Sutra Navigation: Pragnapana ( प्रज्ञापना उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1006913 | ||
Scripture Name( English ): | Pragnapana | Translated Scripture Name : | प्रज्ञापना उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
पद-३६ समुद्घात |
Translated Chapter : |
पद-३६ समुद्घात |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 613 | Category : | Upang-04 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जीवे णं भंते! वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहए समोहणित्ता जे पोग्गले णिच्छुभति तेहि णं भंते! पोग्गलेहिं केवतिए खेत्ते अफुण्णे? केवतिए खेत्ते फुडे? गोयमा! सरीरप्पमाणमेत्ते विक्खंभ-बाहल्लेणं, आयामेणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं जोयणाइं एगदिसिं विदिसिं वा एवतिए खेत्ते अफुण्णे एवतिए खेत्ते फुडे। से णं भंते! खेत्ते केवतिकालस्स अफुण्णे? केवतिकालस्स फुडे? गोयमा! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेण एवतिकालस्स अफुण्णे एवतिकालस्स फुडे। सेसं तं चेव जाव पंचकिरिया वि। एवं नेरइए वि, नवरं–आयामेणं जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं जोयणाइं एगदिसिं एवतिए खेत्ते। केवतिकालस्स तं चेव जहा जीवपए। एवं जहा नेरइयस्स तहा असुरकुमारस्स, नवरं–एगदिसिं विदिसिं वा। एवं जाव थणियकुमारस्स। वाउक्काइयस्स जहा जीवपदे, नवरं–एगदिसिं। पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स णिरवसेसं जहा नेरइयस्स मनूस-वाण-मंतर-जोतिसिय-वेमानियस्स णिरवसेसं जहा असुरकुमारस्स। जीवे णं भंते! तेयगसमुग्घाएणं समोहए समोहणित्ता जे पोग्गले णिच्छुभइ तेहि णं भंते! पोग्गलेहिं केवतिए खेत्ते अफुण्णे? एवं जहेव वेउव्वियसमुग्घाएण तहेव, नवरं–आयामेणं जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जतिभागं, सेसं तं चेव। एवं जाव वेमानियस्स, नवरं–पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स एगदिसिं एवतिए खेत्ते अफुण्णे। जीवे णं भंते! आहारसमुग्घाएणं समोहए समोहणित्ता जे पोग्गले णिच्छुभइ तेहि णं भंते! पोग्गलेहिं केवतिए खेत्ते अफुण्णे? केवतिए खेत्ते फुडे? गोयमा! सरीरपमाणमेत्ते विक्खंभ-बाहल्लेणं, आयामेणं जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं जोयणाइं एगदिसिं एवइए खेत्ते अफुण्णे एवइए खेत्ते फुडे। से णं भंते! केवइकालस्स अफुण्णे? केवइकालस्स फुडे? गोयमा! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेणं एवतिकालस्स अफुण्णे एवतिकालस्स फुडे। ते णं भंते! पोग्गला केवतिकालस्स निच्छुभति? गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतो-मुहुत्तस्स। ते णं भंते! पोग्गला निच्छूढा समाणा जाइं तत्थ पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं अभिहणंति जाव उद्दवेंति तओ णं भंते! जीवे कतिकिरिए? गोयमा! सिय तिकिरिए सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए। ते णं भंते! जीवा ताओ जीवाओ कतिकिरिया? गोयमा! एवं चेव। से णं भंते! जीवे ते य जीवा अन्नेसिं जीवाणं परंपराघाएणं कतिकिरिया? गोयमा! तिकिरिया वि चउकिरिया वि पंचकिरिया वि। एवं मनूसे वि। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! मारणान्तिकसमुद्घात के द्वारा समवहत हुआ जीव, समवहत होकर जिन पुद्गलों को आत्म – प्रदेशों से पृथक् करता है, उन पुद्गलों से कितना क्षेत्र आपूर्ण तथा स्पृष्ट होता है ? गौतम ! विस्तार और बाहल्य की अपेक्षा से शरीरप्रमाण क्षेत्र तथा लम्बाई में जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग तथा उत्कृष्ट असंख्यात योजन क्षेत्र आपूर्ण और व्याप्त होता है। इतना क्षेत्र आपूर्ण तथा व्याप्त होता है। वह क्षेत्र कितने काल में पुद्गलों से आपूर्ण तथा स्पृष्ट होता है ? गौतम ! एक समय, दो समय, तीन समय और चार समय के विग्रह से इतने काल में आपूर्ण और स्पृष्ट होता है। तत्पश्चात् शेष वही कथन कदाचित् पाँच क्रियाएं लगती हैं; (तक करना)। समुच्चय जीव के समान नैरयिक को भी समझना। विशेष यह कि लम्बाई में जघन्य कुछ अधिक हजार योजन और उत्कृष्ट असंख्यात योजन एक ही दिशा में उक्त पुद्गलों से आपूर्ण तथा स्पृष्ट होता है तथा एक समय, दो समय या तीन समय के विग्रह से कहना, चार समय के विग्रह से नहीं कहना। असुरकुमार को जीवपद के मारणान्तिकसमुद्घात के अनुसार समझना। विशेष यह कि असुरकुमार का विग्रह नारक के विग्रह के समान तीन समय का समझ लेना। शेष पूर्ववत् ! असुरकुमार के समान वैमानिक देव तक कहना। विशेष यह कि एकेन्द्रिय को समुच्चय जीव के समान कहना। वैक्रियसमुद्घात से समवहत हुआ जीव, समवहत होकर जिन पुद्गलों को बाहर निकालता है, उन पुद्गलों से कितना क्षेत्र आपूर्ण तथा स्पृष्ट होता है ? गौतम ! जितना शरीर का विस्तार और बाहल्य है, उतना तथा लम्बाई में जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग तथा उत्कृष्ट संख्यात योजन जितना क्षेत्र एक दिशा या विदिशा में आपूर्ण और व्याप्त होता है। वह क्षेत्र कितने काल में आपूर्ण और स्पृष्ट होता है ? गौतम ! एक समय, दो समय या तीन समय के विग्रह से होता है। शेष पूर्ववत् ! इसी प्रकार नैरयिकों को भी कहना। विशेष यह कि लम्बाई में जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग तथा उत्कृष्ट संख्यातयोजन जितना क्षेत्र एक दिशा में आपूर्ण और स्पृष्ट होता है। इसका आपूर्ण एवं स्पृष्ट काल जीवपद के समान है। नारक के वैक्रियसमुद्घात समान असुरकुमार को समझना। विशेष यह कि एक दिशा या विदिशा में उतना क्षेत्र आपूर्ण एवं स्पृष्ट होता है। इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त समझना। वायुकायिक को समुच्चय जीवपद के समान समझना। विशेष यह कि एक ही दिशा में उक्त क्षेत्र आपूर्ण एवं स्पृष्ट होता है। नैरयिक के समान ही पंचेन्द्रियतिर्यंच को जानना। मनुष्य, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक को असुरकुमार के समान कहना। तैजससमुद्घात से समवहत जीव समवहत होकर जिन पुद्गलों को निकालता है, उन पुद्गलों से कितना क्षेत्र आपूर्ण और स्पृष्ट होता है ? गौतम ! वैक्रियसमुद्घात के समान तैजससमुद्घात में कहना। विशेष यह कि तैजससमुद्घात निर्गत पुद्गलों से लम्बाई में जघन्यतः अंगुल का असंख्यातवाँ भाग क्षेत्र आपूर्ण एवं स्पृष्ट होता है। इस प्रकार वैमानिक पर्यन्त समझना। विशेष यह कि पंचेन्द्रियतिर्यंच एक ही दिशा में पूर्वोक्त क्षेत्र को आपूर्ण एवं व्याप्त करते हैं। आहारसमुद्घात से समवहत जीव जिन पुद्गलों को बाहर निकालता है, उन पुद्गलों से कितना क्षेत्र आपूर्ण तथा स्पृष्ट होता है ? गौतम ! विष्कम्भ और बाहल्य से शरीरप्रमाण मात्र तथा लम्बाई में जघन्य अंगुल का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट संख्यात योजन क्षेत्र एक दिशा में होता है। उन पुद्गलों को कितने समय में बाहर निकालता है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त में। भगवन् ! बाहर निकाले हुए वे पुद्गल वहाँ जिन प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों का अभिघात करते हैं, यावत् उन्हें प्राणरहित कर देते हैं, भगवन् ! उनसे उस जीव को कितनी क्रियाएं लगती हैं ? वह कदाचित् तीन, चार और पाँच क्रियाओंवाला होता है। आहारकसमुद्घात द्वारा बाहर निकाले हुए पुद्गलों से स्पृष्ट हुए जीव आहारकसमुद्घात करनेवाले जीव के निमित्त से भी इतनी ही क्रिया – वाला होता है। (आहारकसमुद्घातकर्ता) तथा आहारकसमुद्घातगत पुद्गलों से स्पृष्ट जीव, अन्य जीवों का परम्परा से घात कने के कारण कितनी क्रियाओं वाले होते हैं ? गौतम ! तीन, चार अथवा पाँच क्रियावाले भी होते हैं। इसी प्रकार मनुष्य के आहारकसमुद्घात की वक्तव्यता समझ लेनी चाहिए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jive nam bhamte! Veuvviyasamugghaenam samohae samohanitta je poggale nichchhubhati tehi nam bhamte! Poggalehim kevatie khette aphunne? Kevatie khette phude? Goyama! Sarirappamanamette vikkhambha-bahallenam, ayamenam jahannenam amgulassa asamkhejjatibhagam, ukkosenam samkhejjaim joyanaim egadisim vidisim va evatie khette aphunne evatie khette phude. Se nam bhamte! Khette kevatikalassa aphunne? Kevatikalassa phude? Goyama! Egasamaiena va dusamaiena va tisamaiena va viggahena evatikalassa aphunne evatikalassa phude. Sesam tam cheva java pamchakiriya vi. Evam neraie vi, navaram–ayamenam jahannenam amgulassa samkhejjaibhagam, ukkosenam samkhejjaim joyanaim egadisim evatie khette. Kevatikalassa tam cheva jaha jivapae. Evam jaha neraiyassa taha asurakumarassa, navaram–egadisim vidisim va. Evam java thaniyakumarassa. Vaukkaiyassa jaha jivapade, navaram–egadisim. Pamchemdiyatirikkhajoniyassa niravasesam jaha neraiyassa manusa-vana-mamtara-jotisiya-vemaniyassa niravasesam jaha asurakumarassa. Jive nam bhamte! Teyagasamugghaenam samohae samohanitta je poggale nichchhubhai tehi nam bhamte! Poggalehim kevatie khette aphunne? Evam jaheva veuvviyasamugghaena taheva, navaram–ayamenam jahannenam amgulassa samkhejjatibhagam, sesam tam cheva. Evam java vemaniyassa, navaram–pamchemdiyatirikkhajoniyassa egadisim evatie khette aphunne. Jive nam bhamte! Aharasamugghaenam samohae samohanitta je poggale nichchhubhai tehi nam bhamte! Poggalehim kevatie khette aphunne? Kevatie khette phude? Goyama! Sarirapamanamette vikkhambha-bahallenam, ayamenam jahannenam amgulassa samkhejjatibhagam, ukkosenam samkhejjaim joyanaim egadisim evaie khette aphunne evaie khette phude. Se nam bhamte! Kevaikalassa aphunne? Kevaikalassa phude? Goyama! Egasamaiena va dusamaiena va tisamaiena va viggahenam evatikalassa aphunne evatikalassa phude. Te nam bhamte! Poggala kevatikalassa nichchhubhati? Goyama! Jahannena vi ukkosena vi amto-muhuttassa. Te nam bhamte! Poggala nichchhudha samana jaim tattha panaim bhuyaim jivaim sattaim abhihanamti java uddavemti tao nam bhamte! Jive katikirie? Goyama! Siya tikirie siya chaukirie siya pamchakirie. Te nam bhamte! Jiva tao jivao katikiriya? Goyama! Evam cheva. Se nam bhamte! Jive te ya jiva annesim jivanam paramparaghaenam katikiriya? Goyama! Tikiriya vi chaukiriya vi pamchakiriya vi. Evam manuse vi. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Maranantikasamudghata ke dvara samavahata hua jiva, samavahata hokara jina pudgalom ko atma – pradeshom se prithak karata hai, una pudgalom se kitana kshetra apurna tatha sprishta hota hai\? Gautama ! Vistara aura bahalya ki apeksha se sharirapramana kshetra tatha lambai mem jaghanya amgula ka asamkhyatavam bhaga tatha utkrishta asamkhyata yojana kshetra apurna aura vyapta hota hai. Itana kshetra apurna tatha vyapta hota hai. Vaha kshetra kitane kala mem pudgalom se apurna tatha sprishta hota hai\? Gautama ! Eka samaya, do samaya, tina samaya aura chara samaya ke vigraha se itane kala mem apurna aura sprishta hota hai. Tatpashchat shesha vahi kathana kadachit pamcha kriyaem lagati haim; (taka karana). Samuchchaya jiva ke samana nairayika ko bhi samajhana. Vishesha yaha ki lambai mem jaghanya kuchha adhika hajara yojana aura utkrishta asamkhyata yojana eka hi disha mem ukta pudgalom se apurna tatha sprishta hota hai tatha eka samaya, do samaya ya tina samaya ke vigraha se kahana, chara samaya ke vigraha se nahim kahana. Asurakumara ko jivapada ke maranantikasamudghata ke anusara samajhana. Vishesha yaha ki asurakumara ka vigraha naraka ke vigraha ke samana tina samaya ka samajha lena. Shesha purvavat ! Asurakumara ke samana vaimanika deva taka kahana. Vishesha yaha ki ekendriya ko samuchchaya jiva ke samana kahana. Vaikriyasamudghata se samavahata hua jiva, samavahata hokara jina pudgalom ko bahara nikalata hai, una pudgalom se kitana kshetra apurna tatha sprishta hota hai\? Gautama ! Jitana sharira ka vistara aura bahalya hai, utana tatha lambai mem jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga tatha utkrishta samkhyata yojana jitana kshetra eka disha ya vidisha mem apurna aura vyapta hota hai. Vaha kshetra kitane kala mem apurna aura sprishta hota hai\? Gautama ! Eka samaya, do samaya ya tina samaya ke vigraha se hota hai. Shesha purvavat ! Isi prakara nairayikom ko bhi kahana. Vishesha yaha ki lambai mem jaghanya amgula ke samkhyatavem bhaga tatha utkrishta samkhyatayojana jitana kshetra eka disha mem apurna aura sprishta hota hai. Isaka apurna evam sprishta kala jivapada ke samana hai. Naraka ke vaikriyasamudghata samana asurakumara ko samajhana. Vishesha yaha ki eka disha ya vidisha mem utana kshetra apurna evam sprishta hota hai. Isi prakara stanitakumara paryanta samajhana. Vayukayika ko samuchchaya jivapada ke samana samajhana. Vishesha yaha ki eka hi disha mem ukta kshetra apurna evam sprishta hota hai. Nairayika ke samana hi pamchendriyatiryamcha ko janana. Manushya, vanavyantara, jyotishka evam vaimanika ko asurakumara ke samana kahana. Taijasasamudghata se samavahata jiva samavahata hokara jina pudgalom ko nikalata hai, una pudgalom se kitana kshetra apurna aura sprishta hota hai\? Gautama ! Vaikriyasamudghata ke samana taijasasamudghata mem kahana. Vishesha yaha ki taijasasamudghata nirgata pudgalom se lambai mem jaghanyatah amgula ka asamkhyatavam bhaga kshetra apurna evam sprishta hota hai. Isa prakara vaimanika paryanta samajhana. Vishesha yaha ki pamchendriyatiryamcha eka hi disha mem purvokta kshetra ko apurna evam vyapta karate haim. Aharasamudghata se samavahata jiva jina pudgalom ko bahara nikalata hai, una pudgalom se kitana kshetra apurna tatha sprishta hota hai\? Gautama ! Vishkambha aura bahalya se sharirapramana matra tatha lambai mem jaghanya amgula ka asamkhyatavam bhaga aura utkrishta samkhyata yojana kshetra eka disha mem hota hai. Una pudgalom ko kitane samaya mem bahara nikalata hai\? Gautama ! Jaghanya aura utkrishta antarmuhurtta mem. Bhagavan ! Bahara nikale hue ve pudgala vaham jina pranom, bhutom, jivom aura sattvom ka abhighata karate haim, yavat unhem pranarahita kara dete haim, bhagavan ! Unase usa jiva ko kitani kriyaem lagati haim\? Vaha kadachit tina, chara aura pamcha kriyaomvala hota hai. Aharakasamudghata dvara bahara nikale hue pudgalom se sprishta hue jiva aharakasamudghata karanevale jiva ke nimitta se bhi itani hi kriya – vala hota hai. (aharakasamudghatakarta) tatha aharakasamudghatagata pudgalom se sprishta jiva, anya jivom ka parampara se ghata kane ke karana kitani kriyaom vale hote haim\? Gautama ! Tina, chara athava pamcha kriyavale bhi hote haim. Isi prakara manushya ke aharakasamudghata ki vaktavyata samajha leni chahie. |