Sutra Navigation: Mahanishith ( महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1017193 | ||
Scripture Name( English ): | Mahanishith | Translated Scripture Name : | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Translated Chapter : |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 493 | Category : | Chheda-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] (१) से भयवं कयराए विहिए पंच-मंगलस्स णं विणओवहाणं कायव्वं (२) गोयमा इमाए विहिए पंचमंगलस्स णं विणओवहाणं कायव्वं, तं जहा–सुपसत्थे चेव सोहने तिहि-करण-मुहुत्त-नक्खत्त-जोग-लग्ग-ससीबले (३) विप्पमुक्क-जायाइमयासंकेण, संजाय-सद्धा-संवेग-सुतिव्वतर-महंतुल्लसंत-सुहज्झ-वसायाणुगय-भत्ती-बहुमान-पुव्वं निन्नियाण-दुवालस-भत्त-ट्ठिएणं, (४) चेइयालये जंतुविरहिओगासे, (५) भत्ति-भर-निब्भरुद्धसिय-ससीसरोमावली-पप्फुल्ल-वयण-सयवत्त-पसंत-सोम-थिर-दिट्ठी (६) नव-नव-संवेग- समुच्छलंत- संजाय- बहल- घन- निरंतर- अचिंत- परम- सुह- परिणाम-विसेसुल्लासिय-सजीव-वीरियानुसमय-विवड्ढंत-पमोय-सुविसुद्ध-सुनिम्मल-विमल-थिर-दढयरंत करणेणं, (७) खितिणिहिय-जाणु[णा]ण सि-उत्तमंग-कर-कमल-मउल-सोहंजलि-पुडेणं, (८) सिरि-उसभाइ-पवर-वर-धम्म-तित्थयर-पडिमा-बिंब-विणिवेसिय-नयन-मानसेगग्गतग्ग -यज्झवसाएणं (९) समयण्णु-दढ-चरित्तादि-गुण-संपओववेय-गुरु-सद्दत्थत्थानुट्ठाण-करणेक्क-बद्ध-लक्ख -तवाहिय-गुरुवयण-विणिग्गय, (१०) विनयादि-बहुमान-परिओसाऽनु-कंपोवलद्धं, (११) अनेग- सोग-संतावुव्वेवग- महवाधिवेयणा-घोर-दुक्ख-दारिद्द-किलेस-रोग-जम्म-जरा-मरण-गब्भवास-निवासाइ-दुट्ठ-सावगागाह-भीम-भवोदहि-तरंडग-भूयं इणमो, (१२) सयलागम-मज्झ-वत्तगस्स, मिच्छत्त-दोसावहय-विसिट्ठ-बुद्धीपरिकप्पिय-कुभणिय-अघडमाण-असेस-हेउ-दिट्ठंत-जुत्ती-विद्धंस-णिक्क-पच्चल-पोढस्स पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स, (१३) पंचज्झयणेग-चूला-परिक्खित्तस्स पवर-पवयण-देवयाहिट्ठियस्स, (१४) तिपद-परिच्छिन्नेगालावग-सत्तक्खर-परिमानं, (१५) अनंतगम-पज्जवत्थ-पसाहगं, (१६) सव्व-महामंत-पयर-विज्जाणं परम-बीय-भूयं, (१७) नमो अरहंताणं ति, (१८) पढमज्झयणं अहिज्जेयव्वं, (१९) तद्दियहे य आयंबिलेणं पारेयव्वं। (१) तहेय बीय-दीने अनेगाइ-सय-गुण-संपओववेयं, अनंतर-भणियत्थ-पसाहगं, अनंतरु-त्तेणेव कमेणं दुपय-परिच्छिन्नेगालावग- पंचक्खर-परिमाणं नमो सिद्धाणं ति बीयमज्झयणं अहिज्जेयव्वं ति; (२) तद्दियहे य आयंबिलेण पारेयव्वं, (३) एवं अनंतर-भणिएणेव कमेणं अनंतरुत्तत्थ-पसाहगं ति-पद-परिच्छिन्नेगा-लावग-सत्तक्खर-परिमाणं नमो आयरियाणं ति तइय-मज्झयणं आयंबिलेणं अहिज्जेयव्वं, (४) तहा य अनंतरुत्थ-पसाहगं ति-पय-परिच्छिन्नेगालवगं-सत्तक्खर-परिमाणं नमो उवज्झा-याणं ति चउत्थं अज्झयणं चउत्थ-दिने आयंबिलेण एव, (५) तहेव अनंतर भणियत्थ पसाहगं पंचपय-परिच्छिन्नेगालवग-नव-क्खरपरिमाणं नमो लोए सव्वसाहूणं ति ति पंचमज्झयणं पंचम दिनं आयंबिलेण (६) तहेव तं अत्थानुगामियं एक्कारस-पय-परि-च्छिन्न-तियालावग-तेत्तीस अक्खर-परिमाणं एसो पंचनमोक्कारो सव्व-पाव-प्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं हवइ मंगलं॥ इति चूलं ति छट्ठ-सत्तम-ट्ठम-दिने तेणेव कम-विभागेण आयंबिलेहिं अहिज्जेयव्वं (७) एवमेयं पंचमंगल-महा-सुयक्खंधं सर-वत्तय-रहियं पयक्खर-बिंदु-मत्ता-विसुद्धं गुरु-गुणोववेय-गुरुवइट्ठं कसिणमहिज्जित्ता णं तहा कायव्वं जहा पुव्वानुपुव्वीए पच्छानुपुव्वीए अनानु-पुव्वीए जीहग्गे तरेज्जा। (८) तओ तेणेवानंतरभणिय-तिहि-करण-मुहुत्त-नक्खत्त-जोग-लग्ग-ससी-बल-जंतु-विर-हिओगासे चेइयाल-गाइकमेणं (९) अट्ठम-भत्तेणं समनुजाणाविऊणं गोयमा महया पबंधेण सुपरिफुडं निउणं असंदिद्धं सुत्तत्थं अनेगहा सोऊण अवधारेयव्वं। (१०) एयाए विहीए पंचमंगलस्स णं गोयमा विनओवहाणे कायव्वे। | ||
Sutra Meaning : | हे भगवंत ! किस विधि से पंचमंगल का विनय उपधान करे ? हे गौतम ! आगे हम बताएंगे उस विधि से पंचमंगल का विनय उपधान करना चाहिए। अति प्रशस्त और शोभन तिथि, करण, मुहूर्त्त, नक्षत्र, योग, लग्न, चन्द्रबल हो तब आठ तरह के मद स्थान से मुक्त हो, शंका रहित श्रद्धासंवेग जिसके अति वृद्धि पानेवाले हो, अति तीव्र महान उल्लास पानेवाले, शुभ अध्यवसाय सहित, पूर्ण भक्ति और बहुमान से किसी भी तरह के आलोक या परलोक के फल की ईच्छारहित बनकर लगातार पाँच उपवास के पच्चक्खाण करके जिन मंदिर में जन्तुरहित स्थान में रहकर जिसका मस्तक भक्तिपूर्ण बना है। हर्ष से जिसके शरीर में रोमांच उत्पन्न हुआ है, नयन समान शतपत्रकमल प्रफुल्लित होता है। जिसकी नजर प्रशान्त, सौम्य, स्थिर है। जिसके हृदय सरोवर में संवेग की लहरे उठी है। अति तीव्र, महान, उल्लास पानेवाले कईं, घन – तीव्र आंतरा रहित, अचिंत्य, परम शुभ, परिणाम विशेष से आनन्दित होनेवाले, जीव के वीर्य योग से हर वक्त वृद्धि पानेवाले, हर्षपूर्ण शुद्ध अति निर्मल स्थिर निश्चल अंतःकरण वाले, भूमि पर स्थापन किया हो उस तरह से श्री ऋषभ आदि श्रेष्ठ धर्म तीर्थंकर की प्रतिमा के लिए स्थापन किए नैन और मनवाला उसके लिए एकाग्र बने परिणामवाला आराधक आत्मा शास्त्र के जानकार दृढ़ चारित्रवाले गुण संपत्ति से युक्त गुरु लघुमात्रा सहित शब्द उच्चार करके अनुष्ठान करवाने के अद्वीतिय लक्षवाले गुरु के वचन को बाधा न हो उस तरह जिसके वचन नीकलते हो। विनय आदि सम्मान हर्ष अनुकंपा से प्राप्त हुआ, कईं शोक संताप उद्वेग महाव्याधि का दर्द, घोर दुःख – दारिद्र्य, क्लेश रोग – जन्म, जरा, मरण, गर्भावास आदि समान दुष्ट श्वापद (एक जीव विशेष) और मच्छ से भरपूर भवसागर में नाव समान ऐसे इस समग्र आगम की – शास्त्र की मध्य में व्यवहार करनेवाले, मिथ्यात्व दोष से वध किए गए, विशिष्ट बुद्धि से खुद ने कल्पना किए हुए कुशास्त्र और उस के वचन जिसमें समग्र आशय – दृष्टांत युक्ति से घटीत नहीं होते। इतना ही नहीं लेकिन हेतु, दृष्टांत, युक्ति से कुमतवालों की कल्पीत बातों का विनाश करने के लिए समर्थ हैं। ऐसे पंचमंगल महा श्रुतस्कंधवाले पाँच अध्ययन और एक चुलिकावाले, श्रेष्ठ, प्रवचन देवता से अधिष्ठित, तीन पद युक्त, एक आलापक और सात अक्षर के प्रमाणवाले अनन्त गम – पर्याय अर्थ को बतानेवाले सर्व महामंत्र और श्रेष्ठ विद्या के परम बीज समान ऐसे ‘नमो अरिहंताणं’ इस तरह का पहला अध्ययन वांचनापूर्वक पढ़ना चाहिए। उस दिन यानि पाँच उपवास करने के बाद पहले अध्ययन की वांचना लेने के बाद दूसरे दिन आयंबिल तप से पारणा करना चाहिए। उसी प्रकार दूसरे दिन यानि सातवे दिन कईं अतिशय गुण संपदायुक्त आगे बताए गए अर्थ को साधनेवाले आगे कहे क्रम के मुताबिक दो पदयुक्त एक आलापक, पाँच शब्द के प्रमाणवाले ऐसे ‘नमो सिद्धाणं’ ऐसे दूसरे अध्ययन को पढ़ना चाहिए। उस दिन भी आयंबिल से पच्चक्खाण करना चाहिए। उसी प्रकार पहले बताए हुए क्रम अनुसार पहले कहे अर्थ की साधना करनेवाले तीन पदयुक्त एक आलापक, सात शब्द के प्रमाणवाले ‘नमो आयरियाणं’ ऐसे तीसरे अध्ययन का पठन करना और आयंबिल करना। आगे बताए अर्थ साधनेवाले तीन पदयुक्त एक आलापक और सात शब्द के प्रमाणवाला नमो उवज्झायाणं ऐसे चौथे अध्ययन का पठन करना। आयंबिल करना। उसी प्रकार चार पदयुक्त एक आलापक और नौ अक्षर प्रमाणवाला ‘‘नमो लोए सव्वसाहूणं’’ ऐसे पाँचवे अध्ययन की वाचना लेकर पढ़ना और वो पाँचवे दिन यानि कुल दशवें दिन आयंबिल करना। उसी प्रकार उसके अर्थ को अनुसरण करनेवाले ग्यारह पदयुक्त तीन आलापक और तैंतीस अक्षर प्रमाण वाली ऐसी चुलिका समान ऐसो पंच नमोक्कारो, सव्व पावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवई मंगलं तीन दिन एक एक पद की वाचना ग्रहण करके, छठ्ठे, सातवे, आठवे दिन उसी क्रम से और विभाग से आयंबिल तप करके पठन करना। उसी प्रकार यह पाँच मंगल महा श्रुतस्कंध स्वर, वर्ण, पद सहित, पद अक्षर बिन्दु मात्रा से विशुद्ध बड़े गुणवाले, गुरु ने उपदेश दिए हुए, वाचना दिए हुए ऐसे उसे समग्र ओर से इस तरह पढ़कर तैयार करो कि जिससे पूर्वानुपूर्वी पश्चानुपूर्वी अनानुपूर्वी वो ज़बान के अग्र हिस्से पर अच्छी तरह से याद रह जाए। उसके बाद आगे बताए अनुसार तिथि, करण, मुहूर्त्त, नक्षत्र, योग, लग्न, चन्द्रबल के शुभ समय जन्तुरहित ऐसे चैत्यालय – जिनालय के स्थान में क्रमसर आए हुए, अठ्ठम तप सहित समुद्देश अनुज्ञा विधि करवाके हे गौतम ! बड़े प्रबन्ध आड़म्बर सहित अति स्पष्ट वाचना सूनकर उसे अच्छी तरह से अवधारण करना चाहिए। यह विधि से पंचमंगल के विनय उपधान करने चाहिए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] (1) se bhayavam kayarae vihie pamcha-mamgalassa nam vinaovahanam kayavvam (2) goyama imae vihie pamchamamgalassa nam vinaovahanam kayavvam, tam jaha–supasatthe cheva sohane tihi-karana-muhutta-nakkhatta-joga-lagga-sasibale (3) vippamukka-jayaimayasamkena, samjaya-saddha-samvega-sutivvatara-mahamtullasamta-suhajjha-vasayanugaya-bhatti-bahumana-puvvam ninniyana-duvalasa-bhatta-tthienam, (4) cheiyalaye jamtuvirahiogase, (5) bhatti-bhara-nibbharuddhasiya-sasisaromavali-papphulla-vayana-sayavatta-pasamta-soma-thira-ditthi (6) nava-nava-samvega- samuchchhalamta- samjaya- bahala- ghana- niramtara- achimta- parama- suha- parinama-visesullasiya-sajiva-viriyanusamaya-vivaddhamta-pamoya-suvisuddha-sunimmala-vimala-thira-dadhayaramta karanenam, (7) khitinihiya-janu[na]na si-uttamamga-kara-kamala-maula-sohamjali-pudenam, (8) siri-usabhai-pavara-vara-dhamma-titthayara-padima-bimba-vinivesiya-nayana-manasegaggatagga -yajjhavasaenam (9) samayannu-dadha-charittadi-guna-sampaovaveya-guru-saddatthatthanutthana-karanekka-baddha-lakkha -tavahiya-guruvayana-viniggaya, (10) vinayadi-bahumana-pariosanu-kampovaladdham, (11) anega- soga-samtavuvvevaga- mahavadhiveyana-ghora-dukkha-daridda-kilesa-roga-jamma-jara-marana-gabbhavasa-nivasai-duttha-savagagaha-bhima-bhavodahi-taramdaga-bhuyam inamo, (12) sayalagama-majjha-vattagassa, michchhatta-dosavahaya-visittha-buddhiparikappiya-kubhaniya-aghadamana-asesa-heu-ditthamta-jutti-viddhamsa-nikka-pachchala-podhassa pamchamamgala-mahasuyakkhamdhassa, (13) pamchajjhayanega-chula-parikkhittassa pavara-pavayana-devayahitthiyassa, (14) tipada-parichchhinnegalavaga-sattakkhara-parimanam, (15) anamtagama-pajjavattha-pasahagam, (16) savva-mahamamta-payara-vijjanam parama-biya-bhuyam, (17) namo arahamtanam ti, (18) padhamajjhayanam ahijjeyavvam, (19) taddiyahe ya ayambilenam pareyavvam. (1) taheya biya-dine anegai-saya-guna-sampaovaveyam, anamtara-bhaniyattha-pasahagam, anamtaru-tteneva kamenam dupaya-parichchhinnegalavaga- Pamchakkhara-parimanam namo siddhanam ti biyamajjhayanam ahijjeyavvam ti; (2) taddiyahe ya ayambilena pareyavvam, (3) evam anamtara-bhanieneva kamenam anamtaruttattha-pasahagam ti-pada-parichchhinnega-lavaga-sattakkhara-parimanam namo ayariyanam ti taiya-majjhayanam ayambilenam ahijjeyavvam, (4) taha ya anamtaruttha-pasahagam ti-paya-parichchhinnegalavagam-sattakkhara-parimanam namo uvajjha-yanam ti chauttham ajjhayanam chauttha-dine ayambilena eva, (5) taheva anamtara bhaniyattha pasahagam pamchapaya-parichchhinnegalavaga-nava-kkharaparimanam namo loe savvasahunam ti ti pamchamajjhayanam pamchama dinam ayambilena (6) taheva tam atthanugamiyam ekkarasa-paya-pari-chchhinna-tiyalavaga-tettisa akkhara-parimanam Eso pamchanamokkaro savva-pava-ppanasano. Mamgalanam cha savvesim padhamam havai mamgalam. Iti chulam ti chhattha-sattama-tthama-dine teneva kama-vibhagena ayambilehim ahijjeyavvam (7) evameyam pamchamamgala-maha-suyakkhamdham sara-vattaya-rahiyam payakkhara-bimdu-matta-visuddham guru-gunovaveya-guruvaittham kasinamahijjitta nam taha kayavvam jaha puvvanupuvvie pachchhanupuvvie ananu-puvvie jihagge tarejja. (8) tao tenevanamtarabhaniya-tihi-karana-muhutta-nakkhatta-joga-lagga-sasi-bala-jamtu-vira-hiogase cheiyala-gaikamenam (9) atthama-bhattenam samanujanaviunam goyama mahaya pabamdhena supariphudam niunam asamdiddham suttattham anegaha souna avadhareyavvam. (10) eyae vihie pamchamamgalassa nam goyama vinaovahane kayavve. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He bhagavamta ! Kisa vidhi se pamchamamgala ka vinaya upadhana kare\? He gautama ! Age hama bataemge usa vidhi se pamchamamgala ka vinaya upadhana karana chahie. Ati prashasta aura shobhana tithi, karana, muhurtta, nakshatra, yoga, lagna, chandrabala ho taba atha taraha ke mada sthana se mukta ho, shamka rahita shraddhasamvega jisake ati vriddhi panevale ho, ati tivra mahana ullasa panevale, shubha adhyavasaya sahita, purna bhakti aura bahumana se kisi bhi taraha ke aloka ya paraloka ke phala ki ichchharahita banakara lagatara pamcha upavasa ke pachchakkhana karake jina mamdira mem janturahita sthana mem rahakara jisaka mastaka bhaktipurna bana hai. Harsha se jisake sharira mem romamcha utpanna hua hai, nayana samana shatapatrakamala praphullita hota hai. Jisaki najara prashanta, saumya, sthira hai. Jisake hridaya sarovara mem samvega ki lahare uthi hai. Ati tivra, mahana, ullasa panevale kaim, ghana – tivra amtara rahita, achimtya, parama shubha, parinama vishesha se anandita honevale, jiva ke virya yoga se hara vakta vriddhi panevale, harshapurna shuddha ati nirmala sthira nishchala amtahkarana vale, bhumi para sthapana kiya ho usa taraha se shri rishabha adi shreshtha dharma tirthamkara ki pratima ke lie sthapana kie naina aura manavala usake lie ekagra bane parinamavala aradhaka atma shastra ke janakara drirha charitravale guna sampatti se yukta guru laghumatra sahita shabda uchchara karake anushthana karavane ke advitiya lakshavale guru ke vachana ko badha na ho usa taraha jisake vachana nikalate ho. Vinaya adi sammana harsha anukampa se prapta hua, kaim shoka samtapa udvega mahavyadhi ka darda, ghora duhkha – daridrya, klesha roga – janma, jara, marana, garbhavasa adi samana dushta shvapada (eka jiva vishesha) aura machchha se bharapura bhavasagara mem nava samana aise isa samagra agama ki – shastra ki madhya mem vyavahara karanevale, mithyatva dosha se vadha kie gae, vishishta buddhi se khuda ne kalpana kie hue kushastra aura usa ke vachana jisamem samagra ashaya – drishtamta yukti se ghatita nahim hote. Itana hi nahim lekina hetu, drishtamta, yukti se kumatavalom ki kalpita batom ka vinasha karane ke lie samartha haim. Aise pamchamamgala maha shrutaskamdhavale pamcha adhyayana aura eka chulikavale, shreshtha, pravachana devata se adhishthita, tina pada yukta, eka alapaka aura sata akshara ke pramanavale ananta gama – paryaya artha ko batanevale sarva mahamamtra aura shreshtha vidya ke parama bija samana aise ‘namo arihamtanam’ isa taraha ka pahala adhyayana vamchanapurvaka parhana chahie. Usa dina yani pamcha upavasa karane ke bada pahale adhyayana ki vamchana lene ke bada dusare dina ayambila tapa se parana karana chahie. Usi prakara dusare dina yani satave dina kaim atishaya guna sampadayukta age batae gae artha ko sadhanevale age kahe krama ke mutabika do padayukta eka alapaka, pamcha shabda ke pramanavale aise ‘namo siddhanam’ aise dusare adhyayana ko parhana chahie. Usa dina bhi ayambila se pachchakkhana karana chahie. Usi prakara pahale batae hue krama anusara pahale kahe artha ki sadhana karanevale tina padayukta eka alapaka, sata shabda ke pramanavale ‘namo ayariyanam’ aise tisare adhyayana ka pathana karana aura ayambila karana. Age batae artha sadhanevale tina padayukta eka alapaka aura sata shabda ke pramanavala namo uvajjhayanam aise chauthe adhyayana ka pathana karana. Ayambila karana. Usi prakara chara padayukta eka alapaka aura nau akshara pramanavala ‘‘namo loe savvasahunam’’ aise pamchave adhyayana ki vachana lekara parhana aura vo pamchave dina yani kula dashavem dina ayambila karana. Usi prakara usake artha ko anusarana karanevale gyaraha padayukta tina alapaka aura taimtisa akshara pramana vali aisi chulika samana aiso pamcha namokkaro, savva pavappanasano. Mamgalanam cha savvesim, padhamam havai mamgalam tina dina eka eka pada ki vachana grahana karake, chhaththe, satave, athave dina usi krama se aura vibhaga se ayambila tapa karake pathana karana. Usi prakara yaha pamcha mamgala maha shrutaskamdha svara, varna, pada sahita, pada akshara bindu matra se vishuddha bare gunavale, guru ne upadesha die hue, vachana die hue aise use samagra ora se isa taraha parhakara taiyara karo ki jisase purvanupurvi pashchanupurvi ananupurvi vo zabana ke agra hisse para achchhi taraha se yada raha jae. Usake bada age batae anusara tithi, karana, muhurtta, nakshatra, yoga, lagna, chandrabala ke shubha samaya janturahita aise chaityalaya – jinalaya ke sthana mem kramasara ae hue, aththama tapa sahita samuddesha anujnya vidhi karavake he gautama ! Bare prabandha arambara sahita ati spashta vachana sunakara use achchhi taraha se avadharana karana chahie. Yaha vidhi se pamchamamgala ke vinaya upadhana karane chahie. |