Sutra Navigation: Pragnapana ( प्रज्ञापना उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1006723 | ||
Scripture Name( English ): | Pragnapana | Translated Scripture Name : | प्रज्ञापना उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
पद-१५ ईन्द्रिय |
Translated Chapter : |
पद-१५ ईन्द्रिय |
Section : | उद्देशक-१ | Translated Section : | उद्देशक-१ |
Sutra Number : | 423 | Category : | Upang-04 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] नेरइयाणं भंते! कति इंदिया पन्नत्ता? गोयमा! पंचेंदिया पन्नत्ता, तं जहा–सोइंदिए जाव फासिंदिए। नेरइयाणं भंते! सोइंदिए किंसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! कलंबुयासंठाणसंठिए पन्नत्ते। एवं जहा ओहियाणं वत्तव्वया भणिया तहेव नेरइयाणं पि जाव अप्पाबहुयाणि दोन्नि वि, नवरं–नेरइयाणं भंते! फासिंदिए किंसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–भवधारणिज्जे य उत्तरवेउव्विए य। तत्थ णं जेसे भवधारणिज्जे से णं हुंडसंठाणसंठिए पन्नत्ते। तत्थ णं जेसे उत्तरवेउव्विए से वि तहेव। सेसं तं चेव। असुरकुमाराणं भंते! कति इंदिया पन्नत्ता? गोयमा! पंचेंदिया पन्नत्ता। एवं जहा ओहियाणं जाव अप्पाबहु-याणि दोन्नि वि, नवरं–फासेंदिए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–भवधारणिज्जे य उत्तरवेउव्विए य। तत्थ णं जेसे भवधारणिज्जे से णं समचउरंससंठाणसंठिए पन्नत्ते। तत्थ णं जेसे उत्तरवेउव्विए से णं णाणासंठाणसंठिए पन्नत्ते। सेसं तं चेव। एवं जाव थणियकुमाराणं। पुढविकाइयाणं भंते! कति इंदिया पन्नत्ता? गोयमा! एगे फासिंदिए पन्नत्ते। पुढविकाइयाणं भंते! फासिंदिए किंसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! मसूरचंदसंठाणसंठिए पन्नत्ते। पुढविकाइयाणं भंते! फासिंदिए केवतियं बाहल्लेणं पन्नत्ते? गोयमा! अंगुलस्स असंखेज्जइभागं बाहल्लेणं पन्नत्ते। पुढविकाइयाणं भंते! फासिंदिए केवतियं पोहत्तेणं पन्नत्ते? गोयमा! सरीरपमाणमेत्ते पोहत्तेणं पन्नत्ते। पुढविकाइयाणं भंते! फासिंदिए कतिपएसिए पन्नत्ते? गोयमा! अनंतपएसिए पन्नत्ते। पुढविकाइयाणं भंते! फासिंदिए कतिपएसोगाढे पन्नत्ते? गोयमा! असंखेज्जपएसोगाढे पन्नत्ते। एतेसि णं भंते! पुढविकाइयाणं फासिंदियस्स ओगाहण-पएसट्ठयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवे पुढविकाइयाणं फासिंदिए ओगाहण-ट्ठयाए, से चेव पएसट्ठयाए अनंतगुणे। पुढविकाइयाणं भंते! फासिंदियस्स केवतिया कक्खडगरुयगुणा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता। एवं मउयलहुयगुणा वि। एतेसि णं भंते! पुढविकाइयाण फासेंदियस्स कक्खडगरुयगुण-मउयलहुयगुणाणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा पुढविकाइयाणं फासेंदियस्स कक्खडगरुयगुणा, तस्स चेव मउयलहुयगुणा अनंतगुणा। एवं आउक्काइयाणं वि जाव वणस्सइकाइयाणं, नवरं–संठाणे इमो विसेसो दट्ठव्वो–आउक्काइयाणं थिबुगबिंदुसंठाणसंठिए पन्नत्ते, तेउक्काइयाणं सूईकलावसंठाणसंठिए पन्नत्ते, वाउक्काइयाणं पडागासंठाणसंठिए पन्नत्ते, वणप्फइकाइयाणं णाणासंठाणसंठिए पन्नत्ते। बेइंदियाणं भंते! कति इंदिया पन्नत्ता? गोयमा! दो इंदिया पन्नत्ता, तं जहा–जिब्भिंदिए य फासिंदिए य। दोण्हं पि इंदियाणं संठाणं बाहल्लं पोहत्तं पदेसा ओगाहणा य जहा ओहियाणं भणिया तहा भाणियव्वा, नवरं–फासेंदिए हुंडसंठाणसंठिए पन्नत्ते त्ति इमो विसेसो। एतेसि णं भंते! बेइंदियाणं जिब्भिंदिय-फासेंदियाणं ओगाहणट्ठयाए पएसट्ठयाए ओगाहण-पएसट्ठयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवे बेइंदियाणं जिब्भिंदिए ओगाहणट्ठयाए, फासेंदिए ओगा हणट्ठयाए संखेज्जगुणे। पएसट्ठयाए–सव्वत्थोवे बेइंदियाणं जिब्भिंदिए पएसट्ठयाए, फासेंदिए पएसट्ठयाए संखेज्जगुणे। ओगाहण-पएसट्ठयाए–सव्वत्थोवे बेइंदियस्स जिब्भिंदिए ओगाहणट्ठयाए, फासिंदिए ओगाहणट्ठयाए संखेज्जगुणे, फासेंदियस्स ओगाहणट्ठयाए-हिंतो जिब्भिंदिए पएसट्ठयाए अनंतगुणे, फासिंदिए पएसट्ठयाए संखेज्जगुणे। बेइंदियाणं भंते! जिब्भिंदियस्स केवइया कक्खडगरुयगुणा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता। एवं फासेंदियस्स वि। एवं मउयलहुयगुणा वि। एतेसि णं भंते! बेइंदियाणं जिब्भिंदियफासेंदियाणं कक्खडगरुयगुणाणं मउयलहुयगुणाणं कक्खडगरुयगुण-मउयलहुयगुणाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा बेइंदियाणं जिब्भिंदियस्स कक्खडगरुयगुणा, फासेंदियस्स कक्खड-गरुयगुणा अनंतगुणा, फासेंदियस्स कक्खडगरुयगुणेहिंतो तस्स चेव मउयलहुयगुणा अणं-तगुणा, जिब्भिंदियस्स मउयलहुयगुणा अनंतगुणा। एवं जाव चउरिंदिय त्ति, नवरं–इंदियपरिवुड्ढी कायव्वा। तेइंदियाणं घाणेंदिए थोवे, चउरिंदियाणं चक्खिंदिए थोवे। सेसं तं चेव। पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं मनूसाण य जहा नेरइयाणं, नवरं–फासिंदिए छव्विहसंठाण-संठिए पन्नत्ते, तं जहा–समचउरंसे नग्गोहपरिमंडले सादी खुज्जे वामणे हुंडे। वाणमंतर-जोइसिय-वेमानियाणं जहा असुरकुमाराणं। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! नैरयिकों के कितनी इन्द्रियाँ हैं ? गौतम ! पाँच – श्रोत्रेन्द्रिय से स्पर्शनेन्द्रिय तक। भगवन् ! नारकों की श्रोत्रेन्द्रिय किस आकार की होती है ? गौतम ! कदम्बपुष्प के आकार की। इसी प्रकार समुच्चय जीवों में पंचेन्द्रियों के समान नारकों की भी वक्तव्यता कहना। विशेष यह कि नैरयिकों की स्पर्शनेन्द्रिय दो प्रकार की है, यथा – भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय। वे दोनों हुण्डकसंस्थान की है। भगवन् ! असुरकुमारों के कितनी इन्द्रियाँ हैं ? गौतम ! पाँच, समुच्चय जीवों के समान असुरकुमारों की इन्द्रियसम्बन्धी वक्तव्यता कहना। विशेष यह कि (इनकी) स्पर्शनेन्द्रिय दो प्रकार की है, यथा – भवधारणीय समच – तुरस्रसंस्थान वाली है और उत्तरवैक्रिय नाना संस्थान वाली होती है। इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक समझना। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के कितनी इन्द्रियाँ हैं ? गौतम ! एक स्पर्शनेन्द्रिय (ही) है। भगवन् ! पृथ्वी – कायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय किस आकार की है ? गौतम ! मसूर – चन्द्र के आकार की है। पृथ्वीकायिकों की स्पर्श – नेन्द्रिय का बाहल्य अंगुल से असंख्यातवें भाग है। उनका पृथुत्व उनके शरीरप्रमाणमात्र है। पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय अनन्तप्रदेशी है। और वे असंख्यातप्रदेशों में अवगाढ़ है। भगवन् ! इन पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय, अवगाहना की अपेक्षा और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? गौतम ! पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा सबसे कम है, प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुणी (अधिक) है। भगवन् ! पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश – गुरु – गुण कितने हैं ? गौतम ! अनन्त। इसी प्रकार मृदु – लघुगुणों के विषय में भी समझना। भगवन् ! इन पृथ्वी – कायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश – गुरुगुणों और मृदुलघुगुणों में से कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! कर्कश और गुरु गुण सबसे कम हैं, उनसे मृदु तथा लघु गुण अनन्तगुणे हैं। पृथ्वी – कायिकों के समान अप्कायिकों से वनस्पतिकायिकों तक समझ लेना, किन्तु इनके संस्थान में विशेषता है – अप्कायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय बिन्दु के आकार की है, तेजस्कायिकों की सूचीकलाप के आकार की, वायुकायिकों की पताका आकार की तथा वनस्पतिकायिकों का आकार नाना प्रकार का है। भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों को कितनी इन्द्रियाँ हैं ? गौतम ! दो, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय। दोनों इन्द्रियों के संस्थान, बाहल्य, पृथुत्व, प्रदेश और अवगाहना के विषय में औघिक के समान कहना। विशेषता यह कि स्पर्श – नेन्द्रिय हुण्डकसंस्थान वाली होती है। भगवन् ! इन द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय में से अवगाहना की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से तथा अवगाहना और प्रदेशों (दोनों) की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? गौतम ! अवगाहना की अपेक्षा से – द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रिय सबसे कम है, (उससे) संख्यात गुणी स्पर्शनेन्द्रिय है। प्रदेशों से – सबसे कम द्वीन्द्रिय की जिह्वेन्द्रिय है, (उससे) स्पर्शनेन्द्रिय संख्यात गुणी है। अवगाहना और प्रदेशों से – द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रिय अवगाहना से सबसे कम है, (उससे) स्पर्शनेन्द्रिय संख्यातगुणी अधिक है, स्पर्शनेन्द्रिय की अवगाहनार्थता से जिह्वेन्द्रिय प्रदशों से अनन्तगुणी है। (उससे) स्पर्शनेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणी है। भगवन् ! द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रिय के कितने कर्कश – गुरुगुण हैं ? गौतम ! अनन्त। इसी प्रकार इनकी स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश – गुरुगुण और मृदु – लघुगुण भी समझना। भगवन् ! इन द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश – गुरुगुणों तथा मृदु – लघुगुणों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है? गौतम ! सबसे थोड़े द्वीन्द्रियों के जिह्वेन्द्रिय के कर्कश – गुरुगुण हैं, (उनसे) स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश – गुरुगुण अनन्तगुणे हैं। (इन्द्रिय) के मृदु – लघुगुण अनन्तगुणे हैं (और उनसे) जिह्वेन्द्रिय के मृदु – लघुगुण अनन्तगुणे हैं। इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय में कहना। विशेष यह है कि इन्द्रिय की परिवृद्धि करना। त्रीन्द्रिय जीवों की घ्राणेन्द्रिय थोड़ी होती है, चतुरिन्द्रिय जीवों की चक्षुरिन्द्रिय थोड़ी होती है। पंचेन्द्रियतिर्यंचों और मनुष्यों के इन्द्रियों के संस्थानादि नारकों की इन्द्रिय – संस्थानादि के समान समझना। विशेषता यह कि उनकी स्पर्शनेन्द्रिय छह प्रकार के संस्थानो वाली है। समयचतुरस्र, न्यग्रोधपरिमण्डल, सादि, कुब्जक, वामन और हुण्डक। वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों को असुरकुमारों के समान कहना। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] neraiyanam bhamte! Kati imdiya pannatta? Goyama! Pamchemdiya pannatta, tam jaha–soimdie java phasimdie. Neraiyanam bhamte! Soimdie kimsamthie pannatte? Goyama! Kalambuyasamthanasamthie pannatte. Evam jaha ohiyanam vattavvaya bhaniya taheva neraiyanam pi java appabahuyani donni vi, navaram–neraiyanam bhamte! Phasimdie kimsamthie pannatte? Goyama! Duvihe pannatte, tam jaha–bhavadharanijje ya uttaraveuvvie ya. Tattha nam jese bhavadharanijje se nam humdasamthanasamthie pannatte. Tattha nam jese uttaraveuvvie se vi taheva. Sesam tam cheva. Asurakumaranam bhamte! Kati imdiya pannatta? Goyama! Pamchemdiya pannatta. Evam jaha ohiyanam java appabahu-yani donni vi, navaram–phasemdie duvihe pannatte, tam jaha–bhavadharanijje ya uttaraveuvvie ya. Tattha nam jese bhavadharanijje se nam samachauramsasamthanasamthie pannatte. Tattha nam jese uttaraveuvvie se nam nanasamthanasamthie pannatte. Sesam tam cheva. Evam java thaniyakumaranam. Pudhavikaiyanam bhamte! Kati imdiya pannatta? Goyama! Ege phasimdie pannatte. Pudhavikaiyanam bhamte! Phasimdie kimsamthie pannatte? Goyama! Masurachamdasamthanasamthie pannatte. Pudhavikaiyanam bhamte! Phasimdie kevatiyam bahallenam pannatte? Goyama! Amgulassa asamkhejjaibhagam bahallenam pannatte. Pudhavikaiyanam bhamte! Phasimdie kevatiyam pohattenam pannatte? Goyama! Sarirapamanamette pohattenam pannatte. Pudhavikaiyanam bhamte! Phasimdie katipaesie pannatte? Goyama! Anamtapaesie pannatte. Pudhavikaiyanam bhamte! Phasimdie katipaesogadhe pannatte? Goyama! Asamkhejjapaesogadhe pannatte. Etesi nam bhamte! Pudhavikaiyanam phasimdiyassa ogahana-paesatthayae katare katarehimto appa va bahuya va tulla va visesahiya va? Goyama! Savvatthove pudhavikaiyanam phasimdie ogahana-tthayae, se cheva paesatthayae anamtagune. Pudhavikaiyanam bhamte! Phasimdiyassa kevatiya kakkhadagaruyaguna pannatta? Goyama! Anamta. Evam mauyalahuyaguna vi. Etesi nam bhamte! Pudhavikaiyana phasemdiyassa kakkhadagaruyaguna-mauyalahuyagunanam katare katarehimto appa va bahuya va tulla va visesahiya va? Goyama! Savvatthova pudhavikaiyanam phasemdiyassa kakkhadagaruyaguna, tassa cheva mauyalahuyaguna anamtaguna. Evam aukkaiyanam vi java vanassaikaiyanam, navaram–samthane imo viseso datthavvo–aukkaiyanam thibugabimdusamthanasamthie pannatte, teukkaiyanam suikalavasamthanasamthie pannatte, vaukkaiyanam padagasamthanasamthie pannatte, vanapphaikaiyanam nanasamthanasamthie pannatte. Beimdiyanam bhamte! Kati imdiya pannatta? Goyama! Do imdiya pannatta, tam jaha–jibbhimdie ya phasimdie ya. Donham pi imdiyanam samthanam bahallam pohattam padesa ogahana ya jaha ohiyanam bhaniya taha bhaniyavva, navaram–phasemdie humdasamthanasamthie pannatte tti imo viseso. Etesi nam bhamte! Beimdiyanam jibbhimdiya-phasemdiyanam ogahanatthayae paesatthayae ogahana-paesatthayae katare katarehimto appa va bahuya va tulla va visesahiya va? Goyama! Savvatthove beimdiyanam jibbhimdie ogahanatthayae, phasemdie oga hanatthayae samkhejjagune. Paesatthayae–savvatthove beimdiyanam jibbhimdie paesatthayae, phasemdie paesatthayae samkhejjagune. Ogahana-paesatthayae–savvatthove beimdiyassa jibbhimdie ogahanatthayae, phasimdie ogahanatthayae samkhejjagune, phasemdiyassa ogahanatthayae-himto jibbhimdie paesatthayae anamtagune, phasimdie paesatthayae samkhejjagune. Beimdiyanam bhamte! Jibbhimdiyassa kevaiya kakkhadagaruyaguna pannatta? Goyama! Anamta. Evam phasemdiyassa vi. Evam mauyalahuyaguna vi. Etesi nam bhamte! Beimdiyanam jibbhimdiyaphasemdiyanam kakkhadagaruyagunanam mauyalahuyagunanam kakkhadagaruyaguna-mauyalahuyagunana ya katare katarehimto appa va bahuya va tulla va visesahiya va? Goyama! Savvatthova beimdiyanam jibbhimdiyassa kakkhadagaruyaguna, phasemdiyassa kakkhada-garuyaguna anamtaguna, phasemdiyassa kakkhadagaruyagunehimto tassa cheva mauyalahuyaguna anam-taguna, jibbhimdiyassa mauyalahuyaguna anamtaguna. Evam java chaurimdiya tti, navaram–imdiyaparivuddhi kayavva. Teimdiyanam ghanemdie thove, chaurimdiyanam chakkhimdie thove. Sesam tam cheva. Pamchimdiyatirikkhajoniyanam manusana ya jaha neraiyanam, navaram–phasimdie chhavvihasamthana-samthie pannatte, tam jaha–samachauramse naggohaparimamdale sadi khujje vamane humde. Vanamamtara-joisiya-vemaniyanam jaha asurakumaranam. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Nairayikom ke kitani indriyam haim\? Gautama ! Pamcha – shrotrendriya se sparshanendriya taka. Bhagavan ! Narakom ki shrotrendriya kisa akara ki hoti hai\? Gautama ! Kadambapushpa ke akara ki. Isi prakara samuchchaya jivom mem pamchendriyom ke samana narakom ki bhi vaktavyata kahana. Vishesha yaha ki nairayikom ki sparshanendriya do prakara ki hai, yatha – bhavadharaniya aura uttaravaikriya. Ve donom hundakasamsthana ki hai. Bhagavan ! Asurakumarom ke kitani indriyam haim\? Gautama ! Pamcha, samuchchaya jivom ke samana asurakumarom ki indriyasambandhi vaktavyata kahana. Vishesha yaha ki (inaki) sparshanendriya do prakara ki hai, yatha – bhavadharaniya samacha – turasrasamsthana vali hai aura uttaravaikriya nana samsthana vali hoti hai. Isi prakara stanitakumarom taka samajhana. Bhagavan ! Prithvikayika jivom ke kitani indriyam haim\? Gautama ! Eka sparshanendriya (hi) hai. Bhagavan ! Prithvi – kayikom ki sparshanendriya kisa akara ki hai\? Gautama ! Masura – chandra ke akara ki hai. Prithvikayikom ki sparsha – nendriya ka bahalya amgula se asamkhyatavem bhaga hai. Unaka prithutva unake sharirapramanamatra hai. Prithvikayikom ki sparshanendriya anantapradeshi hai. Aura ve asamkhyatapradeshom mem avagarha hai. Bhagavan ! Ina prithvikayikom ki sparshanendriya, avagahana ki apeksha aura pradeshom ki apeksha se kauna, kisase alpa, bahuta, tulya athava visheshadhika hai\? Gautama ! Prithvikayikom ki sparshanendriya avagahana ki apeksha sabase kama hai, pradeshom ki apeksha se anantaguni (adhika) hai. Bhagavan ! Prithvikayikom ki sparshanendriya ke karkasha – guru – guna kitane haim\? Gautama ! Ananta. Isi prakara mridu – laghugunom ke vishaya mem bhi samajhana. Bhagavan ! Ina prithvi – kayikom ki sparshanendriya ke karkasha – gurugunom aura mridulaghugunom mem se kauna, kisase alpa, bahuta, tulya athava visheshadhika haim\? Gautama ! Karkasha aura guru guna sabase kama haim, unase mridu tatha laghu guna anantagune haim. Prithvi – kayikom ke samana apkayikom se vanaspatikayikom taka samajha lena, kintu inake samsthana mem visheshata hai – apkayikom ki sparshanendriya bindu ke akara ki hai, tejaskayikom ki suchikalapa ke akara ki, vayukayikom ki pataka akara ki tatha vanaspatikayikom ka akara nana prakara ka hai. Bhagavan ! Dvindriya jivom ko kitani indriyam haim\? Gautama ! Do, jihvendriya aura sparshanendriya. Donom indriyom ke samsthana, bahalya, prithutva, pradesha aura avagahana ke vishaya mem aughika ke samana kahana. Visheshata yaha ki sparsha – nendriya hundakasamsthana vali hoti hai. Bhagavan ! Ina dvindriyom ki jihvendriya aura sparshanendriya mem se avagahana ki apeksha se, pradeshom ki apeksha se tatha avagahana aura pradeshom (donom) ki apeksha se kauna, kisase alpa, bahuta, tulya athava visheshadhika hai\? Gautama ! Avagahana ki apeksha se – dvindriyom ki jihvendriya sabase kama hai, (usase) samkhyata guni sparshanendriya hai. Pradeshom se – sabase kama dvindriya ki jihvendriya hai, (usase) sparshanendriya samkhyata guni hai. Avagahana aura pradeshom se – dvindriyom ki jihvendriya avagahana se sabase kama hai, (usase) sparshanendriya samkhyataguni adhika hai, sparshanendriya ki avagahanarthata se jihvendriya pradashom se anantaguni hai. (usase) sparshanendriya pradeshom ki apeksha se samkhyataguni hai. Bhagavan ! Dvindriyom ki jihvendriya ke kitane karkasha – guruguna haim\? Gautama ! Ananta. Isi prakara inaki sparshanendriya ke karkasha – guruguna aura mridu – laghuguna bhi samajhana. Bhagavan ! Ina dvindriyom ki jihvendriya aura sparshanendriya ke karkasha – gurugunom tatha mridu – laghugunom mem se kauna, kinase alpa, bahuta, tulya athava visheshadhika hai? Gautama ! Sabase thore dvindriyom ke jihvendriya ke karkasha – guruguna haim, (unase) sparshanendriya ke karkasha – guruguna anantagune haim. (indriya) ke mridu – laghuguna anantagune haim (aura unase) jihvendriya ke mridu – laghuguna anantagune haim. Isi prakara yavat chaturindriya mem kahana. Vishesha yaha hai ki indriya ki parivriddhi karana. Trindriya jivom ki ghranendriya thori hoti hai, chaturindriya jivom ki chakshurindriya thori hoti hai. Pamchendriyatiryamchom aura manushyom ke indriyom ke samsthanadi narakom ki indriya – samsthanadi ke samana samajhana. Visheshata yaha ki unaki sparshanendriya chhaha prakara ke samsthano vali hai. Samayachaturasra, nyagrodhaparimandala, sadi, kubjaka, vamana aura hundaka. Vanavyantara, jyotishka aura vaimanika devom ko asurakumarom ke samana kahana. |