Sutra Navigation: Jambudwippragnapati ( जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1007613 | ||
Scripture Name( English ): | Jambudwippragnapati | Translated Scripture Name : | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Translated Chapter : |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 13 | Category : | Upang-07 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढे नामं पव्वए पन्नत्ते? गोयमा! उत्तरद्धभरहवासस्स दाहिणेणं, दाहिणड्ढभरहवासस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवण-समुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढे नामं पव्वए पन्नत्ते–पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिन्नेदुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे–पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पणवीसं जोयणाइं उद्धं उच्चत्तेणं, छस्सकोसाइं जोयणाइं उव्वेहेणं, पन्नासं जोयणाइं विक्खंभेणं। तस्स बाहा पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं चत्तारि अट्ठासीए जोयणसए सोलस य एगूनवीसइभागे जोयणस्स अद्धभागं च आयामेणं पन्नत्ता। तस्स जीवा उत्तरेणं पाइणपडीणायया दुहा लवणसमुद्दं पुट्ठा–पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठा, दस जोयणसहस्साइं सत्त य वीसे जोयणसए दुवालस य एगूनवीसइभागे जोयणस्स आयामेणं। तीसे धनुपुट्ठं दाहिणेणं दस जोयणसहस्साइं सत्त य तेयाले जोयणसए पन्नरस य एगूनवीसइभागे जोयणस्स परिक्खेवेणं, रुयगसंठाणसंठिए सव्वरययामए अच्छे सण्हे लण्हे घट्ठे मट्ठे नीरए निम्मले निप्पंके निक्कंकडच्छाए सप्पभे समिरीए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वनसंडेहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। ताओ णं पउमवरवेइयाओ अद्धजोयणं उद्धं उच्चत्तेणं, पंचधनुसयाइं विक्खंभेणं, पव्वयसमियाओ आयामेणं। वण्णओ भाणियव्वो। ते णं वनसंडा देसूनाइं दो जोयणाइं विक्खंभेणं, पउमवर-वेइयासमगा आयामेणं, किण्हा किण्होभासा जाव वण्णओ। वेयड्ढस्स णं पव्वयस्स पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं दो गुहाओ पन्नत्ताओ–उत्तरदाहिणाययाओ पाईणपडीणवित्थिण्णाओ पन्नासं जोयणाइं आयामेणं, दुवालस जोयणाइं विक्खंभेणं, अट्ठ जोयणाइं उद्धं उच्चत्तेणं, वइरामयकवाडोहाडिआओ जमलजुयलकवाडधणदुप्पवेसाओ निच्चंधयार-तिमिस्साओ ववगयगहचंदसूरनक्खत्तजोइसपहाओ जाव पडिरूवाओ, तं जहा–तिमिसगुहा चेव खंडप्पवायगुहा चेव। तत्थ णं दो देवा महिड्ढीया महज्जुईया महाबला महायसा महासोक्खा महानुभागा पलिओवमट्ठिईया परिवसंति, तं जहा–कयमालए चेव, नट्टमालए चेव। तेसि णं वनसंडाणं बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ वेयड्ढस्स पव्वयस्स उभओ पासिं दस-दस जोयणाइं उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं दुवे विज्जाहरसेढीओ पन्नत्ताओ–पाईणपडीणाययाओ उदीणदाहिणविच्छिण्णाओ दस-दस जोयणाइं विक्खंभेणं, पव्वयसमियाओ आयामेणं, उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वनसंडेहिं संपरिक्खित्ताओ। ताओ णं पउमवरवेइयाओ अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धनुसयाइं विक्खंभेणं, पव्वयसमियाओ आयामेणं, वण्णओ नेयव्वो। वनसंडावि पउमवरवेइयासमगा आयामेणं, वण्णओ। विज्जाहरसेढीणं भंते! भूमीणं केरिसए आगारभावपडोयारे पन्नत्ते? गोयमा! बहु-समरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते, से जहानामए–आलिंगपुक्खरेइ वा जाव नानाविहपंचवण्णेहिं मणीहिं तणेहि य उवसोभिए, तं जहा– कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहिं चेव। तत्थ णं दक्खिणिल्लाए विज्जाहरसेढीए गगनवल्लभपामोक्खा पन्नासं विज्जाहरनगरावासा पन्नत्ता, उत्तरिल्लाए विज्जाहर-सेढीए रहनेउरचक्कवालपामोक्खा सट्ठिं विज्जाहरनगरावासा पन्नत्ता। एवामेव सपुव्वावरेणं दाहिणिल्लाए उत्तरिल्लाए विज्जाहरसेढीए एगं दसुत्तरं विज्जाहरनगरावाससयं भवतीतिमक्खायं। ते विज्जाहरनगरा रिद्धत्थिमियसमिद्धा पमुइयजण जानवया जाव पडिरूवा। तेसु णं विज्जाहरणगरेसु विज्जाहररायाणो परिवसंति–महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारा, राय-वण्णओ भाणियव्वो। विज्जाहरसेढीणं भंते! मनुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पन्नत्ते? गोयमा! ते णं मनुया बहुसंघयणा बहुसंठाणा बहुउच्चत्तपज्जवा बहुआउपज्जवा जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। तासि णं विज्जाहरसेढीणं बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ वेयड्ढस्स पव्वयस्स उभओ पासिं दस-दस जोयणाइं उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं दुवे आभिओग्गसेढीओ पन्नत्ताओ–पाईण-पडीणाययाओ उदीणदाहिणवित्थिण्णाओ दस-दस जोयणाइं विक्खंभेणं, पव्वयसमियाओ आयामेणं, उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वनसंडेहिं संपरिक्खित्ताओ, वण्णओ दोण्हवि पव्वयसमियाओ आयामेणं। आभिओग्गसेढीणं भंते! केरिसए आगारभावपडोयारे पन्नत्ते? गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते जाव तणेहिं उवसोभिए, वण्णाइ जाव तणाणं सद्दोत्ति। तासि णं आभिओग्गसेढीणं तत्थ-तत्थ देसे तहिं-तहिं जाव वाणमंतरा देवा य देवीओ य आसयंति सयंति चिट्ठंति निसीयंति तुयट्टंति रमंति ललंति कीडंति मोहंति, पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फलवित्तिविसेसं पच्चनुभवमाणा विहरंति। तासु णं आभिओग्गसेढीसु सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो सोम-जम-वरुण-वेसमणकाइयाणं आभिओग्गाणं देवाणं बहवे भवना पन्नत्ता। ते णं भवना बाहिं वट्टा अंतो चउरंसा वण्णओ जाव अच्छरगण-संघ-संविकिण्णा दिव्वतुडितसद्दसंपणादिता सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्ठा मट्ठा नीरया निम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पहा सस्सिरीया समिरीया सउज्जोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। तत्थ णं सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो सोम-जम-वरुण-वेसमणकाइया बहवे आभिओग्गा देवा महिड्ढीया महज्जुईया महाबला महायसा महासोक्खा महानुभागा पलिओवमट्ठिईया परिवसंति। तासि णं आभिओग्गसेढीणं बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ वेयड्ढस्स पव्वयस्स उभओ पासिं पंच-पंच जोयणाइं उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं वेयड्ढस्स पव्वयस्स सिहरतले पन्नत्ते–पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिन्नेदस जोयणाइं विक्खंभेणं, पव्वयसमगे आयामेणं। से णं एक्काए पउमवरवेइयाए एक्केण य वनसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। पमाणं वण्णगो दोण्हंपि। वेयड्ढस्स णं भंते! पव्वयस्स सिहरतलस्स केरिसए आगारभावपडोयारे पन्नत्ते? गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते, से जहानामए–आलिंगपुक्खरेइ वा जाव नानाविहपंचवण्णेहिं मणीहिं तणेहि य उवसोभिए जाव वावीओ पुक्खरिणीओ जाव वाणमंतरा देवा य देवीओ य आसयंति सयंति चिट्ठंति निसीयंति तुयट्टंति रमंति ललंति कीडंति मोहंति, पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फलवित्तिविसेसं भुंजमाणा विहरंति। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भारहे वासे वेयड्ढपव्वए कइ कूडा पन्नत्ता? गोयमा! नव कूडा पन्नत्ता, तं जहा–सिद्धायतनकूडे दाहिणड्ढभरहकूडे खंडप्पवायगुहाकूडे माणिभद्दकूडे वेयड्ढकूडे पुण्णभद्दकूडे तिमिसगुहाकूडे उत्तरड्ढभरहकूडे वेसमणकूडे। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में वैताढ्य पर्वत कहाँ है ? गौतम ! उत्तरार्ध भरतक्षेत्र के दक्षिण में, दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र के उत्तर में, पूर्व – लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिम – लवणसमुद्र के पूर्व में है। यह पूर्व – पश्चिम में लम्बा तथा उत्तर – दक्षिण में चौड़ा है। अपने पूर्वी किनारे से पूर्व – लवणसमुद्र का तथा पश्चिमी किनारे से पश्चिमी – लवणसमुद्र का स्पर्श किये हुए है। वह पच्चीस योजन ऊंचा है और सवा छह योजन जमीन में गहरा है। यह पचास योजन लम्बा है। इसकी बाहा – पूर्व – पश्चिम में ४८८ – १६/१९ योजन है। उत्तर में वैताढ्य पर्वत की जीवा पूर्वी किनारे से पूर्व – लवणसमुद्र का तथा पश्चिम किनारे से पश्चिम लवणसमुद्र का स्पर्श किये हुए है। जीवा १०७२ – १२/१९ योजन लम्बी है। दक्षिण में उसकी धनुष्यपीठिका की परिधि १०७४३ – १५/१९ योजन है। वैताढ्य पर्वत रुचक – संस्थान – संस्थित है, वह सर्वथा रजतमय है। स्वच्छ, सुकोमल, चिकना, घुटा हुआ – सा, तराशा हुआ – सा, रज – रहित, मैल – रहित, कर्दम – रहित तथा कंकड़ – रहित है। वह प्रभा, कान्ति एवं उद्योत से युक्त है, प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप है। वह अपने दोनों पार्श्वभागों में – दो पद्मवरवेदिकाओं तथा वन – खंडों में सम्पूर्णतः घिरा है। वे पद्मवरवेदिकाएं आधा योजन ऊंची तथा पाँच सौ धनुष चौड़ी हैं, पर्वत जितनी लम्बी हैं। वे वन – खंड कुछ कम दो योजन चौड़े हैं, कृष्ण वर्ण तथा कृष्ण आभा से युक्त हैं। वैताढ्य पर्वत के पूर्व – पश्चिम में दो गुफाएं हैं। वे उत्तर – दक्षिण लम्बी तथा पूर्व – पश्चिम चौड़ी हैं। उनकी लम्बाई पचास योजन, चौड़ाई बारह योजन तथा ऊंचाई आठ योजन है। उनके वज्ररत्नमय – कपाट हैं, दो – दो भागों के रूप में निर्मित, समस्थित कपाट इतने सघन – निश्छिद्र या निबिड हैं, जिससे गुफाओं में प्रवेश करना दुःशक्य है। उन गुफाओंमें सदा अंधेरा रहता है। वे ग्रह, चन्द्र, सूर्य तथा नक्षत्रों के प्रकाश से रहित हैं, अभिरूप एवं प्रतिरूप हैं। उन गुफाओं के नाम तमिस्रगुफा तथा खंडप्रपातगुफा हैं। वहाँ कृतमालक तथा नृत्यमालक – दो देव निवास करते हैं। वे महान् ऐश्वर्यशाली, द्युतिमान्, बलवान्, यशस्वी, सुखी तथा भाग्यशाली हैं, पल्योपमस्थितिक हैं। उन वनखंडों के भूमिभाग बहुत समतल और सुन्दर है। वैताढ्य पर्वत के दोनों पार्श्व में – दश – दश योजन की ऊंचाई पर दो विद्याधर श्रेणियाँ हैं। वे पूर्व – पश्चिम लम्बी तथा उत्तर – दक्षिण चौड़ी हैं। उनकी चौड़ाई दश – दश योजन तथा लम्बाई पर्वत जितनी ही है। वे दोनों पार्श्व में दो – दो पद्मवरवेदिकाओं तथा दो – दो वनखंडों से परिवेष्टित हैं। वे पद्मवरवेदिकाएं ऊंचाई में आधा योजन, चौड़ाई में पाँच सौ धनुष तथा लम्बाई में पर्वत – जितनी ही हैं। वनखंड भी लम्बाई में वेदिकाओं जितने ही हैं। भगवन् ! विद्याधर – श्रेणियों की भूमि का आकार – स्वरूप कैसा है ? गौतम ! उनका भूमिभाग बड़ा समतल रमणीय है। वह मुरज के ऊपरी भाग आदि की ज्यों समतल है। वह बहुत प्रकार के मणियों तथा तृणों से सुशोभित है। दक्षिणवर्ती विद्याधरश्रेणी में गगनवल्लभ आदि पचास विद्याधर हैं – । उत्तरवर्ती विद्याधर श्रेणि में रथनुपूरचक्रवाल आदि आठ नगर हैं – । इस प्रकार दक्षिणवर्ती एवं उत्तरवर्ती – दोनों विद्याधर – श्रेणियों के नगरों की संख्या ११० हैं। वे विद्याधर – नगर वैभवशाली, सुरक्षित एवं समृद्ध हैं। वहाँ के निवासी तथा अन्य भागों से आये हुए व्यक्ति वहाँ आमोद – प्रमोद के प्रचुर साधन होने से प्रमुदित रहते हैं। यावत् वह प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप है। उन विद्याधर नगरों में विद्याधर राजा निवास करते हैं। वे महाहिमवान् पर्वत के सदृश महत्ता तथा मलय, मेरु एवं महेन्द्र संज्ञक पर्वतों के सदृश प्रधानता या विशिष्टता लिये हुए हैं। भगवन् ! विद्याधरश्रेणियों के मनुष्यों का आकार – स्वरूप कैसा है ? गौतम ! वहाँ के मनुष्यों का संहनन, संस्थान, ऊंचाई एवं आयुष्य बहुत प्रकार का है। वे बहुत वर्षों का आयुष्य भोगते हैं यावत् सब दुःखों का अंत करते हैं। उन विद्याधर – श्रेणियों के भूमिभाग से वैताढ्य पर्वत के दोनों और दश – दश योजन ऊपर दो आभियोग्य – श्रेणियाँ, व्यन्तर देव – विशेषों की आवास – पंक्तियाँ हैं। वे पूर्व – पश्चिम लम्बी तथा उत्तर – दक्षिण चौड़ी हैं। उनकी चौड़ाई दश – दश योजन तथा लम्बाई पर्वत जितनी है। वे दोनों श्रेणियाँ अपने दोनों ओर दो – दो पद्मवरवेदिकाओं एवं दो – दो वनखंडों से परिवेष्टित हैं। लम्बाई में दोनों पर्वत – जितनी हैं। भगवन् ! आभियोग्य – श्रेणियों का आकार – स्वरूप कैसा है ? गौतम ! उनका बड़ा समतल, रमणीय भूमि भाग है। मणियों एवं तृणों से उपशोभित है। मणियों के वर्ण, तृणों के शब्द आदि अन्यत्र विस्तार से वर्णित हैं। वहाँ बहुत से देव, देवियाँ आश्रय लेते हैं, शयन करते हैं, यावत् विशेष सुखों का उपयोग करते हैं। उन अभियोग्य – श्रेणियों में देवराज, देवेन्द्र शक्र के सोम, यम, वरुण तथा वैश्रमण देवों के बहुत से भवन हैं। वे भवन बाहर से गोल तथा भीतर से चौरस हैं। वहाँ देवराज, देवेन्द्र शक्र के अत्यन्त ऋद्धिसम्पन्न, द्युतिमान् तथा सौख्यसम्पन्न सोम, यम, वरुण एवं वैश्रमण संज्ञक आभियोगिक देव निवास करते हैं। उन आभियोग्य – श्रेणियों के अति समतल, रमणीय भूमिभाग से वैताढ्य पर्वत के दोनों पार्श्व में – पाँच – पाँच योजन ऊंचे जाने पर वैताढ्य पर्वत का शिखर – तल है। वह पूर्व – पश्चिम लम्बा तथा उत्तर – दक्षिण चौड़ा है। उसकी चौड़ाई दश योजन है, लम्बाई पर्वत जितनी है। वह एक पद्मवरवेदिका से तथा एक वनखंड से चारों ओर परिवेष्टित है। भगवन् ! वैताढ्य पर्वत के शिखर – तल का आकार – स्वरूप कैसा है ? गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत समतल तथा रमणीय है। वह मृदंग के ऊपर के भाग जैसा समतल है। बहुविध पंचरंगी मणियों से उपशोभित है। वहाँ स्थान – स्थान पर वावड़ियाँ एवं सरोवर हैं। वहाँ अनेक वाणव्यन्तर देव, देवियाँ निवास करते हैं, पूर्व – आचीर्ण पुण्यों का फलभोग करते हैं। भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरतक्षेत्र में वैताढ्य पर्वत के कितने कूट हैं ? गौतम! नौ कूट हैं। सिद्धायतनकूट, दक्षिणार्धभरतकूट, खण्डप्रपातगुहाकूट, मणिभद्रकूट, वैताढ्यकूट, पूर्णभद्रकूट, तमिस्रगुहाकूट, उत्तरार्धभरतकूट, वैश्रमणकूट। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] kahi nam bhamte! Jambuddive dive bharahe vase veyaddhe namam pavvae pannatte? Goyama! Uttaraddhabharahavasassa dahinenam, dahinaddhabharahavasassa uttarenam, puratthimalavanasamuddassa pachchatthimenam, pachchatthimalavana-samuddassa puratthimenam, ettha nam jambuddive dive bharahe vase veyaddhe namam pavvae pannatte–painapadinayae udinadahinavichchhinneduha lavanasamuddam putthe–puratthimillae kodie puratthimillam lavanasamuddam putthe, pachchatthimillae kodie pachchatthimillam lavanasamuddam putthe, panavisam joyanaim uddham uchchattenam, chhassakosaim joyanaim uvvehenam, pannasam joyanaim vikkhambhenam. Tassa baha puratthima-pachchatthimenam chattari atthasie joyanasae solasa ya egunavisaibhage joyanassa addhabhagam cha ayamenam pannatta. Tassa jiva uttarenam painapadinayaya duha lavanasamuddam puttha–puratthimillae kodie puratthimillam lavanasamuddam puttha, pachchatthimillae kodie pachchatthimillam lavanasamuddam puttha, dasa joyanasahassaim satta ya vise joyanasae duvalasa ya egunavisaibhage joyanassa ayamenam. Tise dhanuputtham dahinenam dasa joyanasahassaim satta ya teyale joyanasae pannarasa ya egunavisaibhage joyanassa parikkhevenam, ruyagasamthanasamthie savvarayayamae achchhe sanhe lanhe ghatthe matthe nirae nimmale nippamke nikkamkadachchhae sappabhe samirie pasaie darisanijje abhiruve padiruve. Ubhao pasim dohim paumavaraveiyahim dohi ya vanasamdehim savvao samamta samparikkhitte. Tao nam paumavaraveiyao addhajoyanam uddham uchchattenam, pamchadhanusayaim vikkhambhenam, pavvayasamiyao ayamenam. Vannao bhaniyavvo. Te nam vanasamda desunaim do joyanaim vikkhambhenam, paumavara-veiyasamaga ayamenam, kinha kinhobhasa java vannao. Veyaddhassa nam pavvayassa puratthimapachchatthimenam do guhao pannattao–uttaradahinayayao painapadinavitthinnao pannasam joyanaim ayamenam, duvalasa joyanaim vikkhambhenam, attha joyanaim uddham uchchattenam, vairamayakavadohadiao jamalajuyalakavadadhanaduppavesao nichchamdhayara-timissao vavagayagahachamdasuranakkhattajoisapahao java padiruvao, tam jaha–timisaguha cheva khamdappavayaguha cheva. Tattha nam do deva mahiddhiya mahajjuiya mahabala mahayasa mahasokkha mahanubhaga paliovamatthiiya parivasamti, tam jaha–kayamalae cheva, nattamalae cheva. Tesi nam vanasamdanam bahusamaramanijjao bhumibhagao veyaddhassa pavvayassa ubhao pasim dasa-dasa joyanaim uddham uppaitta, ettha nam duve vijjaharasedhio pannattao–painapadinayayao udinadahinavichchhinnao dasa-dasa joyanaim vikkhambhenam, pavvayasamiyao ayamenam, ubhao pasim dohim paumavaraveiyahim dohi ya vanasamdehim samparikkhittao. Tao nam paumavaraveiyao addhajoyanam uddham uchchattenam, pamcha dhanusayaim vikkhambhenam, pavvayasamiyao ayamenam, vannao neyavvo. Vanasamdavi paumavaraveiyasamaga ayamenam, vannao. Vijjaharasedhinam bhamte! Bhuminam kerisae agarabhavapadoyare pannatte? Goyama! Bahu-samaramanijje bhumibhage pannatte, se jahanamae–alimgapukkharei va java nanavihapamchavannehim manihim tanehi ya uvasobhie, tam jaha– kittimehim cheva akittimehim cheva. Tattha nam dakkhinillae vijjaharasedhie gaganavallabhapamokkha pannasam vijjaharanagaravasa pannatta, uttarillae vijjahara-sedhie rahaneurachakkavalapamokkha satthim vijjaharanagaravasa pannatta. Evameva sapuvvavarenam dahinillae uttarillae vijjaharasedhie egam dasuttaram vijjaharanagaravasasayam bhavatitimakkhayam. Te vijjaharanagara riddhatthimiyasamiddha pamuiyajana janavaya java padiruva. Tesu nam vijjaharanagaresu vijjahararayano parivasamti–mahayahimavamta-mahamta-malaya-mamdara-mahimdasara, raya-vannao bhaniyavvo. Vijjaharasedhinam bhamte! Manuyanam kerisae agarabhavapadoyare pannatte? Goyama! Te nam manuya bahusamghayana bahusamthana bahuuchchattapajjava bahuaupajjava java savvadukkhanamamtam karemti. Tasi nam vijjaharasedhinam bahusamaramanijjao bhumibhagao veyaddhassa pavvayassa ubhao pasim dasa-dasa joyanaim uddham uppaitta, ettha nam duve abhioggasedhio pannattao–paina-padinayayao udinadahinavitthinnao dasa-dasa joyanaim vikkhambhenam, pavvayasamiyao ayamenam, ubhao pasim dohim paumavaraveiyahim dohi ya vanasamdehim samparikkhittao, vannao donhavi pavvayasamiyao ayamenam. Abhioggasedhinam bhamte! Kerisae agarabhavapadoyare pannatte? Goyama! Bahusamaramanijje bhumibhage pannatte java tanehim uvasobhie, vannai java tananam saddotti. Tasi nam abhioggasedhinam tattha-tattha dese tahim-tahim java vanamamtara deva ya devio ya asayamti sayamti chitthamti nisiyamti tuyattamti ramamti lalamti kidamti mohamti, pura porananam suchinnanam suparakkamtanam subhanam kadanam kammanam kallananam kallanam phalavittivisesam pachchanubhavamana viharamti. Tasu nam abhioggasedhisu sakkassa devimdassa devaranno soma-jama-varuna-vesamanakaiyanam abhiogganam devanam bahave bhavana pannatta. Te nam bhavana bahim vatta amto chauramsa vannao java achchharagana-samgha-samvikinna divvatuditasaddasampanadita savvarayanamaya achchha sanha lanha ghattha mattha niraya nimmala nippamka nikkamkadachchhaya sappaha sassiriya samiriya saujjoya pasadiya darisanijja abhiruva padiruva. Tattha nam sakkassa devimdassa devaranno soma-jama-varuna-vesamanakaiya bahave abhiogga deva mahiddhiya mahajjuiya mahabala mahayasa mahasokkha mahanubhaga paliovamatthiiya parivasamti. Tasi nam abhioggasedhinam bahusamaramanijjao bhumibhagao veyaddhassa pavvayassa ubhao pasim pamcha-pamcha joyanaim uddham uppaitta, ettha nam veyaddhassa pavvayassa siharatale pannatte–painapadinayae udinadahinavichchhinnedasa joyanaim vikkhambhenam, pavvayasamage ayamenam. Se nam ekkae paumavaraveiyae ekkena ya vanasamdenam savvao samamta samparikkhitte. Pamanam vannago donhampi. Veyaddhassa nam bhamte! Pavvayassa siharatalassa kerisae agarabhavapadoyare pannatte? Goyama! Bahusamaramanijje bhumibhage pannatte, se jahanamae–alimgapukkharei va java nanavihapamchavannehim manihim tanehi ya uvasobhie java vavio pukkharinio java vanamamtara deva ya devio ya asayamti sayamti chitthamti nisiyamti tuyattamti ramamti lalamti kidamti mohamti, pura porananam suchinnanam suparakkamtanam subhanam kadanam kammanam kallananam kallanam phalavittivisesam bhumjamana viharamti. Jambuddive nam bhamte! Dive bharahe vase veyaddhapavvae kai kuda pannatta? Goyama! Nava kuda pannatta, tam jaha–siddhayatanakude dahinaddhabharahakude khamdappavayaguhakude manibhaddakude veyaddhakude punnabhaddakude timisaguhakude uttaraddhabharahakude vesamanakude. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Jambudvipa ke bharatakshetra mem vaitadhya parvata kaham hai\? Gautama ! Uttarardha bharatakshetra ke dakshina mem, dakshinardha bharatakshetra ke uttara mem, purva – lavanasamudra ke pashchima mem, pashchima – lavanasamudra ke purva mem hai. Yaha purva – pashchima mem lamba tatha uttara – dakshina mem chaura hai. Apane purvi kinare se purva – lavanasamudra ka tatha pashchimi kinare se pashchimi – lavanasamudra ka sparsha kiye hue hai. Vaha pachchisa yojana umcha hai aura sava chhaha yojana jamina mem gahara hai. Yaha pachasa yojana lamba hai. Isaki baha – purva – pashchima mem 488 – 16/19 yojana hai. Uttara mem vaitadhya parvata ki jiva purvi kinare se purva – lavanasamudra ka tatha pashchima kinare se pashchima lavanasamudra ka sparsha kiye hue hai. Jiva 1072 – 12/19 yojana lambi hai. Dakshina mem usaki dhanushyapithika ki paridhi 10743 – 15/19 yojana hai. Vaitadhya parvata ruchaka – samsthana – samsthita hai, vaha sarvatha rajatamaya hai. Svachchha, sukomala, chikana, ghuta hua – sa, tarasha hua – sa, raja – rahita, maila – rahita, kardama – rahita tatha kamkara – rahita hai. Vaha prabha, kanti evam udyota se yukta hai, prasadiya, darshaniya, abhirupa aura pratirupa hai. Vaha apane donom parshvabhagom mem – do padmavaravedikaom tatha vana – khamdom mem sampurnatah ghira hai. Ve padmavaravedikaem adha yojana umchi tatha pamcha sau dhanusha chauri haim, parvata jitani lambi haim. Ve vana – khamda kuchha kama do yojana chaure haim, krishna varna tatha krishna abha se yukta haim. Vaitadhya parvata ke purva – pashchima mem do guphaem haim. Ve uttara – dakshina lambi tatha purva – pashchima chauri haim. Unaki lambai pachasa yojana, chaurai baraha yojana tatha umchai atha yojana hai. Unake vajraratnamaya – kapata haim, do – do bhagom ke rupa mem nirmita, samasthita kapata itane saghana – nishchhidra ya nibida haim, jisase guphaom mem pravesha karana duhshakya hai. Una guphaommem sada amdhera rahata hai. Ve graha, chandra, surya tatha nakshatrom ke prakasha se rahita haim, abhirupa evam pratirupa haim. Una guphaom ke nama tamisragupha tatha khamdaprapatagupha haim. Vaham kritamalaka tatha nrityamalaka – do deva nivasa karate haim. Ve mahan aishvaryashali, dyutiman, balavan, yashasvi, sukhi tatha bhagyashali haim, palyopamasthitika haim. Una vanakhamdom ke bhumibhaga bahuta samatala aura sundara hai. Vaitadhya parvata ke donom parshva mem – dasha – dasha yojana ki umchai para do vidyadhara shreniyam haim. Ve purva – pashchima lambi tatha uttara – dakshina chauri haim. Unaki chaurai dasha – dasha yojana tatha lambai parvata jitani hi hai. Ve donom parshva mem do – do padmavaravedikaom tatha do – do vanakhamdom se pariveshtita haim. Ve padmavaravedikaem umchai mem adha yojana, chaurai mem pamcha sau dhanusha tatha lambai mem parvata – jitani hi haim. Vanakhamda bhi lambai mem vedikaom jitane hi haim. Bhagavan ! Vidyadhara – shreniyom ki bhumi ka akara – svarupa kaisa hai\? Gautama ! Unaka bhumibhaga bara samatala ramaniya hai. Vaha muraja ke upari bhaga adi ki jyom samatala hai. Vaha bahuta prakara ke maniyom tatha trinom se sushobhita hai. Dakshinavarti vidyadharashreni mem gaganavallabha adi pachasa vidyadhara haim –\. Uttaravarti vidyadhara shreni mem rathanupurachakravala adi atha nagara haim –\. Isa prakara dakshinavarti evam uttaravarti – donom vidyadhara – shreniyom ke nagarom ki samkhya 110 haim. Ve vidyadhara – nagara vaibhavashali, surakshita evam samriddha haim. Vaham ke nivasi tatha anya bhagom se aye hue vyakti vaham amoda – pramoda ke prachura sadhana hone se pramudita rahate haim. Yavat vaha prasadiya, darshaniya, abhirupa aura pratirupa hai. Una vidyadhara nagarom mem vidyadhara raja nivasa karate haim. Ve mahahimavan parvata ke sadrisha mahatta tatha malaya, meru evam mahendra samjnyaka parvatom ke sadrisha pradhanata ya vishishtata liye hue haim. Bhagavan ! Vidyadharashreniyom ke manushyom ka akara – svarupa kaisa hai\? Gautama ! Vaham ke manushyom ka samhanana, samsthana, umchai evam ayushya bahuta prakara ka hai. Ve bahuta varshom ka ayushya bhogate haim yavat saba duhkhom ka amta karate haim. Una vidyadhara – shreniyom ke bhumibhaga se vaitadhya parvata ke donom aura dasha – dasha yojana upara do abhiyogya – shreniyam, vyantara deva – visheshom ki avasa – pamktiyam haim. Ve purva – pashchima lambi tatha uttara – dakshina chauri haim. Unaki chaurai dasha – dasha yojana tatha lambai parvata jitani hai. Ve donom shreniyam apane donom ora do – do padmavaravedikaom evam do – do vanakhamdom se pariveshtita haim. Lambai mem donom parvata – jitani haim. Bhagavan ! Abhiyogya – shreniyom ka akara – svarupa kaisa hai\? Gautama ! Unaka bara samatala, ramaniya bhumi bhaga hai. Maniyom evam trinom se upashobhita hai. Maniyom ke varna, trinom ke shabda adi anyatra vistara se varnita haim. Vaham bahuta se deva, deviyam ashraya lete haim, shayana karate haim, yavat vishesha sukhom ka upayoga karate haim. Una abhiyogya – shreniyom mem devaraja, devendra shakra ke soma, yama, varuna tatha vaishramana devom ke bahuta se bhavana haim. Ve bhavana bahara se gola tatha bhitara se chaurasa haim. Vaham devaraja, devendra shakra ke atyanta riddhisampanna, dyutiman tatha saukhyasampanna soma, yama, varuna evam vaishramana samjnyaka abhiyogika deva nivasa karate haim. Una abhiyogya – shreniyom ke ati samatala, ramaniya bhumibhaga se vaitadhya parvata ke donom parshva mem – pamcha – pamcha yojana umche jane para vaitadhya parvata ka shikhara – tala hai. Vaha purva – pashchima lamba tatha uttara – dakshina chaura hai. Usaki chaurai dasha yojana hai, lambai parvata jitani hai. Vaha eka padmavaravedika se tatha eka vanakhamda se charom ora pariveshtita hai. Bhagavan ! Vaitadhya parvata ke shikhara – tala ka akara – svarupa kaisa hai\? Gautama ! Usaka bhumibhaga bahuta samatala tatha ramaniya hai. Vaha mridamga ke upara ke bhaga jaisa samatala hai. Bahuvidha pamcharamgi maniyom se upashobhita hai. Vaham sthana – sthana para vavariyam evam sarovara haim. Vaham aneka vanavyantara deva, deviyam nivasa karate haim, purva – achirna punyom ka phalabhoga karate haim. Bhagavan ! Jambudvipa ke antargata bharatakshetra mem vaitadhya parvata ke kitane kuta haim\? Gautama! Nau kuta haim. Siddhayatanakuta, dakshinardhabharatakuta, khandaprapataguhakuta, manibhadrakuta, vaitadhyakuta, purnabhadrakuta, tamisraguhakuta, uttarardhabharatakuta, vaishramanakuta. |