Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004745 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ संघाट |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ संघाट |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 45 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तत्थ णं रायगिहे नयरे विजए नामं तक्करे होत्था–पावचंडाल-रूवे भीमतररुद्दकम्मे आरुसिय-दित्त-रत्तनयणे खरफ-रुस-महल्ल-विगय-बीभच्छदाढिए असंपुडियउट्ठे उद्धूय-पइण्ण-लंबंभमुद्धए भमर-राहुवण्णं निरनुक्कोसे निरनुतावे दारुणे पइभए निसंसइए निरनुकंपे अहीव एगंतदिट्ठीए खुरेव एगंतधाराए गिद्धेव आमिसतल्लिच्छे अग्गिमिव सव्वभक्खी जलमिव सव्वग्गाही उक्कंचण-वंचण-माया-नियडि-कूड-कवड-साइ-संपओग-बहुले चिरनगरविनट्ठ-दुट्ठसीलायार-चरित्ते जूयप्पसंगी मज्जप्पसंगी भोज्जप्पसंगी मंसप्पसंगी दारुणे हिययदारए साहसिए संधिच्छेयए उवहिए विस्संभघाई आलीवग-तित्थभेय-लहुहत्थसंपउत्ते परस्स दव्व-हरणम्मि निच्चं अनुबद्धे तिव्ववेरे रायगिहस्स नगरस्स बहूणि अइगमणाणि य निग्गमणाणि य बाराणि य अवबाराणि य छिंडीओ य खंडीओ य नगरनिद्धमणाणि य संवट्टणाणि य निव्वट्टणाणि य जूयखलयाणि य पाणागाराणि य वेसागाराणि य तक्करट्ठाणाणि य तक्करघराणि य सिंघाडगाणि य तिगाणि य चउक्काणि य चच्चराणि य नागधराणि य भूयधराणि य जक्खदेउलाणि य सभाणि य पवाणि य पणियसालाणि य सुन्नघराणि य आभोएमाणे मग्गमाणे गवेसमाणे, बहुजनस्स छिद्देसु य विसमेसु य विहुरेसु य वसणेसु य अब्भुदएसु य उस्सवेसु य पसवेसु य तिहीसु य छणेसु य जण्णेसु य पव्वणीसु य मत्तपमत्तस्स य वक्खित्तस्स य वाउलस्स य सुहियस्स य दुहियस्स य विदेसत्थस्स य विप्पवसियस्स य मग्गं च छिद्दं च विरहं च अंतरं च मग्गमाणे गवेसमाणे एवं च णं विहरइ। बहिया वि य णं रायगिहस्स नगरस्स आरामेसु य उज्जानेसु य वावि-पोक्खरणि-दीहिय-गुंजालिय-सर-सरपंतिय सरसरपंतियासु य जिण्णुज्जाणेसु य भग्गकूवेसु य मालुयाकच्छएसु य सुसाणेसु य गिरिकंदरेसु य लेणेसु य उवट्ठाणेसु य बहुजनस्स छिद्देसु य जाव अंतरं च मग्गमाणे गवेसमाणे एवं च णं विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | उस राजगृह में विजय नामक एक चोर था। वह पापकर्म करने वाला, चाण्डाल के समान रूपवाला, अत्यन्त भयानक और क्रूर कर्म करने वाला था। क्रुद्ध हुए पुरुष के समान देदीप्यमान और लाल उसके नेत्र थे। उसकी दाढ़ी या दाढ़े अत्यन्त कठोर, मोटी, विकृत और बीभत्स थीं। उसके होठ आपस में मिलते नहीं थे, उसके मस्तक के केश हवा से उड़ते रहते थे, बिखरे रहते थे और लम्बे थे। वह भ्रमर और राहु के समान काला था। वह दया और पश्चात्ताप से रहित था। दारुण था और इसी कारण भय उत्पन्न करता था। वह नृशंस – नरसंघातक था। उसे प्राणियों पर अनुकम्पा नहीं थी। वह साँप की भाँति एकान्त दृष्टि वाला था, वह छूरे की तरह एक धार वाला था, वह गिद्ध की तरह माँस का लोलुप था और अग्नि के समान सर्वभक्षी था, जल के समान सर्वग्राही था, वह उत्कंचन में वंचन में, माया में, निकृति में, कूट में था। साति – संप्रयोग में निपुण था। वह चिरकाल में नगर में उपद्रव कर रहा था। उसका शील, आचार और चरित्र अत्यन्त दूषित था। वह द्यूत से आसक्त था, मदिरापान में अनुरत था, अच्छा भोजन करने में गृद्ध था और माँस में लोलुप था। लोगों के हृदय को विदारण कर देने वाला, साहसी सेंध लगाने वाला, गुप्त कार्य करने वाला, विश्वासघाती और आग लगा देने वाला था। तीर्थ रूप देवद्रोणी आदि का भेदन करके उसमें से द्रव्य हरण करने वाला और हस्तलाघव वाला था। पराया द्रव्य हरण करने में सदैव तैयार रहता था, तीव्र वैर वाला था। वह विजय चोर राजगृह नगर के बहुत से प्रवेश करने के मार्गों, नीकलने के मार्गों, दरवाजों, पीछे की खिड़कियों, छेड़ियों, किलों की छोटी खिड़कियों, मोरियों, रास्ता मिलने की जगहों, रास्ते अलग – अलग होने के स्थानों, जुआ के अखाड़ों, मदिरापान के अड्डों, वेश्या के घरों, उनके घरों के द्वारों, चोरों के घरों, शृंगाटकों – सिंघाड़े के आकार के मार्गों, तीन मार्ग मिलने के स्थानों, चौकों, अनेक मार्ग मिलने के स्थानों, नागदेव के गृहों, भूतों के गृहों, यक्षगृहों, सभास्थानों, प्याउओं, दुकानों ओर शून्यगृहों को देखता फिरता था। उनकी मार्गणा करता था – उनकी गवेषणा करता था, विषम – रोग की तीव्रता, इष्टजनों के वियोग, व्यसन, अभ्युदय, उत्सवों, मदन त्रयोदशी आदि तिथियों, क्षण, यज्ञ, कौमुदी आदि पर्वणी में, बहुत से लोग मद्यपान से मत्त हो गए हों, प्रमत्त हुए हों, अमुक कार्य में व्यस्त हों, विविध कार्यों में आकुल – व्याकुल हों, सुख में हों, दुःख में हों, परदेश गए हों, परदेश जाने की तैयारी में हों, ऐसे अवसरों पर वह लोगों के छिद्र का, विरह का और अन्तर का विचार करता और गवेषणा करता रहता था। वह विजय चोर राजगृह नगर के बाहर भी आरामों में अर्थात् दम्पती के क्रीड़ा करने के लिए माधवीलतागृह आदि जहाँ बने हों ऐसे बगीचों में, चौकोर बावड़ियों में, कमल वाली पुष्करिणियों में, दीर्घिकाओं में, गुंजालिकाओं में, सरोवरों में, सरोवरों की पंक्तियों में, सर – सर पंक्तियों में, जीर्ण उद्यानों में, भग्न कूपों में, मालुकाकच्छों की झाड़ियों में, स्मशानों में, पर्वत की गुफाओं में, लयनों तथा उपस्थानों में बहुत लोगों के छिद्र आदि देखता रहता था। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tattha nam rayagihe nayare vijae namam takkare hottha–pavachamdala-ruve bhimatararuddakamme arusiya-ditta-rattanayane kharapha-rusa-mahalla-vigaya-bibhachchhadadhie asampudiyautthe uddhuya-painna-lambambhamuddhae bhamara-rahuvannam niranukkose niranutave darune paibhae nisamsaie niranukampe ahiva egamtaditthie khureva egamtadharae giddheva amisatallichchhe aggimiva savvabhakkhi jalamiva savvaggahi ukkamchana-vamchana-maya-niyadi-kuda-kavada-sai-sampaoga-bahule chiranagaravinattha-dutthasilayara-charitte juyappasamgi majjappasamgi bhojjappasamgi mamsappasamgi darune hiyayadarae sahasie samdhichchheyae uvahie vissambhaghai alivaga-titthabheya-lahuhatthasampautte parassa davva-haranammi nichcham anubaddhe tivvavere rayagihassa nagarassa bahuni aigamanani ya niggamanani ya barani ya avabarani ya chhimdio ya khamdio ya nagaraniddhamanani ya samvattanani ya nivvattanani ya juyakhalayani ya panagarani ya vesagarani ya takkaratthanani ya takkaragharani ya simghadagani ya tigani ya chaukkani ya chachcharani ya nagadharani ya bhuyadharani ya jakkhadeulani ya sabhani ya pavani ya paniyasalani ya sunnagharani ya abhoemane maggamane gavesamane, bahujanassa chhiddesu ya visamesu ya vihuresu ya vasanesu ya abbhudaesu ya ussavesu ya pasavesu ya tihisu ya chhanesu ya jannesu ya pavvanisu ya mattapamattassa ya vakkhittassa ya vaulassa ya suhiyassa ya duhiyassa ya videsatthassa ya vippavasiyassa ya maggam cha chhiddam cha viraham cha amtaram cha maggamane gavesamane evam cha nam viharai. Bahiya vi ya nam rayagihassa nagarassa aramesu ya ujjanesu ya vavi-pokkharani-dihiya-gumjaliya-sara-sarapamtiya sarasarapamtiyasu ya jinnujjanesu ya bhaggakuvesu ya maluyakachchhaesu ya susanesu ya girikamdaresu ya lenesu ya uvatthanesu ya bahujanassa chhiddesu ya java amtaram cha maggamane gavesamane evam cha nam viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa rajagriha mem vijaya namaka eka chora tha. Vaha papakarma karane vala, chandala ke samana rupavala, atyanta bhayanaka aura krura karma karane vala tha. Kruddha hue purusha ke samana dedipyamana aura lala usake netra the. Usaki darhi ya darhe atyanta kathora, moti, vikrita aura bibhatsa thim. Usake hotha apasa mem milate nahim the, usake mastaka ke kesha hava se urate rahate the, bikhare rahate the aura lambe the. Vaha bhramara aura rahu ke samana kala tha. Vaha daya aura pashchattapa se rahita tha. Daruna tha aura isi karana bhaya utpanna karata tha. Vaha nrishamsa – narasamghataka tha. Use praniyom para anukampa nahim thi. Vaha sampa ki bhamti ekanta drishti vala tha, vaha chhure ki taraha eka dhara vala tha, vaha giddha ki taraha mamsa ka lolupa tha aura agni ke samana sarvabhakshi tha, jala ke samana sarvagrahi tha, vaha utkamchana mem vamchana mem, maya mem, nikriti mem, kuta mem tha. Sati – samprayoga mem nipuna tha. Vaha chirakala mem nagara mem upadrava kara raha tha. Usaka shila, achara aura charitra atyanta dushita tha. Vaha dyuta se asakta tha, madirapana mem anurata tha, achchha bhojana karane mem griddha tha aura mamsa mem lolupa tha. Logom ke hridaya ko vidarana kara dene vala, sahasi semdha lagane vala, gupta karya karane vala, vishvasaghati aura aga laga dene vala tha. Tirtha rupa devadroni adi ka bhedana karake usamem se dravya harana karane vala aura hastalaghava vala tha. Paraya dravya harana karane mem sadaiva taiyara rahata tha, tivra vaira vala tha. Vaha vijaya chora rajagriha nagara ke bahuta se pravesha karane ke margom, nikalane ke margom, daravajom, pichhe ki khirakiyom, chheriyom, kilom ki chhoti khirakiyom, moriyom, rasta milane ki jagahom, raste alaga – alaga hone ke sthanom, jua ke akharom, madirapana ke addom, veshya ke gharom, unake gharom ke dvarom, chorom ke gharom, shrimgatakom – simghare ke akara ke margom, tina marga milane ke sthanom, chaukom, aneka marga milane ke sthanom, nagadeva ke grihom, bhutom ke grihom, yakshagrihom, sabhasthanom, pyauom, dukanom ora shunyagrihom ko dekhata phirata tha. Unaki margana karata tha – unaki gaveshana karata tha, vishama – roga ki tivrata, ishtajanom ke viyoga, vyasana, abhyudaya, utsavom, madana trayodashi adi tithiyom, kshana, yajnya, kaumudi adi parvani mem, bahuta se loga madyapana se matta ho gae hom, pramatta hue hom, amuka karya mem vyasta hom, vividha karyom mem akula – vyakula hom, sukha mem hom, duhkha mem hom, paradesha gae hom, paradesha jane ki taiyari mem hom, aise avasarom para vaha logom ke chhidra ka, viraha ka aura antara ka vichara karata aura gaveshana karata rahata tha. Vaha vijaya chora rajagriha nagara ke bahara bhi aramom mem arthat dampati ke krira karane ke lie madhavilatagriha adi jaham bane hom aise bagichom mem, chaukora bavariyom mem, kamala vali pushkariniyom mem, dirghikaom mem, gumjalikaom mem, sarovarom mem, sarovarom ki pamktiyom mem, sara – sara pamktiyom mem, jirna udyanom mem, bhagna kupom mem, malukakachchhom ki jhariyom mem, smashanom mem, parvata ki guphaom mem, layanom tatha upasthanom mem bahuta logom ke chhidra adi dekhata rahata tha. |