Sutra Navigation: Jambudwippragnapati ( जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1007644 | ||
Scripture Name( English ): | Jambudwippragnapati | Translated Scripture Name : | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
वक्षस्कार २ काळ |
Translated Chapter : |
वक्षस्कार २ काळ |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 44 | Category : | Upang-07 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए संवच्छरं साहियं चीवरधारी होत्था, तेण परं अचेलए। जप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, तप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए निच्चं वोसट्ठकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा पडिलोमा वा अनुलोमा वा। तत्थ पडिलोमा–वेत्तेण वा तयाए वा छियाए वा लयाए वा कसेण वा काए आउट्टेज्जा, अनुलोमा–वंदेज्ज वा नमंसेज्ज वा सक्कारेज्ज वा सम्मानेज्ज वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्ज वा ते सव्वे सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ। तए णं से भगवं समणे जाए ईरियासमिए भासासमिए एसणासमिए आयाणभंडमत्त- निक्खेवणासमिए उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-पारिट्ठावाणियासमिए मनसमिए वइसमिए कायसमिए मनगुत्ते वइगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिंदिए गुत्त बंभयारी अकोहे अमाने अमाए अलोहे संते पसंते उवसंते परिनिव्वुडे छिन्नसोए निरुवलेवे संखमिव निरंजने, जच्चकनगमिव जायरूवे, आदरिसपलिभागे इव पागडभावे, कुम्मो इव गुत्तिंदिए, पुक्खरपत्तमिव निरुवलेवे, गगनमिव निरालंबने, अनिले इव निरालए, चंदो इव सोमदंसणे, सूरो विव तेयस्सी, विहगो विव अपडिबद्धगामी, सागरो विव गंभीरे, मंदरो विव अकंपे, पुढवी विव सव्वफासविसहे, जीवो विव अप्पडिहयगती। नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे। से पडिबंधे चउव्विहे भवति, तं जहा–दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ। दव्वओ–इह खलु माया मे पिया मे भाया मे भगिनी मे भज्जा मे पुत्ता मे धूया मे नत्ता मे सुण्हा मे सही मे सयण संगंथसंथुया मे हिरण्णं मे सुवण्णं मे धनं मे धन्नं मे कंसं मे दूसं मे विपुलधन-कनग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्त रयण-संतसार-सावतेयं मे उवगरणं मे। अहवा समासओ सच्चित्ते वा अचित्ते वा मीसए वा दव्वजाए सेवं तस्स ण भवइ। खेत्तओ गामे वा णगरे वा अरण्णे वा खेत्ते वा खले वा गेहे वा अंगने वा एवं तस्स ण भवइ। कालओ–थोवे वा लवे वा मुहुत्ते वा अहोरत्ते वा पक्खे वा मासे वा उऊ वा अयणे वा संवच्छरे वा अन्नयरे वा दीहकालपडिबंधे एवं तस्स ण भवइ। भावओ–कोहे वा माने वा मायाए वा लोहे वा भए वा हासे वा एवं तस्स न भवइ। से णं भगवं वासावासवज्जं हेमंत-गिम्हासु गामे एगराइए, नगरे पंचराइए, ववगयहास-सोग-अरइ-भयपरित्तासे निम्ममे निरहंकारे लहुभूए अगंथे वासीतच्छणे अदुट्ठे, चंदनानुलेवने अरत्ते, लेट्ठुंमि कंचनंमि य समे, इहपरलोए य अपडिबद्धे, जीवियमरणे निरवकंखे संसारपारगामी कम्म-संगनिग्घायणट्ठाए अब्भुट्ठिए विहरइ। तस्स णं भगवंतस्स एतेणं विहारेणं विहरमाणस्स एगे वाससहस्से विइक्कंते समाणे पुरिमतालस्स नगरस्स बहिया सगडमुहंसि उज्जाणंसि नग्गोहवरपायवस्स अहे झाणंतरियाए वट्टमाणस्स फग्गुणबहुलस्स इक्कासीए पुव्वण्हकालसमयंसि अट्ठमेणं भत्तेणं अपानएणं उत्तरासाढानक्खत्तेणं जोगमुवागएणं अनुत्तरेणं नाणेणं अनुत्तरेणं दंसणेणं अनुत्तरेणं चरित्तेणं अनुत्तरेणं तवेणं बलेणं वीरिएणं आलएणं विहारेणं भावणाए खंतीए गुत्तीए मुत्तीए तुट्ठीए अज्जवेणं मद्दवेणं लाघवेणं सुचरियसोवचियफलनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स अनंते अनुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने, जिने जाए केवली सव्वन्नु सव्वदरिसी सनेरइयतिरियनरामरस्स लोगस्स पज्जवे जाणइ पासइ, तं जहा– आगइं गइं ठिइं उववायं भुत्तं कडं पडिसेवियं आवीकम्मं रहोकम्मं तं तं कालं मनवइकाइए जोगे एवमादी जीवानवि सव्वभावे अजीवानवि सव्वभावे मोक्खमग्गस्स विसुद्धतराए भावे जाणमाणे पासमाणे, एस खलु मोक्खमग्गे मम अन्नेसिं च जीवाणं हियसुहनिस्सेसकरे सव्वदुक्ख विमोक्खणे परमसुहसमानने भविस्सइ। तते णं से भगवं समणाणं निग्गंथाण य णिग्गंथीण य पंच महव्वयाइं सभावणगाइं छच्च जीवनिकाए धम्मे देस-माने विहरति, तं जहा–पुढविकाइए भावनागमेणं पंच महव्वयाइं सभावणगाइं भाणियव्वाइं। उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स चउरासीतिं गणहरा होत्था। उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स उसभसेनपामोक्खाओ चुलसीइं समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया होत्था। उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स बंभी-सुंदरीपामोक्खाओ तिन्नि अज्जियासयसाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपया होत्था। उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स सेज्जंसपामोक्खाओ तिन्नि समणोवासगसयसाहस्सीओ पंच य साहस्सीओ उक्कोसिया समणोवासगसंपया होत्था। उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स सुभद्दापामोक्खाओ पंच समणोवासियासयसाहस्सीओ चउपन्नं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासियासंपया होत्था। उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स अजिणाणं जिणसंकासाणं सव्वक्खरसन्निवाईणं जिनो विव अवितहं वाकरेमाणाणं चत्तारि चउद्दसपुव्वीसहस्सा अद्धट्ठमा य सया उक्कोसिया चउदसपुव्वी-संपया होत्था। उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स नव ओहिनानिसहस्सा उक्कोसिया ओहिनाणिसंपया होत्था। उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स–वीसं जिनसहस्सा, वीसं वेउव्वियसहस्सा छच्च सया उक्कोसिया, बारस विउलमईसहस्सा छच्च सया पन्नासा, बारस वाईसहस्सा छच्च सया पन्नासा। उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स गइकल्लाणाणं ठिइकल्लाणाणं आगमेसिभद्दाणं बावीसं अनुत्तरोववाइयाणं सहस्सा नव य सया। उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स वीसं समणसहस्सा सिद्धा, चत्तालीसं अज्जियासहस्सा सिद्धा– सट्ठि अंतेवासीसहस्सा सिद्धा। अरहओ णं उसभस्स बहवे अंतेवासी अनगारा भगवंतो अप्पेगइया मासपरियाया एवं जहा ओववाइए सच्चेव अनगारवण्णओ जाव उड्ढं जाणू अहोसिरा झाणकोट्ठोवगया संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। अरहओ णं उसभस्स दुविहा अंतकरभूमी होत्था, तं जहा–जुगंतकरभूमी य परियायंतकर-भूमी य। जुगंतकरभूमी जाव असंखेज्जाइं पुरिसजुगाइं, परियायंतकरभूमी अंतोमुहुत्तपरियाए अंतमकासी। | ||
Sutra Meaning : | कौशलिक अर्हत् ऋषभ कुछ अधिक एक वर्ष पर्यन्त वस्त्रधारी रहे, तत्पश्चात् निर्वस्त्र। जब से वे प्रव्रजित हुए, वे कायिक परिकर्म रहित, दैहिक ममता से अतीत, देवकृत् यावत् जो उपसर्ग आते, उन्हें वे सम्यक् भाव से सहते, प्रतिकूल अथवा अनुकूल परिषह को भी अनासक्त भाव से सहते, क्षमाशील रहते, अविचल रहते। भगवान् ऐसे उत्तम श्रमण थे कि वे गमन, हलन – चलन आदि क्रिया यावत् मल – मूत्र, खंखार, नाक आदि का मल त्यागना – इन पाँच समितियों से युक्त थे। वे मनसमित, वाक्समित तथा कायसमित थे। वे मनोगुप्त, यावत् गुप्त ब्रह्मचारी, अक्रोध यावत् अलोभ, प्रशांत, उपशांत, परिनिर्वृत, छिन्न – स्रोत, निरुपलेप, कांसे के पात्र जैसे आसक्ति रहित, शंखवत् निरंजन, राग आदि की रंजकता से शून्य, जात्य विशोधित शुद्ध स्वर्ण के समान, जातरूप, दर्पणगत प्रतिबिम्ब की ज्यों प्रकट भाव – अनिगूहिताभिप्राय, प्रवंचना, छलना व कपट रहित शुद्ध भावयुक्त, कछुए की तरह गुप्तेन्द्रिय, कमल – पत्र के समान निर्लेप, आकाश के सदृश निरालम्ब, वायु की तरह निरालय, चन्द्र के सदृश सौम्य – दर्शन, सूर्य के सदृश तेजस्वी, पक्षी की ज्यों अप्रतिबद्धगामी, समुद्र के समान गंभीर मंदराचल की ज्यों अकंप, सुस्थिर, पृथ्वी के समान सर्व स्पर्शों को समभाव से सहने में समर्थ, जीव के समान अप्रतिहत थे। उन भगवान् ऋषभ के किसी भी प्रकार के प्रतिबन्ध नहीं थे। प्रतिबन्ध चार प्रकार का है – द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से तथा भाव से। द्रव्य से जैसे – ये मेरे माता, पिता, भाई, बहिन यावत् चिरपरिचित जन हैं, ये मेरे चाँदी, सोना, उपकरण हैं, अथवा अन्य प्रकार से संक्षेप में जैसे ये मेरे सचित्त, अचित्त और मिश्र हैं – इस प्रकार इनमें भगवान् का प्रतिबन्ध नहीं था – क्षेत्र से ग्राम, नगर, अरण्य, खेत, खल या खलिहान, घर, आँगन इत्यादि में उनका प्रतिबन्ध नहीं था। काल से स्तोक, लव, मुहूर्त्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर या और भी दीर्घकाल सम्बन्धी कोई प्रतिबन्ध उन्हें नहीं था। भाव से क्रोध, लोभ, भय, हास्य से उनका कोई लगाव नहीं था। भगवान् ऋषभ वर्षावास के अतिरिक्त हेमन्त के महीनों तथा ग्रीष्मकाल के महीनों के अन्तर्गत् गाँव में एक रात, नगर में पाँच रात प्रवास करते हुए हास्य, शोक, रति, भय तथा परित्रास – से वर्जित, ममता रहित, अहंकार रहित, लघुभूत, अग्रन्थ, वसूले द्वारा देह की चमड़ी छीले जाने पर भी वैसा करनेवाले के प्रति द्वेष रहित एवं किसी के द्वारा चन्दन का लेप किये जाने पर भी उस और अनुराग या आसक्ति से रहित, पाषाण और स्वर्ण में एक समान भावयुक्त, इस लोक में और परलोक में अप्रतिबद्ध – अतृष्ण, जीवन और मरण की आकांक्षा से अतीत, संसार को पार करने में समुद्यत, जीव – प्रदेशों के साथ चले आ रहे कर्म – सम्बन्ध को विच्छिन्न कर डालने में अभ्युत्थित रहते हुए विहरणशील थे। इस प्रकार विहार करते हुए – १००० वर्ष व्यतीत हो जाने पर पुरिमताल नगर के बाहर शकट मुख उद्यान में एक बरगद के वृक्ष के नीचे, ध्यानान्तरिका में फाल्गुण मास कृष्णपक्ष एकादशी के दिन पूर्वाह्न के समय, निर्जल तेले की तपस्या की स्थिति में चन्द्र संयोगाप्त उत्तराषाढा नक्षत्र में अनुत्तर तप, बल, वीर्य, विहार, भावना, क्षान्ति, क्षमाशीलता, गुप्ति, मुक्ति, तुष्टि, आर्जव, मार्दव, लाघव, स्फूर्तिशीलता, सच्चारित्र्य के निर्वाण – मार्ग रूप उत्तम फल से आत्मा को भावित करते हुए उनके अनन्त, अविनाशी, अनुत्तर, निर्व्याघात, सर्वथा अप्रतिहत, निरावरण, कृत्स्न, सकलार्थग्राहक, प्रतिपूर्ण, श्रेष्ठ केवलज्ञान, केवलदर्शन उत्पन्न हुए। वे जिन, केवली, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी हुए। वे गति, आगति, कार्य – स्थिति, भव – स्थिति, मुक्त, कृत, प्रतिसेवित, आविष्कर्म, रहःकर्म, योग आदि के, जीवों तथा अजीवों के समस्त भावों के, मोक्ष – मार्ग के प्रति विशुद्ध भाव – इन सब के ज्ञाता, द्रष्टा हो गए। भगवान् ऋषभ निर्ग्रन्थों, निर्ग्रन्थियों को – पाँच महाव्रतों, उनकी भावनाओं तथा जीव – निकायों का उपदेश देते हुए विचरण करते थे। कौशलिक अर्हत् ऋषभ के चौरासी गण, चौरासी गणधर, ऋषभसेन आदि ८४००० श्रमण, ब्राह्मी, सुन्दरी आदि तीन लाख आर्यिकाएं, श्रेयांस आदि तीन लाख पाँच हजार श्रमणोपासक, सुभद्रा आदि पाँच लाख चौवन हजार श्रमणोपासिकाएं, जिन नहीं पर जिनसदृश सर्वाक्षर – संयोग – वेत्ता जिनवत् अवितथ – निरूपक ४७५० चतुर्दश – पूर्वधर, ९००० अवधिज्ञानी, २०००० जिन, २०६०० वैक्रियलब्धिधर, १२६५० विपुलमति – मनःपर्यवज्ञानी, १२६५० वादी तथा गति – कल्याणक, स्थितिकल्याणक, आगमिष्यद्भद्र, अनुत्तरौपपातिक २२९०० मुनि थे। कौशलिक अर्हत् ऋषभ के २०००० श्रमणों तथा ४०००० श्रमणियों ने सिद्धत्व प्राप्त किया – भगवान् ऋषभ के अनेक अंतेवासी अनगार थे। उनमें कईं एक मास यावत् कईं अनेक वर्ष के दीक्षा – पर्याय के थे। उनमें अनेक अनगार अपने दोनों घुटनों को ऊंचा उठाए, मस्तक को नीचा किये – ध्यान रूप कोष्ठ में प्रविष्ट थे। इस प्रकार वे अनगार संयम तथा तप से आत्मा को भावित – करते हुए अपनी जीवन – यात्रा में गतिशील थे। भगवान् ऋषभ की दो प्रकार की भूमि थी – युगान्तकर – भूमि तथा पर्यायान्तकर – भूमि। युगान्तकर – भूमि यावत् असंख्यात पुरुष – परम्परा – परिमित थी तथा पर्यायान्तकर भूमि अन्तमुहूर्त्त थी। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] usabhe nam araha kosalie samvachchharam sahiyam chivaradhari hottha, tena param achelae. Jappabhiim cha nam usabhe araha kosalie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie, tappabhiim cha nam usabhe araha kosalie nichcham vosatthakae chiyattadehe je kei uvasagga uppajjamti, tam jaha–divva va manussa va tirikkhajoniya va padiloma va anuloma va. Tattha padiloma–vettena va tayae va chhiyae va layae va kasena va kae auttejja, anuloma–vamdejja va namamsejja va sakkarejja va sammanejja va kallanam mamgalam devayam cheiyam pajjuvasejja va te savve sammam sahai khamai titikkhai ahiyasei. Tae nam se bhagavam samane jae iriyasamie bhasasamie esanasamie ayanabhamdamatta- nikkhevanasamie uchchara-pasavana-khela-simghana-jalla-paritthavaniyasamie manasamie vaisamie kayasamie managutte vaigutte kayagutte gutte guttimdie gutta bambhayari akohe amane amae alohe samte pasamte uvasamte parinivvude chhinnasoe niruvaleve samkhamiva niramjane, jachchakanagamiva jayaruve, adarisapalibhage iva pagadabhave, kummo iva guttimdie, pukkharapattamiva niruvaleve, gaganamiva niralambane, anile iva niralae, chamdo iva somadamsane, suro viva teyassi, vihago viva apadibaddhagami, sagaro viva gambhire, mamdaro viva akampe, pudhavi viva savvaphasavisahe, jivo viva appadihayagati. Natthi nam tassa bhagavamtassa katthai padibamdhe. Se padibamdhe chauvvihe bhavati, tam jaha–davvao khettao kalao bhavao. Davvao–iha khalu maya me piya me bhaya me bhagini me bhajja me putta me dhuya me natta me sunha me sahi me sayana samgamthasamthuya me hirannam me suvannam me dhanam me dhannam me kamsam me dusam me vipuladhana-kanaga-rayana-mani-mottiya-samkha-sila-ppavala-ratta rayana-samtasara-savateyam me uvagaranam me. Ahava samasao sachchitte va achitte va misae va davvajae sevam tassa na bhavai. Khettao game va nagare va aranne va khette va khale va gehe va amgane va evam tassa na bhavai. Kalao–thove va lave va muhutte va ahoratte va pakkhe va mase va uu va ayane va samvachchhare va annayare va dihakalapadibamdhe evam tassa na bhavai. Bhavao–kohe va mane va mayae va lohe va bhae va hase va evam tassa na bhavai. Se nam bhagavam vasavasavajjam hemamta-gimhasu game egaraie, nagare pamcharaie, vavagayahasa-soga-arai-bhayaparittase nimmame nirahamkare lahubhue agamthe vasitachchhane adutthe, chamdananulevane aratte, letthummi kamchanammi ya same, ihaparaloe ya apadibaddhe, jiviyamarane niravakamkhe samsaraparagami kamma-samganigghayanatthae abbhutthie viharai. Tassa nam bhagavamtassa etenam viharenam viharamanassa ege vasasahasse viikkamte samane purimatalassa nagarassa bahiya sagadamuhamsi ujjanamsi naggohavarapayavassa ahe jhanamtariyae vattamanassa phaggunabahulassa ikkasie puvvanhakalasamayamsi atthamenam bhattenam apanaenam uttarasadhanakkhattenam jogamuvagaenam anuttarenam nanenam anuttarenam damsanenam anuttarenam charittenam anuttarenam tavenam balenam virienam alaenam viharenam bhavanae khamtie guttie muttie tutthie ajjavenam maddavenam laghavenam suchariyasovachiyaphalanivvanamaggenam appanam bhavemanassa anamte anuttare nivvaghae niravarane kasine padipunne kevalavarananadamsane samuppanne, jine jae kevali savvannu savvadarisi saneraiyatiriyanaramarassa logassa pajjave janai pasai, tam jaha– Agaim gaim thiim uvavayam bhuttam kadam padiseviyam avikammam rahokammam tam tam kalam manavaikaie joge evamadi jivanavi savvabhave ajivanavi savvabhave mokkhamaggassa visuddhatarae bhave janamane pasamane, esa khalu mokkhamagge mama annesim cha jivanam hiyasuhanissesakare savvadukkha vimokkhane paramasuhasamanane bhavissai. Tate nam se bhagavam samananam niggamthana ya niggamthina ya pamcha mahavvayaim sabhavanagaim chhachcha jivanikae dhamme desa-mane viharati, tam jaha–pudhavikaie bhavanagamenam pamcha mahavvayaim sabhavanagaim bhaniyavvaim. Usabhassa nam arahao kosaliyassa chaurasitim ganahara hottha. Usabhassa nam arahao kosaliyassa usabhasenapamokkhao chulasiim samanasahassio ukkosiya samanasampaya hottha. Usabhassa nam arahao kosaliyassa bambhi-sumdaripamokkhao tinni ajjiyasayasahassio ukkosiya ajjiyasampaya hottha. Usabhassa nam arahao kosaliyassa sejjamsapamokkhao tinni samanovasagasayasahassio pamcha ya sahassio ukkosiya samanovasagasampaya hottha. Usabhassa nam arahao kosaliyassa subhaddapamokkhao pamcha samanovasiyasayasahassio chaupannam cha sahassa ukkosiya samanovasiyasampaya hottha. Usabhassa nam arahao kosaliyassa ajinanam jinasamkasanam savvakkharasannivainam jino viva avitaham vakaremananam chattari chauddasapuvvisahassa addhatthama ya saya ukkosiya chaudasapuvvi-sampaya hottha. Usabhassa nam arahao kosaliyassa nava ohinanisahassa ukkosiya ohinanisampaya hottha. Usabhassa nam arahao kosaliyassa–visam jinasahassa, visam veuvviyasahassa chhachcha saya ukkosiya, barasa viulamaisahassa chhachcha saya pannasa, barasa vaisahassa chhachcha saya pannasa. Usabhassa nam arahao kosaliyassa gaikallananam thiikallananam agamesibhaddanam bavisam anuttarovavaiyanam sahassa nava ya saya. Usabhassa nam arahao kosaliyassa visam samanasahassa siddha, chattalisam ajjiyasahassa siddha– satthi amtevasisahassa siddha. Arahao nam usabhassa bahave amtevasi anagara bhagavamto appegaiya masapariyaya evam jaha ovavaie sachcheva anagaravannao java uddham janu ahosira jhanakotthovagaya samjamenam tavasa appanam bhavemana viharamti. Arahao nam usabhassa duviha amtakarabhumi hottha, tam jaha–jugamtakarabhumi ya pariyayamtakara-bhumi ya. Jugamtakarabhumi java asamkhejjaim purisajugaim, pariyayamtakarabhumi amtomuhuttapariyae amtamakasi. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Kaushalika arhat rishabha kuchha adhika eka varsha paryanta vastradhari rahe, tatpashchat nirvastra. Jaba se ve pravrajita hue, ve kayika parikarma rahita, daihika mamata se atita, devakrit yavat jo upasarga ate, unhem ve samyak bhava se sahate, pratikula athava anukula parishaha ko bhi anasakta bhava se sahate, kshamashila rahate, avichala rahate. Bhagavan aise uttama shramana the ki ve gamana, halana – chalana adi kriya yavat mala – mutra, khamkhara, naka adi ka mala tyagana – ina pamcha samitiyom se yukta the. Ve manasamita, vaksamita tatha kayasamita the. Ve manogupta, yavat gupta brahmachari, akrodha yavat alobha, prashamta, upashamta, parinirvrita, chhinna – srota, nirupalepa, kamse ke patra jaise asakti rahita, shamkhavat niramjana, raga adi ki ramjakata se shunya, jatya vishodhita shuddha svarna ke samana, jatarupa, darpanagata pratibimba ki jyom prakata bhava – aniguhitabhipraya, pravamchana, chhalana va kapata rahita shuddha bhavayukta, kachhue ki taraha guptendriya, kamala – patra ke samana nirlepa, akasha ke sadrisha niralamba, vayu ki taraha niralaya, chandra ke sadrisha saumya – darshana, surya ke sadrisha tejasvi, pakshi ki jyom apratibaddhagami, samudra ke samana gambhira mamdarachala ki jyom akampa, susthira, prithvi ke samana sarva sparshom ko samabhava se sahane mem samartha, jiva ke samana apratihata the. Una bhagavan rishabha ke kisi bhi prakara ke pratibandha nahim the. Pratibandha chara prakara ka hai – dravya se, kshetra se, kala se tatha bhava se. Dravya se jaise – ye mere mata, pita, bhai, bahina yavat chiraparichita jana haim, ye mere chamdi, sona, upakarana haim, athava anya prakara se samkshepa mem jaise ye mere sachitta, achitta aura mishra haim – isa prakara inamem bhagavan ka pratibandha nahim tha – kshetra se grama, nagara, aranya, kheta, khala ya khalihana, ghara, amgana ityadi mem unaka pratibandha nahim tha. Kala se stoka, lava, muhurtta, ahoratra, paksha, masa, ritu, ayana, samvatsara ya aura bhi dirghakala sambandhi koi pratibandha unhem nahim tha. Bhava se krodha, lobha, bhaya, hasya se unaka koi lagava nahim tha. Bhagavan rishabha varshavasa ke atirikta hemanta ke mahinom tatha grishmakala ke mahinom ke antargat gamva mem eka rata, nagara mem pamcha rata pravasa karate hue hasya, shoka, rati, bhaya tatha paritrasa – se varjita, mamata rahita, ahamkara rahita, laghubhuta, agrantha, vasule dvara deha ki chamari chhile jane para bhi vaisa karanevale ke prati dvesha rahita evam kisi ke dvara chandana ka lepa kiye jane para bhi usa aura anuraga ya asakti se rahita, pashana aura svarna mem eka samana bhavayukta, isa loka mem aura paraloka mem apratibaddha – atrishna, jivana aura marana ki akamksha se atita, samsara ko para karane mem samudyata, jiva – pradeshom ke satha chale a rahe karma – sambandha ko vichchhinna kara dalane mem abhyutthita rahate hue viharanashila the. Isa prakara vihara karate hue – 1000 varsha vyatita ho jane para purimatala nagara ke bahara shakata mukha udyana mem eka baragada ke vriksha ke niche, dhyanantarika mem phalguna masa krishnapaksha ekadashi ke dina purvahna ke samaya, nirjala tele ki tapasya ki sthiti mem chandra samyogapta uttarashadha nakshatra mem anuttara tapa, bala, virya, vihara, bhavana, kshanti, kshamashilata, gupti, mukti, tushti, arjava, mardava, laghava, sphurtishilata, sachcharitrya ke nirvana – marga rupa uttama phala se atma ko bhavita karate hue unake ananta, avinashi, anuttara, nirvyaghata, sarvatha apratihata, niravarana, kritsna, sakalarthagrahaka, pratipurna, shreshtha kevalajnyana, kevaladarshana utpanna hue. Ve jina, kevali, sarvajnya, sarvadarshi hue. Ve gati, agati, karya – sthiti, bhava – sthiti, mukta, krita, pratisevita, avishkarma, rahahkarma, yoga adi ke, jivom tatha ajivom ke samasta bhavom ke, moksha – marga ke prati vishuddha bhava – ina saba ke jnyata, drashta ho gae. Bhagavan rishabha nirgranthom, nirgranthiyom ko – pamcha mahavratom, unaki bhavanaom tatha jiva – nikayom ka upadesha dete hue vicharana karate the. Kaushalika arhat rishabha ke chaurasi gana, chaurasi ganadhara, rishabhasena adi 84000 shramana, brahmi, sundari adi tina lakha aryikaem, shreyamsa adi tina lakha pamcha hajara shramanopasaka, subhadra adi pamcha lakha chauvana hajara shramanopasikaem, jina nahim para jinasadrisha sarvakshara – samyoga – vetta jinavat avitatha – nirupaka 4750 chaturdasha – purvadhara, 9000 avadhijnyani, 20000 jina, 20600 vaikriyalabdhidhara, 12650 vipulamati – manahparyavajnyani, 12650 vadi tatha gati – kalyanaka, sthitikalyanaka, agamishyadbhadra, anuttaraupapatika 22900 muni the. Kaushalika arhat rishabha ke 20000 shramanom tatha 40000 shramaniyom ne siddhatva prapta kiya – bhagavan rishabha ke aneka amtevasi anagara the. Unamem kaim eka masa yavat kaim aneka varsha ke diksha – paryaya ke the. Unamem aneka anagara apane donom ghutanom ko umcha uthae, mastaka ko nicha kiye – dhyana rupa koshtha mem pravishta the. Isa prakara ve anagara samyama tatha tapa se atma ko bhavita – karate hue apani jivana – yatra mem gatishila the. Bhagavan rishabha ki do prakara ki bhumi thi – yugantakara – bhumi tatha paryayantakara – bhumi. Yugantakara – bhumi yavat asamkhyata purusha – parampara – parimita thi tatha paryayantakara bhumi antamuhurtta thi. |