Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )

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Sr No : 1004911
Scripture Name( English ): Gyatadharmakatha Translated Scripture Name : धर्मकथांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१८ सुंसमा

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१८ सुंसमा

Section : Translated Section :
Sutra Number : 211 Category : Ang-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से धने सत्थवाहे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुबहुं धन-कनगं सुंसुमं च दारियं अवहरियं जाणित्ता महत्थं महग्घं महरिहं पाहुडं गहाय जेणेव नगरगुत्तिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं महत्थं महग्घं महरिहं पाहुडं उवनेइ, उवनेत्ताएवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! चिलाए चोरसेनावई सीहगुहाओ चोरपल्लीओ इहं हव्वमागम्म पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं मम गिहं धाएत्ता सुबहुं धन-कनगं सुंसुमं च दारियं गहाय रायगिहाओ पडि-निक्खमित्ता जेणेव सीहगुहा तेणेव पडिगए। तं इच्छामो णं देवानुप्पिया! सुंसुमाए दारियाए कूवं गमित्तए। तुब्भं णं देवानुप्पिया! से विपुले धनकनगे, ममं सुंसुमा दारिया। तए णं ते नगरगुत्तिया धनस्स एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता सन्नद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवया जाव गहियाउहपहरणा महया-महया उक्किट्ठं-सीहनाय-बोल-कलकलरवेण पक्खुभिय-महासमुद्द-रवभूयं पिव करेमाणा रायगिहाओ निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव चिलाए चोरसेनावई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता चिलाएणं चोरसेनावइणा सद्धिं संपलग्गा यावि होत्था। तए णं ते नगरगुत्तिया चिलायं चोरसेनावइं हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिंध-धय-पडागं किच्छोवगयपानं दिसोदिसिं पडिसेहेंति। तए णं ते पंच चोरसया नगरगुत्तिएहिं हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिंध-धय-पडागा किच्छोवगयपाणा दिसोदिसिं पडिसेहिया समाणा तं विपुलं धन-कनगं विच्छड्डमाणा य विप्पकिर-माणा य सव्वओ समंता विप्पलाइत्था। तए णं ते नगरगुत्तिया तं विपुलं धन-कनगं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव रायगिहे नगरे तेणेव उवागच्छंति। तए णं से चिलाए तं चोरसेन्नं तेहिं नगरगुत्तिएहिं हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिंध-धय-पडागं किच्छोवगयपानं दिसोदिसिं पडिसेहियं पासित्ता भीए तत्थे सुंसुमं दारियं गहाय एगं महं अगामियं दीहमद्धं अडविं अनुप्पविट्ठे। तए णं से धने सत्थवाहे सुंसुमं दारियं चिलाएणं अडवीमुहिं अवहीरमाणिं पासित्ता णं पंचहिं पुत्तेहिं सद्धिं अप्पछट्ठे सन्नद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवए चिलायस्स पयमग्गविहिं अनुगच्छमाणे अभिगज्जंते हक्कारेमाणे पुक्कारेमाणे अभितज्जेमाणे अभितासेमाणे पिट्ठओ अनुगच्छइ। तए णं से चिलाए तं धनं सत्थवाहं पंचहिं पुत्तेहिं सद्धिं अप्पछट्ठं सन्नद्ध-बद्ध-वम्मिय-कवयं समणुगच्छमाणं पासइ, पासित्ता अत्थामे अबहले अवीरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे जाहे नो संचाएइ सुंसुमं दारियं निव्वाहित्तए ताहे संते तंते परितंते नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असिं परामुसइ, परामुसित्ता सुंसुमाए दारियाए उत्तमंगं छिंदइ, छिंदित्ता तं गहाय तं अगामियं अडविं अनुप्पविट्ठे। तए णं से चिलाए तीसे अगामियाए अडवीए तण्हाए छुहाए अभिभूए समाणे पम्हट्ठ-दिसाभाए सीहगुहं चोर-पल्लिं असंपत्ते अंतरा चेव कालगए। एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए समाणे इमस्स ओरालियसरीरस्स वंतासवस्स पित्तासवस्स खेलासवस्स सुक्कासवस्स सोणियासवस्स दुरुय-उस्सास-निस्सासस्स दुरुय-मुत्त-पुरीस-पूय-बहु-पडिपुण्णस्स उच्चार-पासवण-खेल-सिंधाणग-वंत-पित्त-सुक्क-सोणियसंभवस्स अधुवस्स अनि-तियस्स असासयस्स सडण-पडण-विद्धंसणधम्मस्स पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जस्स वण्णहेउं वा रूवहेउं वा बलहेउं वा विसयहेउं वा आहारं आहारेइ, से णं इहलोए चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य हीलणिज्जे जाव चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टिस्सइ–जहा व से चिलाए तक्करे। तए णं से धने सत्थवाहे पंचहिं पुत्तेहिं सद्धिं अप्पछट्ठे चिलायं तीसे अगामियाए अडवीए सव्वओ समंता परिधाडेमाणे-परिधाडेमाणे संते तंते परितंते नो संचाएइ चिलायं चोरसेनावइं साहत्थिं गिण्हित्तए। से णं तओ पडिनियत्तइ, पडिनियतित्ता जेणेव सा सुंसुमा चिलाएणं जीवियाओ ववरोविया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुंसुमं दारियं चिलाएणं जीवियाओ ववरोवियं पासइ, पासित्ता परसुनियत्ते व्व चंपगपायवे निव्वत्तमहे व्व इंदलट्ठी विमुक्क-संधिबंधने धरणितलंसि सव्वंगेहिं धसत्ति पडिए। तए णं से धने सत्थवाहे पंचहिं पुत्तेहिं सद्धिं अप्पछट्ठे आसत्थे कूवमाणे कंदमाणे विलवमाणे महया-महया सद्देणं कुहुकुहुस्स परुन्ने सुचिरकालं बाहप्पमोक्खं करेइ। तए णं से धने सत्थवाहे पंचहिं पुत्तेहिं सद्धिं अप्पछट्ठे चिलायं तीसे अगामियाए अडवीए सव्वओ समंता परिधाडेमाणे तण्हाए छुहाए य परब्भाहते समाणे तीसे अगामियाए अडवीए सव्वओ समंता उदगस्स मग्गणगवेसणं करेमाणे संते तंते परितंते निव्विण्णे तीसे अगामियाए अडवीए उदगं अणासाएमाणे जेणेव सुंसुमा जीवियाओ ववरोविएल्लिया तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता जेट्ठं पुत्तं धनं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु पुत्ता! सुंसुमाए दारियाए अट्ठाए चिलायं तक्करं सव्वओ समंता परिधाडेमाणा तण्हाए छुहाए य अभिभूया समाणा इमीसे अगामियाए अडवीए उदगस्स मग्गण-गवेसणं करेमाणा नो चेव णं उदगं आसादेमो। तए णं उदगं अणासाएमाणा नो संचाएमो रायगिहं संपावित्तए। तण्णं तुब्भे ममं देवानुप्पिया! जीवियाओ ववरोवेह, मम मंसं च सोणियं च आहारेह, तेणं आहारेणं अवथद्धा समाणा तओ पच्छा इमं अगामियं अडविं नित्थरिहिह, रायगिहं च संपावेहिह, मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं अभिसमागच्छिहिह, अत्थस्स य धम्मस्स य पुण्णस्स य आभागी भविस्सह। तए णं से जेट्ठे पुत्ते धनेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ते समाणे धनं सत्थवाहं एवं वयासी–तुब्भे णं ताओ! अम्हं पिया गुरुजणया देवयभूया ठवका पइट्ठवका संरक्खगा संगोवगा। तं कहण्णं अम्हे ताओ! तुब्भे जीवियाओ ववरोवेमो, तुब्भं णं मंसं च सोणियं च आहारेमो? तं तुब्भे णं ताओ! ममं जीवियाओ ववरोवेह, मंसं च सोणियं च आहारेह, अगामियं अडविं नित्थरिहिह, रायगिहं च संपावेहिह, मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं अभिसमागच्छिहिह, अत्थस्स य धम्मस्स य पुण्णस्स य आभागी भविस्सह। तए णं धनं सत्थवाहं दोच्चे पुत्ते एवं वयासी–मा णं ताओ अम्हे जेट्ठं भायरं गुरुदेवयं जीवियाओ ववरोवेमो, तस्स णं मंसं च सोणियं च आहारेमो। तं तुब्भे णं ताओ! ममं जीवियाओ ववरोवेह, मंसं च सोणियं च आहारेह, अगामियं अडविं नित्थरिहिह, रायगिहं च संपावेहिह, मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं अभिसमागच्छिहिह, अत्थस्स य धम्मस्स य पुण्णस्स य आभागी भविस्सह। एवं जाव पंचमे पुत्तं। तए णं से धने सत्थवाहे पंचपुत्ताणं हियइच्छियं जाणित्ता ते पंचपुत्ते एवं वयासी–मा णं अम्हे पुत्ता! एगमवि जीवियाओ ववरोवेमो। एस णं सुंसुमाए दारियाए सरीरे निप्पाणे निच्चेट्ठे जीवविप्पजढे। तं सेयं खलु पुत्ता! अम्हं सुंसुमाए दारियाए मंसं च सोणियं च आहारेत्तए। तए णं अम्हे तेणं आहारेणं अवथद्धा समाणा रायगिहं संपाउणिस्सामो। तए णं ते पंचपुत्ता धनेण सत्थवाहेण एवं वुत्ता समाणा एयमट्ठं पडिसुणेंति। तए णं धने सत्थवाहे पंचहिं पुत्तेहिं सद्धिं अरणिं करेइ, करेत्ता सरग करेइ, करेत्ता सरएणं अरणिं महेइ, महेत्ता अग्गिं पाडेइ, पाडेत्ता अग्गिं संधुक्केइ, संधुक्केत्ता दारुयाइं पक्खिवइ, पक्खिवित्ता अग्गिं पज्जालेइ, सुंसुमाए दारियाए मंसं च सोणियं च आहारेइ। तेणं आहारेणं अवथद्धा समाणा रायगिहं नयरं संपत्ता मित्त-नाइ-नियग- सयण-संबंधि- परियण अभिसमन्नागया, तस्स य विउलस्स धन-कनग- रयण-मणि- मोत्तिय-संख- सिल-प्पवाल- रत्तरयण-संतसार- सावएज्जस्स आभागी जाया। तए णं से धने सत्थवाहे सुंसुमाए दारियाए बहूइं लोइयाइं मयकिच्चाइं करेइ, करेत्ता कालेणं विगयसाए जाए यावि होत्था।
Sutra Meaning : चोरों के चले जाने के पश्चात्‌ धन्य सार्थवाह अपने घर आया। आकर उसने जाना कि मेरा बहुत – सा धन कनक और सुंसुमा लड़की का अपहरण कर लिया गया है। यह जानकर वह बहुमूल्य भेंट लेकर के रक्षकों के पास गया और उनसे कहा – ‘देवानुप्रियो ! चिलात नामक चोरसेनापति सिंहगुफा नामक चोरपल्ली से यहाँ आकर, पाँच सौ चोरों के साथ, मेरा घर लूटकर और बहुत – सा धन, कनक तथा सुंसुमा लड़की को लेकर चला गया है। अत एव हम, हे देवानुप्रियो ! सुंसुमा लड़की को वापिस लाने के लिए जाना चाहते हैं। देवानुप्रियो ! जो धन, कनक वापिस मिले वह सब तुम्हारा होगा और सुंसमा दारिका मेरी रहेगी। तब नगर के रक्षकों ने धन्य सार्थवाह की यह बात स्वीकार की। वे कवच धारण करके सन्नद्ध हुए। उन्होंने आयुध और प्रहरण लिए। फिर जोर – जोर के उत्कृष्ट सिंहनाद से समुद्र की खलभलाहट जैसा शब्द करते हुए राजगृह से बाहर नीकले। नीकलकर जहाँ चिलात चोर था, वहाँ पहुँचे, पहुँचकर चिलात चोरसेनापति के साथ युद्ध करने लगे। तब नगररक्षकों ने चोरसेनापति चिलात को हत, मथित करके यावत्‌ पराजित कर दिया। उस समय वे पाँच सौ चोर नगररक्षकों द्वारा हत, मथित होकर और पराजित होकर उस विपुल धन और कनक आदि को छोड़कर और फेंक कर चारों ओर भाग खड़े हुए। तत्पश्चात्‌ नगररक्षकों ने वह विपुल धन, कनक आदि ग्रहण कर लिया। ग्रहण करके वे जिस ओर राजगृह नगर था, उसी ओर चल पड़े। नगररक्षकों द्वारा चोरसैन्य को हत एवं मथित हुआ देखकर तथा उसके श्रेष्ठ वीर मारे गए, ध्वजा – पताका नष्ट हो गई, प्राण संकट में पड़ गए हैं, सैनिक इधर उधर भाग छूटे हैं, यह देखकर चिलात भयभीत और उद्विग्न हो गया। वह सुंसुमा को लेकर एक महान्‌ अग्रामिक तथा लम्बे मार्ग वाली अटवी में घूस गया। उस समय धन्य सार्थवाह सुंसुमा दारिका को अटवी के सम्मुख से ले जाती देखकर, पाँचों पुत्रों के साथ छठा आप स्वयं कवच पहनकर, चिलात के पैरों के मार्ग पर चला। वह उसके पीछे – पीछे चलता हुआ, गर्जना करता हुआ, चुनौती देता हुआ, पुकारता हुआ, तर्जना करता हुआ और उसे त्रस्त करता हुआ उसके पीछे – पीछे चलने लगा। चिलात ने देखा की धन्य सार्थवाह पाँच पुत्रों के साथ आप स्वयं छठा सन्नद्ध होकर मेरा पीछा कर रहा है। यह देखकर निस्तेज, निर्बल, पराक्रमहीन एवं वीर्यहीन हो गया। जब वह सुंसुमा दारिका का निर्वाह करने में समर्थ न हो सका, तब श्रान्त हो गया – ग्लानि को प्राप्त हुआ और अत्यन्त श्रान्त हो गया। अत एव उसने नील कमल के समान तलवार हाथ में ली और सुंसुमा का सिर काट लिया। कटे सिर को लेकर वह उस अग्रामिक या दुर्गम अटवी में घूस गया। चिलात उस अग्रामिक अटवी में प्यास से पीड़ित होकर दिशा भूल गया। वह चोरपल्ली तक नहीं पहुँच सका और बीच में ही मर गया। इसी प्रकार हे आयुष्मन्‌ श्रमणों ! जो साधु या साध्वी प्रव्रजित होकर वमन बहता यावत्‌ विनाशशील इस औदारिक शरीर के वर्ण के लिए यावत्‌ आहार करते हैं, वे इसी लोक में बहुत – से श्रमणों, श्रमणियों, श्रावकों और श्राविकाओं की अवहेलना का पात्र बनते हैं और दीर्घ संसार में पर्यटन करते हैं, जैसे चिलात चोर अन्त में दुःखी हुआ। धन्य सार्थवाह पाँच पुत्रों के साथ आप छठा स्वयं चिलात के पीछे दौड़ता – दौड़ता प्यास से और भूख से श्रान्त हो गया, ग्लान हो गया और बहुत थक गया। वह चोरसेनापति चिलात को अपने हाथ से पकड़ने में समर्थ न हो सका। तब वह वहाँ से लौट पड़ा, जहाँ सुंसुमा दारिका को चिलात ने जीवन से रहित कर दिया था। उसने देखा कि बालिका सुंसुमा चिलात के द्वारा मार डाली गई है। यह देखकर कुल्हाड़े से काटे हुए चम्पक वृक्ष के समान या बंधनमुक्त इन्द्रयष्टि के समान धड़ाम से वह पृथ्वी पर गिर पड़ा। पाँच पुत्रों सहित छठा आप धन्य सार्थवाह आश्वस्त हुआ तो आक्रंदन करने लगा, विलाप करने लगा और जोर – जोर के शब्दों से कुह – कुह करता रोने लगा। वह बहुत देर तक आंसू बहाता रहा। पाँच पुत्रों सहित छठे स्वयं धन्य सार्थवाह ने चिलात चोर के पीछे चारों ओर दोड़ने के कारण प्यास और भूख से पीड़ित होकर, उस अग्रामिक अटवी में सब तरफ जल की मार्गणा – गवेषणा की। वह श्रान्त हो गया, ग्लान हो गया, बहुत थक गया और खिन्न हो गया। उस अग्रामिक अटवी में जल की खोज करने पर भी वह कहीं जल न पा सका। तत्पश्चात्‌ कहीं भी जल न पाकर धन्य सार्थवाह, जहाँ सुंसुमा जीवन से रहीत की गई थी, उस जगह आया। उसने ज्येष्ठ पुत्र को बुलाकर कहा – ‘हे पुत्र ! सुंसुमा दारिका के लिए चिलात तस्कर के पीछे – पीछे चारों ओर दौड़ते हुए प्यास और भूख से पीड़ित होकर हमने इस अग्रामिक अटवी में जल की तलाश की, मगर जल न पा सके। जल के बिना हम लोग राजगृह नहीं पहुँच सकते। अत एव हे देवानुप्रिय ! तुम मुझे जीवन से रहित कर दो और सब भाई मेरे मांस और रुधिर का आहार करो। आहार करके उस आहार से स्वस्थ होकर फिर इस अग्रामिक अटवी को पार कर जाना, राजगृह नगर पा लेना, मित्रों, ज्ञातिजनों, निजजनों, स्वजनों, सम्बन्धीयों और परिजनों से मिलना तथा अर्थ, धर्म और पुण्य के भागी होना।’ धन्य सार्थवाह के इस प्रकार कहने पर ज्येष्ठ पुत्र ने धन्य सार्थवाह से कहा – ‘तात ! आप हमारे पिता हो, गुरु हो, जनक हो, देवता – स्वरूप हो, स्थापक हो, प्रतिष्ठापक हो, कष्ट से रक्षा करने वाले हो, दुर्व्यसनों से बचाने वाले हो, अतः हे तात ! हम आपको जीवन से रहित कैसे करें ? कैसे आपके मांस और रुधिर का आहार करें ? हे तात ! आप मुझे जीवन – हीन कर दो और मेरे मांस तथा रुधिर का आहार करो और इस अग्रामिक अटवी को पार करो।’ इत्यादि पूर्ववत्‌ यहाँ तक की अर्थ, धर्म और पुण्य के भागी बनो। तत्पश्चात्‌ दूसरे पुत्र ने धन्य सार्थवाह से कहा – ‘हे तात ! हम गुरु और देव के समान ज्येष्ठ बन्धु को जीवन से रहित नहीं करेंगे। हे तात ! आप मुझको जीवन से रहित कीजिए, यावत्‌ आप सब पुण्य के भागी बनीए।’ तीसरे, चौथे और पाँचवे पुत्र ने भी इसी प्रकार कहा। तत्पश्चात्‌ धन्य सार्थवाह ने पाँचों पुत्रों के हृदय की ईच्छा जानकर पाँचों पुत्रों से इस प्रकार कहा – ‘पुत्रों ! हम किसी को भी जीवन से रहित न करें। यह सुंसुमा का शरीर निष्प्राण, निश्चेष्ट और जीवन द्वारा त्यक्त है, अत एव हे पुत्रों ! सुंसुमा दारिका के मांस और रुधिर का आहार करना हमारे लिए उचित होगा। हम लोग उस आहार से स्वस्थ होकर राजगृह को पा लेंगे। धन्य सार्थवाह के इस प्रकार कहने पर उन पाँच पुत्रों ने यह बात स्वीकार की। तब धन्य सार्थवाह ने पाँचों पुत्रों के साथ अरणि की। फिर शर बनाया। दोनों तैयार करके शर से अरणि का मंथन किया। अग्नि उत्पन्न की। अग्नि धौंकी, उसमें लकड़ियाँ डालीं, अग्नि प्रज्वलित करके सुंसुमा दारिका का मांस पका कर उस मांस का और रुधिर का आहार किया। उस आहार से स्वस्थ होकर वे रागजृह नगरी तक पहुँचे। अपने मित्रों एवं ज्ञातिजनों, स्वजनों, परिजनों आदि से मिले और विपुल धन, कनक, रत्न आदि के तथा धर्म, अर्थ एवं पुण्य के भागी हुए। तत्पश्चात्‌ धन्य सार्थवाह ने सुंसुमा दारिका के बहुत – से लौकिक मृतक – कृत्य किए, तदनन्तर कुछ काल बीत जाने पर वह शोकरहित हो गया।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se dhane satthavahe jeneva sae gihe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta subahum dhana-kanagam sumsumam cha dariyam avahariyam janitta mahattham mahaggham mahariham pahudam gahaya jeneva nagaraguttiya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta tam mahattham mahaggham mahariham pahudam uvanei, uvanettaevam vayasi– Evam khalu devanuppiya! Chilae chorasenavai sihaguhao chorapallio iham havvamagamma pamchahim chorasaehim saddhim mama giham dhaetta subahum dhana-kanagam sumsumam cha dariyam gahaya rayagihao padi-nikkhamitta jeneva sihaguha teneva padigae. Tam ichchhamo nam devanuppiya! Sumsumae dariyae kuvam gamittae. Tubbham nam devanuppiya! Se vipule dhanakanage, mamam sumsuma dariya. Tae nam te nagaraguttiya dhanassa eyamattham padisunemti, padisunetta sannaddha-baddha-vammiya-kavaya java gahiyauhapaharana mahaya-mahaya ukkittham-sihanaya-bola-kalakalaravena pakkhubhiya-mahasamudda-ravabhuyam piva karemana rayagihao niggachchhamti, niggachchhitta jeneva chilae chorasenavai teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta chilaenam chorasenavaina saddhim sampalagga yavi hottha. Tae nam te nagaraguttiya chilayam chorasenavaim haya-mahiya-pavaravira-ghaiya-vivadiyachimdha-dhaya-padagam kichchhovagayapanam disodisim padisehemti. Tae nam te pamcha chorasaya nagaraguttiehim haya-mahiya-pavaravira-ghaiya-vivadiyachimdha-dhaya-padaga kichchhovagayapana disodisim padisehiya samana tam vipulam dhana-kanagam vichchhaddamana ya vippakira-mana ya savvao samamta vippalaittha. Tae nam te nagaraguttiya tam vipulam dhana-kanagam genhamti, genhitta jeneva rayagihe nagare teneva uvagachchhamti. Tae nam se chilae tam chorasennam tehim nagaraguttiehim haya-mahiya-pavaravira-ghaiya-vivadiyachimdha-dhaya-padagam kichchhovagayapanam disodisim padisehiyam pasitta bhie tatthe sumsumam dariyam gahaya egam maham agamiyam dihamaddham adavim anuppavitthe. Tae nam se dhane satthavahe sumsumam dariyam chilaenam adavimuhim avahiramanim pasitta nam pamchahim puttehim saddhim appachhatthe sannaddha-baddha-vammiya-kavae chilayassa payamaggavihim anugachchhamane abhigajjamte hakkaremane pukkaremane abhitajjemane abhitasemane pitthao anugachchhai. Tae nam se chilae tam dhanam satthavaham pamchahim puttehim saddhim appachhattham sannaddha-baddha-vammiya-kavayam samanugachchhamanam pasai, pasitta atthame abahale avirie apurisakkaraparakkame jahe no samchaei sumsumam dariyam nivvahittae tahe samte tamte paritamte niluppala-gavalaguliya-ayasikusumappagasam khuradharam asim paramusai, paramusitta sumsumae dariyae uttamamgam chhimdai, chhimditta tam gahaya tam agamiyam adavim anuppavitthe. Tae nam se chilae tise agamiyae adavie tanhae chhuhae abhibhue samane pamhattha-disabhae sihaguham chora-pallim asampatte amtara cheva kalagae. Evameva samanauso! Jo amham niggamtho va niggamthi va ayariya-uvajjhayanam amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie samane imassa oraliyasarirassa vamtasavassa pittasavassa khelasavassa sukkasavassa soniyasavassa duruya-ussasa-nissasassa duruya-mutta-purisa-puya-bahu-padipunnassa uchchara-pasavana-khela-simdhanaga-vamta-pitta-sukka-soniyasambhavassa adhuvassa ani-tiyassa asasayassa sadana-padana-viddhamsanadhammassa pachchha puram cha nam avassavippajahanijjassa vannaheum va ruvaheum va balaheum va visayaheum va aharam aharei, se nam ihaloe cheva bahunam samananam bahunam samaninam bahunam savayanam bahunam saviyana ya hilanijje java chauramtam samsarakamtaram anupariyattissai–jaha va se chilae takkare. Tae nam se dhane satthavahe pamchahim puttehim saddhim appachhatthe chilayam tise agamiyae adavie savvao samamta paridhademane-paridhademane samte tamte paritamte no samchaei chilayam chorasenavaim sahatthim ginhittae. Se nam tao padiniyattai, padiniyatitta jeneva sa sumsuma chilaenam jiviyao vavaroviya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sumsumam dariyam chilaenam jiviyao vavaroviyam pasai, pasitta parasuniyatte vva champagapayave nivvattamahe vva imdalatthi vimukka-samdhibamdhane dharanitalamsi savvamgehim dhasatti padie. Tae nam se dhane satthavahe pamchahim puttehim saddhim appachhatthe asatthe kuvamane kamdamane vilavamane mahaya-mahaya saddenam kuhukuhussa parunne suchirakalam bahappamokkham karei. Tae nam se dhane satthavahe pamchahim puttehim saddhim appachhatthe chilayam tise agamiyae adavie savvao samamta paridhademane tanhae chhuhae ya parabbhahate samane tise agamiyae adavie savvao samamta udagassa magganagavesanam karemane samte tamte paritamte nivvinne tise agamiyae adavie udagam anasaemane jeneva sumsuma jiviyao vavarovielliya teneva uvagachchhai uvagachchhitta jettham puttam dhanam saddavei, saddavetta evam vayasi–evam khalu putta! Sumsumae dariyae atthae chilayam takkaram savvao samamta paridhademana tanhae chhuhae ya abhibhuya samana imise agamiyae adavie udagassa maggana-gavesanam karemana no cheva nam udagam asademo. Tae nam udagam anasaemana no samchaemo rayagiham sampavittae. Tannam tubbhe mamam devanuppiya! Jiviyao vavaroveha, mama mamsam cha soniyam cha ahareha, tenam aharenam avathaddha samana tao pachchha imam agamiyam adavim nittharihiha, rayagiham cha sampavehiha, mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanam abhisamagachchhihiha, atthassa ya dhammassa ya punnassa ya abhagi bhavissaha. Tae nam se jetthe putte dhanenam satthavahenam evam vutte samane dhanam satthavaham evam vayasi–tubbhe nam tao! Amham piya gurujanaya devayabhuya thavaka paitthavaka samrakkhaga samgovaga. Tam kahannam amhe tao! Tubbhe jiviyao vavarovemo, tubbham nam mamsam cha soniyam cha aharemo? Tam tubbhe nam tao! Mamam jiviyao vavaroveha, mamsam cha soniyam cha ahareha, agamiyam adavim nittharihiha, rayagiham cha sampavehiha, mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanam abhisamagachchhihiha, atthassa ya dhammassa ya punnassa ya abhagi bhavissaha. Tae nam dhanam satthavaham dochche putte evam vayasi–ma nam tao amhe jettham bhayaram gurudevayam jiviyao vavarovemo, tassa nam mamsam cha soniyam cha aharemo. Tam tubbhe nam tao! Mamam jiviyao vavaroveha, mamsam cha soniyam cha ahareha, agamiyam adavim nittharihiha, rayagiham cha sampavehiha, mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanam abhisamagachchhihiha, atthassa ya dhammassa ya punnassa ya abhagi bhavissaha. Evam java pamchame puttam. Tae nam se dhane satthavahe pamchaputtanam hiyaichchhiyam janitta te pamchaputte evam vayasi–ma nam amhe putta! Egamavi jiviyao vavarovemo. Esa nam sumsumae dariyae sarire nippane nichchetthe jivavippajadhe. Tam seyam khalu putta! Amham sumsumae dariyae mamsam cha soniyam cha aharettae. Tae nam amhe tenam aharenam avathaddha samana rayagiham sampaunissamo. Tae nam te pamchaputta dhanena satthavahena evam vutta samana eyamattham padisunemti. Tae nam dhane satthavahe pamchahim puttehim saddhim aranim karei, karetta saraga karei, karetta saraenam aranim mahei, mahetta aggim padei, padetta aggim samdhukkei, samdhukketta daruyaim pakkhivai, pakkhivitta aggim pajjalei, sumsumae dariyae mamsam cha soniyam cha aharei. Tenam aharenam avathaddha samana rayagiham nayaram sampatta mitta-nai-niyaga- sayana-sambamdhi- pariyana abhisamannagaya, tassa ya viulassa dhana-kanaga- rayana-mani- mottiya-samkha- sila-ppavala- rattarayana-samtasara- savaejjassa abhagi jaya. Tae nam se dhane satthavahe sumsumae dariyae bahuim loiyaim mayakichchaim karei, karetta kalenam vigayasae jae yavi hottha.
Sutra Meaning Transliteration : Chorom ke chale jane ke pashchat dhanya sarthavaha apane ghara aya. Akara usane jana ki mera bahuta – sa dhana kanaka aura sumsuma laraki ka apaharana kara liya gaya hai. Yaha janakara vaha bahumulya bhemta lekara ke rakshakom ke pasa gaya aura unase kaha – ‘devanupriyo ! Chilata namaka chorasenapati simhagupha namaka chorapalli se yaham akara, pamcha sau chorom ke satha, mera ghara lutakara aura bahuta – sa dhana, kanaka tatha sumsuma laraki ko lekara chala gaya hai. Ata eva hama, he devanupriyo ! Sumsuma laraki ko vapisa lane ke lie jana chahate haim. Devanupriyo ! Jo dhana, kanaka vapisa mile vaha saba tumhara hoga aura sumsama darika meri rahegi. Taba nagara ke rakshakom ne dhanya sarthavaha ki yaha bata svikara ki. Ve kavacha dharana karake sannaddha hue. Unhomne ayudha aura praharana lie. Phira jora – jora ke utkrishta simhanada se samudra ki khalabhalahata jaisa shabda karate hue rajagriha se bahara nikale. Nikalakara jaham chilata chora tha, vaham pahumche, pahumchakara chilata chorasenapati ke satha yuddha karane lage. Taba nagararakshakom ne chorasenapati chilata ko hata, mathita karake yavat parajita kara diya. Usa samaya ve pamcha sau chora nagararakshakom dvara hata, mathita hokara aura parajita hokara usa vipula dhana aura kanaka adi ko chhorakara aura phemka kara charom ora bhaga khare hue. Tatpashchat nagararakshakom ne vaha vipula dhana, kanaka adi grahana kara liya. Grahana karake ve jisa ora rajagriha nagara tha, usi ora chala pare. Nagararakshakom dvara chorasainya ko hata evam mathita hua dekhakara tatha usake shreshtha vira mare gae, dhvaja – pataka nashta ho gai, prana samkata mem para gae haim, sainika idhara udhara bhaga chhute haim, yaha dekhakara chilata bhayabhita aura udvigna ho gaya. Vaha sumsuma ko lekara eka mahan agramika tatha lambe marga vali atavi mem ghusa gaya. Usa samaya dhanya sarthavaha sumsuma darika ko atavi ke sammukha se le jati dekhakara, pamchom putrom ke satha chhatha apa svayam kavacha pahanakara, chilata ke pairom ke marga para chala. Vaha usake pichhe – pichhe chalata hua, garjana karata hua, chunauti deta hua, pukarata hua, tarjana karata hua aura use trasta karata hua usake pichhe – pichhe chalane laga. Chilata ne dekha ki dhanya sarthavaha pamcha putrom ke satha apa svayam chhatha sannaddha hokara mera pichha kara raha hai. Yaha dekhakara nisteja, nirbala, parakramahina evam viryahina ho gaya. Jaba vaha sumsuma darika ka nirvaha karane mem samartha na ho saka, taba shranta ho gaya – glani ko prapta hua aura atyanta shranta ho gaya. Ata eva usane nila kamala ke samana talavara hatha mem li aura sumsuma ka sira kata liya. Kate sira ko lekara vaha usa agramika ya durgama atavi mem ghusa gaya. Chilata usa agramika atavi mem pyasa se pirita hokara disha bhula gaya. Vaha chorapalli taka nahim pahumcha saka aura bicha mem hi mara gaya. Isi prakara he ayushman shramanom ! Jo sadhu ya sadhvi pravrajita hokara vamana bahata yavat vinashashila isa audarika sharira ke varna ke lie yavat ahara karate haim, ve isi loka mem bahuta – se shramanom, shramaniyom, shravakom aura shravikaom ki avahelana ka patra banate haim aura dirgha samsara mem paryatana karate haim, jaise chilata chora anta mem duhkhi hua. Dhanya sarthavaha pamcha putrom ke satha apa chhatha svayam chilata ke pichhe daurata – daurata pyasa se aura bhukha se shranta ho gaya, glana ho gaya aura bahuta thaka gaya. Vaha chorasenapati chilata ko apane hatha se pakarane mem samartha na ho saka. Taba vaha vaham se lauta para, jaham sumsuma darika ko chilata ne jivana se rahita kara diya tha. Usane dekha ki balika sumsuma chilata ke dvara mara dali gai hai. Yaha dekhakara kulhare se kate hue champaka vriksha ke samana ya bamdhanamukta indrayashti ke samana dharama se vaha prithvi para gira para. Pamcha putrom sahita chhatha apa dhanya sarthavaha ashvasta hua to akramdana karane laga, vilapa karane laga aura jora – jora ke shabdom se kuha – kuha karata rone laga. Vaha bahuta dera taka amsu bahata raha. Pamcha putrom sahita chhathe svayam dhanya sarthavaha ne chilata chora ke pichhe charom ora dorane ke karana pyasa aura bhukha se pirita hokara, usa agramika atavi mem saba tarapha jala ki margana – gaveshana ki. Vaha shranta ho gaya, glana ho gaya, bahuta thaka gaya aura khinna ho gaya. Usa agramika atavi mem jala ki khoja karane para bhi vaha kahim jala na pa saka. Tatpashchat kahim bhi jala na pakara dhanya sarthavaha, jaham sumsuma jivana se rahita ki gai thi, usa jagaha aya. Usane jyeshtha putra ko bulakara kaha – ‘he putra ! Sumsuma darika ke lie chilata taskara ke pichhe – pichhe charom ora daurate hue pyasa aura bhukha se pirita hokara hamane isa agramika atavi mem jala ki talasha ki, magara jala na pa sake. Jala ke bina hama loga rajagriha nahim pahumcha sakate. Ata eva he devanupriya ! Tuma mujhe jivana se rahita kara do aura saba bhai mere mamsa aura rudhira ka ahara karo. Ahara karake usa ahara se svastha hokara phira isa agramika atavi ko para kara jana, rajagriha nagara pa lena, mitrom, jnyatijanom, nijajanom, svajanom, sambandhiyom aura parijanom se milana tatha artha, dharma aura punya ke bhagi hona.’ dhanya sarthavaha ke isa prakara kahane para jyeshtha putra ne dhanya sarthavaha se kaha – ‘tata ! Apa hamare pita ho, guru ho, janaka ho, devata – svarupa ho, sthapaka ho, pratishthapaka ho, kashta se raksha karane vale ho, durvyasanom se bachane vale ho, atah he tata ! Hama apako jivana se rahita kaise karem\? Kaise apake mamsa aura rudhira ka ahara karem\? He tata ! Apa mujhe jivana – hina kara do aura mere mamsa tatha rudhira ka ahara karo aura isa agramika atavi ko para karo.’ ityadi purvavat yaham taka ki artha, dharma aura punya ke bhagi bano. Tatpashchat dusare putra ne dhanya sarthavaha se kaha – ‘he tata ! Hama guru aura deva ke samana jyeshtha bandhu ko jivana se rahita nahim karemge. He tata ! Apa mujhako jivana se rahita kijie, yavat apa saba punya ke bhagi banie.’ tisare, chauthe aura pamchave putra ne bhi isi prakara kaha. Tatpashchat dhanya sarthavaha ne pamchom putrom ke hridaya ki ichchha janakara pamchom putrom se isa prakara kaha – ‘putrom ! Hama kisi ko bhi jivana se rahita na karem. Yaha sumsuma ka sharira nishprana, nishcheshta aura jivana dvara tyakta hai, ata eva he putrom ! Sumsuma darika ke mamsa aura rudhira ka ahara karana hamare lie uchita hoga. Hama loga usa ahara se svastha hokara rajagriha ko pa lemge. Dhanya sarthavaha ke isa prakara kahane para una pamcha putrom ne yaha bata svikara ki. Taba dhanya sarthavaha ne pamchom putrom ke satha arani ki. Phira shara banaya. Donom taiyara karake shara se arani ka mamthana kiya. Agni utpanna ki. Agni dhaumki, usamem lakariyam dalim, agni prajvalita karake sumsuma darika ka mamsa paka kara usa mamsa ka aura rudhira ka ahara kiya. Usa ahara se svastha hokara ve ragajriha nagari taka pahumche. Apane mitrom evam jnyatijanom, svajanom, parijanom adi se mile aura vipula dhana, kanaka, ratna adi ke tatha dharma, artha evam punya ke bhagi hue. Tatpashchat dhanya sarthavaha ne sumsuma darika ke bahuta – se laukika mritaka – kritya kie, tadanantara kuchha kala bita jane para vaha shokarahita ho gaya.