Sutra Navigation: Dashashrutskandha ( दशाश्रुतस्कंध सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1014303 | ||
Scripture Name( English ): | Dashashrutskandha | Translated Scripture Name : | दशाश्रुतस्कंध सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
दशा १0 आयति स्थान |
Translated Chapter : |
दशा १0 आयति स्थान |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 103 | Category : | Chheda-04 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] अज्जोत्ति! समणे भगवं महावीरे ते बहवे निग्गंथा निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वदासि–सेणियं रायं चेल्लणं देविं पासित्ता इमेतारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुपज्जित्था–अहो णं सेणिए राया महिड्ढीए महज्जुइए महब्बले महायसे महेसक्खे, जे णं ण्हाते कयबलिकम्मे कयकोउय मंगल पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिते चेल्लणादेवीए सद्धिं ओरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरति। न मे दिट्ठा देवा देवलोगंसि सक्खं खलु अयं देवे। जति इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं वयमवि आगमेस्साइं इमाइं एयारूवाइं ओरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरामो– सेत्तं साहू। अहो णं चेल्लणा देवी महिड्ढिया महज्जुइया महब्बला महायसा महेसक्खा सुन्दरा, जा णं ण्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय मंगल पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिता सेणिएण रन्ना सद्धिं ओरालाइं मानुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरति। न मे दिट्ठा देवीओ देवलोगम्मि, सक्खं खलु इयं देवी। जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं वयमविं आगमिस्साइं इमाइं एयारूवाइं ओरालाइं मानुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणीओ विहरामो–सेत्तं साहू। से नूनं अज्जो! अत्थे समट्ठे? हंता अत्थि। एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। जस्स णं धम्मस्स निग्गंथे सिक्खाए उवट्ठिए विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठे विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाए यावि विहरेज्जा। से य परक्कमेज्जा। से य परक्कममाणे पासेज्जा–से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया, भोगपुत्ता महामाउया, एतेसि णं अन्नतरस्स अतिजायमाणस्स वा निज्जायमाणस्स वा पुरओ महं दासी दास किंकर कम्म कर पुरिस पायत्तपरिक्खित्तं छत्तं भिंगारं गहाय निगच्छति। तदनंतरं च णं पुरतो महं आसा आसवरा उभओ तेसिं नागा नागवरा पिट्ठओ रहा रहवरा रहसंगेल्लि। से णं उद्धरियसेयच्छत्ते अब्भुग्गतभिंगारे पग्गहियतालियंटे पवियन्नसेयचामरवाल-वीयणीए अभिक्खणं अतिजातिय-निज्जातिय-सप्पभासे पुव्वावरं च णं ण्हाते कयबलिकम्मे कयकोउय मंगल पायच्छित्ते सिरसा ण्हाए कंठेमालकडे आविद्धमणि सुवण्णे कप्पियमाल-मउलिमउडबद्धसरीरे आसत्तोसत्तवग्घारित सोणिसुत्त मल्लदामकलावे अहत वत्थ परिहिए-चंदनुक्खित्तगातसरीरे महतिमहालियाए कूडागारसालाए महतिमहालयंसि सयणिज्जंसि दुहतो उन्नते मज्झे नतगंभीरे वण्णओ सव्वरातिनिएणं जोतिणा ज्झियायमाणेणं इत्थीगुम्मपरिवुडे महताहत नट्ट गीत वाइय तंती तल ताल तुडिय घण मुइंग मद्दल पडुप्पवाइयरवेणं ओरालाइं मानुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरति। तस्स णं एगमवि आणवेमाणस्स जाव चत्तारि पंच अवुत्ता चेव अब्भुट्ठेंति। भण सामी! किं करेमो? किं आहरामो? किं उवनेमो? किं आचेट्ठामो? किं भे हियइच्छितं? किं भे आसगस्स सदति? जं पासित्ता निग्गंथे निदानं करेति–जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमिस्साइं इमाइं एयारूवाइं ओरालाइं मानुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरामि–सेत्तं साहू। एवं खलु समणाउसो! निग्गंथे निदानं किच्चा तस्स ठाणस्स अनालोइयप्पडिक्कंते कालमासे कालं किच्चा अन्नतरेसु देवलोगेसु देवत्ताए उववत्तारो भवति – महिड्ढिएसु जाव चिरट्ठितीएसु।से णं तत्थ देवे भवति महिड्ढिए जाव भुंजमाणे विहरति। से णं ताओ देवलोगातो आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया, भोगपुत्ता महामाउया, एतेसि णं अण्ण-तरंसि कुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाति। से णं तत्थ दारए भवति– सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे। तए णं से दारए उमुक्कबालभावे विन्नय-परिणयमित्ते जोव्वणगमणुपत्ते सयमेव पेतियं दायं पडिवज्जति। तस्स णं अतिजायमाणस्स वा निज्जायमाणस्स वा पुरओ महं दासी दास किंकर कम्मकर पुरिस पायत्तपरिक्खित्तं छत्तं भिंगारं गहाय निगच्छति जाव किं भे आसगस्स सदति? तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजातस्स तहारूवे समणे वा माहणे वा उभओ कालं केवलिपन्नत्तं धम्ममाइक्खेज्जा? हंता आइक्खेज्जा। से णं भंते! पडिसुणेज्जा? नो इणट्ठे समत्थे, अभविए णं से तस्स धम्मस्स सवणयाए। से य भवइ–महिच्छे महारंभे महापरिग्गहे अहम्मिए जाव आगमिस्साणं दुल्लहबोहिए यावि भवइ। एवं खलु समणाउसो! तस्स निदानस्स इमेतारूवे पावए फलविवागे जं णो संचाएतिं केवलिपन्नत्तं धम्मं पडिसुणेत्तए। | ||
Sutra Meaning : | श्रमण भगवान महावीर ने बहुत से साधु – साध्वीओं को कहा – श्रेणिक राजा और चेल्लणा रानी को देखकर क्या – यावत् इस प्रकार के अध्यवसाय आपको उत्पन्न हुए यावत् क्या यह बात सही है ? हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है – यह निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है, श्रेष्ठ है, सिद्धि – मुक्ति, निर्याण और निर्वाण का यही मार्ग है, यही सत्य है, असंदिग्ध है, सर्व दुःखों से मुक्ति दिलाने का मार्ग है। इस सर्वज्ञ प्रणित धर्म के आराधक – सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होकर निर्वाण प्राप्त करके सब दुःखों का अंत करते हैं। जो कोई निर्ग्रन्थ केवलि प्ररूपित धर्म की आराधना के लिए उपस्थित होकर शीत – गर्मी आदि सब प्रकार के परिषह सहन करते हुए यदि कामवासना का प्रबल उदय होवे तो उद्दिप्त कामवासना के शमन का प्रयत्न करे। उस समय यदि कोई विशुद्ध जाति, कुलयुक्त किसी उग्रवंशीय या भोगवंशीय राजकुमार को आते देखे, छत्र, चामर, दास, दासी, नौकर आदि के वृन्द से वह राजकुमार परिवेष्टित हो, उसके आगे आगे उत्तम अश्व, दोनों तरफ हाथी, पीछे पीछे सुसज्जित रथ चल रहा हो। कोई सेवक छत्र धरे हुए, कोई झारी लिए हुए, कोई विंझणा तो कोई चामर लिए हुए हो, इस प्रकार वह राजकुमार बारबार उनके प्रासाद में आता – जाता हो, देदीप्यमान कांतिवाला वह राजकुमार स्नान यावत् सर्व अलंकारों से विभूषित होकर पूर्ण रात्रि दीपज्योति से झगझगायमान विशाल कुटागार शाला के सर्वोच्च सिंहासन पर आरूढ़ हुआ हो यावत् स्त्रीवृन्द से घिरा हुआ, कुशल पुरुषों के नृत्य देखता हुआ, विविध वाजिंत्र सूनता हुआ, मानुषिक कामभोगों का सेवन करके विचरता हो, कोई एक सेवक को बुलाए तो चार, पाँच सेवक उपस्थित हो जाते हो, उनकी सेवा के लिए तत्पर हो। यह सब देखकर यदि कोई निर्ग्रन्थ ऐसा निदान करे कि मेरे तप, नियम, ब्रह्मचर्य का अगर कोई फल हो तो मैं भी उस राजकुमार की प्रकार मानुषिक भोगों का सेवन करूँ। हे आयुष्मान श्रमणों ! अगर वह निर्ग्रन्थ निदान कर के उस निदानशल्य की आलोचना प्रतिक्रमण किए बिना मरकर देवलोक में महती ऋद्धिवाला देव भी हो जाए, देवलोक से च्यवन कर के शुद्ध जातिवंश के उग्र या भोगकुलमें पुत्ररूप से जन्म भी ले, सुकुमाल हाथ – पाँव यावत् सुन्दर रूपवाला भी हो जाए, यावत् यौवन वय में पूर्व वर्णित कामभोगों की प्राप्ति कर ले – यह सब हो सकता है। किन्तु – जब उसको कोई केवलि प्ररूपित धर्म का उपदेश देता है, तब वह उपदेश को प्राप्त करता है, लेकिन श्रद्धापूर्वक श्रवण नहीं करता, क्योंकि वह धर्मश्रवण के लिए अयोग्य है। वह अनंत ईच्छावाला, महारंभी, महापरिग्रही, अधार्मिक यावत् दक्षिण दिशावर्ती नरक में नैरायिक होता है और भविष्य में वह दुर्लभबोधि होता है। – हे आयुष्मान् श्रमणों ! यह पूर्वोक्त निदानशल्य का ही विपाक है। इसीलिए वह धर्म श्रवण नहीं करता। (यह हुआ पहला ‘निदान’) | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] ajjotti! Samane bhagavam mahavire te bahave niggamtha niggamthio ya amamtetta evam vadasi–seniyam rayam chellanam devim pasitta imetaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samupajjittha–aho nam senie raya mahiddhie mahajjuie mahabbale mahayase mahesakkhe, je nam nhate kayabalikamme kayakouya mamgala payachchhitte savvalamkaravibhusite chellanadevie saddhim oralaim manussagaim bhogabhogaim bhumjamane viharati. Na me dittha deva devalogamsi sakkham khalu ayam deve. Jati imassa suchariyassa tava niyama bambhacheravasassa kallane phalavittivisese atthi, tam vayamavi agamessaim imaim eyaruvaim oralaim manussagaim bhogabhogaim bhumjamana viharamo– settam sahu. Aho nam chellana devi mahiddhiya mahajjuiya mahabbala mahayasa mahesakkha sundara, ja nam nhaya kayabalikamma kayakouya mamgala payachchhitta savvalamkaravibhusita seniena ranna saddhim oralaim manussagaim bhogabhogaim bhumjamani viharati. Na me dittha devio devalogammi, sakkham khalu iyam devi. Jai imassa suchariyassa tava niyama bambhacheravasassa kallane phalavittivisese atthi, tam vayamavim agamissaim imaim eyaruvaim oralaim manussagaim bhogabhogaim bhumjamanio viharamo–settam sahu. Se nunam ajjo! Atthe samatthe? Hamta atthi. Evam khalu samanauso! Mae dhamme pannatte–inameva niggamthe pavayane sachche anuttare padipunne kevale samsuddhe neaue sallagattane siddhimagge muttimagge nijjanamagge nivvanamagge avitahamavisamdhi savvadukkhappahinamagge. Ittham thiya jiva sijjhamti bujjhamti muchchamti parinivvayamti savvadukkhanamamtam karemti. Jassa nam dhammassa niggamthe sikkhae uvatthie viharamane pura digimchhae pura pivasae pura vatatavehim putthe viruvaruvehi ya parisahovasaggehim udinnakamajae yavi viharejja. Se ya parakkamejja. Se ya parakkamamane pasejja–se je ime bhavamti uggaputta mahamauya, bhogaputta mahamauya, etesi nam annatarassa atijayamanassa va nijjayamanassa va purao maham dasi dasa kimkara kamma kara purisa payattaparikkhittam chhattam bhimgaram gahaya nigachchhati. Tadanamtaram cha nam purato maham asa asavara ubhao tesim naga nagavara pitthao raha rahavara rahasamgelli. Se nam uddhariyaseyachchhatte abbhuggatabhimgare paggahiyataliyamte paviyannaseyachamaravala-viyanie abhikkhanam atijatiya-nijjatiya-sappabhase puvvavaram cha nam nhate kayabalikamme kayakouya mamgala payachchhitte sirasa nhae kamthemalakade aviddhamani suvanne kappiyamala-maulimaudabaddhasarire asattosattavaggharita sonisutta malladamakalave ahata vattha parihie-chamdanukkhittagatasarire mahatimahaliyae kudagarasalae mahatimahalayamsi sayanijjamsi duhato unnate majjhe natagambhire vannao savvaratinienam jotina jjhiyayamanenam itthigummaparivude mahatahata natta gita vaiya tamti tala tala tudiya ghana muimga maddala paduppavaiyaravenam oralaim manussagaim bhogabhogaim bhumjamane viharati. Tassa nam egamavi anavemanassa java chattari pamcha avutta cheva abbhutthemti. Bhana sami! Kim karemo? Kim aharamo? Kim uvanemo? Kim achetthamo? Kim bhe hiyaichchhitam? Kim bhe asagassa sadati? Jam pasitta niggamthe nidanam kareti–jai imassa suchariyassa tava niyama bambhacheravasassa kallane phalavittivisese atthi, tam ahamavi agamissaim imaim eyaruvaim oralaim manussagaim bhogabhogaim bhumjamane viharami–settam sahu. Evam khalu samanauso! Niggamthe nidanam kichcha tassa thanassa analoiyappadikkamte kalamase kalam kichcha annataresu devalogesu devattae uvavattaro bhavati – mahiddhiesu java chiratthitiesU.Se nam tattha deve bhavati mahiddhie java bhumjamane viharati. Se nam tao devalogato aukkhaenam bhavakkhaenam thitikkhaenam anamtaram chayam chaitta se je ime bhavamti uggaputta mahamauya, bhogaputta mahamauya, etesi nam anna-taramsi kulamsi puttattae pachchayati. Se nam tattha darae bhavati– sukumalapanipae java suruve. Tae nam se darae umukkabalabhave vinnaya-parinayamitte jovvanagamanupatte sayameva petiyam dayam padivajjati. Tassa nam atijayamanassa va nijjayamanassa va purao maham dasi dasa kimkara kammakara purisa payattaparikkhittam chhattam bhimgaram gahaya nigachchhati java kim bhe asagassa sadati? Tassa nam tahappagarassa purisajatassa taharuve samane va mahane va ubhao kalam kevalipannattam dhammamaikkhejja? Hamta aikkhejja. Se nam bhamte! Padisunejja? No inatthe samatthe, abhavie nam se tassa dhammassa savanayae. Se ya bhavai–mahichchhe maharambhe mahapariggahe ahammie java agamissanam dullahabohie yavi bhavai. Evam khalu samanauso! Tassa nidanassa imetaruve pavae phalavivage jam no samchaetim kevalipannattam dhammam padisunettae. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Shramana bhagavana mahavira ne bahuta se sadhu – sadhviom ko kaha – shrenika raja aura chellana rani ko dekhakara kya – yavat isa prakara ke adhyavasaya apako utpanna hue yavat kya yaha bata sahi hai\? He ayushman shramanom ! Maimne dharma ka nirupana kiya hai – yaha nirgrantha pravachana satya hai, shreshtha hai, siddhi – mukti, niryana aura nirvana ka yahi marga hai, yahi satya hai, asamdigdha hai, sarva duhkhom se mukti dilane ka marga hai. Isa sarvajnya pranita dharma ke aradhaka – siddha, buddha, mukta hokara nirvana prapta karake saba duhkhom ka amta karate haim. Jo koi nirgrantha kevali prarupita dharma ki aradhana ke lie upasthita hokara shita – garmi adi saba prakara ke parishaha sahana karate hue yadi kamavasana ka prabala udaya hove to uddipta kamavasana ke shamana ka prayatna kare. Usa samaya yadi koi vishuddha jati, kulayukta kisi ugravamshiya ya bhogavamshiya rajakumara ko ate dekhe, chhatra, chamara, dasa, dasi, naukara adi ke vrinda se vaha rajakumara pariveshtita ho, usake age age uttama ashva, donom tarapha hathi, pichhe pichhe susajjita ratha chala raha ho. Koi sevaka chhatra dhare hue, koi jhari lie hue, koi vimjhana to koi chamara lie hue ho, isa prakara vaha rajakumara barabara unake prasada mem ata – jata ho, dedipyamana kamtivala vaha rajakumara snana yavat sarva alamkarom se vibhushita hokara purna ratri dipajyoti se jhagajhagayamana vishala kutagara shala ke sarvochcha simhasana para arurha hua ho yavat strivrinda se ghira hua, kushala purushom ke nritya dekhata hua, vividha vajimtra sunata hua, manushika kamabhogom ka sevana karake vicharata ho, koi eka sevaka ko bulae to chara, pamcha sevaka upasthita ho jate ho, unaki seva ke lie tatpara ho. Yaha saba dekhakara yadi koi nirgrantha aisa nidana kare ki mere tapa, niyama, brahmacharya ka agara koi phala ho to maim bhi usa rajakumara ki prakara manushika bhogom ka sevana karum. He ayushmana shramanom ! Agara vaha nirgrantha nidana kara ke usa nidanashalya ki alochana pratikramana kie bina marakara devaloka mem mahati riddhivala deva bhi ho jae, devaloka se chyavana kara ke shuddha jativamsha ke ugra ya bhogakulamem putrarupa se janma bhi le, sukumala hatha – pamva yavat sundara rupavala bhi ho jae, yavat yauvana vaya mem purva varnita kamabhogom ki prapti kara le – yaha saba ho sakata hai. Kintu – jaba usako koi kevali prarupita dharma ka upadesha deta hai, taba vaha upadesha ko prapta karata hai, lekina shraddhapurvaka shravana nahim karata, kyomki vaha dharmashravana ke lie ayogya hai. Vaha anamta ichchhavala, maharambhi, mahaparigrahi, adharmika yavat dakshina dishavarti naraka mem nairayika hota hai aura bhavishya mem vaha durlabhabodhi hota hai. – he ayushman shramanom ! Yaha purvokta nidanashalya ka hi vipaka hai. Isilie vaha dharma shravana nahim karata. (yaha hua pahala ‘nidana’) |