कल्प के छ प्रस्तार बताए हैं। यानि साध्वाचार के प्रायश्चित्त के छ विशेष प्रकार बताए हैं। प्राणातिपात –
मृषावाद – अदत्तादान – ब्रह्मचर्यभंग – पुरुष न होना या दास या दासीपुत्र होना – इन छ में से कोई आक्षेप करे – जब किसी एक साधु – साध्वी पर ऐसा आरोप लगाए तब पहली व्यक्ति को पूछा जाए कि तुमने इस दोष का सेवन किया है यदि वो कहे कि मैंने वो नहीं किया तो आरोप लगानेवाले को कहा जाए कि तुम्हारी बात का सबूत दो। यदि आरोप लगानेवाला सबूत दे तो दोष का सेवन करनेवाला प्रायश्चित्त का भागी बने, यदि सबूत न दे सके तो आरोप लगाने वाला प्रायश्चित्त का भागी बने।
Kalpa ke chha prastara batae haim. Yani sadhvachara ke prayashchitta ke chha vishesha prakara batae haim. Pranatipata –
Mrishavada – adattadana – brahmacharyabhamga – purusha na hona ya dasa ya dasiputra hona – ina chha mem se koi akshepa kare – jaba kisi eka sadhu – sadhvi para aisa aropa lagae taba pahali vyakti ko puchha jae ki tumane isa dosha ka sevana kiya hai yadi vo kahe ki maimne vo nahim kiya to aropa laganevale ko kaha jae ki tumhari bata ka sabuta do. Yadi aropa laganevala sabuta de to dosha ka sevana karanevala prayashchitta ka bhagi bane, yadi sabuta na de sake to aropa lagane vala prayashchitta ka bhagi bane.