Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004849 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१४ तेतलीपुत्र |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१४ तेतलीपुत्र |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 149 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से कनगरहे राया रज्जे य रट्ठे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य पुरे य अंतेउरे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे जाए, जाए पुत्ते वियंगेइ–अप्पेगइयाणं हत्थंगुलियाओ छिंदइ, अप्पेगइयाणं हत्थंगुट्ठए छिंदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुलियाओ छिंदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुट्ठए छिंदइ, अप्पेगइयाणं कण्णसक्कुलीओ छिंदइ, अप्पेगइयाणं नासापुडाइं फालेइ, अप्पेगइयाणं अंगोवंगाइं वियत्तेइ। तए णं तीसे पउमावईए देवीए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु कनगरहे राया रज्जे य रट्ठे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य पुरे य अंतेउरे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे जाए, जाए पुत्ते वियंगेइ–अप्पेगइयाणं हत्थंगुलियाओ छिंदइ, अप्पेगइयाणं हत्थंगुट्ठए छिंदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुलियाओ छिंदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुट्ठए छिंदइ, अप्पेगइयाणं कण्णसक्कुलीओ छिंदइ, अप्पेगइयाणं नासापुडाइं फालेइ, अप्पेगइयाणं अंगमंगाइं वियत्तेइ। तं जइ णं अहं दारयं पयायामि, सेयं खलु मम तं दारगं कनगरहस्स रहस्सिययं चेव सारक्खमाणीए संगोवेमाणीए विहरित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता तेयलिपुत्तं अमच्चं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! कनगरहे राया रज्जे य रट्ठे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य पुरे य अंतेउरे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोव-वण्णे जाए, जाए पुत्ते वियंगेइ–अप्पेगइयाणं हत्थंगुलियाओ छिंदइ, अप्पेगइयाणं हत्थंगुट्ठए छिंदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुलियाओ छिंदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुट्ठए छिंदइ, अप्पेगइयाणं कण्णसक्कुलीओ छिंदइ, अप्पेगइयाणं नासापुडाइं फालेइ, अप्पेगइयाणं अंगोवंगाइं वियत्तेइ। तं जइ णं अहं देवानुप्पिया! दारगं पयायामि, तए णं तुमं कनगरहस्स रहस्सिययं चेव अनुपुव्वेणं सारक्खमाणे संगोवेमाणे संवड्ढेहि। तए णं से दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते तव मम य भिक्खाभायणे भविस्सइ तए णं से तेयलिपुत्ते अमच्चे पउमावईए देवीए एयमट्ठं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता पडिगए। तए णं पउमावई देवी पोट्टिला य अमच्चो सममेव गब्भं गेण्हंति, सममेव परिवहंति। तए णं सा पउमावई देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव पियदंसणं सुरूवं दारगं पयाया। जं रयणिं च णं पउमावई देवी दारयं पयाया तं रयणिं च णं पोट्टिला वि अमच्चो नवण्हं मासाणं विणिहायमावन्नं दारियं पयाया। तए णं सा पउमावई देवी अम्मधाइं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुमं अम्मो! तेयलिपुत्तं रहस्सिययं चेव सद्दावेहि। तए णं सा अम्मधाई तहत्ति पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता अंतेउरस्स अवदारेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव तेयलिस्स गिहे जेणेव तेयलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! पउमावई देवी सद्दावेइ। तए णं तेयलिपुत्ते अम्मधाईए अंतिए एगमट्ठं सोच्चा हट्ठतुट्ठे अम्मधाईए सद्धिं साओ गिहाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता अंतेउरस्स अवदारेणं रहस्सिययं चेव अनुप्पविसइ, अनुप्पविसित्ता जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–संदिसतु णं देवानुप्पिया! जं मए कायव्वं। तए णं पउमावई देवी तेयलिपुत्तं एवं वयासी–एव खलु कनगरहे राया जाव पुत्ते वियंगेइ। अहं च णं देवानुप्पिया दारगं पयाया। तं तुमं णं देवानुप्पिया! एवं दारगं गेण्हाहि जाव तव मम य भिक्खाभायणे भविस्सइ त्ति कट्टु तेयलिपुत्तस्स हत्थे दलयइ। तए णं तेयलिपुत्ते पउमावईए हत्थाओ दारगं गेण्हइ, उत्तरिज्जेणं पिहेइ, अंतेउरस्स रहस्सिययं अवदारेणं निग्गच्छइ निग्गच्छित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव पोट्टिला भारिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोट्टिलं एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिए! कनगरहे राया जाव पुत्ते वियंगेइ। अयं च णं दारए कनगरहस्स पुत्ते पउमावईए अत्तए। तन्नं तुमं देवानुप्पिए! इमं दारगं कनगरहस्स रहस्सिययं चेव अनुपुव्वेणं सारक्खाहि य संगोवेहि य संवड्ढेहि य। तए णं एस दारए उम्मुक्कबालभावे तव य मम य पउमावईए य आहारे भविस्सइ त्ति कट्टु पोट्टिलाए पासे निक्खिवइ, निक्खिवित्ता पोट्टिलाए पासाओ तं विणिहायमावण्णियं दारियं गेण्हइ गेण्हित्ता उत्तरिज्जेणं पिहेइ, पिहेत्ता अंतेउरस्स अवदारेणं अनुप्पविसइ, अनुप्पविसित्ता जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पउमावईए देवीए पासे ठावेइ जाव पडिनिग्गए। तए णं तीसे पउमावईए देवीए अंगपडियारियाओ पउमावइं देविं विणिहायमावण्णियं च दारियं पयायं पासंति, पासित्ता जेणेव कनगरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–एवं खलु सामी! पउमावई देवी मएल्लियं दारियं पयाया। तए णं कनगरहे राया तीसे मएल्लियाए दारियाए नीहरणं करेइ, बहूइं लोगियाइं मयकिच्चाइं करेइ, करेत्ता कालेणं विगयसोए जाए। तए णं से तेयलिपुत्ते कल्लं कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! चारगसोहणं करेह जाव ठिइपडियं दसदेवसियं करेह, कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तेवि तहेव करेंति, तहेव पच्चप्पिणंति। जम्हा णं अम्हं एस दारए कनगरहस्स रज्जे जाए तं होउ णं दारए नामेणं कनगज्झए जाव अलंभोगसमत्थे जाए। | ||
Sutra Meaning : | कनकरथ राजा राज्य में, राष्ट्र में, बल में, वाहनों में, कोष में, कोठार में तथा अन्तःपुर में अत्यन्त आसक्त था, लोलुप – गृद्ध और लालसामय था। अत एव वह जो – जो पुत्र उत्पन्न होते उन्हें विकलांग कर देता था। किन्हीं के हाथ की अंगुलियाँ काट देता, किन्हीं के हाथ का अंगूठा काट देता, इसी प्रकार किसी के पैर की अंगुलियाँ, पैर का अंगूठा, कर्णशष्कुली और किसी का नासिकापुट काट देता था। इस प्रकार उसने सभी पुत्रों को अवयवविकल कर दिया था। तत्पश्चात् पद्मावती देवी को एक बार मध्यरात्रि के समय इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ – ‘कनकरथ राजा राज्य आदि में आसक्त होकर यावत् उनके अंग – अंग काट लेता है, तो यदि मेरे अब पुत्र उत्पन्न हो तो मेरे लिए यह श्रेयस्कर होगा कि उस पुत्र को मैं कनकरथ से छिपा कर पालूँ – पोसूँ।’ पद्मावती देवी ने ऐसा विचार किया और विचार करके तेतलिपुत्र अमात्य को बुलवा कर उससे कहा – ‘हे देवानुप्रिय ! कनकरथ राजा राज्य और राष्ट्र आदि में अत्यन्त आसक्त होकर सब पुत्रों को अपंग कर देता है, अतः मैं यदि अब पुत्र को जन्म दूँ तो कनकरथ से छिपाकर ही अनुक्रम से उसका संरक्षण, संगोपन एवं संवर्धन करना। ऐसा करने से बालक बाल्यावस्था पार करके यौवन को प्राप्त होकर तुम्हारे लिए भी और मेरे लिए भी भिक्षा का भाजन बनेगा।’ तब तेतलिपुत्र अमात्य ने पद्मावती के इस अर्थ को अंगीकार किया। वह वापिस लौट गया। तत्पश्चात् पद्मावती देवी ने और पोट्टिला नामक अमात्यी ने एक ही साथ गर्भ धारण किया, एक ही साथ गर्भ वहन किया और साथ – साथ ही गर्भ की वृद्धि की। तत्पश्चात् पद्मावती देवी ने नौ मास पूर्ण हो जाने पर देखने में प्रिय और सुन्दर रूप वाले पुत्र को जन्म दिया। जिस रात्रि में पद्मावती देवी ने पुत्र को जन्म दिया, उसी रात्रि में पोट्टिला अमात्यपत्नी ने भी नौ मास व्यतीत होने पर मरी हुई बालिका का प्रसव किया। उस समय पद्मावती देवी ने अपनी धायमाता को बुलाया और कहा – ‘तुम तेतलिपुत्र के घर जाओ और गुप्त रूप से बुला लाओ।’ तब धायमाता ने पद्मावती का आदेश स्वीकार किया। वह अन्तःपुर के पीछले द्वार से नीकल कर तेतलिपुत्र के घर पहुँची। वहाँ पहुँचकर दोनों हाथ जोड़कर उसने यावत् कहा – ‘हे देवानुप्रिय ! आप को पद्मावती देवी ने बुलाया है।’ तेतलिपुत्र धायमाता से यह अर्थ सूनकर और हृदय में धारण करके हृदय – तुष्ट होकर धायमाता के साथ अपने घर से नीकला। अन्तःपुर के पीछले द्वार से गुप्त रूप से उसने प्रवेश किया। जहाँ पद्मावती देवी थी, वहाँ आया। दोनों हाथ जोड़कर ‘देवानुप्रिये ! मुझे जो करना है, उसके लिए आज्ञा दीजिए।’ तत्पश्चात् पद्मावती देवी ने तेतलिपुत्र से इस प्रकार कहा – तुम्हें विदित ही है कि कथकरथ राजा यावत् सब पुत्रों को विकलांग कर देता है। ‘हे देवानुप्रिय ! मैंने बालक का प्रसव किया है। अतः तुम इस बालक को ग्रहण करो – संभालो। यावत् वह बालक तुम्हारे लिए और मेरे लिए भिक्षा का भाजन सिद्ध होगा।’ ऐसा कहकर उसने वह बालक तेतलिपुत्र के हाथों में सौंप दिया। तत्पश्चात् तेतलिपुत्र ने पद्मावती के हाथ से उस बालक को ग्रहण किया और अपने उत्तरीय वस्त्र से ढँक लिया। ढँक कर गुप्त रूप से अन्तःपुर के पीछले द्वार से बाहर नीकला। नीकलकर जहाँ अपना घर था और पोट्टिला भार्या थी, वहाँ आया। आकर पोट्टिला से इस प्रकार कहा – देवानुप्रिय! कनकरथ राजा राज्य आदि में यावत् अतीव आसक्त होकर अपने पुत्रों को यावत् अपंग कर देता है और यह बालक कनकरथ का पुत्र और पद्मावती का आत्मज है, अत एव देवानुप्रिय ! इस बालक का, कनकरथ से गुप्त रख कर अनुक्रम से संरक्षण, संगोपन और संवर्धन करना। इस प्रकार कहकर उस बालक को पोट्टिला के पास रख दिया और पोट्टिला के पास से मरी हुई लड़की उठा ली। उठा कर उसे उत्तरीय वस्त्र से ढँक कर अन्तःपुर के पीछले छोटे द्वार से प्रविष्ट हुआ और पद्मावती देवी के पास पहुँचा। मरी लड़की पद्मावती देवी के पास रख दी और वापिस चला गया। तत्पश्चात् पद्मावती की अंगपरिचारिकाओं ने पद्मावती देवी को और विनिघात को प्राप्त जन्मी हुई बालिका को देखा। कनकरथ राजा के पास पहुँच के दोनों हाथ जोड़कर इस प्रकार कहने लगीं – ‘स्वामिन् ! पद्मावती देवी ने मृत बालिका का प्रसव किया है।’ तत्पश्चात् कनकरथ राजा ने मरी हुई लड़की का नीहरण किया। बहुत – से मृतक – सम्बन्धी लौकिक कार्य किये। कुछ समय के पश्चात् राजा शोक – रहित हो गया। तत्पश्चात् दूसरे दिन तेतलिपुत्र ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर कहा – ‘हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही चारक शोधन करो। यावत् दस दिनों की स्थितिपतिका करो – पुत्रजन्म का उत्सव करो। यह सब करके मेरी आज्ञा मुझे वापिस सौंपो। हमारा यह बालक राजा कनकरथ के राज्य में उत्पन्न हुआ है, अत एव इस बालक का नाम कनकध्वज हो, धीरे – धीरे वह बालक बड़ा हुआ, कलाओं में कुशल हुआ, यौवन को प्राप्त होकर भोग भोगने में समर्थ हो गया। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se kanagarahe raya rajje ya ratthe ya bale ya vahane ya kose ya kotthagare ya pure ya amteure ya muchchhie gadhie giddhe ajjhovavanne jae, jae putte viyamgei–appegaiyanam hatthamguliyao chhimdai, appegaiyanam hatthamgutthae chhimdai, appegaiyanam payamguliyao chhimdai, appegaiyanam payamgutthae chhimdai, appegaiyanam kannasakkulio chhimdai, appegaiyanam nasapudaim phalei, appegaiyanam amgovamgaim viyattei. Tae nam tise paumavaie devie annaya kayai puvvarattavarattakalasamayamsi ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–evam khalu kanagarahe raya rajje ya ratthe ya bale ya vahane ya kose ya kotthagare ya pure ya amteure ya muchchhie gadhie giddhe ajjhovavanne jae, jae putte viyamgei–appegaiyanam hatthamguliyao chhimdai, appegaiyanam hatthamgutthae chhimdai, appegaiyanam payamguliyao chhimdai, appegaiyanam payamgutthae chhimdai, appegaiyanam kannasakkulio chhimdai, appegaiyanam nasapudaim phalei, appegaiyanam amgamamgaim viyattei. Tam jai nam aham darayam payayami, seyam khalu mama tam daragam kanagarahassa rahassiyayam cheva sarakkhamanie samgovemanie viharittae tti kattu evam sampehei, sampehetta teyaliputtam amachcham saddavei, saddavetta evam vayasi– Evam khalu devanuppiya! Kanagarahe raya rajje ya ratthe ya bale ya vahane ya kose ya kotthagare ya pure ya amteure ya muchchhie gadhie giddhe ajjhova-vanne jae, jae putte viyamgei–appegaiyanam hatthamguliyao chhimdai, appegaiyanam hatthamgutthae chhimdai, appegaiyanam payamguliyao chhimdai, appegaiyanam payamgutthae chhimdai, appegaiyanam kannasakkulio chhimdai, appegaiyanam nasapudaim phalei, appegaiyanam amgovamgaim viyattei. Tam jai nam aham devanuppiya! Daragam payayami, tae nam tumam kanagarahassa rahassiyayam cheva anupuvvenam sarakkhamane samgovemane samvaddhehi. Tae nam se darae ummukkabalabhave vinnaya-parinayamette jovvanagamanuppatte tava mama ya bhikkhabhayane bhavissai Tae nam se teyaliputte amachche paumavaie devie eyamattham padisunei, padisunetta padigae. Tae nam paumavai devi pottila ya amachcho samameva gabbham genhamti, samameva parivahamti. Tae nam sa paumavai devi navanham masanam bahupadipunnanam java piyadamsanam suruvam daragam payaya. Jam rayanim cha nam paumavai devi darayam payaya tam rayanim cha nam pottila vi amachcho navanham masanam vinihayamavannam dariyam payaya. Tae nam sa paumavai devi ammadhaim saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tumam ammo! Teyaliputtam rahassiyayam cheva saddavehi. Tae nam sa ammadhai tahatti padisunei, padisunetta amteurassa avadarenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva teyalissa gihe jeneva teyaliputte teneva uvagachchhai, uvagachchhitta karayala-pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Paumavai devi saddavei. Tae nam teyaliputte ammadhaie amtie egamattham sochcha hatthatutthe ammadhaie saddhim sao gihao niggachchhai, niggachchhitta amteurassa avadarenam rahassiyayam cheva anuppavisai, anuppavisitta jeneva paumavai devi teneva uvagachchhai, uvagachchhitta karayala pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi–samdisatu nam devanuppiya! Jam mae kayavvam. Tae nam paumavai devi teyaliputtam evam vayasi–eva khalu kanagarahe raya java putte viyamgei. Aham cha nam devanuppiya daragam payaya. Tam tumam nam devanuppiya! Evam daragam genhahi java tava mama ya bhikkhabhayane bhavissai tti kattu teyaliputtassa hatthe dalayai. Tae nam teyaliputte paumavaie hatthao daragam genhai, uttarijjenam pihei, amteurassa rahassiyayam avadarenam niggachchhai niggachchhitta jeneva sae gihe jeneva pottila bhariya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta pottilam evam vayasi– Evam khalu devanuppie! Kanagarahe raya java putte viyamgei. Ayam cha nam darae kanagarahassa putte paumavaie attae. Tannam tumam devanuppie! Imam daragam kanagarahassa rahassiyayam cheva anupuvvenam sarakkhahi ya samgovehi ya samvaddhehi ya. Tae nam esa darae ummukkabalabhave tava ya mama ya paumavaie ya ahare bhavissai tti kattu pottilae pase nikkhivai, nikkhivitta pottilae pasao tam vinihayamavanniyam dariyam genhai genhitta uttarijjenam pihei, pihetta amteurassa avadarenam anuppavisai, anuppavisitta jeneva paumavai devi teneva uvagachchhai, uvagachchhitta paumavaie devie pase thavei java padiniggae. Tae nam tise paumavaie devie amgapadiyariyao paumavaim devim vinihayamavanniyam cha dariyam payayam pasamti, pasitta jeneva kanagarahe raya teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta karayala pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi–evam khalu sami! Paumavai devi maelliyam dariyam payaya. Tae nam kanagarahe raya tise maelliyae dariyae niharanam karei, bahuim logiyaim mayakichchaim karei, karetta kalenam vigayasoe jae. Tae nam se teyaliputte kallam kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Charagasohanam kareha java thiipadiyam dasadevasiyam kareha, karaveha ya, eyamanattiyam pachchappinaha. Tevi taheva karemti, taheva pachchappinamti. Jamha nam amham esa darae kanagarahassa rajje jae tam hou nam darae namenam kanagajjhae java alambhogasamatthe jae. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Kanakaratha raja rajya mem, rashtra mem, bala mem, vahanom mem, kosha mem, kothara mem tatha antahpura mem atyanta asakta tha, lolupa – griddha aura lalasamaya tha. Ata eva vaha jo – jo putra utpanna hote unhem vikalamga kara deta tha. Kinhim ke hatha ki amguliyam kata deta, kinhim ke hatha ka amgutha kata deta, isi prakara kisi ke paira ki amguliyam, paira ka amgutha, karnashashkuli aura kisi ka nasikaputa kata deta tha. Isa prakara usane sabhi putrom ko avayavavikala kara diya tha. Tatpashchat padmavati devi ko eka bara madhyaratri ke samaya isa prakara ka vichara utpanna hua – ‘kanakaratha raja rajya adi mem asakta hokara yavat unake amga – amga kata leta hai, to yadi mere aba putra utpanna ho to mere lie yaha shreyaskara hoga ki usa putra ko maim kanakaratha se chhipa kara palum – posum.’ padmavati devi ne aisa vichara kiya aura vichara karake tetaliputra amatya ko bulava kara usase kaha – ‘He devanupriya ! Kanakaratha raja rajya aura rashtra adi mem atyanta asakta hokara saba putrom ko apamga kara deta hai, atah maim yadi aba putra ko janma dum to kanakaratha se chhipakara hi anukrama se usaka samrakshana, samgopana evam samvardhana karana. Aisa karane se balaka balyavastha para karake yauvana ko prapta hokara tumhare lie bhi aura mere lie bhi bhiksha ka bhajana banega.’ taba tetaliputra amatya ne padmavati ke isa artha ko amgikara kiya. Vaha vapisa lauta gaya. Tatpashchat padmavati devi ne aura pottila namaka amatyi ne eka hi satha garbha dharana kiya, eka hi satha garbha vahana kiya aura satha – satha hi garbha ki vriddhi ki. Tatpashchat padmavati devi ne nau masa purna ho jane para dekhane mem priya aura sundara rupa vale putra ko janma diya. Jisa ratri mem padmavati devi ne putra ko janma diya, usi ratri mem pottila amatyapatni ne bhi nau masa vyatita hone para mari hui balika ka prasava kiya. Usa samaya padmavati devi ne apani dhayamata ko bulaya aura kaha – ‘tuma tetaliputra ke ghara jao aura gupta rupa se bula lao.’ taba dhayamata ne padmavati ka adesha svikara kiya. Vaha antahpura ke pichhale dvara se nikala kara tetaliputra ke ghara pahumchi. Vaham pahumchakara donom hatha jorakara usane yavat kaha – ‘he devanupriya ! Apa ko padmavati devi ne bulaya hai.’ tetaliputra dhayamata se yaha artha sunakara aura hridaya mem dharana karake hridaya – tushta hokara dhayamata ke satha apane ghara se nikala. Antahpura ke pichhale dvara se gupta rupa se usane pravesha kiya. Jaham padmavati devi thi, vaham aya. Donom hatha jorakara ‘devanupriye ! Mujhe jo karana hai, usake lie ajnya dijie.’ Tatpashchat padmavati devi ne tetaliputra se isa prakara kaha – tumhem vidita hi hai ki kathakaratha raja yavat saba putrom ko vikalamga kara deta hai. ‘he devanupriya ! Maimne balaka ka prasava kiya hai. Atah tuma isa balaka ko grahana karo – sambhalo. Yavat vaha balaka tumhare lie aura mere lie bhiksha ka bhajana siddha hoga.’ aisa kahakara usane vaha balaka tetaliputra ke hathom mem saumpa diya. Tatpashchat tetaliputra ne padmavati ke hatha se usa balaka ko grahana kiya aura apane uttariya vastra se dhamka liya. Dhamka kara gupta rupa se antahpura ke pichhale dvara se bahara nikala. Nikalakara jaham apana ghara tha aura pottila bharya thi, vaham aya. Akara pottila se isa prakara kaha – devanupriya! Kanakaratha raja rajya adi mem yavat ativa asakta hokara apane putrom ko yavat apamga kara deta hai aura yaha balaka kanakaratha ka putra aura padmavati ka atmaja hai, ata eva devanupriya ! Isa balaka ka, kanakaratha se gupta rakha kara anukrama se samrakshana, samgopana aura samvardhana karana. Isa prakara kahakara usa balaka ko pottila ke pasa rakha diya aura pottila ke pasa se mari hui laraki utha li. Utha kara use uttariya vastra se dhamka kara antahpura ke pichhale chhote dvara se pravishta hua aura padmavati devi ke pasa pahumcha. Mari laraki padmavati devi ke pasa rakha di aura vapisa chala gaya. Tatpashchat padmavati ki amgaparicharikaom ne padmavati devi ko aura vinighata ko prapta janmi hui balika ko dekha. Kanakaratha raja ke pasa pahumcha ke donom hatha jorakara isa prakara kahane lagim – ‘svamin ! Padmavati devi ne mrita balika ka prasava kiya hai.’ tatpashchat kanakaratha raja ne mari hui laraki ka niharana kiya. Bahuta – se mritaka – sambandhi laukika karya kiye. Kuchha samaya ke pashchat raja shoka – rahita ho gaya. Tatpashchat dusare dina tetaliputra ne kautumbika purushom ko bulaya. Bulakara kaha – ‘he devanupriyo ! Shighra hi charaka shodhana karo. Yavat dasa dinom ki sthitipatika karo – putrajanma ka utsava karo. Yaha saba karake meri ajnya mujhe vapisa saumpo. Hamara yaha balaka raja kanakaratha ke rajya mem utpanna hua hai, ata eva isa balaka ka nama kanakadhvaja ho, dhire – dhire vaha balaka bara hua, kalaom mem kushala hua, yauvana ko prapta hokara bhoga bhogane mem samartha ho gaya. |