Sutra Navigation: Pragnapana ( प्रज्ञापना उपांग सूत्र )

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Sr No : 1006735
Scripture Name( English ): Pragnapana Translated Scripture Name : प्रज्ञापना उपांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

पद-१५ ईन्द्रिय

Translated Chapter :

पद-१५ ईन्द्रिय

Section : उद्देशक-२ Translated Section : उद्देशक-२
Sutra Number : 435 Category : Upang-04
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] कतिविहे णं भंते! इंदिओवचए पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे इंदिओवचए पन्नत्ते, तं जहा–सोइंदिओवचए चक्खिंदिओवचए घाणिंदिओवचए जिब्भिंदिओवचए फासिंदिओवचए। नेरइयाणं भंते! कतिविहे इंदिओवचए पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे इंदिओवचए पन्नत्ते, तं जहा–सोइंदिओवचए जाव फासिंदिओवचए। एवं जाव वेमानियाणं। जस्स जइ इंदिया तस्स तइविहो चेव इंदिओवचयो भाणियव्वो। कतिविहा णं भंते! इंदियनिव्वत्तणा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा इंदियनिव्वत्तणा पन्नत्ता, तं जहा–सोइंदियनि-व्वत्तणा जाव फासिंदियनिव्वत्तणा। एवं नेरइयाणं जाव वेमानियाणं, नवरं–जस्स जतिंदिया अत्थि। सोइंदियनिव्वत्तणा णं भंते! कतिसमइया पन्नत्ता? गोयमा! असंखिज्जसमइया अंतोमुहुत्तिया पन्नत्ता। एवं जाव फासिंदियनिव्वत्तणा। एवं नेरइयाणं जाव वेमानियाणं। कतिविहा णं भंते! इंदियलद्धी पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा इंदियलद्धी पन्नत्ता, तं जहा–सोइंदियलद्धी जाव फासिंदियलद्धी। एवं नेरइयाणं जाव वेमानियाणं, नवरं–जस्स जति इंदिया अत्थि तस्स तावतिया लद्धी भाणियव्वा। कतिविहा णं भंते! इंदियउवओगद्धा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा इंदियउवओगद्धा पन्नत्ता, तं जहा–सोइंदिय-उवओगद्धा जाव फासिंदियउवओगद्धा। एवं नेरइयाणं जाव वेमानियाणं, नवरं–जस्स जति इंदिया अत्थि। एतेसि णं भंते! सोइंदिय चक्खिंदिय घाणिंदिय जिब्भिंदिय फासिंदियाणं जहन्नियाए उवओगद्धाए उक्कोसियाए उवओगद्धाए जहन्नुक्कोसियाए उवओगद्धाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा चक्खिंदियस्स जहन्निया उवओगद्धा, सोइंदियस्स जहन्निया विसेसाहिया, घाणिंदियस्स जहन्निया उवओगद्धा विसेसाहिया, जिब्भिं-दियस्स जहन्निया उवओगद्धा विसेसाहिया, फासेंदियस्स जहन्निया उवओगद्धा विसेसाहिया। उक्कोसियाए उवओगद्धाए सव्वत्थोवा चक्खिंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा, सोइंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया, घाणिंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया, जिब्भिंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया, फासेंदियस्स उक्कोसिया उव-ओगद्धा विसेसाहिया। जहन्नुक्कोसियाए उवओगद्धाए सव्वत्थोवा चक्खिंदियस्स जहन्निया उवओगद्धा, सोइंदि-यस्स जहन्निया उवओगद्धा विसेसाहिया, घाणिंदियस्स जहन्निया उवओगद्धा विसेसाहिया, जिब्भिं-दियस्स जहन्निया उवओगद्धा विसेसाहिया, फासेंदियस्स जहन्निया उवओगद्धा विसेसाहिया। फासेंदियस्स जहन्नियाहिंतो उवओगद्धाहिंतो चक्खिंदियस्स उक्कोसिया उगओवद्धा विसेसाहिया, सोइंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया, घाणिंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसा-हिया, जिब्भिंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया, फासेंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया। कतिविहा णं भंते! इंदियओगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा इंदियओगाहणा पन्नत्ता, तं जहा–सोइंदिय-ओगाहणा जाव फासेंदियओगाहणा। एवं नेरइयाणं जाव वेमानियाणं, नवरं–जस्स जइ इंदिया अत्थि।
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! इन्द्रियोपचय कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का, श्रोत्रेन्द्रियोपचय, चक्षुरिन्द्रियोपचय, घ्राणेन्द्रियोपचय, जिह्वेन्द्रियोपचय और स्पर्शनेन्द्रियोपचय। भगवन्‌ ! नैरयिकों के इन्द्रियोपचय कितने प्रकार का है? गौतम ! पाँच प्रकार का, श्रोत्रेन्द्रियोपचय यावत्‌ स्पर्शनेन्द्रियोपचय। इसी प्रकार यावत्‌ वैमानिकों के इन्द्रियो – पचय के विषय में कहना। जिसके जितनी इन्द्रियाँ होती हैं, उसके उतने ही प्रकार का इन्द्रियोपचय कहना चाहिए। भगवन्‌ ! इन्द्रियनिर्वर्त्तना कितने प्रकार की है ? गौतम ! पाँच प्रकार की, श्रोत्रेन्द्रियनिर्वर्त्तना यावत्‌ स्पर्श – नेन्द्रियनिर्वर्त्तना। इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक कहना। विशेष यह कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ होती हैं, उसकी उतनी ही इन्द्रियनिर्वर्त्तना कहना। भगवन्‌ ! श्रोत्रेन्द्रियनिर्वर्तना कितने समय की है ? गौतम ! असंख्यात समयों के अन्तमुहूर्त्त की है। इसी प्रकार स्पर्शनेन्द्रियनिर्वर्तना – काल तक कहना। इसी प्रकार नैरयिकों यावत्‌ वैमानिकों की इन्द्रियनिर्वर्तना के काल में कहना। भगवन्‌ ! इन्द्रियलब्धि कितने प्रकार की है ? गौतम ! पाँच प्रकार की – श्रोत्रेन्द्रियलब्धि यावत्‌ स्पर्शनेन्द्रिय – लब्धि। इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक कहना। विशेष यह कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उसके उतनी ही इन्द्रियलब्धि कहनी चाहिए। इन्द्रियों का उपयोगकाल पाँच प्रकार का है, श्रोत्रेन्द्रिय – उपयोगकाल यावत्‌ स्पर्शने – न्द्रिय – उपयोगकाल। इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक समझना। विशेष यह कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उसके उतने ही इन्द्रियोपयोगकाल कहने चाहिए। भगवन्‌ ! इन श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय के जघन्य उपयोगाद्धा, उत्कृष्ट उपयोगाद्धा और जघन्योत्कृष्ट उपयोगाद्धा में कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! जघन्य उपयोगाद्धा चक्षुरिन्द्रिय का सबसे कम है, उससे श्रोत्रेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे घ्राणेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे जिह्वेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे स्पर्शेन्द्रिय का विशेषाधिक है। उत्कृष्ट उपयोगाद्धा में चक्षुरिन्द्रिय का सबसे कम है, उससे श्रोत्रेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे घ्राणेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे जिह्वेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे स्पर्शेन्द्रिय का विशेषाधिक है। जघन्योत्कृष्ट उपयोगाद्धा से सबसे कम चक्षु – रिन्द्रिय का जघन्य उपयोगाद्धा है, उससे श्रोत्रेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे घ्राणेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे जिह्वेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे स्पर्शेन्द्रिय का विशेषाधिक है, स्पर्शेन्द्रिय के जघन्य उपयोगाद्धा से चक्षुरिन्द्रिय का उत्कृष्ट उपयोगाद्धा विशेषाधिक है, उससे श्रोत्रेन्द्रिय का उत्कृष्ट उपयोगाद्धा विशेषाधिक है, उससे घ्राणेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे जिह्वेन्द्रिय का विशेषाधिक है, उससे स्पर्शेन्द्रिय का विशेषाधिक है। भगवन्‌ ! इन्द्रिय – अवग्रहण कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के, श्रोत्रेन्द्रिय – अवग्रहण यावत्‌ स्पर्शेन्द्रिय – अवग्रहण। इसी प्रकार नारकों से वैमानिकों तक कहना। विशेष यह कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उसके उतने अवग्रहण समझना।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] kativihe nam bhamte! Imdiovachae pannatte? Goyama! Pamchavihe imdiovachae pannatte, tam jaha–soimdiovachae chakkhimdiovachae ghanimdiovachae jibbhimdiovachae phasimdiovachae. Neraiyanam bhamte! Kativihe imdiovachae pannatte? Goyama! Pamchavihe imdiovachae pannatte, tam jaha–soimdiovachae java phasimdiovachae. Evam java vemaniyanam. Jassa jai imdiya tassa taiviho cheva imdiovachayo bhaniyavvo. Kativiha nam bhamte! Imdiyanivvattana pannatta? Goyama! Pamchaviha imdiyanivvattana pannatta, tam jaha–soimdiyani-vvattana java phasimdiyanivvattana. Evam neraiyanam java vemaniyanam, navaram–jassa jatimdiya atthi. Soimdiyanivvattana nam bhamte! Katisamaiya pannatta? Goyama! Asamkhijjasamaiya amtomuhuttiya pannatta. Evam java phasimdiyanivvattana. Evam neraiyanam java vemaniyanam. Kativiha nam bhamte! Imdiyaladdhi pannatta? Goyama! Pamchaviha imdiyaladdhi pannatta, tam jaha–soimdiyaladdhi java phasimdiyaladdhi. Evam neraiyanam java vemaniyanam, navaram–jassa jati imdiya atthi tassa tavatiya laddhi bhaniyavva. Kativiha nam bhamte! Imdiyauvaogaddha pannatta? Goyama! Pamchaviha imdiyauvaogaddha pannatta, tam jaha–soimdiya-uvaogaddha java phasimdiyauvaogaddha. Evam neraiyanam java vemaniyanam, navaram–jassa jati imdiya atthi. Etesi nam bhamte! Soimdiya chakkhimdiya ghanimdiya jibbhimdiya phasimdiyanam jahanniyae uvaogaddhae ukkosiyae uvaogaddhae jahannukkosiyae uvaogaddhae katare katarehimto appa va bahuya va tulla va visesahiya va? Goyama! Savvatthova chakkhimdiyassa jahanniya uvaogaddha, soimdiyassa jahanniya visesahiya, ghanimdiyassa jahanniya uvaogaddha visesahiya, jibbhim-diyassa jahanniya uvaogaddha visesahiya, phasemdiyassa jahanniya uvaogaddha visesahiya. Ukkosiyae uvaogaddhae savvatthova chakkhimdiyassa ukkosiya uvaogaddha, soimdiyassa ukkosiya uvaogaddha visesahiya, ghanimdiyassa ukkosiya uvaogaddha visesahiya, jibbhimdiyassa ukkosiya uvaogaddha visesahiya, phasemdiyassa ukkosiya uva-ogaddha visesahiya. Jahannukkosiyae uvaogaddhae savvatthova chakkhimdiyassa jahanniya uvaogaddha, soimdi-yassa jahanniya uvaogaddha visesahiya, ghanimdiyassa jahanniya uvaogaddha visesahiya, jibbhim-diyassa jahanniya uvaogaddha visesahiya, phasemdiyassa jahanniya uvaogaddha visesahiya. Phasemdiyassa jahanniyahimto uvaogaddhahimto chakkhimdiyassa ukkosiya ugaovaddha visesahiya, soimdiyassa ukkosiya uvaogaddha visesahiya, ghanimdiyassa ukkosiya uvaogaddha visesa-hiya, jibbhimdiyassa ukkosiya uvaogaddha visesahiya, phasemdiyassa ukkosiya uvaogaddha visesahiya. Kativiha nam bhamte! Imdiyaogahana pannatta? Goyama! Pamchaviha imdiyaogahana pannatta, tam jaha–soimdiya-ogahana java phasemdiyaogahana. Evam neraiyanam java vemaniyanam, navaram–jassa jai imdiya atthi.
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Indriyopachaya kitane prakara ka hai\? Gautama ! Pamcha prakara ka, shrotrendriyopachaya, chakshurindriyopachaya, ghranendriyopachaya, jihvendriyopachaya aura sparshanendriyopachaya. Bhagavan ! Nairayikom ke indriyopachaya kitane prakara ka hai? Gautama ! Pamcha prakara ka, shrotrendriyopachaya yavat sparshanendriyopachaya. Isi prakara yavat vaimanikom ke indriyo – pachaya ke vishaya mem kahana. Jisake jitani indriyam hoti haim, usake utane hi prakara ka indriyopachaya kahana chahie. Bhagavan ! Indriyanirvarttana kitane prakara ki hai\? Gautama ! Pamcha prakara ki, shrotrendriyanirvarttana yavat sparsha – nendriyanirvarttana. Isi prakara nairayikom se vaimanikom taka kahana. Vishesha yaha ki jisake jitani indriyam hoti haim, usaki utani hi indriyanirvarttana kahana. Bhagavan ! Shrotrendriyanirvartana kitane samaya ki hai\? Gautama ! Asamkhyata samayom ke antamuhurtta ki hai. Isi prakara sparshanendriyanirvartana – kala taka kahana. Isi prakara nairayikom yavat vaimanikom ki indriyanirvartana ke kala mem kahana. Bhagavan ! Indriyalabdhi kitane prakara ki hai\? Gautama ! Pamcha prakara ki – shrotrendriyalabdhi yavat sparshanendriya – labdhi. Isi prakara nairayikom se vaimanikom taka kahana. Vishesha yaha ki jisake jitani indriyam hom, usake utani hi indriyalabdhi kahani chahie. Indriyom ka upayogakala pamcha prakara ka hai, shrotrendriya – upayogakala yavat sparshane – ndriya – upayogakala. Isi prakara nairayikom se vaimanikom taka samajhana. Vishesha yaha ki jisake jitani indriyam hom, usake utane hi indriyopayogakala kahane chahie. Bhagavan ! Ina shrotrendriya, chakshurindriya, ghranendriya, jihvendriya aura sparshanendriya ke jaghanya upayogaddha, utkrishta upayogaddha aura jaghanyotkrishta upayogaddha mem kauna, kisase alpa, bahuta, tulya athava visheshadhika haim\? Gautama ! Jaghanya upayogaddha chakshurindriya ka sabase kama hai, usase shrotrendriya ka visheshadhika hai, usase ghranendriya ka visheshadhika hai, usase jihvendriya ka visheshadhika hai, usase sparshendriya ka visheshadhika hai. Utkrishta upayogaddha mem chakshurindriya ka sabase kama hai, usase shrotrendriya ka visheshadhika hai, usase ghranendriya ka visheshadhika hai, usase jihvendriya ka visheshadhika hai, usase sparshendriya ka visheshadhika hai. Jaghanyotkrishta upayogaddha se sabase kama chakshu – rindriya ka jaghanya upayogaddha hai, usase shrotrendriya ka visheshadhika hai, usase ghranendriya ka visheshadhika hai, usase jihvendriya ka visheshadhika hai, usase sparshendriya ka visheshadhika hai, sparshendriya ke jaghanya upayogaddha se chakshurindriya ka utkrishta upayogaddha visheshadhika hai, usase shrotrendriya ka utkrishta upayogaddha visheshadhika hai, usase ghranendriya ka visheshadhika hai, usase jihvendriya ka visheshadhika hai, usase sparshendriya ka visheshadhika hai. Bhagavan ! Indriya – avagrahana kitane prakara ke haim\? Gautama ! Pamcha prakara ke, shrotrendriya – avagrahana yavat sparshendriya – avagrahana. Isi prakara narakom se vaimanikom taka kahana. Vishesha yaha ki jisake jitani indriyam hom, usake utane avagrahana samajhana.