Sutra Navigation: Jivajivabhigam ( जीवाभिगम उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005934 | ||
Scripture Name( English ): | Jivajivabhigam | Translated Scripture Name : | जीवाभिगम उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
Translated Chapter : |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
Section : | तिर्यंच उद्देशक-२ | Translated Section : | तिर्यंच उद्देशक-२ |
Sutra Number : | 134 | Category : | Upang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] कतिविहा णं भंते! संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता? गोयमा! छव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइया जाव तसकाइया। से किं तं पुढविकाइया? दुविहा पन्नत्ता तं सुहुमपुढविकाइया बायरपुढविकाइया से किं तं सुहुमपुढविकाइया दुविहा पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य से तं सुहुमपुढविक्काइया से किं तं बादरपुढविक्काइया दुविहा पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य एवं जहा पन्नवणाए, सण्हा सत्तविहा पन्नत्ता, खरा अनेगविहा पन्नत्ता जाव असंखिज्जा से तं बादरपुढविक्काइया से तं पुढविक्काइया एवं चेव जइ पन्नवणाए तहेव निरवसेसं भाणियव्वं जाव वणप्फइकाइया एवं जत्थेको तत्थ सिय संखिज्जा सिय असंखिज्जा सिय अनंता से तं बादरवणस्सइकाइया से तं वणप्फइकाइया, से किं तं तसकाइया चउविहा पन्नत्ता तं बेइंदिया जाव पंचिंदिया से किं तं बेइंदिया अनेगविहा पन्नत्ता एवं जहेव पन्नवणाए तहेव निरवसेसं भाणियव्वं ति जाव सव्वट्ठसिद्धगा देवा से तं अनुत्तरोववाइया से तं देवा से तं पंचिंदिया से त्तं तसकाइया। | ||
Sutra Meaning : | हे भगवन् ! संसारसमापन्नक जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! छह प्रकार के – पृथ्वीकायिक यावत् त्रस – कायिक। पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? दो प्रकार के हैं – सूक्ष्मपृथ्वीकायिक और बादरपृथ्वीकायिक। सूक्ष्मपृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं – पर्याप्त और अपर्याप्त। बादरपृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं – पर्याप्त और अपर्याप्त। इस प्रकार जैसा प्रज्ञापनापद में कहा, वैसा कहना। श्लक्ष्ण पृथ्वीकायिक सात प्रकार के हैं और खर – पृथ्वीकायिक अनेक प्रकार के कहे गये हैं, यावत् वे असंख्यात हैं। इस प्रकार जैसा प्रज्ञापनापद में कहा वैसा पूरा कथन वनस्पतिकायिक तक ऐसा ही कहना, यावत् जहाँ एक वनस्पतिकायिक जीव हैं वहाँ कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त वनस्पतिकायिक जानना। त्रसकायिक जीव क्या है ? वे चार प्रकार के कहे गये हैं, यथा – द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय। द्वीन्द्रिय जीव क्या है ? वे अनेक प्रकार के कहे गये हैं। इस प्रकार प्रज्ञापनापद के समान सम्पूर्ण कथन करना जब तक सर्वार्थसिद्ध देवों का अधिकार है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] kativiha nam bhamte! Samsarasamavannaga jiva pannatta? Goyama! Chhavviha samsarasamavannaga jiva pannatta, tam jaha–pudhavikaiya java tasakaiya. Se kim tam pudhavikaiya? Duviha pannatta tam suhumapudhavikaiya bayarapudhavikaiya se kim tam suhumapudhavikaiya duviha pajjattaga ya apajjattaga ya se tam suhumapudhavikkaiya se kim tam badarapudhavikkaiya duviha pajjattaga ya apajjattaga ya evam jaha pannavanae, sanha sattaviha pannatta, khara anegaviha pannatta java asamkhijja se tam badarapudhavikkaiya se tam pudhavikkaiya evam cheva jai pannavanae taheva niravasesam bhaniyavvam java vanapphaikaiya evam jattheko tattha siya samkhijja siya asamkhijja siya anamta se tam badaravanassaikaiya se tam vanapphaikaiya, Se kim tam tasakaiya chauviha pannatta tam beimdiya java pamchimdiya se kim tam beimdiya anegaviha pannatta evam jaheva pannavanae taheva niravasesam bhaniyavvam ti java savvatthasiddhaga deva se tam anuttarovavaiya se tam deva se tam pamchimdiya se ttam tasakaiya. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He bhagavan ! Samsarasamapannaka jiva kitane prakara ke haim\? Gautama ! Chhaha prakara ke – prithvikayika yavat trasa – kayika. Prithvikayika jiva kitane prakara ke haim\? Do prakara ke haim – sukshmaprithvikayika aura badaraprithvikayika. Sukshmaprithvikayika do prakara ke haim – paryapta aura aparyapta. Badaraprithvikayika do prakara ke haim – paryapta aura aparyapta. Isa prakara jaisa prajnyapanapada mem kaha, vaisa kahana. Shlakshna prithvikayika sata prakara ke haim aura khara – prithvikayika aneka prakara ke kahe gaye haim, yavat ve asamkhyata haim. Isa prakara jaisa prajnyapanapada mem kaha vaisa pura kathana vanaspatikayika taka aisa hi kahana, yavat jaham eka vanaspatikayika jiva haim vaham kadachit samkhyata, kadachit asamkhyata aura kadachit ananta vanaspatikayika janana. Trasakayika jiva kya hai\? Ve chara prakara ke kahe gaye haim, yatha – dvindriya, trindriya, chaturindriya aura pamchendriya. Dvindriya jiva kya hai\? Ve aneka prakara ke kahe gaye haim. Isa prakara prajnyapanapada ke samana sampurna kathana karana jaba taka sarvarthasiddha devom ka adhikara hai. |