Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004752 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ संघाट |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ संघाट |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 52 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं सा भद्दा सत्थवाही पंथगस्स दासचेडगस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा आसुरुत्ता रुट्ठा कुविया चंडिक्किया मिसि मिसेमाणी धनस्स सत्थवाहस्स पओसमावज्जइ। तए णं से धने सत्थवाहे अन्नया कयाइं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सएण य अत्थसारेणं रायकज्जाओ अप्पाणं मोयावेइ, मोयावेत्ता चारगसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अलंकारियकम्मं कारवेइ जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहधोयमट्टियं गेण्हइ, गेण्हित्ता पोक्ख-रिणीं ओगाहइ, ओगाहित्ता जलमज्जणं करेइ, करेत्ता ण्हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए रायगिहं नगरं अनुप्पविसइ, अनुप्पविसित्ता रायगिहस्स नगरस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव सए गिहे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं तं धनं सत्थवाहं एज्जमाणं पासित्ता रायगिहे नयरे बहवे नगर-निगम-सेट्ठि-सत्थवाह-पभिइओ आढंति परिजाणंति सक्कारेंति सम्माणेंति अब्भुट्ठेंति सरीरकुसलं पुच्छंति। तए णं से धने सत्थवाहे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ। जावि य से तत्थ बाहिरिया परिसा भवइ, तंजहा–दासा इ वा पेस्सा इ वा भयगा इ वा भाइल्लगा इ वा, सा वि य णं धनं सत्थवाहं एज्जमाणं पासइ, पायवडिया खेमकुसलं पुच्छइ। जावि य से तत्थ अब्भंतरिया परिसा भवइ, तंजहा–माया इ वा पिया इ वा भाया इ वा भइणी इ वा, सावि य णं धनं सत्थवाहं एज्जमाणं पासइ, आसनाओ अब्भुट्ठेइ, कंठाकंठियं अवयासियं बाहप्पमोक्खणं करेइ। तए णं सा भद्दा धनं सत्थवाहं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता नो आढाइ नो परिजाणइ अणाढायमाणी अपरिजाणमाणी तुसिणीया परम्मुही संचिट्ठइ। तए णं से धने सत्थवाहे भद्दं भारियं एवं वयासी–किण्णं तुज्झं देवानुप्पिए! न तुट्ठी वा न हरिसो वा नाणंदो वा, जं मए सएणं अत्थसारेणं रायकज्जाओ अप्पा विमोइए। तए णं सा भद्दा धनं सत्थवाहं एवं वयासी–कहं णं देवानुप्पिया! मम तुट्ठी वा हरिसो वा आणंदो वा भविस्सइ? जेणं तुमं मम पुत्तघायगस्स पुत्तमारगस्स अरिस्स वेरियस्स पडणीयस्स पच्चामित्तस्स ताओ विपुलाओ असन-पान-खाइम-साइमाओ संविभागं करेसि। तए णं से धने सत्थवाहे भद्दं भारियं एवं वयासी–नो खलु देवानुप्पिए! धम्मो त्ति वा तवोत्ति वा कय-पडिकया इ वा लोगजत्ता इ वा नायए इ वा धाडियए इ वा सहाए इ वा सुहि त्ति वा [विजयस्स तक्करस्स] ताओ विपुलाओ असन-पान-खाइम-साइमाओ संविभागे कए, नन्नत्थ सरीरचिंताए। तए णं सा भद्दा धनेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणी हट्ठतुट्ठचित्तमाणंदिया जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियया आसणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता कंठाकंठिं अवयासेइ खेमकुसलं पुच्छइ, पुच्छित्ता ण्हाया कयबलिकम्मा कय-कोउय-मंगलं-पायच्छित्ता विपुलाइं भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरइ। तए णं से विजए तक्करे चारगसालाए तेहिं बंधेहिं य वहेहि य कसप्पहारेहि य छिवापहारेहि य लयापहारेहि य तण्हाए य छुहाए य परज्झमाणे कालमासे कालं किच्चा नरएसु नेरइयत्ताए उववन्ने। से णं तत्थ नेरइए जाए काले कालोभासे गंभीरलोमहरिसे भीमे उत्तासणए परमकण्हे वण्णेणं। से णं तत्थ निच्चं भीए निच्चं तत्थे निच्चं तसिए निच्चं परमऽसुहसंबद्धं नगरगति वेयणं पच्चणुब्भवमाणे विहरइ। से णं तओ उव्वट्टित्ता अनादीयं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टिस्सइ। एवामेव जंबू! जो णं अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए समाणे विपुलमणि-मोत्तिय-धन-कनग-रयणसारेणं लुब्भइ, सो वि एवं चेव। | ||
Sutra Meaning : | तब भद्रा सार्थवाही दास चेटक पंथक के मुख से यह अर्थ सूनकर तत्काल लाल हो गई, रुष्ट हुई यावत् मिसमिसाती हुई धन्य सार्थवाह पर प्रद्वेष करने लगी। तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह को किसी समय मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिवार के लोगों ने अपने साभूत अर्थ से – राजदण्ड से मुक्त कराया। मुक्त होकर वह कारागार से बाहर नीकला। नीकलकर जहाँ आलंकारिक सभा थी, वहाँ पहुँचा। आलंकारिक – कर्म किया। फिर जहाँ पुष्करिणी थी, वहाँ गया। नीचे की ने की मिट्टी ली और पुष्करिणी में अवगाहन किया, जल से मज्जन किया, स्नान किया, बलिकर्म किया, यावत् फिर राजगृह में प्रवेश किया। राजगृह के मध्य में होकर जहाँ अपना घर था वहाँ जाने के लिए रवाना हुआ। तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह को आता देखकर राजगृह नगर के बहुत – से आत्मीय जनों, श्रेष्ठी जनों तथा सार्थवाह आदि ने उसका आदर किया, सन्मान से बुलाया, वस्त्र आदि से सत्कार किया, नमस्कार आदि करके सन्मान कया, खड़े होकर मान किया और शरीर की कुशल पूछी। तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह अपने घर पहुँचा। वहाँ जो बाहर की सभा थी, जैसे – दास, प्रेष्य, भूतक और व्यापार के हिस्सेदार, उन्होंने भी धन्य सार्थवाह को आता देखा। देखकर पैरों में गिरकर क्षेम, कुशल की पृच्छा की। वहाँ जो आभ्यन्तर सभा थी, जैसे की माता, पिता, भाई, बहिन आदि, उन्होंने भी धन्य सार्थवाह को आता देखा। देखकर वे आसन से उठ खड़े हुए, उठकर गले से गला मिलाकर उन्होंने हर्ष के आंसू बहाए। तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह भद्रा भार्या के पास गया। भद्रा सार्थवाही ने धन्य सार्थवाह को अपनी ओर आता देखा। न उसने आदर किया, न जाना। न आगर करती हुई और न जानती हुई वह मौन रहकर और पीठ फेर कर बैठी रही। तब धन्य सार्थवाह ने अपनी पत्नी भद्रा से इस प्रकार कहा – देवानुप्रिये ! मेरे आने से तुम्हें सन्तोष क्यों नहीं है ? हर्ष क्यों नहीं है ? आनन्द क्यों नहीं है ? मैंने अपने सारभूत अर्थ से राजकार्य से अपने आपको छुड़ाया है। तब भद्रा ने धन्य सार्थवाह से इस प्रकार कहा – देवानुप्रिय ! मुझे क्यों सन्तोष, हर्ष और आनन्द होगा, जब की तुमने मेरे पुत्र के घातक यावत् वैरी तथा प्रत्यमित्र को उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन में से संविभाग किया – हिस्सा दिया। तब धन्य सार्थवाह ने भद्रा से कहा – ‘देवानुप्रिये ! धर्म समझकर, तप, किये उपकार का बदला, लोकयात्रा, न्याय, नायक, सहचर, सहायक, अथवा सुहृद समझकर मैंने उसे विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम में से संविभाग नहीं किया है। सिवाय शरीर चिन्ता के और किसी प्रयोजन से संविभाग नहीं किया।’ धन्य सार्थवाह के इस स्पष्टीकरण से भद्रा हृष्ट – तुष्ट हुई, वह आसन से उठी, उसने धन्य सार्थवाह को कंठ से लगाया और उसका कुशल – क्षेम पूछा। फिर स्नान किया, यावत् प्रायश्चित्त किया और पाँचों इन्द्रियों के विपुल भोग भोगती हुई रहने लगी। तत्पश्चात् विजय चोर कारागार में बन्द, वध, चाबूकों के प्रहार यावत् प्यास और भूख से पीड़ित होता हुआ, मृत्यु के अवसर पर काल करके नारक रूप से नरक में उत्पन्न हुआ। वह काला और अतिशय काला दिखता था, वेदना का अनुभव कर रहा था। वह नरक से नीकलकर अनादि अनन्त दीर्घ मार्ग या दीर्घकाल वाले चतुर्गति रूप संसार – कान्तार में पर्यटन करेगा। जम्बू ! इसी प्रकार हमारा जो साधु या साध्वी, आचार्य या उपाध्याय के पास मुण्डित होकर, गृहत्याग कर, साधुत्व की दीक्षा अंगीकार करके विपुल मणि मौक्तिक धन कनक और सारभूत रत्नों में लुब्ध होता है, उसकी दशा भी चोर जैसी होती है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam sa bhadda satthavahi pamthagassa dasachedagassa amtie eyamattham sochcha asurutta ruttha kuviya chamdikkiya misi misemani dhanassa satthavahassa paosamavajjai. Tae nam se dhane satthavahe annaya kayaim mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanenam saena ya atthasarenam rayakajjao appanam moyavei, moyavetta charagasalao padinikkhamai, padinikkhamitta jeneva alamkariyasabha teneva uvagachchhai, uvagachchhitta alamkariyakammam karavei jeneva pokkharini teneva uvagachchhai, uvagachchhitta ahadhoyamattiyam genhai, genhitta pokkha-rinim ogahai, ogahitta jalamajjanam karei, karetta nhae kayabalikamme kaya-kouya-mamgala-payachchhitte savvalamkaravibhusie rayagiham nagaram anuppavisai, anuppavisitta rayagihassa nagarassa majjhammajjhenam jeneva sae gihe teneva paharettha gamanae. Tae nam tam dhanam satthavaham ejjamanam pasitta rayagihe nayare bahave nagara-nigama-setthi-satthavaha-pabhiio adhamti parijanamti sakkaremti sammanemti abbhutthemti sarirakusalam puchchhamti. Tae nam se dhane satthavahe jeneva sae gihe teneva uvagachchhai. Javi ya se tattha bahiriya parisa bhavai, tamjaha–dasa i va pessa i va bhayaga i va bhaillaga i va, sa vi ya nam dhanam satthavaham ejjamanam pasai, payavadiya khemakusalam puchchhai. Javi ya se tattha abbhamtariya parisa bhavai, tamjaha–maya i va piya i va bhaya i va bhaini i va, savi ya nam dhanam satthavaham ejjamanam pasai, asanao abbhutthei, kamthakamthiyam avayasiyam bahappamokkhanam karei. Tae nam sa bhadda dhanam satthavaham ejjamanam pasai, pasitta no adhai no parijanai anadhayamani aparijanamani tusiniya parammuhi samchitthai. Tae nam se dhane satthavahe bhaddam bhariyam evam vayasi–kinnam tujjham devanuppie! Na tutthi va na hariso va nanamdo va, jam mae saenam atthasarenam rayakajjao appa vimoie. Tae nam sa bhadda dhanam satthavaham evam vayasi–kaham nam devanuppiya! Mama tutthi va hariso va anamdo va bhavissai? Jenam tumam mama puttaghayagassa puttamaragassa arissa veriyassa padaniyassa pachchamittassa tao vipulao asana-pana-khaima-saimao samvibhagam karesi. Tae nam se dhane satthavahe bhaddam bhariyam evam vayasi–no khalu devanuppie! Dhammo tti va tavotti va kaya-padikaya i va logajatta i va nayae i va dhadiyae i va sahae i va suhi tti va [vijayassa takkarassa] tao vipulao asana-pana-khaima-saimao samvibhage kae, nannattha sarirachimtae. Tae nam sa bhadda dhanenam satthavahenam evam vutta samani hatthatutthachittamanamdiya java harisavasa-visappamanahiyaya asanao abbhutthei, abbhutthetta kamthakamthim avayasei khemakusalam puchchhai, puchchhitta nhaya kayabalikamma kaya-kouya-mamgalam-payachchhitta vipulaim bhogabhogaim bhumjamani viharai. Tae nam se vijae takkare charagasalae tehim bamdhehim ya vahehi ya kasappaharehi ya chhivapaharehi ya layapaharehi ya tanhae ya chhuhae ya parajjhamane kalamase kalam kichcha naraesu neraiyattae uvavanne. Se nam tattha neraie jae kale kalobhase gambhiralomaharise bhime uttasanae paramakanhe vannenam. Se nam tattha nichcham bhie nichcham tatthe nichcham tasie nichcham paramasuhasambaddham nagaragati veyanam pachchanubbhavamane viharai. Se nam tao uvvattitta anadiyam anavadaggam dihamaddham chauramtam samsarakamtaram anupariyattissai. Evameva jambu! Jo nam amham niggamtho va niggamthi va ayariya-uvajjhayanam amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie samane vipulamani-mottiya-dhana-kanaga-rayanasarenam lubbhai, so vi evam cheva. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Taba bhadra sarthavahi dasa chetaka pamthaka ke mukha se yaha artha sunakara tatkala lala ho gai, rushta hui yavat misamisati hui dhanya sarthavaha para pradvesha karane lagi. Tatpashchat dhanya sarthavaha ko kisi samaya mitra, jnyati, nijaka, svajana, sambandhi aura parivara ke logom ne apane sabhuta artha se – rajadanda se mukta karaya. Mukta hokara vaha karagara se bahara nikala. Nikalakara jaham alamkarika sabha thi, vaham pahumcha. Alamkarika – karma kiya. Phira jaham pushkarini thi, vaham gaya. Niche ki ne ki mitti li aura pushkarini mem avagahana kiya, jala se majjana kiya, snana kiya, balikarma kiya, yavat phira rajagriha mem pravesha kiya. Rajagriha ke madhya mem hokara jaham apana ghara tha vaham jane ke lie ravana hua. Tatpashchat dhanya sarthavaha ko ata dekhakara rajagriha nagara ke bahuta – se atmiya janom, shreshthi janom tatha sarthavaha adi ne usaka adara kiya, sanmana se bulaya, vastra adi se satkara kiya, namaskara adi karake sanmana kaya, khare hokara mana kiya aura sharira ki kushala puchhi. Tatpashchat dhanya sarthavaha apane ghara pahumcha. Vaham jo bahara ki sabha thi, jaise – dasa, preshya, bhutaka aura vyapara ke hissedara, unhomne bhi dhanya sarthavaha ko ata dekha. Dekhakara pairom mem girakara kshema, kushala ki prichchha ki. Vaham jo abhyantara sabha thi, jaise ki mata, pita, bhai, bahina adi, unhomne bhi dhanya sarthavaha ko ata dekha. Dekhakara ve asana se utha khare hue, uthakara gale se gala milakara unhomne harsha ke amsu bahae. Tatpashchat dhanya sarthavaha bhadra bharya ke pasa gaya. Bhadra sarthavahi ne dhanya sarthavaha ko apani ora ata dekha. Na usane adara kiya, na jana. Na agara karati hui aura na janati hui vaha mauna rahakara aura pitha phera kara baithi rahi. Taba dhanya sarthavaha ne apani patni bhadra se isa prakara kaha – devanupriye ! Mere ane se tumhem santosha kyom nahim hai\? Harsha kyom nahim hai\? Ananda kyom nahim hai\? Maimne apane sarabhuta artha se rajakarya se apane apako chhuraya hai. Taba bhadra ne dhanya sarthavaha se isa prakara kaha – devanupriya ! Mujhe kyom santosha, harsha aura ananda hoga, jaba ki tumane mere putra ke ghataka yavat vairi tatha pratyamitra ko usa vipula ashana, pana, khadima aura svadima bhojana mem se samvibhaga kiya – hissa diya. Taba dhanya sarthavaha ne bhadra se kaha – ‘devanupriye ! Dharma samajhakara, tapa, kiye upakara ka badala, lokayatra, nyaya, nayaka, sahachara, sahayaka, athava suhrida samajhakara maimne use vipula ashana, pana, khadima aura svadima mem se samvibhaga nahim kiya hai. Sivaya sharira chinta ke aura kisi prayojana se samvibhaga nahim kiya.’ dhanya sarthavaha ke isa spashtikarana se bhadra hrishta – tushta hui, vaha asana se uthi, usane dhanya sarthavaha ko kamtha se lagaya aura usaka kushala – kshema puchha. Phira snana kiya, yavat prayashchitta kiya aura pamchom indriyom ke vipula bhoga bhogati hui rahane lagi. Tatpashchat vijaya chora karagara mem banda, vadha, chabukom ke prahara yavat pyasa aura bhukha se pirita hota hua, mrityu ke avasara para kala karake naraka rupa se naraka mem utpanna hua. Vaha kala aura atishaya kala dikhata tha, vedana ka anubhava kara raha tha. Vaha naraka se nikalakara anadi ananta dirgha marga ya dirghakala vale chaturgati rupa samsara – kantara mem paryatana karega. Jambu ! Isi prakara hamara jo sadhu ya sadhvi, acharya ya upadhyaya ke pasa mundita hokara, grihatyaga kara, sadhutva ki diksha amgikara karake vipula mani mauktika dhana kanaka aura sarabhuta ratnom mem lubdha hota hai, usaki dasha bhi chora jaisi hoti hai. |