Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004746 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ संघाट |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ संघाट |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 46 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं तीसे भद्दाए भारियाए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अहं धनेणं सत्थवाहेणं सद्धिं बहूणि वासाणि सद्द-फरिस-रस-गंध-रूवाणि मानुस्सगाइं कामभोगाइं पच्चणुब्भवमाणी विहरामि, नो चेव णं अहं दारगं वा दारियं वा पयामि। तं धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ, संपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयविहवाओ णं ताओ अम्मयाओ, सुलद्धे णं मानुस्सए जम्मजीवियफले तासिं अम्मयाणं, जासिं मन्ने नियगकुच्छिसंभूयाइं थणदुद्ध-लुद्धयाइं महुरसमुल्लावगाइं मम्मणपयंपियाइं थणमूला कक्खदेसभागं अभिसरमाणाइं मुद्धयाइं थणयं पियंति, तओ य कोमलकमलोवमेहिं हत्थेहिं गिण्हिऊणं उच्छंग-निवेसियाणि देंति समुल्लावए पिए सुमहुरे पुणो-पुणो मंजुलप्पभणिए। तं णं अहं अधन्ना अपुण्णा अकयलक्खणा एत्तो एगमवि न पत्ता। तं सेयं मम कल्लं पाउप्पभाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते धनं सत्थवाहं आपुच्छित्ता धनेणं सत्थवाहेणं अब्भणुण्णाया समाणी सुबहुं विपुलं असनं पानं खाइमं साइमं उक्खडावेत्ता सुबहुं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं गहाय बहूहिं मित्त-नाइ-नियग सयण-संबंधि-परियण-महिलाहिं सद्धिं संपरिवुडा जाइं इमाइं रायगिहस्स नयरस्स बहिया नागाणि य भूयाणि य जक्खाणि य इंदाणि य खंदाणि य रुद्दाणि य सिवाणि य वेसमणाणि य, तत्थ णं बहूणं नागपडिमाण य जाव वेसमणपडिमाण य महरिहं पुप्फच्चणियं करेत्ता जन्नुपायपडियाए एवं वइत्तए–जइ णंहं देवानुप्पिया! दारगं वा दारियं वा पयामि, तो णं अहं तुब्भं जायं च दायं च भायं च अक्खयणिहिं च अनुवड्ढेमि त्ति कट्टु उवाइयं उवाइत्तए–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते जेणामेव धने सत्थवाहे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी– एवं खलु अहं देवानुप्पिया! तुब्भेहिं सद्धिं बहूइं वासाइं सद्द-फरिस-रस-गंध-रूवाइं मानुस्सगाइं कामभोगाइं पच्चणुब्भवमाणी विहरामि, नो चेव णं अहं दारगं वा दारियं वा पयामि। तं धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव कोमलकमलोवमेहिं हत्थेहिं गिण्हिऊणं उच्छंग-निवेसियाणि देंति समुल्लावए सुमहुरे पिए पुणो-पुणो मंजुलप्पभणिए। तं णं अहं अहण्णा अपुण्णा अकयलक्खणा एत्तो एगमवि न पत्ता। तं इच्छामि णं देवानुप्पिया! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणो विपुलं असनं पानं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता जाव अक्खयणिहिं च अनुवड्ढेमि उवाइयं करित्तए। तए णं धने सत्थवाहे भद्दं भारियं एवं वयासी–ममं पि य णं देवानुप्पिए! एस चेव मनोरहे– कहं णं तुमं दारगं वा दारियं वा पयाएज्जासि? –भद्दाए सत्थवाहीए एयमट्ठं अनुजाणइ। तए णं सा भद्दा सत्थवाही धनेणं सत्थवाहेणं अब्भणुण्णाया समाणी हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिया जाव हरिसवस-विसप्पमाण-हियया विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता सुबहुं पुप्फ-वत्थ-गंधमल्लालंकारं गेण्हइ, गेण्हित्ता सयाओ गिहाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता रायगिहं नयरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुक्खरिणीए तीरे सुबहुं पुप्फ-वत्थ-गंध मल्लालंकारं ठवेइ, ठवेत्ता पुक्खरिणिं ओगाहेइ, ओगाहित्ता जलमज्जणं करेइ, करेत्ता जलकीडं करेइ, करेत्ता ण्हाया कयवलिकम्मा उल्लपडसाडिगा जाइं तत्थ उप्पलाइं पउमाइं कुमुयाइं नलिणाइं सुभगाइं सोगंधियाइं पोंडरीयाइं महापोंडरीयाइं सयवत्ताइं सहस्सपत्ताइं ताइं गिण्हइ, गिण्हित्ता पुक्खरिणीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता तं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणामेव नागधरए य जाव वेसमणधरए य तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तत्थ णं नागपडिमाण य जाव वेसमणपडिमाण य आलोए पणामं करेइ, ईसिं पच्चुन्नमइ, पच्चुन्नमित्ता लोमहत्थगं परामुसइ, परामुसित्ता नागपडिमाओ य जाव वेसमणपडिमाओ य लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता उदगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुक्खेत्ता पम्हल-सूमालाए गंधकासाईए गायाइं लूहेइ, लूहेत्ता महरिहं वत्थारुहणं च मल्लारुहणं च गंधारुहणं च वण्णारुहणं च करेइ, करेत्ता धूवं डहइ, डहित्ता जन्नुपायपडिया पंजलिउडा एवं वयासी– जइ णं अहं दारगं वा दारियं वा पयामि तो णं अहं जायं च दायं च भायं च अक्खयणिहिं च अनुवड्ढेमि त्ति कट्टु उवाइयं करेइ, करेत्ता जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं आसाएमाणी विसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुंजेमाणी एवं च णं विहरइ। जिमियं भुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा आयंता चोक्खा परम सुइभूया जेणेव सए गिहे तेणेव उवागया। अदुत्तरं च णं भद्दा सत्थवाही चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडेइ, उवक्खडेत्ता बहवे नागा य जाव वेसमणा य उवायमाणी नमंसमाणी जाव एवं च णं विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | धन्य सार्थवाह की भार्या भद्रा एक बार कदाचित् मध्यरात्रि के समय कुटुम्ब सम्बन्धी चिन्ता कर रही थी कि उसे इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ। बहुत वर्षों से मैं धन्य सार्थवाह के साथ, शब्द, स्पर्श, रस, गन्ध और रूप यह पाँचों प्रकार के मनुष्य सम्बन्धी कामभोग भोगती हुई विचर रही हूँ, परन्तु मैंने एक भी पुत्र या पुत्री को जन्म नहीं दिया। वे माताएं धन्य हैं, यावत् उन माताओं को मनुष्य – जन्म और जीवने का प्रशस्त – भला फल प्राप्त हुआ है, जो माताएं, मैं मानती हूँ कि, अपनी कोख से उत्पन्न हुए, स्तनों का दूध पीने में लुब्ध, मीठे बोल बोलने वाले, तुतला – तुतला कर बोलने वाले और स्तन के मूल से काँख के प्रदेश की ओर सरकने वाले मुग्ध बालकों को स्तनपान कराती हैं और फिर कमल के समान कोमल हाथों से उन्हें पकड़कर अपनी गोद में बिठलाती हैं और बार – बार अतिशय प्रिय वचन वाले मधुर उल्लाप देती हैं। मैं अधन्य हूँ, पुण्यहीन हूँ, कुलक्षणा हूँ और पापिनी हूँ कि इनमें से एक भी न पा सकी। अत एव मेरे लिए यही श्रेयस्कर है कि कल रात्रि के प्रभात रूप में प्रकट होने पर और सूर्योदय होने पर धन्य सार्थवाह से पूछकर, आज्ञा प्राप्त करके मैं बहुत – सा अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार तैयार कराके बहुत – से पुष्प, वस्त्र, गंधमाला और अलंकार ग्रहण करके, बहुसंख्यक मित्र, ज्ञातिजनों, निजजनों, स्वजनों, सम्बन्धीयों और परिजनों की महिलाओं के साथ – उनसे परिवृत्त होकर, राजगृह नगर के बाहर जो नाग, भूत, यक्ष, इन्द्र, स्कन्द, रूद्र, शिव और वैश्रमण आदि देवों के आयतन हैं और उनमें जो नाग की प्रतिमा यावत् वैश्रमण की प्रतिमाएं हैं, उनकी बहुमूल्य पुष्पादि से पूजा करके घुटने और पैर झुकाकर इस प्रकार कहूँ – ‘हे देवानुप्रिय ! यदि मैं एक भी पुत्र या पुत्री को जन्म दूँगी तो मैं तुम्हारी पूजा करूँगी, पर्व के दिन दान दूँगी, भाग – द्रव्य के लाभ का हिस्सा दूँगी और तुम्हारी अक्षय – निधि की वृद्धि करूँगी।’ इस प्रकार अपनी इष्ट वस्तु की याचना करूँ। भद्रा ने इस प्रकार विचार किया। दूसरे दिन यावत् सूर्योदय होने पर जहाँ धन्य सार्थवाह थे, वहीं आई। आकर इस प्रकार बोली – देवानुप्रिय ! मैंने आपके साथ बहुत वर्षों तक कामभोग भोगे हैं, किन्तु एक भी पुत्र या पुत्री को जन्म नहीं दिया। अन्य स्त्रियाँ बार – बार अति मधुर वचन वाले उल्लाप देती हैं – अपने बच्चों की लोरियाँ गाती हैं, किन्तु मैं अधन्य, पुण्य – हीन और लक्षणहीन हूँ, तो हे देवानुप्रिय ! मैं चाहती हूँ कि आपकी आज्ञा पाकर विपुल अशन आदि तैयार कराकर नाग आदि की पूजा करूँ यावत् उनकी अक्षय निधि की वृद्धि करूँ, ऐसी मनौती मनाऊं। तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह ने भद्रा भार्या से इस प्रकार कहा – ‘हे देवानुप्रिये ! निश्चय ही मेरा भी यही मनोरथ है कि किसी प्रकार तुम पुत्र या पुत्री का प्रसव करो – जन्म दो।’ इस प्रकार कहकर भद्रा सार्थवाही को उस अर्थ की अर्थात् नाग, भूत, यक्ष आदि की पूजा करने की अनुमति दे दी। तत्पश्चात् वह भद्रा सार्थवाही धन्य सार्थवाह से अनुमति प्राप्त करके हृष्ट – तुष्ट यावत् प्रफुल्लित हृदय होकर विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तैयार कराती है। तैयार कराकर बहुत – से गंध, वस्त्र, माला और अलंकारों को ग्रहण करती हैं और फिर अपने घर से बाहर नीकलती है। राजगृह नगर के बीचों – बीच होकर नीकलती है। जहाँ पुष्करिणी थी, वहीं पहुँचती है। पुष्करिणी के किनारे बहुत से पुष्प, गंध, वस्त्र, मालाएं और अलंकार रख दिए। पुष्करिणी में प्रवेश किया, जलमज्जन किया, जलक्रीया कि, स्नान किया और बलिकर्म किया। तत्पश्चात् ओढ़ने – पहनने के दोनों गीले वस्त्र धारण किए हुए भद्रा सार्थवाही ने वहाँ जो उत्पल – कमल, पद्म, कुमुद, नलिन, सुभग, सौगन्धिक, पुंडरीक, महापुंडरीक, शतपत्र और सहस्र – पत्र – कमल थे उन सबको ग्रहण किया। बाहर नीकली। नीकलकर पहले रखे हुए बहुत – से पुष्प, गंध, मारा आदि लिए और उन्हें लेकर जहाँ नागागृह था यावत् वैश्रमणगृह था, वहाँ पहुँचीं। उनमें स्थित नाग की प्रतिमा यावत् वैश्रमण की प्रतिमा पर दृष्टि पड़ते ही उन्हें नमस्कार किया। जल की धार छोड़कर अभिषेक किया। रूएंदार और कोमल कषाय – रंग वाले सुगंधित वस्त्र से प्रतिमा के अंग पौंछे। बहुमूल्य वस्त्रों का आरोहण किया, पुष्पमाल पहनाई, गंध का लेपन किया, चूर्ण चढ़ाया और शोभाजनक वर्ण का स्थापन किया, यावत् धूप जलाई। घुटने और पैर टेक कर, दोनों हाथ जोड़कर इस प्रकार कहा – ‘अगर मैं पुत्र या पुत्री को जन्म दूँगी तो मैं तुम्हारी याग – पूजा करूँगी, यावत् अक्षयनिधि की वृद्धि करूँगी।’ इस प्रकार भद्रा सार्थवाही मनौती करके जहाँ पुष्करिणी थी, वहाँ आई और विपुल अशन, पान, खादिम एवं स्वादिम आहार का आस्वादन करती हुई यावत् विचरने लगी। भोजन करने के पश्चात् शुचि होकर अपने घर आ गई। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam tise bhaddae bhariyae annaya kayai puvvarattavarattakalasamayamsi kudumbajagariyam jagaramanie ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–aham dhanenam satthavahenam saddhim bahuni vasani sadda-pharisa-rasa-gamdha-ruvani manussagaim kamabhogaim pachchanubbhavamani viharami, no cheva nam aham daragam va dariyam va payami. Tam dhannao nam tao ammayao, sampunnao nam tao ammayao, kayatthao nam tao ammayao, kayapunnao nam tao ammayao, kayalakkhanao nam tao ammayao, kayavihavao nam tao ammayao, suladdhe nam manussae jammajiviyaphale tasim ammayanam, jasim manne niyagakuchchhisambhuyaim thanaduddha-luddhayaim mahurasamullavagaim mammanapayampiyaim thanamula kakkhadesabhagam abhisaramanaim muddhayaim thanayam piyamti, tao ya komalakamalovamehim hatthehim ginhiunam uchchhamga-nivesiyani demti samullavae pie sumahure puno-puno mamjulappabhanie. Tam nam aham adhanna apunna akayalakkhana etto egamavi na patta. Tam seyam mama kallam pauppabhae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte dhanam satthavaham apuchchhitta dhanenam satthavahenam abbhanunnaya samani subahum vipulam asanam panam khaimam saimam ukkhadavetta subahum puppha-vattha-gamdha-mallalamkaram gahaya bahuhim mitta-nai-niyaga sayana-sambamdhi-pariyana-mahilahim saddhim samparivuda jaim imaim rayagihassa nayarassa bahiya nagani ya bhuyani ya jakkhani ya imdani ya khamdani ya ruddani ya sivani ya vesamanani ya, tattha nam bahunam nagapadimana ya java vesamanapadimana ya mahariham pupphachchaniyam karetta jannupayapadiyae evam vaittae–jai namham devanuppiya! Daragam va dariyam va payami, to nam aham tubbham jayam cha dayam cha bhayam cha akkhayanihim cha anuvaddhemi tti kattu uvaiyam uvaittae–evam sampehei, sampehetta kallam pauppabhae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte jenameva dhane satthavahe tenameva uvagachchhai, uvagachchhitta evam vayasi– Evam khalu aham devanuppiya! Tubbhehim saddhim bahuim vasaim sadda-pharisa-rasa-gamdha-ruvaim manussagaim kamabhogaim pachchanubbhavamani viharami, no cheva nam aham daragam va dariyam va payami. Tam dhannao nam tao ammayao java komalakamalovamehim hatthehim ginhiunam uchchhamga-nivesiyani demti samullavae sumahure pie puno-puno mamjulappabhanie. Tam nam aham ahanna apunna akayalakkhana etto egamavi na patta. Tam ichchhami nam devanuppiya! Tubbhehim abbhanunnaya samano vipulam asanam panam khaimam saimam uvakkhadavetta java akkhayanihim cha anuvaddhemi uvaiyam karittae. Tae nam dhane satthavahe bhaddam bhariyam evam vayasi–mamam pi ya nam devanuppie! Esa cheva manorahe– kaham nam tumam daragam va dariyam va payaejjasi? –bhaddae satthavahie eyamattham anujanai. Tae nam sa bhadda satthavahi dhanenam satthavahenam abbhanunnaya samani hatthatuttha-chittamanamdiya java harisavasa-visappamana-hiyaya vipulam asana-pana-khaima-saimam uvakkhadavei, uvakkhadavetta subahum puppha-vattha-gamdhamallalamkaram genhai, genhitta sayao gihao niggachchhai, niggachchhitta rayagiham nayaram majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva pokkharini teneva uvagachchhai, uvagachchhitta pukkharinie tire subahum puppha-vattha-gamdha mallalamkaram thavei, thavetta pukkharinim ogahei, ogahitta jalamajjanam karei, karetta jalakidam karei, karetta nhaya kayavalikamma ullapadasadiga jaim tattha uppalaim paumaim kumuyaim nalinaim subhagaim sogamdhiyaim pomdariyaim mahapomdariyaim sayavattaim sahassapattaim taim ginhai, ginhitta pukkharinio pachchoruhai, pachchoruhitta tam puppha-vattha-gamdha-mallam genhai, genhitta jenameva nagadharae ya java vesamanadharae ya tenameva uvagachchhai, uvagachchhitta tattha nam nagapadimana ya java vesamanapadimana ya aloe panamam karei, isim pachchunnamai, pachchunnamitta lomahatthagam paramusai, paramusitta nagapadimao ya java vesamanapadimao ya lomahatthaenam pamajjai, pamajjitta udagadharae abbhukkhei, abbhukkhetta pamhala-sumalae gamdhakasaie gayaim luhei, luhetta mahariham vattharuhanam cha mallaruhanam cha gamdharuhanam cha vannaruhanam cha karei, karetta dhuvam dahai, dahitta jannupayapadiya pamjaliuda evam vayasi– Jai nam aham daragam va dariyam va payami to nam aham jayam cha dayam cha bhayam cha akkhayanihim cha anuvaddhemi tti kattu uvaiyam karei, karetta jeneva pokkharini teneva uvagachchhai, uvagachchhitta tam vipulam asana-pana-khaima-saimam asaemani visaemani paribhaemani paribhumjemani evam cha nam viharai. Jimiyam bhuttuttaragaya vi ya nam samana ayamta chokkha parama suibhuya jeneva sae gihe teneva uvagaya. Aduttaram cha nam bhadda satthavahi chauddasatthamudditthapunnamasinisu vipulam asana-pana-khaima-saimam uvakkhadei, uvakkhadetta bahave naga ya java vesamana ya uvayamani namamsamani java evam cha nam viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Dhanya sarthavaha ki bharya bhadra eka bara kadachit madhyaratri ke samaya kutumba sambandhi chinta kara rahi thi ki use isa prakara ka vichara utpanna hua. Bahuta varshom se maim dhanya sarthavaha ke satha, shabda, sparsha, rasa, gandha aura rupa yaha pamchom prakara ke manushya sambandhi kamabhoga bhogati hui vichara rahi hum, parantu maimne eka bhi putra ya putri ko janma nahim diya. Ve mataem dhanya haim, yavat una mataom ko manushya – janma aura jivane ka prashasta – bhala phala prapta hua hai, jo mataem, maim manati hum ki, apani kokha se utpanna hue, stanom ka dudha pine mem lubdha, mithe bola bolane vale, tutala – tutala kara bolane vale aura stana ke mula se kamkha ke pradesha ki ora sarakane vale mugdha balakom ko stanapana karati haim aura phira kamala ke samana komala hathom se unhem pakarakara apani goda mem bithalati haim aura bara – bara atishaya priya vachana vale madhura ullapa deti haim. Maim adhanya hum, punyahina hum, kulakshana hum aura papini hum ki inamem se eka bhi na pa saki. Ata eva mere lie yahi shreyaskara hai ki kala ratri ke prabhata rupa mem prakata hone para aura suryodaya hone para dhanya sarthavaha se puchhakara, ajnya prapta karake maim bahuta – sa ashana, pana, khadima aura svadima ahara taiyara karake bahuta – se pushpa, vastra, gamdhamala aura alamkara grahana karake, bahusamkhyaka mitra, jnyatijanom, nijajanom, svajanom, sambandhiyom aura parijanom ki mahilaom ke satha – unase parivritta hokara, rajagriha nagara ke bahara jo naga, bhuta, yaksha, indra, skanda, rudra, shiva aura vaishramana adi devom ke ayatana haim aura unamem jo naga ki pratima yavat vaishramana ki pratimaem haim, unaki bahumulya pushpadi se puja karake ghutane aura paira jhukakara isa prakara kahum – ‘he devanupriya ! Yadi maim eka bhi putra ya putri ko janma dumgi to maim tumhari puja karumgi, parva ke dina dana dumgi, bhaga – dravya ke labha ka hissa dumgi aura tumhari akshaya – nidhi ki vriddhi karumgi.’ isa prakara apani ishta vastu ki yachana karum. Bhadra ne isa prakara vichara kiya. Dusare dina yavat suryodaya hone para jaham dhanya sarthavaha the, vahim ai. Akara isa prakara boli – devanupriya ! Maimne apake satha bahuta varshom taka kamabhoga bhoge haim, kintu eka bhi putra ya putri ko janma nahim diya. Anya striyam bara – bara ati madhura vachana vale ullapa deti haim – apane bachchom ki loriyam gati haim, kintu maim adhanya, punya – hina aura lakshanahina hum, to he devanupriya ! Maim chahati hum ki apaki ajnya pakara vipula ashana adi taiyara karakara naga adi ki puja karum yavat unaki akshaya nidhi ki vriddhi karum, aisi manauti manaum. Tatpashchat dhanya sarthavaha ne bhadra bharya se isa prakara kaha – ‘he devanupriye ! Nishchaya hi mera bhi yahi manoratha hai ki kisi prakara tuma putra ya putri ka prasava karo – janma do.’ isa prakara kahakara bhadra sarthavahi ko usa artha ki arthat naga, bhuta, yaksha adi ki puja karane ki anumati de di. Tatpashchat vaha bhadra sarthavahi dhanya sarthavaha se anumati prapta karake hrishta – tushta yavat praphullita hridaya hokara vipula ashana, pana, khadima aura svadima taiyara karati hai. Taiyara karakara bahuta – se gamdha, vastra, mala aura alamkarom ko grahana karati haim aura phira apane ghara se bahara nikalati hai. Rajagriha nagara ke bichom – bicha hokara nikalati hai. Jaham pushkarini thi, vahim pahumchati hai. Pushkarini ke kinare bahuta se pushpa, gamdha, vastra, malaem aura alamkara rakha die. Pushkarini mem pravesha kiya, jalamajjana kiya, jalakriya ki, snana kiya aura balikarma kiya. Tatpashchat orhane – pahanane ke donom gile vastra dharana kie hue bhadra sarthavahi ne vaham jo utpala – kamala, padma, kumuda, nalina, subhaga, saugandhika, pumdarika, mahapumdarika, shatapatra aura sahasra – patra – kamala the una sabako grahana kiya. Bahara nikali. Nikalakara pahale rakhe hue bahuta – se pushpa, gamdha, mara adi lie aura unhem lekara jaham nagagriha tha yavat vaishramanagriha tha, vaham pahumchim. Unamem sthita naga ki pratima yavat vaishramana ki pratima para drishti parate hi unhem namaskara kiya. Jala ki dhara chhorakara abhisheka kiya. Ruemdara aura komala kashaya – ramga vale sugamdhita vastra se pratima ke amga paumchhe. Bahumulya vastrom ka arohana kiya, pushpamala pahanai, gamdha ka lepana kiya, churna charhaya aura shobhajanaka varna ka sthapana kiya, yavat dhupa jalai. Ghutane aura paira teka kara, donom hatha jorakara isa prakara kaha – ‘agara maim putra ya putri ko janma dumgi to maim tumhari yaga – puja karumgi, yavat akshayanidhi ki vriddhi karumgi.’ isa prakara bhadra sarthavahi manauti karake jaham pushkarini thi, vaham ai aura vipula ashana, pana, khadima evam svadima ahara ka asvadana karati hui yavat vicharane lagi. Bhojana karane ke pashchat shuchi hokara apane ghara a gai. |