Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )

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Sr No : 1004845
Scripture Name( English ): Gyatadharmakatha Translated Scripture Name : धर्मकथांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१३ मंडुक

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१३ मंडुक

Section : Translated Section :
Sutra Number : 145 Category : Ang-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं बारसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, तेरसमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। समोसरणं। परिसा निग्गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं सोहम्मे कप्पे दद्दुरवडिंसए विमाणे सभाए सुहम्माए दद्दुरंसि सीहासनंसि दद्दुरे देवे चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिसाहिं एवं जहा सूरियाभे जाव दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ। इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे जाव नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगए, जहा–सूरियाभे। भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–अहो णं भंते! दद्दुरे देवे महिड्ढिए महज्जुईए महब्बले महायसे महासोक्खे महाणुभागे। दद्दुरस्स णं भंते! देवस्स वा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभावे कहिं गए? कहिं अनुपविट्ठे? गोयमा! सरीरं गए सरीरं अनुपविट्ठे कूडागारदिट्ठंतो। दद्दुरेणं भंते! देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभावे किण्णा लद्धे? किण्णा पत्ते? किण्णा अभिसमन्नागए? एवं खलु गोयमा! इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। तत्थ णं रायगिहे नंदे नामं मणियारसेट्ठी–अड्ढे दित्ते। तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा! समोसढे। परिसा निग्गया। सेणिए वि निग्गए। तए णं से नंदे मणियारसेट्ठी इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे पायविहारचारेणं जाव पज्जुवासइ। नंदे मणियारसेट्ठी धम्मं सोच्चा समणोवासए जाए। तए णंऽहं रायगिहाओ पडिनिक्खंते बहिया जनवयविहारेणं विहरामि। तए णं से नंदे मणियारसेट्ठी अन्नया कयाइ असाहुदंसणेण य अपज्जुवासणाए य अणणुसासणाए य असुस्सूसणाए य सम्मत्तपज्जवेहिं परिहायमाणेहिं-परिहायमाणेहिं मिच्छत्त-पज्जवेहिं परिवड्ढमाणेहिं-परिवड्ढमाणेहिं मिच्छत्तं विप्पडिवण्णे जाए यावि होत्था। तए णं नंदे मणियारसेट्ठी अन्नया कयाइ गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूलंसि मासंसि अट्ठमभत्तं परिगेण्हइ, परिगेण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभचारी उमुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावन्नग-विलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए विहरइ। तए णं नंदस्स अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि तण्हाए छुहाए य अभिभूयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–धन्ना णं ते ईसरपभियओ, संपुण्णा णं ते ईसरपभियओ, कयत्था णं ते ईसरपभियओ, कयपुण्णा णं ते ईसरपभियओ, कयलक्खणा णं ते ईसरपभियओ कयविभवा णं ते ईसरपभियओ, जेसिं णं रायगिहस्स बहिया बहूओ वावीओ पोक्खरिणीओ दीहियाओ गुंजालियाओ सरपंतियाओ० सरसरपंतियाओ, जत्थ णं बहुजणो ण्हाइ य पियइ य पाणियं च संवहइ। तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते सेणियं रायं आपुच्छित्ता रायगिहस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे वेब्भारपव्वयस्स अदूरसामंते वत्थुपाढग-रोइयंसि भूमिभागंसि नंदं पोक्खरिणिं खणावेत्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते पोसहं पारेइ, पारेत्ता ण्हाए कयबलिकम्मे मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धिं संपरिवुडे महत्थं महग्घं महरिहं रायारिहं पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ जाव पाहुडं उवट्ठवेइ, उवट्ठवेत्ता एवं वयासी–इच्छामि णं सामी! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे रायगिहस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे वेब्भारपव्वयस्स अदूरसामंते वत्थुपाडगरोइयंसि भूमिभागंसि नंदं पोक्खरिणिं खणावेत्तए। अहासुहं देवानुप्पिया! तए णं से नंदे मणियारसेट्ठी सेणिएणं रन्ना अब्भणुण्णाए समाणे हट्ठतुट्ठे रायगिहं नगरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता वत्थुपाढय-रोइयंसि भूमिभागंसि नंदं पोक्खरिणिं खणावेउं पयत्ते यावि होत्था। तए णं सा नंदा पोक्खरणी अनुपुव्वेणं खम्ममाणा-खम्ममाणा पोक्खरणी जाया यावि होत्था–चाउक्कोणा समतीरा अनुपुव्वं सुजायवप्पसीयलजला संछन्न-पत्त-भिसमुणाला बहुउप्पल-पउम-कुमुद-नलिण- सुभग-सोगंधिय- पुंडरीय-महापुंडरीय- सय-पत्त-सहस्सपत्त- पप्फुल्लकेसरोववेया परिहत्थ- भमंत- मत्तछप्पय- अनेग- सउणगण- मिहुण- वियरिय-सद्दुन्नइय-महुरसरनाइया पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। तए णं से नंदे मणियारसेट्ठी नंदाए पोक्खरिणीए चउदिसिं चत्तारि वनसंडे रोवावेइ। तए णं ते वनसंडा अनुपुव्वेणं सारक्खिज्जमाणा संगोविज्जमाणा संवड्ढिज्जमाणा य वनसंडा जाया–किण्हा जाव महामेह-निउरंबभूया पत्तिया पुप्फिया-फलिया हरियग-रेरिज्जमाणा सिरीए अईव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठंति। तए णं नंदे मणियारसेट्ठी पुरत्थिमिल्ले वनसंडे एगं महं चित्तसभं कारावेइ-अनेगखंभसय-सन्निविट्ठं पासाईयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं। तत्थ णं बहूणि किण्हाणि य नीलाणि य लोहियाणि य हालिद्दाणि य सुक्किलाणि य कट्ठकम्माणि य पोत्थकम्माणि य चित्त-लेप्प-गंथिम-वेढिम-पूरिम-संघाइमाइं उवदंसिज्जमाणाइं-उवदंसिज्जमाणाइं चिट्ठंति। तत्थ णं बहूणि आसणाणि य सयणाणि य अत्थुय-पच्चत्थुयाइं चिट्ठंति। तत्थ णं बहवे नडा य नट्टा य जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय-वेलंबग-कहग-पवग-लासग-आइक्खग-लंख-मंख-तूणइल्ल-तुंबवीणिया य दिन्नभइ-भत्त-वेयणा तालायरकम्मं करेमाणा-करेमाणा विहरंति। रायगिहविणिग्गओ एत्थ णं बहुजणो तेसु पुव्वन्नत्थेसु आसण-सयणेसु सण्णि-सण्णो य संतुयट्टो य सुयमाणो य पेच्छमाणो य साहेमाणो य सुहंसुहेणं विहरइ। तए णं नंदे मणियारसेट्ठी दाहिणिल्ले वनसंडे एगं महं महाणससालं कारावेइ–अनेगखंभसयसन्निविट्ठं जाव पडिरूवं। तत्थ णं बहवे पुरिसा दिन्नभइ-भत्त-वेयणा विउलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडेंति, बहूणं समण-माहण-अतिहि-किवण-वनीमगाणं परिभाएमाणा-परिभाएमाणा विहरंति। तए णं नंदे मणियारसेट्ठी पच्चत्थिमिल्ले वनसंडे एगं महं तिगिच्छियसालं कारावेइ–अनेगखंभसयसन्निविट्ठं जाव पडिरूवं। तत्थ णं बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जोणुया य जाणुयपुत्ता य कुसला य कुसलपुत्ता य दिन्नभइ-भत्त-वेयणा बहूणं वाहियाण य गिलाणाण य रोगियाण य दुब्बलाण य तेइच्छकम्मं करेमाणा-करेमाणा विहरंति। अन्ने य एत्थ बहवे पुरिसा दिन्नभइ -भत्त-वेयणा तेसिं बहूणं वाहियाण य गिलाणाण य रोगियाण य दुब्बलाण य ओसह-भेसज्ज-भत्तपाणेणं पडियारकम्मं करेमाणा विहरंति। तए णं नंदे मणियारसेट्ठी उत्तरिल्ले वनसंडे एगं महं अलंकारियसभं कारावेइ–अनेगखंभसय-सन्निविट्ठं जाव पडिरूवं। तत्थ णं बहवे अलंकारियमणुस्सा दिन्नभइ-भत्त-वेयणा बहूणं समणाण य अणाहाण य गिलाणाण य रोगियाण य दुब्बलाण य अलंकारियकम्मं करेमाणा-करेमाणा विहरंति। तए णं तीए नंदाए पोक्खरिणीए बहवे सणाहा य अणाहा य पंचिया य पहिया य करोडिया य तणहारा य पत्तहारा य कट्ठहारा य–अप्पेगइया ण्हायंति अप्पेगइया पाणियं पियंति अप्पेगइया पाणियं संवहंति अप्पेगइया विसज्जियसेय-जल्ल-मल-परिस्सम-निद्द-खुप्पिवासा सुहंसुहेणं विहरंति। रायगिहवि-णिग्गओ वि यत्थ बहुजणो किं ते जलरमण-विविहमज्जण-कयलि-लयाहरय-कुसुम-सत्थरय-अनेगसउणगण-कयरिभियसंकुलेसु सुहंसुहेणं अभिरममाणो-अभिरममाणो विहरइ। तए णं नंदाए पोक्खरिणीए बहुजणो ण्हायमाणो य पियमाणो य पाणियं च संवहमाणो य अन्नमन्नं एवं वयासी –धन्ने णं देवानुप्पिया! नंदे मणियारसेट्ठी, कयत्थे णं देवानुप्पिया! नंदे मणियार-सेट्ठी, कयलक्खणे णं देवानुप्पिया! नंदे मणियारसेट्ठी, कयपुण्णे णं देवानुप्पिया! नंदे मणियारसेट्ठी, कया णं लोया! सुलद्धे मानुस्सए जम्मजीवियफले नंदस्स मणियारस्स, जस्स णं इमेयारूवा नंदा पोक्खरिणी चाउक्कीणा जाव पडिरूवा जाव रायगिहविणिग्गओ जत्थ बहुजणो आसणेसु य सयणेसु य सण्णिसण्णो य संतुयट्टो य पेच्छमाणो य साहेमाणो य सुहंसुहेणं विहरइ। तं धन्ने णं देवानुप्पिया! नंदे मणियारसेट्ठी, कयत्थे णं देवानुप्पिया! नंदे मणियारसेट्ठी, कयलक्खणे णं देवानुप्पिया! नंदे मणियारसेट्ठी, कयपुण्णे णं देवानुप्पिया! नंदे मणियारसेट्ठी, कया णं लोया! सुलद्धे मानुस्सए जम्मजीवियफले नंदस्स मणियारस्स? तए णं रायगिहे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु बहुजनो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ धन्ने णं देवानुप्पिया! नंदे मणियारसेट्ठी सो चेव गमओ जाव सुहंसुहेणं विहरइ। तए णं से नंदे मणियारसेट्ठी बहुजनस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे धाराहत-कलंबगं विव समूसविय-रोमकूवे परं सायासोक्खमणुभवमाणे विहरइ।
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने बारहवें ज्ञात – अध्ययन का अर्थ यह कहा है तो तेरहवे ज्ञात – अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। उस राजगृह नगर में श्रेणिक नामक राजा था। राजगृह के बाहर उत्तरपूर्व दिशा में गुणशील नामक चैत्य था। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर चौदह हजार साधुओं के साथ यावत्‌ अनुक्रम से विचरते हुए, एक गाँव से दूसरे गाँव सुखे – सुखे विहार करते हुए राजगृह नगर और गुणशील उद्यान में पधारे। यथायोग्य अवग्रह की याचना करके संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। भगवान को वन्दना करने के लिए परीषद्‌ नीकली और धर्मोपदेश सूनकर वापिस लौट गई। उस काल और उस समय सौधर्मकल्प में, दर्दुरावतंसक नामक विमान में, सुधर्मा नामक सभा में, दर्दुर नामक सिंहासन पर, दर्दुर नामक देव चार हजार सामानिक देवों, चार अग्रमहिषियों और तीन प्रकार की परीषदों के साथ यावत्‌ सूर्याभ देव के समान दिव्य भोग योग्य भोगों को भोगता हुआ विचर रहा था। उस समय उसने इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को अपने विपुल अवधिज्ञान से देखते – देखते राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में भगवान महावीर को देखा। तब वह परिवार के साथ भगवान के पास आया और सूर्याभ देव के समान नाट्यविधि दिखलाकर वापिस लौट गया। भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना – नमस्कार करके इस प्रकार कहा – भगवन्‌! दर्दुर देव महान्‌ ऋद्धिमान्‌, महाद्युतिमान्‌, महाबलवान्‌, महायशस्वी, महासुखवान्‌ तथा महान्‌ प्रभाववान्‌ है, तो हे भगवन्‌ ! दर्दुर देव की वह व्यि देवऋद्धि कहाँ चली गई ? कहाँ समा गई ? भगवान्‌ ने उत्तर दिया – ‘गौतम ! वह देव – ऋद्धि शरीर में गई, शरीर में समा गई। इस विषय में कूटागार का दृष्टान्त समझना।’ गौतमस्वामी ने पुनः प्रश्न किया – ‘भगवन्‌ ! दर्दुरदेव ने वह दिव्य देव – ऋद्धि किस प्रकार लब्ध की, किस प्रकार प्राप्त की ? किस प्रकार वह उसके समक्ष आई ? गौतम ! इसी जम्बूद्वीप में, भरतक्षेत्र में, राजगृह नगर था। गुणशील चैत्य था। श्रेणिक राजा था। उस नगर में नन्द नामक मणिकार सेठ रहता था। वह समृद्ध था, तेजस्वी था और किसी से पराभूत होने वाला नहीं था। हे गौतम ! उस काल और उस समय में मैं गुणशील उद्यानमें आया। परीषद्‌ वन्दना करने के लिए नीकली और श्रेणिक राजा भी नीकला। तब नन्द मणिकार सेठ इस कथा का अर्थ जानकर स्नान करके विभूषित होकर पैदल चलता हुआ आया, यावत्‌ मेरी उपासना करने लगा। फिर वह नन्द धर्म सूनकर श्रमणोपासक हो गया। तत्पश्चात्‌ मैं राजगृह से बाहर नीकलकर बाहर जनपदों में विचरण करने लगा। तत्पश्चात्‌ नन्द मणिकार श्रेष्ठी साधुओं का दर्शन न होने से, उनकी उपासना न करने से, उनका उपदेश न मिलने से और वीतराग के वचन न सूनने से, क्रमशः सम्यक्त्व के पर्यायों की धीरे – धीरे हीनता होती चली जाने से और मिथ्यात्व के पर्यायों की क्रमशः वृद्धि होते रहने से, एक बार किसी समय मिथ्यात्वी हो गया। नन्द मणिकार श्रेष्ठी ने किसी समय ग्रीष्मऋतु के अवसर पर, ज्येष्ठ मास में अष्टम भक्त अंगीकार किया। वह पौषधशाला में यावत्‌ विचरने लगा। तत्पश्चात्‌ नन्द श्रेष्ठी का अष्टमभक्त जब परिणत हो रहा था – तब प्यास और भूख से पीड़ित हुए उसके मन में विचार उत्पन्न हुआ – ‘वे यावत्‌ ईश्वर सार्थवाह आदि धन्य हैं, जिनकी राजगृह नगर से बाहर बहुत – सी बावड़ियाँ हैं, पुष्करिणियाँ हैं, यावत्‌ सरोवरों की पंक्तियाँ हैं, जिनमें बहुतेरे लोग स्नान करते हैं, पानी पीते हैं और जिनसे पानी भर ले जाते हैं। तो मैं भी कल प्रभात होने पर श्रेणिक राजा की आज्ञा लेकर राजगृह नगर से बाहर, उत्तरपूर्व दिशा में, वैभारपर्वत के कुछ समीप में, वास्तुशास्त्र के पाठकों से पसंद किये हुए भूमिभाग में नन्दा पुष्करिणी खुदवाऊं, यह मेरे लिए उचित होगा।’ नन्द श्रेष्ठी ने इस प्रकार विचार करके, दूसरे दिन प्रभात होने पर पोषध पारा, स्नान किया, बलिकर्म किया, फिर मित्र, ज्ञाति आदि से यावत्‌ परिवृत्त होकर बहुमूल्य उपहार लेकर राजा के समक्ष रखा और इस प्रकार कहा – ‘स्वामिन्‌ ! आपकी अनुमति पाकर राजगृह नगर के बाहर यावत्‌ पुष्करिणी खुदवाना चाहता हूँ।’ राजा ने उत्तर दिया – ‘जैसे सुख उपजे, वैसा करो।’ तत्पश्चात्‌ नन्द मणिकार सेठ श्रेणिक राजा से आज्ञा प्राप्त करके हृष्ट – तुष्ट हुआ। वह राजगृह नगर के बीचों बीच होकर नीकला। वास्तुशास्त्र के पाठकों द्वारा पसंद किए हुए भूमिभाग में नन्दा नामक पुष्करिणी खुदवाने में प्रवृत्त हो गया – उसने पुष्करिणी का खनन कार्य आरम्भ करवा दिया। तत्पश्चात्‌ नन्दा पुष्करिणी अनुक्रम से खुदती – खुदती चतुष्कोण और समान किनारों वाली पूरी पुष्करिणी हो गई। अनुक्रम से उसके चारों ओर घूमा हुआ परकोटा बन गया, उसका जल शीतल हुआ। जल पत्तों, बिसतंतुओं और मृणालों से आच्छादित हो गया। वह वापी बहुत – से खिले हुए उत्पल, पद्म, कुमुद, नलिनी, सुभग जातिय कमल, सौगंधिक कमल, पुण्डरीक महापु – ण्डरीक, शतपत्र कमल, सहस्रपत्र कमल की केसर से युक्त हुई। परिहत्थ नामक जल – जन्तुओं, भ्रमण करते हुए मदोन्मत्त भ्रमरों और अनेक पक्षियों के युगलों द्वारा किये हुए शब्दों से उन्नत और मधुर स्वर से वह पुष्करिणी गूँजने लगी। वह सबके मन को प्रसन्न करने वाली दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हो गई। तत्पश्चात्‌ नन्द मणिकार श्रेष्ठी ने नन्दा पुष्करिणी की चारों दिशाओं में चार वनखण्ड रूपवाये – लगवाए। उन वनखण्डों की क्रमशः अच्छी रखवाली की गई, संगोपन – सार – सँभाल की गई, अच्छी तरह उन्हें बढ़ाया गया, अत एव वे वनखण्ड कृष्ण वर्ण वाले तथा गुच्छा रूप हो गए – खूब घने हो गए। वे पत्तों वाले, पुष्पों वाले यावत्‌ शोभायमान हो गए। तत्पश्चात्‌ नन्द मणियार सेठ ने पूर्व दिशा के वनखण्ड में एक विशाल चित्रसभा बनवाई। वह कईं सौ खम्भों की बनी हुई थी, प्रसन्नताजनक, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप थी। उस चित्रसभा में बहुत – से कृष्ण वर्ण वाले यावत्‌ शुक्ल वर्ण वाले काष्ठकर्म, पुस्तकर्म, चित्रकर्म, लेप्यकर्म – ग्रंथिक कर्म, वेष्टितकर्म, पूरिमकर्म और संघातिमकर्म थीं। वे कलाकृतियाँ इतनी सुन्दर थीं कि दर्शकगण उन्हें एक दूसरे को दिखा – दिखा कर वर्ण करते थे। उस चित्रसभा में बहुत – से आसन और शयन निरन्तर बिछे रहते थे। वहाँ बहुत – से नाटक करने वाले और नृत्य करने वाले, यावत्‌ वेतन देकर रखे हुए थे। वे तालाचर कर्म किया करते थे। राजगृह से बाहर सैर के लिए नीकले हुए बहुत लोग उस जगह आकर पहले से ही बिछे हुए आसनों और शयनों पर बैठकर, लेटकर कथा – वार्ता सूनते थे और नाटक आदि देखते थे और वहाँ की शोभा अनुभव करते हुए सुखपूर्वक विचरण करते थे। नन्दी मणिकार सेठ ने दक्षिण तरफ के वनखण्ड में एक बड़ी महानसशाला बनवाई। वह भी अनेक सैकड़ों खम्भों वाली यावत्‌ प्रतिरूप थी। वहाँ भी बहुत – से लोग जीविका, भोजन और वेतन देकर रखे गए थे। वे विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार पकाते थे और बहुत – से श्रमणों, ब्राह्मणों, अतिथियों, दरिद्रों और भिखारियों को देते रहते थे। नन्द मणिकार सेठ ने पश्चिम दिशा के वनखण्ड में एक विशाल चिकित्सा शाला बनवाई। वह भी अनेक सौ खम्भों वाली यावत्‌ मनोहर थी। उसमें बहुत – से वैद्य, वैद्यपुत्र, ज्ञायक, ज्ञायकपुत्र, कुशल और कुशलपुत्र आजीविका, भोजन और वेतन पर नियुक्त किये हुए थे। वे बहुत – से व्याधितों की, ग्लानों की, रोगियों की और दुर्बलों की चिकित्सा करते रहते थे। उस चिकित्साशाला में दूसरे भी बहुत – से लोग आजीविका, भोजन और वेतन देकर रखे गए थे। वे उन व्याधितों, रोगियों, ग्लानों और दुर्बलों की औषध भेषज भोजन और पानी से सेवा – शुश्रूषा करते थे। तत्पश्चात्‌ नन्द मणियार सेठ ने उत्तर दिशा वनखण्ड में एक बड़ी अलंकारसभा बनवाई। वह भी अनेक सैकड़ों स्तंभों वाली यावत्‌ मनोहर थी। उसमें बहुत – से आलंकारिक पुरुष जीविका, भोजन और वेतन देकर रखे गए थे। वे बहुत – से श्रमणों, अनाथों, ग्लानों, रोगियों और दुर्बलों का अलंकारकर्म करते थे। उस नन्दा पुष्करिणी में बहुत – से सनाथ, अनाथ, पथिक, पांथिक, करोटिका, घसियारे, पत्तों के भार वाले, लकड़हारे आदि आते थे। उनमें से कोई – कोई स्नान करते थे, पानी पीते थे और पानी भर ले जाते थे। कोई – कोई पसीने, जल्ल, मल, परिश्रम, निद्रा, क्षुधा और पीपासा का निवारण करके सुखपूर्वक करते थे। नन्दा पुष्करिणी में राजगृह नगर में भी नीकले – आये हुए बहुत – से लोग क्या करते थे ? वे लोग जल में रमण करते थे, विविध प्रकार से स्नान करते थे, कदलीगृहों, लतागृहों, पुष्पशय्या और अनेक पक्षियों के समूह के मनोहर शब्दों से युक्त नन्दा पुष्करिणी और चारों वनखण्डों में क्रीड़ा करते – करते विचरते थे। नन्दा पुष्करिणी में स्नान करते हुए, पानी पीते हुए और पानी भरकर ले जाते हुए बहुत – से लोग आपस में कहते थे – हे देवानुप्रिय ! नन्द मणिकार सेठ धन्य है, उसका जन्म और जीवन सफल है, जिसकी इस प्रकार की चौकोर यावत्‌ मनोहर यह नन्दा पुष्करिणी है; जिसकी पूर्व दिशा में वनखण्ड है – यावत्‌ राजगृह नगर से भी बाहर नीकलकर बहुत – से लोग आसनों पर बैठते हैं, शयनीयों पर लेटते हैं, नाटक आदि देखते हैं और कथा – वार्ता कहते हैं और सुख – पूर्वक विहार करते हैं। अत एव नन्द मणिकार का मनुष्यभव सुलब्ध – सराहनीय है और उसका जीवन तथा जन्म भी सुलब्ध है।’ उस समय राजगृह नगर में भी शृंगाटक आदि मार्गों में बहुतेरे लोग परस्पर कहते थे – देवानुप्रिय ! नन्द मणिकार धन्य है, यावत्‌ जहाँ आकर लोग सुखपूर्वक विचरते हैं। तब नन्द मणिकार बहुत – से लोगों से यह अर्थ सूनकर हृष्ट – तुष्ट हुआ। मेघ की धारा से आहत कदम्बवृक्ष के समान उसके रोमकूप विकसित हो गए – उसकी कली – कली खिल उठी। वह साताजनित परमसुख का अनुभव करने लगा।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] jai nam bhamte! Samanenam bhagavaya mahavirenam barasamassa nayajjhayanassa ayamatthe pannatte, terasamassa nam bhamte! Nayajjhayanassa ke atthe pannatte? Evam khalu jambu! Tenam kalenam tenam samaenam rayagihe nayare. Gunasilae cheie. Samosaranam. Parisa niggaya. Tenam kalenam tenam samaenam sohamme kappe dadduravadimsae vimane sabhae suhammae dadduramsi sihasanamsi daddure deve chauhim samaniyasahassihim chauhim aggamahisihim saparisahim evam jaha suriyabhe java divvaim bhogabhogaim bhumjamane viharai. Imam cha nam kevalakappam jambuddivam divam viulenam ohina abhoemane java nattavihim uvadamsitta padigae, jaha–suriyabhe. Bhamteti! Bhagavam goyame samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–aho nam bhamte! Daddure deve mahiddhie mahajjuie mahabbale mahayase mahasokkhe mahanubhage. Daddurassa nam bhamte! Devassa va divva deviddhi divva devajjuti divve devanubhave kahim gae? Kahim anupavitthe? Goyama! Sariram gae sariram anupavitthe kudagaraditthamto. Daddurenam bhamte! Devenam sa divva deviddhi divva devajjuti divve devanubhave kinna laddhe? Kinna patte? Kinna abhisamannagae? Evam khalu goyama! Iheva jambuddive dive bharahe vase rayagihe nayare. Gunasilae cheie. Senie raya. Tattha nam rayagihe namde namam maniyarasetthi–addhe ditte. Tenam kalenam tenam samaenam aham goyama! Samosadhe. Parisa niggaya. Senie vi niggae. Tae nam se namde maniyarasetthi imise kahae laddhatthe samane payaviharacharenam java pajjuvasai. Namde maniyarasetthi dhammam sochcha samanovasae jae. Tae namham rayagihao padinikkhamte bahiya janavayaviharenam viharami. Tae nam se namde maniyarasetthi annaya kayai asahudamsanena ya apajjuvasanae ya ananusasanae ya asussusanae ya sammattapajjavehim parihayamanehim-parihayamanehim michchhatta-pajjavehim parivaddhamanehim-parivaddhamanehim michchhattam vippadivanne jae yavi hottha. Tae nam namde maniyarasetthi annaya kayai gimhakalasamayamsi jetthamulamsi masamsi atthamabhattam parigenhai, parigenhitta posahasalae posahie bambhachari umukkamanisuvanne vavagayamalavannaga-vilevane nikkhittasatthamusale ege abie dabbhasamtharovagae viharai. Tae nam namdassa atthamabhattamsi parinamamanamsi tanhae chhuhae ya abhibhuyassa samanassa imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–dhanna nam te isarapabhiyao, sampunna nam te isarapabhiyao, kayattha nam te isarapabhiyao, kayapunna nam te isarapabhiyao, kayalakkhana nam te isarapabhiyao kayavibhava nam te isarapabhiyao, jesim nam rayagihassa bahiya bahuo vavio pokkharinio dihiyao gumjaliyao sarapamtiyao0 sarasarapamtiyao, jattha nam bahujano nhai ya piyai ya paniyam cha samvahai. Tam seyam khalu mama kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte seniyam rayam apuchchhitta rayagihassa bahiya uttarapuratthime disibhage vebbharapavvayassa adurasamamte vatthupadhaga-roiyamsi bhumibhagamsi namdam pokkharinim khanavettae tti kattu evam sampehei, sampehetta kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte posaham parei, paretta nhae kayabalikamme mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanenam saddhim samparivude mahattham mahaggham mahariham rayariham pahudam genhai, genhitta jeneva senie raya teneva uvagachchhai java pahudam uvatthavei, uvatthavetta evam vayasi–ichchhami nam sami! Tubbhehim abbhanunnae samane rayagihassa bahiya uttarapuratthime disibhage vebbharapavvayassa adurasamamte vatthupadagaroiyamsi bhumibhagamsi namdam pokkharinim khanavettae. Ahasuham devanuppiya! Tae nam se namde maniyarasetthi senienam ranna abbhanunnae samane hatthatutthe rayagiham nagaram majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta vatthupadhaya-roiyamsi bhumibhagamsi namdam pokkharinim khanaveum payatte yavi hottha. Tae nam sa namda pokkharani anupuvvenam khammamana-khammamana pokkharani jaya yavi hottha–chaukkona samatira anupuvvam sujayavappasiyalajala samchhanna-patta-bhisamunala bahuuppala-pauma-kumuda-nalina- subhaga-sogamdhiya- pumdariya-mahapumdariya- saya-patta-sahassapatta- papphullakesarovaveya parihattha- bhamamta- mattachhappaya- anega- saunagana- mihuna- viyariya-saddunnaiya-mahurasaranaiya pasaiya darisanijja abhiruva padiruva. Tae nam se namde maniyarasetthi namdae pokkharinie chaudisim chattari vanasamde rovavei. Tae nam te vanasamda anupuvvenam sarakkhijjamana samgovijjamana samvaddhijjamana ya vanasamda jaya–kinha java mahameha-niurambabhuya pattiya pupphiya-phaliya hariyaga-rerijjamana sirie aiva uvasobhemana-uvasobhemana chitthamti. Tae nam namde maniyarasetthi puratthimille vanasamde egam maham chittasabham karavei-anegakhambhasaya-sannivittham pasaiyam darisanijjam abhiruvam padiruvam. Tattha nam bahuni kinhani ya nilani ya lohiyani ya haliddani ya sukkilani ya katthakammani ya potthakammani ya chitta-leppa-gamthima-vedhima-purima-samghaimaim uvadamsijjamanaim-uvadamsijjamanaim chitthamti. Tattha nam bahuni asanani ya sayanani ya atthuya-pachchatthuyaim chitthamti. Tattha nam bahave nada ya natta ya jalla-malla-mutthiya-velambaga-kahaga-pavaga-lasaga-aikkhaga-lamkha-mamkha-tunailla-tumbaviniya ya dinnabhai-bhatta-veyana talayarakammam karemana-karemana viharamti. Rayagihaviniggao ettha nam bahujano tesu puvvannatthesu asana-sayanesu sanni-sanno ya samtuyatto ya suyamano ya pechchhamano ya sahemano ya suhamsuhenam viharai. Tae nam namde maniyarasetthi dahinille vanasamde egam maham mahanasasalam karavei–anegakhambhasayasannivittham java padiruvam. Tattha nam bahave purisa dinnabhai-bhatta-veyana viulam asana-pana-khaima-saimam uvakkhademti, bahunam samana-mahana-atihi-kivana-vanimaganam paribhaemana-paribhaemana viharamti. Tae nam namde maniyarasetthi pachchatthimille vanasamde egam maham tigichchhiyasalam karavei–anegakhambhasayasannivittham java padiruvam. Tattha nam bahave vejja ya vejjaputta ya jonuya ya januyaputta ya kusala ya kusalaputta ya dinnabhai-bhatta-veyana bahunam vahiyana ya gilanana ya rogiyana ya dubbalana ya teichchhakammam karemana-karemana viharamti. Anne ya ettha bahave purisa dinnabhai -bhatta-veyana tesim bahunam vahiyana ya gilanana ya rogiyana ya dubbalana ya osaha-bhesajja-bhattapanenam padiyarakammam karemana viharamti. Tae nam namde maniyarasetthi uttarille vanasamde egam maham alamkariyasabham karavei–anegakhambhasaya-sannivittham java padiruvam. Tattha nam bahave alamkariyamanussa dinnabhai-bhatta-veyana bahunam samanana ya anahana ya gilanana ya rogiyana ya dubbalana ya alamkariyakammam karemana-karemana viharamti. Tae nam tie namdae pokkharinie bahave sanaha ya anaha ya pamchiya ya pahiya ya karodiya ya tanahara ya pattahara ya katthahara ya–appegaiya nhayamti appegaiya paniyam piyamti appegaiya paniyam samvahamti appegaiya visajjiyaseya-jalla-mala-parissama-nidda-khuppivasa suhamsuhenam viharamti. Rayagihavi-niggao vi yattha bahujano kim te jalaramana-vivihamajjana-kayali-layaharaya-kusuma-sattharaya-anegasaunagana-kayaribhiyasamkulesu suhamsuhenam abhiramamano-abhiramamano viharai. Tae nam namdae pokkharinie bahujano nhayamano ya piyamano ya paniyam cha samvahamano ya annamannam evam vayasi –dhanne nam devanuppiya! Namde maniyarasetthi, kayatthe nam devanuppiya! Namde maniyara-setthi, kayalakkhane nam devanuppiya! Namde maniyarasetthi, kayapunne nam devanuppiya! Namde maniyarasetthi, kaya nam loya! Suladdhe manussae jammajiviyaphale namdassa maniyarassa, jassa nam imeyaruva namda pokkharini chaukkina java padiruva java rayagihaviniggao jattha bahujano asanesu ya sayanesu ya sannisanno ya samtuyatto ya pechchhamano ya sahemano ya suhamsuhenam viharai. Tam dhanne nam devanuppiya! Namde maniyarasetthi, kayatthe nam devanuppiya! Namde maniyarasetthi, kayalakkhane nam devanuppiya! Namde maniyarasetthi, kayapunne nam devanuppiya! Namde maniyarasetthi, kaya nam loya! Suladdhe manussae jammajiviyaphale namdassa maniyarassa? Tae nam rayagihe simghadaga-tiga-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapaha-pahesu bahujano annamannassa evamaikkhai evam bhasai evam pannavei evam paruvei dhanne nam devanuppiya! Namde maniyarasetthi so cheva gamao java suhamsuhenam viharai. Tae nam se namde maniyarasetthi bahujanassa amtie eyamattham sochcha nisamma hatthatutthe dharahata-kalambagam viva samusaviya-romakuve param sayasokkhamanubhavamane viharai.
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Yadi shramana bhagavana mahavira ne barahavem jnyata – adhyayana ka artha yaha kaha hai to terahave jnyata – adhyayana ka kya artha kaha hai\? He jambu ! Usa kala aura usa samaya mem rajagriha namaka nagara tha. Usa rajagriha nagara mem shrenika namaka raja tha. Rajagriha ke bahara uttarapurva disha mem gunashila namaka chaitya tha. Usa kala aura usa samaya mem shramana bhagavana mahavira chaudaha hajara sadhuom ke satha yavat anukrama se vicharate hue, eka gamva se dusare gamva sukhe – sukhe vihara karate hue rajagriha nagara aura gunashila udyana mem padhare. Yathayogya avagraha ki yachana karake samyama aura tapa se atma ko bhavita karate hue vicharane lage. Bhagavana ko vandana karane ke lie parishad nikali aura dharmopadesha sunakara vapisa lauta gai. Usa kala aura usa samaya saudharmakalpa mem, darduravatamsaka namaka vimana mem, sudharma namaka sabha mem, dardura namaka simhasana para, dardura namaka deva chara hajara samanika devom, chara agramahishiyom aura tina prakara ki parishadom ke satha yavat suryabha deva ke samana divya bhoga yogya bhogom ko bhogata hua vichara raha tha. Usa samaya usane isa sampurna jambudvipa ko apane vipula avadhijnyana se dekhate – dekhate rajagriha nagara ke gunashila udyana mem bhagavana mahavira ko dekha. Taba vaha parivara ke satha bhagavana ke pasa aya aura suryabha deva ke samana natyavidhi dikhalakara vapisa lauta gaya. Bhagavana gautama ne shramana bhagavana mahavira ko vandana – namaskara karake isa prakara kaha – bhagavan! Dardura deva mahan riddhiman, mahadyutiman, mahabalavan, mahayashasvi, mahasukhavan tatha mahan prabhavavan hai, to he bhagavan ! Dardura deva ki vaha vyi devariddhi kaham chali gai\? Kaham sama gai\? Bhagavan ne uttara diya – ‘gautama ! Vaha deva – riddhi sharira mem gai, sharira mem sama gai. Isa vishaya mem kutagara ka drishtanta samajhana.’ Gautamasvami ne punah prashna kiya – ‘bhagavan ! Darduradeva ne vaha divya deva – riddhi kisa prakara labdha ki, kisa prakara prapta ki\? Kisa prakara vaha usake samaksha ai\? Gautama ! Isi jambudvipa mem, bharatakshetra mem, rajagriha nagara tha. Gunashila chaitya tha. Shrenika raja tha. Usa nagara mem nanda namaka manikara setha rahata tha. Vaha samriddha tha, tejasvi tha aura kisi se parabhuta hone vala nahim tha. He gautama ! Usa kala aura usa samaya mem maim gunashila udyanamem aya. Parishad vandana karane ke lie nikali aura shrenika raja bhi nikala. Taba nanda manikara setha isa katha ka artha janakara snana karake vibhushita hokara paidala chalata hua aya, yavat meri upasana karane laga. Phira vaha nanda dharma sunakara shramanopasaka ho gaya. Tatpashchat maim rajagriha se bahara nikalakara bahara janapadom mem vicharana karane laga. Tatpashchat nanda manikara shreshthi sadhuom ka darshana na hone se, unaki upasana na karane se, unaka upadesha na milane se aura vitaraga ke vachana na sunane se, kramashah samyaktva ke paryayom ki dhire – dhire hinata hoti chali jane se aura mithyatva ke paryayom ki kramashah vriddhi hote rahane se, eka bara kisi samaya mithyatvi ho gaya. Nanda manikara shreshthi ne kisi samaya grishmaritu ke avasara para, jyeshtha masa mem ashtama bhakta amgikara kiya. Vaha paushadhashala mem yavat vicharane laga. Tatpashchat nanda shreshthi ka ashtamabhakta jaba parinata ho raha tha – taba pyasa aura bhukha se pirita hue usake mana mem vichara utpanna hua – ‘ve yavat ishvara sarthavaha adi dhanya haim, jinaki rajagriha nagara se bahara bahuta – si bavariyam haim, pushkariniyam haim, yavat sarovarom ki pamktiyam haim, jinamem bahutere loga snana karate haim, pani pite haim aura jinase pani bhara le jate haim. To maim bhi kala prabhata hone para shrenika raja ki ajnya lekara rajagriha nagara se bahara, uttarapurva disha mem, vaibharaparvata ke kuchha samipa mem, vastushastra ke pathakom se pasamda kiye hue bhumibhaga mem nanda pushkarini khudavaum, yaha mere lie uchita hoga.’ nanda shreshthi ne isa prakara vichara karake, dusare dina prabhata hone para poshadha para, snana kiya, balikarma kiya, phira mitra, jnyati adi se yavat parivritta hokara bahumulya upahara lekara raja ke samaksha rakha aura isa prakara kaha – ‘svamin ! Apaki anumati pakara rajagriha nagara ke bahara yavat pushkarini khudavana chahata hum.’ raja ne uttara diya – ‘jaise sukha upaje, vaisa karo.’ Tatpashchat nanda manikara setha shrenika raja se ajnya prapta karake hrishta – tushta hua. Vaha rajagriha nagara ke bichom bicha hokara nikala. Vastushastra ke pathakom dvara pasamda kie hue bhumibhaga mem nanda namaka pushkarini khudavane mem pravritta ho gaya – usane pushkarini ka khanana karya arambha karava diya. Tatpashchat nanda pushkarini anukrama se khudati – khudati chatushkona aura samana kinarom vali puri pushkarini ho gai. Anukrama se usake charom ora ghuma hua parakota bana gaya, usaka jala shitala hua. Jala pattom, bisatamtuom aura mrinalom se achchhadita ho gaya. Vaha vapi bahuta – se khile hue utpala, padma, kumuda, nalini, subhaga jatiya kamala, saugamdhika kamala, pundarika mahapu – ndarika, shatapatra kamala, sahasrapatra kamala ki kesara se yukta hui. Parihattha namaka jala – jantuom, bhramana karate hue madonmatta bhramarom aura aneka pakshiyom ke yugalom dvara kiye hue shabdom se unnata aura madhura svara se vaha pushkarini gumjane lagi. Vaha sabake mana ko prasanna karane vali darshaniya, abhirupa aura pratirupa ho gai. Tatpashchat nanda manikara shreshthi ne nanda pushkarini ki charom dishaom mem chara vanakhanda rupavaye – lagavae. Una vanakhandom ki kramashah achchhi rakhavali ki gai, samgopana – sara – sambhala ki gai, achchhi taraha unhem barhaya gaya, ata eva ve vanakhanda krishna varna vale tatha guchchha rupa ho gae – khuba ghane ho gae. Ve pattom vale, pushpom vale yavat shobhayamana ho gae. Tatpashchat nanda maniyara setha ne purva disha ke vanakhanda mem eka vishala chitrasabha banavai. Vaha kaim sau khambhom ki bani hui thi, prasannatajanaka, darshaniya, abhirupa aura pratirupa thi. Usa chitrasabha mem bahuta – se krishna varna vale yavat shukla varna vale kashthakarma, pustakarma, chitrakarma, lepyakarma – gramthika karma, veshtitakarma, purimakarma aura samghatimakarma thim. Ve kalakritiyam itani sundara thim ki darshakagana unhem eka dusare ko dikha – dikha kara varna karate the. Usa chitrasabha mem bahuta – se asana aura shayana nirantara bichhe rahate the. Vaham bahuta – se nataka karane vale aura nritya karane vale, yavat vetana dekara rakhe hue the. Ve talachara karma kiya karate the. Rajagriha se bahara saira ke lie nikale hue bahuta loga usa jagaha akara pahale se hi bichhe hue asanom aura shayanom para baithakara, letakara katha – varta sunate the aura nataka adi dekhate the aura vaham ki shobha anubhava karate hue sukhapurvaka vicharana karate the. Nandi manikara setha ne dakshina tarapha ke vanakhanda mem eka bari mahanasashala banavai. Vaha bhi aneka saikarom khambhom vali yavat pratirupa thi. Vaham bhi bahuta – se loga jivika, bhojana aura vetana dekara rakhe gae the. Ve vipula ashana, pana, khadima aura svadima ahara pakate the aura bahuta – se shramanom, brahmanom, atithiyom, daridrom aura bhikhariyom ko dete rahate the. Nanda manikara setha ne pashchima disha ke vanakhanda mem eka vishala chikitsa shala banavai. Vaha bhi aneka sau khambhom vali yavat manohara thi. Usamem bahuta – se vaidya, vaidyaputra, jnyayaka, jnyayakaputra, kushala aura kushalaputra ajivika, bhojana aura vetana para niyukta kiye hue the. Ve bahuta – se vyadhitom ki, glanom ki, rogiyom ki aura durbalom ki chikitsa karate rahate the. Usa chikitsashala mem dusare bhi bahuta – se loga ajivika, bhojana aura vetana dekara rakhe gae the. Ve una vyadhitom, rogiyom, glanom aura durbalom ki aushadha bheshaja bhojana aura pani se seva – shushrusha karate the. Tatpashchat nanda maniyara setha ne uttara disha vanakhanda mem eka bari alamkarasabha banavai. Vaha bhi aneka saikarom stambhom vali yavat manohara thi. Usamem bahuta – se alamkarika purusha jivika, bhojana aura vetana dekara rakhe gae the. Ve bahuta – se shramanom, anathom, glanom, rogiyom aura durbalom ka alamkarakarma karate the. Usa nanda pushkarini mem bahuta – se sanatha, anatha, pathika, pamthika, karotika, ghasiyare, pattom ke bhara vale, lakarahare adi ate the. Unamem se koi – koi snana karate the, pani pite the aura pani bhara le jate the. Koi – koi pasine, jalla, mala, parishrama, nidra, kshudha aura pipasa ka nivarana karake sukhapurvaka karate the. Nanda pushkarini mem rajagriha nagara mem bhi nikale – aye hue bahuta – se loga kya karate the\? Ve loga jala mem ramana karate the, vividha prakara se snana karate the, kadaligrihom, latagrihom, pushpashayya aura aneka pakshiyom ke samuha ke manohara shabdom se yukta nanda pushkarini aura charom vanakhandom mem krira karate – karate vicharate the. Nanda pushkarini mem snana karate hue, pani pite hue aura pani bharakara le jate hue bahuta – se loga apasa mem kahate the – he devanupriya ! Nanda manikara setha dhanya hai, usaka janma aura jivana saphala hai, jisaki isa prakara ki chaukora yavat manohara yaha nanda pushkarini hai; jisaki purva disha mem vanakhanda hai – yavat rajagriha nagara se bhi bahara nikalakara bahuta – se loga asanom para baithate haim, shayaniyom para letate haim, nataka adi dekhate haim aura katha – varta kahate haim aura sukha – purvaka vihara karate haim. Ata eva nanda manikara ka manushyabhava sulabdha – sarahaniya hai aura usaka jivana tatha janma bhi sulabdha hai.’ usa samaya rajagriha nagara mem bhi shrimgataka adi margom mem bahutere loga paraspara kahate the – devanupriya ! Nanda manikara dhanya hai, yavat jaham akara loga sukhapurvaka vicharate haim. Taba nanda manikara bahuta – se logom se yaha artha sunakara hrishta – tushta hua. Megha ki dhara se ahata kadambavriksha ke samana usake romakupa vikasita ho gae – usaki kali – kali khila uthi. Vaha satajanita paramasukha ka anubhava karane laga.