलोक्क नाहाणं जगपवराणं जगेक्क बंधूणं जग गुरूणं सव्वण्णूणं सव्व दरिसीणं पवर वर धम्म तित्थंकराणं अरहंताणं भगवंताणं भूयभव्व भविस्साईयाणागय वट्टमाण निखिलासेस कसिण सगुण सपज्जय सव्ववत्थुविदियसब्भावाणं असहाए पवरे एक्कमेक्कमग्गे से णं सुत्तत्ताए अत्थत्ताए गंथत्ताए तेसिं पि णं जहट्ठिए चेव पन्नवणिज्जे, जहट्ठिए चेवाणुट्ठणिज्जे, जहट्ठिए चेव भासणिज्जे, जहट्ठिए चेव वायणिज्जे, जहट्ठिए चेव परूवणिज्जे, जहट्ठिए चेव वायरणिज्जे जहट्ठिए चेव कहणिज्जे। से णं इमे दुवालसंगे गणिपिडगे तेसिं पि णं देविविंद वंदाणं निखिल जग विदिय सदव्व सपज्जव गइ आगइ हास वुड्ढि जीवाइ तत्त जाव णं वत्थु सहावाणं अलंघणिज्जे, अनाइक्कमणिज्जे अनासायणिज्जे अणुमोयणिज्जे। तहा चेव इमे दुवालसंगे सुयणाणे सव्व जग जीव पाण भूय सत्ताणं एगंतेणं हिए सुहे खेमे नीसेसिए आणुगामिए पारगामिए पसत्थे महत्थे महागुणे महानुभावे महापुरिसाणुचिन्ने परम-रिसिदेसिए दुक्खक्खयाए मोक्खयाए संसारुत्तारणाए ति कट्टु उवसंपज्जित्ताणं विहरिंसु किमुत मन्नेसिं ति ता गोयमा जे णं केइ अमुणिय समय सब्भावे इ वा विइय समय सारे इ वा, विहिए इ वा, अविहीए इ वा, गच्छाहिवई वा, आयरिए इ वा, अंतो विसुद्ध परिणामे वि, होत्था गच्छायारं मंडलि धम्मा छत्तीसइविह आयारादि जाव णं अन्नयरस्स वा आवस्सगाइ करणिज्जस्स णं पवयण सारस्स असती चुक्केज्ज वा, खलेज्ज वा, ते णं इमे दुवालसंगे सुयनाणे अन्नहा पयरेज्जा जे णं इमे दुवालसंग सुय नाण निबद्धंतरोवगयं एक्क पयक्खरमवि अन्नहा पयरे से णं उम्मग्गे पयंसेज्जा। जे णं उम्मग्गे पयंसे से णं अनाराहगे भवेज्जा। ता एएणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ जहा णं गोयमा एगंतेणं अनाराहगे।
Sutra Meaning : हे भगवंत ! जो कोई न जाने हुए शास्त्र के सद्‌भाववाले हो, वह विधि से या अविधि से किसी गच्छ के आचार या मंड़ली धर्म के मूल या छत्तीस तरह के भेदवाले ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य के आचार को मन से वचन से या काया से किसी भी तरह कोई भी आचार स्थान में किसी गच्छाधिपति या आचार्य के जितने अंतःकरण में विशुद्ध परिणाम होने के बाद भी बार – बार चूक जाए। स्खलना पाए या प्ररूपणा करे या व्यवहार करे तो वो आराधक या अनाराधक गिना जाता है ? हे गौतम ! अनाराधक माना जाता है। हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? हे गौतम ! जो इस बारह अंग रूप श्रुतज्ञान महाप्रमाण और अंत रहित है। जिसकी आदि नहीं या नाश नहीं, सद्‌भुत चीज की सिद्धि कर देनेवाले, अनादि से अच्छी तरह से सिद्ध हुआ है। देवेन्द्र को भी वंदनीय है ऐसे अतुल बल, वीर्य, असामान्य सत्त्व, पराक्रम, महापुरुषार्थ, कांति, तेज, लावण्य, रूप, सौभाग्य, अति कला के समूह से समृद्धि से शोभित, अनन्त ज्ञानी, अपने आप प्रतिबोध पाए हुए जिनवर और अनन्त अनादि सिद्ध वर्तमान समय में सिद्ध होनेवाले, दूसरे नजदीकी काल में सिद्धि पानेवाले ऐसे अनन्ता जिनके नाम सुबह को ग्रहण करने के लायक हैं, महासत्त्ववाले, महानुभाग, तीन भुवन में एक तिलक समान, जगत में श्रेष्ठ, जगत के एक बंधु, जगत के गुरु, सर्वज्ञ सर्व जाननेवाले, सर्व देखनेवाले, श्रेष्ठ उत्तम धर्मतीर्थ प्रवर्तानेवाले, अरिहंत भगवंत भूत, भावि आदि अनागत वर्तमान निखिल समग्र गुण पर्याय सर्व चीज का सद्‌भाव जिसने पहचाना है, किसी की भी सहाय न लेनेवाले, सर्वश्रेष्ठ, अकेले, जिनका एक ही मार्ग है ऐसे तीर्थंकर भगवंत उन्होंने सूत्र से, अर्थ से, ग्रंथ से, यथार्थ उसकी प्ररूपणा की है, यथास्थिति अनुसेवन किया है। कहने के लायक, वाचना देने के लायक, प्ररूपणा करने के लायक, बोलने के लायक, कथन करने के लायक, ऐसे यह बारह अंग और उसके अर्थ स्वरूप गणिपिटक हैं। वो बारह अंग और उसके अर्थ तीर्थंकर भगवंत कि जो देवेन्द्र को भी वंदनीय है, समग्र जगत के सर्व द्रव्य और सर्व पर्याय सहित गति आगति इतिहास बुद्धि जीवादिक तत्त्व चीज के स्वभाव के सम्पूर्ण ज्ञाता हैं। उन्हें भी अलंघनीय हैं। अतिक्रमणीय नहीं है, आशातना न करने के लायक हैं। और फिर यह बारह अंगरूप श्रुतज्ञान सर्व जगत के जीव, प्राण, भूत और सत्त्व को एकान्त में हितकारी, सुखकारी कर्मनाश करने में समर्थ निःश्रेयस यानि मोक्ष के कारण समान है। भवोभव साथ में अनुसरण करनेवाले हैं। संसार का पार बतानेवाले हैं। प्रशस्त, महाअर्थ से भरपूर है, उसमें फलस्वरूप आद बताए होने से महागुण युक्त, महाप्रभावशाली है, महापुरुष ने जिसका अनुसरण किया है। परम महर्षि ने तीर्थंकर भगवंत ने उपदेश दिया है। जो द्वादशांगी दुःख का क्षय करने के लिए ज्ञानावरणीय आदि कर्म का क्षय करने के लिए, राग, द्वेष, आदि के बंधन से मुक्त होने के लिए, संसार – समुद्र से पार उतरने के लिए समर्थ है। ऐसा होने से वो द्वादशांगी को अंगीकार करके विचरण करूँगा। उसके अलावा मेरा कोई प्रयोजन नहीं है। इसलिए जिस किसी ने शास्त्र का सद्‌भाव न पहचाना हो, या शास्त्र का सार जाना हो वो, गच्छा – धिपति या आचार्य जिसके परिणाम भीतर से विशुद्ध हो तो भी गच्छ के आचार, मंड़ली के धर्म, छत्तीस तरह के ज्ञानादिक के आचार यावत्‌ आवश्यकादिक करणीय या प्रवचन के सार को बार – बार चूके, स्खलना पाए या इस बारह अंगरूप श्रुतज्ञान के भीतर गूँथे हुए या भीतर ही एक पद या अक्षर को विपरीत रूप से प्रचार करे, आचरण करे उसे उन्मार्ग दिखानेवाला समझना। जो उन्मार्ग दिखाए वो अनाराधक बने, इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि वो एकान्ते अनाराधक हैं।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] se bhayavam je nam kei amuniya samaya sabbhave hottha vihie, i va avihie, i va kassa ya gachchhayarassa ya mamdalidhammassa va chhattisaivihassa nam sappabheya nana damsana charitta tava viriyayarassa va, manasa va, vayae va, kahim chi annayare thane kei gachchhahivai ayarie, i va amto visuddha, pariname vi hottha nam asai chukkejja va, khalejja va, paruvemane va anutthe-mane va, se nam arahage uyahu anarahage goyama anarahage. Se bhayavam kenam atthenam evam vuchchai jaha nam goyama anarahage goyama nam ime duvalasamge suyanane anappavasie anai nihane sabbhuyattha pasahage anai samsiddhe se nam devimda vamda vamdanam atula bala viriesariya satta parakkama mahapurisayara kamti ditti lavanna ruva sohaggai sayala kala kalava vichchhadda mamdiyanam anamta naninam sayam sambuddhanam jinavaranam anaisiddhanam anamtanam vattamana samaya sijjhamananam annesim cha asanna purekkhadanam anamtanam sugahiya nama dhejjanam mahayasanam mahasattanam mahanubhaganam tihuyanekka tilayanam telokka nahanam jagapavaranam jagekka bamdhunam jaga gurunam savvannunam savva darisinam pavara vara dhamma titthamkaranam arahamtanam bhagavamtanam bhuyabhavva bhavissaiyanagaya vattamana nikhilasesa kasina saguna sapajjaya savvavatthuvidiyasabbhavanam asahae pavare ekkamekkamagge se nam suttattae atthattae gamthattae tesim pi nam jahatthie cheva pannavanijje, jahatthie chevanutthanijje, jahatthie cheva bhasanijje, jahatthie cheva vayanijje, jahatthie cheva paruvanijje, jahatthie cheva vayaranijje jahatthie cheva kahanijje. Se nam ime duvalasamge ganipidage tesim pi nam devivimda vamdanam nikhila jaga vidiya sadavva sapajjava gai agai hasa vuddhi jivai tatta java nam vatthu sahavanam alamghanijje, anaikkamanijje anasayanijje anumoyanijje. Taha cheva ime duvalasamge suyanane savva jaga jiva pana bhuya sattanam egamtenam hie suhe kheme nisesie anugamie paragamie pasatthe mahatthe mahagune mahanubhave mahapurisanuchinne parama-risidesie dukkhakkhayae mokkhayae samsaruttaranae ti kattu uvasampajjittanam viharimsu kimuta mannesim ti ta goyama je nam kei amuniya samaya sabbhave i va viiya samaya sare i va, vihie i va, avihie i va, gachchhahivai va, ayarie i va, amto visuddha pariname vi, hottha gachchhayaram mamdali dhamma chhattisaiviha ayaradi java nam annayarassa va avassagai karanijjassa nam pavayana sarassa asati chukkejja va, khalejja va, te nam ime duvalasamge suyanane annaha payarejja je nam ime duvalasamga suya nana nibaddhamtarovagayam ekka payakkharamavi annaha payare se nam ummagge payamsejja. Je nam ummagge payamse se nam anarahage bhavejja. Ta eenam atthenam evam vuchchai jaha nam goyama egamtenam anarahage.
Sutra Meaning Transliteration : He bhagavamta ! Jo koi na jane hue shastra ke sadbhavavale ho, vaha vidhi se ya avidhi se kisi gachchha ke achara ya mamrali dharma ke mula ya chhattisa taraha ke bhedavale jnyana, darshana, charitra, tapa aura virya ke achara ko mana se vachana se ya kaya se kisi bhi taraha koi bhi achara sthana mem kisi gachchhadhipati ya acharya ke jitane amtahkarana mem vishuddha parinama hone ke bada bhi bara – bara chuka jae. Skhalana pae ya prarupana kare ya vyavahara kare to vo aradhaka ya anaradhaka gina jata hai\? He gautama ! Anaradhaka mana jata hai. He bhagavamta ! Kisa karana se aisa kaha jata hai\? He gautama ! Jo isa baraha amga rupa shrutajnyana mahapramana aura amta rahita hai. Jisaki adi nahim ya nasha nahim, sadbhuta chija ki siddhi kara denevale, anadi se achchhi taraha se siddha hua hai. Devendra ko bhi vamdaniya hai aise atula bala, virya, asamanya sattva, parakrama, mahapurushartha, kamti, teja, lavanya, rupa, saubhagya, ati kala ke samuha se samriddhi se shobhita, ananta jnyani, apane apa pratibodha pae hue jinavara aura ananta anadi siddha vartamana samaya mem siddha honevale, dusare najadiki kala mem siddhi panevale aise ananta jinake nama subaha ko grahana karane ke layaka haim, mahasattvavale, mahanubhaga, tina bhuvana mem eka tilaka samana, jagata mem shreshtha, jagata ke eka bamdhu, jagata ke guru, sarvajnya sarva jananevale, sarva dekhanevale, shreshtha uttama dharmatirtha pravartanevale, arihamta bhagavamta bhuta, bhavi adi anagata vartamana nikhila samagra guna paryaya sarva chija ka sadbhava jisane pahachana hai, kisi ki bhi sahaya na lenevale, sarvashreshtha, akele, jinaka eka hi marga hai aise tirthamkara bhagavamta unhomne sutra se, artha se, gramtha se, yathartha usaki prarupana ki hai, yathasthiti anusevana kiya hai. Kahane ke layaka, vachana dene ke layaka, prarupana karane ke layaka, bolane ke layaka, kathana karane ke layaka, aise yaha baraha amga aura usake artha svarupa ganipitaka haim. Vo baraha amga aura usake artha tirthamkara bhagavamta ki jo devendra ko bhi vamdaniya hai, samagra jagata ke sarva dravya aura sarva paryaya sahita gati agati itihasa buddhi jivadika tattva chija ke svabhava ke sampurna jnyata haim. Unhem bhi alamghaniya haim. Atikramaniya nahim hai, ashatana na karane ke layaka haim. Aura phira yaha baraha amgarupa shrutajnyana sarva jagata ke jiva, prana, bhuta aura sattva ko ekanta mem hitakari, sukhakari karmanasha karane mem samartha nihshreyasa yani moksha ke karana samana hai. Bhavobhava satha mem anusarana karanevale haim. Samsara ka para batanevale haim. Prashasta, mahaartha se bharapura hai, usamem phalasvarupa ada batae hone se mahaguna yukta, mahaprabhavashali hai, mahapurusha ne jisaka anusarana kiya hai. Parama maharshi ne tirthamkara bhagavamta ne upadesha diya hai. Jo dvadashamgi duhkha ka kshaya karane ke lie jnyanavaraniya adi karma ka kshaya karane ke lie, raga, dvesha, adi ke bamdhana se mukta hone ke lie, samsara – samudra se para utarane ke lie samartha hai. Aisa hone se vo dvadashamgi ko amgikara karake vicharana karumga. Usake alava mera koi prayojana nahim hai. Isalie jisa kisi ne shastra ka sadbhava na pahachana ho, ya shastra ka sara jana ho vo, gachchha – dhipati ya acharya jisake parinama bhitara se vishuddha ho to bhi gachchha ke achara, mamrali ke dharma, chhattisa taraha ke jnyanadika ke achara yavat avashyakadika karaniya ya pravachana ke sara ko bara – bara chuke, skhalana pae ya isa baraha amgarupa shrutajnyana ke bhitara gumthe hue ya bhitara hi eka pada ya akshara ko viparita rupa se prachara kare, acharana kare use unmarga dikhanevala samajhana. Jo unmarga dikhae vo anaradhaka bane, isa karana se aisa kaha jata hai ki vo ekante anaradhaka haim.