Sutra Navigation: Pragnapana ( प्रज्ञापना उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1006737 | ||
Scripture Name( English ): | Pragnapana | Translated Scripture Name : | प्रज्ञापना उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
पद-१५ ईन्द्रिय |
Translated Chapter : |
पद-१५ ईन्द्रिय |
Section : | उद्देशक-२ | Translated Section : | उद्देशक-२ |
Sutra Number : | 437 | Category : | Upang-04 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] कतिविहा णं भंते! इंदिया पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–दव्विंदिया य भाविंदिया य। कति णं भंते! दव्विंदिया पन्नत्ता? गोयमा! अट्ठ दव्विंदिया पन्नत्ता, तं जहा–दो सोत्ता दो नेत्ता दो घाणा जीहा फासे। नेरइयाणं भंते! कति दव्विंदिया पन्नत्ता? गोयमा! अट्ठ, एते चेव। एवं असुरकुमाराणं जाव थणियकुमाराण वि। पुढविकाइयाणं भंते! कति दव्विंदिया पन्नत्ता? गोयमा! एगे फासेंदिए पन्नत्ते। एवं जाव वणस्सतिकाइयाणं। बेइंदियाणं भंते! कति दव्विंदिया पन्नत्ता? गोयमा! दो दव्विंदिया पन्नत्ता, तं जहा–फासिंदिए य जिब्भिंदिए य तेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! चत्तारि दव्विंदिया पन्नत्ता, तं जहा–दो घाणा जीहा फासे। चउरिंदियाणं पुच्छा। गोयमा! छ दव्विंदिया पन्नत्ता, तं जहा–दो णेत्ता दो घाणा जीहा फासे। सेसाणं जहा नेरइयाणं जाव वेमानियाणं। एगमेगस्स णं भंते! नेरइयस्स केवतिया दव्विंदिया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा! अट्ठ। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! अट्ठ वा सोलस्स वा सत्तरस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। एगमेगस्स णं भंते! असुरकुमारस्स केवतिया दव्विंदिया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा! अट्ठ। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! अट्ठ वा णव वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। एवं जाव थणियकुमाराणं ताव भाणियव्वं। एवं पुढविक्काइय आउक्काइय वणस्सइकाइयस्स वि, नवरं–केवतिया बद्धेल्लगा? त्ति पुच्छए उत्तरं एक्कं फासिंदियं पन्नत्तं। एवं तेउक्काइय-वाउक्काइयस्स वि, नवरं–पुरेक्खडा नव वा दस वा। एवं बेइंदियाण वि, नवरं–बद्धेलगपुच्छाए दोन्नि। एवं तेइंदियस्स वि, नवरं–बद्धेल्लगा चत्तारि। एवं चउरिंदियस्स वि, नवरं बद्धेल्लगा छ। पंचेंदियतिरिक्खजोणिय मनूस वाणमंतर जोइसिय सोहम्मीसाणगदेवस्स जहा असुर-कुमारस्स, नवरं–मनूसस्स पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि। जस्सत्थि अट्ठ वा नव वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। सणंकुमार माहिंद बंभ लंतग सुक्क सहस्सार आणय पाणय आरण अच्चुय गेवेज्जगदेवस्स य जहा नेरइयस्स। एगमेगस्स णं भंते! विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवस्स केवतिया दव्विंदिया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा! अट्ठ। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा। सव्वट्ठसिद्धगदेवस्स अतीता अनंता, बद्धेल्लगा अट्ठ, पुरेक्खडा अट्ठ। नेरइयाणं भंते! केवतिया दव्विंदिया अतीता? गोयमा! अनंता। बद्धेल्लगा? गोयमा! असंखेज्जा। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! अनंता। एवं जाव गेवेज्जगदेवाणं नवरं–मनूसाणं बद्धेल्लगा सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा। विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवाणं पुच्छा। गोयमा! अतीता अनंता, बद्धेल्लगा असंखेज्जा, पुरेक्खडा असंखेज्जा। सव्वट्ठसिद्धगदेवाणं पुच्छा। गोयमा! अतीता अनंता, बद्धेल्लगा संखेज्जा, पुरेक्खडा संखेज्जा। एगमेगस्स णं भंते! नेरइयस्स नेरइअत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया बद्धेल्लया? गोयमा! अट्ठ। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। एगमेगस्स णं भंते! नेरइयस्स असुरकुमारत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा! नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। एवं जाव थणियकुमारत्ते। एगमेगस्स णं भंते! नेरइयस्स पुढविकाइयत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा! नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि एक्को वा दो वा तिन्नि वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। एवं जाव वणप्फइकाइयत्ते। एगमेगस्स णं भंते! नेरइयस्स बेइंदियत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा! नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि दो वा चत्तारि वा छ वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। एवं तेइंदियत्ते वि, नवरं–पुरेक्खडा चत्तारि वा अट्ठ वा बारस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। एवं चउरिंदियत्ते वि, नवरं–पुरेक्खडा छ वा बारस वा अट्ठारस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। पंचेंदियतिरिक्खजोणियत्ते जहा असुरकुमारत्ते। मनूसत्ते वि एवं चेव, नवरं–केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। सव्वेसिं मनूसवज्जाणं पुरेक्खडा मनूसत्ते कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि त्ति एवं न वुच्चति। वाणमंतर जोइसिय सोहम्मग जाव गेवेज्जगदेवत्ते अतीता अनंता। बद्धेल्लगा नत्थि। पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि। जस्सत्थि अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। एगमेगस्स णं भंते! नेरइयस्स विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता? गोयमा! नत्थि। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा! नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि अट्ठ वा सोलस वा। सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते अतीता नत्थि। बद्धेल्लगा नत्थि। पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि अट्ठ। एवं जहा नेरइयदंडओ णीओ तहा असुरकुमारेण वि णेयव्वो जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिएणं, नवरं–जस्स सट्ठाणे जति बद्धेल्लगा तस्स तइ भाणियव्वा। एगमेगस्स णं भंते! मनूसस्स नेरइयत्ते केवतिया दव्वेंदिया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा! नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। एवं जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणियत्ते, नवरं–एगिंदिय विगलिंदिएसु जस्स जत्तिया पुरेक्खडा तस्स तत्तिया भाणियव्वा। एगमेगस्स णं भंते! मनूसस्स मनूसत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा! अट्ठ। केवतिया पुरेक्खडा? कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। वाणमंतर जोतिसिय जाव गेवेज्जगदेवत्ते जहा नेरइयत्ते। एगमेगस्स णं भंते! मनूसस्स विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि अट्ठ वा सोलस वा। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा! नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि अट्ठ वा सोलस वा। एगमेगस्स णं भंते! मनूसस्स सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि अट्ठ। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा! नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि अट्ठ। वाणमंतर-जोतिसिए जहा नेरइए। सोहम्मगदेवे वि जहा नेरइए, नवरं–सोहम्मगदेवस्स विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि अट्ठ। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा! नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि अट्ठ वा सोलस वा। सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते जहा नेरइयस्स। एवं जाव गेवेज्जगदेवस्स सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते ताव नेयव्वं। एगमेगस्स णं भंते! विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवस्स नेरइयत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा! नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! नत्थि। एवं जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणियत्ते। मनूसत्ते अतीता अनंता, बद्धेल्लगा नत्थि। पुरेक्खडा अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा। वाणमंतर-जोतिसियत्ते जहा नेरइत्ते। सोहम्मगदेवत्ते अतीता अनंता। बद्धेल्लगा नत्थि। पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा। एवं जाव गेवेज्जगदेवत्ते। विजय वेजयंत जयंत अपराजियत्ते अतीता कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि अट्ठ। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा! अट्ठ। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि अट्ठ। एगमेगस्स णं भंते! विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवस्स सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता? गोयमा! नत्थि केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा! नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि अट्ठ। एगमेगस्स णं भंते! सव्वट्ठसिद्धगदेवस्स नेरइयत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा! नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! नत्थि। एवं मनूसवज्जं जाव गेवेज्जगदेवत्ते, नवरं–मनूसत्ते अतीता अनंता। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा! नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! अट्ठ। विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवत्ते अतीता कस्सइ अत्थि कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि अट्ठ। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा! नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! नत्थि। एगमेगस्स णं भंते! सव्वट्ठसिद्धगदेवस्स सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता? गोयमा! नत्थि। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा! अट्ठ। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! नत्थि। नेरइयाणं भंते! नेरइयत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा! असंखेज्जा। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! अनंता। नेरइयाणं भंते! असुरकुमारत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा! नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! अनंता। एवं जाव गेवेज्जगदेवत्ते। नेरइयाणं भंते! विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता? नत्थि। केवतिया बद्धेल्लगा? नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? असंखेज्जा। एवं सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते वि। एवं जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते भाणियव्वं, नवरं–वणस्सइकाइयाणं विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवत्ते सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते य पुरेक्खडा अनंता। सव्वेसिं मनूस सव्वट्ठसिद्धगवज्जाणं सट्ठाणे बद्धेल्लगा असंखेज्जा, परट्ठाणे बद्धेल्लगा नत्थि। वणस्सइकाइयाणं सट्ठाणे बद्धेल्लगा अनंता। मनुस्साणं नेरइयत्ते अतीता अनंता। बद्धेल्ला नत्थि। पुरेक्खडा अनंता। एवं जाव गेवेज्जग-देवत्ते, नवरं–सट्ठाणे अतीता अनंता, बद्धेल्लगा सिय संखेज्जा, सिय असंखेज्जा, पुरेक्खडा अनंता। मनूसाणं भंते! विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता? संखेज्जा। केवतिया बद्धेल्लगा? नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा। एवं सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते वि। वाणमंतर-जोइसियाणं जहा नेरइयाणं। सोहम्मगदेवाणं एवं चेव, नवरं–विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवत्ते अतीता असंखेज्जा, बद्धेल्लगा नत्थि, पुरे-क्खडा असंखेज्जा। सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते अतीता नत्थि। बद्धेल्लगा नत्थि। पुरेक्खडा असंखेज्जा। एवं जाव गेवेज्जगदेवाणं। विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवाणं भंते! नेरइयत्ते केवतिया दव्वेंदिया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया बद्धेल्लगा? नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? नत्थि। एवं जाव जोइसियत्ते, णवरमेसिं मनूसत्ते अतीता अनंता। केवतिया बद्धेल्लगा? नत्थि। पुरेक्खडा असंखेज्जा। एवं जाव गेवेज्जगदेवत्ते। सट्ठाणे अतीता असंखेज्जा। केवतिया बद्धेल्लगा? असंखेज्जा। केवतिया पुरेक्खडा? असंखेज्जा। सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते अतीता नत्थि। बद्धेल्लगा नत्थि पुरेक्खडा असंखेज्जा। सव्वट्ठसिद्धगदेवाणं भंते! नेरइयत्ते केवतिया दव्वेंदिया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया बद्धेल्लगा? नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? नत्थि। एवं मनूसवज्जं जाव गेवेज्जगदेवत्ते। मनूसत्ते अतीता अनंता। बद्धेल्लगा नत्थि। पुरेक्खडा संखेज्जा। विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता? संखेज्जा। केवतिया बद्धेल्लगा? नत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? नत्थि। सव्वट्ठसिद्धगदेवाणं भंते! सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीता? नत्थि। केवतिया बद्धेल्लगा? संखेज्जा। केवतिया पुरेक्खडा? नत्थि। कति णं भंते! भाविंदिया पन्नत्ता? गोयमा! पंच भाविंदिया पन्नत्ता, तं जहा–सोइंदिए जाव फासिंदिए। नेरइयाणं भंते! कति भाविंदिया पन्नत्ता? गोयमा! पंच भाविंदिया पन्नत्ता, तं जहा–सोइंदिए जाव फासेंदिए। एवं जस्स जति इंदिया तस्स तति भाणियव्वा जाव वेमानियाणं। एगमेगस्स णं भंते! नेरइयस्स केवतिया भाविंदिया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया बद्धेल्लगा? पंच।क केवतिया पुरेक्खडा? पंच वा दस वा एक्कारस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। एवं असुरकुमारस्स वि, नवरं–पुरेक्खडा पंच वा छ वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। एवं जाव थणियकुमारस्स। एवं पुढविकाइय आउकाय वणस्सइकाइयस्स वि, बेइंदिय तेइंदिय चउरिंदियस्स वि तेउक्काइय-वाउक्काइयस्स वि एवं चेव, नवरं–पुरेक्खडा छ वा सत्त वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स जाव ईसाणस्स जहा असुरकुमारस्स, नवरं–मनूसस्स पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि, कस्सइ नत्थि त्ति भाणियव्वं। सणंकुमार जाव गेवेज्जगस्स जहा नेरइयस्स। विजय वेजयंत जयंत अपराजियदेवस्स अतीता अनंता। बद्धेल्लगा पंच। पुरेक्खडा पंच वा दस वा पन्नरस वा संखेज्जा वा। सव्वट्ठसिद्धगदेवस्स अतीता अनंता। बद्धेल्लगा पंच। केवतिया पुरेक्खडा? पंच। नेरइयाणं भंते! केवतिया भाविंदिया अतीता? गोयमा! अनंता। केवतिया बद्धेल्लगा? असंखेज्जा। केवतिया पुरेक्खडा? अनंता। एवं जहा दव्विंदिएसु पोहत्तेणं दंडओ भणिओ तहा भाविंदिएसु वि पोहत्तेणं दंडओ भाणियव्वो, नवरं–वणप्फइकाइयाणं बद्धेल्लगा वि अनंता। एगमेगस्स णं भंते! नेरइयस्स नेरइयत्ते केवतिया भाविंदिया अतीता? गोयमा! अनंता। बद्धेल्लगा पंच। पुरेक्खडा कस्सइ अत्थि, कस्सइ नत्थि, जस्सत्थि पंच वा दस वा पन्नरस वा संखे-ज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। एवं असुरकुमारत्ते जाव थणियकुमारत्ते, नवरं–बद्धेल्लगा नत्थि। पुढविक्काइयत्ते जाव बेइंदियत्ते जहा दव्विंदिया। तेइंदियत्ते तहेव, नवरं–पुरेक्खडा तिन्नि वा छ वा णव वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। एवं चउरिंदियत्ते वि नवरं–पुरेक्खडा चत्तारि वा अट्ठ वा बारस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा। एवं एते चेव गमा चत्तारि नेयव्वा जे चेव दव्विंदिएसु। नवरं–तइयगमे जाणियव्वा जस्स जइ इंदिया ते पुरेक्खडेसु मुनेयव्वा। चउत्थगमे जहेव दव्वेंदिया जाव सव्वट्ठसिद्धगदेवाणं सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते केवतिया फासिंदिया अतीता? नत्थि। बद्धेल्लगा संखेज्जा। पुरेक्खडा नत्थि। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! इन्द्रियाँ कितने प्रकार की कही हैं ? गौतम ! दो प्रकार की, द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय। द्रव्येन्द्रियाँ आठ प्रकार की हैं – दो श्रोत्र, दो नेत्र, दो घ्राण, जिह्वा और स्पर्शन। नैरयिकों को ये ही आठ द्रव्येन्द्रियाँ हैं। इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों तक समझना। पृथ्वीकायिकों को एक स्पर्शनेन्द्रिय है। वनस्पतिकायिकों तक इसी प्रकार कहना। द्वीन्द्रिय को दो द्रव्येन्द्रियाँ हैं, स्पर्शनेन्द्रिय और जिह्वेन्द्रिय। त्रीन्द्रिय के चार द्रव्येन्द्रियाँ हैं, दो घ्राण, जिह्वा और स्पर्शन। चतुरिन्द्रिय जीवों के छह द्रव्येन्द्रियाँ हैं, दो नेत्र, दो घ्राण, जिह्वा और स्पर्शन। शेष सबके नैरयिकों की तरह आठ द्रव्येन्द्रियाँ कहना। भगवन् ! एक – एक नैरयिक की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! अनन्त। कितनी बद्ध हैं ? गौतम ! आठ। एक – एक नैरयिक की पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ आठ हैं, सोलह हैं, संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं। एक – एक असुरकुमार के अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं। बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ आठ हैं। पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) आठ हैं, नौ हैं, संख्यात हैं, असंख्यात हैं, या अनन्त हैं। स्तनितकुमार तक इसी प्रकार कहना। पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक में भी इसी प्रकार कहना। विशेषतः इनकी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ एक मात्र स्पर्शनेन्द्रिय है। तेजस्का – यिक और वायुकायिक मैं भी इसी प्रकार कहना। विशेष यह कि इनकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ नौ या दस होती हैं। द्वीन्द्रियों में भी इसी प्रकार कहना। विशेष यह कि इनकी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ दो हैं। इसी प्रकार त्रीन्द्रिय में समझना। विशेष यह कि (इसकी) बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ ४ हैं। इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय में भी जानना। विशेष यह कि (इसकी) बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ छ हैं। पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक, मनुष्य, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और सौधर्म, ईशान देव की अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में असुरकुमार के समान समझना। विशेष यह कि पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी मनुष्य के होती हैं, किसी के नहीं होती। जिसके होती है, उसके आठ, नौ, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं। सनत्कुमार यावत् अच्युत और ग्रैवेयक देव की अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में नैरयिक के समान जानना। एक – एक विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं। विजयादि चारों में से प्रत्येक की बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ आठ हैं। और पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) आठ, सोलह, चौबीस या संख्यात होती हैं। सर्वार्थसिद्ध देव की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त, बद्ध आठ और पुरस्कृत भी आठ होती हैं। भगवन् ! (बहुत – से) नारकों की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! अनन्त। बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं? असंख्यात हैं। पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! अनन्त हैं। इसी प्रकार यावत् (बहुत – से) ग्रैवेयक देवों में समझना। विशेष यह कि मनुष्यों की बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात होती हैं। (बहुत – से) विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवों की अतीत (द्रव्येन्द्रियाँ) अनन्त हैं, बद्ध असंख्यात हैं (और) पुरस्कृत असंख्यात हैं। सर्वार्थसिद्ध देवों की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध संख्यात हैं (और) पुरस्कृत संख्यात हैं। भगवन् ! एक – एक नैरयिक की नैरयिकपन में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! अनन्त हैं। बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ हैं। पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती। जिसकी होती हैं, उसकी आठ, सोलह, चौबीस, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं। एक – एक नैरयिक की असुरकुमार पर्याय में अतीत (द्रव्येन्द्रियाँ) अनन्त हैं। बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) नहीं हैं। पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती, जिसकी होती है, उसकी आठ, सोलह, चौबीस, संख्यात, असंख्यात या अनन्त होती हैं। इसी प्रकार एक – एक नैरयिक की यावत् स्तनितकुमारपर्याय में कहना। भगवन् ! एक – एक नैरयिक की पृथ्वीकायपन में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं। बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं। पुरस्कृत किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती। जिसकी होती हैं, उसकी एक, दो, तीन या संख्यात, असंख्यात या अनन्त होती हैं। इसी प्रकार एक – एक नारक की यावत् वनस्पतिकायपन में कहना। भगवन् ! एक – एक नैरयिक की द्वीन्द्रियपन में कितनी अतीत द्रव्येन्द्रियाँ हैं ? गौतम ! अनन्त। बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? नहीं हैं। पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती। जिसकी होती हैं, उसकी दो, चार, छह, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं। इसी प्रकार त्रीन्द्रियपन में समझना। विशेष यह कि उसकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ चार, आठ या बारह, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं। इसी प्रकार चतुरिन्द्रियपन में जानना। विशेष यह कि उसकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ छह, बारह, अठारह, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त हैं। पंचेन्द्रियतिर्यंचपर्याय में असुरकुमार समान कहना। मनुष्यपर्याय में भी इसी प्रकार कहना। विशेष यह कि पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ आठ, सोलह, चौबीस, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं। मनुष्यों को छोड़कर शेष सबकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ मनुष्यपन में किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती, ऐसा नहीं कहना। वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क, सौधर्म से लेकर ग्रैवेयक देव तक के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध नहीं हैं और पुरस्कृत इन्द्रियाँ किसी की हैं, किसी की नहीं हैं। जिसकी हैं, उसकी आठ, सोलह, चौबीस, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त हैं। एक नैरयिक की विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित – देवत्व के रूप में अतीत और बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं है। पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती, जिसकी होती हैं, उसकी आठ या सोलह होती हैं। सर्वार्थसिद्ध – देवपन में अतीत और बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं, पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती हैं। जिसकी होती हैं, उसकी आठ होती हैं। नैरयिक के समान असुरकुमार के विषय में भी पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक तक कहना। विशेष यह कि जिसकी स्वस्थान में जितनी बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कही हैं, उसकी उतनी कहना। भगवन् ! एक – एक मनुष्य की नैरयिकपन में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! अनन्त हैं। बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? नहीं हैं। पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! किसी की होती है, किसी की नहीं होती, जिसकी होती हैं, उसकी आठ, सोलह, चौबीस, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं। इसी प्रकार यावत् पंचेन्द्रियतिर्यंचपर्याय में कहना। विशेष यह कि एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रियों में से जिसकी जितनी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कही हैं, उसकी उतनी कहना। भगवन् ! मनुष्य की मनुष्यपर्याय में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! अनन्त हैं। बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ आठ हैं। पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती, जिसकी होती हैं, उसकी आठ, सोलह, चौबीस, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं ? वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और यावत् ग्रैवेयक देवत्व के रूप में नैरयिकत्व रूप में उक्त अतीतादि द्रव्येन्द्रियों के समान समझना। एक – एक मनुष्य की विजय यावत् अपराजितदेवत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती हैं। जिसकी होती हैं, उसकी आठ या सोलह होती हैं। बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं। पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं और किसी की नहीं होती। जिसकी होती हैं, उसकी आठ या सोलह होती हैं। एक – एक मनुष्य की सर्वार्थसिद्ध – देवत्वरूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती हैं। जिसकी होती हैं, उसकी आठ होती हैं। बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं होती हैं। पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती हैं। जिसकी होती हैं, उसकी आठ होती हैं। वाणव्यन्तर और ज्योतिष्क देव की तथारूप में अतीत, बद्ध और पुरस्कृत देवेन्द्रियों की वक्तव्यता नैरयिक के समान कहना। सौधर्मकल्प देव की भी नैरयिक के समान कहना। विशेष यह है कि सौधर्म देव की विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजितदेवत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती हैं। जिसकी होती हैं, उसकी आठ होती हैं। बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं। पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती हैं। जिसकी होती हैं, आठ या सोलह होती हैं। (सौधर्मदेव की) सर्वार्थसिद्धदेवत्वरूप में द्रव्येन्द्रियों नैरयिक के समान समझना। ग्रैवेयकदेव तक यावत् सर्वार्थसिद्धदेवत्वरूप में अतीत, बद्ध, पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता भी इसी प्रकार कहना। एक – एक विजय यावत् अपराजित देव की नैरयिक के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं। बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ नहीं है। इन चारों की प्रत्येक की, यावत् पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकत्वरूप में द्रव्येन्द्रियों को इसी प्रकार समझना। (इन्हीं की प्रत्येक की) मनुष्यत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध नहीं हैं, पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ आठ, सोलह, या चौबीस होती हैं, अथवा संख्यात होती हैं। वाणव्यन्तर एवं ज्योतिष्क देवत्व के रूप में द्रव्येन्द्रियों नैरयिकत्वरूप अनुसार कहना। सौधर्मदेवत्वरूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध नहीं हैं और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती हैं। जिसकी होती हैं, उसकी आठ, सोलह, चौबीस अथवा संख्यात होती हैं। यावत् ग्रैवेयकदेवत्व के रूप में इसी प्रकार समझना। विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवत्व के रूपमें अतीत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं और किसी की नहीं होती हैं। जिसकी होती हैं उसकी आठ होती हैं। बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ आठ हैं। पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं और किसी की नहीं होती, जिसकी होती हैं, उसके आठ होती हैं। भगवन् ! एक – एक विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव की सर्वार्थसिद्धदेवत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! नहीं हैं। बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं। पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती हैं। जिसकी होती हैं, वे आठ होती हैं। भगवन् ! एक – एक सर्वार्थसिद्धदेव की नारकपन में कितनी द्रव्येन्द्रियाँ अतीत हैं ? गौतम ! अनन्त हैं। बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं। इसी प्रकार मनुष्यत्व को छोड़कर यावत् ग्रैवेयकदेवत्वरूप में (एक – एक सर्वार्थ – सिद्धदेव की) वक्तव्यता समझना। विशेष यह है कि मनुष्यत्वरूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं। बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) नहीं हैं। पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) आठ हैं। (एक – एक सर्वार्थसिद्ध देव की) विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजितदेवत्वरूप में अतीत (द्रव्येन्द्रियाँ) किसी की हैं और किसी की नहीं हैं। जिसकी होती हैं, वे आठ होती हैं। बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं। एक – एक सर्वार्थसिद्धदेव की सर्वार्थसिद्धदेवत्वरूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं। बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) आठ हैं। पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) नहीं हैं। भगवन् ! (बहुत – से) नैरयिकों की नारकत्वरूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! अनन्त हैं। बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) असंख्यात हैं। पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) अनन्त हैं। भगवन् ! (बहुत – से) नैरयिकों की असुरकुमारत्वरूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? अनन्त हैं। बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) नहीं हैं। पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) अनन्त हैं। (बहुत – से नारकों की) यावत् ग्रैवेयकदेवत्वरूप में द्रव्येन्द्रियाँ इसी प्रकार जानना। नैरयिकों की विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवत्व के रूप के अतीत द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं। बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) नहीं हैं। पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) असंख्यात हैं। (नैरयिकों की) सर्वार्थसिद्धदेवत्व रूप में द्रव्येन्द्रियाँ भी इसी प्रकार जानना। असुरकुमारों यावत् (बहुत – से) पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की सर्वार्थसिद्ध देवत्वरूप में प्ररूपणा इसी प्रकार करना। विशेष यह कि वनस्पतिकायिकों की विजय यावत् सर्वार्थसिद्धदेवत्व के रूप में पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं। मनुष्यों और सर्वार्थसिद्धदेवों को छोड़कर सबकी स्वस्थान में बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) असंख्यात हैं, परस्थान में बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) नहीं हैं। वनस्पति – कायिकों की स्वस्थान में बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं। मनुष्यों की नैरयिकत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं। मनुष्यों की यावत् ग्रैवेयकदेवत्वरूप में इसी प्रकार समझना। विशेष यह कि स्वस्थान में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात हैं और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं। मनुष्यों की विजय यावत् अपराजित – देवत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ संख्यात हैं। बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) नहीं हैं। पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कदाचित् संख्यात हैं, कदाचित् असंख्यात हैं। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्ध – देवत्वरूप में भी समझ लेना। (बहुत – से) वाणव्यन्तर और ज्योतिष्क देवों की द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता नैरयिकों के समान जानना। सौधर्मदेवों की अतीतादि की वक्तव्यता इसी प्रकार है। विशेष यह कि विजय, वैजयन्त, जयन्त तथा अपराजितदेवत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ असंख्यात हैं, बद्ध नहीं हैं तथा पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ असंख्यात हैं। सर्वार्थसिद्धदेवत्व रूप में अतीत नहीं हैं, बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ भी नहीं हैं, किन्तु पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ असंख्यात हैं। (बहुत – से) यावत् ग्रैवेयकदेवों की द्रव्येन्द्रियाँ भी इसी प्रकार समझना। भगवन् ! विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवों की नैरयिकत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं? गौतम ! अनन्त हैं। बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) नहीं हैं। पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) नहीं हैं। इसी प्रकार यावत् ज्यो – तिष्कदेवत्वरूप में भी कहना। विशेष यह कि इनकी मनुष्यत्वरूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं। बद्ध (द्रव्ये – न्द्रियाँ) नहीं हैं। पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) असंख्यात हैं। (विजयादि चारों की) सौधर्मादि देवत्व से लेकर ग्रैवेयकदेवत्व के रूप में अतीतादि द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता इसी प्रकार है। इनकी स्वस्थान में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ असंख्यात हैं। बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ भी असंख्यात हैं। (इन चारों देवों) की सर्वार्थसिद्धदेवत्व रूप में अतीत और बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं, किन्तु पुरस्कृत असंख्यात हैं। भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध देवों की नैरयिकत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! अनन्त हैं। बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं। मनुष्य को छोड़कर यावत् ग्रैवेयकदेवत्व तक के रूप में भी इसी प्रकार कहना। (इनकी) मनुष्यत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध नहीं हैं, पुरस्कृत संख्यात हैं। विजय यावत् अपराजित देवत्व के रूप में इनकी अतीत द्रव्येन्द्रियाँ संख्यात हैं। बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं। सर्वार्थ – सिद्ध देवों की सर्वार्थसिद्धदेवत्व रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं। बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ संख्यात हैं। पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं। भगवन् ! भावेन्द्रियाँ कितनी हैं ? गौतम ! पाँच – श्रोत्रेन्द्रिय से स्पर्शेन्द्रिय तक। भगवन् ! नैरयिकों की कितनी भावेन्द्रियाँ हैं ? गौतम ! पाँच, श्रोत्रेन्द्रिय से स्पर्शेन्द्रिय तक। इसी प्रकार जिसकी जितनी इन्द्रियाँ हों, उतनी वैमानिकों तक कहना। भगवन् ! एक – एक नैरयिक की कितनी अतीत भावेन्द्रियाँ हैं ? गौतम ! अनन्त हैं। कितनी (भावेन्द्रियाँ) बद्ध हैं ? पाँच हैं। पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ कितनी हैं ? वे पाँच हैं, दस हैं, ग्यारह हैं, संख्यात हैं या असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं। इसी प्रकार असुरकुमारों यावत् स्तनितकुमार की भावेन्द्रियों में कहना। विशेष यह है कि पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ पाँच, छह, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त हैं। इसी प्रकार पृथ्वीकाय से चतुरिन्द्रिय तक कहना। विशेष यह कि (इनकी) पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ छह, सात, संख्यात, असंख्यात या अनन्त होती हैं। पंचेन्द्रियतिर्यंच – योनिक यावत् ईशानदेव की अतीतादि भावेन्द्रियों के विषय में असुरकुमारों की भावेन्द्रियों की तरह कहना। विशेष यह कि मनुष्य की पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती हैं। सनत्कुमार से लेकर ग्रैवेयकदेव तक नैरयिकों के समान कहना। विजय यावत् अपराजित देव की अतीत भावेन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध पाँच हैं और पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ पाँच, दस, पन्द्रह या संख्यात हैं। सर्वार्थसिद्धदेव की अतीत भावेन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध और पुरस्कृत पाँच हैं। भगवन् ! (बहुत – से) नैरयिकों की अतीत भावेन्द्रियाँ कितनी हैं ? अनन्त हैं। बद्ध भावेन्द्रियाँ असंख्यात हैं। पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ अनन्त हैं। इसी प्रकार – द्रव्येन्द्रियों के बहुवचन के दण्डक समान भावेन्द्रियों में कहना। विशेष यह है कि वनस्पतिकायिकों की बद्ध भावेन्द्रियाँ अनन्त हैं। एक – एक नैरयिक की नैरयिकत्व के रूप में अतीत भावेन्द्रियाँ अनन्त हैं। इसकी बद्ध भावेन्द्रियाँ पाँच हैं और पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती हैं। जिसकी होती हैं, उसकी पाँच, दस, पन्द्रह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त होती हैं। इसी प्रकार असुर – कुमारत्व यावत् स्तनितकुमारत्व के रूप में (अतीतादि भावेन्द्रियों को कहना।) विशेष यह कि इसकी बद्ध भावेन्द्रियाँ नहीं हैं। (एक – एक नैरयिक की) पृथ्वीकायत्व से लेकर यावत् द्वीन्द्रियत्व के रूप में भावेन्द्रियों का द्रव्येन्द्रियों की तरह कहना। त्रीन्द्रियत्व के रूप में भी इसी प्रकार कहना। विशेष यह कि पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ तीन, छह, नौ, संख्यात, असंख्यात या अनन्त होती हैं। इसी प्रकार चतुरिन्द्रियत्व रूप में भी कहना। विशेष यह कि पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ चार, आठ, बारह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त हैं। इस प्रकार ये (द्रव्येन्द्रियों के विषय में कथित) ही चार गम यहाँ समझना। विशेष – तृतीय गम में जिसकी जितनी भावेन्द्रियाँ हों, उतनी पुरस्कृत भावेन्द्रियों में समझना। चतुर्थ गम में जिस प्रकार सर्वार्थसिद्ध की सर्वार्थसिद्धत्व के रूप में कितनी भावेन्द्रियाँ अतीत हैं ? ‘नहीं हैं।’ बद्ध भावेन्द्रियाँ संख्यात हैं, पुरस्कृत भावेन्द्रियाँ नहीं हैं, यहाँ तक कहना। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] kativiha nam bhamte! Imdiya pannatta? Goyama! Duviha pannatta, tam jaha–davvimdiya ya bhavimdiya ya. Kati nam bhamte! Davvimdiya pannatta? Goyama! Attha davvimdiya pannatta, tam jaha–do sotta do netta do ghana jiha phase. Neraiyanam bhamte! Kati davvimdiya pannatta? Goyama! Attha, ete cheva. Evam asurakumaranam java thaniyakumarana vi. Pudhavikaiyanam bhamte! Kati davvimdiya pannatta? Goyama! Ege phasemdie pannatte. Evam java vanassatikaiyanam. Beimdiyanam bhamte! Kati davvimdiya pannatta? Goyama! Do davvimdiya pannatta, tam jaha–phasimdie ya jibbhimdie ya Teimdiyanam puchchha. Goyama! Chattari davvimdiya pannatta, tam jaha–do ghana jiha phase. Chaurimdiyanam puchchha. Goyama! Chha davvimdiya pannatta, tam jaha–do netta do ghana jiha phase. Sesanam jaha neraiyanam java vemaniyanam. Egamegassa nam bhamte! Neraiyassa kevatiya davvimdiya atita? Goyama! Anamta. Kevatiya baddhellaga? Goyama! Attha. Kevatiya purekkhada? Goyama! Attha va solassa va sattarasa va samkhejja va asamkhejja va anamta va. Egamegassa nam bhamte! Asurakumarassa kevatiya davvimdiya atita? Goyama! Anamta. Kevatiya baddhellaga? Goyama! Attha. Kevatiya purekkhada? Goyama! Attha va nava va samkhejja va asamkhejja va anamta va. Evam java thaniyakumaranam tava bhaniyavvam. Evam pudhavikkaiya aukkaiya vanassaikaiyassa vi, navaram–kevatiya baddhellaga? Tti puchchhae uttaram ekkam phasimdiyam pannattam. Evam teukkaiya-vaukkaiyassa vi, navaram–purekkhada nava va dasa va. Evam beimdiyana vi, navaram–baddhelagapuchchhae donni. Evam teimdiyassa vi, navaram–baddhellaga chattari. Evam chaurimdiyassa vi, navaram baddhellaga chha. Pamchemdiyatirikkhajoniya manusa vanamamtara joisiya sohammisanagadevassa jaha asura-kumarassa, navaram–manusassa purekkhada kassai atthi kassai natthi. Jassatthi attha va nava va samkhejja va asamkhejja va anamta va. Sanamkumara mahimda bambha lamtaga sukka sahassara anaya panaya arana achchuya gevejjagadevassa ya jaha neraiyassa. Egamegassa nam bhamte! Vijaya vejayamta jayamta aparajiyadevassa kevatiya davvimdiya atita? Goyama! Anamta. Kevatiya baddhellaga? Goyama! Attha. Kevatiya purekkhada? Goyama! Attha va solasa va chauvisa va samkhejja va. Savvatthasiddhagadevassa atita anamta, baddhellaga attha, purekkhada attha. Neraiyanam bhamte! Kevatiya davvimdiya atita? Goyama! Anamta. Baddhellaga? Goyama! Asamkhejja. Kevatiya purekkhada? Goyama! Anamta. Evam java gevejjagadevanam navaram–manusanam baddhellaga siya samkhejja siya asamkhejja. Vijaya vejayamta jayamta aparajiyadevanam puchchha. Goyama! Atita anamta, baddhellaga asamkhejja, purekkhada asamkhejja. Savvatthasiddhagadevanam puchchha. Goyama! Atita anamta, baddhellaga samkhejja, purekkhada samkhejja. Egamegassa nam bhamte! Neraiyassa neraiatte kevatiya davvimdiya atita? Goyama! Anamta. Kevatiya baddhellaya? Goyama! Attha. Kevatiya purekkhada? Goyama! Kassai atthi kassai natthi, jassatthi attha va solasa va chauvisa va samkhejja va asamkhejja va anamta va. Egamegassa nam bhamte! Neraiyassa asurakumaratte kevatiya davvimdiya atita? Goyama! Anamta. Kevatiya baddhellaga? Goyama! Natthi. Kevatiya purekkhada? Goyama! Kassai atthi kassai natthi, jassatthi attha va solasa va chauvisa va samkhejja va asamkhejja va anamta va. Evam java thaniyakumaratte. Egamegassa nam bhamte! Neraiyassa pudhavikaiyatte kevatiya davvimdiya atita? Goyama! Anamta. Kevatiya baddhellaga? Goyama! Natthi. Kevatiya purekkhada? Goyama! Kassai atthi kassai natthi, jassatthi ekko va do va tinni va samkhejja va asamkhejja va anamta va. Evam java vanapphaikaiyatte. Egamegassa nam bhamte! Neraiyassa beimdiyatte kevatiya davvimdiya atita? Goyama! Anamta. Kevatiya baddhellaga? Goyama! Natthi. Kevatiya purekkhada? Goyama! Kassai atthi kassai natthi, jassatthi do va chattari va chha va samkhejja va asamkhejja va anamta va. Evam teimdiyatte vi, navaram–purekkhada chattari va attha va barasa va samkhejja va asamkhejja va anamta va. Evam chaurimdiyatte vi, navaram–purekkhada chha va barasa va attharasa va samkhejja va asamkhejja va anamta va. Pamchemdiyatirikkhajoniyatte jaha asurakumaratte. Manusatte vi evam cheva, navaram–kevatiya purekkhada? Goyama! Attha va solasa va chauvisa va samkhejja va asamkhejja va anamta va. Savvesim manusavajjanam purekkhada manusatte kassai atthi kassai natthi tti evam na vuchchati. Vanamamtara joisiya sohammaga java gevejjagadevatte atita anamta. Baddhellaga natthi. Purekkhada kassai atthi kassai natthi. Jassatthi attha va solasa va chauvisa va samkhejja va asamkhejja va anamta va. Egamegassa nam bhamte! Neraiyassa vijaya vejayamta jayamta aparajiyadevatte kevatiya davvimdiya atita? Goyama! Natthi. Kevatiya baddhellaga? Goyama! Natthi. Kevatiya purekkhada? Goyama! Kassai atthi kassai natthi, jassatthi attha va solasa va. Savvatthasiddhagadevatte atita natthi. Baddhellaga natthi. Purekkhada kassai atthi kassai natthi, jassatthi attha. Evam jaha neraiyadamdao nio taha asurakumarena vi neyavvo java pamchemdiyatirikkhajonienam, navaram–jassa satthane jati baddhellaga tassa tai bhaniyavva. Egamegassa nam bhamte! Manusassa neraiyatte kevatiya davvemdiya atita? Goyama! Anamta. Kevatiya baddhellaga? Goyama! Natthi. Kevatiya purekkhada? Goyama! Kassai atthi kassai natthi, jassatthi attha va solasa va chauvisa va samkhejja va asamkhejja va anamta va. Evam java pamchemdiyatirikkhajoniyatte, navaram–egimdiya vigalimdiesu jassa jattiya purekkhada tassa tattiya bhaniyavva. Egamegassa nam bhamte! Manusassa manusatte kevatiya davvimdiya atita? Goyama! Anamta. Kevatiya baddhellaga? Goyama! Attha. Kevatiya purekkhada? Kassai atthi kassai natthi, jassatthi attha va solasa va chauvisa va samkhejja va asamkhejja va anamta va. Vanamamtara jotisiya java gevejjagadevatte jaha neraiyatte. Egamegassa nam bhamte! Manusassa vijaya vejayamta jayamta aparajiyadevatte kevatiya davvimdiya atita? Goyama! Kassai atthi kassai natthi, jassatthi attha va solasa va. Kevatiya baddhellaga? Goyama! Natthi. Kevatiya purekkhada? Goyama! Kassai atthi kassai natthi, jassatthi attha va solasa va. Egamegassa nam bhamte! Manusassa savvatthasiddhagadevatte kevatiya davvimdiya atita? Goyama! Kassai atthi kassai natthi, jassatthi attha. Kevatiya baddhellaga? Goyama! Natthi. Kevatiya purekkhada? Goyama! Kassai atthi kassai natthi, jassatthi attha. Vanamamtara-jotisie jaha neraie. Sohammagadeve vi jaha neraie, navaram–sohammagadevassa vijaya vejayamta jayamta aparajiyadevatte kevatiya davvimdiya atita? Goyama! Kassai atthi kassai natthi, jassatthi attha. Kevatiya baddhellaga? Goyama! Natthi. Kevatiya purekkhada? Goyama! Kassai atthi kassai natthi, jassatthi attha va solasa va. Savvatthasiddhagadevatte jaha neraiyassa. Evam java gevejjagadevassa savvatthasiddhagadevatte tava neyavvam. Egamegassa nam bhamte! Vijaya vejayamta jayamta aparajiyadevassa neraiyatte kevatiya davvimdiya atita? Goyama! Anamta. Kevatiya baddhellaga? Goyama! Natthi. Kevatiya purekkhada? Goyama! Natthi. Evam java pamchemdiyatirikkhajoniyatte. Manusatte atita anamta, baddhellaga natthi. Purekkhada attha va solasa va chauvisa va samkhejja va. Vanamamtara-jotisiyatte jaha neraitte. Sohammagadevatte atita anamta. Baddhellaga natthi. Purekkhada kassai atthi kassai natthi, jassatthi attha va solasa va chauvisa va samkhejja va. Evam java gevejjagadevatte. Vijaya vejayamta jayamta aparajiyatte atita kassai atthi kassai natthi, jassatthi attha. Kevatiya baddhellaga? Goyama! Attha. Kevatiya purekkhada? Goyama! Kassai atthi kassai natthi, jassatthi attha. Egamegassa nam bhamte! Vijaya vejayamta jayamta aparajiyadevassa savvatthasiddhagadevatte kevatiya davvimdiya atita? Goyama! Natthi kevatiya baddhellaga? Goyama! Natthi. Kevatiya purekkhada? Goyama! Kassai atthi kassai natthi, jassatthi attha. Egamegassa nam bhamte! Savvatthasiddhagadevassa neraiyatte kevatiya davvimdiya atita? Goyama! Anamta. Kevatiya baddhellaga? Goyama! Natthi. Kevatiya purekkhada? Goyama! Natthi. Evam manusavajjam java gevejjagadevatte, navaram–manusatte atita anamta. Kevatiya baddhellaga? Goyama! Natthi. Kevatiya purekkhada? Goyama! Attha. Vijaya vejayamta jayamta aparajiyadevatte atita kassai atthi kassai natthi, jassatthi attha. Kevatiya baddhellaga? Goyama! Natthi. Kevatiya purekkhada? Goyama! Natthi. Egamegassa nam bhamte! Savvatthasiddhagadevassa savvatthasiddhagadevatte kevatiya davvimdiya atita? Goyama! Natthi. Kevatiya baddhellaga? Goyama! Attha. Kevatiya purekkhada? Goyama! Natthi. Neraiyanam bhamte! Neraiyatte kevatiya davvimdiya atita? Goyama! Anamta. Kevatiya baddhellaga? Goyama! Asamkhejja. Kevatiya purekkhada? Goyama! Anamta. Neraiyanam bhamte! Asurakumaratte kevatiya davvimdiya atita? Goyama! Anamta. Kevatiya baddhellaga? Goyama! Natthi. Kevatiya purekkhada? Goyama! Anamta. Evam java gevejjagadevatte. Neraiyanam bhamte! Vijaya vejayamta jayamta aparajiyadevatte kevatiya davvimdiya atita? Natthi. Kevatiya baddhellaga? Natthi. Kevatiya purekkhada? Asamkhejja. Evam savvatthasiddhagadevatte vi. Evam java pamchemdiyatirikkhajoniyanam savvatthasiddhagadevatte bhaniyavvam, navaram–vanassaikaiyanam vijaya vejayamta jayamta aparajiyadevatte savvatthasiddhagadevatte ya purekkhada anamta. Savvesim manusa savvatthasiddhagavajjanam satthane baddhellaga asamkhejja, paratthane baddhellaga natthi. Vanassaikaiyanam satthane baddhellaga anamta. Manussanam neraiyatte atita anamta. Baddhella natthi. Purekkhada anamta. Evam java gevejjaga-devatte, navaram–satthane atita anamta, baddhellaga siya samkhejja, siya asamkhejja, purekkhada anamta. Manusanam bhamte! Vijaya vejayamta jayamta aparajiyadevatte kevatiya davvimdiya atita? Samkhejja. Kevatiya baddhellaga? Natthi. Kevatiya purekkhada? Siya samkhejja siya asamkhejja. Evam savvatthasiddhagadevatte vi. Vanamamtara-joisiyanam jaha neraiyanam. Sohammagadevanam evam cheva, navaram–vijaya vejayamta jayamta aparajiyadevatte atita asamkhejja, baddhellaga natthi, pure-kkhada asamkhejja. Savvatthasiddhagadevatte atita natthi. Baddhellaga natthi. Purekkhada asamkhejja. Evam java gevejjagadevanam. Vijaya vejayamta jayamta aparajiyadevanam bhamte! Neraiyatte kevatiya davvemdiya atita? Goyama! Anamta. Kevatiya baddhellaga? Natthi. Kevatiya purekkhada? Natthi. Evam java joisiyatte, navaramesim manusatte atita anamta. Kevatiya baddhellaga? Natthi. Purekkhada asamkhejja. Evam java gevejjagadevatte. Satthane atita asamkhejja. Kevatiya baddhellaga? Asamkhejja. Kevatiya purekkhada? Asamkhejja. Savvatthasiddhagadevatte atita natthi. Baddhellaga natthi purekkhada asamkhejja. Savvatthasiddhagadevanam bhamte! Neraiyatte kevatiya davvemdiya atita? Goyama! Anamta. Kevatiya baddhellaga? Natthi. Kevatiya purekkhada? Natthi. Evam manusavajjam java gevejjagadevatte. Manusatte atita anamta. Baddhellaga natthi. Purekkhada samkhejja. Vijaya vejayamta jayamta aparajiyadevatte kevatiya davvimdiya atita? Samkhejja. Kevatiya baddhellaga? Natthi. Kevatiya purekkhada? Natthi. Savvatthasiddhagadevanam bhamte! Savvatthasiddhagadevatte kevatiya davvimdiya atita? Natthi. Kevatiya baddhellaga? Samkhejja. Kevatiya purekkhada? Natthi. Kati nam bhamte! Bhavimdiya pannatta? Goyama! Pamcha bhavimdiya pannatta, tam jaha–soimdie java phasimdie. Neraiyanam bhamte! Kati bhavimdiya pannatta? Goyama! Pamcha bhavimdiya pannatta, tam jaha–soimdie java phasemdie. Evam jassa jati imdiya tassa tati bhaniyavva java vemaniyanam. Egamegassa nam bhamte! Neraiyassa kevatiya bhavimdiya atita? Goyama! Anamta. Kevatiya baddhellaga? PamchA.Ka kevatiya purekkhada? Pamcha va dasa va ekkarasa va samkhejja va asamkhejja va anamta va. Evam asurakumarassa vi, navaram–purekkhada pamcha va chha va samkhejja va asamkhejja va anamta va. Evam java thaniyakumarassa. Evam pudhavikaiya aukaya vanassaikaiyassa vi, beimdiya teimdiya chaurimdiyassa vi teukkaiya-vaukkaiyassa vi evam cheva, navaram–purekkhada chha va satta va samkhejja va asamkhejja va anamta va. Pamchemdiyatirikkhajoniyassa java isanassa jaha asurakumarassa, navaram–manusassa purekkhada kassai atthi, kassai natthi tti bhaniyavvam. Sanamkumara java gevejjagassa jaha neraiyassa. Vijaya vejayamta jayamta aparajiyadevassa atita anamta. Baddhellaga pamcha. Purekkhada pamcha va dasa va pannarasa va samkhejja va. Savvatthasiddhagadevassa atita anamta. Baddhellaga pamcha. Kevatiya purekkhada? Pamcha. Neraiyanam bhamte! Kevatiya bhavimdiya atita? Goyama! Anamta. Kevatiya baddhellaga? Asamkhejja. Kevatiya purekkhada? Anamta. Evam jaha davvimdiesu pohattenam damdao bhanio taha bhavimdiesu vi pohattenam damdao bhaniyavvo, navaram–vanapphaikaiyanam baddhellaga vi anamta. Egamegassa nam bhamte! Neraiyassa neraiyatte kevatiya bhavimdiya atita? Goyama! Anamta. Baddhellaga pamcha. Purekkhada kassai atthi, kassai natthi, jassatthi pamcha va dasa va pannarasa va samkhe-jja va asamkhejja va anamta va. Evam asurakumaratte java thaniyakumaratte, navaram–baddhellaga natthi. Pudhavikkaiyatte java beimdiyatte jaha davvimdiya. Teimdiyatte taheva, navaram–purekkhada tinni va chha va nava va samkhejja va asamkhejja va anamta va. Evam chaurimdiyatte vi navaram–purekkhada chattari va attha va barasa va samkhejja va asamkhejja va anamta va. Evam ete cheva gama chattari neyavva je cheva davvimdiesu. Navaram–taiyagame janiyavva jassa jai imdiya te purekkhadesu muneyavva. Chautthagame jaheva davvemdiya java savvatthasiddhagadevanam savvatthasiddhagadevatte kevatiya phasimdiya atita? Natthi. Baddhellaga samkhejja. Purekkhada natthi. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Indriyam kitane prakara ki kahi haim\? Gautama ! Do prakara ki, dravyendriya aura bhavendriya. Dravyendriyam atha prakara ki haim – do shrotra, do netra, do ghrana, jihva aura sparshana. Nairayikom ko ye hi atha dravyendriyam haim. Isi prakara asurakumarom se stanitakumarom taka samajhana. Prithvikayikom ko eka sparshanendriya hai. Vanaspatikayikom taka isi prakara kahana. Dvindriya ko do dravyendriyam haim, sparshanendriya aura jihvendriya. Trindriya ke chara dravyendriyam haim, do ghrana, jihva aura sparshana. Chaturindriya jivom ke chhaha dravyendriyam haim, do netra, do ghrana, jihva aura sparshana. Shesha sabake nairayikom ki taraha atha dravyendriyam kahana. Bhagavan ! Eka – eka nairayika ki atita dravyendriyam kitani haim\? Gautama ! Ananta. Kitani baddha haim\? Gautama ! Atha. Eka – eka nairayika ki puraskrita dravyendriyam atha haim, solaha haim, samkhyata haim, asamkhyata haim athava ananta haim. Eka – eka asurakumara ke atita dravyendriyam ananta haim. Baddha dravyendriyam atha haim. Puraskrita (dravyendriyam) atha haim, nau haim, samkhyata haim, asamkhyata haim, ya ananta haim. Stanitakumara taka isi prakara kahana. Prithvikayika, apkayika aura vanaspatikayika mem bhi isi prakara kahana. Visheshatah inaki baddha dravyendriyam eka matra sparshanendriya hai. Tejaska – yika aura vayukayika maim bhi isi prakara kahana. Vishesha yaha ki inaki puraskrita dravyendriyam nau ya dasa hoti haim. Dvindriyom mem bhi isi prakara kahana. Vishesha yaha ki inaki baddha dravyendriyam do haim. Isi prakara trindriya mem samajhana. Vishesha yaha ki (isaki) baddha dravyendriyam 4 haim. Isi prakara chaturindriya mem bhi janana. Vishesha yaha ki (isaki) baddha dravyendriyam chha haim. Pamchendriyatiryamchayonika, manushya, vanavyantara, jyotishka aura saudharma, ishana deva ki atita, baddha aura puraskrita dravyendriyom ke vishaya mem asurakumara ke samana samajhana. Vishesha yaha ki puraskrita dravyendriyam kisi manushya ke hoti haim, kisi ke nahim hoti. Jisake hoti hai, usake atha, nau, samkhyata, asamkhyata athava ananta hoti haim. Sanatkumara yavat achyuta aura graiveyaka deva ki atita, baddha aura puraskrita dravyendriyom ke vishaya mem nairayika ke samana janana. Eka – eka vijaya, vaijayanta, jayanta aura aparajita deva ki atita dravyendriyam ananta haim. Vijayadi charom mem se pratyeka ki baddha dravyendriyam atha haim. Aura puraskrita (dravyendriyam) atha, solaha, chaubisa ya samkhyata hoti haim. Sarvarthasiddha deva ki atita dravyendriyam ananta, baddha atha aura puraskrita bhi atha hoti haim. Bhagavan ! (bahuta – se) narakom ki atita dravyendriyam kitani haim\? Gautama ! Ananta. Baddha dravyendriyam kitani haim? Asamkhyata haim. Puraskrita dravyendriyam kitani haim\? Gautama ! Ananta haim. Isi prakara yavat (bahuta – se) graiveyaka devom mem samajhana. Vishesha yaha ki manushyom ki baddha dravyendriyam kadachit samkhyata aura kadachit asamkhyata hoti haim. (bahuta – se) vijaya, vaijayanta, jayanta aura aparajita devom ki atita (dravyendriyam) ananta haim, baddha asamkhyata haim (aura) puraskrita asamkhyata haim. Sarvarthasiddha devom ki atita dravyendriyam ananta haim, baddha samkhyata haim (aura) puraskrita samkhyata haim. Bhagavan ! Eka – eka nairayika ki nairayikapana mem atita dravyendriyam kitani haim\? Gautama ! Ananta haim. Baddha dravyendriyam kitani haim\? Gautama ! Atha haim. Puraskrita dravyendriyam kitani haim\? Gautama ! Kisi ki hoti haim, kisi ki nahim hoti. Jisaki hoti haim, usaki atha, solaha, chaubisa, samkhyata, asamkhyata athava ananta hoti haim. Eka – eka nairayika ki asurakumara paryaya mem atita (dravyendriyam) ananta haim. Baddha (dravyendriyam) nahim haim. Puraskrita dravyendriyam kisi ki hoti haim, kisi ki nahim hoti, jisaki hoti hai, usaki atha, solaha, chaubisa, samkhyata, asamkhyata ya ananta hoti haim. Isi prakara eka – eka nairayika ki yavat stanitakumaraparyaya mem kahana. Bhagavan ! Eka – eka nairayika ki prithvikayapana mem atita dravyendriyam ananta haim. Baddha dravyendriyam nahim haim. Puraskrita kisi ki hoti haim, kisi ki nahim hoti. Jisaki hoti haim, usaki eka, do, tina ya samkhyata, asamkhyata ya ananta hoti haim. Isi prakara eka – eka naraka ki yavat vanaspatikayapana mem kahana. Bhagavan ! Eka – eka nairayika ki dvindriyapana mem kitani atita dravyendriyam haim\? Gautama ! Ananta. Baddha dravyendriyam kitani haim\? Nahim haim. Puraskrita dravyendriyam kitani haim\? Kisi ki hoti haim, kisi ki nahim hoti. Jisaki hoti haim, usaki do, chara, chhaha, samkhyata, asamkhyata athava ananta hoti haim. Isi prakara trindriyapana mem samajhana. Vishesha yaha ki usaki puraskrita dravyendriyam chara, atha ya baraha, samkhyata, asamkhyata athava ananta hoti haim. Isi prakara chaturindriyapana mem janana. Vishesha yaha ki usaki puraskrita dravyendriyam chhaha, baraha, atharaha, samkhyata, asamkhyata athava ananta haim. Pamchendriyatiryamchaparyaya mem asurakumara samana kahana. Manushyaparyaya mem bhi isi prakara kahana. Vishesha yaha ki puraskrita dravyendriyam atha, solaha, chaubisa, samkhyata, asamkhyata athava ananta hoti haim. Manushyom ko chhorakara shesha sabaki puraskrita dravyendriyam manushyapana mem kisi ki hoti haim, kisi ki nahim hoti, aisa nahim kahana. Vanavyantara, jyotishka, saudharma se lekara graiveyaka deva taka ke rupa mem atita dravyendriyam ananta haim, baddha nahim haim aura puraskrita indriyam kisi ki haim, kisi ki nahim haim. Jisaki haim, usaki atha, solaha, chaubisa, samkhyata, asamkhyata athava ananta haim. Eka nairayika ki vijaya, vaijayanta, jayanta aura aparajita – devatva ke rupa mem atita aura baddha dravyendriyam nahim hai. Puraskrita dravyendriyam kisi ki hoti haim, kisi ki nahim hoti, jisaki hoti haim, usaki atha ya solaha hoti haim. Sarvarthasiddha – devapana mem atita aura baddha dravyendriyam nahim haim, puraskrita dravyendriyam kisi ki hoti haim, kisi ki nahim hoti haim. Jisaki hoti haim, usaki atha hoti haim. Nairayika ke samana asurakumara ke vishaya mem bhi pamchendriyatiryamchayonika taka kahana. Vishesha yaha ki jisaki svasthana mem jitani baddha dravyendriyam kahi haim, usaki utani kahana. Bhagavan ! Eka – eka manushya ki nairayikapana mem atita dravyendriyam kitani haim\? Gautama ! Ananta haim. Baddha dravyendriyam kitani haim\? Nahim haim. Puraskrita dravyendriyam kitani haim\? Gautama ! Kisi ki hoti hai, kisi ki nahim hoti, jisaki hoti haim, usaki atha, solaha, chaubisa, samkhyata, asamkhyata athava ananta hoti haim. Isi prakara yavat pamchendriyatiryamchaparyaya mem kahana. Vishesha yaha ki ekendriya aura vikalendriyom mem se jisaki jitani puraskrita dravyendriyam kahi haim, usaki utani kahana. Bhagavan ! Manushya ki manushyaparyaya mem atita dravyendriyam kitani haim\? Gautama ! Ananta haim. Baddha dravyendriyam atha haim. Puraskrita dravyendriyam kisi ki hoti haim, kisi ki nahim hoti, jisaki hoti haim, usaki atha, solaha, chaubisa, samkhyata, asamkhyata athava ananta hoti haim\? Vanavyantara, jyotishka aura yavat graiveyaka devatva ke rupa mem nairayikatva rupa mem ukta atitadi dravyendriyom ke samana samajhana. Eka – eka manushya ki vijaya yavat aparajitadevatva ke rupa mem atita dravyendriyam kisi ki hoti haim, kisi ki nahim hoti haim. Jisaki hoti haim, usaki atha ya solaha hoti haim. Baddha dravyendriyam nahim haim. Puraskrita dravyendriyam kisi ki hoti haim aura kisi ki nahim hoti. Jisaki hoti haim, usaki atha ya solaha hoti haim. Eka – eka manushya ki sarvarthasiddha – devatvarupa mem atita dravyendriyam kisi ki hoti haim, kisi ki nahim hoti haim. Jisaki hoti haim, usaki atha hoti haim. Baddha dravyendriyam nahim hoti haim. Puraskrita dravyendriyam kisi ki hoti haim, kisi ki nahim hoti haim. Jisaki hoti haim, usaki atha hoti haim. Vanavyantara aura jyotishka deva ki tatharupa mem atita, baddha aura puraskrita devendriyom ki vaktavyata nairayika ke samana kahana. Saudharmakalpa deva ki bhi nairayika ke samana kahana. Vishesha yaha hai ki saudharma deva ki vijaya, vaijayanta, jayanta aura aparajitadevatva ke rupa mem atita dravyendriyam kisi ki hoti haim, kisi ki nahim hoti haim. Jisaki hoti haim, usaki atha hoti haim. Baddha dravyendriyam nahim haim. Puraskrita dravyendriyam kisi ki hoti haim, kisi ki nahim hoti haim. Jisaki hoti haim, atha ya solaha hoti haim. (saudharmadeva ki) sarvarthasiddhadevatvarupa mem dravyendriyom nairayika ke samana samajhana. Graiveyakadeva taka yavat sarvarthasiddhadevatvarupa mem atita, baddha, puraskrita dravyendriyom ki vaktavyata bhi isi prakara kahana. Eka – eka vijaya yavat aparajita deva ki nairayika ke rupa mem atita dravyendriyam ananta haim. Baddha aura puraskrita dravyendriyam nahim hai. Ina charom ki pratyeka ki, yavat pamchendriyatiryamchayonikatvarupa mem dravyendriyom ko isi prakara samajhana. (inhim ki pratyeka ki) manushyatva ke rupa mem atita dravyendriyam ananta haim, baddha nahim haim, puraskrita dravyendriyam atha, solaha, ya chaubisa hoti haim, athava samkhyata hoti haim. Vanavyantara evam jyotishka devatva ke rupa mem dravyendriyom nairayikatvarupa anusara kahana. Saudharmadevatvarupa mem atita dravyendriyam ananta haim, baddha nahim haim aura puraskrita dravyendriyam kisi ki hoti haim, kisi ki nahim hoti haim. Jisaki hoti haim, usaki atha, solaha, chaubisa athava samkhyata hoti haim. Yavat graiveyakadevatva ke rupa mem isi prakara samajhana. Vijaya, vaijayanta, jayanta aura aparajita devatva ke rupamem atita dravyendriyam kisi ki hoti haim aura kisi ki nahim hoti haim. Jisaki hoti haim usaki atha hoti haim. Baddha dravyendriyam atha haim. Puraskrita dravyendriyam kisi ki hoti haim aura kisi ki nahim hoti, jisaki hoti haim, usake atha hoti haim. Bhagavan ! Eka – eka vijaya, vaijayanta, jayanta aura aparajita deva ki sarvarthasiddhadevatva ke rupa mem atita dravyendriyam kitani haim\? Gautama ! Nahim haim. Baddha dravyendriyam nahim haim. Puraskrita dravyendriyam kisi ki hoti haim, kisi ki nahim hoti haim. Jisaki hoti haim, ve atha hoti haim. Bhagavan ! Eka – eka sarvarthasiddhadeva ki narakapana mem kitani dravyendriyam atita haim\? Gautama ! Ananta haim. Baddha aura puraskrita dravyendriyam nahim haim. Isi prakara manushyatva ko chhorakara yavat graiveyakadevatvarupa mem (eka – eka sarvartha – siddhadeva ki) vaktavyata samajhana. Vishesha yaha hai ki manushyatvarupa mem atita dravyendriyam ananta haim. Baddha (dravyendriyam) nahim haim. Puraskrita (dravyendriyam) atha haim. (eka – eka sarvarthasiddha deva ki) vijaya, vaijayanta, jayanta aura aparajitadevatvarupa mem atita (dravyendriyam) kisi ki haim aura kisi ki nahim haim. Jisaki hoti haim, ve atha hoti haim. Baddha aura puraskrita dravyendriyam nahim haim. Eka – eka sarvarthasiddhadeva ki sarvarthasiddhadevatvarupa mem atita dravyendriyam nahim haim. Baddha (dravyendriyam) atha haim. Puraskrita (dravyendriyam) nahim haim. Bhagavan ! (bahuta – se) nairayikom ki narakatvarupa mem atita dravyendriyam kitani haim\? Gautama ! Ananta haim. Baddha (dravyendriyam) asamkhyata haim. Puraskrita (dravyendriyam) ananta haim. Bhagavan ! (bahuta – se) nairayikom ki asurakumaratvarupa mem atita dravyendriyam kitani haim\? Ananta haim. Baddha (dravyendriyam) nahim haim. Puraskrita (dravyendriyam) ananta haim. (bahuta – se narakom ki) yavat graiveyakadevatvarupa mem dravyendriyam isi prakara janana. Nairayikom ki vijaya, vaijayanta, jayanta aura aparajita devatva ke rupa ke atita dravyendriyam nahim haim. Baddha (dravyendriyam) nahim haim. Puraskrita (dravyendriyam) asamkhyata haim. (nairayikom ki) sarvarthasiddhadevatva rupa mem dravyendriyam bhi isi prakara janana. Asurakumarom yavat (bahuta – se) pamchendriyatiryamchayonikom ki sarvarthasiddha devatvarupa mem prarupana isi prakara karana. Vishesha yaha ki vanaspatikayikom ki vijaya yavat sarvarthasiddhadevatva ke rupa mem puraskrita dravyendriyam ananta haim. Manushyom aura sarvarthasiddhadevom ko chhorakara sabaki svasthana mem baddha (dravyendriyam) asamkhyata haim, parasthana mem baddha (dravyendriyam) nahim haim. Vanaspati – kayikom ki svasthana mem baddha dravyendriyam ananta haim. Manushyom ki nairayikatva ke rupa mem atita dravyendriyam ananta haim, baddha dravyendriyam nahim haim aura puraskrita dravyendriyam ananta haim. Manushyom ki yavat graiveyakadevatvarupa mem isi prakara samajhana. Vishesha yaha ki svasthana mem atita dravyendriyam ananta haim, baddha dravyendriyam kadachit samkhyata aura kadachit asamkhyata haim aura puraskrita dravyendriyam ananta haim. Manushyom ki vijaya yavat aparajita – devatva ke rupa mem atita dravyendriyam samkhyata haim. Baddha (dravyendriyam) nahim haim. Puraskrita dravyendriyam kadachit samkhyata haim, kadachit asamkhyata haim. Isi prakara sarvarthasiddha – devatvarupa mem bhi samajha lena. (bahuta – se) vanavyantara aura jyotishka devom ki dravyendriyom ki vaktavyata nairayikom ke samana janana. Saudharmadevom ki atitadi ki vaktavyata isi prakara hai. Vishesha yaha ki vijaya, vaijayanta, jayanta tatha aparajitadevatva ke rupa mem atita dravyendriyam asamkhyata haim, baddha nahim haim tatha puraskrita dravyendriyam asamkhyata haim. Sarvarthasiddhadevatva rupa mem atita nahim haim, baddha dravyendriyam bhi nahim haim, kintu puraskrita dravyendriyam asamkhyata haim. (bahuta – se) yavat graiveyakadevom ki dravyendriyam bhi isi prakara samajhana. Bhagavan ! Vijaya, vaijayanta, jayanta aura aparajita devom ki nairayikatva ke rupa mem atita dravyendriyam kitani haim? Gautama ! Ananta haim. Baddha (dravyendriyam) nahim haim. Puraskrita (dravyendriyam) nahim haim. Isi prakara yavat jyo – tishkadevatvarupa mem bhi kahana. Vishesha yaha ki inaki manushyatvarupa mem atita dravyendriyam ananta haim. Baddha (dravye – ndriyam) nahim haim. Puraskrita (dravyendriyam) asamkhyata haim. (vijayadi charom ki) saudharmadi devatva se lekara graiveyakadevatva ke rupa mem atitadi dravyendriyom ki vaktavyata isi prakara hai. Inaki svasthana mem atita dravyendriyam asamkhyata haim. Baddha aura puraskrita dravyendriyam bhi asamkhyata haim. (ina charom devom) ki sarvarthasiddhadevatva rupa mem atita aura baddha dravyendriyam nahim haim, kintu puraskrita asamkhyata haim. Bhagavan ! Sarvarthasiddha devom ki nairayikatva ke rupa mem atita dravyendriyam kitani haim\? Gautama ! Ananta haim. Baddha aura puraskrita dravyendriyam nahim haim. Manushya ko chhorakara yavat graiveyakadevatva taka ke rupa mem bhi isi prakara kahana. (inaki) manushyatva ke rupa mem atita dravyendriyam ananta haim, baddha nahim haim, puraskrita samkhyata haim. Vijaya yavat aparajita devatva ke rupa mem inaki atita dravyendriyam samkhyata haim. Baddha aura puraskrita dravyendriyam nahim haim. Sarvartha – siddha devom ki sarvarthasiddhadevatva rupa mem atita dravyendriyam nahim haim. Baddha dravyendriyam samkhyata haim. Puraskrita dravyendriyam nahim haim. Bhagavan ! Bhavendriyam kitani haim\? Gautama ! Pamcha – shrotrendriya se sparshendriya taka. Bhagavan ! Nairayikom ki kitani bhavendriyam haim\? Gautama ! Pamcha, shrotrendriya se sparshendriya taka. Isi prakara jisaki jitani indriyam hom, utani vaimanikom taka kahana. Bhagavan ! Eka – eka nairayika ki kitani atita bhavendriyam haim\? Gautama ! Ananta haim. Kitani (bhavendriyam) baddha haim\? Pamcha haim. Puraskrita bhavendriyam kitani haim\? Ve pamcha haim, dasa haim, gyaraha haim, samkhyata haim ya asamkhyata haim athava ananta haim. Isi prakara asurakumarom yavat stanitakumara ki bhavendriyom mem kahana. Vishesha yaha hai ki puraskrita bhavendriyam pamcha, chhaha, samkhyata, asamkhyata athava ananta haim. Isi prakara prithvikaya se chaturindriya taka kahana. Vishesha yaha ki (inaki) puraskrita bhavendriyam chhaha, sata, samkhyata, asamkhyata ya ananta hoti haim. Pamchendriyatiryamcha – yonika yavat ishanadeva ki atitadi bhavendriyom ke vishaya mem asurakumarom ki bhavendriyom ki taraha kahana. Vishesha yaha ki manushya ki puraskrita bhavendriyam kisi ki hoti haim, kisi ki nahim hoti haim. Sanatkumara se lekara graiveyakadeva taka nairayikom ke samana kahana. Vijaya yavat aparajita deva ki atita bhavendriyam ananta haim, baddha pamcha haim aura puraskrita bhavendriyam pamcha, dasa, pandraha ya samkhyata haim. Sarvarthasiddhadeva ki atita bhavendriyam ananta haim, baddha aura puraskrita pamcha haim. Bhagavan ! (bahuta – se) nairayikom ki atita bhavendriyam kitani haim\? Ananta haim. Baddha bhavendriyam asamkhyata haim. Puraskrita bhavendriyam ananta haim. Isi prakara – dravyendriyom ke bahuvachana ke dandaka samana bhavendriyom mem kahana. Vishesha yaha hai ki vanaspatikayikom ki baddha bhavendriyam ananta haim. Eka – eka nairayika ki nairayikatva ke rupa mem atita bhavendriyam ananta haim. Isaki baddha bhavendriyam pamcha haim aura puraskrita bhavendriyam kisi ki hoti haim, kisi ki nahim hoti haim. Jisaki hoti haim, usaki pamcha, dasa, pandraha, samkhyata, asamkhyata ya ananta hoti haim. Isi prakara asura – kumaratva yavat stanitakumaratva ke rupa mem (atitadi bhavendriyom ko kahana.) vishesha yaha ki isaki baddha bhavendriyam nahim haim. (eka – eka nairayika ki) prithvikayatva se lekara yavat dvindriyatva ke rupa mem bhavendriyom ka dravyendriyom ki taraha kahana. Trindriyatva ke rupa mem bhi isi prakara kahana. Vishesha yaha ki puraskrita bhavendriyam tina, chhaha, nau, samkhyata, asamkhyata ya ananta hoti haim. Isi prakara chaturindriyatva rupa mem bhi kahana. Vishesha yaha ki puraskrita bhavendriyam chara, atha, baraha, samkhyata, asamkhyata ya ananta haim. Isa prakara ye (dravyendriyom ke vishaya mem kathita) hi chara gama yaham samajhana. Vishesha – tritiya gama mem jisaki jitani bhavendriyam hom, utani puraskrita bhavendriyom mem samajhana. Chaturtha gama mem jisa prakara sarvarthasiddha ki sarvarthasiddhatva ke rupa mem kitani bhavendriyam atita haim\? ‘nahim haim.’ baddha bhavendriyam samkhyata haim, puraskrita bhavendriyam nahim haim, yaham taka kahana. |