Sutra Navigation: Jivajivabhigam ( जीवाभिगम उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005936 | ||
Scripture Name( English ): | Jivajivabhigam | Translated Scripture Name : | जीवाभिगम उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
Translated Chapter : |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
Section : | तिर्यंच उद्देशक-२ | Translated Section : | तिर्यंच उद्देशक-२ |
Sutra Number : | 136 | Category : | Upang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] पडुप्पन्नपुढविकाइया णं भंते! केवतिकालस्स णिल्लेवा सिता? गोयमा! जहन्नपदे असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणिओसप्पिणीहिं, उक्कोसपदेवि असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं– जहन्नपदातो उक्कोसपए असंखेज्जगुणा। एवं जाव पडुप्पन्नवाउक्काइया। पडुप्पन्नवणप्फइकाइया णं भंते! केवतिकालस्स निल्लेवा सिता? गोयमा! पडुप्पन्नवणप्फइ-काइया जहन्नपदे अपदा उक्कोसपदेवि अपदा– पडुप्पन्नवणप्फतिकाइयाणं नत्थि निल्लेवणा। पडुप्पन्नतसकाइया णं भंते! केवतिकालस्स निल्लेवा सिया? गोयमा! पडुप्पन्नतसकाइया जहन्नपदे सागरोवमसतपुहत्तस्स, उक्कोसपदेवि सागरोवमसतपुहत्तस्स– जहन्नपदा उक्कोसपदे विसेसाहिया। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! अभिनव (तत्काल उत्पद्यमान) पृथ्वीकायिक जीव कितने काल में निर्लेप हो सकते हैं ? गौतम ! जघन्य से और उत्कृष्ट से भी असंख्यात उत्सर्पिणी – अवसर्पिणी काल में निर्लेप (खाली) हो सकते हैं। यहाँ जघन्य पद से उत्कृष्ट पद में असंख्यातगुण अधिकता जानना। इसी प्रकार अभिनव वायुकायिक तक की वक्तव्यता जानना। भगवन् ! अभिनव वनस्पतिकायिक जीव कितने समय में निर्लेप हो सकते हैं ? गौतम ! प्रत्युत्पन्नवनस्प – तिकायिकों के लिए जघन्य और उत्कृष्ट दोनों पदों में ऐसा नहीं कहा जा सकता कि ये इतने समय में निर्लेप हो सकते हैं। इन जीवों की निर्लेपना नहीं हो सकती। प्रत्युत्पन्नत्रसकायिक जीव जघन्य पद में सागरोपम शतपृथक्त्व और उत्कृष्ट पद में भी सागरोपम शतपृथक्त्व काल में निर्लेप हो सकते हैं। जघन्यपद से उत्कृष्टपद में विशेषा – धिकता समझना। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] paduppannapudhavikaiya nam bhamte! Kevatikalassa nilleva sita? Goyama! Jahannapade asamkhejjahim ussappiniosappinihim, ukkosapadevi asamkhejjahim ussappiniosappinihim– jahannapadato ukkosapae asamkhejjaguna. Evam java paduppannavaukkaiya. Paduppannavanapphaikaiya nam bhamte! Kevatikalassa nilleva sita? Goyama! Paduppannavanapphai-kaiya jahannapade apada ukkosapadevi apada– paduppannavanapphatikaiyanam natthi nillevana. Paduppannatasakaiya nam bhamte! Kevatikalassa nilleva siya? Goyama! Paduppannatasakaiya jahannapade sagarovamasatapuhattassa, ukkosapadevi sagarovamasatapuhattassa– jahannapada ukkosapade visesahiya. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Abhinava (tatkala utpadyamana) prithvikayika jiva kitane kala mem nirlepa ho sakate haim\? Gautama ! Jaghanya se aura utkrishta se bhi asamkhyata utsarpini – avasarpini kala mem nirlepa (khali) ho sakate haim. Yaham jaghanya pada se utkrishta pada mem asamkhyataguna adhikata janana. Isi prakara abhinava vayukayika taka ki vaktavyata janana. Bhagavan ! Abhinava vanaspatikayika jiva kitane samaya mem nirlepa ho sakate haim\? Gautama ! Pratyutpannavanaspa – tikayikom ke lie jaghanya aura utkrishta donom padom mem aisa nahim kaha ja sakata ki ye itane samaya mem nirlepa ho sakate haim. Ina jivom ki nirlepana nahim ho sakati. Pratyutpannatrasakayika jiva jaghanya pada mem sagaropama shataprithaktva aura utkrishta pada mem bhi sagaropama shataprithaktva kala mem nirlepa ho sakate haim. Jaghanyapada se utkrishtapada mem vishesha – dhikata samajhana. |