Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004747 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ संघाट |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ संघाट |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 47 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं सा भद्दा सत्थवाही अन्नया कयाइ केणइ कालंतरेणं आवण्णसत्ता जाया यावि होत्था। तए णं तीसे भद्दाए सत्थवाहीए तस्स गब्भस्स दोसु मासेसु वीइक्कंतेसु तइए मासे वट्टमाणे इमेयारूवे दोहले पाउब्भूए–धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ, जाओ णं विउलं असनं पानं खाइमं साइमं सुबहुयं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं गहाय मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियण-महिलियाहिं सद्धिं संपरिवुडाओ रायगिहं नयरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोक्खरिणिं ओगाहेंति, ओगाहित्ता ण्हा-याओ कयवलिकम्माओ सव्वालंकारविभूसियाओ विपुलं असनं पानं खाइमं साइमं आसाएमाणीओ विसाएमाणीओ परिभाएमाणीओ परिभुंजेमाणीओ दोहलं विणेंति–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते जेणेव धनं सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धनं सत्थवाहं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! मम तस्स गब्भस्स दोसु मासेसु वीइक्कंतेसु तइए मासे वट्टमाणे इमेयारूवे दोहले पाउब्भूए–धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव दोहलं विणेंति। तं इच्छामि णं देवानुप्पिया! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणी विउलं असनं पानं खाइमं साइमं सुबहुयं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं गहाय जाव दोहलं विणित्तए। अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि। तए णं सा भद्दा धनेणं सत्थवाहेणं अब्भणुण्णाया समाणी हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिया जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियया विपुलं असनं पानं खाइमं साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता जाव धूवं करेइ, करेत्ता जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ। तए णं ताओ मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियण-नगरमहिलाओ भद्दं सत्थवाहिं सव्वालंकार-विभूसियं करेंति। तए णं सा भद्दा सत्थवाही ताहिं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि- परियण-नगरमहिलियाहिं सद्धिं तं विपुलं असनं पानं खाइमं साइमं आसाएमाणी विसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुंजेमाणी दोहलं विणेइ, विणेत्ता जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया। तए णं सा भद्दा सत्थवाही संपुण्णदोहला जाव तं गब्भं सुहंसुहेणं परिवहइ। तए णं सा भद्दा सत्थवाही नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं वीइक्कंताणं सुकुमालपाणिपायं जाव दारगं पयाया। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे जायकम्मं करेंति, तहेव जाव विपुलं असनं पानं खाइमं साइमं उवक्खडावेंति, तहेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं भोयावेत्ता अयमेयारूवं गोण्णं गुणनिप्फण्णं नामधेज्जं करेंति–जम्हा णं अम्हं इमे दारए बहूणं नागपडिमाण य जाव वेसमणपडिमाण य उवाइयलद्धे, तं होउ णं अम्हं इमे दारए देवदिन्ने नामेणं। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेज्जं करेंति देवदिन्ने त्ति। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो जायं च दायं च भायं च अक्खयनिहिं च अनुवड्ढेंति। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् भद्रा सार्थवाही चतुर्दशी, अष्टमी, अमावास्या और पूर्णिमा के दिन विपुल अशन, पान, खादिम और भोजन तैयार करती। बहुत से नाग यावत् वैश्रमण देवों की मनौती करती और उन्हें नमस्कार किया करती थी। वह भद्रा सार्थवाही कुछ समय व्यतीत हो जाने पर एकदा गर्भवती हो गई। भद्रा सार्थवाही को दो मास बीत गए। तीसरा मास चल रहा था, तब इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ – ‘वे माताएं धन्य हैं, यावत् तथा वे माताएं शुभ लक्षण वाली हैं जो विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम – यह चार प्रकार का आहार तथा बहुत – सारे पुष्प, वस्त्र, गंध औरमारा तथा अलंकार ग्रहण करके मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिजनों की स्त्रियों के साथ परिवृत्त होकर राजगृह नगर के बीचोंबीच होकर नीकलती हैं। जहाँ पुष्करिणी हैं वहाँ आती हैं, आकर पुष्करिणी में अवगाहन करती हैं, स्नान करती हैं, बलिकर्म करती हैं और सब अलंकारों से विभूषित होती हैं। फिर विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार का आस्वादन करती हुई, विशेष आस्वादन करती हुई, विभाग करती हुई तथा परिभोग करती हुई अपने दोहद को पूर्ण करती हैं।’ दूसरे दिन प्रातःकाल सूर्योदय होने पर धन्य सार्थवाह के पास आई। धन्य सार्थवाह से कहा – देवानुप्रिय ! मुझे उस गर्भ के प्रभाव से ऐसा दोहद उत्पन्न हुआ है कि वे माताएं धन्य हैं और सुलक्षणा हैं जो अपने दोहद को पूर्ण करती हैं, आदि। अत एव हे देवानुप्रिय ! आपकी आज्ञा हो तो में भी दोहद पूर्ण करना चाहती हूँ। सार्थवाह ने कहा – जैसे सुख उपजे वैसा करो। ढील मत करो। तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह से आज्ञा पाई हुई भद्रा सार्थवाही हृष्ट – तुष्ट हुई। यावत् विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तैयार करके यावत् स्नान तथा बलिकर्म करके यावत् पहनने और ओढ़ने का गीला वस्त्र धारण करके जहाँ नागायतन आदि थे, वहाँ आई। यावत् धूप जलाई तथा बलिकर्म एवं प्रणाम किया। प्रणाम करके जहाँ पुष्करिणी थी, वहाँ आई। आने पर उन मित्र, ज्ञाति यावत् नगर की स्त्रियों ने भद्रा सार्थवाही को सर्व आभूषणों से अलंकृत किया। तत्पश्चात् भद्रा सार्थवाही ने उन मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी, परिजन एवं नगर की स्त्रियों के साथ विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम का यावत् परिभोग करके अपने दोहद को पूर्ण किया। पूर्ण करके जिस दिशा से वह आई थी, उसी दिशा में लौट गई। तत्पश्चात् भद्रा सार्थवाही दोहद पूर्ण करके सभी कार्य सावधानी से करती तथा पथ्य भोजन करती हुई यावत् उस गर्भ को सुखपूर्वक वहन करने लगी। तत्पश्चात् उस भद्रा सार्थवाही ने नौ मास सम्पूर्ण हो जाने पर और साढ़े सात दिन – रात व्यतीत हो जाने पर सुकुमार हाथों – पैरों वाले बालक का प्रसव किया। तत्पश्चात् उस बालक के माता – पिता ने पहले दिन जातकर्म नामक संस्कार किया। करके उसी प्रकार यावत् अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार तैयार करवाया। तैयार करवाकर उसी प्रकार मित्र, ज्ञातिजनों आदि को भोजन कराकर इस प्रकार का गौण अर्थात् गुणनिष्पन्न नाम रखा – क्योंकि हमारा यह पुत्र बहुत – सी नाग – प्रतिमाओं यावत् तथा वैश्रमण प्रतिमाओं की मनौती करने से उत्पन्न हुआ है, उस कारण हमारा यह पुत्र ‘देवदत्त’ नाम से हो, अर्थात् इसका नाम ‘देवदत्त’ रखा जाए। तत्पश्चात् उस बालक के माता – पिता ने उन देवताओं की पूजा की, उन्हें दान दिया, प्राप्त धन का विभाग किया और अक्षयनिधि की वृद्धि की अर्थात् मनौती के रूप में पहले जो संकल्प किया था उसे पूरा किया। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam sa bhadda satthavahi annaya kayai kenai kalamtarenam avannasatta jaya yavi hottha. Tae nam tise bhaddae satthavahie tassa gabbhassa dosu masesu viikkamtesu taie mase vattamane imeyaruve dohale paubbhue–dhannao nam tao ammayao java kayalakkhanao nam tao ammayao, jao nam viulam asanam panam khaimam saimam subahuyam puppha-vattha-gamdha-mallalamkaram gahaya mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyana-mahiliyahim saddhim samparivudao rayagiham nayaram majjhammajjhenam niggachchhamti, niggachchhitta jeneva pukkharini teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta pokkharinim ogahemti, ogahitta nha-yao kayavalikammao savvalamkaravibhusiyao vipulam asanam panam khaimam saimam asaemanio visaemanio paribhaemanio paribhumjemanio dohalam vinemti–evam sampehei, sampehetta kallam pauppabhae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte jeneva dhanam satthavahe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta dhanam satthavaham evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Mama tassa gabbhassa dosu masesu viikkamtesu taie mase vattamane imeyaruve dohale paubbhue–dhannao nam tao ammayao java dohalam vinemti. Tam ichchhami nam devanuppiya! Tubbhehim abbhanunnaya samani viulam asanam panam khaimam saimam subahuyam puppha-vattha-gamdha-mallalamkaram gahaya java dohalam vinittae. Ahasuham devanuppiya! Ma padibamdham karehi. Tae nam sa bhadda dhanenam satthavahenam abbhanunnaya samani hatthatuttha-chittamanamdiya java harisavasa-visappamanahiyaya vipulam asanam panam khaimam saimam uvakkhadavei, uvakkhadavetta java dhuvam karei, karetta jeneva pokkharini teneva uvagachchhai. Tae nam tao mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyana-nagaramahilao bhaddam satthavahim savvalamkara-vibhusiyam karemti. Tae nam sa bhadda satthavahi tahim mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi- pariyana-nagaramahiliyahim saddhim tam vipulam asanam panam khaimam saimam asaemani visaemani paribhaemani paribhumjemani dohalam vinei, vinetta jameva disam paubbhuya tameva disam padigaya. Tae nam sa bhadda satthavahi sampunnadohala java tam gabbham suhamsuhenam parivahai. Tae nam sa bhadda satthavahi navanham masanam bahupadipunnanam addhatthamana ya raimdiyanam viikkamtanam sukumalapanipayam java daragam payaya. Tae nam tassa daragassa ammapiyaro padhame divase jayakammam karemti, taheva java vipulam asanam panam khaimam saimam uvakkhadavemti, taheva mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-pariyanam bhoyavetta ayameyaruvam gonnam gunanipphannam namadhejjam karemti–jamha nam amham ime darae bahunam nagapadimana ya java vesamanapadimana ya uvaiyaladdhe, tam hou nam amham ime darae devadinne namenam. Tae nam tassa daragassa ammapiyaro namadhejjam karemti devadinne tti. Tae nam tassa daragassa ammapiyaro jayam cha dayam cha bhayam cha akkhayanihim cha anuvaddhemti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat bhadra sarthavahi chaturdashi, ashtami, amavasya aura purnima ke dina vipula ashana, pana, khadima aura bhojana taiyara karati. Bahuta se naga yavat vaishramana devom ki manauti karati aura unhem namaskara kiya karati thi. Vaha bhadra sarthavahi kuchha samaya vyatita ho jane para ekada garbhavati ho gai. Bhadra sarthavahi ko do masa bita gae. Tisara masa chala raha tha, taba isa prakara ka dohada utpanna hua – ‘ve mataem dhanya haim, yavat tatha ve mataem shubha lakshana vali haim jo vipula ashana, pana, khadima aura svadima – yaha chara prakara ka ahara tatha bahuta – sare pushpa, vastra, gamdha auramara tatha alamkara grahana karake mitra, jnyati, nijaka, svajana, sambandhi aura parijanom ki striyom ke satha parivritta hokara rajagriha nagara ke bichombicha hokara nikalati haim. Jaham pushkarini haim vaham ati haim, akara pushkarini mem avagahana karati haim, snana karati haim, balikarma karati haim aura saba alamkarom se vibhushita hoti haim. Phira vipula ashana, pana, khadima aura svadima ahara ka asvadana karati hui, vishesha asvadana karati hui, vibhaga karati hui tatha paribhoga karati hui apane dohada ko purna karati haim.’ dusare dina pratahkala suryodaya hone para dhanya sarthavaha ke pasa ai. Dhanya sarthavaha se kaha – devanupriya ! Mujhe usa garbha ke prabhava se aisa dohada utpanna hua hai ki ve mataem dhanya haim aura sulakshana haim jo apane dohada ko purna karati haim, adi. Ata eva he devanupriya ! Apaki ajnya ho to mem bhi dohada purna karana chahati hum. Sarthavaha ne kaha – jaise sukha upaje vaisa karo. Dhila mata karo. Tatpashchat dhanya sarthavaha se ajnya pai hui bhadra sarthavahi hrishta – tushta hui. Yavat vipula ashana, pana, khadima aura svadima taiyara karake yavat snana tatha balikarma karake yavat pahanane aura orhane ka gila vastra dharana karake jaham nagayatana adi the, vaham ai. Yavat dhupa jalai tatha balikarma evam pranama kiya. Pranama karake jaham pushkarini thi, vaham ai. Ane para una mitra, jnyati yavat nagara ki striyom ne bhadra sarthavahi ko sarva abhushanom se alamkrita kiya. Tatpashchat bhadra sarthavahi ne una mitra, jnyati, nijaka, svajana, sambandhi, parijana evam nagara ki striyom ke satha vipula ashana, pana, khadima aura svadima ka yavat paribhoga karake apane dohada ko purna kiya. Purna karake jisa disha se vaha ai thi, usi disha mem lauta gai. Tatpashchat bhadra sarthavahi dohada purna karake sabhi karya savadhani se karati tatha pathya bhojana karati hui yavat usa garbha ko sukhapurvaka vahana karane lagi. Tatpashchat usa bhadra sarthavahi ne nau masa sampurna ho jane para aura sarhe sata dina – rata vyatita ho jane para sukumara hathom – pairom vale balaka ka prasava kiya. Tatpashchat usa balaka ke mata – pita ne pahale dina jatakarma namaka samskara kiya. Karake usi prakara yavat ashana, pana, khadima aura svadima ahara taiyara karavaya. Taiyara karavakara usi prakara mitra, jnyatijanom adi ko bhojana karakara isa prakara ka gauna arthat gunanishpanna nama rakha – kyomki hamara yaha putra bahuta – si naga – pratimaom yavat tatha vaishramana pratimaom ki manauti karane se utpanna hua hai, usa karana hamara yaha putra ‘devadatta’ nama se ho, arthat isaka nama ‘devadatta’ rakha jae. Tatpashchat usa balaka ke mata – pita ne una devataom ki puja ki, unhem dana diya, prapta dhana ka vibhaga kiya aura akshayanidhi ki vriddhi ki arthat manauti ke rupa mem pahale jo samkalpa kiya tha use pura kiya. |